आपका जीवन आध्यात्म से कभी अलग नहीं हो सकता !!!


प्रश्न: कोई वैराग्य को कैसे प्राप्त कर सकता है ?
श्री श्री रविशंकर - जब आप यह जान लेते हैं कि मृत्यु जीवन में अटल है और हर कोई की मृत्यु होनी है और पूरे कार्यक्रम का अंत होने वाला है तो फिर वैराग्य तुरंत ही आ जाती है।

प्रश्न: हम रोज के जीवन में आध्यात्म को कैसे सम्मिलित कर सकते हैं ?
श्री श्री रविशंकर -इसके लिए पहला कदम है कि यह सोचना बंद कर दें कि अध्यात्म रोजमर्रा के जीवन के लिए नहीं है। वह रोजमर्रा के जीवन से अलग नहीं है। इसलिए उसको रोजमर्रा के जीवन में सम्मिलित करने के लिए प्रयास नहीं करना पड़ता। आपका जीवन आध्यात्म से कभी अलग नहीं  हो सकता, यह सिर्फ सजगता का विषय है।

प्रश्न: जब दिल कुछ कह रहा हो और मन कुछ और कह रहा हो तो क्या करना चाहिए।
श्री श्री रविशंकर - आप उन दोनों को समझौते के मंच पर ले आयें।

प्रश्न: जब एक ही भगवान है तो लोग लड़ते क्यों हैं ?
श्री श्री रविशंकर - मेरा भी वही प्रश्न है यदि हम अल्लाह और ईसामसीह का गान करें तो हमारी जीव्हा जल नहीं जायेगी। यहां  हम आर्ट ऑफ़ लिविंग  में अल्लाह, ईसामसीह, कृष्ण, और राम का गान करते हैं। हमें सब लोगों को साथ में लाना है। उन्हें आर्ट ऑफ़ लिविंग  में ले आवें।

प्रश्न: यदि शिव हमारे भीतर हैं तो हम बुरे काम क्यों करते हैं ?
श्री श्री रविशंकर - शिव निद्रा में हैं। जब आप बुरे काम करते हैं तो शिवजी निद्रा में हैं। जब आपके शिवजी जागे हैं तो वह कहते हैं कि कोई बात नहीं आगे बढ़ो सब ठीक हो जायेगा। व शक्ति है, वह उत्साह और ऊर्जा आगे बढ़ते रहने के लिए वापस ले आते हैं।

प्रश्न: ज्ञान और भक्ति में क्या महत्वपूर्ण है ?
श्री श्री रविशंकर - वे एक दूसरे से समान्तर हैं। वह एक कुर्सी की तरह है यदि आप उसके एक पैर को खीचेंगे तो दूसरा भी आ जायेगा। इसलिए दोनों ही ज्ञान भक्ति  देता है और भक्ति ज्ञान को देता है।

प्रश्न: जीवन के हर पहलू में व्यक्ति कैसे सफल हो सकता है ?
श्री श्री रविशंकर:-सफलता का प्रतीक क्या है ? वह मुस्कराहट है जो आपसे कोई ले नहीं सकता। वह जो भयपूर्ण है और मुस्कुराता नहीं है और हर कोई के साथ अपने आप को घर में महसूस नहीं करता वह सफल नहीं है। आप जितना उच्च पद या अधिकार की सीढ़ी पर चढ़ते हो फिर  आप की मुस्कुराहट में कमी आ जाती है। हमारे देश में साम्यवाद ने कई अच्छी बातें दी हैं परन्तु मैं कहता हूँ  कि साम्यवाद की नकारक विचारधारा से लोगों को उदासी मिली है, जिससे उनके आत्मविश्वास और भगवान के प्रति श्रद्धा में कमी आयी है। यह ठीक हो सकता है कि उनको भगवान पर विश्वास नहीं है परन्तु कम से कम उनमें आत्मविश्वास की कमी तो नहीं होना चाहिए।

The Art of living
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अच्छी प्रार्थना और पढाई से बुद्धि प्रखर होती है !!!

