आपको अपने स्वयं मे वैराग्य को उत्पन्न करना होगा

१७ मई २०११, बैंगलुरु आश्रम

प्रश्न: प्रिय गुरूजी क्या यह बात सही है कि भगवत गीता के प्रत्येक अध्याय का प्रभाव किसी विशेष गृह पर होता है ? कृपया इसे समझाए |
श्री श्री रवि शंकर
: गृह बहुत दूरी पर हैं फिर भी उनका प्रभाव आपके मन और आत्मा पर होता हैं | प्रत्येक अध्याय का प्रभाव आप पर होता है |

प्रश्न: प्रिय गुरूजी मैं अपने व्यवसाय में व्यस्त रहता हूं, लेकिन मुझ में सेवा करने की प्रबल इच्छा हैं | क्या मैं अपना अधिक समय दिये बिना यदि आर्थिक रूप से सहयोग प्रदान करता हूँ, तो क्या वह भी सेवा मानी जायेगी |
श्री श्री रवि शंकर
: हां, वह भी ठीक है | कुछ लोग समय दे सकते हैं और कुछ साधन मुहैया करवाते हैं | सेवा दोनों समय और साधन से होती है | यदि आप समय नहीं दे सकते तो साधनों को मुहैया करवा दीजिए |

प्रश्न: गुरूजी आपने हमें वैराग्यपूर्ण बनने के लिए कहा और आप यह भी कहते हैं कि वैराग्य घटना है | मुझे वास्तव में वैरागी बनना है, परन्तु मुझे इस बात का भ्रम है कि कैसे मैं अपने जीवन में कोई घटना निर्मित कर सकता हूं ? कृपया मार्गदर्शन करें |
श्री श्री रवि शंकर
: वैराग्य कोई घटना नहीं हैं परन्तु मैं कहूंगा कि आपको अपने स्वयं में वैराग्य को उत्पन्न करना होगा | जब आप अपनी सजगता को बढ़ाते हैं, और जब आप यह समझ लेते हैं कि सब कुछ लुप्त होने वाला है और मृत्यु निकट है, हम सभी कि मृत्यु होने वाली है और सब कुछ बदल रहा है, जब यह ज्ञान आपको समझ में आने लगता है तो वैराग्य स्वाभाविक ही हो जाता है | जब आप जीवन को समझ कर एक बड़े दृष्टिकोण से देखते हैं, तो वैराग्य स्वाभाविक रूप से आप में आ जाता है, लेकिन उसके लिए आपको कुछ प्रयास करने होंगे | आप कुछ प्रयास करे फिर वह हो जाएगा |

प्रश्न: गुरूजी मेरा और मेरी पत्नी का दो वर्ष पूर्व तलाक हो गया था, अब हम फिर से विवाह करना चाहते हैं| आप कह सकते हैं कि हमारे मामले में तलाक काम नहीं आया परन्तु हम दोनों भयभीत हैं, क्या हम फिर से वहीं गलती दोहराने जा रहे हैं ? कृपया मार्गदर्शन करें |
श्री श्री रवि शंकर
: यह एक अच्छा आशय है कि आप उसे सफल बनाना चाहते हैं | जैसे समय बीतता है, चेतना, मन और समझ में बदलाव आता है | अब इस बदली हुई परिस्थिति में यदि आप उसे सफल बनाने के लिए एक और प्रयास देना चाहते हैं तो इसमें कोई गलती नहीं है, आप इसके लिए प्रयास कर सकते हैं | यदि वह प्रयास सफल नहीं होता तो अगले जीवनकाल में उसी जीवन साथी को न चुनें |

प्रश्न: मैं जीवन का आनंद कैसे लूंगा, यदि एक दिन सब कुछ समाप्त ही होने वाला है ? गुरूजी यह विचार मुझे आनंद लेने नहीं देता |
श्री श्री रवि शंकर
: उससे आपको जीवन को और सराहना चाहिए | फूल एक दिन मुरझाने वाला है परन्तु क्या आप उसे देखने का लुफ्त उठाना छोड़ते हैं ? यदि आप के पास गुलाब जामुन या आइसक्रीम होती है, और जब आप उसे खाते हैं तो वह समाप्त हो जाती है, तो क्या आप उसे खाने का आनंद नहीं लेते | आज पूर्णिमा का सुन्दर चाँद दिख रहा है और एक दिन वह गायब हो जाएगा परन्तु फिर भी हम उसका आज आनंद ले रहे हैं |

प्रश्न: प्रिय गुरूजी सामान्यता हम में एक शक्ति अधिक प्रभावकारी होती हैं : ब्रह्म शक्ति, विष्णु शक्ति या शिव शक्ति; इनका उपयोग कैसे करें और इनमे संतुलन को कैसे बनायें ?
श्री श्री रवि शंकर
: सिर्फ आगे बढ़ते चलो | ब्रह्म शक्ति से आप कुछ सृजन करते हैं, फिर उसे छोड़ मत दो | विष्णु शक्ति यह देखती है कि जो भी आपने शुरू किया हैं वह निरंतर बरकरार रहे |

प्रश्न: गुरूजी आज बुद्ध पूर्णिमा है, कृपया कर के उसके बारे में कुछ बताये ?
श्री श्री रविशंकर: गौतम बुद्ध ने अपने पूरे जीवन काल में और पूरे समय ध्यान किया | अब हम सब भी थोड़ी देर के लिए ध्यान करेंगे |

प्रश्न: मैं राजस्थान से हूं, वहां पर कई आश्रम हैं, मैं सोच रहा था कि वहां आर्ट ऑफ लिविंग का भी एक छोटा आश्रम बनाया जाए तो बहुत अच्छा होगा| इस पर आपका क्या विचार है |
श्री श्री रविशंकर: ठीक है वहाँ एक आश्रम निर्मित करो | आप सब लोग मिलकर वहां एक आश्रम को बनाये| मैं लोगों में उद्देश्य देता हूं आप आश्रम को बनाए | कल ही हम चर्चा कर रहे थे कि इतने सारे आश्रम हैं परन्तु उतने लोग नहीं हैं | आश्रम में कोई योगी नहीं है | इसलिए मैने सोचा कि पहले मजबूत लोगों को बनाऊंगा इसलिए मैने इसे व्यक्ति विकास कहां नाकि आश्रम विकास | इसलिए यह कार्य अब आप करे, दूसरा अन्य काम मैने शुरू कर दिया है |

प्रश्न: जब अपने किसी प्रियजन की अचानक मृत्यु हो जाती है जिसे हम स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं होते हैं | उनसे कई बाते करना और कहना होती है और उनकी मृत्यु के उपरांत उन्हें महसूस करना चाहते हैं | आप कहते है की वे यहीं पर हैं, तो उन्हें कैसे महसूस किया जाए|
श्री श्री रवि शंकर
: जो लोग यहाँ से चले गए है उन्हें यह समझ हो जाती है की यह विश्व सिर्फ एक क्रीड़ा है और वास्तव मे कुछ भी नहीं है यह सिर्फ एक तरंग के जैसे है, इसलिए उन्हें कुछ बताने या समझाने की कोई आवश्यकता ही नहीं हैं, क्योंकि वे वैसे ही समझ जाते हैं | जब हम शरीर मैं होते है तो हम शव्दों के द्वारा समझ जाते है परन्तु हम जब शरीर के बाहर आ जाते है तो संपर्क भावनाओं के द्वारा होता है | इसीलिए आप चिंता ना करें और खुश रहें जिनकी मृत्यु हो चुकी है वे जा चुके है और हम सब यहां पर हैं |

