सबसे पहली चीज़ है आध्यात्मिक सम्पत्ति।

कुरुक्षेत्र सत्संग, १९ मार्च २०११

आज आर्ट ऑफ़ लिविंग संस्था के ३० वर्ष हो गये हैं । इन ३० वर्षों में चाहे आप दक्षिण ध्रुव के आखिरी शहर में चले जायें तो उधर भी आपको मिलेंगे लोग प्राणायाम, सुदर्शन क्रिया करते हुए, या आप उत्तर ध्रुव के आखिरी शहर त्रोम्बसे, नोर्वे में चले जायें तो वहाँ भी मिलेगा भारत का आध्यात्म, भारत का गर्व।

जब मैं इराक गया था और वहाँ के प्रधान मंत्री से मिला था तो यहाँ के एक पत्रकार जो हमारे साथ गये थे उन्होंने प्रधान मंत्री से पूछा - "आपने गुरुजी को बुलाया है, आप भारत से क्या चाहते हैं?"
तो इराक के प्रधान मंत्री ने कहा , "भारत की आध्यात्मिकता जिसने कितने अलग अलग लोगों को एक सूत्र में बाँध रखा है, वह आध्यात्मिकता हमारे देश के लिये बहुत जरूरी है। हमारी तीनों कौमों में यहाँ इतना झगड़ा है। भारत में कितनी भाषाएँ हैं, कितने धर्म हैं, पर मैं समझता हूँ भारत की जिस आध्यात्मिकता के कारण आप लोग एक होकर रह रहे हैं, वैसी ही चीज़ हमें यहाँ चाहिये।
फिर दूसरी बात, हमारे युवकों को आप इन्फोर्मेशन टेक्नोलोजी (आई. टी.) में ट्रेनिंग दीजिये। और तीसरी बात, मैं चाहता हूँ कि भारत के व्यवसायी यहाँ आकर तेल निकालने के अपने प्लान्ट लगायें, हम उनका स्वागत करेंगे। मगर ये बाकी सब दूसरी बातें तो गौण हैं , प्रमुख बात तो है- भारत की आध्यात्मिकता।"

फिर ५० युवकों को उन्होंने भेजा हमारे पास बंगलौर में, जहाँ उन्हें ट्रेनिंग दी गई शान्ति दूत होने की और अब वे सब जगह जगह शान्ति दूत जैसे कार्य कर रहे हैं।

भारत की सबसे महत्वपूर्ण चीज़ है आध्यात्मिक सम्पत्ति। दूसरा यहाँ का प्रवासोद्यम (टूरिस्म) है। तीसरे नम्बर पर है यहाँ की वेश भूषा-पोशाक। भारतीय वेशभूषा की बहुत कदर है जगह जगह, पर हम बाहर की नकल करने लगे हैं । फिर है यहाँ के व्यन्जन (खाने पीने की चीज़ें), कितने तरह के व्यन्जन हैं हमारे देश में, पता है? अभी पिछले वर्ष ही हमने एक कार्यक्रम किया था, अहमदाबाद में, दिवाली के अवसर पर, जिसमें ५६०० तरह के शाकाहारी व्यन्जन तैयार किये गये थे। इतने तरह के विभिन्न व्यन्जन किसी भी देश में नहीं हैं । मगर हमारे देश की ऐसी अच्छाइयों का पूरा प्रसार-प्रचार नहीं होता है।
इसी प्रकार हमारे देश की कला, नृत्य, संगीत भी अद्भुत है। हर २००-३०० किलोमीटर में एक नये तरह का लोक नृत्य है, नया लोक संगीत है। इन सब का भी हमें प्रचार करना चाहिये।
फिर है हमारी इन्फोर्मेशन टेक्नोलोजी (आई. टी. ) इन्डस्ट्री। इंगलैन्ड में दो शोध कर्ताओं ने अपने १५ साल के शोध कार्य का परिणाम बताया कि भारतीय लोगों में व भारतीय भाषा में क्या बात विशेष है। अपने शोध कार्य से उन्होंने यह नतीज़ा निकाला कि जो भी लोग संस्कृत से निकली हुई भाषायें या संस्कृत भाषा पढ़ते हैं, उनका न्यूरो लिंग्विस्टिक सिस्टम सर्वोच्च होता है, वह मष्तिष्क गणित शास्त्र के लिये बहुत अच्छा होता है। ऐसे लोगों के लिये कोई भी भाषा सीखना फिर बहुत सरल होता है। इस शोध पत्र के छपने के बाद लंदन के तीन स्कूलों ने अपने स्कूलों में संस्कृत विषय का पढ़ना अनिवार्य कर दिया और यहाँ हमारे देश में, हम संस्कृत को भूले जा रहे हैं ।

बाबा साहब अम्बेडकरजी ने कहा था, " हमारी राष्ट्रभाषा संस्कृत होनी चाहिये और इस पर प्रस्ताव भी रखा था पर उनकी बात नहीं मानी गयी । कई जो बातें बाबा सहब अम्बेडकर की मानी नहीं गई थीं, पर जो मानी जानी चाहिये थीं, उनमें से एक थी- संस्कृत भाषा को अपनाना।

जब इसराइल ने हिब्रू भाषा को इतना लोकप्रिय बना दिया तो क्या स्वतंत्रता के बाद हम संस्कृत को लोकप्रिय नहीं बना सकते थे?
दक्षिण की भाषाओं में आप देखेंगे बहुत संस्कृत शब्द हैं। मलयालम में ८०% शब्द संस्कृत के हैं और कन्नड़ में ६०% । एक तमिल भाषा को छोड़कर बाकी सब भाषाओं में संस्कृत शब्द भरे पड़े हुए हैं । तमिल कुछ अलग भाषा है, उसमें १०% से कम संस्कृत शब्द हैं और ये समझते हैं कि तमिल भाषा भी उतनी ही पुरानी है जितनी कि संस्कृत भाषा ।
यदि हमारे देश में बच्चों को संस्कृत भाषा पढ़ाई जायेगी तो न्यूरो लिंग्विस्टिक सिस्टम अधिक अच्छा होने से वे पढ़ाई में आगे बढ़ सकते हैं, पर हम इस बात पर ध्यान ही नहीं देते हैं ।

कितने लोगों ने यहाँ गीता नहीं पढ़ी है कुरुक्षेत्र में, जहाँ गीता का प्रादुर्भाव हुआ, यहाँ रहते लोगों ने गीता नहीं पढ़ी है, यह सुन कर मुझे आश्चर्य हो रहा है! तो जिन लोगों ने अब तक गीता नहीं पढ़ी है, आप सब आज से ही शुरु करोगे घर जाकर, आज कुछ पढ़कर फिर सो‍ओगे। एक सप्ताह -१० दिन में पढ़ कर समाप्त करोगे, करोगे ना? वचन दो। साल में कम से कम एक बार पूरी गीता को पढ़ लेना चाहिये । हमारे यहाँ आचार्य हैं चतुर्वेदीजी ११३ साल के, जिन्होंने महात्मा गाँधी को भी गीता पढ़ाई थी। वे खुद गीता का अभ्यास करते थे और महात्मा गाँधी के साथ रहते थे और उन्हें भी गीता का ज्ञान बताया। तो हम गीता को पढ़ना न छोड़ें, गीता को जरूर पढ़ें ।
गीता के बारे कोई व्याख्याओ को पढ़ने की आवश्यकता नहीं, जो शुद्ध गीता का सरल अनुवाद हो, वह पढ़ लेना भी ठीक है।
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सत्य एक मार्ग अनेक

१३, मार्च २०११ को बैंगलुरु आश्रम

प्रश्न : बाइबिल दावा करती है कि यीशु मसीह ही सिर्फ जीवित भगवान हैं और इसलिए आपको मेरे अलावा किसी अन्य मूर्ती या भगवान की भक्ति नहीं करनी है | यदि भगवान एक ही है, तो वे कैसे होंगे ?
श्री श्री रवि शंकर :
यह बात सभी ग्रंथो में कही गयी है| भगवान श्री कृष्ण ने भी कहा है, “माम् एकम् शरणं” आपको सिर्फ मेरे में शरण लेनी है और किसी मे भी नहीं | भगवान श्री कृष्ण और यीशु मसीह के शब्द बिलकुल समान है| “ मै ही सिर्फ इसका मार्ग/समाधान हूँ |

