२४
२०१३
जनवरी
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बैंगलुरु आश्रम, भारत
|
प्रश्न : गुरुदेव, कहा जाता है कि जीवन के अंतिम क्षणों में नारायण का
नाम जपने से मोक्ष प्राप्त होता है| क्या यह सत्य है कि इस जीवन का अंतिम कार्य हमारी
आगे की राह निर्धारित करने में सबसे महत्वपूर्ण होता है?
श्री श्री रविशंकर
: हाँ| यह
सत्य है| मृत्यु के समय ही मस्तिष्क शरीर से अलग होता है| इसलिए, उस समय जो भी छवि
इंसान मन में रखता है वह अगले जन्म का कारण बनता है| यह वैज्ञानिक सत्य है|
आप यह स्वयं
देख सकते हैं| यदि आप ध्यान दें, सुबह उठने पर जो आपके मन का पहला विचार होता है,
वह वही विचार होता है जो रात में सोने से पहले आपके मन में था|
अब आपका मन
किसी न किसी प्रकार के विचारों से इतना घिरा रहता है कि मृत्यु के समय आपको नारायण
नाम का जाप करना याद भी ना आये| इसी लिए पूर्वजों ने कहा है कि भगवान को याद करते
रहो उनका (नारायण) नाम ले कर| हर रात सोने से पहले उन्हें याद करो; जब आप स्नान
करो, भोजन करो तब भी, उन्हें याद करो और धन्यवाद करो प्राप्प्त हुए भोजन के लिए|
कुछ नया कार्य
शुरू करने से पहले, उन्हें स्मरण करें एक शुभ आरम्भ के लिए| प्राचीन लोग बहुत
ग्यानी थे और उन्होंने इसे एक प्रथा बना दिया था| इसलिए, जब कोई एक नयी दुकान खोलता
है, पहला काम जो उन्हें करना चाहिए वह है नाम स्मरण – भगवान का नाम स्मरण करना और
फिर वह अपनी दुकान शुरू करते हैं| यदि कोई कुछ नया खरीदता है तो उन्हें नारायण का
नाम लेना चाहिए और फिर आरम्भ करना चाहिए|
हम सब यह करते
हैं, है कि नहीं? हम यह आज भी करते हैं| यदि आप कोई परीक्षा लिखने जा रहे हैं, आप
ईश्वर को याद करते हैं और प्रार्थना करते हैं कि परीक्षा सरल हो और आप उत्तर सही
प्रकार से लिख पाएं| हर व्यक्ति प्रार्थना करता है, चाहे बच्चे हों, बड़े हो या
वृद्ध| पर वे भय के कारण ऐसा करते हैं| मैं कहूँगा कि भय के कारण नहीं बल्कि प्रेम
भाव से प्रार्थना करिये; एक गहरे आभार के भाव से| जब आप प्रेम और विश्वास के साथ
प्रार्थना करते हैं तब आप खिल उठते हैं|
कोई नया कार्य
करने से पहले भगवान का स्मरण करने में कठिनाई क्या है? आप ईश्वर का स्मरण किसी भी
नाम के जाप से कर सकते हैं| आप नारायण कह सकते हैं, जय गुरुदेव या ओम नमः शिवाय
भी| जो भी नाम आपको अच्छा लगता है, वही कहिये| नहीं तो आप हर तरह के गाने गाते
रहते हैं अपने दिमाग में स्नान करते समय, खाना खाते समयसमय, जैसे, “डफली वाले डफली
बजा”| एक डफली वाला आपके लिए डफली नहीं बजायेगा तो क्या बजायेगा? यह क्या कोई गाना
है? अब मैंने हाल के गाने तो नहीं सुने, मुझे वक्त नहीं मिला| पर कुछ गाने ऐसे
होंगे जिनका कोई अर्थ नहीं है| एक गाना है, “कोलावेरी डी”जो बहुत लोकप्रिय हो गया
है| बहुत लोगों को इस गाने का अर्थ तक नहीं पता| क्या आप जानते हैं उसका क्या अर्थ
है? तमिल में “कोलावरी डी” का अर्थ है, “मेरा मन कर रहा है किसी का खून करने का”|
क्या यह एक
उचित गाना है जिसका अर्थ है कि आप किसी का खून करना चाहते हैं? इसीलिए मैं कहता
हूँ, बस नाम स्मरण करिये| ओम नमः शिवाय, या ओमकार मंत्र का जाप करिये| जो भी आपको
पसंद है, उस नाम का भक्ति के साथ जाप करिये|
देखो, मैं
किसी गाने को नीचा नहीं दिखा रहा| यदि आप गाना चाहते हैं तो कोलावारी डी गाना भी
ठीक है, कोई बात नहीं| पर कभी कभी ऐसी आकर्षक धुन आपके दिमागे में चलती रहती है और
यह आप पर असर करने लगती है| यह अच्छा है कि बहुत लोगों को इस गाने का अर्थ नहीं
समझते| यदि वे जानते और उस अर्थ के साथ इसे गाते तो बहुत समस्या हो जाती| यह किसी
और भाषा में है, यह तमिल में है|
जब आप किसी
