बैंगलुरु आश्रम, भारत
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गणेशजी निराकार दिव्यता
हैं – जो भक्त के उपकार हेतु एक अलौकिक आकार
में स्थापित हैं|
गण अर्थात समूह|
यह पूरी सृष्टि परमाणुओं और अलग अलग ऊर्जाओं का समूह है| यह पूरी सृष्टि बहुत उथल-पुथल
हो जाती, यदि कोई सर्वोच्च नियम इसके भिन्न-भिन्न संस्थाओं के समूह पर शासन नहीं कर
रहा होता|
इन सभी परमाणुओं
और ऊर्जाओं के समूह के स्वामी हैं गणेशजी| वे ही वह सर्वोच्च चेतना हैं जो सर्वव्यापी
हैं और इस सृष्टि में एक व्यवस्था स्थापित करती है|
आदि शंकर ने गणेशजी
के सार का बहुत ही सुंदरता से विवरण किया है|
हालाँकि गणेश जी की
पूजा हाथी के सिर वाले भगवान के रूप में होती है, लेकिन यह स्वरुप वास्तव में उस निराकार
परब्रह्म रूप को प्रकट करता है| वे ‘अजं निर्विकल्पं निराकरमेकम’ हैं| अर्थात, गणेश जी अजं (अजन्मे) हैं, निर्विकल्प (बिना किसी गुण
के) हैं, निराकार (बिना किसी आकार के) हैं और वे उस चेतना के प्रतीक हैं, जो सर्वव्यापी
हैं|
गणेशजी वही ऊर्जा
हैं जो इस सृष्टि का कारण है| यह वही ऊर्जा है, जिससे सब कुछ प्रत्यक्ष होता है और
जिसमें सब कुछ विलीन हो जायेगा|
हम सब उस कथा को
जानते हैं, कि कैसे गणेशजी हाथी के सिर वाले भगवान बने|
जब पार्वती शिव
के साथ उत्सव क्रीड़ा कर रहीं थीं, तब उन पर थोड़ा मैल लग गया| जब उन्हें इस बात की अनुभूति
हुई, तब उन्होंने अपने शरीर से उस मैल को झाड़ा और उससे एक बालक बना दिया| फिर उन्होंने
उस बालक को कहा कि जब तक वे स्नान कर रहीं हैं, वह वहीं पहरा दे|
जब शिवजी वापिस लौटे,
तो उस बालक ने उन्हें पहचाना नहीं, और उनका रास्ता रोका| तब भगवान शिव ने उस बालक का सिर
धड़ से अलग कर दिया और आगे चले गए|
यह देखकर पार्वती
बहुत हैरान रह गयीं| उन्होंने शिवजी को समझाया कि वह बालक तो उनका पुत्र था, और उन्होंने
भगवान शिव से विनती करी, कि वे किसी भी कीमत पर उसके प्राण बचाएँ|
तब भगवान शिव ने अपने
सहायकों को आज्ञा दी कि वे जाएँ और कहीं से भी कोई ऐसा मस्तक ले कर आये जो उत्तर दिशा
की ओर मुहँ करके सो रहा हो| तब शिवजी के सहायक एक हाथी का सिर लेकर आये, जिसे शिवजी ने
उस बालक के धड़ से जोड़ दिया और इस तरह भगवान गणेश का जन्म हुआ!
क्या यह कहानी
आपको विचित्र लगती है?
क्यों पार्वती
के शरीर पर मैल था?
क्या सब-कुछ जानने
वाले भगवान शिव ने अपने स्वयं के पुत्र को नहीं पहचाना?
क्या भगवान शिव, जो शान्ति
के प्रतीक थे, इतने गुस्से वाले थे कि उन्होंने अपने ही पुत्र का सिर धड़ से अलग कर
दिया? और भगवान गणेश के धड़ पर हाथी का सिर क्यों?
इन सबके पीछे एक
गहरा रहस्य है|
पार्वती प्रसन्न
ऊर्जा का प्रतीक हैं| उनके मैले होने का अर्थ है कि कोई भी उत्सव राजसिक हो सकता है,
उसमें आसक्ति हो सकती है और आपको आपके केन्द्र से हिला सकता है|
मैल अविद्या का
प्रतीक है, और भगवान शिव सर्वोच्च सरलता, शान्ति और ज्ञान के प्रतीक हैं|
तो जब गणेशजी ने भगवान
शिव का मार्ग रोका, इसका अर्थ हुआ कि अविद्या, जो कि मस्तिष्क का गुण है, वह ज्ञान
को नहीं पहचानता| तब ज्ञान को अज्ञान को जीतना पड़ता है| इसी बात को दर्शाने के लिए
शिव ने गणेशजी के सिर को काट दिया था|
और फिर एक हाथी
का सिर क्यों?