प्रश्न: गुरुजी आप के प्रति हमारी भावनाओं को हमारे प्रियजन नहीं समझते हैं और वे तर्क के द्वारा बातों को समझते है जिससे हमारी भावनाओं को ठेस पहुंचती है यह परिस्थिति हमारे जीवन मैं अक्सर आती रहती है, इससे कैसे निपटा जाये ?
श्री श्री रवि शंकर
: आपको हर किसी व्यक्ति को हर कोई भावना को समझाने की आवश्यकता ही क्यों है ? ऐसी भावनाओं को लोग समझना ही नहीं चाहते | आपको अपनी भावनाये इस प्रकार से अभिव्यक्त नहीं करना चाहिए | वे असुरक्षित महसूस करते होगें कि आप उन्हें छोड कर आश्रम मे जा कर रहने लगेंगे | इसीलिए आपको अपनी भावनाओं के द्वारा उनमे भय उत्पन्न नहीं करना चाहिए | आपका प्रेम और भक्ति उतनी ही अभिव्यक्त होना चाहिए जितना वे समझ सकें | यही बात प्रसन्नता के साथ होती है, कभी कभी आप यह समझ नहीं पाते कि कितनी प्रसन्नता अभिव्यक्त करें ; यदि आप अत्याधिक अभिव्यक्ति करते है तो लोग उसे समझ नहीं पाते |
एक भक्त किसी व्यक्ति के अंतिम संस्कार और शोक सभा मे गया, वहां पर लोग भजन गा रहे थे और इस भक्त ने वहां पर भजनों पर नृत्य करना शुरू कर दिया और लोग उसके कृत्य को समझ नहीं पाए | सत्संग और भजन मे जब आप खुश होते तो आप नृत्य करते हैं परन्तु उसका यह तर्क था कि हर बात का उत्सव मानना चाहिए | यदि आप उस जगह पर नृत्य करेंगे तो निश्चित ही आप लोगों को नाराज़ करेंगे | इसीलिए आप को यह देखना चाहिए कि व्यक्ति कितना समझ सकता और उसे जो आप बताना चाहते हैं उसे कैसे व्यक्त करना है | इसीलिए आप को अपनी अभिव्यक्ति मे कौशल विकसित करना चाहिए, जिससे जितना संभव हो सके आप की अभिव्यक्ति के कारण लोगों मे भय और क्रोध उत्पन्न न हो सके | फिर एक स्तर के उपरांत आपको उस पर ध्यान नहीं देना चाहिए |

प्रश्न: मुझे लगता है की भारत की सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का कारण अत्याधिक आबादी पर आधारित है, क्या आप इससे सहमत है ?.
श्री श्री रवि शंकर:
नहीं ! भारत की समस्याएं अत्याधिक आबादी पर आधारित नहीं है वे भ्रष्टाचार पर आधारित हैं ; यह सारी समस्याएं सिर्फ भ्रष्टाचार के कारण ही हैं | कुछ वर्ष पूर्व अत्याधिक आबादी को श्राप समझा जाता था परन्तु आज यह आबादी ही देश की अर्थव्यवस्ता को सुधारने का आधार बन गयी है | अत्याधिक आबादी का अर्थ है एक विशाल व्यापार के लिए नींव | आज दूसरे देशों की नजर भारत पर क्यों है ? क्योंकि भारत के पास एक विशाल व्यापार के लिए नींव है |
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प्रेम आत्मा को मजबूत करता हैं और घृणा और दुःख आत्मा को कमजोर करते हैं !!!

१५ मई २०११, बैंगलुरु आश्रम
प्रश्न: क्या कोई जीव अच्छा या बुरा होने के जैसा कुछ होता हैं ? यदि कोई बाहरी समस्याओं से बाध्य हैं, तो क्या नकारात्मक पथ उसका पीछा करेगा ? इससे कैसे निपटा जाए ?
श्री श्री रवि शंकर:
कोई भी आत्मा अच्छी या बुरी नहीं होती |आत्मा या तो मजबूत या कमजोर होती हैं | मजबूत आत्मा खुश रहती हैं और कमजोर आत्मा दुखी रहती हैं | फिर कोई आत्मा मजबूत कैसे बने ? भक्ति आत्मा को मजबूत और शक्तिशाली बनाती हैं | प्रेम आत्मा को मजबूत करता हैं और घृणा और दुःख आत्मा को कमजोर करते हैं |

प्रश्न: इस विशाल ब्रह्माण्ड की तुलना में यदि हमारा आस्तित्व कुछ भी नहीं हैं तो हमारे जन्म लेने या न लेने से उस का क्या प्रभाव होगा ?
श्री श्री रवि शंकर:
इस ब्रह्माण्ड में वैसे तो कुछ भी मायने नहीं रखता फिर भी सब कुछ का मायना होता हैं | यदि कोई भी एक प्रजाति लुप्त हो जायेगी तो इस ब्रह्माण्ड का विनाश हो जाएगा | यदि सारी मक्खियां लुप्त हो जायेंगी तो इस ब्रह्माण्ड का विनाश हो जाएगा और वह आस्तित्व में नहीं रह सकता | आजकल वैज्ञानिक भी यही बात कहते हैं, कि यदि किसी किस्म की तितली या फूल गायब हो जायेंगे तो ब्रह्माण्ड का आस्तित्व नहीं रह सकता |
एक मक्खी के लिए इसका कोई महत्व नहीं कि यहां पर कितने गृह, सौर मंडल या आकाश गंगा हैं ! फिर भी यदि मक्खी लुप्त हो जाए तो ब्रह्माण्ड का विनाश हो जाएगा | इसलिए मक्खियां महत्वहीन होने बावजूद महत्वपूर्ण हैं | उसी तरह हर कोई व्यक्ति महत्वहीन होने बावजूद महत्वपूर्ण हैं |

प्रश्न: प्रिय गुरूजी यदि ब्रह्माण्ड की शक्ति शिव हैं तो फिर नारायण तत्व क्या हैं ?
श्री श्री रवि शंकर:
मानवीय तंत्र में नारायण शिव तत्व की अभिव्यक्ति हैं | शिव तत्व पूर्णता अव्यक्त हैं ; और नारायण उसकी अभिव्यक्ति हैं |जैसे वातावरण में जल वाष्प या नमी, आप उसे देख नहीं सकते परन्तु जब बादलों से पानी बरसता हैं तो आप उसे देख सकते हैं | नारायण जल हैं और जल वाष्प शिव तत्व हैं | इसलिए जब आप स्वामियों, सन्यासियों और योगिओं को देखते हैं तो आप कहते हैं, ‘ ॐ नमो नारायणाय’ |