भजन का अर्थ जानते हैं और उसे भक्ति और आभार के साथ गाते हैं, उसका आपके जीवन पर
गहरा प्रभाव पड़ता है| हर शब्द का अपना स्पंदन होता है और जब आप अच्छे शब्द बोलते
हैं तो उनके स्पंदन में शक्ति होती है आपके मन को और जीवन को शुद्ध करने की|
जाप करने से
और सकारात्मक बातें बोलने से मन और शरीर दोनों ऊर्जित हो जाते हैं| इसीलिए मैंने
आपसे कहा कि नाम स्मरण करना चाहिए| ऐसा दिन में कम से कम दो बार करिये| जैसा मैं
कहा, दिन का पहला भोजन करने से पहले ईश्वर का नाम बोल कर उन्हें याद करिये|
मैं सबसे कहता
हूँ कि भोजन से पूर्व वे बोलें, “अन्नदाता सुखी भवः”| इसका अर्थ है कि जिसने मुझे
यह भोजन दिया है उसे शान्ति और खुशी का आशीर्वाद मिले| इस लिए, यह आशीर्वाद पूरे
दिल से दीजिए|
इस मंत्र के
जाप से आप प्रार्थना करते हैं कि घर की गृहणी जिसने यह खाना बनाया और परोसा है उसे
शान्ति और खुशी प्राप्त हो| और, जिस व्यापारी ने अनाज खर्रेड कर आपके घर तक पहुँचाया,
उसे भी आशीर्वाद मिले, और अंत में आप उस किसान को आशीर्वाद देते हैं जिसने यह अनाज
उगाया जिस से आपको भोजन प्राप्त हुआ| इस मंत्र के जाप से आप उसको भी आशीर्वाद देते
हैं| यह एक बहुत ही अच्छी बात है|
उसी प्रकार,
सुबह सबसे पहले, जब आप जागते हैं, कहिये, “ओम नमो नारायणा” या “ओम नमः शिवाय”| जब
कुछ गलत हो जाए, तो कहिये, “हे राम”|
यदि किसी की
मृत्यु हो जाये, जपिये, “राम नाम सत्य है”| भगवान का नाम याद करने में क्या कठिनाई
है? इस में कोई कठिनाई नहीं है|जब आप अपनी कार में बैठते हैं, तो पहले बोलिए, “ओम
नमो नारायण” और फिर बैठिये| जब कार से निकलें, तो नाम स्मरण करिये और फिर उतरिये|
इस तरह, नाम स्मरण आपकी आदत बन जायेगा, है ना? तो अपने आखरी क्षणों में, मृत्यु के
समय, जब प्राण आपके शरीर को त्यागने वाले हों, तब भी आप नाम स्मरण करेंगे क्योंकि
यह स्वाभाविक रूप से आपको आएगा, और यह आपको कई प्रकार से अप्प्का उत्थान करेगा|
प्रश्न : गुरुदेव, मैं जानना चाहता हूँ कि अपने आत्मिक विकास में मैं
कितना आगे बढ़ा हूँ| इन दिनों मैंने आपकी कार के पीछे दौड़ना बंद कर दिया है| क्या
इसका अर्थ है कि मेरा आत्मिक विकास हुआ है या मेरी आप के प्रति भक्ति कम हो गई है?
श्री श्री रविशंकर
: यह तो
केवल आप ही जान सकते हैं| जब एक बार आप इस पाठ पर आ जाते हैं तो आपका विकास ही
होगा| आप आगे ही बढ़ेंगे| देखिये, अपने विकास को इस से मत नापिए कि आप मेरी कार के
पीछे भाग रहे हैं कि नहीं| ऐसा कदापि नहीं करिये| आप कितने केंद्रित हो गए हैं? यह
देखना है आपको| आप जितने अधिक केंद्रित होंगे, उतने आप अग्रसर हुए हैं इस पथ पर|
आप जहाँ पर भी
हैं, वहीँ रुकिए और स्थिर हो जाइए| अपने मन को स्वयं पर वापिस लाइए| आपको यह याद
रखना है कि आप में भक्ति की कोई कमी नहीं है|ऐसा सोचना भी नहीं कि आप में पर्याप्त
भक्ति भाव नहीं है|
हाँ, कभी कभी
भक्ति छुप जाती है, पर ऐसा केवल कुछ समय के लिए होता है, जल्द ही यह फिर सामने आ
जाती है| भावनाएं सदैव समान नहीं रहतीं| हमारा भावावेश भी सदैव समान नहीं होगा|
उतार चढ़ाव आते रहेंगे| भावनाएं पत्थरों की भांति नहीं पानी की भांति होती हैं|
जैसे पानी में लहरें उठती हैं, वैसा ही भावनाओं के साथ होता है| भावनाएं कभी बढ़ती
हैंम कभी घटती हैं, और फिर से बढ़ती हैं| यह स्वाभाविक ही है| इसीलिए प्रेम और
लालसा हमेशा साथ चलते हैं| कभी आपको असीम लालसा होती है, और कभी आप प्रेम की प्रचुरता
अनुभव करते हैं और फिर असीम लालसा और प्रचुर प्रेम| यह जीवन में होता रहेगा|
प्रश्न : प्रिय गुरुदेव, आपने तीन प्रकार के भक्तों की बात की है|
क्या गुरु के भी विभिन्न प्रकार होते हैं?