भगवान अनेक नहीं सिर्फ एक है| एक भगवान अनेक भाषा, अनेक रूपों और अनेक तरीको से पूजे जाते है | जब लोग दूसरों को भगवान के अन्य रूप में पूजते हुए देखते है, तो वे कहते है, कि एक और अन्य भगवान है, परन्तु भगवान कोई अन्य नहीं है वह सिर्फ एक है |और यदि उसे गुरुमुखी (पंजाबी) में या पाली या लैटिन में कहा जाये लेकिन उसका पर्याय एक ही है | आपको उनके कई नाम भी समान लगेंगे | भाषा और अभिव्यक्ति के अनेक रूप हो सकते है परन्तु उन सबका सार एक ही है | इसका गलत अर्थ समझ कर यह मानना कि यदि आप ईसाई है, तो ही आप स्वर्ग में जायेंगे अन्यथा नरक में जायेंगे या यदि आप मुसलमान है तो ही आप स्वर्ग में जायेंगे अन्यथा नरक में जायेंगे | इस किस्म का कट्टरवाद तभी उत्पन्न होता है जब आप में अन्य धर्म और उसके ज्ञान की समझ नहीं होती है |

सारे कट्टरवादी और आतंकवादी, अपने ग्रंथो को बताकर यह कहते है, कि सिर्फ उनका ही अकेला मार्ग है | अमरीका में मुझे एक सज्जन मिले और उन्होंने कहा कि स्वर्ग वह है जहां पर किसी विशेष धर्म के अनुयायी ही जाते है और बाकी सब अन्य नरक में जाते है | और मेरे मत में यदि ऐसा हुआ तो स्वर्ग अत्यंत ही सुनसान जगह और इतनी रंगीन भी नहीं होगी | वे तो यहाँ तक कहते है, कि यदि आप हमारे संप्रदाय को मानेंगे तो स्वर्ग में जायेंगे और उसी धर्म के अन्य संप्रदाय को नहीं मानने से भी | यही सभी धर्मो के लिए सत्य है, परन्तु इनके उपदेशो को ठीक से न समझ कर उसका गलत अर्थ निकला जाता है | वैष्णव संप्रदाय में भी वे कहते है, कि सिर्फ भगवान श्री कृष्ण की भक्ति करे और भगवान शिव की भक्ति न करे, और यदि आप भगवान शिव की भक्ति करेंगे तो आपको मुक्ति नहीं मिलेगी |

भगवान श्री कृष्ण ने स्पष्ट रूप से कहा है, “ सर्व धर्म त्याज्य” “आप सब कुछ छोड़ कर मेरी और सिर्फ मेरी शरण में आ जाओ | मैं आपको सारे पापों से मुक्त कर दूंगा |आप अपने आप को पापों से मुक्त नहीं कर सकते, मैं आपको पापों से मुक्त कर दूंगा | चिंता मत करो,उदास और दुखी मत हो, मैं आपको सारे पापों से मुक्त कर दूंगा” |

उसी तरह भगवान गौतम बुद्ध ने भी कहा – सारे देवता आकर आपकी रक्षा कर रहे है, और जैन धर्म में भी वैसी ही समान बाते कही गयी है |

इसलिए आपको उचित समझ आवश्यक है, अन्यथा उसका गलत अर्थ निकल आता है | इसलिए जान लीजिये कि भगवान एक है, एक ही चेतना है जिसे अनेक भाषा में कहा जाता है और ज्ञान को अनेक लोगो ने अनेक रूप में कहा है | यीशु मसीह ने कहा “ मेरे पहले जो लोग आये वे डाकू और चोर थे और अब मैं आ गया हूँ और अब आप सिर्फ मुझे देखे” यह इसलिए कहा गया क्युकि जब यीशु मसीह थे तो लोग उनकी बात नहीं सुनते थे और उन पर ध्यान नहीं देते थे | वे लोग सिर्फ अतीत के बारे में ही सोचते रहते थे | इसलिए उन्होंने कहा “ आपका मन अतीत के लोगो ने चुरा लिया है, इसलिये अब आप मैं जो कह रहा हूँ उसे सुने”|

भगवान श्री कृष्ण ने भी वही बात दोहराई-“ आप अतीत में फँसे हुए है,आप उसके लिए रो रहे हैं और चिंता कर रहे है, जो इसके योग्य नहीं है| इसलिये वर्तमान क्षण में रहिये !” |

ज्ञान को ठीक से समझ कर उचित रूप से ग्रहण करना चाहिये, अन्यथा कट्टरवाद पनपता है |

ईसाई धर्म का एक संप्रदाय कहता हैं,स्वर्ग जाने का यही मार्ग हैं, और आप मुसलमान धर्म के किसी संप्रदाय से बात करे तो वह कहेंगे कोई अन्य मार्ग नहीं है, हमारा मार्ग ही अकेला है | इसलिये विभिन्न लोग का यह कहना “ कि यही एक अकेला मार्ग हैं” का उद्देश्य उस समय के साधको का मन उसमे केंद्रित करना था |

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सृष्टि की किसी शक्ति द्वारा सब कार्य हो रहा है, वही ईश्वर है

१६ मार्च, बैंगलोर आश्रम

प्रश्न : आदरणीय गुरुजी, हर समय स्वयं को प्रेरणा से भरपूर व उत्साहित कैसे रखा जा सकता है? क्योंकि विपरीत स्थितियाँ प्राण शक्ति को क्षीण करती रहती हैं और शरीर में प्राण शक्ति के कम होने पर मुझे अच्छा नहीं लगता, जिससे जीवन मे एक कदम भी और आगे बढ़ने की प्रेरणा महसूस नहीं होती।
श्री श्री रवि शंकर: जब तुम हतोत्साहित होते हो तो यह संदेश मिलता है कि यह थकान है और तुम्हें विश्राम की जरूरत है। तुमने खुद कहा कि तुम्हें प्राण शक्ति की कमी महसूस होती है, तो दो-तीन दिवस के लिये पूर्ण विश्राम करो। उसके साथ थोड़ा मौन, ध्यान, योग, प्राणायाम और तरल भोजन के सेवन से आराम मिलेगा।

आपने यह गौर किया होगा कि कभी गलत चीज़ों के सेवन करने से भी शिथिलता लगती है। कितने लोगों के अनुभव में आया भी है यह। इसका कारण है कि जब हम अस्वस्थ और थकावट महसूस करते हैं तो और ज़्यादा खाने का सोचते हैं और इससे और अधिक थकावट महसूस करने लगते हैं, तो यह तो एक घुमावदार चक्कर है जो चलता रहता है! इसलिये थोड़ा शरीर को विषामुक्त करना, फलों के रस सेवन व उचित भोजन करके और उसके साथ साथ प्राणायाम। जब तुम्हें हताशा हो और कुछ भी न करने का मन हो, इतना आलस्य लगे कि श्वास प्रक्रियाएँ भी करने का जी न हो, तो मेरी यही सलाह होगी कि तुम २-३ दिन शरीर और मन को शुद्ध करो। तुम स्वयं फ़र्क महसूस कर पाओगे।

प्रश्न : कई बार शत प्रतिशत अपनी क्षमता से कार्य करने पर भी सफलता हासिल नहीं होती, इसका कारण क्या है?
श्री श्री रवि शंकर: देखो, यह मत सोचो कि अपना शत प्रतिशत देने से ही हर कार्य सिद्ध हो जायेगा। कार्य सिद्ध होने या सफलता मिलने के लिये पाँच चीज़ होना जरूरी है - सबसे पहले, जो कार्य कर रहा है उस व्यक्ति का कार्य करने का उद्देश्य, फिर साधन की उपलब्धता जिसके द्वारा कार्य सम्पन्न होगा, फिर कार्य करने का मन होना, फिर सही समय पर उस कार्य का होना क्योंकि हर कार्य को करने का एक उचित समय होता है और उस समय नहीं किया तो कोई फ़ायदा नहीं होगा। जैसे फरवरी में बीज डालो और सोचो मैंने बीज डाले तो अभी फसल क्यों नहीं आती? तुम्हें अप्रेल माह तक इन्तज़ार करना होगा और वर्षा के बाद बीज डालने से ही परिणाम प्राप्त होगा। सो समय का बहुत महत्वपूर्ण प्रभाव है इसलिये परिणाम तुरंत मिलेगा या बाद में यह नहीं कह सकते ।