प्रश्न : मैं इस्लाम के एक पंथ से हूं | मैं देखता हूं कि इस्लाम के साथ बहुत हिंसा जुडी हुई हैं | आज विश्व मे इतने धार्मिक द्वंद क्यों हैं ? क्या इसके पीछे किसी अलौकिक सर्वोच्च शक्ति का हाथ हैं ? प्रत्येक धर्म को मानने के हमारे पथ का अनुसरण वे क्यों नहीं करते ? विभिन्न युग, स्थान और समय में गुरुओं की बातें इतनी भिन्न कैसे हो सकती हैं ?
श्री श्री रवि शंकर:
उस समय संचार सुविधाये इतनी पर्याप्त नहीं थी,टेलीफोन नहीं हुआ करते थे | लोगों को एक स्थान से दुसरे स्थान जाने के लिए महीने नहीं लेकिन कई वर्ष लग जाया करते थे | इसलिए उस समय पर उस क्षेत्र में जो कुछ प्रचलित था, वहीं उस समय के गुरुओं, संतों और पीरों उस पर ही अधिक व्याख्या की | पैगंबर मोहम्मद ने यहूदी और ईसाई धर्म के बारे में कहां, उन्होंने हिंदू या बुद्ध धर्म के बारे में इसलिए नहीं कहां क्योंकि वह वहां पर पहुंचा ही नहीं था | उन्होंने कहां कि प्रत्येक जनजाति के लिए भिन्न ज्ञान बताया गया हैं | उन्होंने यह भी कहां कि “ मेरे पहेले भी यहां पर कई पीर आये , उन सब का सम्मान करे और शान्ति से सभी का सम्मान करे |
उन्होंने कहां मेरे पहेले इस गृह पर एक लाख पीर आये , यदि आप उनकी गिनती हजारों में करेंगे तो उसमे कई ऋषि, महाऋषि और गुरु सम्मलित होंगे |उनकी महासमाधी के उपरान्त दुर्भाग्य से यह धर्म अत्यधिक सीमित हो गया हैं और इसने लोगों को भी सीमित कर दिया हैं |
पैगंबर मोहम्मद ने महिलाओं को अत्यधिक स्वतंत्रता प्रादन की परन्तु बाद में इसमें बदलाव आ गया | जैसे समय बीतता हैं हर धर्म में विकृतियां आ जाती हैं | जो कुछ भी मूल पैगंबर या गुरु ने कहां होता हैं,वह नहीं रहता और चीजें बदल जाती हैं |
आज पाकिस्तान में हर दिन मस्जिद में ही बम विस्फोट होते रहते हैं क्योंकि इस्लाम का एक पंथ सोचता हैं कि वे ही सही हैं और बाकी सब कोई गलत हैं | वहाबी पंथ सोचता हैं, कि हर कोई यहां तक सूफी संत भी गलत हैं| इसलिए धर्म गुरु ही इस प्रकार की समस्या उत्पन्न करते हैं ना कि धर्म के संस्थापक | प्रत्येक धर्म के संस्थापकों ने सिर्फ यह कहां होगा कि आध्यात्मिक पथ पर चलते रहो, अपने स्वयं के गहन में जाकर दिव्यता के साथ जुड जाओ | उन सभी ने योग, ध्यान और मंत्रोचारण करने की अनुशंसा करी होगी| दुर्भाग्य से आप धर्म के वास्तविक सार को छोड़ कर बहारी सतह को पकड़ लेते हैं और फिर लोग आपस में अनावश्यक रूप से लड़ने लगते हैं | इसलिय आप सब को आध्यात्म की ओर मुडना चाहिये |
गुरुओं और पैगंबर का मुख्य सन्देश हैं: स्वयं में,पर्यावरण में और विश्व में शान्ति बनाये रखे | दूसरा सन्देश हैं, सबसे प्रेम करो और सबकी सेवा करो | तीसरा सन्देश हैं एक भगवान पर विशवास रखो जिसके कई नाम हैं |
दिव्यता सिर्फ एक हैं जिसके अनेक नाम और अनेक रूप हैं | सबके लिए प्रेम और करुणा और स्वयं के दिल में शान्ति, यदि आप में यह गुण हैं तो आपको किसी को सुनने की आवश्यकता नहीं हैं, जो आप से यह कहते हैं, आप को यह नहीं करना हैं क्योंकि आप यह नहीं हो और बहुत कुछ |

प्रश्न: भगवान विष्णु का कार्य आसान हैं या पृथ्वी पर आपका कार्य आसान हैं ?
श्री श्री रवि शंकर:
मैं कोई तुलना नहीं करता | मेरा कार्य आसान या कठिन हैं, इसके बारे मे मैं न तो चर्चा करता हूं या सोचता हूं |जो भी हो, यदि वह कठिन या आसान कार्य हैं तो भी उसे करना ही हैं और यह सब विष्णु शक्ति के द्वारा ही हो रहा हैं | विष्णु भगवान कोई वे नहीं हैं जो जल पर बैठे हैं, विष्णु भगवान वह हैं जिनका आस्तित्व सृष्टि के कण कण में हैं |

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जीवन जीते हुए आपको खुश रहना चाहिए और दूसरों को भी खुश रहने देना चाहिए !!!

८ मई २०११, बैंगलुरु आश्रम

श्री श्री रवि शंकर: प्रतिदिन आपको अपने आपको शांत करने के लिए कुछ समय निकालना चाहिए | इसके लिए आपको यह सजगता लानी होगी कि जो कुछ आज यहां हैं, वह किसी और दिन यहां नहीं होगा, जैसे पानी में बुलबुला | आपको जीवन की अस्थिरता को समझना होगा | जीवन जीते हुए आपको खुश रहना चाहिए और दूसरों को भी खुश रहने देना चाहिए | जब आप मृत्यु को याद करते हैं तो जीवन के प्रति प्रश्न कम हो जाते हैं !
जब हम जीवन जीते है तो आपको दो बाते प्राप्त करनी होती है – सबसे पहले आपको यह देखना होता है कि हमने लोगों के साथ कितना प्रेम बांटा और कितना ज्ञान और विवेक हासिल किया, मृत्यु के उपरांत हमारे पास सिर्फ यह दो बाते रह जाती है|

प्रतिदिन आपको बैठ कर कुछ मिनटों के लिए ध्यान करना चाहिए और सारी अनावश्यक बातें जैसे लोग हमारे बारे मैं क्या सोचते हैं से मुक्त हो जाना चाहिए हमको यह अनुभव करना है कि परमात्मा सर्वव्यापी है| यदि वह सर्व व्यापी नहीं होता तो हम उसे भगवान का दर्जा नहीं देते | वह हर समय हर जगह हम सब मे होता है, और जब नेत्र बंद करके आप उसे देख लेते हैं तो वह ध्यान है | गुरु, भगवान और आत्मा एक ही हैं |

जब आप आश्रम मे आते हैं- तो यहाँ पर इतनी सारी चिंताएं छोड दे- उन्हें यहां से फिर से न ले जाए |
जब आप सेवा करते हैं तो आपकी सारी जरूरतों का ध्यान रखा जाता है | ज्ञान का प्रचार करना आपका काम है इसलिए जब आप ज्ञान का प्रचार करेंगे, तो आप जो भी चाहेंगे, उसे तो होना ही है |

अपनी पूरी आय को अपने स्वयं पर व्यय करने में कोई अर्थ नहीं है | आपको अपनी आय का २ से ३ प्रतिशत समाज सेवा, धर्म जाग्रति के लिए रखना चाहिए जिससे भ्रष्टाचार में कमी आ सके | आप सब लोगों को मिलकर लोगों को अपने देश के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए |

जब आपके मन में कोई प्रश्न उठे तो उसे पहले स्वयं से कई बार पूछें और यदि फिर भी उत्तर न मिले तो फिर ही उसे गुरु से पूछें | बाकि अन्य बातें आपको प्रारब्ध द्वारा प्राप्त होंगी और फिर सारी बातें अच्छी होती जाएगी | गान, ध्यान और ज्ञान – यह तीनों बातें जीवन में होना चाहिए |
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आप इस विश्व के लिए एक उपहार हैं !!!

१३ मई २०११, बैंगलुरू आश्रम
कोई भी उत्सव तभी वास्तविक हो सकता हैं जब दिल मे वैराग्य का भाव हो | जब मन भीतर की ओर मुड़कर उस अनन्त और कभी नहीं बदलने वाले स्वरुप की ओर चला जला हैं, और जब आप अपने भीतर के गहन मे उस अनन्त को देखते हैं तो फिर जन्म और मृत्यु का अर्थ क्या रह जाता हैं | यह उसी तरह हैं जब लोग कहते हैं सूर्य का उदय हो रहा हैं और सूर्यास्त हो रहा हैं | जैसे सूर्य का उदय या सूर्यास्त नहीं होता, उसी तरह आपका जन्म या मृत्यु नहीं होती | आप हैं और आप यही रहेंगे, आपको चेतना के उस स्वरुप पर ध्यान देने की आवश्यकता हैं, और वही आध्यात्मिक पथ हैं |

सामान्यता आपने अपने भीतर के गहन मे यह अनुभव किया हैं कि आपको यह अहसास होता रहता हैं कि मुझमे कोई बदलाव नहीं हो रहा हैं, सब कुछ बदल रहा हैं परन्तु मेरी आयु मे बढ़ोतरी नहीं हो रही हैं |मुझे भी नहीं लगता कि मेरी आयु ५० का पड़ाव पार कर चुकी हैं और उसी तरह आप सब को भी यही लगता हैं कि आपकी उम्र मे बढ़ोतरी नहीं हो रही हैं | आप मे कुछ ऐसा हैं जो कहता हैं, “ मुझे मे कोई बदलाव नहीं आया, मेरी उम्र नहीं बढ़ रही हैं” वास्तव मे आपकी कोई आयु ही नहीं हैं फिर भी आप इस प्रकार के उत्सव मनाते हैं |

यदि उत्सव और अधिक सेवा कार्यों को निर्मित करते हैं, तो मैं रोज उत्सव मनाऊंगा !!! साल मे सिर्फ बार ही क्यों?

