संवेदनशील होते हुए मज़बूत और ताकतवर बने रहना सबसे उत्तम है!

मौनट्रीयल, कैनेडा नवंबर 25, 2010
वर्तमान क्षण में अभी जागो! यह केवल एक बहता हुआ क्षण नहीं है। वर्तमान क्षण में अनंत की गहराई है। पूरा अतीत और भविष्य वर्तमान में मौजूद है। तुम्हारा पूरा कृत वर्तमान क्षण का पूर्ण रूप से अनुभव करना ही होना चाहिए। किस को परवाह है तुम कैसा महसूस करते हो? क्या तुम वो कर रहे हो जो तुम्हे करना चाहिए?  क्या आप अपने अस्तित्व के नाज़ुक पहलू से परिचित हैं? क्या आप सब करते हुए भी अपने उस संवेदनशील पहलू में विश्राम कर रहे हैं?वर्तमान क्षंण संवेदनशील है। आमतौर पर जब आप संवेदन शील होते हैं तो आप कमज़ोर पड़ जाते हैं, और जब आप ताकतवर होते हैं तो असंवेदनशीलता झलकती है। दोनो का मेल उत्तम है - संवेदनशील होते हुए मज़बूत और ताकतवर बने रहना। यही ज्ञान है। भूतकाल के कर्मों का प्रभाव स्थायी नहीं है। भूतकाल में होने वाली घटनाओं पर दुखी होना मूर्खता है। परिणाम का सामना करो पर वर्तमान में शांत रहो। अभी जागो! जब अभी जागकर देखते हो तो किसी परिणाम का भय भी नही रहता।  जिस क्षण तुम्हे अपनी गलती का एहसास हो जाता है तुम्हे उसी क्षण माफ़ी मिल जाती है। तुम हर क्षण में नए हो, ताज़ा हो, फूल की तरह खिले हुए हो।
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विज्ञान और अध्यात्म को साथ लेकर चलने से जीवन में प्रगति होती है

बैंगलुरू , भारत, 15 नवंबर:

प्रश्न: जब सब कुछ भगवान की इच्छा है, तो आध्यात्म की क्या आवश्यकता हैं ?
श्री श्री: हम तत्व, और आत्मा दोनों से बने हैं|  आत्मा को आध्यात्मिकता की आवश्यकता है! शरीर (तत्व ) की कुछ भौतिक चीजों की आवश्यकता होती है और हमारी आत्मा का पोषण आध्यात्म  से होता है | आप जीवन को आध्यात्मिकता के बिना जी नहीं सकते | क्या आप शांति चाहते हैं? क्या आप  खुशी चाहते हैं? क्या आप सुख चाहते हैं? हमें लगता है कि आध्यात्मिकता का अर्थ केवल मंदिर, गिरजाघर  या मस्जिद जाना है|  आध्यात्मिकता मानवीय मूल्यों का जीवन में समावेश है|  मानवीय मूल्यों के बिना जीवन व्यर्थ है| यदि  कोई प्रश्न करता है कि  आपको  मानवीय मूल्यों की आवश्यकता क्यों है, तो  आप कहेंगे, यह एक मूर्खतापूर्ण सवाल है!  जब आप मनुष्य हैं तो जानवरों जैसा जीवन जीने का कोई अर्थ नहीं हैं| मानवीय मूल्यों के साथ रहना मनुष्यता है|

मनुष्य की कुछ जरूरते होती है और वह  जिम्मेदारियाँ लेता है | जब जरूरते कम और जिम्मेदारीया अधिक हो तो जीवन अच्छा होता है|  जब जरूरतें अधिक और जिम्मेदारीया कम हों तो फिर जीवन इतना अच्छा नहीं होता| जब आपकी जरूरतें अधिक हों और आप बहुत ही कम जिम्मेदारी लेते हैं, तो आप दुखी हो जाते हैं| यह आध्यात्मिक जीवन नहीं हैं |  भरथियार, कामराज और गांधीजी ने पूरे राष्ट्र की जिम्मेदारी ली और उन्होंने कैसा जीवन व्यतीत किया - उनकी जरूरतों कम से कम थी |

अधिक  से अधिक  जिम्मेदारी लें| यदि पिता अपने बच्चो और उनकी जरूरतों की जिम्मेदारी नहीं लेगा, तो क्या बच्चे उसकी सुनेंगे? जो लोग जिम्मदारी लेते हैं उन्हें ही अधिकार प्राप्त होते हैं | जो लोग राजनीती में हैं उन्हें तो पूरे राष्ट्र की जिम्मेदारी लेनी होगी|  परन्तु यदि वे भ्रष्ट तरीको से सत्ता में आये हैं तो पतन निश्चित हैं|  जब हम और अधिक जिम्मेदारी लेते हैं तो उसका प्रबंधन कैसे करे ? हमारी क्षमता से परे जिम्मेदारी लेना और उसका प्रबंधन करना आध्यात्म से आता है |