जब हम पहले इस स्थान पर आये थे, जहाँ आज यह आश्रम है, तब वहाँ केवल बंजर भूमी थी, एक भी पेड़ पौधा देखने को नहीं मिलता था वहाँ। परंतु आज देखो कितनी हरियाली, कितने पेड़ पौधे हैं यहाँ, और ये सब कोई एक दिवस में प्राप्त नहीं हुए। अनेक लोगों के परिश्रम की वजह से, कुछ समय पश्चात सब पैदावार हुई। सो समय का प्रभाव बहुत बड़ा होता है। फिर इसके बाद जो आखिरी चीज़ सफलता के लिये जरूरी है, वह है कृपा। ईश्वर की कृपा के बिना कोई भी कार्य सिद्ध नहीं हो सकता। और कृपा प्राप्ति के लिये तुम्हें सेवा, साधना, सत्संग करना चाहिये, जिसके करते रहने से तुम्हें अपने प्रयत्नों का फल अवश्य मिलेगा। ठीक है न ? यह आश्वासन रखो कि तुम्हारे कोई भी प्रयत्न बेकार नहीं जायेंगे, यदि अभी नहीं तो बाद में परिणाम अवश्य देखोगे ।

प्रश्न: गुरुजी सेवा का क्या महत्व है? इससे ध्यान में क्या लाभ मिलता है?
श्री श्री रवि शंकर: सुनो, यदि तुम किसी जगह पर असहाय अकेले खड़े हो और जाती गाड़ियों से साथ ले जाने की मदद चाहते हो पर कोई भी अपनी गाड़ी नहीं रोकता हो, तो तुम कैसा महसूस करोगे?

वैसे ही उदाहरण के लिये, मानो तुम्हारे हाथ में दो दो बैग हैं और तुम्हें स्टेशन पर प्रसाधन कक्ष इस्तेमाल करना है पर तुम बैग कहीं अकेला छोड़ नहीं सकते हो, तो तुम क्या करोगे?

तुम किसी सभ्रान्त बुजुर्ग के पास जाकर उनसे विनती करोगे तुम्हारे सामान की देख रेख करने की, है न? तो तुम्हें किसी ना किसी समय दूसरों से मदद की ज़रूरत पड़ती है कि नहीं? और फिर यदि दूसरे तुम्हें मदद करना बंद कर दें तो तुम कैसे रहोगे? हाँ तो जानो, इस दुनिया में रहते हम सब मनुष्यों को एक दूसरे की मदद करने की जरूरत पड़ती है, और उसी को सेवा कहते हैं।

सेवा का अर्थ क्या है? ’सः’ यानि वह (ईश्वर के लिये कहा गया है) और ’इव’ यानि उसके जैसा- तो सेवा का अर्थ है- उसके (ईश्वर) जैसे कार्य करना । ईश्वर तुम्हारे लिये इतना कार्य करते है, बिना किसी अपेक्षा के। चाहे तुम उसको प्रार्थना करते हो या नहीं, धन्यभागी महसूस करते हो यां नहीं, इससे ईश्वर को कोई फ़र्क नहीं पढ़ता। वो तुम पर कोई एहसान नहीं कर रहा है। जब तुम ईश्वर को धन्यवाद जताते हो तो वह अपने मन की शांति के लिये करते हो, ईश्वर को इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता है। इसी प्रकार तुम्हारे कार्य के प्रति लोग आभार प्रकट करें या नहीं, तुम्हारी वाह-वाही करें या नहीं, पर तुम कार्य करते रहो यह समझ कर कि वह कार्य महत्वपूर्ण है और उसको करना जरूरी है, ठीक?

प्रश्न: जब हर घटना जो होनी है वह सुनिश्चित है, तो हमें कर्म करने की क्या आवश्यकता है और तब फिर कर्म के नाम पर हम फल क्यों भोगें?
श्री श्री रवि शंकर: फ़िर तुम यह प्रश्न भी क्यों पूछ रहे हो?
देखो दो तरह के स्तर हैं। परमाणु स्तर पर सब चीज़ एक है, जैसे यह ढ़ाँचा जो देख रहे हो यहाँ वह लकड़ी का बना है, दरवाज़ा भी लकड़ी का बना है -कुर्सी आदि इतनी चीज़ें लकड़ी की बनी हुई हैं यहाँ, पर तुम दरवाज़े पर बैठ नहीं सकते हो, ना ही तुम कुर्सी को दरवाज़ा बना सकते हो चाहे सभी लकड़ी है। उसी प्रकार एक स्तर पर हम कह सकते हैं कि सब कुछ हो रहा है पर अन्य स्तर पर हमें कर्म भी करना होगा। तुम कार्य करते रहो और जैसे जैसे कार्यशील होगे वैसे कुछ समय बाद तुम्हें लगेगा, "मैने कुछ नहीं किया, सब कुछ हुआ या हो रहा है", और यह ज्ञान है।

एक बार मैं जेल के कैदियों को सम्बोधित करने गया था । उन कैदियों ने कोर्स खत्म किया था और उसके बाद मेरे साथ उनका वार्तालाप रखा गया था। मेरे इस प्रश्न पूछने पर कि कितने लोगों ने कोई अपराध किया है, किसी ने भी हाथ नहीं उठाया। फिर मेरे यह पूछने पर कि कितने अपने आप को निर्दोष मानते हैं फिर भी जेल में हैं, तो सबने हाथ ऊपर किये। "हम निर्दोष हैं, हमने कुछ अपराध नहीं किया पर जेल में हैं , हमने कुछ नहीं किया पर कुछ हो गया।"

तो एक चोर भी कहता है कि मैंने कुछ नही किया, पर कुछ हो गया । एक व्यक्ति ने किसी की हत्या की थी और उसने भी पूछने पर कहा- "मैंने कुछ नहीं किया, पता नहीं उस समय क्या हुआ मेरे दिमाग को कि हो गया।"

तो जो व्यक्ति जघन्य से जघन्य अपराध भी कर चुका है, वह भी कहता है उसने कुछ नहीं किया । वैसे ही जो लोग अच्छा कार्य करते हैं उनसे भी यदि पूछो, वह श्रेष्ठ कार्य उन्होंने किया है क्या तो उनका भी यही जवाब होगा- मैने कुछ नहीं किया, सब कुछ हो गया अपने आप से ।
तो यह चेतना का एक स्तर है जिसमें यह महसूस होता है कि हमारे प्रयत्न से कार्य नहीं हो रहा अपितु किसी विधि से, सृष्टि की किसी शक्ति द्वारा सब कार्य हो रहा है, समझे?
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जब आपका दिल साफ होता है तो जीवन कितना रंगमय बन जाता है

भारत मे होली भरपूर मस्ती का त्यौहार होकर एक अत्यंत लोकप्रिय अवसर हैं| लोग चन्दन और रंगीन जल से होली खेलते हैं | यह त्यौहार मार्च महीने के शुरुवात में मनाया जाता है| लोगो की मान्यता है कि चमकदार रंग ऊर्जा, जीवन और आनंद को दर्शाते है | उत्सव के रूप में संध्या में विशाल होलिका दहन की जाती है |

रंगमय जीवन के लिये होली की शुभकामनाये !!!
सफेद या श्वेत सरल और शुद्ध है !!!!
रंग जीवन की जटिलता है | 
जब आपका दिल साफ होता है तो जीवन कितना रंगमय बन जाता है |
--- श्री श्री                           

जीवन पूर्णता रंगमय होना चाहिए ! प्रत्येक रंग को स्पष्ट दिखना चाहिए और उसका अलग से आनंद लेना चाहिए, और यदि सारे रंगों को यदि मिला दिया जाये तो वह वे सब काले रंग के दिखेंगे |सारे रंग जैसे लाल,पीला,हरा इत्यादि आस पास होना चाहिए और उसी समय उनका आनंद एक साथ लेना चाहिए |
उसी तरह जीवन मे एक व्यक्ति द्वारा निभायी गयी विभिन्न भूमिकाये उसके भीतर शांतिपूर्ण और प्रत्यक्ष रूप से आस्तित्व मे होनी चाहिए | उदाहरण के लिए यदि कोई पिता कार्यालय में भी पिता की भूमिका निभाने लगेगा तो फिर बातों का बिगड़ना निश्चित हैं| हमारे देश में राजनीतिज्ञ कई बार पहले पिता होते हैं, फिर बाद में नेता होते है|