हाथी प्रतीक है
ज्ञान शक्ति और कर्म शक्ति – दोनों का|
एक हाथी के मुख्य
गुण होते हैं – बुद्धि और सहजता| एक हाथी का विशालकाय
सिर बुद्धि और ज्ञान का सूचक है|
हाथी कभी भी अवरोधों
से बचकर नहीं निकलते, न ही वे उनसे रुकते हैं| वे केवल उन्हें अपने मार्ग से हटा देते
हैं और आगे बढ़ते हैं – यह सहजता का प्रतीक है|
इसलिए, जब हम भगवान
गणेश की पूजा करते हैं, तो हमारे भीतर ये हाथी के गुण जागृत हो जाते हैं, और हम ये
गुण ले लेते हैं|
गणेशजी का बड़ा पेट
उदारता और पूर्ण सम्मति को दर्शाता है| गणेशजी का ऊपर उठा हुआ हाथ रक्षा का प्रतीक है
– अर्थात, ‘घबराओ मत, मैं तुम्हारे साथ हूँ’ और उनका झुका हुआ हाथ, जिसमें हथेली बाहर की ओर है, उसका अर्थ
है, अनंत दान, और साथ ही आगे झुकने का निमंत्रण देना – यह प्रतीक है कि हम सब एक दिन इसी मिट्टी में मिल जायेंगे|
गणेशजी के बहुत बड़े
दांत भी हैं, जिसका अर्थ है एकाग्रता| वे अपने हाथ में जो भी लिए हुए हैं, उन सबका
भी कुछ अर्थ है| वे अपने हाथों में अंकुश लिए हैं, जिसका अर्थ है – जागृत होना| और पाश – अर्थात नियंत्रण| जागृति के साथ,
बहुत सी ऊर्जा उत्पन्न होती है और बिना किसी नियंत्रण के उससे व्याकुलता हो सकती है|
और गणेशजी, हाथी
के सिर वाले भगवान क्यों एक चूहे जैसे छोटे से वाहन पर चलते हैं? क्या यह बहुत अजीब
नहीं है? फिर से, इसका एक गहरा रहस्य है|
एक चूहा उन रस्सियों
को काट कर अलग कर देता है जो हमें बांधती हैं| चूहा उस मन्त्र के समान है जो अज्ञान
की अनन्य परतों को अंदर तक काट सकता है, और उस परम ज्ञान को प्रत्यक्ष कर देता है जिसके भगवान
गणेश प्रतीक हैं|
हमारे प्राचीन
ऋषि इतने बुद्धिमान और तीक्ष्ण बुद्धि वाले थे, कि उन्होंने दिव्यता को शब्दों के बजाय
इन प्रतीकों के रूप में दर्शाया, क्योंकि शब्द तो समय के साथ बदल जाते हैं, लेकिन प्रतीक
कभी नहीं बदलते|
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गणेशजी का महत्व
सही निर्णय लेना!!!
३१
२०१२
अगस्त
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ब्राजील, दक्षिण अमरीका
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आपमें से
कितने लोगों को ऐसा लगता है कि आपने कुछ भी बुरा नहीं किया, फिर भी आपके बहुत से
शत्रु बन गए हैं?
लोग आपके
शत्रु बन जाते हैं| आपने उन्हें कोई नुकसान नहीं
पहुँचाया है, उनके साथ कुछ बुरा नहीं किया है लेकिन फिर भी वे आपके शत्रु बन जाते
हैं|
उसी प्रकार,
आपने किसी पर कोई विशेष उपकार नहीं किया है, लेकिन फिर भी वे आपके बहुत अच्छे
मित्र बन जाते हैं| है न?
आपमें से
कितने लोगों का ऐसा अनुभव रहा है?
देखा आपने, बस
इतना ही है, लोग किसी विचित्र कर्म से, किसी विचित्र नियम से आपके मित्र या शत्रु
बन जाते हैं| कोई बड़ा ही विचित्र नियम है जिसके
कारण अचानक मित्र शत्रु बन जाते हैं और शत्रु घनिष्ट मित्र बन जाते हैं| इसलिए, सभी मित्रों और शत्रुओं को एक टोकरी में डालकर, आप
मुक्त हो जाईये|
देखिये, आपके
मन को क्या विचलित करता है? या तो आपके मित्र, या शत्रु| ऐसा ही है न?
जब आप ध्यान
के लिए बैठते हैं, आप उन सबको एक तरफ रख दीजिए, अपने मित्रों को, शत्रुओं को, सबको!
उन सबको एक तरफ रख दीजिए, आराम से बैठिये और विश्राम करिये और मुक्त हो जाईये|
आप क्या कहते
हैं? क्या यह सही नहीं है!
जब आपका मन
तृप्त होता है, जब वह शांत और खुश होता है, तब उसे एक अत्यधिक विलक्षण शक्ति
प्राप्त होती है, यानि आशीर्वाद देने की शक्ति|
जब आप खुश और
तृप्त होते हैं, तब आप दूसरे लोगों को आशीर्वाद दे सकने में सक्षम होते हैं|
अगर आपका मन
उत्तेजित है, या आपके मन में बहुत सी इच्छाएं हैं, तब आप आशीर्वाद नहीं दे सकते| अगर आप आशीर्वाद देते भी हैं, तब वह उतनी भली-भांति फलीभूत
नहीं होता| इसलिए, समय समय पर हमें ये देखना
चाहिये, कि हम संतुष्ट हैं| जब आप संतुष्ट होते हैं, तब
आप सिर्फ अपनी इच्छाएं ही नहीं, बल्कि दूसरे लोगों की इच्छाएं भी पूरी कर सकते हैं|
प्रश्न : कृपया करुणा के बारे में बात करें|
श्री श्री
रविशंकर : जीवन में तीन बातें हैं, जो
महत्वपूर्ण होती हैं|
१.
जोश (passion)
२.
वैराग्य (dispassion)
३.
करुणा (compassion)
जोश ऐसा है,
मानो साँस अंदर ले रहें हैं, और वैराग्य ऐसा जैसे साँस बाहर फेंक रहें हैं|
कोई ये नहीं
कह सकता, कि ‘मैं केवल साँस अंदर लेना चाहता हूँ,
मैं साँस बाहर नहीं छोड़ा चाहता|’ असंभव!
इसलिए, साँस
लेना आवश्यक है और यही जोश है, जीवन की वस्तुओं के लिए|
फिर, वैराग्य
भी आवश्यक है| वैराग्य का अर्थ हुआ, सब कुछ छोड़
देने की क्षमता|
वैराग्य से
आपको शान्ति मिलती है और फिर करुणा आपका स्वभाव बन जाता है|
इसलिए, जब आप
काम करते हैं तब आपके अंदर जोश होना चाहिये, जब आप विश्राम करना चाहें, तब वैराग्य
होना चाहिये, और करुणा तो आपका स्वभाव है ही| बस इतना ही!
प्रश्न : ध्यान और विश्राम की क्या आवश्यकता है?