प्रश्न : ऐसा क्यों हैं जब मैं अच्छी बातो का  पालन करता हूँ फिर भी बुरी बाते मेरा पीछा करती हैं ?
श्री श्री: यदि आप नीम के पेड़ को बोयेंगे तो क्या उस पर आम लगेंगे ? आपको बुद्धिमान होना होगा | आप अच्छे इंसान हो सकते हैं और फिर भी आप बुद्धिमान हो सकते हैं|  यदि आप अच्छे इंसान हैं और आप आग में अपना हाँथ ड़ालते हैं , तो आपका हाँथ जलेगा ही | अपने बुद्धि का अच्छे से इस्तमाल करें|  हम अपने बुद्धि का इस्तमाल सिर्फ भ्रष्टाचार के लिए करते हैं ना कि एक अच्छे इंसान बनने के लिए | हम सोचते हैं कि हम अच्छे हैं और दुसरे बुरे हैं | यह ऐसा नहीं हैं |  कुछ अच्छाई हर किसी में होती हैं | आध्यात्म से  उसमे बढावा होता हैं |  जब छोटी कठिनाइयाँ हों तो उनसे भी हमें गहराई मिलती है -. खुशी से  विस्तार मिलता  है, कठिनाइयो से  गहराई मिलती हैं |


प्रश्न : हमारे युवायो के लिए आप की क्या सलाह हैं ?
श्री श्री: आधुनिक और प्राचीन दोनों से सीखे , और आगे बढे. | आध्यात्म हमारी परंपरा और संस्कृति की बुनियाद हैं |  उसकी पत्तियाँ और शाखाए विज्ञान हैं|  कभी कभी अध्यात्म के नाम पर, हम अंधविश्वासों का पालन करते यां यह सोचते हैं कि हम वैज्ञानिक हैं, और हम अपनी  परम्पराओं को अनदेखा करते हैं |  यह ठीक नहीं हैं| आपने मध्यस्त मार्ग लेना चाहिए | हमें अपनी परंपरा का सम्मान करना चाहिए, वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखना चाहिए और दूसरों के लिए हम जो भी कुछ अच्छा कर सकते हैं उसे करते रहना चाहिए |

प्रश्न : मनुष्य का सर्वोच्च कर्तव्य क्या है?
श्री श्री: जब कर्तव्य को प्रेम से करते हैं तो बोझ नहीं लगता।  कभी कभी आप सिर में दर्द महसूस करते हो क्युकि आपको कर्त्तव्य बोझ लगता है|  यदि आप कुछ प्रेम से करते हो तो वह उत्तम है|  जब आप कोई जिम्मेदारी प्रेम से लेते हैं तो वह आपके लिए बोझ नहीं रहती|  वह पूजा के जैसे हो जाती है और वह उत्तम है| यदि आप पूजा को ही कर्त्तव्य समझने लगते हैं तो उसे करने से कोई लाभ नहीं हैं| वो प्रेम का भाव ज़रुरी है।

यदि कोई पिता सोचे कि मुझे अपनी बेटी की शादी करनी हैं और किसी तरह अपनी जिम्मेदारी से छुटकारा मिले तो फिर वह बोझ बन जाता हैं|  परन्तु यदि वह उसकी शादी को प्रेम से लेता है तो फिर सारा कार्यक्रम उत्सव बन जाता हैं और सबको प्रसन्नता होती है|  इसलिए ज़िम्मेदारी को प्रेम से लीजिए और सारे विश्व की जिम्मेदारी लिजिये| छोटे कदम के साथ शुरू करें |  पहेले अपना परिवार, पडोसी, समाज, गाँव – आपके गाँव में किसी को दुखी नहीं होना चाहिए! ऐसे दृष्टिकोण से आपका दिल खिल उठेगा |  और जब जब दिल खिलता है तो वहाँ पर खुशहाली होती है|  ईश्वर खिले हुए दिल में वास करते हैं| आपको कही जाकर ईश्वर को खोजने की आवश्यता नहीं हैं| उनका निवास आपका दिल है|

प्रश्न : आपदाये  और प्राकृतिक आपदाये  क्यों  होती  हैं?
श्री श्री: हम इस ग्रह का शोषण कर रहे हैं, परमाणु बमों का इस्तेमाल करके , उनका विस्फोट पानी के नीचे कर रहे हैं  - इस तरह कई परमाणु हथियारो का परिक्षण चुपके से पानी के निचे किया जा रहा है। पृथ्वी इसे सहन नहीं कर सकती | इस सब को बदलना होगा – हमें रसायन रहित कृषि के तरीको को प्रोत्साहन देना चाहिए | हमारे देश का मक्का छोटा है|  आयातित मकई बडी है|  हमारे चावल के दाने छोटे हैं, आयातित अनाज/चावल  बड़े होते हैं|  लेकिन हमारे अनाज अधिक स्वास्थ्य होते हैं|  हमें अपने स्वदेशी बीजों की रक्षा करना चाहिए| हमारे गाय के गोबर और गौमूत्र में औषधीय गुण है| देशी गायो  और बीजो की रक्षा करनी होगी! आयातित संकर बीज (Imported hybrid seeds)पहले दो या तीन साल में अच्छी उपज देते हैं पर वे भूमि/मिटटी को पूरी तरह से बर्बाद कर देते हैं | महाराष्ट्र के कई हजार कृषको ने इस वजह से आत्महत्या कर ली|  हमें कृषि के प्राकृतिक तरीकों को प्रोत्साहित करना चाहिए|