श्री श्री रविशंकर
: हाँ|
निःसंदेह! इतिहास ने बहुत तरह के गुरु देखे हैं| वास्तव में वे सब अनुपम हैं और हर
कोई भिन्न है| कुछ ऐसे लोग हैं जिनमें राजसिक गुण अधिक है, कुछ तामसिक गुण है जबकि
कुछ अधिक सात्विक हैं|
उस दिन मैं
बता रहा था, बहुत पहले, १९८० की दशक में, जब मैं केवल २३ या २४ वर्ष का था, मैं एक
संत से मिलने गया दिल्ली के पास| उन संत ने मुझसे कहा, यदि सोना २४ रत्ती का हो तो
उस से आप गहने नहीं बना सकते| आपको उसमें ताम्बा या कुछ और मिलाना होगा, तभी उसके
गहने बनेंगे| वे बोले, “आप को कुछ मिलाना पड़ेगा|आप २४ रत्ती सोना नहीं हो सकते
नहीं तो आप सबके लिए उपकारी नहीं हो सकते|” मैं बोला, “नहीं बाबा, मुझे २४ रत्ती
ही रहने दीजिए| जो भी हो, होने दीजिए”| वे बोले, “आप बहुत शीघ्र लोकप्रिय हो सकते
हैं| आप कुछ तंत्र विद्या क्यों नहीं सीख लेते? कुछ आत्माओं का ज्ञान प्राप्त कर
लीजिए और फिर आप आत्माओं को वश में कर पायेंगे और कुछ चमत्कार कर पायेंगे” मैं
बोला, “मुझे यह सब करने की आवश्यकता नहीं है”, मैं जानता हूँ यह आपको सर्वोच्च तक
नहीं ले जाते|
तो, ऐसे लोग हैं
जो थोड़े बहुत ऐसे चमत्कार करते हैं, पर यह केवल कुछ समय तक ही रहता है| बाद में,
जिन आत्माओं से आप काम लेते हैं, वे आप से इसकी कीमत वसूल करती हैं| यह सब
क्षणभंगुर है, यह आपके साथ हमेशा रहने वाली वस्तु नहीं है| इसीलिए शुद्ध सात्विक
ज्ञान, अनुरूप ज्ञान ही उत्तम है, और अंततः साथ रहता है| उसमे कोई तमो गुण या रजो
गुण नहीं है| इसका असर स्थायी है, लंबे समय तक रहने वाला, और यह आपको उच्चतम स्तर
तक ले कर जाता है| उच्चतम से तनिक भी कम नहीं|
वह संत बहुत
अच्छे संत थे, ऐसा नहीं हैं कि वे बुरे थे| वे एक अच्छे इंसान थे| वे सत्तर साल के
लगभग आयु के थे और उन्होंने केवल एक राय दी थी| जब मैंने ना कहा, तो उन्होंने इसे
बहुत सराहा, वे बोले, “हाँ, यह अच्छा है”|
कदाचित वे मेरा
इम्तेहान ले रहे थे कि क्या मुझे लोभ दे कर कुछ करवाया जा सकता है|
प्रश्न : जब हम किसी को पहली बार मिलते हैं, मत और धारणाएं स्वभावतः
बन जाती हैं| हम किसी को पहली बार मिल कर ही पसंद कर लेते हैं और कुछ लोगों को
बिना किसी कारण नापसंद करने लगते हैं| ऐसा क्यों है गुरुदेव?
श्री श्री रविशंकर
: यह ऐसा
ही है| संसार स्पंदनों पे चलता है और हम सब स्पंदनों पे काम करते हैं| कुछ लोगो का
स्पंदन मनोहर होता है और आप आसानी से प्रतिक्रिया दिखाते हैं| कुछ और लोगों का
स्पंदन अरूचिकर होता है|
जब आप बहुत
केंद्रित होते हिनहिन, आपको कोई भी व्यक्ति नहीं मिलेगा जिसके साथ आपका घृणास्पद
स्पंदन हो, और कोई भी आपको अपने अपने केंद्र से हिला नहीं पायेगा| यह सबसे वांछित
अवस्था है, जहाँ कोई लालसा न हो ना ही कोई द्वेष| कोई घृणा नहीं, कोई विवशता नहीं,
कोई आकर्षण नहीं| तब सब कुछ मोहक लगता है| सारे लोग आपके साथ समन्वय में लगते हैं
और हर वस्तु आप से समन्वय में होती है| यह वो आंतरिक परमानंद है जो आपके चारों ओर
विस्तृत होता है|
प्रश्न : गुरुदेव, आपने कहा कि निद्रा का ज्ञान मुक्ति लाता है| इसका
क्या अर्थ है?
श्री श्री रविशंकर
: निद्रा
और स्वप्नों का ज्ञान आपको समाधि के एक अलग स्तर पर ले जाता है| यह ऋषि पतंजलि
द्वारा योग सूत्रों में बताई गई प्रविधियों में से एक है| महर्षि पतंजलि ने यह
सूत्र कहा है, “स्वप्नानिद्रग्यानालाम्बनम वा”|
यह एक समाधि
है जिसका उन्होंने उल्लेख किया है| यदि आपको ज्ञात हो कि कैसे निद्रा मन पर छा
जाती है, तो निद्रा और अनिद्रा की अवस्था के बीच, एक पूर्ण स्थिरता की चिंगारी
होती है| मैं केवल स्थिरता की चिंगारी कह रहा हूँ क्योंकि स्थ्रिता इतनी सजीव और
गत्यात्मक होती है| उसी की वे बात कर रहे हैं|
तो यदि आप गौर
करें, सोने से बस कुछ क्षण पहले, या जैसे ही आप नींद से उठते हैं, आप न पूरी तरह
जागे होते हैं न सोये और उस अंतराल में एक ख़ास शान्ति, चेतना का ख़ास स्वरुप होगा,
जो इतना सुन्दर, शीतल और आरोग्यकर होता है| उसी का उल्लेख है यहाँ|
प्रश्न : गुरुदेव, जब लालसा प्रबल हो जाये, तो उसका अंत क्रोध या कुंठा
में ही होता है| इसके साथ कैसे जूझें?
श्री श्री रविशंकर
: लालसा का
समावेश करने की आवश्यकता है, आपको गहरे ध्यान में जाना चाहिए| या, आप उसको कोई
रचनात्मक रूप दें, कोई कविता या लेख लिखें| लिखना सहायक होगा| आप जानते हैं, बहुत
से उत्तम काम लालसा से उपजे हैं, चाहे वो चित्रकारी हो, संगीत, अभिनय, साहित्यिक
रचना, ये सब गहरी लालसा से उभरे हैं| इस लिए, अपनी ललक को एक रचनात्मक दिशा दीजिए;
या उसका समावेश करिये, गहरे ध्यान में जाइए|
प्रश्न : गुरुदेव, कहते हैं की ताकत भ्रष्ट करती है| क्या आप कुछ
कहेंगे ताकत को कैसे संभालें?
श्री श्री रविशंकर
: ताकत
भ्रष्ट करती है यदि आपके इरादे ठीक नहीं हैं| जब आपके लक्ष्य ठीक नहीं हैं, आप
ताकत को भ्रष्ट रूप से पाने का प्रयत्न करते हैं| कुछ लोग कहते हैं ताकत एक विष
हैं| मैं आपसे सहमत हूँ कि यदि आप उसे अपने स्वार्थ के लिए उपयोग कर रहे हैं|
परन्तु, यदि आप ताकत सेवा के लिए उपयोग कर रहे हैं, तो यह एक साधन है| यदि आपका
उद्देश्य सेवा करना है, तो ताकत मात्र एक उपकरण है|
प्रश्न : गुरूदेव, जब सब कुछ अच्छा चल रहा है, तब आभारी महसूस करना
सरल है| जब हालात ठीक न चल रहें हो तब कैसे आभारी महसूस करें और आपकी कृपा को
पहचानें?