श्री श्री
रविशंकर : जब आप विश्राम करते हैं, तब आपके मन
का विस्तार होता है| क्या आपने ध्यान दिया है, कि जब आप
खुश होते हैं तब क्या होता है? आपके भीतर किसी चीज़ का
विस्तार होने लगता है|
और जब आप दुखी
होते हैं, तब क्या होता है? आपके अंदर कुछ सिकुड़ने लगता है|
तो जब आप शरीर
को विश्राम देते हैं, तब मन भी खिलने लगता है|
प्रश्न : कृपया आदान-प्रदान के बारे में बात करें|
श्री श्री
रविशंकर : आदान-प्रदान बहुत स्वाभाविक है|
मन की उच्च
अवस्थाओं में, आदान-प्रदान तो तात्कालिक होता है|
सिर्फ जब कोई संवेदनशील नहीं होता, तभी आदान-प्रदान संभव नहीं होता|
अक्सर लोग
सिर्फ बुरी बातें आपस में बदलते हैं| अगर आप किसी की निंदा करते
हैं, तब वे भी आपकी फ़ौरन ही निंदा करने को आतुर हो जाते हैं| अगर आप किसी का अपमान करते हैं, तो वे भी आपका तुरंत ही
अपमान करते हैं| लेकिन अच्छी बातों के लिए ऐसा नहीं
है| अगर आप किसी के लिए कुछ अच्छा करते हैं, तो कोई ज़रूरी
नहीं कि वे भी आपकी अच्छाई का बदला अच्छाई से करें| यह
सिर्फ तभी होता है, जब मन ऊंचे स्तर पर हो|
प्रश्न : मेरी शादी टूट रही है| मैंने और मेरी पत्नी ने अलग अलग
रास्तें चुन लिए हैं और अलग जीवन जीने का निर्णय लिया है| हम दोनों ही चाहते हैं, कि हमारा बच्चा सिर्फ हमारे साथ रहे|
ऐसे परिस्थिति में क्या करना बुद्धिमानी होगा?
श्री श्री
रविशंकर : बच्चे को दोनों ही रास्ते दिखाए
जाएँ, और उसे अपनी मर्जी से कुछ भी चुनने की अनुमति मिले| अगर पति-पत्नी में आपसी समझ नहीं है, तो निश्चय ही बच्चे के
लिए यह बहुत ही कष्टदायक है| दोनों माता-पिता को इस बात
का ध्यान रखना चाहिये, कि वे बच्चे के सामने सिर्फ एक दूसरे को दोष ना दिए जाएँ| बच्चे को माता या पिता, किसी एक भी विरोध में करना अच्छा
नहीं है| यह बहुत ही संकुचित दृष्टिकोण है|
प्रश्न : कृपया हमें बताएं कि मृत्यु क्या है?
श्री श्री
रविशंकर : मृत्यु को परिभाषित करने की
आवश्यकता नहीं है| यह एक बहुत ही स्वाभाविक घटना है| हमने जन्म लिया है, और हम एक दिन मरने भी वाले हैं|
जब हम इस
दुनिया में आये थे, तब जो काम हमने सबसे पहले किया था, वह था एक गहरी साँस अंदर
लेना, और फिर हम रोने लगे थे| और जो आखिरी काम हम जीवन
में करेंगे, वह होगा साँस बाहर छोड़ना और फिर बाकी लोग रोयेंगे|
अगर हम बाकी
लोगों को नहीं रुलाते हैं, तो इसका मतलब हमने अच्छा जीवन नहीं जिया है|
जब आत्मा शरीर
को पूरी तृप्ति के साथ छोडती है, भरपूर प्रेम और ज्ञान के साथ, तब वह वापस आने के
लिए बाध्य नहीं होती| तब वह अपनी इच्छा से वापस आती है|
प्रश्न : मैं यह कैसे जानूं कि मैं सही निर्णय ले रहा हूँ?
श्री श्री
रविशंकर : जब आप कोई निर्णय लेते हैं, तब आपको
अंदर से एक आभास होता है जो कहता है, ‘हाँ, ये सही है’|
एक बात जो
आपको जाननी चाहिये, कि अगर आप गलत निर्णय ले भी लेते हैं, तब भी आपका विकास ही
होता है| आप और अधिक मज़बूत हो जाते हैं, आप
अपने भीतर कहीं, उससे शिक्षा ले लेते हैं| इसीलिये, चिंता मत करिये|
प्रश्न : गुरुदेव, कभी कभी जो बात मुझे खुशी देती है, वह मेरे परिवार
और मित्रों की उम्मीदों के विपरीत होती है| ऐसी स्थिति में मैं क्या
करूँ?
श्री श्री
रविशंकर : हाँ, आपको दोनों में संतुलन करना
होगा| अपनी आनंद की खोज और दूसरे लोगों की
आपसे अपेक्षाएं; इन दोनों में संतुलन करना चाहिये| यह
थोड़ा नाज़ुक तो है, मगर आपको निश्चय ही प्रयत्न करना चाहिये|
प्रश्न : कृपया हमें यह बताईये, कि मनुष्यों के लिए सबसे बड़ी सीमा
क्या है?
श्री श्री
रविशंकर : शरीर की सीमा है, मन की सीमा है,
लेकिन आत्मा की कोई सीमा नहीं है| जब आप सोचते हैं, कि आप
शरीर हैं, तब आपकी सीमा है| तब आप सिर्फ उतना ही कर
सकते हैं| जब आप सोचते हैं कि आप मन हैं, तब
मन की भी कुछ सीमाएं होती हैं| लेकिन आपके प्रेम की कोई
सीमा नहीं है| आपकी चेतना की कोई सीमा नहीं है|
देखिये, एक
छोटे से सेल फोन से आप पूरी दुनिया तक पहुँच सकते हैं| आप सिर्फ एक सेलफोन से कितने भी फोन नम्बरों तक पहुँच सकते
हैं, हैं न?
उसी तरह,
हमारा मन जिसने सेलफोन का अविष्कार किया, वह एक सेलफोन से कहीं ज्यादा ताकतवर है| आपको सिर्फ उसे उपलब्ध कराना है|
प्रश्न : प्रिय गुरुदेव, कभी कभी मुझे लगता है कि मैं बहुत हठी हूँ| मैं अपने गुस्से और हठ से कैसे पीछा छुड़ाऊं? मैंने आर्ट ऑफ
लिविंग का कोर्स किया है और मैं अपनी साधना भी कर रहा हूँ|
श्री श्री
रविशंकर : एक बात पर तो आपको ध्यान देना
चाहिये, कि पहले भी आप हठी होते थे, लेकिन आप उसके बारे में सजग नहीं थे| अब कम से कम आप इस बारे में सजग तो हैं, कि आप गुस्सा कर
रहें हैं, अभिमान कर रहें हैं| यह सजगता तो है, ‘ओह! यह हो रहा है!’