प्रश्न:मैं ऐसा क्या करूँ जिससे मैं जो भी इच्छा करू वह पूरी हो जाये ?
श्री श्री: ध्यान से सोचे! यदि आप जो चाहते वह सब कुछ पूरा हो जायेगा तो आप बहुत जल्द ही पूछेंगे 'क्यों ऐसा हुआ" | एक राजा ने भगवान से वरदान माँगा कि - वह जिसे भी छुए वह सोने का हो जाये | भगवान ने उसकी इच्छा पूरी करी और वह बहुत खुश था परन्तु सिर्फ कुछ मिनटों के लिए | वह प्यासा था और उसे पानी चाहिए था | जैसे ही उसने उसे छुआ वह सोना बन गया | उसका भोजन और उसकी छोटी बेटी सब सोना बन गयी जैसे ही उसने उन्हें छुआ|  राजा बहुत परेशांन हो गया और उसने प्रार्थना करी कि वरदान को वापस कर दिया जाये |

थोडा पीछे देखो  और याद करो – एक बालक के रूप में आप क्या बनना चाहते थे? इंजन ड्राइवर? आजकल बच्चो के पास बहुत सारे खिलौने होते हैं | ३० से ४० साल पहेले बच्चे सिर्फ इंजन ड्राइवर या पायलट बनना चाहते थे |  कई  चीजे जो आपको पहले पसंद थी, वो आपको अब पसंद नहीं हैं| जो आपके लिए सबसे उत्तम हैं ईश्वर आपको वही देगा |  अपने विश्वास के साथ आगे बढे |  यदि आपकी कोई इच्छा हैं , तो यह मत सोचे कि उसके लिए प्रार्थना नहीं करनी हैं | सिर्फ सोचे – मुझे यह मिल जाए या इससे कुछ बेहतर मिले |

प्रश्न: साम्यवाद आध्यात्म का विरोध क्यों करता हैं ?
श्री श्री: आप जिस भी दिशा में जायेंगे, आपको कोई बिंदु मिलेगा क्युकि पृथ्वी गोलाकार है |  साम्यवाद और आध्यात्मिकता एक दूसरे के विरोधी लगते हैं, लेकिन अंत में वे साथ में मिल ही जायेंगे|
क्या आपको पता है कि चीन की सरकार ने चीन के संविधान में आध्यात्म की आवश्यकता को सम्मलित किया है| चीन में हर व्यक्ति को समृद्धि, विकास और आध्यात्म  उपलब्ध कराई जायेगी |

क्या  आपको पता है कि बहुत ही कम लोग आध्यात्म से नफरत करते हैं |  अपने दिल की गहराई में देखे | ईश्वर के प्रति आपके मन में श्रद्धा या तो भय होगा | साम्यवाद का सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत क्या है? यह की सबको सबकुछ मिलना चाहिए |  आध्यात्म भी वही कहता है|  दूसरों को स्वयं के रूप में देखे| सब में अच्छाई को देखे |

प्रश्न: यदि सब  भगवान के बच्चे हैं, तो लोगों के बीच में अंतर क्यों है?
श्री श्री: हम इसमें फर्क बना देते हैं | किसी को स्कूल में 'ए' ग्रेड या 'बी' ग्रेड मिलता है| हम में अलग अलग प्रतिभा और गुण हो सकते हैं |  कुछ लोग 100 किलोग्राम, कुछ दस किलोग्राम, और कुछ दो किलोग्राम भी नहीं उठा सकते हैं|

प्रत्येक व्यक्ति कुछ न कुछ कर लेने में अद्भुत हैं परन्तु अन्य स्तर पर हर कोई सामान है | हर व्यक्ति के खून का रंग लाल है|  गाय किसी भी नस्ल की हो उसके दूध का रंग सफेद ही होगा |
कोई भी दो लोगों के उँगलियों के निशान एक जैसे नहीं होते | यदि आप अपने गुण और प्रतिभा को देखें , तो हम सब अद्भुत हैं |  प्रेम के स्तर पर हम सब सामान हैं | इसमें कोई अंतर नहीं है। एक छोटा बच्चा दस इडली नहीं खायेगा |  यदि आप एक वयस्क, को छोटा कप और चम्मच देंगे, तो क्या वह ठीक होगा? क्षमता भिन्न हैं, फिर भी हर कोई सामान ही है|

प्रश्न: क्या यज्ञ और मंत्र कर्मो को साफ़ कर सकते हैं ?
श्री श्री: ध्यान और प्राणायाम कर्म को साफ़ कर देंगे |  यज्ञ भी कर सकता है| हालांकि, बिना ध्यान की अवस्था में यज्ञ से भी समान लाभ नहीं मिलते|

प्रश्न: व्यक्ति को क्या सफल बनाता हैं : विज्ञान या अध्यात्म ?
श्री श्री: जब आप  टीवी देख रहे होते हैं,  तो क्या अधिक महत्वपूर्ण है? देखना या सुनना? आपको दोनों की आवश्यकता हैं| उसी तरह, जीवन में भी,हमें  दोनों की आवश्यकता हैं |

प्रश्न: आध्यात्मिक गुरु ज्यादातर पुरुष क्यों होते  हैं?
श्री श्री: आध्यात्म लिंग से परे होता हैं |  पुरुष और महिलाये समान हैं | यहाँ पर कई महिलायों के लिए रिक्तिया हैं जो स्वामी बनना चाहती हैं | वे भी आगे आ सकती हैं

प्रश्न: मन और बुद्धि के बीच अंतर क्या है?
श्री श्री: यह मुझसे ऐसा पूछने के जैसा हैं कि कठल और केले के बीच में अंतर क्या है?  यदि वे समान होते तो आप मुझसे यह सवाल नहीं करते| मन किसी एक स्थान पर नहीं है, वह पूरे शरीर के इर्द गिर्द फैला हुआ हैं |