श्री श्री रविशंकर
: याद
करिये कैसे अतीत में कठिन समय आसान हो गए हैं| आप कठिन घड़ियों के बीच से आसानी से
निकल गए| यह आपको हौसला देगा और आप में और गहरा विश्वास जगायेगा|
प्रश्न : प्रोद्योगिकी सुख साधन लाती है, पर यह प्रदूषण भी बढ़ाती है|
सुख या पर्यावरण, उन्नति का मानदंड होना चाहिए?
श्री श्री रविशंकर
: यह
अनिवार्य नहीं कि प्रोद्योगिकी सदैव पर्यावरण के विरुद्ध हो| आज प्रोद्योगिकी अधिक
से अधिक पर्यावरण के अनुकूल होने की ओर बढ़ रही है| इसलिए, हम प्रोद्योगिकी भी ला
सकते हैं और साथ ही पर्यावरण को भी संभाल सकते हैं, पर पर्यावरण अत्यधिक
महत्वपूर्ण है| वह अधिक महत्वपूर्ण है|
प्रश्न : गुरूजी, यह कैसे सुनिश्चित करें कि कोई व्यक्ति हमें महत्व न
दे, किसी रिश्ते में?
श्री श्री रविशंकर
: इस बारे
में चिंता मत करो, यह स्वाभाविक है|
लोग आपको
महत्व नहीं देते क्योंकि उनको लगता है आप उनुनके अपने हैं| इसलिए, वे केवल उन
लोगों पर ध्यान देते हैं जो अतिथि हैं| आप परिवार का हिस्सा हैं, तो क्यों कोई
आपको कहे, “आपने कॉफी पी ली? क्या आप अब खायेंगे”? यह सामान्य नहीं है|
यदि कोई आपको
बहुत अधिक प्रश्न पूछे तो भी आप संदेह करेंगे, “ये मुझ पर इतना ध्यान क्यों दे रहे
हैं? अवश्य कुछ बात है”| आप संदेह करने लगते हैं|
एक दिन, एक
सज्जन मुझसे बोले, “गुरुदेव, जब मैं अपनी पत्नी का ख़याल रखता हूँ, और थोड़ा अच्छे
से पेश आता हूँ, तो वह संदेह करने लगती है, वह कहती है कुछ गड़बड़ है और मुझसे पूछती
है, “मामल क्या है? तुमने कुछ गलत किया होगा| तुम सच नहीं बोल रहे””| यदि मैं
सामान्य रहता हूँ, तो वह कहती है कि मैं उसे नज़रंदाज़ कर रहा
हूँ| क्या करूं गुरुदेव?” तो, जब कोई आप पर संदेह करना चाहता हैं तो हर स्थिति में
वे आप पर संदेह करेंगे| वे बोले, “बहुत कठिन है| यदि मैं आधा घंटा देर से आऊँ, तो
वह एक जांच आयोग की तरह बैठ जाती है, “तुम कहाँ गए थे? कार्यालय से कब निकले? क्या
हुआ?” वह मुझसे ये सब प्रश्न पूछती है”|
इसीलिए मैं
कहता हूँ, हमें अपने दिमाग को नियंत्रित करना सीखना होगा| द्दिमाग हम से कितने खेल
खेलता है| आपका दिमाग आपका सर्वोत्तम मित्र हो सकता है यदि यह आपके नियंत्रण में
है और आपका सबसे बड़ा दुश्मन यदि आप अपने दिमाग के नियंत्रण में हैं|
प्रश्न : गुरुदेव, भगवान कृष्ण जहाँ भी जाते थे, लड़ाई झगडे शुरू हो
जाते थे| परन्तु आप जहाँ भी जाते हैं, सारे मतभेद समाप्त हो जाते हैं|
श्री श्री रविशंकर
: हाँ, जब
लोगों को समाचार मिलता है कि मैं उनके शहर में आ रहा हूँ, यही बात इतने झगडे पैदा
कर देती है लोगों के बीच में|एक कहेगा, “गुरुवे मेरी कार में सफर करेंगे”, दूसरा
कहेगा, “गुरुदेव मेरे घर पर रहेंगे”| तीसरा कहेगा, “वे मेरे घर पर भोजन करेंगे”|
और इन सब बातों से झगडे होने लगते हैं|
पर मेरी
यात्रा के बाद, लोग अवश्य प्रसन्न हो जाते हैं| मैं सुनिश्चित करता हूँ कि मैं
उन्हें प्रसन्न कर दूं|
प्रश्न –
गुरुदेव, मैं अपने वैवाहिक रिश्ते को अगले स्तर पर कैसे ले जाऊं बजाय उसे एक
साधारण पति पत्नी के रिश्ते की तरह जीने के?
श्री श्री रविशंकर
: दोनों को
एक साथ आगे बढ़ना चाहिए और एक दूसरे का सहारा बनना चाहिए|
कभी कभी हो
सकता है कि एक साथी की रुचि अपने वैवाहिक रिश्ते में कम हो जाए, जबकि दूसरा साथी
अभी भी वह रिश्ता चाहता हो| तब ऐसा लग सकता है कि चीज़ें सुलझ नहीं रहीं| ऐसा हो
सकता है| पर तब भी, आपको एक दूसरे का साथ देना है| दोनों को एक साथ आगे बढ़ना
चाहिए|
|
क्या आपके जीवन का अंतिम कार्य यह होगा?
नर्क के तीन द्वार हैं
१२
२०१३
अप्रैल
|
मॉन्ट्रियल, कनाडा
|
प्रश्न :
प्रिय गुरुदेव, मैं किसी के द्वारा की गई सहायता और देखरेख के लिये उसका आभारी
कैसे हो सकता हूँ ? उसे ठेस पहुँचाये बिना उस से यह
कैसे कहूँ कि मैं अपने रास्ते खुद चलना चाहता हूँ ?