इस सजगता का
होना अच्छा है| यह उससे बाहर निकलने का पहला कदम है|
दूसरा कदम है
कि आप अपने खुद के जीवन के बारे में थोड़ा विशाल दृष्टिकोण रखें|
आप जितना और
अधिक ज्ञान में आयेंगे, आप देखेंगे, कि ये सारे छोटे छोटे खेल जो हमारा मन खेलता
है, ये बिल्कुल ऐसे है, जैसे कोई छोटा बालक खेल खेलता है| जब आप ये देखेंगे, तब आपको इसका फ़र्क नहीं पड़ेगा, और आप इसे
स्वीकार करके इसके परे चले जायेंगे|
जब आप देखते
हैं कि आपका मन ऐसे है, जैसे एक छोटा बच्चा खेल रहा है, तब आप इसे एक विशाल
दृष्टिकोण से देख पायेंगे, एक बड़े नज़रिए से|
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दुनिया में सबसे कीमती वस्तु!!!
अपने स्वयं के जीवन पर दृष्टि दीजिये!!!
२५
२०१२
अगस्त
|
डरबन, दक्षिण अफ्रीका
|
ज्ञान
केवल एक सुखकर वातावरण में ही खिल सकता है,
जहाँ हम
अनौपचारिक हों, और एक दूसरे के साथ सहज महसूस करें| क्या आप सब एक दूसरे के साथ सहज महसूस कर रहे हैं?
क्यों
न हम सब सिर्फ एक क्षण निकालकर अपने बगल में,
हमारे
पीछे और हमारे आगे बैठे व्यक्तियों को अभिवादन करें?
एक औपचारिक
वातावरण ज्ञान के लिए बिल्कुल अनुकूल नहीं है|
हमें एक
अंतरंग, एक हृदय से दूसरे ह्रदय के बीच के वार्तालाप
के लिए आपस में अनौपचारिक होना पड़ेगा, और यही ज्ञान है| यह एक मस्तिष्क की दूसरे मस्तिष्क से बातचीत नहीं है|
एक मस्तिष्क की दूसरे मस्तिष्क से बातचीत में विवाद हो सकता है|
लेकिन
ह्रदय से ह्रदय का वार्तालाप केवल एक ही भाषा में होता है – पूरा विश्व एक परिवार|
अब आप
सब कुछ एक तरफ रख दीजिए, और केवल अपने जीवन की
ओर देखिये|
क्या है
जो आप अपने जीवन से चाहते हैं? क्या आपने कभी इस बारे
में बैठकर सोचा है, ‘मैं अपने जीवन में क्या
चाहता हूँ?’
हमें कभी-कभी
ही ऐसा करने का समय मिलता है| और ‘मैं कौन हूँ’ – ये भी हम नहीं सोचते|
किसी ने
हमें कुछ बताया और हमने वह रट लिया| हमने पढ़ाई करी और शिक्षा
प्राप्त करी, लेकिन ‘मैं कौन हूँ?’, ‘मुझे क्या चाहिये?’ – ये प्रश्न सिर्फ कभी कभी
ही हमारे मन में आते हैं|
अगर आप
अपने ६०,७० या ८० वर्ष के जीवन को देखेंगे, क्या आप जानते हैं कि आपने वे ८० वर्ष कैसे बिताए हैं?
आपने अपने
जीवन के ४० वर्ष तो सोने में बिताए हैं| करीब ८ साल आपने बाथरूम
और टॉयलेट में बिताए हैं, और इतना ही समय आपने खाने-पीने
में व्यतीत किया है|
१०-१५
साल ट्रैफिक में, यात्रा करने में और काम
करने में बीतते हैं| हमारे जीवन के केवल २-३
साल बचते हैं, जिसे हम ‘सुखी’ कहते हैं| ऐसा है कि नहीं?
और यही
तो है जो हम चाहते हैं – सुख!
दुनिया
भर के ग्रन्थ, प्राचीन काल से आधुनिक युग तक; ये सब परम आनंद की ही तो चर्चा करते हैं| है न? क्योंकि ये ग्रन्थ जानते
हैं कि आज पुरुषों और महिलाओं को केवल खुशी ही तो चाहिये|
खुशी या
सुख कोई ऐसी वस्तु नहीं है जिसे आप कहीं जाकर खरीद सकते हैं| आप जहाँ हैं, यह तो वहीँ मौजूद है, यहाँ, इस पल! और इस सुख को ढूँढने
का रास्ता है – ध्यान|
ध्यान
से हमारी सेहत अच्छी होती है, हमारे मन की स्थिति बेहतर
होती है और ज्यादा सुख मिलता है|
वह जो
भी है, जिसे हम यहाँ-वहां ढूँढ रहें हैं, वह तो यहीं हैं, हमारे भीतर|
मेरे यहाँ
आने का अभिप्राय केवल इतना ही है, आपको ये बताना - कि आप
जो भी ढूंढ रहें हैं वह आपके भीतर ही है, और वह प्रकाश, वह आत्मा आपको बहुत प्रेम करती है|
इसलिए
चिंता मत करिये|
मुझे अपनी
सारी परेशानियां दे दीजिए| मैं उन्हें आपसे ले जाने
के लिए ही आया हूँ| अपनी सारी चिंताएं यहाँ
छोड़ दीजिए, खुश हो जाईये,
और खुशी
फैलाईये|
क्या ये
हमारे जीवन का उद्देश्य नहीं होना चाहिये?
हमारा
क्या उद्देश्य होना चाहिये?
हर एक
किसी को झंझोड़ना और उनसे ये कहना, ‘अरे! उठो! हंसो और मुस्कुराओ!’