प्रश्न: क्या सेवा करने से अहंकार को नष्ट होने में मदद मिलेगी?
श्री श्री: यदि आप में अहंकार है, तो उसे आप अपनी जेब में रख लें |  उसे नष्ट करने की कोशिश मत करें, क्युकि वह प्रयास इसे और बढायेगा |  एक शिशु के भांति स्वाभाविक रहें|  यदि वह हैं, तो कोई बात नहीं | जब आप अपने और दूसरों के बीच अलगाव या दूरी महसूस करते हैं, तो अहंकार उत्पन्न  होता है | हमें  अपने परिवार के साथ या जो लोग हमारे करीबी हैं उनके साथ अहंकार नहीं होता है | उसी तरह जिन्हें हम बिलकुल ही नहीं जानते उनके साथ हमें अहंकार नहीं होता | यह सिर्फ लोगो के साथ होता हैं जिन्हें  हम बहुत थोडा जानते हैं, हमारा अहंकार विकसित हो जाता हैं | यदि सब आपके हैं या कोई आपका नहीं हैं तो वहाँ पर अहंकार नहीं होता हैं |

एक बच्चे की तरह सहजता होना जरूरी है |  जब हम अन्य लोगों के हमारे बारे में विचार के बारे में चितिंत हैं , तो वह अहंकार है |  यहां तक कि जब आप कुछ अच्छा कर रहे हैं,  तो भी कुछ लोग उसमे दोष निकालेंगे |  उसी तरह कई लोग प्रशंसा करने के लिए भी होंगे चाहे वह व्यक्ति भ्रष्ट क्यों न हो|  इसलिए इसकी चिंता मत करे| यदि आप गलती करते हैं तो उसे स्वीकार करे | यह बुद्धिमानी है|  उसी तरह दूसरे लोग भी गलती कर सकते हैं| उनके माफी मांगने का इन्तज़ार मत करे | आप उन्हें माफ करे और आगे बढे|  यदि कोई गलती हो गयी हैं तो उसे भूल जायें| पूर्व की गलतियों के बारे में न सोचे और उसे गोंद की तरह चिपका के मत रखें|  यह कचरे के ढेर का मंथन करने की तरह हैं| आपको हर कीमत पर अपने मन को सुरक्षित रखना हैं|

यदि आप अपने मन को सुरक्षित रखते हैं , तो आप इच्छाओं और जरूरतों से मुक्त हो जायेंगे |  तब आप दूसरों को आशीर्वाद दे  सकते हैं, तो उनकी जरूरते पूरी हो जाती हैं|  इसलिए लोग घर के बड़ो से आशीर्वाद लेते हैं|  जैसे आप बड़े होते हैं तो आप और संतुष्ट हो जाते हैं | परन्तु यह बात हर समय नहीं रहती | जैसे लोग बड़े होते हैं , वे चिंताओ और इच्छाओं को इकट्ठा कर लेते हैं |  जब आप चिंताओ और इच्छाओं से मुक्त रहते हैं तो आप में आशीर्वाद देने की क्षमता प्राप्त हो जाती है|  किसी न किसी समय पर आपको यह कहना होता है, 'मैं संतुष्ट हूं.' | यह  शक्ति आध्यात्म से ही आती है| जब आपको यह अनुभव हो जाता हैं कि आप कौन हैं तो  आपकी सारी आवश्यकताये  पूरी हो जाती हैं | आपका सबसे बड़ा दुश्मन आपका मन है, इसलिए मन को शांत रखने के लिए हम इतनी सारी चीजे करते हैं | आशीर्वाद लीजिए और खुश रहें|
बहुत से लोगों को सुदर्शन क्रिया से लाभ हुआ है और बहुत से लोग इसके लाभ का इंतज़ार कर रहे हैं।
ऐसा संकल्प लें कि जो आनंद आपको मिला, वो सारे विश्व को भी मिले।

प्रश्न: मैं अपनी पत्नी या गुरु किसकी सुनु ?
श्री श्री: यह फँसने वाला सवाल है, लेकिन मैं फँसने वाला नहीं हूँ! (हंसते हुए)  यदि आपकी पत्नी कुछ कहेगी तो आप कहेंगे कि मुझे अपने गुरु से पूँछने दो और यदि आपके गुरु कुछ कहेंगे तो आप कहेंगे कि " मेरी पत्नी इससे सहमत नहीं हैं " |  अंत में आप वही करोगे जो आप करना चाहते हैं| आदमी के साथ ऐसा हमेशा होता आया है ! इसलिए मैं कहता हूँ कि  "चुनाव आपका है, और मेरा आशीर्वाद है"!