हम जिस किसी भी परिस्थिति मे हो, हमें उसके अनुरूप सफलतापूर्वक उस भूमिका को निभाना चाहिए, फिर जीवन का रंगमय होना तय है | इस संकल्पना को प्राचीन भारत मे वर्णश्रम कहते थे | इसका अर्थ था हर कोई यदि वह चिकित्सक, अध्यापक, पिता जो कोई भी या जो कुछ भी हो उसे अपनी भूमिका को पूर्ण उत्साह से निभाना चाहिये | किसी भी दो व्यवसाय के मिलाप से हमेशा उचित परिणाम नहीं मिलते है | यदि किसी चिकित्सक को व्यापार करना है तो वह उसे अलग से करना होगा और अपने व्यवसाय से अलग रखना होगा और अपने चिकित्सिक व्यवसाय को व्यापार नहीं बनाना होगा | मन के इन भावो को अलग और भिन्न रखना ही सफल और आनंदमय जीवन का रहस्य है और होली हमें यही सिखाती है|

सारे रंग सफेद रंग से उत्पन्न होते है और यदि उन्हें फिर से मिला दिया जाए तो वह काला रंग बन जाते है | जब आपका मन श्वेत या साफ होता है और चेतना शुद्ध, शांतिपूर्ण,प्रसन्न और ध्यानस्थ होती है, तो फिर विभिन्न रंग और भूमिकाये प्रकट होने लगती है | फिर किसी भी विपरीत परिस्थिति के विरुद्ध हमें हर भूमिका को इमानदारी से निभाने की शक्ति मिलती है |हमें समय समय पर अपनी चेतना की गहन अनुभूति करनी चाहिए | यदि हम अपने भीतर को देखते हुए हमारे बहारी रंगों या भूमिकयो को निभाएंगे तो सब कुछ निरर्थक प्रतीत होना निश्चित है | इसलिए हर भूमिका को इमानदारी से निभाने के लिए दो भूमिका के मध्य मे गहन विश्राम होना चाहिए | गहन विश्राम पाने मे सबसे बड़ी बाधा इच्छा होती है | इच्छा का अर्थ तनाव है |यहाँ तक छोटी इच्छाये भी बड़ा तनाव उत्पन्न करती है | बडे लक्ष इसकी तुलना में कम परेशानी देते है| कई बार इच्छाये मन को परेशान करती है |

इसलिये किसी ने क्या करना चाहिये ?
इसका सिर्फ यह उपाय है कि इच्छा पर केंद्रित होकर उसे समर्पित कर दीजिये |सजगता पर केंद्रित होने का कृत्य या इच्छा या काम पर दृष्टि को कामाक्षी कहते है |सजगता के साथ इच्छा अपनी पकड़ छोड़ देती और समर्पण संभव हो जाता है और फिर उसमे से अमृत प्रवाहित होता है कामाक्षी देवी अपने एक हाथ में गन्ने की डंठल को पकड़ी हुई है और उनके दुसरे हाँथ में फूल है | गन्ने की डंठल इतने कड़ी होती है कि उसकी मिठास पाने के लिए उसे निचोडना पड़ता है जबकि फूल इतना कोमल होता है कि उससे अमृत निकालना सरल है | वास्तव में यही जीवन है जिसमे दोनो का थोडा थोडा मिश्रण है | भीतर के परमानन्द को प्राप्त करना ज्यादा सरल है बहारी दुनिया के सुखों को हासिल करने की तुलना में जिसके लिये अधिक प्रयासों की आवश्यकता होती है |

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सरल जीवन जीये और उच्च विचार रखे और समाज के लिए जो भी कर सकते है उसे करे

१३ मार्च २०११, बैंगलुरू आश्रम

आपको पता है, हम आर्ट ऑफ लिविंग के ३० वे वर्ष में प्रवेश कर रहे है , एक तरफ यह अत्यंत प्यारा अनुभव है,परन्तु दूसरी ओर यह अत्यंत दुखद है, कि विश्व के जापान देश मे गहरा संकट आया हुआ है | आपने इस समाचार के बारे मे इंटरनेट और टेलीविजन पर सुना होगा | एक तरफ हम खुश है,कि हम समाज मे मानवीय मूल्यों की वृद्धि कर रहे है, हम लोगो को आध्यात्म के ओर ला रहे है, और उन्हें जीवन का विशाल दृश्य दिखा रहे है और दूसरी तरफ हमे देखना है कि व्यतिगत स्थर पर प्राकृतिक आपदाओ से हुए नुक्सान को कम करने के लिए हम कैसे सहयोग कर सकते है|

आज जापान की बारी है, कल कही और हो सकती है, इसलिए जाकर लोगो की सहायता करना और उन्हें साधन मुहैया कराना पर्याप्त नहीं है, लेकिन हमें यह देखना है कि कैसे यह विश्व द्वेष रहित और प्राकृतिक शोषण रहित होगा | सारी पृथ्वी एक जीव है, इसलिए वह हमारी सुनती है | प्रकृति का भी जीवन होता है इसलिए हमें प्रकृति का सम्मान करना चाहिए और मुझे लगता है कि प्रार्थना,ध्यान समाज मे बदलाव लाने मे काफी महत्वपूर्ण होंगे | इसलिए हम सब को इसे बड़े सन्दर्भ से, जीवन के विशाल परिप्रेक्ष्य से, इस ब्रह्माण्ड और हमारे आस्तित्व के नज़रिए से देखना होगा और आध्यत्म यही सब कुछ सिखाता है | हमें अधिक से अधिक आध्यात्मिक ज्ञान लोगो को देना होगा | हम सब इस गृह से हमारी अनावश्यक खपत को कम कर सकते है, सरल जीवन जीये और उच्च विचार रखे और समाज के लिए जो भी कर सकते है उसे करे|

अंतर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक सम्मलेन वह प्रार्थना सभा है, जिसे हम जर्मनी मे आयोजित करेंगे,और उसमे हम इसके लिए सजगता लाने के लिए तत्पर रहेंगे | जीवन छोटा होता है, और आपको नहीं पता होता है,कि कब सब कुछ समाप्त हो जायेगा इसलिये जब तक हम यहाँ पर है हमें हमारे समय , ऊर्जा और जीवन का सबसे उत्तम उपयोग करना चाहिए और अधिक से अधिक लोगो के जीवन मे मुस्कराहट और खुशी लानी चाहिए और प्रकृति को भी यही रुख पसंद होता है| यह इसलिये है, क्युकि लोग अपने दिल और मन से इतने कठोर हो गए है, इसलिये प्रकृति भी निर्दयी और कठोर बन गयी है | जब लोगो के रुख और मन में बदलाव आता है, और उनके तनाव के स्थर में कमी आती है, तो फिर प्रकृति भी उसी रूप में आपना रुख हमारे लिए करती है | यह सही है, कि विनाश सृष्टि का अंश है, चीजों का सृजन होता है और उसका विनाश होता है, परन्तु मानवो द्वारा बनायी गयी आपदा वे है, जिसमे प्रकृति की रचना में मानवो का हस्तक्षेप, जो कि सबके लिए चिंता का सबसे बड़ा विषय है, ठीक है ना ?

इसलिये मैं चाहूँगा कि हर देश ने आगे बढ़कर आगे आना चाहिये और अपने स्वयं के देश में आधात्मिक ज्ञान, शांति , सांत्वना और प्रेम को बढ़ावा देना चाहिए | हमें सोचना चाहिए कि कैसे हम सभी नगर, प्रांत में लोगो को प्राचीन ज्ञान दे सके और उन्हें साथ में लाकर यह अहसास करा सके कि हम सब एक वैश्विक मानव परिवार का हिस्सा है | मैं आप को बर्लिन में देखना चाहता हूँ,बर्लिन आने की योजना बनाए और अपने साथ अपने मित्र और परिवार को भी लाये और सब को आने के लिए कहे | सब कोई आये और विश्व शांति के लिए हम एक विशाल ध्यान करेंगे | आपको पता है, हमने एक छोटा सा नारा लिखा है, “जिस शान्ति की हम तलाश करते है, मौन को उसे अभिव्यक्त करने दे, दिव्य प्रेम का अनुभव करे क्युकि हर चमकता हुआ तारा आपको बताता है, कि इस विशाल संरचना में आप कौन है”|