भुवनेश्वर (उड़ीसा) में श्री श्री रविशंकर के साथ महासत्संग 

२२ नवम्बर २०११
और कैसे हो आप लोग? ..
सत्संग का मतलब है दिल से दिल मिल जाना| दिल से बात  करना- साथ में थोडा फार्मेलीटी( थोड़ी औपचारिकता) है, यह तो ऊपर ऊपर की है| अपने आप से मुलाकात ही सत्संग है|

इस साल आर्ट ऑफ लिविंग के ३० साल पूरे हो गये| मुझे याद है, ३१ साल पहले, आर्ट ऑफ लिविंग के शुरू होने के लगभग एक-डेढ़ साल पहले मैं यहाँ आया था - भुवनेश्वर में, तब भुवनेश्वर बहुत छोटा शहर था| एक ही सड़क थी| आप बड़े लोग सब जानते हैं, इतने सारे मकान नहीं थे| एक ही सड़क थी पुरी जाने के लिये| यहाँ और पुरी जाने की रोड पर एक मकान में हम एक महीने तक रहे| दिनभर हम मौन में रहते  और शाम को दो तीन घंटे लोगों से मिलते थे| पुरी से काफी विद्वान हमारे पास आते थे, बातचीत होती थी| कई लोगों के मन में था कि हम पुरी के शंकराचार्य के पद पर जाएँ| मेरा तो मन बिलकुल नहीं था| उन दिनों में जब हम पुरी के शंकरमठ में गए तब वह बहुत जीर्ण शीर्ण अवस्था में था| आज तो महाराज जी स्वामी निरंजनानंद सरस्वती जी ने बहुत अच्छा संभाल लिया, मगर उन दिनों ३१ साल पहले मठ काफी शिथिल था| लोगों के मन में था कि मैं उसे संभालूं, कई लोगो ने कोशिश भी की, मगर हमारा मन बिलकुल यह नहीं था|

मेरे मन में था कि हम दुनिया में कुछ और करने के लिये आये हैं| कुछ और आने वाला है| तो फिर ३० सालों में आर्ट ऑफ लिविंग दुनिया के १५१ देशों में फ़ैल गया है| आप उत्तरी ध्रुव के आखिरी शहर प्रोम्जे में चले जाइये, उधर भी लोग आपको प्राणायाम सुदर्शन क्रिया करते हुए, ओम नमः शिवाय: गाते हुए मिलेंगे| दक्षिणी ध्रुव के आखिरी शहर फिलारेदिल विसो   अर्जेंटीना में भी आपको मिलेंगे| मैं खुद हैरान हो गया, जब हम गए दक्षिणी ध्रुव के आखिरी शहर में| एक हाल में बैठ कर हजारों लोग  गा रहे हैं, भजन कर रहें हैं, प्राणायाम - सत्संग कर रहें है| मैंने कहा – ‘वाह! यहाँ तक पहुँच गया’| एक पुरानी  कहावत है ‘स्वदेशे पूज्यते राजा, विद्वान सर्वत्र पूज्यते’| एक राजा सिर्फ अपने देश में सम्मान का पात्र होता है मगर विद्वान की क़द्र, उसका सम्मान सब जगह होता है| और विद्वान कौन है? सिर्फ पोथी पढ़ कर कोई विद्वान नहीं बन जाते| विद्वान वही है जिसने विद्या को अपने जीवन में अपनाया|

और इसी उद्देश्य से अपनी  यह युनिवर्सिटी  की शुरूआत  हुई है| इसका उद्देश्य यही है कि सिर्फ पोथी पढ़ा कर कोई विद्वान नहीं बनेगा | हम ऐसे विद्वान बनायेंगे जिनके जीवन में ज्ञान उतरा हो| जिनके जीवन में खुशी है, प्रसन्नता है, सृजनात्मकता है| एक ऐसा व्यक्तित्व हो कि वो जहाँ भी जाये, जीत कर आये| ऐसे व्यक्तित्व का विकास करना ही अपनी युनिवर्सिटी का उद्देश्य है| इसमें पाश्चात्य देशों में जो अति उत्तम चीज है और अपने देश की जो अति उत्तम चीज है इन दोनों को मिलाकर पढाने का, मेरा मन है| माने विज्ञान और ज्ञान – सिर्फ एक से काम नहीं चलेगा| सिर्फ विज्ञान में पाश्चात्य जगत अधूरा रह गया| इतने दुखी है लोग| आप देखो, इतना विज्ञानं होने के बावजूद भी आर्थिक रूप से इतने गिर रहे हैं| इतने कर्ज में पड़ गए है- इतने झगड़े – झंझट| उनकी ३०-४० प्रतिशत जनसँख्या मानसिक रोगों से पीड़ित है| तो हमारे देश में हम उनकी अच्छी चीजें लें| वहां हमारे भारत का ज्ञान नहीं है| हम अपने भारत का ज्ञान वहां दें और वहां का विज्ञान यहाँ लें तब हम पूर्ण व्यक्तित्व बना पाएंगे| इसी उद्देश्य से अपनी इस युनिवर्सिटी में ज्ञान और विज्ञान – दोनों को मजबूत करने का मेरा मन था|