प्रश्न:  कभी कभी सेवा करते समय मैं थक जाता हूँ और निराश हो जाता हूँ |
श्री श्री: यह हो सकता है |  जब आप गतिविधि में हैं, तो  शरीर में थकान हो सकती हैं और  ऊर्जा का स्तर नीचे जा सकता हैं | कभी कभी यह समय के प्रभाव से भी होता हैं |  हालांकि, हमें सिर्फ इसे जारी रखना हैं और रूकना नहीं हैं | थोडा प्राणायाम और ध्यान  आपकी  ऊर्जा के स्तर को बहाल कर आपको ताज़ा कर सकता है|  इसके लिए सत्संग बहुत महत्वपूर्ण हैं | जब हम सत्संग में बैठते हैं तो हम उत्साहित हो जाते हैं और नई ऊर्जा के साथ सेवा कर सकते हैं|

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लोग कहते हैं ईश्वर दिखाई नहीं देता, हम कहते हैं ईश्वर के बगैर कुछ और दिखाई नहीं देता।

पंजाब , भारत १२, नवम्बर २०१०

(पंजाब को नशे से मुक्त कराने के लिए और कन्या भ्रूण हत्या को खत्म करने के लिए मौजूद लगभग ३०,००० लोगों ने शपथ ली)
गुरुओं की नगरी मे आकर हम धन्य महसूस कर रहे हैं। सिख परंपरा के १० गुरुओं ने मानवता के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया, और अपना जीवन बलिदान दिया। श्री गुरु नानक देव जी से श्री गुरु गोबिंद सिंग जी तक सब गुरुओं की कृपा इस पवित्र धरती पर चौबिस घंटे बरस रही है। कीर्तन करके हम उस पुरानी परंपरा को नमन करते हैं| प्रेम की आवाज़ को दृढ़/बुलंद करना आज अत्यंत महत्वपूर्ण है| जिनका दिल साफ़ है और जिनमें जोश है वही इसे कर सकते हैं। पंजाब पूरे भारत की भूमि का चेहरा है। लेकिन यह पवित्र भूमि नशीली दवाओं की लत/कैद और कन्या भ्रूण हत्या जैसी बुराइयों से पीड़ित है| इसे देखकर मेरे मन में यह संकल्प उठा कि पंजाब को नशीली दवाओं की लत/कैद से मुक्त कराना चाहिए। इसलिए सारे बच्चे, बुजुर्ग, और सब लोग व्यसनों से मुक्त हो जाये, और मन ईश्वर की ओर लगे - ऐसी कामना करनी है। मन की शान्ति और वास्तविक नशा परमात्मा में ही मिलता है। एक और महत्वपूर्ण मुद्दा जिसे प्रकाश में लाना है - देशी बीजो को बचाना। कितने लोग शरीर के दर्द से पीड़ित है?(बहुत से लोगो ने हाथ उठाये) यह आहार में कीटनाशक सामग्री(Pesticide content) के उपयोग को ग्रहण करने से होता है| इसका उपाय स्थानीय बीजों का संरक्षण और जैविक कृषि को अपनाना है|
युवाओं को धर्म के वास्तविक सार के बारे मे जागृत करने की आवश्यकता है| हम कहीं आध्यात्मिकता या धर्म के वास्तविक विश्राम और सुखद पहलू को प्रस्तुत करने में असफल रहे हैं| यदि जड़ खराब हो जाए तो पेड़ मुर्झाने लगता है। हमे अपनी बुनियाद और परंपरा को सम्मान देने की ज़रुरत है|

जापानियों से टीम में काम करने की भावना, जर्मन लोगो से यथार्थता, अंग्रेजो से शिष्टाचार और अमरीकीयों से विपणन(Marketing) सीखने की जरूरत है| अमरीकी अमावस्या के दिन भी चाँद बेच सकते हैं! भारत मानवीय मूल्यों के लिए और मानवता के लिए है| प्रेम क्या है - यह केवल हिन्दोस्तान ही दुनिया को बता सकता है।

प्रेम भाषा से परे है| जब दिल को मार्ग मिल जाता है तो, भाषा की कोई बाधा नहीं रह जाती| परन्तु इसे महसूस करने के लिए मैं अप्रसन्न/दुखी हूँ यह बोर्ड दिल से हटाना है। हम इस लेबल को अपने ऊपर लाद लेते हैं और प्रोत्साहित करते रहते हैं| और हम ऐसा क्यों करते हैं? तनाव और उसके कारण पैदा होने वाले संघर्ष के कारण। हमें हर घर को तनाव से मुक्त करने के लिए कार्य करना होगा | परन्तु इसके पहले हमारे मन में जो द्वन्द चल रहा हैं, हमें उससे मुक्त होना होगा| यह आत्म ज्ञान है| जब तनाव होता है तो हम क्रोधित हो जाते हैं और खुद भी दुखी होते हैं और दूसरों को भी दुःख देते हैं| तनाव को जड़ो से निकालने के लिए हमें निरंतर कुछ समय ध्यान करना चाहिए| जब आप कीर्तन को सुनने के लिए बैठते हैं तो उसमे डूब जाये| पर अगर कीर्तन के दौरान भी मन भागता है तो प्राणायाम, योग और ध्यान इससे निकलने में सहायक हैं|

हिंसा मुक्त समाज, रोग मुक्त शरीर, कंपन मुक्त श्वास, भ्रम मुक्त मन, निषेध मुक्त बुद्धि, आघात मुक्त स्मृति, दुख मुक्त आत्मा, और अहंकार जिसमे यह सबकुछ सम्मलित हो, इस गृह के सभी लोगो का जन्मसिद्ध अधिकार है| हमें सदियों से ज्ञान उपलब्ध है और हमे इसके लिए शुक्र गुज़ार होना है। परन्तु दुःख कि बात यह है कि हम अपनी परंपरा को ही नहीं जानते| तामिलनाडु में दस गुरुओं के बलिदान के बारे में कोइ नहीं जानता। बच्चों ने केवल गुरु नानक देव और गुरु गोबिंद सिंह का नाम स्कूलो के पाठ्यक्रम में पढ़ा है। उसी तरह, यहाँ कोई नहीं जानता कि तमिलनाडु में 63 महान संत थे | पांच साल पहले, हमने दस गुरुओं के बारे में एक प्रदर्शनी आयोजित करी, जिससे लोगो में सजगता आई| . हमारी विरासत क्या है? हमारी जड़ें/ बुनियाद क्या हैं? आत्म ज्ञान हमारी प्राचीन परंपरा का आधार है| विज्ञान का आधार आध्यात्म है, जो प्राचीन ग्रंथों का ज्ञान है|