श्री श्री
रविशंकर :
युक्तिपूर्वक इसे करें | अब यह न पूछें कि युक्ति
क्या है ?
इस एक पद को
याद रखिये, यह बहुत उपयोगी है – नर्क के तीन द्वार |
नर्क के तीन
द्वार हैं – काम, लोभ और क्रोध | यदि लोभ हावी हो जाये, तो यह आप को नर्क में डाल देगा | इसलिये, लोभ को दूर फेंक दें |
बिल्कुल यही
काम और क्रोध के साथ है | यदि आप अति कामुक होते हैं
तो आप दूसरों की भावनाओं से इतने बेखबर हो जाते हैं कि आप सीमाओं का उल्लंघन कर
बैठते हैं | काम भी आपको नर्क में धकेल देता है |
इसलिये, काम, लोभ और क्रोध, ये तीनों आप के नियंत्रण में नहीं हैं, तो ये
आपको नियंत्रित कर लेंगें और आप नर्क में जायेंगें | यदि
ये आपके नियंत्रण में हैं तो आप सुरक्षित हैं
|
समझ गये न ?
अपने जीवन में
देखिये, क्या ये तीन चीज़ें आप पर हावी हो रही हैं ? यदि
हाँ, तो इसने आप के जीवन को अति दु:खमय बना दिया होगा | नर्क का क्या अर्थ है
? दु:ख; जो
आपको पूरी तरह अप्रसन्न कर दे | परंतु यदि ये आप के काबू
में हैं तो आप शक्तिशाली हो जाते हैं और यह आप के लिये अधिक प्रसन्नता लाता है |
प्रश्न :
गुरुदेव, आप कहते हैं कि यदि आप उन लोगों के बारे में अधिक सोचते हैं जिनसे कि आप
घृणा करते हैं, तो आप उनके जैसे ही बनने लग जाते हो | मैं
निरंतर उन लोगों के बारे में सोचता रहता हूँ जिन्हें कि मैं नापसंद करता हूँ और
मुझमें उन के लक्षण आते जा रहे हैं | मैं इससे कैसे बचूँ ?
श्री श्री
रविशंकर : मुझे
यही कहना है कि अनासक्ति के बिना कोई उन्नति सम्भव नहीं | यदि आप जीवन में उन्नति चाहते हैं तो अनासक्ति का होना
आवश्यक है |
अनासक्ति आपके
आपके मन में स्वतंत्रता लाती है | अनासक्ति आपको वर्तमान क्षण
में रखती है | अनासक्ति आपके चेहरे पर वो मुस्कान लाती है; आपमें वो
ऊर्जा और उत्साह भरती है |
आपने किसे पकड़
रखा है ? आप किसी से घृणा करते हैं ? किस लिये ?
दुनिया में
ऐसे लोग अवश्य होंगे, हमेशा ही होंगे | इस दुनिया के इतिहास में एक
भी समय ऐसा बताइये, जब कि बुरे लोग न रहे हों
? या ऐसे लोग न
रहे हों जो दूसरों को परेशान करते हों ? ऐसे लोग हमेशा से ही रहे
हैं, और दुनिया में ऐसे लोग आगे भी रहेंगे
|
अब, यदि आप
उन्हें अपनी दुनिया में रखना चाहते हैं, तो हम क्या कर सकते हैं ? यह आप ही हैं जो उन्हें अपने दिमाग में रख रहे हैं और ऐसा
होने दे रहे हैं | कोई दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई, हो
गई, आप को आगे बढ़ते रहना है | बैठ कर उसे चबाते नहीं रहना |
अनासक्ति का
अर्थ है अतीत को जाने देना, और यह समझ लेना कि हर चीज़ एक दिन खत्म होने वाली है,
हर कोई मरने वाला है; वो और आप भी मरने वाले हैं, इसलिये कम से कम अपने मन को तो
मुक्त रखिये |
समझ लीजिये कि
ये सब भिन्न भिन्न भूमिकायें निभाई जा रहीं हैं | कभी
कभी यह डरावनी फिल्म के समान होता है, तो क्या किया जाये ? इसका अर्थ यह नहीं है कि जब कुछ डरावना हो रहा हो तो आप
निष्क्रिय हो जायें | जब कोई डकैती हो रही हो, बलात्कार
हो रहा हो या फिर समाज में कुछ और बुरा हो रहा हो तो आप को इसे रोकने के लिये खड़ा
होना होगा |
आप को यह करने
की शक्ति कब मिलेगी ? जब आपके मन में अनासक्ति होगी | तब आप खड़े हो सकते हैं, अन्यथा आप ऐसा काम करेंगे, जिस से आप दु:खी होना शुरु हो जायेंगे | आप स्वयं ही अपराधी बन जायेंगे | एक अपराधी दूसरे अपराधी को नहीं मिटा सकता | आप अपराधी को मिटाने का यत्न करते हैं और दूसरे अपराधी बन
जाते हैं |
एक शिकार
दूसरे शिकार को नहीं बचा सकता | यदि आप अपने ही क्रोध के
शिकार हैं तो आप किसी और को कैसे बचा सकते हैं
? और यदि
अपराधियों को मिटाने के लिये आप स्वयं ही अपराधी बन जायेंगे तो आप स्वयं को सलाखों
के पीछे पायेंगे |
ऐसा बहुत से
लोगों के साथ हुआ है | बहुत से लोग जो कारावास
पहुँच जाते हैं, बहुत सही होते हैं | वे कहते हैं कि, “मैंने ऐसा
इसलिये किया, क्योंकि उसने मेरे साथ ऐसा किया था |”
नहीं! आँख के बदले आँख, दाँत के बदले दाँत से कुछ अच्छा नहीं होने वाला | ये सारी दुनिया को अँधा बना देगा | हमें अनासक्तिपूर्वक जागृत होना होगा और एक बेहतर समाज के
लिये काम करना होगा ; एक ऐसे समाज के लिये जो कि हिंसा-मुक्त हो और अधिक
आध्यात्मिक हो |
बिल्कुल वैसे
ही जैसे कि आप ने सारे समाज को साक्षर बनाया है | हर
कोई पढ़ना और लिखना जानता है | वे साइन बोर्डों को पढ़ सकता