सदियों से अंग, बंग और कलिंग – विद्या के लिये बड़े मशहूर रहे| भारत में विद्याभ्यास के लिये कहाँ जाते थे? अंग, बंग और कलिंग | इस कलिंग में सदियों से विद्या दान होता था पर कुछ समय से यह पिछड़ गया है| अब आगे आने का समय आ गया है, ऐसा मेरा मानना है| तो इस काम में आप सबको जुड़ना पड़ेगा|  सब जुड़ेंगे...... ? कितने लोग जुड़ेंगे बताओ.....? सबको इसमें शामिल होना पड़ेगा|

और मेरा मन है कि उड़ीसा में १००% साक्षरता लानी है| साक्षरता १००% हो जानी चाहिये, इसके लिये हम सबको काम करना है| दूसरी बात है गरीबी| इस गरीबी का एक कारण है भ्रष्टाचार और दूसरा कारण है शराब| हमें इन दोनों को मिटाना पड़ेगा| हमें यह प्रतिज्ञा लेनी पड़ेगी कि ना तो हम रिश्वत देंगे ना ही रिश्वत लेंगे| करोगे.......? हाथ उठाओ सब लोग.... न किसीको रिश्वत देंगे और न हम (किसी से) रिश्वत लेंगे, बस... | और दूसरी बात है – शराब नहीं – नशेबाजी नहीं करना| एक साधारण व्यक्ति जितना कमाता है उसका ६०% नशे में, शराब में खर्च करता है| इसलिए इसे रोकना पड़ेगा| कैसे रोकें...? मैं कहूँगा – प्राणायाम करो, ध्यान करो.... सुदर्शन क्रिया करो| देखो कैसे छूट जायेगा, अपने आप| यहाँ पर प्रतिज्ञा करो कि मैं शराब और नशीले पदार्थ कभी नहीं छुऊंगा| यहाँ जितनी महिलाये हैं, उनसे मैं कहूँगा कि रोज वो अपने बच्चों को प्रतिज्ञा दिलाएं कि ‘मैं कभी शराब नहीं छुऊंगा, सिगरेट नहीं पिऊंगा, कभी नशा नहीं करूँगा’| बच्चे ये प्रतिज्ञा करेंगे, सुबह् उठ कर रोज प्रार्थना करेंगे कि ‘हे प्रभु, हे दयानिधि, मुझे सदबुद्धि देना’ – इस एक ही मांग में सब आ जायेगा| मैं आपको एक कहानी सुनाता हूँ| एक सज्जन ने कहा कि मुझे धन चाहिये, दूसरे ने कहा मुझे सुन्दर पत्नी चाहिये, तीसरे ने कहा मुझे पदवी चाहिये और चौथे ने कहा मुझे बच्चा चाहिये| ईश्वर ने कहा- कोई एक मांग पुरी करेंगे तब एक बुद्धिमान व्यक्ति आये, वे गुजरात के थे, हो सकता है उड़ीसा के हो... वो बोले कि भगवान एक वर दो  कि मेरी बूढी माँ, मेरे बच्चे को सोने के झूले में झूलते हुए देख पाये| एक बुद्धिमान व्यक्ति वह है जो यह देखता है कि जीवन का सर्वोन्मुख विकास हो| इसके लिये प्रार्थना आवश्यक है| जो माता पिता यहाँ बैठे है, आप अपने बच्चो को प्रार्थना अवश्य कराओ, अपनी भाषा में कराओ| जरूरी नहीं कि प्रार्थना  संस्कृत में ही हो| प्रार्थना करो कि “हे ईश्वर हमें सदबुद्धि दो’ बुद्धि ठीक रहेगी तो सब कुछ ठीक होता रहेगा| बुद्धि गड़बड़ है तो सबकुछ होते हुए भी खो देता है आदमी| हैना ..| है कि नहीं....? कितने लोग मानते है...........? अपने बेटे के लिये आपने पैसा बना कर रखा पर उसकी बुद्धि ठीक नहीं हो तो क्या फायदा? अगर बुद्धि ठीक होगी तो वह स्वयं ही बना लेगा, यही विद्वान का लक्षण है|