समाज मे आने वाले पीढ़ी के लिए हम कैसा समाज छोड़ना चाहते हैं? यदि हम उन्हें हमसे बेहतर समाज नहीं देते हैं, तो हम अपनी ज़िम्मेदारी से चूक रहे हैं| सत्श्रीकाल, उस ईश्वर रूपी सत्य का सम्मान करना जो समय से परे है और भीतर के अनमोल भंडार का सम्मान करना, एक विशेष अभिनंदन है| जब आप भीतरी आनंद को पहचानते हैं तो सांसारिक समृद्धि अपने आप आती है| आंतरिक समृद्धि तो है ही, लेकिन उस खजाने को पहचानना हैं| '' की ध्वनि - वैज्ञानिकों ने पाया है कि पृथ्वी की घूमने की आवृत्ति (Frequency) और ' ओम् ' की आवृत्ति समान है| दोनों आवृत्तियों के लिए जो ग्राफ बनाये गये वे समान थे | इसलिए जब भी हम ओम् का उच्चारण करते हैं तो वह पृथ्वी की प्राकृतिक आवृत्ति से मेल खाता है।

कुछ दिन पहले एक चिकित्सक ने अपना अनुभव बाँटा| वे स्वयं इतनी सारी दवाईयाँ ले रहे थे, लेकिन कुछ भी ठीक नहीं हो रहा था | फिर उन्होंने एकदम से ओम् की ध्वानि वाला गीत गाना शुरु किया और वे ऐसा एक घंटे के लिए रोज़ करने लगे| वे कहते हैं कि मुझे आश्चर्य है कि मेरी समस्याएं कैसे दूर होती चली गई। उन्होंने ओम् ' शब्द के प्रयोग से संगीत चिकित्सा को भी शुरू कर दिया| हमारे प्राचीन ऋषियों द्वारा भी यही कहा गया है | महर्षि पातंजलि ने कहा है कि अगर आप दुख से छुटकारा पाना चाहते हैं, तो उस दिव्य सिद्धांत/ईश्वर को याद करें जो परमानन्द है| 'जपजी साहिब' की शुरूआत - ओंकार से होती हैं ,वह एक ओंकार | ईश्वर के स्मरण से सारे दुःख समाप्त हो जाते हैं ,सारे संदेह समाप्त हो जाते है, और आप स्वास्थ्य के सिद्धांत को पाते हैं| इसलिए बौद्ध धर्म, जैन धर्म, सिख धर्म और हिंदू धर्म में, ' ओम् ' को एक विशेष स्थान प्राप्त है| दाओइज़म और शिन्तोइस्म में भी ऐसा ही है| इस्लाम और ईसाई धर्म में भी हम ' ओम् ' की एक झलक अमीन में देखते हैं|
अब हम तीन बार ' ओम् ' का उच्चारण करेंगे , और दिव्य कीर्तन का आनंद लेंगे।

अब हम थोड़ी देर ध्यान करते हैं।
(16 मिनट का आनंदित ध्यान दो मिनिट की छोटी अवधि में ही निकल गया)

अब आपको को कैसा लग रहा हैं? आप में से कितने लोगो का शरीर का दर्द ठीक हो गया
(दर्शकों में से कई लोगों ने अपने हाथ उठाये )

जब हम तृप्त होते हैं और हम अपनी ज़रुरतों के पीछे नहीं भागते तो हम में आशिर्वाद देने की क्षमता आ जाती है, और हमें इस तृप्ति को पाने के कौशल को सीखना है। ऐसी तृप्ति केवल ध्यान करने से ही आ सकती है। हमारी यह सुन्दर परंपरा है कि हर उत्सव और त्यौहार में हम बड़ों का आशीर्वाद लेते हैं। यह बहुत ही वैज्ञानिक है। कायदे से बड़ों मे आशीर्वाद देने की क्षमता होनी चाहिए| परन्तु आज यह कही गुम गया है | तृप्ति महसूस करने के लिए बुजुर्ग होने तक इंतजार करने की आवश्यकता नहीं हैं| मन में तृप्ति अभी विकसित होनी चाहिए| अपना कार्य करते रहे और तृप्ति महसूस करें। जीवन में कभी तो इस स्तर तक पहुँचना चाहिए कि, "मैं तृप्त हूँ" संतोष के बिना, आप के भीतर वह शक्ति नहीं जग सकती| कई लोग जिन्होंने ब्लेसिंग (आशीर्वाद) कोर्स किया है, उन्होंने अनुभव किया है कि वे जब भी दूसरों के लिए कुछ अच्छी इच्छा करते हैं तो वह पूरी हो जाती है| आप में से कितनो ने यह अनुभव किया है? (कई लोगो ने अपने हाथ उठाये)। अपने जीवन को उत्सव और आनंद के साथ बिताएं और साधना, सेवा और सत्संग करते रहे|

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आज है बैगलोर आश्रम की तीस्वीं सालगिरह!

