जब बंधन मुक्त होता है तो वह मोक्ष है!!!

१९.०३.२०१२, रायबरेली, उत्तर प्रदेश
औपचारिकतायें, लपेटने वाले कागज की तरह हैं| जब हम कुछ खरीदते हैं, वह कागज में लपेटा जाता है| इसी प्रकार, जीवन में औपचारिकताओं को उतना ही महत्व दिया जाना चाहिए| बाकी समय हमे अनौपचारिकता से बैठना चाहिए| इसे ही सत्संग कहते हैं| सत्संग क्या है? जहां हम अंतरंगता और अपनेपन के साथ बैठ सकें, दिल से दिल का ताल मिला के बैठ सकें, वह सत्संग है|
अपनेपन के माध्यम से ही जीवन के प्रति उदासीनता (नीरसता) को दूर किया जा सकता है, जब जीवन में उदासीनता (नीरसता) बढ़ती है, तब सभी प्रकार की विकृतियों भी जीवन में आ जाती हैं| सुस्ती और उदासीनता जीवन में सभी इच्छाओं और खामियों के कारण है|
यदि आप अपने जीवन पर एक नज़र डालें, सोचें कि आप पचास वर्षों के लिए जियेंगे अथवा साठ या सत्तर वर्ष के लिए, हम यह सत्तर वर्ष कैसे खर्च करते हैं? एक अनुमान बनाइये|
यदि आप सत्तर वर्ष के लिए जियेंगे, तो १०% समय स्नान इत्यादि में खर्च करते हैं| मान लीजिए कि हम हर दिन दो घंटे स्नान, शौचालय में बिताते हैं, मतलब सत्तर वर्ष में से 7 वर्ष बाथरूम में खर्च करते हैं! उसी तरह, ७ साल खाने और पीने में खर्च हो जाते हैं| अगर हम दिल्ली या मुंबई जैसे शहर में रहते हैं तो १५ साल ट्रैफिक जाम में खर्च करते हैं| और नींद में हम आधा जीवन खर्च करते हैं| २५ से ३० वर्ष हम सो के बिता देते हैं| तो क्या बचा? यदि आप वास्तव में गणना करें तो आप देखेंगे कि जीवन में केवल ३ से साल ही हम खुशी, हर्ष-उल्लास, हँस-खेल में व्यतीत करते हैं| इसलिए हम वास्तव में केवल इन ३ साल के लिए ही जीवन जीते हैं| बाकी समय तो हम जीवन जीने की तैयारी करते रहते हैं| हम पूरी रात बिस्तर बनाने में लगा देते हैं, जब तक हम चादर और कंबल को बिछाते हैं, तब तक सुबह हो जाती है और सोने के लिए समय नहीं रहता|
हम अपना पूरा जीवन खुश और आरामदायक होने की तैयारी में खर्च कर देते हैं, लेकिन हम कभी खुश नहीं होते| यह हमारी स्थिति है| और अगर आप से पूछें, 'आप क्या कर रहे हैं?'
“पैसे कमा रहे हैं” जवाब मिलता है| 'किसके लिए?' बच्चों के लिए और उनके बच्चों के लिए, पोते और पोतियों के लिये'| पूरा जीवन आने वाली चार पीढ़ियों के लिए पैसे कमाने में खर्च कर दिया, न तो खुशी का अनुभव किया, ही जीवन आनन्द से व्यतीत किया, और ही भगवान के साथ कोई संबंध बनाया| क्या यही जीवन है?
हम पूरा जीवन पैसा कमाने में लगा देते हैं, पैसा बैंक में डाल देते हैं, फिर हम मर जाते हैं और हमारे बच्चे उस पैसे के लिये लड़ते हैं, अदालत में केस करते हैं| कोई भी अपने स्वयं के पैसे के लिये अदालत में केस फ़ाइल नही करता, सभी कोर्ट के मामले पैतृक संपत्ति के हैं| तो इस पैसे से हम बच्चों के बीच संघर्ष पैदा करते हैं| यह जीवन नहीं है|
जीवन क्या है?
हमने जीवन में कितनी पूर्ति हासिल की, हमे इस बारे में विचार करने की आवश्यकता है|
देखो, जब हम बच्चे थे, यदि हमे किसी भी प्रकार की पीड़ा होती थी, हम क्या करते थे? हम अपनी माँ के पास रोते हुए जाते और उनकी गोद में सो जाते थे| क्यों? क्योंकि हमें पता था कि माँ हमारे दुख को दूर कर देंगी| जब थोड़े बड़े हुए तब हम अपने पिता के पास जाने लगे| हमारे देश में परंपरा रही है, एक गुरु कि, तो, जब माँ और पिताजी हल नहीं निकाल सकते थे, हम गुरु/संरक्षक के पास जाते थे| जो भी वरिष्ठ नागरिक यहाँ बैठे हैं, जब आप स्कूल में पढ़ रहे थे, क्या आपके शिक्षक के साथ आपका एक गहरा संबंध था? हाँ या नहीं! यदि आपके दिल में कुछ भी होता था, आप अपने शिक्षक से बात करते, वे आपको कुछ राहत दे देते थे| शहर में शिक्षक एक बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे| आजकल सब गायब हो गया है|

इस से परे है, दिव्यता में विश्वास, वहाँ एक भगवान, एक शक्ति है, और हम उस शक्ति को बहुत प्रिय हैं|
भगवान कृष्ण पहले कहते हैं, “हे अर्जुन, तुम मुझे बहुत प्रिय हो| बाद में अर्जुन भी कहते हैं, “आप भी मुझे बहुत प्रिय हैं!