बुद्धि प्रखर रहे – यही गायत्री मंत्र है| हमारे देश में वेदों की माता कहा गया- वेदमाता गायत्री| गायत्री मंत्र का अर्थ क्या है? ‘हे भगवान मेरी बुद्धि में आकर तुम बोलो, मेरे मन में आकर तुम बोलो, मेरी बुद्धि को प्रखर करो – उसका प्रचोदन करो’| सबसे ऊँचा मंत्र माना जाता है इसको| सबसे प्रमुख मंत्र | कहते है दुनिया में ऐसी प्रार्थना बिरले ही है| यह ऐसी प्रार्थना है कि हे भगवान मेरी बुद्धि  को ठीक ठीक रखो| अच्छी प्रार्थना और पढाई से बुद्धि प्रखर होती है| इसीलिए इस युनिवर्सिटी की जरूरत है|
युनिवर्सिटी (शब्द) का नामकरण भारत में ही हुआ – विश्व-विद्यालय| अर्थात पूरे विश्व में जो भी विद्या है उसको हासिल करने की जगह| या- यहाँ पर पढ़ कर, व्यक्ति ऐसा निखर जाए कि सारे विश्व को ज्ञान दे सके, ऐसी संस्था को विश्व विद्यालय कहा गया| बाद में इसका अनुवाद हुआ और इसे युनिवर्सिटी कहा गया| भारत में ऐसे विश्व-विद्यालय नालंदा में, मगध में, तथा तक्षशिला, जो अब पाकिस्तान में है, में रहे| जब हम पाकिस्तान गए थे, तब हम गए थे तक्षशिला में| यह एक ऐसी युनिवर्सिटी थी जहाँ से आयुर्वेद का उदय हुआ| यह सब भारत का ही अंग था| उन दिनों अफगानिस्तान भी भारत में था| एक ज़माने में भारत का ज्ञान दुनिया के कोने कोने में रहा , फिर जैसे भगवान कृष्ण ने गीता में कहा ‘स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप ॥ ’ – काल की गति में वह सब धूमिल होता चला गया, नष्ट हो गया, लुप्त हो गया| अब फिर समय आ गया है इसको उठाने का| इस ज्ञान से सब लोग लाभान्वित हों| हर एक के आंसू मीठे आंसू बन जाये, प्रेम के आंसू बन जाये, इस संकल्प के साथ सब को सेवा करनी है| हमने यहाँ सेवा की  किताब को रिलीज किया है, यहाँ काफी अच्छी सेवा हो रही है, मगर अगली बार जब मैं यहाँ आऊँ, तब यह किताब दुगुनी, तिगुनी  मोटी होनी चाहिये, उतनी अधिक सेवा होनी चाहिये|

फिर पर्यावरण के लिये हमें काम करना है| आज दुनिया में सबसे अधिक साग सब्जी उगने वाला देश कौनसा है? पता है....?  भारत....| सबसे अधिक गेहूं चावल कहा उगता है...? भारत में...| सबसे अधिक दूध कहाँ होता है...? भारत में| फिर भी सब कितना महंगा हो गया – साग सब्जी नहीं मिलती| महंगाई इतनी अधिक हो गयी, कहीं तो कुछ गड़बड़ हो गयी है| हम सबको इसमें रूचि लेनी पड़ेगी| हर एक घर में थोड़ा थोड़ा करके कुछ तो आप उगाना शुरू करो| भारत के जितने धार्मिक  ग्रंथ है, सब में यह उल्लेख है कि बीज वापन के बिना कोई पूजा-पाठ हो ही नहीं सकता| आपने देखा है ना.. जब नवरात्रों में पूजा करते है, सबसे पहले क्या करते हैं? दुर्गा माता की  स्थापना करते हो  तो सबसे पहले  क्या  करते हो? बीज बोते हो| बीज बोकर कर पेड़ उगाते हैं| इसलिए यह एक पवित्र रिवाज़ है - बीज वापन| मंत्रो  के साथ बीज बोना चाहिये| अच्छे विचारों के साथ बीज बोना चाहिये| अच्छे भाव के साथ बीज बोओ, उससे जो फल निकलते है उससे हमारी बुद्धि शुद्ध होती है| खेतों में भी ऐसा होना चाहिये, टेप रिकॉर्डर लेकर खेतों में भजन संगीत चलाना चाहिये| संगीत से पेड़ ज्यादा फल देतें हैं, यह सिद्ध हुआ है| वैज्ञानिक तरीके से लोगों ने इसे सिद्ध किया है कि पेड़ भी संगीत पसंद करतें हैं| इसलिए इतनी सारी चिड़ियाँ आकर बैठती हैं पेड़ उत्साहित होते हैं| उन पर और ज्यादा फल-फूल खिलने लगते हैं| हमारे देश में जब गेहूं बोते है, धान लगाते हैं और फसल काटते हैं तो सब गाते-गाते करते हैं कि नहीं? गावों में सब गाते-गाते करते थे कि नहीं? आज कल सब भूल गए हैं| अब तो सब रोते-रोते बोते हैं – रोते-रोते काटते हैं और रोते-रोते काटा हुआ फसल खा-खा कर लोग रोते रहते हैं – दिनभर | विद्वान का लक्षण यह है ‘ काव्य शास्त्र विनोदेन कालो गच्छति देवता’| काव्य हो, शास्त्र हो, संगीत हो, मजाक हो, विनोद में जिसका समय बीतता है उन्ही को विद्वान कहते है| तो हमारे देश में ऐसे विद्वान पैदा हों जो जहाँ भी जाएँ – मस्त रहें, और मस्ती फैलाएं चारो ओर... क्या...? ये कल्पना अच्छी लग रही है?  सबको ... कितने लोग ऐसा संकल्प लेना चाहते हैं, हाथ उठाओ...? हमारे स्कूल कालेजों में ऐसे प्रखर व्यक्तित्व निखरने चाहिये| हर व्यक्तित्व को हमें निखारना चाहिये|