आपको लोगों
को खुश करना चाहिये|
आप जानते
हैं, कि जब हमारे पास ‘होता है’- तब भी हम दुखी रहते हैं,
और जब
हमारे पास नहीं होता है, तब भी हम दुखी रहते हैं|
मैं आपको
एक कहानी सुनाना चाहता हूँ|
केन्या
में रहने वाले एक भारतीय-अफ्रीकी प्रवासी लन्दन में थे;
ये बहुत
लंबे समय पहले की बात है, जब मैं वहां गया था| तो ये सज्जन मेरे पास आये और बोले,
‘गुरुदेव, मेरी इच्छा है, कि मेरे पास एक BMW गाड़ी हो| कृपया मुझे आशीर्वाद दें|’
मैंने
कहा, ‘अच्छा,
भगवान
की इच्छा हुई, तो तुम्हें वह मिल जायेगी’|
छह महीने
के बाद वे आये और मुझसे मिले| वे बहुत खुश थे, और बोले, ‘गुरुदेव, मुझे वो (गाड़ी) मिल गयी|
लेकिन
बिर्मिन्ग्हम की सड़के इतनी छोटी हैं, कि जब मैं उसे यहाँ-वहां
पार्क करता हूँ तो उसमें खरोंच तो आ ही जाती है|
इससे मुझे
बहुत परेशानी हो रही है| क्या करूँ?’
आप जानते
हैं, यहाँ के मुकाबले बिर्मिन्ग्हम की सड़के बहुत संकरी
हैं|
कुछ महीनों
के बाद, वे बोले,
‘गुरुदेव, इस गाड़ी के होने से मुझे बहुत तकलीफ हो रही है| मैं बहुत अभागा महसूस कर रहा हूँ|
मैं इस
गाड़ी को बेचना चाहता हूँ, लेकिन कोई खरीददार ही
नहीं है|’
आपके पास
नहीं था तब आप दुखी थे| अब आपके पास है, और आप दुखी है|
यानी, हम जिस तरह से जीवन को देखते हैं,
उसमें
ज़रूर कुछ गलत है| बस यहीं पर हमें वह ज्ञान
चाहिये, जिससे हम वापिस मुड़कर देखें और ये पाएं कि सुख
का सम्बन्ध इस से नहीं है, कि हमारे पास क्या है
और क्या नहीं है| बल्कि वह तो हमारे मन
की स्थिति पर निर्भर करता है|
क्या आप
जानते हैं, यूरोप की ३० प्रतिशत जनता आज अवसादग्रस्त है!
यह आंकड़ा
पिछले दशक की सेन्सस से प्राप्त हुआ है, अब तो ये कहीं ज्यादा
हो गया है| और भूटान जैसा छोटा सा देश सुखी होने के लिए
जाना जाता है| यहाँ तक कि बांगलादेश में भी कहीं ज्यादा सुखी
लोग हैं|
मैं नहीं
जानता कि दक्षिण अमेरिका इस सूची में कहाँ आता है,
लेकिन
मुझे ये आशा है कि आप सब जो आज यहाँ हैं, इस बात का संकल्प लेंगे
कि आप खुश रहेंगे और खुशी फैलायेंगे|
क्या यह
एक अच्छा आईडिया है? (सभी लोग हामी भरते हैं, और कहते हैं “हाँ”)
एक हिंसा-विहीन
समाज, रोग-मुक्त शरीर,
तनाव-मुक्त
मन, संकोच-मुक्त बुद्धि,
आघात-मुक्त
स्मृति और दुःख-मुक्त आत्मा| यह प्रत्येक इन्सान का
जन्म सिद्ध अधिकार है|
(गुरुदेव
कुछ पल के लिए बाहर झाँक कर देखते हैं और बाहर से आने वाले संगीत के शोर को सुनते हैं)
विकर्षण
होते ही इसलिए हैं, यह देखने के लिए कि आप
ज्ञान को पकड़ने के लिए कितने उत्सुक हैं|
संस्कृत
में एक कहावत है, ‘श्रेयंसी बहु विघ्नानी’, जिसका अर्थ है, अगर कोई वस्तु अत्यधिक
बहुमूल्य है तो उसे प्राप्त करने के मार्ग में बहुत से विघ्न या विकर्षण आते हैं ( उद्धवगीता का छंद - जिसे भगवान कृष्ण ने अपने भक्त उद्धव से कहा था)
अगर किसी
चीज़ को प्राप्त करने में बहुत से विघ्न आ रहें हैं,
तो इसका
मतलब वह बहुत मूल्यवान होगी|
यदि आप
कुछ गलत करना चाहते हैं, तो उसमें कोई विघ्न नहीं
आएगा| लेकिन अगर आप कुछ अच्छा करना चाहते हैं, या किसी मूल्यवान वस्तु को प्राप्त करना चाहते हैं, तो उसमें विघ्न आयेंगे|
यह विश्व
पाँच मूलभूतों से बना है| यही बात आज वैज्ञानिकों
ने भी कही है, और यही बात प्राचीन दिनों में ऋषियों ने कही
थी|
ये पाँच
भूत हैं – पृथ्वी,
जल, अग्नि, वायु और आकाश| इसीलिये इसे संस्कृत में प्रपंच कहते हैं| पञ्च अर्थात पाँच, प्रपंच माने पाँच भूतों
का एक विशेष संयोग, जिससे यह सृष्टि बनी है|
यही हमारे
शरीर के लिए भी सत्य है| हमारे शरीर में ६० प्रतिशत
जल है| शरीर में मौजूद गर्मी अग्नि तत्व को दर्शाती
है| यह भौतिक शरीर स्वयं में ही पृथ्वी तत्व का प्रतीक
है, और खाली जगह आकाश तत्व को दर्शाती है| तो इस तरह ये पाँच भूत हमारे पूरे शरीर को बनाते हैं, और इस पूरी सृष्टि को भी|
तो अब
हम एक छोटा सा ध्यान करेंगे, और ध्यान के बाद हम एक
छोटा सा यज्ञ करेंगे|
यज्ञ का
अर्थ है, ब्रहमांड के सिद्धांतों को सम्मिलित करना|
इस ब्रह्माण्ड
में सैकड़ों किरणें आ रहीं हैं| सूक्ष्म और स्थूल आपस
में जुड़े हुए हैं| यहाँ हर एक छोटी सी तितली
के पंख फड़फड़ाने से बादलों पर प्रभाव पड़ता है|
क्या आपने
इस बारे में सुना है?