है | कनाडा में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं
है जो साइन बोर्ड न पढ़ सकता हो | है कोई ऐसा ? नहीं |
कम से कम वे
साइन बोर्ड तो पढ़ ही सकते हैं, चाहे वो विद्वान न भी हों | वो पढ़ना और लिखना तो जानते ही हैं। मैं आध्यात्मिकता को भी ऐसे
ही चाहता हूँ |
हमें सही
प्रकार से खाना चाहिये, सही व्यवहार रखना चाहिये और लोगों के प्रति दयावान रहना
चाहिये | हमें इस दिशा में कार्य करना चाहिये | हो सकता है कि ऐसा 100% न हो, सभी लोग ऐसे न बन पायें, परंतु
समाज का एक बड़ा हिस्सा सदा के लिये परिवर्तित हो जायेगा, और यही काफी है |
मैं फिर से
कहता हूँ, हम ऐसे समाज का सपना देख सकते हैं, पर इसे वास्तविक बनाने में
समय लगेगा | एक अपराध-मुक्त समाज बहुत दूर की
बात है; इसमें समय लगेगा, पर कम से कम इस दिशा में हम कदम तो अवश्य ही बढ़ा सकते
हैं न।
प्रश्न : मैं
अपने प्रियजनों को खुले दिल से देता हूँ | पर अक्सर मैं अपना ध्यान रखने से पहले दूसरों
का ध्यान रखता हूँ, और फिर मैं पछताता हूँ और क्रोधित हो जाता हूँ | मैं स्वस्थपूर्ण ढंग
से किस प्रकार दे सकता हूँ ?
श्री श्री
रविशंकर :
देखिये, लगता है कि आप के पास काफी फालतू समय रहता है | आप इतना क्यों सोचते हैं
? आप देना
चाहते हैं तो दीजिये और इसे भूल जाइये!
हिन्दी में
कहावत है, ‘नेकी कर और दरिया में डाल’, जिसका अर्थ है कि अच्छे काम करके उन्हें नदी में डाल देना
चाहिये, उनके बारे में सोचना नहीं चाहिये |
आप सोचते हैं,
‘मैंने किया, मैंने किया’,
आपने क्या किया ? आप किसी को वो कुछ नहीं दे सकते जो
उसके हिस्से का न हो | यह असम्भव है | यदि आप देना भी चाहें और अभी उस व्यक्ति का वो लेने का समय न
हो तो वह इसे ले नहीं पायेगा | इसलिये आप दो और भूल जाओ |
आप बस सहज
रहिये, आप को इस विषय में अधिक सोचने की आवश्यकता नहीं है |
जब आपको किसी
चीज़ की जरूरत है तो दोषी महसूस करने की आवश्यकता नहीं है | जायें और इसे खरीद
लें | बस |
आप हमेशा सब
की सब इच्छायें पूरी नहीं कर सकते, परंतु आप जो भी कर सकते हैं, अवश्य करिये | तब आप यह नहीं कह सकते कि,
“नहीं, मैं नहीं करना चाहता |” तब यह आपको कचोटेगा |
यदि कुछ ऐसा
है जो आपके लिये सच में आवश्यक है और आप इसे दूसरों को नहीं दे सकते तो यह आपको
कचोटेगा नहीं | यह आपको कब कचोटता है ? तब, जब आप कर सकते हैं, परंतु करते नहीं |
प्रश्न :
गुरुदेव, कृप्या हमें उपनिषद के कुछ रहस्य बतायें |
श्री श्री
रविशंकर :
उपनिषद का रहस्य है, आप ओम् हैं |
आप का सच्चा
नाम ओम् है | जो भी नाम आपका है, वो आप के
माता-पिता द्वारा इस जीवन में दिया गया है, परंतु इस जीवनकाल से पहले आप क्या थे ? आपका नाम क्या था ? ओम् | और भविष्य में जब आप इस शरीर को त्याग देंगे तो आप का नाम
क्या होने वाला है ? ओम् |
सब कुछ ओम् से
ही उत्पन्न हुआ है, ओम्, वो सार्वलौकिक ध्वनि जोकि हर समय चेतना में गुँजायमान है
और हम सब इसी ध्वनि से ही उत्पन्न हुये
हैं और हम इसी में रहते हैं | अब भी, यह यहीं है, हर समय |
जब आप इस देह
को त्याग देंगे, तो यह मत सोचिये कि आप इस नाम को अपने साथ ले जायेंगे | आप का नाम इस देह के साथ ही चला जायेगा | परंतु आप जो प्रकाश हैं, जो चेतना हैं, उसका एक ही नाम है,
और वो है, ओम्।
यही इस
प्रार्थना में कहा गया है, “एक ओंकार (ईश्वर एक है), सतनाम(उसका नाम
सत्य है), करता-पुरख(वह रचयिता है), निरभउ(वह निर्भय है), निरवैर(
उसका किसी से वैर नहीं है), अकाल-मूरत(वह कभी मरता नहीं), अजूनी सैंभांग
( वह जन्म व मृत्यु से परे है), गुर परसाद(उसे सच्चे गुरु की कृपा से ही
पाया जा सकता है), जप (उसका नाम लेते रहें), आदि सच ( किसी भी चीज़
की रचना से पूर्व भी वो सत्य है) जुगादि सच (वो हमेशा ही सत्य रहा है), है
भी सच(वो अभी भी सत्य है), नानक होसे भी सच(वो भविष्य में भी सच
रहेगा)। एक ही ओंकार है, कर्ता, और वो ही उस काल से रचियता
है, जब सब कुछ रचा गया था |
निरभउ का अर्थ
है बिना भय के, बिना द्वैत; कोई दो नहीं। यह बेदाग है, पूर्णत: शुद्ध |
आदि सच,
जुगादि सच, है भी सच, यह पूर्ण सत्य है; हमारा उद्गम उसी सत्य से है | आदि का अर्थ है
आपका उद्गम ;
जहाँ से सब कुछ आया है, या जहाँ से सब कुछ बना है |
हमारा स्रोत
सच्चा है, हमारा लक्ष्य सच्चा है और यही सच्चा नाम है, ‘एक ओंकार, सतनाम...’