यदि आपके कोई प्रश्न, निवेदन या चिंता है तो आप उसे मुझे ई मेल से भेज सकते है | आज १२० सत्संग समूह यहाँ पर मौजूद थे, अधिकतर यूरोप से | आप सब लोग मिल कर तय करे कि बर्लिन में ३० साल पूरे होने के उत्सव में आप क्या उपहार देंगे और हम सब मिलकर प्रत्येक राज्य में ध्यान,जीवन को दिल की सतह और गहराई से जीने के लिए कैसे सजगता ला सकते है |

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दिव्यता को सबसे भयानक और सबसे सुन्दर स्वरुप में देखने से, आप दिव्यता का अनुभव हर जगह पर करेंगे |

१० मार्च २०११, बैंगलुरू आश्रम

प्रश्न: प्रिय गुरूजी अधिकांश धर्म तब आस्तित्व में आये जब लोग किसी महान व्यक्ति या आत्मा को मानने लगे ? हिंदू धर्म आस्तित्व में कैसे आया ?
श्री श्री रवि शंकर : हिंदुत्व कोई धर्म नहीं है: यह जीवन जीने की शैली है | जब हजारो संत और पीर यहा पर थे और उन्होंने वेदो के आधार पर कुछ कहा – वेद विश्व का सबसे पहला धर्म ग्रन्थ है| और लोगो के कुछ आदर्श थे और उन्होंने वैसी जीवन शैली को अपनाया | हमारे पूर्व राष्ट्रपतिजी डॉ राधा कृष्णन से प्रश्न किया गया , हिंदू कौन होता है | उन्होंने हिंदू का वर्णन ऐसे किया : वह जो किसी पर या स्वयं पर कोई लेबल नहीं लगा देता, जैसे कि मुसलमान, ईसाई, सिख, पारसी या हिंदू ,वह हिंदू है, क्यूंकि हिंदुत्व सिर्फ एक जीवन जीने की शैली है | मुझे लगता है ,वे डॉ राधा कृष्णन ही थे, जिन्होंने इसे इस तरह से परिभाषित किया | परन्तु मै कहूंगा कि हिदुत्व का अर्थ है उदारतावाद | जिसमे एक वास्तविकता या सत्य की भक्ति करने के कई तरीके है| हिंदुत्व की तीन विशेषताये है |सबसे पहला जैसे आप चाहे वैसे भक्ति करने की स्वतंत्रता, किसी स्वरुप या नाम से | दूसरा सारा विश्व एक परिवार है | एक ही दिव्यता हैं जो स्वयं को अनेक रूपों में अभिव्यक्त करती है | एक ही भगवान परुन्तु अनेक रूप और नाम और इसको जान लीजिए | भगवान और उसकी सृष्टि कोई दो भिन्न चीज नहीं है |

जैसे शरीर और मन भिन्न नहीं है | एक प्रत्यक्ष है और दूसरा अप्रत्यक्ष है | आप मन को नहीं देख सकते परन्तु मन के बिना शरीर कुछ भी नहीं कर सकता | यदि मन न हो तो शरीर सिर्फ मृत शव है | इसलिए आत्मा और पदार्थ , प्रकृति और पुरुष यही इसका संपूर्ण सिद्धांत है | सारा विश्व दिव्यता का शरीर है | दिव्यता, जल,पर्वत, वृक्षो ,नदी आपमें, मुझमे और हर किसी में है | भगवान कोई वह नहीं हैं जो ऊपर स्वर्ग में बैठा है, परन्तु भगवान वह आधार है जिसमे सब कुछ आस्तित्व करता है | भगवान वह आकाश तत्व है, जिसमे हर तत्व समाये हुए है | इसलिए सबकुछ भगवान से बना है और भगवान है |यही हिंदुत्व का बुनियादी सिद्धांत है | अच्छाई और बुराई – सही और गलत , यह सब कुछ सिर्फ आपेक्षिक(पूरक) है, और पूर्ण नहीं है |उदारतावाद का अर्थ है स्वतंत्रता – स्वतंत्रता, समानता हिंदुत्व के मुख्य उपदेश है |

प्रश्न: जब प्रेम सिर्फ भावना नहीं है, और वह हमारा मूल आस्तित्व है तो फिर प्रेम किसी दिन कैसे गायब हो जाता है और फिर किसी अन्य दिन कैसे प्रकट हो जाता है ?
श्री श्री रवि शंकर: सूर्य भी गायब होना प्रतीत होता है ,परन्तु वास्तव में वह गायब नहीं होता है | यह सिर्फ छुपने के जैसे है या आप किसी अन्य दिशा की तरफ चले गए है | यह ऐसा ही है |

प्रश्न: क्या विचार पूर्व के कर्म या मन मे पूर्व के संस्कार के कारण उत्पन्न होते है?
श्री श्री रवि शंकर : कर्म कुछ नहीं सिर्फ मन मे पूर्व के संस्कार होते है जो समान विचार उत्पन्न करते है| और हां, यह संभव है |

प्रश्न: राधा कौन है ?
श्री श्री रवि शंकर : राधा वह है जो स्त्रोत्र के दिशा मे जा रही है | धारा प्रवाह है , और यदि धारा को उल्टा पढ़े तो वह राधा है| इसलिए वह जो स्वयं की ओर जा रहा है, वह राधा है|

प्रश्न: क्या आत्मा और चेतना समान (एक) है?
श्री श्री रवि शंकर: हां |

प्रश्न : मैं अक्सर क्रोधित हो जाती हूँ कि मै ज्ञान मे पूरी तरह से नहीं रह पा रहा हूँ | परन्तु मैं अपने आप को आपके बहुत निकट पाता हूँ| क्या यह भ्रम है या इसमें कोई सच्चाई है?
श्री श्री रवि शंकर: बिलकुल! अपने आप पर इतना अधिक रुक्ष न बने | स्वाभाविक बने रहे | ठीक है ?यह सोच कर मत परेशान हो कि “ मैं ज्ञान मे पूरी तरह से नहीं रह पा रहा हूँ |” यदि कभी कभी ऐसा होता है, तो वह ठीक है |आगे बढते रहे | जीवन चलता रहता है | नदी मे कई चीजे जैसे पत्तियां, फूल गिरते रहते है, लेकिन नदी उसे लेकर आगे बढती रहती है | समय जीवन को आगे बढ़ा रहा है | इसलिए आगे बढते रहे | और वास्तव मे हम क्या कर रहे है ? हमने अपने सिर को अतीत मे रखा हुआ है और आगे बढ़ने का प्रयास कर रहे है | आपको सिर्फ आगे देखते हुए आगे बढ़ना है | आपने अतीत मे जो गलतियां करी है, उसे स्वीकार करते हुए आगे बढ़े |

प्रश्न: मैं इस पीड़ित चेतना की अवस्था से कैसे निकलू खास तौर पर जब अतीत की यादें उसमे से निकलने ही नहीं देती ?
श्री श्री रवि शंकर: सिर्फ यह बात कि आप इस बात को समझ गई है, इसका मतलब है, कि इस बात का आपको एहसास हो गया है | यही से कर्म शुरुवात होती है| अतीत में यदि कुछ हुआ था, क्युकि उसे होना था इसलिए वह हुआ | अतीत में जो बीत गया उसे स्वीकार करे, और उस पर चिंता न करे, और आगे बढ़े | यदि आप ने कोई गलती करी है,जैसे आप ने किसी का अपमान किया है,और उस व्यक्ति ने उस घटना को पकड़ कर रखा है, यहाँ तक उस व्यक्ति से आपने उस घटना के लिए कई बार माफी मांगी है, फिर भी यदि वह व्यक्ति उसके लिए आप को माफ नहीं करता तो क्या किया जाए ?यदि किसी ने आप के साथ कुछ गलत किया है और आपने भी किसी के साथ कुछ गलत किया है, तो क्या आप माफी मांग कर आगे नहीं बढ़ जाते? आप भी नहीं चाहेंगे कि आप की कोई गलती कोई व्यक्ति जीवन भर पकड़ कर रखे, ठीक है न ? यदि वह व्यक्ति आपको माफ कर देता है, तो आगे बढ़ो, और अपनी स्थिति को समझ कर देखे कि आपको कैसा लगता है ? उस अन्य व्यक्ति को भी उसी तरह से देखे |