मेरी खुशी हैं कि सारे विश्व मे हज़ारो से भी अधिक स्वयंसेवी आज किसी न किसी तरह की सेवा कार्यों मे व्यस्त हैं | कितने सारे रक्त दान शिविर और कई अन्य सेवा कार्य हो रहे हैं | जैसे आज मैं यहां पर बोल रहा हूं और इसी समय पर कितने सारे सत्संग आयोजित हो रहे हैं और जैसे इस कार्यक्रम का वेब प्रसारण हो रहा हैं लाखो लोग इस प्रसारण को देख रहे हैं और मैं उन सब को बधाई देता हूं | आज आपने कई सेवा कार्यों को किया | इसे जारी रखे और सेवा कार्यों को करने के लिए कोई न कोई बहाने को खोजे |

जीवन मे परम सुख प्राप्त करने के लिए दो बातें आवश्यक हैं |पहला हैं वैराग्य | उस कभी न बदलने वाले स्वरुप से गाठ बांध लीजिए | सिर्फ इस बात का स्मरण करे कि आपके भीतर बदलाव नहीं आता और आपके भीतर कुछ नहीं बदलता, आप अनन्त है | जब आप उस वैराग्य का सहारा लेते हैं तो जीवन उत्सव बन जाता हैं, और फिर उसी समय आपके द्वारा सेवा कार्य तुरंत अपने आप होने लगते हैं | इसलिए जब आप सेवा कार्य करते हैं तो आपको आदान प्रदान करना चाहिए, आपके पास जो कुछ भी हैं, उसका आपको सबके साथ आदान प्रदान करना चाहिए और जब हम स्वयं के गहन मे जाते हैं तो वैराग्य प्रकट होता हैं | यह दो बातें, वैराग्य और सेवा जीवन को उत्सव बना सकते हैं |इन दो मूल्यों प्राप्त करने के लिए कोई भी अवसर को झपट लीजिए |

कोई भी उत्सव वैराग्य के बिना सतही होता हैं | सतही होने के कारण उसमे कोई गहराई नहीं होती हैं |उसी तरह वैराग्य के बिना की हुई सेवा उत्तम गुणवक्ता की नहीं होती क्योंकि वह आपको थका देती हैं | आपमें और अधिक वैराग्य होना चाहिए और फिर सेवा को करते हुए जीवन उत्सव बन जाता हैं |

मेरा यहां पर होना आपको सिर्फ यह याद दिलाना हैं कि आप अनन्त हैं , आप सब कोई अनन्त हैं और जीवन मे चुनौतियां और समस्या आती जाती हैं, कभी सुखद और कभी अप्रिय | यह सारी घटना होती हैं और उसका समाधान भी आता हैं,परन्तु आप चिंता मत करे, मैं आपके साथ हूं, हम सब साथ मिलकर इस कठिन घडी से निकलकर जीवन को उत्सव बना लेंगे | हमने जीवन को वैसे भी उत्सव बना लिया हैं और और अपने जीवन को आगे भी निरंतर उत्सव बनाएंगे और हमारे आस पास के लाखो करोड़ो लोगों के जीवन को भी उत्सव बना देंगे |

वास्तव मे आपको यह ध्यान रखना चाहिए कि आप इस विश्व के लिए एक उपहार हैं| आप इस गृह के लिए बोझ नहीं परन्तु उपहार हैं और जब आपमें यह आत्म सम्मान जागेगा तो आप अपने आस पास के लोगों के लिए बहुत श्रेष्ठ और उत्तम चीजे कर सकेंगे | जब आप संतुष्ट और सम्पूर्ण होते हैं तो फिर आप यही सोचते हैं कि आप दूसरों के लिए क्या कर सकते हैं और इस बात का एहसास होने के लिए आपको यह महसूस होना चाहिए कि आप इस विश्व के लिए एक उपहार हैं !!!

मैं आपकी तुलना माचिस की तिली का से करना चाहूंगा,ऐसा मान ले कि आप माचिस की तिली हैं | माचिस की तिली का उद्देश्य दिये मे प्रकाश देना होता हैं | माचिस की तिली को जलाते हैं तो वह कई मोमबत्तियों या दियों को जला देती हैं | उसी तरह माचिस के डिब्बे की कई तिली कई जीवन मे प्रकाश ला सकती हैं | आप एक विशाल माचिस के डिब्बे के जैसे हैं | आप यहां पर लोगों के जीवन मे प्रकाश, ज्ञान और खुशियां लाने के लिए हैं|

किसी बात की चिंता न करे, आप की सभी छोटी छोटी जरूरतो और इच्छाओं का ध्यान रखा जायेगा और सब कुछ हो जाएगा | आपको यह सोचना होगा कि आप दुनिया के लिए क्या कर रहे हैं और इसमें कैसे अपना योगदान दे रहे हैं | और कैसे आप विश्व मे आध्यात्म को बढ़ा रहे हैं | यही सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण और आवश्यक हैं |

प्रश्न: गुरूजी आप कहते हैं कि हमारा संबंध पृथ्वी जितना पुराना हैं | क्या हमने आपका जन्मदिन पिछले किसी अन्य जन्म मे भी मनाया हैं ? मुझे तो याद नहीं परन्तु आपको होगा, कृपया कर के बताए |
श्री श्री रवि शंकर:
हां हमने मनाया हैं|अब आप मुझे यह बताए कि जब आप मुझसे पहली बार मिले तो क्या आपको ऐसा लगा कि हम पहली बार मिल रहे हैं? नहीं ना, मुझे भी ऐसा नहीं लगा कि मैं किसी अजनबी से मिल रहा हूं | सभी लोगों से और मैं जिन लोगों से भी मिलता हूं , तो मुझे हर बार लगा कि मैं उन से पहले मिल चूका हूं और मैं उन्हें जानता हूं| अब तक मैं किसी भी एक अजनबी से नहीं मिला |

प्रश्न: गुरूजी मुझे आपके लिए तीव्र तड़प हैं परन्तु यह भाव आता और जाता रहता हैं, और मन दूसरी बातों मे भटक जाता हैं | मैं कैसे आपके लिए इस तीव्र तड़प को बरक़रार रखूं ?
श्री श्री रवि शंकर
: कोई बात नहीं, कुछ मस्ती भी करो | जब आप कहेंगे कि मुझे कोई तड़प नहीं हैं तो वह भी एक तड़प हैं | आप तड़प के लिए तड़प रहे हैं |, यह वैसे ही हैं जैसे जब आप क्रोधित हैं, तो फिर आप इस बात के लिए क्रोधित हो जाते हैं क्योंकि आप क्रोधित हैं | आप तड़प के लिए तड़प रहे हैं, यह समझ ले कि वह भी एक तड़प हैं |

प्रश्न: संकल्प और इच्छा मे क्या अंतर हैं, और यदि इनमे कोई अंतर हैं तो सारी इच्छाओं को संकल्प मे परिवर्तित करनी की क्या तकनीक हैं ?
श्री श्री रवि शंकर:
मैने इसके बारे मे पहले ही व्याख्या की हैं, संकल्प और इच्छाओं को कैसे परिवर्तित करना | यह सब कुछ वैराग्य से सम्बंधित हैं, वैराग्य हर क्षेत्र काम आता हैं |