यही उपनिषदों
का सार है और यही उपनिषद कहते हैं |
‘शिवम् शांतम् अद्वैतम् चतुर्थम्
मान्यते, सा आत्मा, सा विग्येया:’ |
वो वास्तिवकता
जोकि शिवम्, अनंत मौन है; जोकि शांतम्, अनंत शांति है; जोकि अद्वैतम्, अविभक्त है;
को ही ‘चतुर्थम्’ कहा गया है | यह चेतना की तीन अवस्थाओं;
जागृत, स्वप्न और सुषुप्त, से परे है | यह चौथी आत्मा ही है, जिसे
कि जानना है | जो जानने योग्य है, वो चौथी अवस्था
है, जो न तो जागृत है, न स्वप्नावस्था है, ना सुषुप्तावस्था है, बल्कि चौथी अवस्था
है, जोकि सारी सृष्टि का आधार है | इसे जानना चाहिये, इस पर
ध्यान देना चाहिये |
प्रश्न : प्रिय गुरुदेव, मेरी माँ कहती है कि ईश्वर हमारे दिलों में
है और यदि कुछ भी गलत होता है तो मुझे बस भीतर देखना होगा और प्रार्थना करनी होगी | परंतु उन सब बच्चों का क्या जो प्रार्थना करते हैं और फिर भी
जीवित नहीं रहते ?
श्री श्री
रविशंकर :
हाँ, यह प्रकृति का हिस्सा है | इसके कई भेद हैं |
एक बच्चा कैसे
पैदा होता है और वह थोड़े समय के लिये ही जीवित क्यों रह पाता है, एक अति गूढ़ रहस्य
है | आप इसे एक दिन जरूर समझ पायेंगे |
बहुत बार,
बच्चे के पैदा होने के बाद, पति पत्नी के बीच प्रेम समाप्त हो जाता है | हमेशा नहीं, कई बार | ऐसा इसलिये है कि आत्मा दो
लोगों को आकर्षित करती है | उनमें कोई भी सामंजस्य नहीं
होता, परंतु आत्मा ऐसा जबरदस्त आकर्षण पैदा कर देती है कि वे पास आ जाते हैं, शादी
कर लेते हैं और बच्चा पैदा होता है और जैसे ही बच्चा पैदा होता है, बस, उनके बीच
के सारे नाते टूट जाते हैं |
आप ने समाज
में ऐसा होते देखा है न ? ऐसा इसलिये क्योंकि वह
आत्मा उन दो लोगों को पास ले आती है | इसका काम पूरा हो जाता है
और फिर बस | ऐसा होता है और यह बड़ा दिलचस्प है |
प्रश्न : मेरी
माँ मुझे डाँटती रहती है, मैं क्या करूँ ?
श्री श्री
रविशंकर :
यह तो उसका काम है | वो केवल यह देख रही है कि आप कितने
मजबूत हो, कितने धैर्यवान। माँयें प्राय: आपको अधिक धैर्य रखने में सहायता करती
हैं | या तो आप ऐसा माँ के साथ करते हैं,
या फिर माँ आप के साथ ऐसा करती हैं | या तो आप माँ के धैर्य की
परीक्षा लेते हो, या फिर वो आपके धैर्य की
| असल में, आप
बारी बारी से ऐसा करते रहते हैं!
प्रश्न : गुरुदेव, मेरे मातापिता बूढ़े है और अब भी
बहस और लड़ाई करते हैं शादी के ५० साल बाद भी | क्या वे कभी बदलेंगे ?
श्री श्री
रविशंकर : वे लोग अपने जीवन में आनंद ले रहे हैं, आप
क्यों इसे रोकना चाहते हैं
? बिना झगडे और नोक झोंक के
जीवन कितना नीरस हो जायेगा; कोई मसाला नहीं रहेगा | वे मसालेदार खाना खाना चाहते हैं, उन्हें खाने दो | आप क्यों उसे बेस्वाद बनाते हो ? यदि बहुत गर्म हो जाए, तो आप थोड़ा मक्खन
लगा दो बीच में
|
ऐसा होता है, क्या करें |
एक बार किसी ने एक सज्जन
पुरुष से पूछा, “आप अपनी पत्नी से झगड़ते क्यों हैं इतना” ?
वे बोले, “आपका क्या
तात्पर्य है ? मैं उस से प्रेम करता हूँ, इसलिए मैं उससे
झगड़ता हूँ | और किस के साथ झगड सकता हूँ” ? और यह सही है | कभी कभी ऐसा होता है |
प्रश्न : प्रिय गुरुदेव, मैं बहुत लोगों में यह
ज्ञान बांटना चन्हता हूँ, पर मैं बहुत घबरा जाता हूँ जब मुझे अपने मित्रों से इसके
बारे में बात करनी होती है
| इस से कैसे उभरें ?