पहले भक्त नहीं कहते, पहले भगवान कहते हैं 'तुम मुझे बहुत प्रिय हो|'
हमे इस तथ्य में विश्वास रखना है कि हम भगवान को बहुत प्रिय हैं| बस यही, और काम हो गया! यदि यह सोच हमारे मन में प्रवेश कर जाये कि भगवान हमें प्यार करते हैं, तब कुछ भी और करने की आवशयकता नहीं है|
जैसे एक बच्चा कभी नहीं सोचता कि माँ ने घर में खाना बनाया होगा या नहीं| यह पर्याप्त है कि माँ घर पर है, तो वह जब भी घर जायेगा, भोजन उपलब्ध होगा| क्या वह कभी सोचता है कि फोन करके पूछ लूं कि क्या माँ ने खाना तैयार किया है या नहीं, क्या वह सो या जाग रहीं हैं?
नहीं! भोजन के समय घर चला जाता है और माँ थाली पर भोजन परोस देती है| इस तरह का विश्वास, जैसा अपनी माँ में होता है, भगवान में भी होना चाहिए, कि भगवान मेरे अपने हैं, और वह मुझे प्यार करते हैं, और वह मुझ पर सब कुछ निछावर कर देंगे| उन्होंने मेरे लिये यह सारी दुनिया बनाई है|
आप कब इस भावना को व्यक्त करेंगे? साधना के दस साल बाद? जीवन के अंत में? कब? मुझे बताइए| कितना समय लगेगा आपको विश्वास करने में?
“भगवान मुझे बहुत प्यार करते हैं, मैं उनके लिए बहुत प्रिय हूँ” कितना समय लगेगा आपके भीतर इस भावना को जगाने के लिए? आज से, इस क्षण से|
आपको क्या करना होगा यह प्राप्त करने के लिये, गंगा में जाना, या हिमालय में तपस्या करना? घंटों के लिये तपस्या करना? किसी के लिए अपनेपन को महसूस करने के लिए कितना समय लगता है? आप सिर्फ एक कार्ड छपवाते हो, और आपके भाई या बहन की शादी होती है, और एक जीजा या भाभी परिवार में आ जाते हैं|
कितना समय लगता है किसी को अपना जीजा या भाभी बनाने के लिए? कितनी देर लगती है एक संबंध बनाने के लिए? यह समय पर निर्भर नहीं करता| संबंध बनाना समय पर निर्भर नहीं है| यदि आप अपने दिल में भगवान के साथ एक संबंध स्थापित कर लें, आप अपने जीवन में चमत्कार होते हुए देखेंगे!
मैं आपको पास बस यह कहने के लिए ही आया हूँ| मैं सिर्फ यह कहने के लिए आया हूँ कि जिसने आपको बनाया है, अपके माता पिता, दादा दादी को बनया है, जिसने आप के लिए यह सब बनाया है, वह आपसे बहुत प्यार करते हैं, आप उन के लिए बहुत प्रिय है| आप यह भूल गए हैं, और मैं सिर्फ आपको यह याद दिलाने के लिये आया हूँ| जैसे ही आपको यह याद आ जायगा, उसी समय पूर्णता, समृद्धि, शक्ति, भक्ति, मुक्ति, शांति, सभी आपके जीवन में आप के लिए उपलब्ध हो जाएंगी|
आपको क्या लगता है? आप आज से ऐसा महसूस करना शुरू कर सकते हैं? भगवान मेरे हैं!
कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन सा धर्म है, जो भी समुदाय या जाति, यह सब से कोई फर्क नहीं पड़ता| संबंध स्थापित करने के लिए समय भी नहीं लगता|
आप सभी के पास मोबाईल-फोन हैं, हैं ना? आप में से कितने लोगों के पास मोबाईल-फोन हैं? अपने हाथ उठाएँ|
लगभग हर एक पास मोबाईल-फोन है| मोबाईल-फोन को काम करने के लिए किस चीज़ की आवश्यकता है? उसमे विद्युत शक्ति और एक सिम कार्ड की जरूरत है| इन दोनों के बावजूद, यदि वह नेटवर्क की सीमा के भीतर नहीं है, तो फोन काम नहीं करता| तो, तीनों चीजों की जरूरत है - सीमा के भीतर होना, फोन में विद्युत शक्ति और एक सिम कार्ड होना| जीवन में भी ऐसा ही है|
सबसे पहले विश्वास है, विश्वास, नेटवर्क की सीमा है, भगवान मेरे हैं, में उनका हूँ और वह मुझे प्यार करते हैं| मेरी खुशी और दुख देखने का काम उनका है और वह अच्छा ही करेंगे| मेरी दुःख से रक्षा करेंगे, और मुझे सुख देना उनका काम है, यह विश्वास रखिये|
इस के साथ, दो अन्य चीजों की जरूरत है| हमारे मन को साफ रखना और समाज में सेवा करने की जरूरत है| और कुछ कार्य भी करना होगा| हर एक मनुष्य को कुछ कार्य सौंपा जाता है| हमें हमारा कर्तव्य पूरा करने की आवश्यकता है| हमारे मन को साफ रखना और अपनी क्षमता अनुसार सेवा करना भी हमारी जिम्मेदारी है|
तो तीन चीजें हैं,सेवा, साधना और सत्संग| सत्संग का अर्थ है विश्वास| ये तीन चीजें हमारे लिए आवश्यक हैं| यदि आप इन तीन बातों का अभ्यास करते हैं, तो आप देखेंगे कि जो भी आप की इच्छा है, आसानी से पूर्ण होनी शुरू हो जाएँगी|
हमारे देश में एक परंपरा है कि मृतक को तिल के बीज और पानी का अर्पण किया जाता है| आप में से कितने इस परंपरा का पालन करते हैं? हम मृतक व्यक्ति का नाम ले कर तर्पण करते हैं| क्या आप जानते हैं तर्पण का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है संतुष्ट करना| जिनका निधन हो गया, उनके बच्चे उन्हें यह अर्पण कर के कहते है कि यदि आप के मन में कोई इच्छा रह गयी है तो वह केवल तिल के बीज के बराबर हैं, उसे जाने दें| हम उसे पूरा करेंगे| इच्छा को जाने दें और पूरी तरह से भगवान में लीन हो जाएँ|” इस भावना के साथ हम तिल और पानी को अर्पण करते हैं| छोटी इच्छाओं में अटकना नहीं, तृप्त रहें|
जब हम खुद के लिए कुछ भी नहीं चाहते, तब हमारे भीतर एक अद्वितीय शक्ति जाग जाती है| क्या आपको पता है कि यह क्या है? हम दूसरों की इच्छाओं को पूरा कर सकते हैं| ऐसी शक्ति हमारे भीतर जगती है| हम आशीर्वाद देने के लिए सक्षम हो जाते हैं| अगर हम खुद संतुष्ट नहीं हैं तो हम दूसरों को कैसे आशीर्वाद दे सकते है? तो आशीर्वाद देने के लिए कौन सक्षम है? केवल वह जो खुद के लिए कुछ भी नहीं चाहते| यदि वह कहते हैं,आपकी इच्छा पूरी हो तो वह निश्चित रूप से पूरी होती है|
कायदे से, जैसे आप उम्र में बड़े होते हैं, आप में संतोष की वृद्धि होती है| जितने हम संतुष्ट होते हैं, हम उतने अधिक परिपक्व हो जाते हैं|
खुशी दो प्रकार कि होती है| एक, प्राप्ति की और दूसरी देने की| हमारे बचपन में हम प्राप्ति की खुशी का अनुभव करते हैं| यदि आप बच्चों को कुछ देते हैं, वे हमेशा लेने के लिए तैयार होते हैं| लेकिन जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं, हम एक और खुशी का अनुभव करते हैं, वह क्या है? देने में आनन्द|
उदाहरण के लिए, घर में माँ या दादी है, जब दादी घर में अकेली हों, वह पांच विभिन्न प्रकार की सब्जियाँ और चार अलग अलग मिठाईयां खुद के लिए तैयार नहीं करतीं| लेकिन जब बच्चे घर में आते हैं या मेहमान आते हैं, वह अलग अलग प्रकार के पकवान परोसती हैं| तो देने में एक खुशी है और यह एक परिपक्व खुशी है| लेकिन बहुत बार हम इस की दृष्टि खो देते हैं और हम जीवन में कुछ पाने की तलाश में रहते हैं, और हम असंतुष्ट, दुखी रहते हैं|