प्रश्न: यदि कोई व्यक्ति अपनी गलती के कारण पछता रहा है, परन्तु शायद अपने अहंकार के कारण बात नहीं कर पा रहा है, इसके लिए कोई क्या करे ?
श्री श्री रवि शंकर: जब आपकी चेतना पीड़ा की अवस्था में होती जिसमे रोष और क्रोध हो तो क्या वह जीवन भर साथ रखने से आपको किसी भी तरह से मदत करेगा ? बिलकुल नहीं ! यह आपके समय, योग्यता और जीवन को सिर्फ बर्बाद ही करेगा | इसलिए आपको माफ करके, भूलकर आगे बढते रहना है | आपने किसी को दर्द दिया और किसी ने आपको दर्द दिया फिर वह अध्याय समाप्त हो जाता है |एक समस्या थी जिसे आना था और वह आई और आपकी स्वयं की मूर्खता ने उसे होने दिया | अब वह समाप्त हो गयी है इसलिए आगे बढे | इस तरह की सोच को आपने अपनाना चाहिए जिससे आप बेहतर महसूस करेंगे |

प्रश्न: जो लोग प्रकृति को हानि पहुचाते है, वे आराम की नींद में कैसे सो सकते है?
श्री श्री रवि शंकर: हां! आज यह बड़ी समस्या है | प्रकृति से बहुत कुछ लेकर उसे कुछ भी वापस में नहीं देना | वृक्षो को नहीं लगाना और लगे हुए वृक्ष और जल स्त्रोत्र का संरक्षण नहीं करना, अन्न की बर्बादी करना और प्लास्टिक का उपयोग करना ...! पूर्व के वर्षों की तुलना में हाल के ५-७ वर्षों में इसके प्रति जागरूकता आई है |

प्रश्न: एक शिशु का जन्म अमरीका में हुआ और उसके दादी/नानी को लगता है कि उसके पति का उसके नाती के रूप में पुनर्जन्म हुआ है| मेरा प्रश्न है कि क्या किसी आत्मा का मुंबई से अमरीका जाना संभव है?
श्री श्री रवि शंकर: हाँ, हाँ! निश्चित रूप से ! बहुत ही कम समय में, बिना किसी टिकिट या वीज़ा और आप्रवासी की भी कोई समस्या नहीं |

प्रश्न: शरीर के मृत होने पर भी स्मृति कैसे आस्तित्व में रहती है?
श्री श्री रवि शंकर: स्मृति कोई भौतिक तत्व नहीं है| यह ठीक है कि उसमे भौतिकता होती है,परन्तु उसके सांसारिक प्रभाव/छाप चेतना पर भी होते है | आप माइक पर बोल रहे है, और उन शब्दों का विद्युतीकरण होकर, वे फिर से ध्वनि बन जाते है | यह कैसे होता है ? यही चेतना की बुद्धिमत्ता है | ध्वनि का विद्युत बनना और फिर से वही ध्वनि में परिवर्तित हो जाना | मस्तिष्क के कोशिका में संस्कार/छाप बन जाते है, जो एक जीवनकाल से अगले जीवन काल मे चलते जाते है | इसलिए चेतना में कई पूर्व की स्मृतियाँ होती है | यह अत्यंत स्वाभाविक है | कई घटनाये हो रही और कुछ चेतना में बैठ/छप जाती है |

प्रश्न: मै बहुत शरारती हूँ और बहुत शरारते करता हूँ, और उसके लिए मुझे बहुत डाँट भी पड़ती है | मुझे पता है कि आप भी बहुत शरारती थे तो फिर आपको कभी भी डाँट क्यों नहीं पड़ी ?
श्री श्री रवि शंकर: ओह ! मुझे भी डाँट पड़ती थी, और वह वयस्कता योग्य नही है जिसे बचपन में डाँट नहीं पड़ी हो !

प्रश्न: देवी के कुछ स्वरुप जैसे महाकाली का स्वरुप इतना भयानक क्यों है ?
श्री श्री रवि शंकर: प्रेम और भय एक ही चेतना के दो छोर है | यदि आप दिव्यता के इस भयानक रूप में प्रेम कर सकते है तो फिर आप किसी से भी प्रेम कर सकते है | और फिर कोई भय नहीं रह जाता है | जब आपका स्वीकार करने का स्थर विविध हो जाता है, और आप सुंदर और कुरूप को अपने स्वयं के रूप स्वीकार कर लेते है तो आ़प मजबूत और दृढ़ बन गए है | इसलिए दिव्यता की प्रस्तुति सुंदर और कुरूप स्वरुप में करना प्राचीन संतो की बुद्धिमत्ता थी |
भय और अहंकार भी उसी दिव्यता का स्वरुप है |निर्मलता से भयानक- जन्म से मृत्यु , जब किसी की चेतना का स्थर इतना जागृत होता है कि वह दिव्यता को हर स्वरुप में देख पाता है तो फिर इस सब को माया के रूप में देखा जा सकता है | जब मन शांत होता है तो दिव्यता यही पर होती है |
लोग कैक्टस (नागफनी) से भी सजावट करते है | सब कुछ में सुंदरता को देखते है- फूल में भी और कांटो में भी | यदि आप दिव्यता के इस भयानक स्वरुप को स्वीकार कर लेते है तो आपके शरीर और मन से भय पूर्णता निकल जाता है| जो कोई भी इन अवस्थाओ से निकल चुका है उनकी स्वीकार करने की शक्ति बहुत मजबूत हो गई है | सुंदरता और कुरूपता आपका स्वभाव है | सबसे सुन्दर और कुरूप स्वरुप ,यह सब कुछ एक ही सत्य के अंश है |

प्रश्न: माया क्या है?
श्री श्री रवि शंकर: माया का अर्थ है जो बदलता है,और जिसे नाप किया जा सकता है | जो कुछ भी पांच इन्द्रियों के परिधि में आता है, वह बदल रहा है, वही माया है |

प्रश्न: क्या जन्म और पुनर्जन्म होता है ? यदि हाँ तो मानव होने का अर्थ क्या है ?
श्री श्री रवि शंकर: मानव जन्म ही क्यों ? मानव जीवन , जीवन को जानने के लिए है |

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दृढ़ मनोबल किसी भी तरह के धन का कोष है

प्रश्न: समृद्धी कैसे बढ़ाई जा सकती है?
श्री श्री रवि शंकर: केवल पैसा होना ही धन नहीं है। आपके पास बड़ी बैंक राशि हो, बड़ी रियासतें हों पर यदि मुख पर तनाव झलकता हो तो आप इतने दुखी नज़र आते हैं कि कोई आपको समृद्ध नहीं कह सकता।
समृद्धि केवल ढ़ेर सारा धन जमा करना नहीं है, समृद्धि का अर्थ है जीवन की भव्यता को मान्यता देना, जीवन का सम्मान करना। व्यक्ति का सच्चा धन उसका मनोबल है। धन का जीवन में होने का प्रयोजन क्या है? यही कि उससे आपका मनोबल बढ़े।

जिस धन से मनोबल नहीं बढ़ सकता, वह धन ही क्या? जिस धन से बीमारी आये, तो वह धन ही क्या? जिस धन से विवाद बढ़े , वो धन ही क्या? ठीक है ना?

धन भी कई प्रकार के होते हैं जैसे - विद्या धन, ज्ञान धन, स्वास्थ्य धन, मनोबल धन, वीर्य धन इत्यादि। यदि आप में मनोबल है तो कोई भी कार्य सम्भाल सकते हो, हर प्रबंध को कुशलतापूर्वक कर सकते हो।

प्रश्न : लोग प्यार देना तो सीख गये हैं पर कैसे प्राप्त हो यह नहीं जानते तो भीतर जो इतना प्रेम समाया हुआ है उसका क्या करें? देने और पाने में सब उलट पुलट होता जा रहा है!
श्री श्री रवि शंकर: मैंने बहुत बार इस विषय पर चर्चा की है। जब कोई आकर प्यार का प्रदर्शन करे, तुमसे बार बार कहे- "मैं तुमसे प्यार करता हूँ, मैं तुमसे प्यार करता हूँ", तो तुम कान बंद करके वहाँ से भाग जाना चाहोगे, कहोगे ठहरो, यह बहुत हो गया, और तुम भाग निकलोगे!
हम प्रेम में भी सहज नहीं हो पाते क्योंकि स्वयं से अन्तर्मन की गहराई में नहीं मिल पाये हैं, नहीं पहचान पाये हैं कि हम कौन हैं? हमें यह पता ही नहीं कि हम जिस एक तत्व से बने हैं, वह है प्रेम। इसलिये जब तक हम स्वयं से नहीं जुड़ पाते, अन्य किसी से भी नहीं जुड़ पाते। सो कोई जब तुमसे सम्बंध बनाना चाहे और तुम्हें असहजता लगे तो वह यही दर्शाता है कि तुम स्वयं से नहीं जुड़े हो और इसी कारण प्रेम पाने में असमर्थ हो।