प्रश्न: आज मैं सोच रहा हूं कि सब कुछ प्रकाश से व्याप्त हैं,और जब मैं अपने आप को देखता हूं तो मुझमे, उसमे और सभी मे आपका ही प्रकाश व्याप्त हैं, वे आप ही हैं जो हर जगह पर मौजूद हैं| मैं जहां पर भी देखता हूं तो वे आप ही हैं जो चमक रहे हैं| आप कहां से आये हैं, और आप कौन हैं, कम से कम आज तो यह बता ही दीजिए ?
श्री श्री रवि शंकर:
यदि आपको यह जानना हैं कि मैं कौन हूं तो आपको मुझ से एक सौदा करना होगा | सौदा यह हैं कि पहले आपको यह जानना होगा कि आप स्वयं कौन हैं | जब आपको यह पता चल जाएगा कि आप कौन हैं, तो आपको यह पता चल जायेगा कि मैं कौन हूं, और मैं सिर्फ इतना ही चाहता हूं कि आप यह जान ले कि आप कौन हैं तो आप यह जान लेंगे कि मैं कौन हूं |

प्रश्न: इस दुनिया मे जहां सब कुछ इतने तेज़ी से बदल रहा हैं, आप तो बिलकुल वैसे ही हैं, बिना किसी परिवर्तन के, इतने सुन्दर और प्रिय | यह सब कैसे हैं गुरूजी?
श्री श्री रवि शंकर
: कुछ प्रश्नों पर आश्चर्य करना चाहिए, इसलिए यह प्रश्न नहीं हैं परन्तु यह वह हैं जिस पर आपको आश्चर्य करना चाहिए | प्रश्न बनाये जाते हैं या तोड़े मरोड़े जाते हैं लेकिन आश्चर्य बिलकुल सीधा होता हैं | इसलिए यह वह हैं जिस पर आपको आश्चर्य करना चाहिए |
आश्रम के लोगों ने प्रतिदिन भगवत गीता के कुछ श्लोकों मंत्रोचारण करना शुरू किया हैं| इसलिए मैं आपसे कहना चाहुंगा कि आप जहां भी हैं, भगवद गीता के कुछ श्लोको का पाठ प्रतिदिन करना शुरू करे | प्रतिदिन ३ से ४ श्लोको का पाठ करे और यदि आपको संस्कृत समझ नहीं आती तो भी कोई बात नहीं,सरल अनुवाद को पढ़ लेना भी पर्याप्त हैं |

यह हम पर निर्भर करता हैं कि कैसे हम दूसरों की प्रतिभा में से उनका सर्वश्रेष्ठ निखार सके

बैंगलुरू, ७ मई २०११

प्रश्न: गुरूजी जब आप कहते हैं कि किसी व्यक्ति को आत्मा का अहसास हो गया हैं तो, कृपया कर के यह बताए कि उन्हें क्या अनुभव होता हैं |
श्री श्री रवि शंकर : इस बात का अनुभव कि मैं सिर्फ शरीर नहीं हूं,, परन्तु मैं इस शरीर से कहीं अधिक विशाल हूं | इस जन्म के पहले भी मैं यही पर था और मेरी मृत्यु के उपरांत भी मैं यही पर रहूंगा | यदि किसी व्यक्ति को इसका एहसास हो जाए तो वह पर्याप्त हैं | परन्तु यह सिर्फ वे कह सकते हैं, दुसरे उनके लिए कोई राय नहीं दे सकते |

प्रश्न: प्रिय गुरूजी कृपया कर के बताये कि हम मानवो के रूप में आध्यात्मिक बनना चाहते हैं या हम आध्यात्मिक होते हुए मानव रूप मे स्वांग कर रहे हैं ?
श्री श्री रवि शंकर: दोनों -आध्यात्मिक होते हुए मानव रूप मे स्वांग करना जो फिर से आध्यात्मिक कोण में आना चाहता हैं,अपने स्वयं मे वापसी |
क्या आप को राधा शब्द का अर्थ पता है ?राधा का अर्थ हैं स्रोत मे वापसी | धारा का अर्थ हैं प्रवाह,स्रोत से प्रवाह को धारा कहते हैं | और जब धारा को दुसरे छोर से पढ़ते हैं, तो वह राधा हैं| जब जल का प्रवाह होता है तो उसे धारा कहते है और जब जल की अपने स्रोत के पास वापसी हो जाती हैं तो वह राधा है |

प्रश्न: प्रिय गुरूजी मेरा पुत्र दो वर्ष का हैं, वह अन्य लोगो के समक्ष असुरक्षित महसूस करता हैं | क्या बच्चे इतनी उम्र में ऐसा महसूस करते है? इससे कैसे निपटा जाए ?
श्री श्री रवि शंकर: बालक में असुरक्षा की भावना नहीं हो सकती | दो वर्ष का बालक इतना असुरक्षित हो ही नहीं सकता, यह आपका उसके लिए रक्षा का भाव हो सकता है |कभी कभी जब बालक कुछ महसूस करता हैं और कुछ कहता हैं तो आप अपने आपको काफी सुरक्षित कर लेते हैं | खास तौर पर दादा दादी का बच्चो पर बहुत असर होता हैं | दादाजी कहेंगे कि मेरे ६ महीने के पोते ने मेरी तरफ देख कर कहा कि “ दादाजी आज आप सैर के लिए न जाए और मेरे साथ ही रहे,” यह सब उसने अपने आँखों से कहां | शिशु को बोलना भी नहीं आता परन्तु दादाजी को लगता हैं कि वह सब कुछ कह सकता हैं | यह काफी हद तक सिर्फ आपकी कल्पना ही होती हैं |
यदि आपको लगता हैं कि आपके बच्चे में थोड़ी ईर्ष्या हैं, तो वह भाई बहिन के प्रति हो सकती हैं, यदि आपको ऐसा लगता हैं तो आप उनकी पीठ को थपथपाए और उनका और अधिक ध्यान रखे |

प्रश्न: गुरूजी मैने दो वर्ष पूर्व यस + कोर्स किया था और हाल मे मैने अपने पालको को बताया कि भीतर से मैं खाली और खोखला महसूस करता हूं और कुछ भी नहीं होने का अनुभव भी बताया | वे कहते हैं कि अब मैं किसी काम का नहीं रहा, मुझे उन्हें क्या कहना चाहिए ?
श्री श्री रवि शंकर: आप उन्हें कुछ नहीं कहे | सिर्फ उन्हें यह दिखाए कि आप बहुत कुछ कर सकते हैं | उनके दिल को अपने शब्द से नहीं बल्कि अपने कृत्य से जीते |

प्रश्न: गुरूजी तड़प कैसे दिव्य गुण है? तड़प में मुझे बहुत दर्द होता है |
श्री श्री रवि शंकर: तड़प ही इश्वर है !

प्रश्न: गुरूजी मुझे लगता हैं कि मैं स्वार्थी और चालाक लोगो से घिरा हुआ हूं , जो मुझसे सिर्फ कार्य करवा लेना चाहते हैं | इस दुनिया में मैं कैसे अपनी सरलता और सादगी को कैसे बरक़रार रख सकता हूं ?
श्री श्री रवि शंकर: सबसे पहले हर किसी व्यक्ति को चालाक और भ्रष्ट मत समझों | अन्यथा आप उन्हें उसी दृष्टि से देखेंगे ? उस तरह लोगो अंकित न करे, यहां तक यदि वैसे ही हो तो भी | आपका संकल्प और आपके विचार उन्हें और बुरा बना सकते है | लेकिन यदि आपका संकल्प अच्छा हैं तो जो लोग बुरे प्रतीत होते हैं, तो उनमे से भी कुछ अच्छा ही निखर के आयेगा | आज हमारे एक प्रशिक्षक ने श्रीनगर से फोन करके बताया कि उन्होंने ५० युवाओं का युवा नेतृत्व प्रशिक्षण शिविर का समापन किया | वे बता रहे थे कि युवाओं में बहुत अधिक बदलाव आया |समापन समारोह में जिले के कलेक्टर आये और उन्होंने कहां, “ कि यह तो चमत्कार है, यहां के युवाओं को क्या हो गया हैं ? इनमे इतना बदलाव कैसे आया”| युवा कह रहे थे कि आपने पहेले इस प्रकार का आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान नहीं किया और आप हमें कहते हैं कि हम यह और वह करते हैं, परन्तु हमें भीतर की शान्ति के बारे मे किसी ने शिक्षा नहीं दी |
इसलिए यह हम पर निर्भर करता हैं कि कैसे हम दूसरों की प्रतिभा में से उनका सर्वश्रेष्ठ निखार सके, अक्सर हम दूसरों की निंदा करते हैं और कहते हैं, “ तुम बिलकुल निकंमे हो”, परन्तु उस में कुछ अच्छे गुण भी होते हैं,इसलिए आपको उसमे आशा को जगाना होगा |अपने आस पास के लोगो में, दिव्य गुणों को निखारे और इसे अपना लक्ष्य बना लीजिए| मैं आपको अनुभवहीन बनने के लिए नहीं कह रहा हूं, इसलिए ध्यान रखकर, अच्छे गुणों को निखारे |