आमज़न (Amazon) जंगल में सिर्फ एक तितली उस पूरे जंगल को प्रभावित कर सकती है, और चीन के बादलों को भी|
अगर एक
बन्दर कुछ करता है, तो उसका प्रभाव बहुत सारे
अन्य बंदरों पर भी पड़ता है| क्या आपने अफ्रीका की
इस बात के बारे में सुना है?
इसे अफ्रीका
में ‘BIG FIVE’ के नाम से जाना जाता है; पाँच बड़े जानवरों का देश (जिनका पैदल शिकार संभव नहीं है – सिंह, अफ़्रीकन हाथी, केप भैंस, चीता और गेंडा)|
हर जानवर
अपने साथ एक विशेष तरंग लेकर आता है; एक लौकिक विद्युत तरंग
जिसे वह अपने साथ पृथ्वी पर लेकर आता है| वे इस तरंग को ब्रह्माण्ड
से पृथ्वी तक लाने में माध्यम बनते हैं|
हर एक
पशु एक व्यक्तिगत और खास तरंग लेकर आता है|
और इसीलिये
हर एक पशु महत्वपूर्ण है|
वेदिक
समय के प्राचीन ऋषि इस बात को जानते थे| कोई भी पक्षी, यहाँ तक कि किसी विशेष तरह की बीज के साथ भी कोई न कोई तरंग
जुडी हुई है| इसलिए,
सब कुछ
एक दूसरे से जुड़ा हुआ है| जैसे हमारे शरीर में, हालाँकि हम केवल एक ही कोशिका से बने हैं, इस कोशिका में ३३ अलग अलग तरह के गुणसूत्र (chromosomes) हैं| और कोशिका के DNA के ये अलग अलग गुणसूत्र ही शरीर के अलग अलग भाग बनाने में सहायक
होते हैं| इस ब्रह्माण्ड में इतनी अलग अलग तरह की तरंगें
हैं, जो उसके भिन्न-भिन्न भागों से आती हैं| इसलिए, सूक्ष्म और स्थूल एक बहुत
ही विशेष प्रकार से आपस में जुड़े हुए हैं|
यही बात
प्राचीन लोगों ने भी कही| तो जब हम आकाश से वायु
में जाते हैं, फिर अग्नि,
जल और
फिर पृथ्वी तत्व में जाते हैं; तो इसी तरह सृष्टि बनी
है|
इसीलिये, उन्होंने यज्ञ की रूपरेखा बनायी|
(जहाँ हम
इसी प्रक्रिया को विपरीत दिशा में करते हैं,
हम जड़ी
बूटियाँ अर्पण करते हैं, जो पृथ्वी तत्व का प्रतीक
हैं, घी –
जल तत्व
का, इन सबको वायु तत्व के मौजूदगी में अग्नि तत्व
को अर्पण करते हैं – और यहाँ से तरंगें आकाश
तत्व में भेजी जाती हैं)
यज्ञों
को शान्ति लाने के लिए बनाया गया था|
यज्ञ का
लक्ष्य क्या होता है? पहला – स्वस्ति – अच्छी सेहत; फिर समृद्धि, मन की शान्ति, सुख, एकजुटता की भावना, और वातावरण में से नकारात्मकता को हटाना| जब भी आप नकारात्मक होते हैं,
तब आप
क्रोध, ईर्ष्या,
लालच, कुंठा और द्वेष की तरंगों का संचार करते हैं| यज्ञ इन सभी तरंगों का हनन कर देते हैं| इसलिए, अबकि बार मैंने सोचा है
कि इसे दक्षिण अफ्रीका में भी ले जाया जाए|
मैंने
हाल ही में अफ्रीका में हुई दुखद घटना के बारे में सुना,
जहाँ बहुत
से नाबालिग मारे गए|
इसलिए, पूरी जनता में खुशी,
शान्ति
और समृद्धि लाने के लिए हम एक छोटा सा यज्ञ करेंगे,
जिसमें
हम वेदिक मन्त्रों का उच्चारण करेंगे और कुछ विशेष जड़ी-बूटियाँ अर्पण करेंगे, जैसे कि हज़ारों साल पहले प्राचीन समय में होता था| तो आप वह भी देख सकेंगे|
यह एक
छोटी सी पूजा के समान है, जिसमें हम परमात्मा से
प्रार्थना करते हैं कि वे हमें शान्ति, समृद्धि, सुख, संतोष, एकजुटता, अपनापन और एक दूसरे के
लिए स्नेह प्रदान करें|
सबसे ज्यादा
ज़रूरी है, कि हमें वह आत्म-संतोष प्राप्त हो| आप जानते हैं, यदि हमें आत्म-संतोष हो, तो हमारे अंदर दूसरे लोगों को आशीर्वाद देने की अद्भुत क्षमता
आ जाती है|
न केवल
हम खुद की इच्छाएं पूरी कर पाएंगे, बल्कि दूसरों की इच्छाएं
भी पूरी कर पाएंगे| एक मानव की आत्मा में
ऐसी क्षमता आ सकती है, यदि वह संतोष की स्थिति
में आ जाये तो|
तो चलिए, अब हम एक छोटा सा यज्ञ करते हैं,
जिसमें
हम १०,००० साल पुराने प्राचीन मन्त्रों का जाप करेंगे| मन्त्र-उच्चारण के दौरान आप केवल अपनी आँखें बंद कर के बैठ जाएँ, सुनें, और मन्त्रों में स्नान
करें|
(गुरुदेव
सबको ध्यान कराते हैं)
प्रश्न : जय गुरुदेव! जीवन काल में यह एक अवसर प्रदान करने के लिये
धन्यवाद|
कृपया
कर के बताएं कि मुझे यह कैसे पता चलेगा कि मैं सही पथ पर हूँ और जीवन के उद्देश्य को
पूरा कर रहा हूँ?