पहले स्वयं प्रेम का सम्मान करना सीखो, और जो प्रेम का सम्मान नहीं करते उन पर बिना समझे प्रेम न्योछावर मत करते फिरो। फिर प्रेम दर्शाना, प्रेम देना भी एक कला है। प्रेम देना यानि प्रेम करना। प्रेम कोई कृत्य नहीं है, अपने अस्तित्व की ही एक अवस्था है। तुम केवल वहाँ सहजता से, बिना किसी अपेक्षा से रहो और कहो - "मैं बिना किसी शर्त के तुम्हारे लिये हूँ, तुम जब चाहो उसे ले सकते हो।"
तुम्हारे में यह मनोबल रहते सब तुम्हें बेहतर समझ सकेंगे। और फिर एक बात, तुम किसी को जबरदस्ती नहीं समझा सकते कि तुम सच्चा प्रेम करते हो, तुम यह समय पर छोड़ दो उनको स्वयं समझने के लिये। ज़ोर जबरदस्ती से समझाने की कोशिश में बात ही उलटी पड़ सकती है!
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महिला दिवस पर विशेष

बैंगलुरु, ८ मार्च २०११
प्रश्न: कृपया अर्धनारीश्वर की संकल्पना प्रतीक पर व्याख्या करे?
श्री श्री रविशंकर: सभी मे पुरुष और महिला के genes होते है |आप अपने माता और पिता दोनों से बने है | आप आधे माता और आधे पिता से बने है | दिव्यता मे महिला और पुरुष तत्व दोनो हैं | इसे बहुत पहले समझ लिया गया था और अर्धनारीश्वर के रूप मे प्रदर्शित किया गया |भगवान सिर्फ पुरुष या सिर्फ महिला नहीं है – वह अर्धनारीश्वर है | सृष्टि में पुरुष और महिला दोनो तत्व हैं।

देवी दुर्गा शेर पर सवारी करती है:दुर्गा माँ है, जो कितनी सौम्य और करुणामयी है और फिर भी वे शेर पर सवारी करती है , जो कितना क्रूर है| यह कितना विरोधाभास है ! विरोधाभास मूल्य एक दुसरे के पूरक हैं और प्राचीन लोगो को इसकी पहचान थी| वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अगर एक भी जानवर लुप्त हो जाए तो सारी सृष्टि टिक नहीं सकती। प्रत्येक जानवर पृथ्वी पर तरंग दैर्ध्य के अनुरूप जैव उर्जा को लाता है | शेर दुर्गा देवी के स्पंधन को धरा पर लाता है|

देवी सरस्वती के अनेक हाथ दर्शाये जाते है! एक हाथ पर जप माला है जो ध्यान को दर्शाता है, उनके दूसरे हाथ पर पुस्तक है,जो बौद्धिक ज्ञान को दर्शाता है और एक हाथ मे उन्हें वीणा को बजाते हुये दर्शाया जाता है | इसलिये जब बौद्धिक ज्ञान, संगीत और ध्यान साथ मे होते है तो ज्ञान का उदय होता है | लाखो हजार वर्ष पूर्व भी यह ज्ञान मौजूद था | देवी सरस्वती एक पत्थर पर विराजमान हैं, जिसका अर्थ है जब आप ज्ञान को प्राप्त कर लेते है तो वह आप मे गहन रूप से बस जाता है | देवी लक्ष्मी कमल पर विराजमान हैं, जिसका अर्थ है लक्ष्मी चंचल है। धन अस्थिर होते हुये गतिशील होता है और उसे गतिशील होना भी चाहिए|

प्रश्न: क्या महिला के लिये विवाह करना महवपूर्ण है ? क्या यह ठीक नहीं होगा कि भगवान ही उसकी देखभाल करे? क्या वह बिना माँ बने भी पूर्ण है ?
श्री श्री रविशंकर: आप सारे जगत की माँ होने का अनुभव कर सकती है, माँ पन का भाव हर व्यक्ति का प्राकृतिक स्वभाव है, तभी तो करुणा, प्रेम और चाहत है।
उसे विवाह करना चाहिए या नहीं यह उसका व्यक्तिगत निर्णय है | खुश रहना सबसे महत्वपूर्ण है | यह मेरा मत है | ऐसे कितने है जो अविवाहित है और खुश है, और ऐसे कितने है जो विवाहित हैं परन्तु खुश नहीं हैं और इसके विपरीत भी हैं| चुनाव आपका है आशीर्वाद मेरा!

प्रश्न: मैं एक महिला के रूप मे क्या कर सकती हूँ जब घर के बड़े बुजुर्ग ही परम्पराओ और पारंपरिक मूल्यों को भूल गए हैं?
श्री श्री रविशंकर: आप जो कुछ भी सीखना चाहते हैं उसे इंटरनेट पर सीख सकते हैं| यह कितना अद्भुत युग है, एक लैपटोप पर गूगल में खोज करने से पृथ्वी पर मौजूद कोई भी जानकारी आसानी से उपलब्ध हो जाती है! सारी सूचना उंगलियों पर उपलब्ध हो जाता है | मैं कहा करता था कि ज्ञान उंगलियों पर ही उपलब्ध हो जायेगा और जो मुझे सुनते थे उन्हें भी नहीं पता था कि मैं ऐसा क्यों कहता हूँ | सारी जानकारी इससे उपलब्ध हो जाता है| मैं उसे ज्ञान तो नहीं कहूँगा,पर जानकारी।

प्रश्न: क्या कभी पुरुष दिवस भी होगा?
श्री श्री रविशंकर: (मुस्कुराते हुए) उसके लिए भी देवी माँ (स्त्री जाति) से प्रार्थना करनी होगी!
राक्षस और देवता भी उन से वरदान मांगते थे | कोई मज़ाक करते हुए बता रहा था:कि एक बार एक आदमी से किसी ने पूंछा इस घर का मालिक कौन है, उस आदमी ने कहा अपनी पत्नी से पूँछ कर बताएगा!

प्रश्न: किसी भी लक्ष को प्राप्त करने के लिए किसी मानव मे कौन से ८ महत्वपूर्ण गुण होने चाहिए?
श्री श्री रविशंकर: उस संख्या को सिर्फ ८ पर ही क्यों बाँध कर रखना है? आप मुझसे ८ की सूची चाहते है या उस ८ तक का विस्तार चाहते है | इसके बारे मे सोचते हैं।
सबसे पहले तो लक्ष को तय करे |मन इतना चंचल होता है, इसलिए लक्ष को तय करना सबसे महत्वपूर्ण है | फिर आपको समय सीमा निर्धारित करनी पड़ती है | फिर उसके अनुकूल और प्रतिकूल परिणामों का अनुमान लगाना और परिवर्तन के अनुरूप ढालने की
आपकी योग्यता बनानी होती है | लक्षो की पूर्ती करने के लिए साधनों को जुटाना सबसे महत्वपूर्ण होता है|

प्रश्न: क्या पुरुषों और महिलायों के आध्यात्मिक पथ भिन्न है ?
श्री श्री रविशंकर: नहीं। आध्यात्म महिला और पुरुष दोनों के लिए समान है |
इतिहास मे कुछ समय के लिए पुरुषों ने महिलायों पर कुछ प्रतिबन्ध लगाए थे, जिससे महिलाए सत्ता मे न आ सके | परन्तु समाज के कुछ कायदे होते है और हर व्यक्ति को उसका पालन करना चाहिए |

प्रश्न: मृत्यु और पुनर्जन्म के मध्य के समय मे क्या होता है?
श्री श्री रविशंकर: निद्रा से जाग्रित अवस्था मे जब आप आते हैं तो उसके मध्य के समय मे क्या होता है? वैसा ही होता है-आप निष्क्रिय होते हैं| जब समय आ जाता है तो चेतना वापिस आ जाती है|