धन प्राप्ति के लिए मन संतुष्ट होना चाहिए| जितना अधिक संतुष्ट मन, उतनी ही प्रगति होगी| एक व्यक्ति जो संतुष्ट है, जब वह दूसरों को आशीर्वाद देता है, उनका आशीर्वाद प्रभावी होता है| यह आशीर्वाद का रहस्य है| यह एक रहस्य है|
कुछ लोग उदारता से आशीर्वाद देते हैं| मैं आशीर्वाद देने में कृपणता नहीं करता, मैं बहुत खुले दिल से आशीर्वाद देता हूँ| लेकिन उसे प्राप्त करने के लिए योग्यता की आवश्यकता है| अपने मन को साफ रखने की आवश्यकता है| अपने मन को शुद्ध कैसे रखें? जब क्रोध अथवा विभिन्न भावनाएं आयें, तो यह कैसे करना है? जब आप प्राणायाम और ध्यान करेंगे तो मन बिल्कुल साफ हो जाएगा|
वर्तमान में रहें| जो कुछ भी अतीत में है, उसे छोड़ दें| बैठ कर ध्यान करें| अपने भीतर इस विश्वास को जगाएं कि इस वर्तमान क्षण में मैं शुद्ध हूँ, मैं प्रबुद्ध चेतना हूँ, मैं परमात्मा हूँ|'
हमे अपने आप में इस भावना को जगाने की जरूरत है| यह परंपरा कि अगर आप गंगा नदी में डुबकी लगाते हैं, सब पाप धुल जाते हैं, इसका कारण है| एक डुबकी से हमारे सभी पाप धुल जाते
हैं| क्यों? क्योंकि पाप हमारा स्वभाव नहीं है| अन्य देशों में वे कहते हैं, पाप मेरा स्वभाव है, और विश्वास करते हैं कि यह उनका स्वभाव है,'हम पाप से पैदा हुए हैं' विदेश में यह मान्यता है| लेकिन इस देश में हम यह कभी नहीं कहते| हम शुद्ध चेतना हैं, हमेशा शुद्ध, यह ही कहा गया है, और यह आश्वासन महत्वपूर्ण है|
जब हम हर दिन प्राणायाम करते हैं, हमारे जीवन में एक नई लहर पैदा होती है, खुशी, संतोष और आनंद की लहर| इसे मैं जीवन जीने की कला कहा कहता हूँ|
आज, आप दुनिया के किसी भी कोने में जाएँ, आप पाएंगे कि हर जगह लोग सुदर्शन क्रिया और प्राणायाम कर रहे हैं| मैं कुछ दिन पहले पाकिस्तान से लौटा| पाकिस्तान में भी, उन्होंने इतने स्नेह और उल्लास के साथ स्वागत किया| उन्होंने कहा कि वहाँ भी लाखों लोगों का जीवन बदल गया है| प्राणायाम द्वारा उनके जीवन में भी आनन्द आ गया है, मन हल्का और खुश है, चिंता कम हो गयी है और उनकी इच्छाएं पूरी होनी शुरू हो गयी हैं| हमारा यह ज्ञान बहुत महत्वपूर्ण है|
मनुष्य के रूप में, हम सब कि कुछ जरूरतें और कुछ जिम्मेदारियाँ है| यदि अपनी जिम्मेदारियां अधिक हैं, और हमारी जरूरतें कम, तो जीवन में हम शांतिपूर्ण रहते हैं| यदि जिम्मेदारियां कम हैं, जरूरतें अधिक, तब हम दुखी रहते हैं| हमे इस पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है|
भारत में एक परंपरा है कि जब कोई सन्त या गुरु किसी शहर में आते हैं, उन्हें कुछ दक्षिणा दी जाती है| रायबरेली में इस तरह की परंपरा है?
आज मैं आपसे एक दक्षिणा मांग रहा हूँ| यदि आपके मन में कोई परेशानी है, किसी से भी घृणा है, तो बस दक्षिणा में मुझे वह दे दो| अपनी सारी समस्याएं और परेशानियां मुझे दक्षिणा में दे दो| ठीक है? आप खाली हो जाओ| किसी के प्रति नफरत नहीं, कोई समस्या या चिंता नही, वह सब आप मुझे दे दो और मुस्कुराते रहो|
काश आप लोगों के जीवन में अच्छाईयों की सुगंध को फैलाएं| मैं यही चाहता हूँ| क्या यह हासिल करना कठिन है? यदि है तो भी इसे हासिल करे| हम कई मुश्किल काम करते हैं, लोग कावडी के साथ ५००कि.मी, की दूरी तय करते हैं या अमरनाथ की यात्रा तय करते हैं; वह भी मुश्किल है|  मैं जो आप से जो मांग रहा हूँ, वह क्या इससे मुश्किल है| सिर्फ संकल्प ले कि आप अकेले नहीं है’| गुरूजी मैं आपको अपनी परेशानियां देता हूँ, आप उसे ले लीजिए| अपनी सारी परेशानियां और समस्याएं मुझे दे दीजिए|
यहीं आध्यात्म है|