श्री श्री
रविशंकर : कुछ ऐसा होता है जिसे
अंतर मन की आत्मा कहते हैं| आप के भीतर की गहराई से कोई आपको बताता है कि "यह ठीक है” और फिर जब आप उसका चुनाव करते हैं तो वास्तव में आपको उस के
लिये काफी अच्छा लगता है|
मैं तो
कहूँगा कि मन में तभी शंका आती है जब आपने कोई ठीक बात का चयन किया होता है| शंका सिर्फ सकारक बातों
के लिये होती हैं| क्या आपने इसे महसूस किया है?
हम व्यक्ति
की सिर्फ इमानदारी पर शंका करते हैं, लेकिन उसकी बेईमानी पर
शंका नहीं करते|
हम अपने
प्रियजनों से कहते हैं ‘क्या आप सच में मुझ से
प्रेम करते हैं?’ जब आप से कोई कहता है, ‘मैं तुम से प्यार करता हूँ’
तो आप
कहते हैं, ‘सच में?’
उसी तरह
हम अपनी क्षमता पर शंका करते हैं पर हम अपनी अक्षमता पर शंका नहीं करते|
यदि आप
से कोई पूछता है कि क्या तुम खुश हो तो आप कहते हैं,
मैं ठीक
से नहीं कह सकता| लेकिन जब आप निराश होते हैं तब आपने ऐसा उत्तर नहीं दिया होगा| आप अपनी निराशा पर पूरा
यकीन होता है|
आपको नकारक
बातों में पूरा यकीन होता है, लेकिन आप सकारक बातों
पर अक्सर प्रश्न करते हैं| इसलिये शंका यह दर्शाती है कि कुछ तो अच्छा भी है|
प्रश्न
: हमें इस जीवन काल में मोक्ष को कैसे प्राप्त कर सकते हैं और हम आस पास के नकारक लोगों
से कैसे छुटकारा पा सकते हैं?
श्री श्री
रविशंकर : मैंने आपसे कहा है कि
आप अपनी सारी समस्याएँ यहाँ पर छोड़ दें, लेकिन आप अपने परिवार
के उन लोगों को छोड़ ही नहीं रहे जो आपको परेशान कर रहे हैं| एक बार ऐसा हुआ कि मैंने
आश्रम में भी यही बात कही कि आप अपनी समस्याओं को यहीं छोड़ दें| तो एक महिला ने मुझ से
पूछा कि मेरी सास मेरी सबसे बड़ी समस्या है और मैं उन्हें यहाँ पर कैसे छोड़ सकती हूँ? मैंने उससे कहाँ कि यदि मैं आपकी सास से यह सवाल करूँगा तो वह
भी आपके बारे यही बात कहेंगी?
जीवन में
चुनौतियाँ होती हैं| चुनौतियाँ आती हैं और अलग अलग मानसिकता के लोग मिलते हैं इसलिये
आपको अपना दृष्टिकोण बड़ा करना होगा और जीवन को एक बड़े दृष्टिकोण से देखना होगा, फिर आप लोग इन छोटी छोटी बातों को छोड़ देंगे जो फिलहाल आपको
महत्वपूर्ण लग रही हैं| आपको अपने दृष्टिकोण को बड़ा करना होगा|
यदि आपको
लगता है कि कुछ लोग नकारक हैं तो उनसे कुछ दूरी रखें सबसे पहले| फिर यह जान लें कि वे
हर समय वैसे ही नहीं रहेंगे| समय के साथ वे भी बदल जायेंगे| और तीसरा विकल्प यह सोचना
होगा, ‘उन्हें रहने दो’|
वे मेरे
भीतर के कौशल में निखार लायेंगे| वे वार्तालाप के कौशल में निखार लायेंगे, ऐसे कौशल जो आपको अपने पैर जमाने में काम आयेंगे| फिर सब से अंतिम बात होगी
कि सब कुछ भगवान पर छोड़ दें| भगवान को सब कुछ ठीक करने के लिये छोड़ दीजिये|
हमने महात्मा
गांधी के सबसे प्रिय भजन में इसे सुना है,
‘इश्वर
अल्लाह तेरो नाम, सबको सन्मति दे भगवान| सबका मन और बुद्धि शुद्ध
हो और वह सही दिशा की ओर अग्रसर रहे| यही बात गायत्री मंत्र में भी है, धियो॒ योनः॑ प्रचो॒दया॑त्| काश भगवान मेरी बुद्धि
को प्रेरणा दे|
मेरी बुद्धि
छोटी छोटी और बेकार विचारों और कल्पनाओं में न फँसे| यह बुद्धि भगवान की इच्छा
को दर्शाये|
गायत्री
मंत्र सबसे सुंदर मंत्र है जो इस समाज को मिला है जो भी यही कहता है कि मेरे विचारों
और बुद्धि में दिव्यता झलके| मेरी बुद्धि दिव्यता से जुड़ी रहे|
प्रश्न : एक व्यक्ति जो मेरे काफी करीब है वह निरंतर
मुझ से झूठ बोलता है और धोखा देता रहता है| यह उसके लिये उसके दूसरे
स्वभाव के जैसे है| वह झूठ भी बिलकुल सीधे चेहरे के साथ बोलता है| लोग ऐसा क्यों करते हैं
और इससे उनको क्या मिलता है? कृपया मदद करें, मैं अपना मन शांत रखना चाहता हूँ|
श्री श्री
रविशंकर : आपको यह याद रखना चाहिये
कि भगवान विनोद प्रिय है| यदि हर कोई आपके जैसा होता तो आप फोर्ड कंपनी के जैसे होते| यह संसार फोर्ड कंपनी
नहीं है जो एक ही प्रकार की कार बनाती है| यहाँ तक वे भी हर साल
नया मॉडल बनाते हैं| भगवान विनोद प्रिय है और वह सब प्रकार के लोग आपके आस पास रखता
है|
अपने स्वयं
के भीतर देखें आपमें भी कितने नकारक और सकारक गुण हैं?