प्रश्न: हमारे महाकाव्यों मे महिलाओ ने कई असाधारण कृत्य किये हैं, इस पर विश्वास करना कठिन है! आप इसके बारे में कुछ बताएं।
श्री श्री रविशंकर: उदाहरण के लिए हम गांधारी की बात करते है , उसने मटके से १०० बच्चो को जन्म दिया | उन्होंने वास्तव मे टेस्ट ट्यूब शिशु को जन्म दिया | एक भ्रूण और १०० मटके ! हम तब भी जानते थे कि इसका क्या विज्ञान है !
जब तक वह सिद्ध न हो जाए वह सिर्फ तथ्य होता है| जैसे कोई विश्वास नहीं करता है कि डायनासोर हुआ करते थे परन्तु उनके होने के हमारे पास प्रमाण है | जटायु एक डायनासोर पक्षी था जिस पर सीता ने सवारी करी | भगवान श्री कृष्ण के आस्तित्व के बारे मे भी प्रमाण मौजूद हैं| इसे जिस रूप मे प्रस्तुत किया जाता है ,वह अक्सर कल्पना और तथ्य पर आधारित होता है| जैसे किसी कविता में कल्पना और तथ्य का मिश्रण होता है | यदि आप अब्दुल कलाम ,जवाहरलाल नेहरु यां इंदिरा गाँधी की जीवनी को पढेंगे , तो आप पायेंगे कि उसमें कई बातों को जोड़ा जाता है |

प्रश्न: वर्तमान क्षण मे और प्रभावकारी रूप से रहने के लिए मुझे क्या करना चाहिए ?
श्री श्री रविशंकर: आप अभी यह तय कर रहे हो कि भविष्य मे वर्तमान क्षण मे होने के लिए आप को क्या करना है! आप समझे मैं क्या कह रहा हूँ ?

प्रश्न: कृपया करके आध्यात्म और साम्यवाद की समानताओ पर व्याख्या करें ?
श्री श्री रविशंकर: हाँ, साम्यवाद कहता हैं सबके लिए सामान अवसर होने चाहिए | आध्यात्म कहता है दिव्यता सबके दिल मे है और हर कोई ईश्वर है | इस तरह दोनों एक ही बात को कहते हैं | आपकी भावनाए सामान हो सकती हैं परन्तु अभिव्यक्ति भिन्न हो सकती है| आप प्रेम को अलग अलग रूप मे अभिव्यक्त करते है जैसे शिशु के साथ यां वृद्ध के साथ अलग प्रेम होता है|

(गंगा एक ऐसी नदी है जिसका निर्माण प्राचीन लोगो ने किया – http://www.bharathgyan.com/ वेब साईट पर भागीरथी पर तथ्य और कहानियाँ है कि कैसे संतो ने और साथियो ने उसकी संरचना करी और कैसे मानसरोवर का प्रवाह पश्चिम से किया।

प्रश्न: मानसिक रूप से विक्षिप्त लोगो के साथ कैसे रहे उस पर व्याख्या करें?
श्रीश्री रविशंकर: वे लोग यहाँ पर सेवा लेने आये है ,बस उनकी सेवा करो !!!

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प्रवृत्ती, निव्रिति और जीवन का सुन्दर ज्ञान


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आतंरिक शांति का उत्सव मनाना ही शिवरात्रि है!


बुधवार, २ मार्च, २०११
आज महाशिवरात्रि है और आर्ट ऑफ लिविंग की सम्पूर्ण वेब टीम आप सभी को महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें देती है।

शिवरात्रि का महत्व:

शिवरात्रि का अर्थ है, शिवजी की रात्रि और यह भगवान शिवजी के सम्मान में मनायी जाती है।
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का शिव ध्यानस्थ स्वरुप हैं | सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में सिर्फ शिव ही व्याप्त हैं | यह ब्रह्माण्ड के प्रत्येक अणु में व्याप्त हैं | इनका कोई आकार या रूप नहीं हैं परन्तु यह सभी आकार या रूप में मौजूद हैं और करुणा से परिपूर्ण हैं | लिंग का अर्थ चिन्ह होता हैं और इस तरह इसका प्रयोग स्त्रीलिंग और पुल्लिंग के रूप में होने लगा | सम्पूर्ण चेतना की पहचान लिंग के रूप में होती है| तमिल भाषा में एक कहावत हैं “अंबे शिवन , शिवन अंबे” जिसका अर्थ है शिव प्रेम हैं और प्रेम ही शिव है,सम्पूर्ण सृष्टि की आत्मा को ईश या शिव कहते हैं |

श्रद्धालु इस दिन रजस और तमस को संतुलन में लाने के लिए और सत्व (वह मौलिक गुण जिससे कृत्य सफल होते हैं) में बढ़ोत्तरी करने के लिए उपवास करते हैं | ॐ नमः शिवाय मंत्रोचारण की गूँज निरंतर होती रहती हैं| मंत्र उच्चारण वातावरण, मन और शरीर में पंच महाबूतों का संतुलन बनाता है।
 इस शुभ उर्जा को पृथ्वी पर लाकर हमारे स्वयं को और समृद्ध बनाने के लिए पारंपरिक अनुष्ठान किये जाते हैं,परन्तु भक्ति भाव सबसे महत्वपूर्ण है | पर्यावरण और मन के पांच तत्वों में सामंजस्य लाने के लिए ॐ नमः शिवाय का मंत्रोचारण किया जाता है|

सम्पूर्ण सृष्टि शिव का नृत्य है, सारी सृष्टि चेतना सिर्फ एक चेतना। उस एक बीज, एक चेतना के नृत्य से
सारे विश्व में लाखो हजारों प्रजातियाँ प्रकट हुई हैं| इसलिए यह असीमित सृष्टि शिव का नृत्य है – “शिव तांडव”;

(श्री श्री ने इस सुन्दर नृत्य की व्याख्या की थी - हम उसे किसी अन्य अंक में प्रकाशित करेंगे)|

वह चेतना जो परमानन्द, मासूम, सर्वव्यापी है और वैराग्य प्रदान करती है, वह शिव है| सारा विश्व जिस भोलेभाव और बुद्धिमत्ता की शुभ लय से चलता है वह शिव है| वे उर्जा के स्थिर और अनंत स्त्रोत्र हैं, वे स्वयं की अनंत अवस्था हैं, शिव सृष्टि के हर कण में समाएं हैं।

जैसे जल में स्पंज, रसगुल्ले में चाशनी, जब मन और शरीर शिव तत्व में तल्लीन होते है, तो छोटी छोटी इच्छाये बिना किसी प्रयास के पूर्ण हो जाती हैं, इसलिए व्यक्ति को बड़ी इच्छा रखनी चाहिए |

एक बार किसी ने प्रश्न किया शिवरात्रि ही क्यों? शिव दिन क्यों नहीं ?

रात्रि का अर्थ वह जो आपको अपनी गोद में लेकर सुख और विश्राम प्रदान करे | रात्रि हर बार सुखदायक होती है, सभी गतिविधियां ठहर जाती हैं, सब कुछ स्थिर और शांतिपूर्ण हो जाता है, पर्यावरण शांत हो जाता है, शरीर
थकान के कारण निद्रा में चला जाता है | शिवरात्रि गहन विश्राम की अवस्था है | जब मन, बुद्धि और अहंकार दिव्यता की गोद में विश्राम करते हैं तो वह वास्तविक विश्राम है| यह दिन शरीर व मन की कार्य प्रणाली को विश्राम देने का उत्सव है।

वास्तव में रात्रि का एक और अर्थ भी है – वह जो तीन प्रकार की समस्या से विश्राम प्रदान करे वह रात्रि है | यह तीन बातें क्या हैं? शान्ति:, शान्ति:, शान्ति:।शरीर, मन और आत्मा की शांति, आध्यात्मिक, अधिभौतिक अदिदैविक | तीन प्रकार की शान्ति की आवश्यकता हैं, पहली भौतिक सुख, जब आपके आस पास गडबड़ी हो तो आप शान्ति से बैठे नहीं रह सकते | आपको आपके वातावरण, शरीर और मन में शान्ति चाहिये | तीसरी बात हैं आत्मा की शांति | आपके वातावरण में शांति हो सकती है, आप स्वास्थ्य शरीर का और कुछ हद तक मन की शान्ति का भी आनंद ले सकते है लेकिन यदि आत्मा बैचैन हैं तो कुछ भी सुख दायक नहीं लगता | इसलिए वह शान्ति भी आवश्यक है | इसलिए तीनों प्रकार की शान्ति की मौजूदगी से ही सम्पूर्ण शान्ति प्राप्त हो सकती है| एक के बिना अन्य अधूरे हैं|

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