अब हमें समाज के लिए भी कुछ करना है| हमें क्या करना चाहिये ? हमें अज्ञानता के विरुद्ध खड़े होना होगा| हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि इस शहर का एक भी व्यक्ति अशिक्षित न हो या अंधविश्वास में न उलझा हुआ हो| हमें इसके लिए काम करना होगा| हमें अज्ञानता को दूर करना होगा|
फिर हमें भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़े होना होगा| भ्रष्टाचार वहाँ शुरु होता है जहां अपनापन समाप्त होता है| कोई भी अपने लोगों से रिश्वत नहीं लेता|  किसी ने भी अपने भाई या भतीजे से रिश्वत नहीं ली होगी| यदि किसी ने रिश्वत ली भी है तो सिर्फ बाहर वाले से ली होगी| क्या किसी में अपने परिवार वालों से रिश्वत ली है| क्या किसी ने भी अपने चाचा या भतीजे से रिश्वत नहीं ली होगी? नहीं! हमने सिर्फ किसी बाहर वाले से रिश्वत ली या दी होगी| यहाँ कोई बाहर वाला नहीं है| इसलिए हम सब ने देश के खातिर यह संकल्प लेना चाहिये कि हम एक साल के लिए न तो हम रिश्वत लेंगे या देंगे| अपने टेबल पर एक पर्ची  चिपका दीजिए जिसमे लिखा हो, मैं रिश्वत नहीं लेता|” यदि ऐसा करने में आपको संकोच होता है या आपके पास समय नहीं है तो यहाँ उपस्थित युवाओं से मैं कहूँगा कि वे जाकर उनके टेबल पर एक पर्ची बनाकर चिपका दे| पर्ची देख कर देने वाला भी अपने हाथ खीच लेगा और रिश्वत नहीं देगा| इससे आपको कोई परेशानी या उलझन नहीं होगी| यदि आप एक वर्ष रिश्वत नहीं लेंगे और देश के लिए मेहनत से काम करेंगे तो हमारा देश अविश्वसनीय उचाईयों पर पहुँच जाएगा|
कुछ लोग मुझ से कहते गुरूजी आपका काम ध्यान करवाना और आध्यात्म की बात करना है| आप भ्रष्टाचार की बात न करे| आप राजनीतिज्ञों को अकेला छोड़ दीजिये| आपको क्या लगता है, मुझे इसे छोड़ देना चाहिये?
भीड़ में से आवाज़ आई नहीं’|
मुझे भी लगता है कि मुझे लोगों से यह कहना चाहिये और इसलिए मैं इसके बारे में बार बार कहता रहता हूँ|
देश भक्ति और भगवान की भक्ति कोई अलग नहीं है| देश भक्ति इसलिए आवश्यक है क्योंकि यह देश भगवान का है| यह उसकी सृष्टि है| क्या हम किसी चित्रकार से कह सकते है कि मैं तुम से प्रेम करता हूँ लेकिन तुम्हारे चित्र से मैं प्रेम नहीं करता’| क्या यह संभव है? किसी मूर्तिकार से कहे, मैं तुम्हे पहचाना हूँ लेकिन तुम्हारी मूर्तिओं को मैं नहीं पहचानता’| फिर वह क्या मूर्तिकार नहीं रह जायेगा| इसलिए जो लोग भगवान में विश्वास करते हैं वह उसकी बनाई हुई सृष्टि के मूल्य को समझते हैं और उसका सम्मान और आदर करते हैं और प्रत्येक व्यक्ति का सम्मान करते हैं| यहीं एक सच्चे भक्त के लक्षण है|
एक भक्त के दो लक्षण होते हैं| पहला लक्षण यह है कि वह सबका सम्मान करेगा और दूसरा लक्षण है कि वह उसके साथ क्या होने वाला है इसकी चिंता नहीं करेगा|
आज हम सब एक प्रतिज्ञा लेंगे कि न तो हम रिश्वत लेंगे या रिश्वत देंगे| अपने हाथ ऊपर उठाये|
दूसरी प्रतिज्ञा हम यह लेंगे कि हम महिलाओं का सम्मान करेंगे और कन्या भ्रूण हत्या होने नहीं देंगे|
भारतीय संस्कृति में महिलाओं को पुरुष जितना ही दर्जा प्राप्त हैं| पहले महिला और पुरुष में कोई भेदभाव या असमानता नहीं थी| और इस धरती में महिलाओं को भी श्राद्ध और अंत्येष्टि करने का अधिकार प्राप्त है|
मैं आप से कहता हूँ उनके पास सभी अधिकार थे| जो महाराजी वहाँ बैठे हैं वे भी इस बात से सहमत होंगे| वे सहमति दिखने के लिए अपना हाथ उठा रहे हैं| महिलाओं को पुरुष सामान सभी अधिकार प्राप्त थे| पुराने ज़माने में महिलायें जनेऊ भी पहनती थी| सीता मैया ने अपने पिता का तर्पण और श्राद्ध किया था| इस बात का उल्लेख ग्रंथों में भी हैं|
पुरुष महिलाओं से श्रेष्ठ यह सोचना गलत है| दोनों को सामान अधिकार हैं| कन्या भ्रूण हत्या पर रोक लगनी चाहिये| यह दूसरा बिंदु है| क्या हम सब यह प्रतिज्ञा लेंगे कि हम कन्या भ्रूण हत्या को होने नहीं देंगे ?