आपमें
कैसे सुधार हो सकता है इसे आपको सोचना चाहिये और इसके लिये आप क्या कर सकते हैं| अन्य लोग आपके लिये
कैसे सुधरेंगे, यह उन पर ही छोड़ देना चाहिये| यदि आप उन्हें शिक्षा
देना चाहते हैं तो उसे करुणा के साथ करें| या उन्हें आर्ट ऑफ लिविंग
टीचर के पास ले जाएँ| टीचर उनमें बदलाव लाने में मदद कर सकते हैं| यदि आप में करुणा है तो
उनके लिये प्रार्थना करें कि उनका जीवन बेहतर बन सके और वह अधिक से अधिक ईमानदार बन
सकें|
लेकिन
जैसे मैंने पहले कहा इस संसार में सब तरह के लोगों की जरूरत है| वे इस संसार को रंगीन
बनाते हैं|
समझ गये? वे आपके भीतर के बटनों को दबाते हैं और आप में
कुछ भावनाएं उत्पन्न करते हैं और फिर आप देखें कि आप उस पर कैसी प्रतिक्रिया देते हैं|
प्रश्न
: जय गुरुदेव! मैं चाहता हूँ कि आप युवा और आध्यात्म पर चर्चा करें|
श्री श्री
रविशंकर : हम सब तत्व और आत्मा से बने हैं| हमारा शरीर कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, अमीनो एसिड, विटामिन आदि से बना है और हमारी आत्मा उदारता, प्रेम, करुणा, ऊर्जा, फैलाव, अखंडता, ईमानदारी, सच्चाई, बुद्धि, संवेदनशीलता इन सभी गुणों से बनी हुई है|
वे सभी
कृत्य जो इन भीतर के गुणों (सुंदरता, प्रेम आदि) का पोषण करता
है, वह आध्यात्म है| ध्यान, गान, मंत्रोच्चारण और सेवा इत्यादि
आध्यात्म का हिस्सा है| और यह आध्यात्म ही है जो आपको युवा बना के रखता है| और आपमें ऊर्जा प्रदान
करता है|
मैं अभी
भारत से १५ घंटे की विमान यात्रा कर के आ रहा हूँ| मैं अभी यहाँ आया हूँ, फिर मैने आधे घंटे में अपने कपड़े बदले क्योंकि मुझे यहाँ आना
था|
क्या मैं
जेट लैग्ड या थका हुआ लग रहा हूँ ? (श्रोताओं ने कहा नहीं)
किसी ने
मुझ से पूछा, ‘गुरुदेव यदि हम केप टाऊन के लिये विमान लेते
हैं तो हम बहुत जेट लैग्ड महसूस करते हैं| आपको नहीं लगता| मैंने कहा, जब मन ताज़ा और स्रोत से जुडा हुआ रहता है फिर वहाँ सिर्फ ताज़गी
रहती है|
युवा युक्त
होना ही वह संबंध है जो स्रोत से जोड़ता है और युवा युक्त होना ही वह क्षमता है जो सब
से जोड़ती है|
और सिर्फ
आध्यात्म ही यह युवाओं में ला सकता है|
प्रश्न
: यदि आपका कोई अजीज गुजर जाता है, तो यह आम कहावत है कि
“वह हमेशा आपके साथ है”| क्या वास्तव में ऐसा होता है?
क्या वह
जो गुजर गया है सच में हमारे साथ होता है और हमेशा हमारा मार्गदर्शन करता है|
श्री श्री
रविशंकर : आप लोग उनको कुछ समय के लिए छोड़ क्यों नहीं देते? उन्हें इस दुनिया में बहुत कुछ मिला है और अब वे जा चुके हैं| उन्हें कुछ समय के लिए
आराम करने दो और फिर उन्हें वो करने दो जो वे चाहते हैं| उन्हें कुछ मजा करने दो| क्यों वे हमेशा आपका मार्गदर्शन
करते रहें?
मार्गदर्शन
करने के लिए है क्या? यह सब एक ट्रेन की तरह
है|
जब ट्रेन
रुकेगी तब आपको उतरना पड़ेगा| सब तय है| सब लोगों को एक दिन मरना है| जब आप मरेंगे तब आपको
वह दूसरा पहलु भी देखने मिलेगा| तो चिंता मत कीजिये|
अगर आप
खुश और शांतिपूर्ण है, तो यह शांति सीमायें पार
कर उस दुनिया में भी पंहुच जाती है| अगर आप प्यार और श्रद्धा से परिपूर्ण हैं तो इसका एक हिस्सा, एक किरण उन तक भी पहुँचती है और वे भी खुशी का अनुभव करते हैं| जब आप कोई अच्छा कार्य
या सेवा करते हैं, तो सेवा से योग्यता आती
है और योग्यता उनकी मदद करती है जो गुजर गए हैं|
प्रश्न
: आप महान हैं! हम विलम्ब को कैसे समाप्त कर सकते हैं?
श्री श्री
रविशंकर : मैं इसका उत्तर अगले वर्ष दूंगा| (हंसी)
कल्पना
कीजिये, आपने दर्जी को दीवाली के लिए कपडे सिलाने दिए
हैं, या अपनी शादी के लिए| आप शादी के एक हफ्ते पहले
आप दर्जी के पास जाते है, इस उम्मीद से कि कपड़े तैयार हैं, और दर्जी विलम्ब करके कहता है,
“मैं आपको
कपड़े ६ माह बाद दूंगा”, आपको कैसा लगेगा? आपके दिमाग की क्या दशा
होगी?
अब अगर
आपको एक डॉक्टर की जरुरत है क्योंकि आपके दांत में दर्द है, और आपका डॉक्टर कहता है,
“आप ३ माह
बाद आइये, मैं देखूंगा कि कुछ किया जा सकता है या नहीं
? तब आप क्या करेंगे?
आप डॉक्टर या दर्जी से विलम्ब नहीं चाहेंगे, और किसी भी आवश्यक सेवा
में विलम्ब नहीं चाहेंगे| आप चाहेंगे कि ये सेवाएं आपको निर्धारित समय में मिलें|
आपको अपने
प्रश्नों के उत्तर भी तुरंत ही चाहिए! सही है!
पर आप
खुद विलम्ब करते हैं| चलो, जागो, अब तो जागो|
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