प्रश्न: ऐसा कहा जाता हैं कि जीवन चेतना की क्रीड़ा और प्रदर्शन हैं | चेतना को क्रीड़ा करने की क्या आवश्यकता हैं?
श्री श्री रवि शंकर: प्रकृति क्रीडा हैं | जब आप खुश होते हैं तो आप क्या करते हैं, आप खेलते हैं | जब आप खेलते हैं तो आप की कोई आवश्यकता नहीं होती हैं|इस लिए आप खेलते हैं | जब आपकी अनेक जरूरते होती हैं, तो आप सिर्फ कार्य करते रहते हैं | जब आप के पास खाली समय होता हैं तभी आप खेल सकते हैं| जब आपकी सभी जरूरते पूरी होती हैं तो खेल आपके जीवन का हिस्सा बन जाता हैं | चेतना सम्पूर्णता हैं और क्रीड़ा करना उसका स्वभाव हैं | क्रीड़ा करना दिव्यता का स्वभाव होता हैं |

प्रश्न: गुरूजी पर्यावरण आज सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा हैं, हम उसका ध्यान रखने के लिए क्या कर सकते हैं?
श्री श्री रवि शंकर: पर्यावरण का ध्यान रखना आर्ट ऑफ लिविंग का बड़ा लक्ष्य हैं |वृक्षारोपण करे, कम से कम प्लास्टिक का उपयोग करे, यदि संभव हो सके तो प्लास्टिक का उपयोग ही न करे और विकल्प में कपड़े का थैलों का उपयोग करे | यह सब बहुत ही उचित बातें हैं जिनकी जानकारी होना आवश्यक हैं | आपने इसके बारे में बेसिक कोर्से में सुना था और आप इसे अब वैसे भी कर ही रहे हैं |
पर्यावरण को स्वच्छ रखे, यदि आप लोगों को सड़को पर गन्दगी करते हुए देखे तो आप उन्हें समझाए | यदि आप के पास खाली समय हो और आप को कहीं गन्दगी देखे तो आप वहां खड़े होकर कुछ और लोगो को बुलाये उर उनसे कहे “चलो इस जगह को साफ कर देते हैं”, इस तरह से कुछ करते रहे |

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चेतना में ज्ञान संरचित होता हैं !!!

४,मई, २०११, बैंगलुरू आश्रम


प्रश्न: लोगो को मुझ से बहुत अपेक्षाये है, इसके लिए मैं क्या करू ?
श्री श्री रवि शंकर
: यह उनकी समस्या है, आप अपनी योग्यता का १०० प्रतिशत प्रयास करे, और उसके लिए जो भी कर सकते है, उसे करे , और फिर भी यदि कोई और अपेक्षा करे तो यह उनकी समस्या है|

( श्री श्री ने श्रोताओ से भगवत गीता को सीखने में उनके प्रगति के बारे में प्रश्न किया | फिर श्रोताओ ने सातवें अध्याय के श्लोको का मंत्रोचारण किया, और श्री श्री ने उनके अर्थ पर प्रकाश डाला )
जब कोई योगी निद्रा में होते है, तो हर कोई जागता है| और जब हर कोई निद्रा में होते है, तो योगी जागते है | यह बात भगवान श्री कृष्ण भगवत गीता में कही है | क्या आपने इसे पहेले सुना है ? इसका क्या अर्थ है? इसका सरल अर्थ है, जब हर कोई उत्तेजित और चिंतित होता है,कि क्या होने वाला है तो योगी आरामपूर्वक विश्राम करते है | योगी जानते हैं कि सबकुछ उत्तम और जन सामान्य के लिए अच्छा ही होगा | योगी में यह विश्वास होता है | और जब सब कोई निद्रा में होते है और योगी जागते है का अर्थ है, योगी जीवन के सत्य के बारे में सचेत होते हैं, जब हर कोई निद्रा में होते हैं| यह कोई विचार नहीं करता कि उसका अंत क्या होगा, वह कहां पर जायेगा, जीवन क्या है, और मैं कौन हूं | जब इनमे से कोई भी प्रश्न लोगो के मन में उत्पन्न नहीं होते है तो वे निद्रा में है|
लोग सिनेमा देखने मे और विडियो गेम खेलने मे लुप्त हो गए हैं | ऐसे भी कई लोग हैं जो वृद्ध अवस्था मे विडियो गेम खेलने की शुरुवात करते हैं | व्यक्ति यह नहीं देख रहा हैं कि मृत्यु निकट आ रही हैं | वह यह सोचता ही नहीं हैं कि कैसे उसने अपने मन मे इतनी लालसा और घृणा को एकग्रित करके रखा हैं | और वह अपने मन को साफ और स्वच्छ करने के लिए कुछ नहीं करता | यदि आप इन मन के संस्कारो की सफाई नहीं करते हैं तो फिर आप को वही मन और संस्कार मृत्यु के बाद भी ढोने होंगे |
जब आप की मृत्यु होती हैं तो आपका मन खुश और आनंदमयी होना चाहिए | जो कोई भी ऐसी निद्रा में होता है तो वह अपने भीतर मन में कचरा एकाग्रित कर रहा होता है | परन्तु योगी सतर्क और सचेत होते हैं और वे अपने मन में किसी का भी बाहरी कचरा नहीं लेते | उस आदमी ने मुझे ऐसा क्यों कहां ? उस महिला ने मुझे ऐसा क्यों कहां ?
आपका मन पूरी तरह से दूसरों की त्रुटियों के बारे में सोचने मे नष्ट हो जाता है | दूसरों की त्रुटियों को उनके पास ही रहने दीजिये | उनसे उन्हें ही निपटने दीजिये | आप अपने मन और त्रुटियों से निपटे, वही काफी है | क्या आप मे दूसरों की गलतियों को स्वीकार करने का धैर्य है? आपको दूसरों की गलतियों को स्वीकार करना चाहिए और फिर आपसे जितना हो सके उन गलतियों को सुधारे | यदि आप अत्यंत दयालु है, तो ही उसे सुधारे| यद्यपि उसे प्रकृति पर छोड़ दीजिये, उन्हें अपना मार्ग मिल ही जायेगा| परन्तु यदि आप करुणामय है, तो उसे करुणा के साथ सुधारे, फिर वह आपके मन या मस्तिष्क पर हावी नहीं होगा |
आप कब क्रोधित या उदास होते हैं ? जब आपने किसी के कृत्य मे त्रुटियों को देखा | क्या आप इस तरह से किसी की त्रुटियों को ठीक कर सकते है ? उनके कृत्य मे त्रुटि थी परन्तु अब उसके बारे मे सोच कर आपका मन त्रुटिपूर्ण बन गया है | कम से कम अपने मन को तो संभाल कर रखे | यदि कोई गलत मार्ग पर चला गया है, तो क्यों आपका मन भी गलत मार्ग पर भटक जाना चाहिये ! ठीक है ? इसलिए वे कहते है कि और जब हर कोई निद्रा में होता है, तो योगी जागते है | और जब आप ऐसी निद्रा में होते है तो आप अपने मन के भीतर दूसरों का कचरा एकाग्रित कर लेते है | परन्तु योगी ऐसा नहीं होने देते | वे अपने मन की ताज़गी बनाये रखते है |