तीसरी प्रतिज्ञा हमें शराब के खिलाफ लेनी होगी| हमारे देश कि गरीबी तभी दूर होगी जब हम शराब की लत को खत्म कर देंगे| शराब की नदियाँ बह रही हैं| जब कोई चुनाव जीतता या हारता है तो वह शराब पीता है, कोई अपने गम भुलाने के लिए पीता है|  एक गरीब आदमी अपनी आमदनी का ६०% शराब में खर्च कर देता है| शराब के व्यवसाय के अलावा कोई भी व्यवसाय उन्नति नहीं कर रहा| इसलिए गरीबी तब तक स्थिर रहेगी और हमारा देश गरीब ही बना रहेगा जब तक इसे पूरी तरह से रोका न जाए|
वे खुशी में पीते हैं, और शादियों में भी, जब किसी की मृत्यु या जन्म होता है तो भी वे पीते हैं, जब व्यापार में नुकसान या मुनाफा होता है तो भी वे पीते हैं या जब किसी की लाटरी लगती है तो भी लोग पीते हैं| कुछ भी हो जाए वे पीते रहते हैं| एक शराब की नदी बह रही है और हमें इसे रोकना होगा|
माताओं की इसमें बड़ी भूमिका हो सकती है| अपने बच्चों से प्रतिदिन कहें कि वे शराब को हाथ न लगाए| माताएं शराब की दुकानों को बंद करवा सकती है| यदि आप की इच्छा शक्ति हो तो आप सभी को प्रभावित कर सकते हैं; पति, भाई, पुत्र और पिता को भी| इसे आप अपने हाथों में ले लीजिए और शराब की दूकाने बंद होना ही चाहिये| कितने लोग इससे सहमत हैं? यह अत्यंत महत्वपूर्ण है| अन्यथा हमारा देश आगे नहीं बढ़ेगा| वह स्थिर रह जाएगा|
फिर जाति भेदभाव है; बिहार और उत्तर प्रदेश जितना जाती भेदभाव है वह देश के किसी और प्रान्त में नहीं है|  यह सब वहाँ बहुत है| हमें इससे ऊपर उठना होगा| हमें समाज में भारी बदलाव की आवश्यकता है, इसलिए हमें जातिवाद मे नहीं फँसना चाहिये| सिर्फ मानव जाति ही है और इसी पर विशवास रखे| मैं युवाओं से अपील करूँगा कि इस देश की लगाम आपको अपने हाथों में लेना चाहिये| वह आपके पास बुरे रूप में आये उसके पहले आपको उसका स्वामित्व अपने पास ले लीजिए और आप बहुत सारी होने वाली हानि को रोक सकते हैं| इसलिए आपको इस के लिए अभी से तैयार होना चाहिये|
अभी हम ॐ का उच्चारण तीन बार करेंगे और फिर थोड़े देर के लिए ध्यान करेंगे|
बोस्टन में एक वैज्ञानिक ने मुझे बताया कि वे ॐ पर शोध कर रहे थे| उन्होंने ॐ शब्द की ध्वनि को रिकॉर्ड किया और उसे अपने कंप्यूटर में उसकी आवृत्ति को अप लोड किया और उसे नापा| उन्होंने पाया कि ॐ और पृथ्वी की आवृत्ति एक ही है| पृथ्वी का उसकी धुरी पर घूर्णन की आवृत्ति और उसका सूर्य की परिक्रमा के दौरान की आवृत्ति की ध्वनि ॐ के समान है| इसलिए प्राचीन काल इस देश के लोग यह कहते आये हैं कि ॐ शब्द की ध्वनि मौलिक ध्वनि है और यह सृष्टि की आवाज़ है| बौद्ध, जैन, सिख,आर्य समाज और सनातन धर्म और विश्व के सभी धर्म के लोग इस पर विश्वास करते हैं और कुछ अन्य धर्म के लोग उसी की किसी अन्य कंपन पर विश्वास करते हैं| इस्लाम में आमीन का प्रयोग होता है लेकिन ॐ की ध्वनि इस सृष्टि में सदा से गूँज रही है|

प्रश्न: गुरूजी वेद के बारे में बाताये? क्या कोई भी वेद पढ़ सकता है?