श्री श्री
रविशंकर : आपका भय क्या है ? यह कि वह आप पर व्यंग करेंगे ? ठीक है, उसका भी आनंद लीजिए, उन्हें व्यंग
करने दीजिए, तो क्या हुआ
? यदि आप तैयार हैं व्यंग के
लिए और इस से उभारना चाहते हैं, तो उस से आप इस हिचक से बहार आ जायेंगे | एक बार कर के देखिये क्या होता है |
प्रश्न : प्रिय गुरुदेव, मैं ज्ञान लेख पढ़ता हूँ,
अपनी क्रिया और सेवा भी करता हूँ, फिर भी मेरा मन सांसारिक वस्तुओं में जकडा जाता
है कभी कभी, जैसे फोन, कपड़े, इत्यादि | कृपया आशीर्वाद दीजिए कि मैं इस सब से मुक्त हो सकूं |
श्री श्री
रविशंकर : ठीक है | इसमें समय लगता है | यदि आप थोड़े गाढ़े हैं, तो थोड़ी अधिक गर्मी चाहिए आपको हिलाने के
लिए | आप जानते हैं, जब हम हलवा बनाते हैं, चीनी
पहले चिपकती है, पर जैसे जैसे आप उसे आग में हिलाते हैं, फिर वह नहीं चिपकती |
प्रश्न : प्रिय गुरुदेव, मेरी गहरी इच्छा है कि मैं
बाकि जीवन आश्रम में व्यतीत करूं |
मैं स्वयं को पूर्ण समय सेवा में लगाना चाहता हूँ आश्रम में | मेरी पत्नी ने भी ऐसा करने का सोचा है | कृपया सुझाव दीजिए |
श्री श्री
रविशंकर : हाँ | आ जाइए
| जो भी पूर्ण समय इस काम
में देना चाहते हैं यहाँ या बून में, उनका स्वागत है | यदि आपकी आवश्यकताएं अधिक हैं, तो यह कठिन
है | यदि आपकी आवश्यकताएं कम हैं, तो आश्रम का
जीवन बहुत अच्छा है
| यदि आपका उच्च जीवन सादे
विचार हैं तो आश्रम जीवन कठिन हो सकता है आपके लिए |
प्रश्न : गुरूजी, क्या संकेत है कि हम स्वयं की ओर
बढ़ रहे हैं ?
श्री श्री
रविशंकर : आपको स्वयं की ओर बढ़ने की आवश्यकता नहीं है | वह तो यहीं है, सब जगह | आप में कुछ है जो ठोस रहता है, कभी नहीं
हतोत्साहित होता
| वह आप का स्वः है |
प्रश्न : प्रिय गुरुदेव, मैं शाकाहारी आहार अधिक
समय तक नहीं खा पाता
| मैं शाकाहारी प्रोटीन खाता
हूँ, पर वह पर्याप्त नहीं होता |
मुझे फिर भी मांसाहारी भोजन की तीव्र इच्छा रहती है और उसे खाने के बाद मुझे अच्छा
लगता है | मैं शाकाहारी भोजन करना चाहता हूँ क्योंकि
मैं अहिंसा के पथ पर हूँ
| क्या आपके पास मेरे लिए
कुछ सुझाव है ?
श्री श्री
रविशंकर : यह सब आपके दिमाग में है, कि आपको प्रोटीन
चाहिए | आप जानते हैं घोड़ों में इतनी शक्ति होती
है, इतना प्रोटीन होता है, और वे शाकाहारी हैं | हाथी भी शाकाहारी हैं | आप कल्पना भी नहीं कर सकते | बैल भी शाकाहारी होते हैं | हम होर्स पावर कहते हैं | शक्ति भी घोड़ों के हिसाब से नापी जाती है | घोड़ा केवल घास और हरे चने खाता है |
शाकाहारी भोजन में बहुत
प्रोटीन होता है
| यह केवल हमारे दिमाग में,
हमारी सोच में है, पर ऐसा नहीं है | बादाम, नट्स, और दालें खाइए, इन सब में प्रोटीन होता है | आपको केवल शाकाहारी होने की आवश्यकता नहीं
है, आप दूध से बनी चीज़ें खाइए |
चीज़, पनीर, दूध, इन सब में प्रोटीन है |
आप वीटग्रास जूस, या
स्पीरुलिना ले सकते हैं
| यह अमरीका में बहुत
प्रचलित है |
उत्तरी अमरीका की बहुत सी
जनता शाकाहारी बन रही है
| इसलिए अपने दिमाग से निकाल
दीजिये की आपको मासाहारी भोजन की आवश्यकता है | आपको वास्तव में इसकी आवश्यकता नहीं है | आपका शरीर शाकाहारी भोजन के लिए बना है | आपकी लार में एक पदार्थ होता है, टैलीन | यह केवल शाकाहारी जंतुओं में पाया जाता है | आपको यह सिंघों, भेड़ियों, शेरों में नहीं
मिलेगा |
शाकाहारी पशुओं की लम्बी
अंतड़ियां होती है; आपकी भी हैं |
शेरों की नहीं होती, कुत्तों की नहीं होती |
आपका पूरा शरीर यह बताता है | आपके पास माँसाहारी पशुओं जैसे दांत नहीं
हैं | आपके दांत बंदरों जैसे हैं, जो हमारे
पूर्वज हैं, गाय, और हाथी जैसे हैं | मैं हाथी के गजदंत की बात नहीं कर रहा हूँ, पर हाथी के मुंह के
अन्दर के दांत हमारे जैसे हैं |
यह हमारे दिमाग की गलत समझ
है की यदि मैं मीट खाना बंद कर दूंगा तो कमज़ोर हो जाऊँगा | यह केवल मन का भ्रम है |
प्रश्न : प्रिय गुरुदेव, क्या हम सुदर्शन क्रिया के
साथ और योग क्रियाएं भी कर सकते हैं, जैसे, परमहंसा योगानंद जी का क्रिया योग ?
श्री श्री
रविशंकर : केवल एक चीज़ करिए | वह पर्याप्त है |
जब आप बहुत सी चीज़ें करते हैं तो बहुत गड़बड़ हो जाती
है | मैंने देखा है लोगों को जो जा कर बहुत सी चीज़ें करने लगते हैं और उनकी सारी
शक्ति व्यर्थ हो जाती है | इसकी
आवश्यकता नहीं है | यदि
आप ऐसा करते रहे हैं, तो सुदर्शन क्रिया करने के बाद आप ध्यान में बैठ सकते हैं | यदि कुछ होता है तो ठीक है, कोई बात नहीं | यदि
वह मंत्र स्वयं आते हैं, तो ठीक है, पर यदि आप प्रयत्न करके उन्हें करते हैं, या
अधिक सीखने की कोशिश करते हैं, तो उस से बहुत संभ्रम पैदा हो सकता है | |
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