प्रश्न: परिवर्तन सतत होता रहता हैं | क्या भगवत गीता का ज्ञान भी इस सदी के लिए बदल जाएगा ? क्या कोई नवीनतम ज्ञान का उदय होगा ?
श्री श्री रवि शंकर
: हां जैसे आपका मन खिल जाता हैं, वैसे ही ज्ञान के नवीन स्वरुप आप में खिल उठते हैं | चेतना में ज्ञान संरचित होता हैं |

( श्री श्री ने सातवें अध्याय के अर्थ को पुनः समझाना प्रारंभ किया )
आपका मन कहां आकर्षित होता हैं ? वह सुंदरता, प्रकाश और शक्ति के ओर आकर्षित होता हैं | भगवान श्री कृष्ण कहते हैं, कि जिसमे भी तुम्हारा मन आकर्षित हो, उसमे मुझे देखो | यदि कुछ सुंदर हैं तो वह इसलिए सुन्दर हैं क्योंकि उसमे जीवन हैं, और वही चेतना हैं | इसलिए मन स्तोत्र मे चला जाता हैं| भगवान श्री कृष्ण कहते हैं:सूर्य का प्रकाश मैं हूं| मैं जल की तरलता हूं | पृथ्वी की सुगंध मैं हूं | अग्नि मे अग्नि मैं ही हूं |
हम सूर्य समान पदार्थ से बने होते हैं | यदि सूर्य न हो तो पृथ्वी नहीं होगी और यदि पृथ्वी नहीं होगी तो आप नहीं होंगे |
यदि आप आज क्वांटम भौतिक विज्ञानिक से बात करेंगे तो वह भी यही बात कहेंगे कि सबकुछ एक ही तरंग से बना हैं |
यही बात भगवान श्री कृष्ण ने कही : मैं हर किसी मे जीवन हूं |
अपने मन के भीतरी गहन मे जाकर उस प्राण शक्ति को देखे जो हम सब हैं |
मैं ही जीवन मे हूं |
जीवन भगवान हैं |भगवान कुछ जीवन के बहार नहीं हैं | जीवन दिव्यता हैं |
शरीर के भीतर जीवन दिव्य हैं| फिर मन किसकी कामना करता हैं? यह सुख, वह सुख | इस क्षण मे जीवन पर ध्यान दे | सिर्फ मेरा ही जीवन भगवान नहीं हैं | हर जगह जीवन मे वही आत्मा हैं |
भगवत गीता का सातवां अध्याय अत्यंत सुन्दर हैं |
भगवत गीता मे, प्रत्येक अध्याय एक एक कर के प्रकट होते हैं |
विषद योग के अध्याय मे अर्जुन अत्यंत बैचैन और कांपते हुए दिख रहे हैं |
सांख्य योग मे भगवान कृष्ण अर्जुन को कहते हैं, जाग जाओ – तुम्हारी आत्मा को कुछ नहीं हुआ हैं | खुशी और दुःख आते जाते रहते हैं |
कर्म योग मे भगवान कृष्ण अर्जुन को कर्म करने के लिए कहते हैं |वे कहते हैं कर्म के बिना तुम कुछ भी नहीं कर सकते | यहां तक यदि तुम्हे खड़ा होना या बैठना हैं, तो भी कर्म आवश्यक हैं| इसलिए कुछ करो |
कर्म योग के बाद ज्ञान योग हैं, जिसमे बताया गया हैं कि आप जो भी कार्य कर रहे हैं उसे समझ लिजिये |
ज्ञान और कर्म योग के उपरान्त ध्यान योग हैं, जिसमे भगवान कृष्ण कहते हैं, कृत्य करने के पहेले ध्यान करे और कृत्य समाप्त होने के उपरान्त भी ध्यान करे |
इस प्रणाली से प्रत्येक अध्याय एक एक कर के प्रकट होते हैं |

सहजता और सरलता का अभाव ही अहंकार है!

प्रश्न: अच्छे और बुरे कर्म में क्या अंतर है?
श्री श्री रवि शंकर:
कर्म को अच्छा बुरा title हम देते हैं। तनाव से जो करते हैं वो कर्म सब बुरे हैं। प्रसन्न चित्त से जो भी करते हैं वो सब अच्छे हैं। एक बार की बात है - बोद्धिसत्व गए चीन। तो चीन के चक्रवर्ति स्वागत करने आए, बोले "हमने इतने तलाब खुलवाएं हैं, यह सब किया है, अन्न दान किया है, यह किया है, वो किया है।" यह सब सुनने के बाद बोद्धिसत्व ने कह दिया तू तो नर्क जाएगा। यह कोई अच्छा कर्म है! क्यों? मैं कर रहा हूँ। मैं कर्ता हूँ! यह कर्तापन से किया है। तनाव से किया है। अहंकार से किया है। सो वो अच्छा कर्म ही क्यों ना हो वो बुरा ही तुम्हारे लिए बन जाता है।



प्रश्न: गुरुजी अहंकार क्या है और उसे कैसे मिटा सकते हैं?
श्री श्री रवि शंकर
: अपने आपको इस समष्टि से अलग मानना ही अहंकार है। औरों से अपने आप को अलग मानना। मैं बहुत अच्छा हूँ, सबसे अच्छा हूँ यां सबसे बुरा हूँ। दोनो अहंकार है। और अहंकार को तोड़ने की चेष्टा ना करो। ऐसा लगता है, उसको रहने दो। ऐसा लग रहा है मुझ में अहंकार है तो बोलो ठीक है, मेरी जेब में रह जाओ! कोई बात नहीं! वो अपने आप सहज हो जाएगा। सहजता का अभाव ही अहंकार है। सरलता का अभाव अहंकार है। अपनापन का अभाव अहंकार है। आत्मीयता का अभाव अहंकार है। और इसको तोड़ने के लिए सहजता, आत्मीयता, माने अपनापन, सरलता को जीवन में अपनाना पड़ेगा।



प्रश्न: अगर किसी करीबी का निधन हो जाए तो उनकी आत्मा की शांति के लिए क्या कर सकते हैं?
श्री श्री रवि शंकर
: तुम शांत हो। जैसे तुम शांत होते हो, प्रेम से भर जाते हो, भजन में एक हो जाते हो, ज्ञान में एक हो जाते हो, ज्ञान में उठ जाते हो, तो जो व्यक्ति उस पार चले गए हैं उनको भी बहुत अच्छा लगता है। अभी आप यहाँ बैठ कर ध्यान कर रहे हो, किए हो, सबका असर सिर्फ़ आप तक नहीं है, उन तक भी पहुँचता है जो उस पार चले गए।



प्रश्न: हम हमारी सहनशीलता को कैसे बड़ा सकते हैं?
श्री श्री रवि शंकर
: फ़िर वही बात! सहनशीलता मुझमें नहीं है जब मान के चलते हो तो वैसे हो जाएगा। हमारी दादी माँ कहा करती थी कभी कोई चीज़ नाकारात्मक नहीं बोलना। क्यों। कहती थी कुछ देवता घूमते रहते हैं उनका नाम है अस्तु देवता। वो बोलेंगे तुम कुछ कहोगे - तथास्तु। मानलो घर पर मिठाई नहीं है तो कभी नहीं कहती थी मिठाई नहीं है। कहती थी बाज़ार मिठाई से भरा हुआ है चलो बाज़ार चलते हैं। शब्दों में भी वो यह नहीं कहती थी कि मिठाई खत्म हो गई है। कहदोगे तो पता नहीं कहाँ अस्तु देवता घूम रहे होंगे तो तथास्तु कह देंगे। फ़िर खत्म ही रहेगा सब। इस तरह काजु चाहिए हमे, काजु भरा हुआ है बाज़ार चलते हैं!