१३ नवंबर २०१०

आश्रम एक ऐसी जगह होती है जहां श्रम ना हो। प्रमाद के रहते तुम बिना श्रम के नहीं रह सकते हो! मन शांत हो और दिव्य शक्ति तुम्हारे भीतर संचरित होती रहे तो वहां श्रम नहीं होता। ऐसा कब होता है? जब तुम अपने साथ और अपने वातावरण के साथ सामंजस्य का अनुभव करते हो। और, आश्रम का यही महत्व है - यह तुम्हारा घर है। यहां तुम अपने साथ और अपने वातावरण के साथ सामंजस्य का अनुभव कर सकते हो।

आज आश्रम की तीस्वीं सालगिरह है। पहले ये बंजर भूमि थी। यहां पत्थरों के सिवा कुछ नहीं था। देखो, इतने सालों में यह जगह कितनी सुंदर हो गई है! इतने सारे हरे भरे पेड़, जीव-जंतु, चिड़ियां, ध्यान करने के सभा कक्ष - यह सब इसलिये संभव हुआ है क्योंकि हम सब यहां मिलकर ध्यान, सत्संग और सेवा करते आये हैं।
हमारे वातावरण और मन पर संगीत और भजन का बहुत प्रभाव पड़ता है।

जब तुम्हें सत्य का अनुभव हो जाता है तो या तो तुम्हारे लिये आश्रम का महत्व घट जाता है, या फिर सभी स्थान तुम्हारे लिये आश्रम ही बन जाते हैं। पर ऐसा होने तक तुम्हारे लिये आश्रम का बहुत महत्व है। आश्रम का वातावरण, यहां की ऊर्जा तुम्हारे लिये उपयोगी है। तो, आश्रम की इस तीस्वीं सालगिरह पर, इसे अपना घर जानो, और अपने भीतर शांति और सामंजस्य का अनुभव करो। तुम जहां भी हो, उस स्थान को आश्रम बना दो। हर घर आश्रम बन जाये, हम सब ऐसी कामना करें!




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रोज़मर्रा की भागदौड़ में हम ये भूल जाते हैं कि दिव्यता हमारे भीतर ही है

धनतेरस के बहुत से अर्थ हैं। जीवन में हर तरह की समृद्धि होनी चाहिए। आमतौर पर पैसे को समृद्धि के साथ जोड़ा जाता है। भीतरी तृप्ति ही सही समृद्धि है। हवा, पानी और भूमि भी समृद्धि है। समय का सही उपयोग भी बहुत आवश्यक है। ज्ञान में समृद्धि है, और उसका रस हमारी चेतना होना चाहिए। जो भी हमारी पास है, हम जहाँ भी बांट सके हमें बाँटना चाहिए। हमे कुछ ना कुछ दान अवश्य करना चाहिए।

आज यहां विद्वान पंडितों ने यज्ञ और वेदिक अनुष्ठान किए हैं। ईश्वर के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना ही पूजा है। आठ साल पहले हमने यहाँ यज्ञ किया था। उसके बाद से यहाँ कभी सूखा नहीं पड़ा। पहले यहाँ हर जगह बंजर भूमि होती थी पर आज यहाँ चारों तरफ़ हरियाली है। हम लक्ष्मी देवी के प्रति कृतज्ञ हों और उनकी कृपादृष्टि हम पर यूं ही बनी रहे।

दिव्य प्रेम कहीं दूर नहीं है, वो अभी यहीं है मेरे करीब। अगर हम में यह विश्वास है तो हम कभी भी दिव्य प्रेम से अलग नहीं महसूस करते। मैं आपको यही कहने आया हूँ कि आप ईश्वर से कभी दूर नहीं हो सकते। अगर आप में आज यह विश्वास जग जाता है तो मैं सोचूंगा मेरा काम हो गया।

देवी और देवता ईश्वर के विभिन्न अंग हैं। उनके लिए श्रद्धा से हम अपने सूक्ष्म स्वरूप में विश्राम करते हैं। क्या मिठाई केवल एक ही तरह की होती है? तो फिर का एक ही रूप क्यों हो! कल यहाँ 5600 तरह के व्यंजन परोसे गये थे। 35, 000 बच्चों ने इतने व्यंजन कभी देखे भी नहीं थे, कल यहाँ सब चखे।

दो साल पहले १२00 सितार वादकों का ब्रह्म नाद हुआ था। लोगों ने कहा यह संभव ही नहीं है। असंभव को संभव बनाना ही हमारा काम है, और फ़िर गुजरात की टीम ने अन्न ब्रह्म के इस कार्यकम को सामने रखा।
यह सब लक्ष्मी देवी का ही एक रूप है।

आठ प्रकार की समृद्धि  हर किसी के जीवन में आती है। हम लक्ष्मी माँ के आशीर्वाद को आज जीवन में पुनः ग्रहण करें। बस इतना जान लो कि जो भी तुम्हें चाहिए वो तुम्हे मिलेगा।

भगवान कृष्ण ने कहा सब धर्म छोड़ दो और मुझ में विश्राम करो। मैं तुम्हे हर पाप से मुक्त करा दूँगा। पर हम उल्टा ही करते हैं। हम धर्म से चिपके रहते हैं कि हमें पापों से मुक्ति मिले। रोज़मर्रा की भागदौड़ में हम भूल जाते हैं कि दिव्यता हमारे भीतर ही है।

