प्राचीन ज्ञान पूर्ण रूप से वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित है

16 अक्टूबर, 2010, बंगलौर, भारत
(वीणा बजाने से पहले गुरुजी ने 7 तारों में लय बिठाई)
संगीत तब होता है जब सांतों तार लय में होते हैं। हम यहाँ यही कर रहे हैं। सात स्तर - शरीर, मन, श्वास, बुद्धि, चित्त, अहंकार और आत्मा, जब सब लय में होते हैं तो दिव्य संगीत होता है।
हर एक प्राणी इस जगत में विशिष्ट तरंगे उतारता है, और अगर एक भी प्राणी खत्म हो जाए तो पृथ्वी टिक नहीं पाएगी। सुअर भी है, सांप भी है, कौआ भी है, मच्छी भी है, गाय भी है - सब तरह के जानवर हैं और इन सबके होने से हम होते हैं। वैज्ञानिक भी आज यही कहते हैं - प्राकृतिक नियम के अनुसार हर चीज़ से तरंग निकलते हैं। शेर के माध्यम से माँ दुर्गा की तरंग धरती पर आती है। जब कहते हैं माँ दुर्गा का वाहन शेर है तो उसका अर्थ यही होता है उस माध्यम से वो दिव्य तरंग उतरती है। प्रकृति अपने नियमों के अनुसार जानवरों को पैदा कर चुकी है। वो जानवर कहीं भी हों, उनके माध्यम से वो तरंग हमे मिलती है।
कौआ शनी देव की तरंग उतारता है। यह अदृश्य तरंगे इन जानवरों के होने से ही उपलब्ध हो रही हैं।
बैल - भगवान शिव की तरंग,
चूहा - भगवान गणेश की तरंग।
हम बहुत निश्चित रूप से तो नहीं कह सकते कौन सा जानवर कौन सी तरंग लाता है, क्योंकि अभी इस पर और संशोधन करने की आवश्यकता है। पुराने समय से हर चीज़ का संबंध ब्रह्म से जोड़ा गया है।
कितनी अच्छी बातें हैं और हम अनावश्यक बातों को पकड़कर बैठ जाते हैं, और सार छोड़ ही देते हैं। आने वाली पीढ़ि में गलत ज्ञान और अंधविश्वास तो भेज देते हैं पर असल सार नहीं देते।
 
हर मनुष्य को दिन में 5 कर्म करने होते हैं।
ब्रह्म यज्ञ - शांत बैठकर आत्म मंथन - मैं कौन हूँ? मैं यहाँ पर कब से हूँ?
वैश्न देन - पशु पक्षियों को खिलाना।
अतिथि सत्कार।
पेड़ पौधों का सरंक्षण।
कुछ ज्ञान पर विचार करना:जैसे भगवद गीता के कुछ श्लोक।
सभी चीज़ें समझ तो नहीं आ सकती, पर जब कुछ अनुभव होता है तो फ़िर थोड़ा बहुत समझ भी आता है, और थोड़ी जानने की प्यास भी होनी चाहिए।
एक तरफ़ा नही होना है।
गीता में भी बहुत खूबसूरत कहा है -
“न कर्मणामनारम्भान्नैष्कर्म्यं पुरुषो अश्नुते।
न च सन्न्यसनादेव सिद्धिं समधिगच्छति ॥”.
मध्य मार्ग ही स्वर्ण मार्ग है।
बहुत ज़्यादा कर्म कांड में भी नहीं उलझना और इसकी निन्दा भी नहीं करनी है - मध्य मार्ग।
कर्म से नहीं, धन से नहीं, कीर्ति से भी नहीं पर अपने में ठहरने से सब होता है। भाव की ही प्रधानता है। प्रभु सिर्फ़ भाव से प्रसन्न होते हैं। और भाव के लिए क्या करें? संगीत, योग, मंत्र, ध्यान - सब हमारे भाव को शुद्ध करता है।
पुराने ज़माने के लोग इतने तीव्र बुद्धि के थे कि हर चीज़ में ब्रहांड को समाया। किसी भी चीज़ को एक देशीय नहीं रहने दिया।
यष्टि और समष्टि का संबंध जोड़ दिया - सबमें कितना वैज्ञानिक रहस्य है।


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