उस पीढ़ि के लोगों में कितना विश्वास था मन में। और यह बात सच भी है। वैज्ञानिक तौर से भी सही है। हम जिसको नहीं समझ के मानते है वैसा होता है। आभाव को मानोगे तो अभाव ही रहता है। कई लोग बोलते हैं पैसा नहीं है हमारे पास तो अस्तु देवता बोल देंगे तथास्तु ऐसे हो जाए। तो जिन्दगी भर वही नहीं नहीं गीत गाते चले जाते हैं। तो कभी भी तृप्ति नहीं होती। एक समृद्धि का अनुभव करो, महसूस करो। मेरे पास सब कुछ है। फ़िर तुम्हारे पास होने लगता है। मेरे पास नहीं है, मुझ में प्यार नहीं है - फ़िर ऐसा ही लगने लगता है। मैं बहुत प्यारा हूँ। समझ कर चलो तो प्यार ही प्यार मन में झलकता है।


एक बड़े कंजूस व्यक्ति हमारे पास आए तो मैं बोलता हूँ तुम कितने उदार हो। तो एक बार हमारे पास आकर बोलते, "गुरुजी आप हमेशा बोलते हैं मैं उदार हूँ मैं उदार हूँ। मैं कहाँ उदार हूँ? मैं तो कितना कंजूस हूँ। मैं अपने पत्नि तक दस रूपय नहीं खर्चा करने देता हूँ। आप कैसे मुझे उदार बोलते हो? बच्चे जाते हैं काँगेस exibition में तो एक से दूसरी कैन्डी खरीद के देने में मुझे हिचकिचाहट होती है। मैं एक ही मिठाई खरीद के देता हूँ, और आप मुखे उदार बोलते हैं। ताकिं तुम उदर बन जाओ।
तो जिस भावना को अपने में उभारना चाहते हैं, उसको मानके चलना पड़ता है वो है हमारे में। उसको नहीं है मानकर चलोगे तो नहीं है हो जाएगा।
यह याद रखो, "काजु भरा है, बाज़ार चलते हैं!"


प्रश्न: गुरुजी, शादी में इतने प्यार के बावज़ूद भी झगड़े क्यों होते हैं?
श्री श्री रवि शंकर
: क्या कहें? हमे तो पता ही नहीं है! ना पता लगाने की चेष्टा करी मैने! हो सकता है कुछ जोड़ स्वर्ग में बनकर स्वर्ग से थक गएं हों, फ़िर नर्क में उतर आए हों, यां स्पेशल category में बने होंगे नर्क में।

देखो, हर संबंध में कभी न कभी, कुछ न कुछ, कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ भी होता है और ठीक भी होता है। तो हर परिस्तिथि में हम अपने मन को समझाएं, और थामे रहो तो सब चीज़े ठीक हो जाती हैं। देर सवेर सब ठीक हो जाता है।
विलायत में अभी किसी देश में एक ब्यासी साल का पुरुष, ८० साल की अपनी पत्नि पर कोर्ट में केस कर दिया। डाइवोर्स ले लिया और केस कर दिया ८० साल के बाद। ४० साल साथ रहे, ४०-४५ साल दोनो। आखिरी में केस क्यों कर दिया? जिस कुर्सी पर वो बैठता था रोज़, पत्नि वो कुर्सि नहीं देना चाहती थी! नहीं छोड़ना चाहती थी। बाकी सब डिविज़न हो गया, कुर्सी की बात पर कोर्ट में इतना बड़ा केस हो गया! आदमी का दिमाग बहुत विचित्र है! जिस से दोस्ती करता है उसी से लड़ता है। और जिससे लड़ता है फ़िर उसी से दोस्ती की प्यास में पड़ा रहता है। तो यह जीवन बहुत ज़टिल है, और ज़टिल जीवन के बीच में मुस्कुराते मुस्कुराते गुज़र जाना बुद्धिमानी है। सिर्फ़ व्यक्ति को ही देखते रहोगे तो अज्ञान में रग जाओगे। व्यक्ति नहीं है व्यव्हार। व्यक्ति के पीछे जो चेतना है, सत्ता है, उसको देखो तो वो एक ही चेतना है - इस व्यक्ति से ऐसा कराया, उस व्यक्ति से वैसा कराया, उस व्यक्ति से वैसा कराया। इस तरह से व्यक्ति से पीछे जो चेतना जिस के कारण सब है और सब होता है, उसको पहचानना ज्ञान है। समझ में आया यह।
हम सब को देखो तो हर व्यक्ति भीतर क्या है - Hollow and Empty. और जैसा विचार आया कुछ वैसा उन्होने व्यवहार कर दिया। उसका क्या कसूर है।


प्रश्न: क्या गुरु और ऋषियों से कुछ माँगना चाहिए?
श्री श्री रवि शंकर
: यह तो माँग ही लिया। कुछ उत्तर तो माँग ही लिया। जब माँग उठता है तो उठने के बाद ही तुम सोचते हो माँगना चाहिए नहीं माँगना चाहिए। उठ गया माँग। प्यास लग गया तो पानी की माँग उठ ही गई। पानी की माँग को ही प्यास कहते हैं। भूख को ही कहते हैं भोजन की माँग। माँग स्वभाविक है। माँग जब उठ जाता है तो उसके बाद तुमको पता भी चलता है उठ गया माँग! क्या? नहीं? अभी करना चाहिए नहीं करना चाहिए - बात ही नहीं। कर लिया। करने के बाद समझ में आया मैने माँगा है। वो सच्चा माँग भीतर से उठी है, एकदम गहराई से, आवश्यकता है। ऐसी आव्श्यक माँग पूरी होनी ही है। पूरी हो जाती है।



प्रश्न: बेसिक कोर्स में कहते हैं, "जो जैसा है उसे वैसा स्वीकार कर लें"। तो क्या इसका मतलब यह है कि भ्रष्ट नेताओं को भी स्वीकार कर लें जो अपने देश को बेचने पर तुले हैं?
श्री श्री रवि शंकर
: तीन तरह की दक्षता समझो - शारीरिक, वाचिक और मानसिक - कृत्य में, वाणी में और भावना में। जैसे कुछ लोग करते हैं - बोलते बहुत अच्छा हैं, मीठा मीठा बोलते हैं पर काम की बात हो तो काम तो करेंगे ही नहीं। यह क्या? वाणी में तो ठीक रहे मगर कृत्य में ठीक नहीं रहे। कई लोगों का मन बहुत साफ़ है, वह भावनाओं में ठीक रहते हैं पर जैसे मुँह खोलेंगे तो आग बरसता है। समाज में यह बहुत बड़ी समस्या है। व्यक्ति बहुत अच्छे हैं, काम भी बहुत अच्छा करते हैं पर जैसे मुँह खोलेंगे तो लोगों को लगता है कान बंद कर के भाग जाएं। और कुछ लोग काम ठीक ठीक कर देते हैं पर बोलते ठीक नहीं। और कुछ लोग काम भी ठीक करते हैं बोलते भी ठीक हैं पर मन खट्टा रहता है, भावनाएं ठीक नहीं रहती। विरले ही लोग मिलेंगे जिनमें भाव भी शुद्ध है, वाणी भी शुद्ध है और कृत भी समय पर है। कई बार आप टेलर को कपड़े देते हो वो अच्छी मीठी मीठी बातें करेगें, दीवाली से एक दिन पहले आ जाओ दे देंगें! उनके मन में कोई गलत भावना नहीं होगी, उनके मन में तुम्हे झूठ बोलने की यां थोका देने की कोई भावना नहीं होगी - भाव भी ठीक है, वाणी भी ठीक है मगर कृत में गड़बड़। कई लोग अपने कृत में गड़बड़ करते हैं। बोलते अच्छा हैं, भाव भी ठीक होता है पर तुम लोग क्या समझते हो उसने जानबूझ कर ऐसा किया - तब तुम्हारा भाव गड़बड़ हो गया। उसका कृत गड़बड़ हुआ और तुम्हारा भाव गड़बड़ हुआ - तुम दोनो एक ही नांव में हो। तीनो अंतर्कन की शुद्धि चाहिए - वाणी की शुद्धि चाहिए, कृत की शुद्धि चाहिए और भावना की शुद्धि चाहिए - तभी सिद्ध होगें - Perfection.

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