आज यह संकल्प लेते हैं कि इसे नहीं भूलेंगे कि दिव्य संगीत हमारे भीतर है। मैं और मेरा परिवार यह संकल्प लेते हैं कि पूरे विश्व में लोग खुश रहें और मैं इस मे योगदान दे सकूँ।

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पूरा जीवन उतसव है

मनुष्य का स्वभाव है। प्रेम के भाव की एक श्रेष्ठ झलक पेड़ का बीज बोने में है।

फ़िर हमे हमारे आसपास के लोगों का ध्यान रखना है। महिलाओं को पकाते समय एक मुठ्ठी

आहार निकाल लेना चाहिए और हफ़्ते यां महिने में किसी गरीब को खिलाना चाहिए। ऐसा कहा

जाता है कि २00 - ३00 साल पहले तक भारत में एक भी गरीब यां भूखा व्यक्ति नहीं था।

हमारा देश इतना पूर्ण और स्मृद्ध हुआ करता था।

एक भार फ़िर हमे अपने देश को उसी मुकाम पर लेकर जाना है।

आनंद के बिना जीवन,

दया के बिना दिल,

कल्पना के बिना मन,

और भीतर की आवाज़ सुनने में अस्मर्थ बुद्धि किसी भी काम की नहीं।

पूरा जीवन उतसव है। उत्सव तब होता है जब सब इकट्ठा होते हैं। और बिना उतसव के समाज

किसी काम का नहीं।

गुजरात पूर्ण उत्सव है। जितना नृत्य यहाँ होता है, शायद ही किसी और जगह हो। नवरात्रि

के दौरान पूरा गुजरात नाच उठता है। अब दीवाली का त्यौहार है।


एक दूसरे से गले मिलते हुए, गाते हुए और दीया जलाते हुए हम दीवाली मनाते हैं। जीवन में

केवल एक दीये से नहीं बात बनेगी। हर क्षेत्र में दीये जला कर रोशनी डालते हुए उत्सव

मनाते हैं। आध्यात्मिक, सामाजिक, आर्थिक और सभी क्षेत्रों में रोशनी जगमगाती रहे -

यही दीवाली का संदेश है। रोज़मर्रा के व्यव्हार में किसी से कुछ मन मुटाव यां बात हो जाती

है और हम खुद को भी और औरों को भी दुखी कर देते हैं। मगर कब तक झेलते रहेंगे, वो सब

कुछ छोड़ देना चाहिए। एक नई शुरुआत - इसीलिए गुजरात में दीवाली के तुरंत बाद नया साल

शुरु हो जाता है। नए साल का भी शुभकामाना है - हम सबके जीवन में आध्यात्मिक रोशनी

जलती रहे, देश प्रेम का आग प्रज्वलित रहे और खुशियों की लहर उठती रहे। इसी कामना के

साथ मैं आप सबको बधाई देता हूँ - दीवाली स्वर्णिम गुजरात के साथ।

भारत सात क्षेत्रों में अपने योगदान के लिए प्रसिद्ध है| पहला, वस्त्रों मे विविधता, फिर

व्यंजनों की विशाल विविधता, इस के बाद आते हैं नृत्य और संगीत - भारत इन में भी

प्रसिद्धि हासिल कर रहा है| इस के बाद आते है - पर्यटन–प्रवास उद्योग, और IT उद्योग,

(सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग) | आध्यात्मिक ज्ञान के क्षेत्र में तो भारत का नाम सदैव रहा

ही है -

इस तरह भारत ने इन सभी सात क्षेत्रों में अपनी विशेष पहचान बना ली है|


हमे इसे और लोकप्रिय बनाना है, यह आज अत्यंत महत्वपूर्ण है, इन बांतो को विश्व की

विरासत द्वारा और अधिक पहचान और मान्यता प्राप्त हो, इसके लिए हमे और काम करना

है।

आज का विषय भोजन हैं : अन्न ब्रह्म: - हमारे सारे उपनिषद मे कहा गया हैं कि भोजन

ब्रह्म हैं , इसलिए हर किसी को उसका आदर करना चाहिए | जैसे वे कहते हैं कि "जैसा अन्न

वैसा मन" – आपका मन वही होता हैं जो आपका अन्न/भोजन होता हैं | शुद्ध शाकाहारी भोजन

आपके मन को परिपूर्ण, बुद्धि को तीव्र और शरीर को चुस्त रखता हैं | इसलिए आइनस्टाइन

जैसे कई वैज्ञानिक शाकाहारी रहे|

भोजन की विशाल विविधता जो भारत में है, हम उसके बारे मे सजग भी नहीं हैं | त्रिपुरा

से कन्याकुमारी और केरल से कश्मीर तक जो भी व्यंजन लोग खाते हैं वो सब आज यहाँ

उपलब्ध हैं|

हम भोजन से पहले प्रार्थना करते हैं! भोजन को सम्मान करने का अर्थ किसान का सम्मान

करना है, हमें

यहीं से विचारों का चक्र शुरु होता है | यह हमारी सुंदर परंपरा है जिसके पीछे गहरा विज्ञान

छुपा हुआ हैं |

इसी की साथ हम सब नाचते, गाते और ध्यान करते हुए दीवाली का त्यौहार मनाते हैं।





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