श्री श्री रविशंकर : कुछ हज़ार से अधिक  वेद में ऋषि और महर्षि हुए हैं और वे विभिन्न जाति के थे| उस समय सिर्फ सनातन धर्म ही था लेकिन वे विभिन्न जाति के थे| सब कोई वेद पढ़ सकते हैं और महिलाएं भी|

प्रश्न: गुरूजी आज हमारा पूरा देश जातियों के कारण बँटा हुआ है| इसे कैसे साथ में लाया जा सकता है|
श्री श्री रविशंकर : यही तो मैं कह रहा हूँ| जब किसी को कोई अच्छा डॉक्टर या वकील चाहिये तो वे उसके पास ही जाते हैं और उनसे उनकी जाति नहीं पूंछते| सिर्फ चुनाव के समय जाति का मुद्दा उठाया जाता है| इस की कोई गारंटी नहीं है कि यदि वह आपकी जाति का है तो वह आपके पक्ष में काम करेगा| एक अन्य जाति का व्यक्ति यदि, संतुलित, सच्चा और जिम्मेदार है तो वह भी हमारी भलाई के लिए ही काम करेगा| इस लिए लोगों को जातिवाद से ऊपर उठना चाहिये|
शादी ब्याह के मामले में भी जाति पर अत्यंत जोर दिया जाता है, जबकि मुझे लगता है कि आज के युवा ज्यादा प्रगतिशील है|
प्रश्न : गुरूजी ईर्ष्या का क्या समाधान है?
श्री श्री रविशंकर: ईर्ष्या का समाधान यह है कि जिससे आप ईर्ष्या करते हैं वह और आप दोनों मरने वाले हैं| यहाँ सब कुछ खत्म होने वाला है| इस संसार में ७ अरब लोग हैं, जिसमे से वह एक है, और उससे और अधिक कितने लोग होंगे| इस तरह जब आप उसे एक बड़े दृष्टिकोण से देखते हैं तो ईर्ष्या अपने आप खत्म हो जायेगी|

प्रश्न : गुरूजी किसान इतने युगों से इतनी मेहनत करते हैं लेकिन वे दिन प्रतिदिन गरीब होते जा रहे हैं| उनके लिए क्या किया जा सकता है?
श्री श्री रविशंकर : इसका एक कारण यह है कि किसान अपने भूमि पर वेदेशी रसायन पदार्थ का उपयोग करते हैं, जिससे उनकी भूमि को हानि हुई है और उपज भी कम हुई है|  किसानो ने रसायन मुक्त खेती करनी चाहिये| हमारे देश में गेहूं और चावल के कितने विभिन्न प्रकार के देशी बीज हैं| हमें इसके बारे में नहीं मालूम| अभी हाल के शोध से पता चलता है कि हामारे देश का प्राचीन गेहूं दिखने में तो अच्छा नहीं है लेकिन उसमे १२% फोलिक एसिड होता है| १२% फोलिक एसिड में ह्रदय रोग और दिल के दौरे को टालने कि क्षमता होती है| जो गेहूं विदेशों से मंगवाया जाता है उसमे फोलिक एसिड उतनी मात्रा में मौजूद नहीं होता, यहीं कहा जाता है| हमने इन देशी बीजों को नष्ट कर दिया है और उसका उपयोग इसलिए नहीं करना चाहते क्योंकि हाईब्रिड बीज बड़ा ,मोटा और अच्छा दीखता है|
हमने उन विदेशी बीजों को लाया और अपने बीज हमने कहीं घुमा दिए|
हाल में आर्ट ऑफ लिविंग के स्वयं सेविओं ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और पंजाब में देशी बीजों को बचाने का एक बड़ा कार्यक्रम आयोजित किया| वे देशी बीज का प्रयोग कर रहे हैं और उपज में भी बढ़ोत्तरी हुई| यदि हम रसायन मुक्त खेती और जैविक खेती करे तो उपज ३ गुना बढ़ जायेगी|
आज मैं आपको एक मंत्र का उच्चारण करने के लिए कहूँगा जिसे आपको भोजन के पूर्व २-३ बार कहना है, अन्नदाता सुखी भवः जो लोग मुझे यह भोजन मुहैया करा रहे हैं, वे खुश रहे|
जब हम इस मंत्र का ऊच्चरण करते हैं तो इसमें ३ लोग सम्मलित है, सबसे पहले तो वह किसान जिसने फसल बोई, फिर वह व्यपारी जिसने  फसल खरीदकर उसे बेचा फिर तीसरी वह गरेलु महिला जिसने उस भोजन को पकाया और आप को परोसा|
यदि किसान की आखों में आसूं होंगे तो आप का पेट उस भोजन को पचा नहीं पायेगा| यदि किसान खुश है तो आपका शरीर रोग मुक्त होगा| इसलिए किसानों को आशीर्वाद दीजिए और उनके लिए प्रार्थना कीजिये|
वह घरेलु महिला जिसने उस भोजन को पकाया है यदि वह आसूं बहाती है तो आप कैसे खुश रह सकते हैं
| यह संभव नहीं है| औरत के आसूं पृथ्वी को जला सकते हैं| औरत के आसूं में अग्नि होती है इसलिए उसे बहने न दीजिए| यदि उनके आसूं नादानी की वजय से बह रहे हैं तो आप फिर कुछ नहीं कर सकते| सबकुछ होने बाद भी रोती रहती है और जब कोई उन से पूंछता है कि आप क्यों तो रही है, तो वह कहती है, मैं रो नहीं रही बल्कि मेरी तो शक्ल ही ऐसी है’| कुछ लोगों ने रोती हुई सूरत बना के रकने की आदत ही बना ली हैं|
मुस्कुराए और हँसे और दूसरों को भी हंसाये,खुद न फंसे और दूसरों को न फंसाए|

प्रश्न : गुरूजी उत्तर प्रदेश में सब कुछ मुफ्त में देने की प्रथा बन गई है| राजनीतिज्ञ भी सब सब कुछ मुफ्त में देने की बात करते हैं| यदि सब कुछ मुफ्त में मिलने वाला है तो लोगों का आत्म सम्मान कैसे बढ़ेगा?
श्री श्री रविशंकर : कोई बात नहीं| इसे कुछ और दिन चलने दीजिए| आत्म सम्मान अपने आप बढ़ेगा और लोग खुद कहेंगे कि हमें मुफ्त की चीजें नहीं चाहिये| जैसे किसी व्यक्ति की स्थिति में सुधार होना है वह स्वयं ही कहता है कि मैं अपने बच्चों को निशुल्क स्कूल में नहीं भेजूंगा| उसे इसमें गर्व महसूस होगा हैं कि वह अपने बच्चें को उस स्कूल में भेज रहा है जहां फीस देनी पड़ती है| यहाँ तक एक रिक्शा चालक भी यहीं कहता है कि वह फीस देकर अपने बच्चें को एक अच्छे स्कूल में ही भेजेगा| यह एक अंदरूनी बात है और इसकी सजगता अपने आप आ जायेगी|

प्रश्न : प्रिय गुरूजी आपके सानिध्य में हम अपनी सारी समस्यायें भूल जाते हैं चाहे वे कितनी बड़ी ही क्यों न हो| गुरूजी यह बतायें कि हम अपनी समस्यायें आपको कैसे समर्पित कर सकते हैं?
श्री श्री रविशंकर : जब भी वे आये आप उसे मुझे समर्पित कर दीजिए|
मैंने १५२ देशों की यात्रा की है और मैं यात्रा करता रहता हूँ|  कहीं भी मुझे ऐसा नहीं लगा कि मैं विदेश में हूँ| और उन देशों के लोगों को भी ऐसा नहीं लगा कि वे मुझ से पहली बार मिल रहे हैं या मैं कोई विदेशी हूँ| उन्हें भी मुझ में वहीँ अपनापन लगा जो मुझे उन के लिए लगता है| इसलिए मैं कहता हूँ कि जब हम भीतर की ओर होते हैं तो हमें भी वहीँ बाहर दिखाई देता है| जिस तरह से हम सोचते हैं, जिस किस्म की भावनाओं को बढ़ावा देते हैं वह लोगों में बदलाव लाती हैं|
इस क्षेत्र के युवाओं से मैं कहूँगा कि उन्हें ध्यान शिक्षक बनना चाहिये| भारत के शिक्षकों की भारी संख्या में विदेशों में मांग हैं| यदि भारत के योग ओर प्राणायाम शिक्षक अलग अलग जगहों में जायेंगे तो वे दुनिया में बहुत अच्छा काम कर सकेंगे| यह रोगों को दूर करने में सहायक है,शरीर को शक्ति मिलती है, मन आनंदमय रहता है, बुद्धि तीव्र हो जाती है; इसके कई लाभ हैं|

प्रश्न : गुरूजी किसी को जीवन में संतोष कैसे प्राप्त हो सकता है?
श्री श्री रविशंकर : ध्यान के द्वारा|

प्रश्न : गुरूजी लोगों ने भगवान को नहीं देखा और न उनके बारे में सुना है| वे भगवान से एकाकी को कैसे महसूस कर सकते हैं?
श्री श्री रविशंकर : इसलिए संत और महात्मा होते हैं और गुरू आपको बताते हैं कि वह आपका है उस पर विशवास करे| आप सब नहीं जान सकते इसलिए कुछ जान के चले और कुछ मान के चले|
इसलिए मैं कहता हूँ कुछ जान कर आगे बढ़े और कुछ मान कर आगे बढ़े और सबको गले लगाकर आगे बढ़ते चले|

प्रश्न : गुरूजी मोक्ष क्या है?
श्री श्री रविशंकर : आप बच्चों से पूंछे कि उन्हें परीक्षा समाप्त होने के बाद कैसा लगता है| वे सब किताबे फेंक देते हैं और चैन की सांस लेते हैं| ‘अब यह समाप्त हो गया’| यह मोक्ष है| एक दिन आपके जीवन में ऐसी स्थिति आ जाती है, हाँ अब मैं परिपूर्ण हूँ| मुझे इस क्षण कुछ नहीं चाहिये| मैं जीवन से संतुष्ट हूँ| यह मोक्ष है|
मोक्ष बंधन का विपरीत है| जब बंधन मुक्त होता है तो वह मोक्ष है|  
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