अब रही बात यह कि लोग कहते है –‘गुरूजी, हम तो जीवन से थक गए| करते करते थक गए हम और सत्संग में आतें हैं तो यहाँ पर भी आप कहते हैं, ये करो वो करो| कुछ लोगों के मन में तो यह बात आ रही है कि हम तो जीवन की  थकान के मारे यहाँ आकर बैठे हैं, अब गुरूजी भी बोलते हैं – यह करो वह करो| मैं कहता हूँ – नहीं विश्राम करो| श्रम में परमात्मा नहीं मिलता – विश्राम में मिलता है| कितने लोगो को खुशी मिल रही है यहाँ ..? तो विश्राम करो – कुछ करना नहीं है| कुछ लोग जीवन में सिर्फ करने में ही लग गये, दिन-रात समाज सेवा में लग कर फिर इतना थक जाते हैं कि ना वो समाज सेवा होती है, ना कुछ और होता है| ना तृप्ति  मिलती है- लोग दुखी होते रहते हैं| यह किसी काम की नहीं| ऐसे दुखी मन से की गयी सेवा में कोई दम नहीं – कोई बल नहीं| कुछ लोग कुछ भी नहीं करते हुए आलसीपन में सारा दिन बिताते है| खाते पीते सोते टीवी देखते रहते हैं दिन भर | आज कल तो इतने हजारों चैनल हैं घुमाते रहो, बदलते रहो चैनल , बस दिन पूरा हो गया| नहीं भई नहीं! प्रवृति और निवृति दोनों साथ साथ चलनी चाहिये| प्रवृति माने- काम करो और निवृति माने- विश्राम करो| विश्राम में परमात्मा मिलता है,और परमात्मा रहने जो शक्ति मिलती है उसे समाज सेवा में लगाओ| यह प्रवृति है| काम करो और विश्राम करो – विश्राम करो और फिर काम करो इसीलिए ईश्वर ने दिन और रात दोनों बनाये| रात विश्राम के लिये और दिन काम के लिये| यह दोनों साथ साथ करना पड़ेगा| ठीक है ना....| जो इस तरह से थक गये हैं, उनके लिये मैं कहूँगा कि आप ध्यान करो| तुम आ जाओ ३-४ दिन के लिये, एडवांस्ड कोर्स में बैठो, मौन में चले जाओ| थके मारे तुम कुछ भी नहीं कर पाओगे| इसलिए जब थक जाते हो, अन्दर जाओ| अंतर्मुखी – सदा सुखी| जो अन्दर झांकता है, थोड़ी देर विश्राम करता है, वह हमेशा सुखी रहता है| इतनी एनर्जी मिलती है, इतनी शक्ति प्राप्त होती है, बल प्राप्त होता है, योग्यता प्राप्त होती है| अयोग्य व्यक्ति को ध्यान करना बहुत आवश्यक है ताकि वह योग्य बन जाये और योग्य व्यक्ति को भी ध्यान करना जरूरी है ताकि योग्यता बनी रहे, जो हमारे में क्षमता है वह छूट ना जाये| इसलिए योग्य व्यक्ति को भी रोज ध्यान करना चाहिये| थोड़ी थोड़ी देर बैठ कर ध्यान करो, मौन हो जाओ तब अंदरूनी शक्ति बढती है| तबियत ठीक रहती है, स्वास्थ्य ठीक रहता है, मन प्रसन्न होगा, बुद्धि तीक्ष्ण रहेगी| जीवन में खुशी पैदा होगी| और जो हम इच्छा करते हैं वो काम सहजता से पूरा होने लगता है| इसलिए हर एक को थोड़ी थोड़ी देर बैठकर योग और ध्यान का अभ्यास करना जरूरी है| ठीक है ना....|

आपको कुछ  कहना है?.. किसी को कुछ पूछना है?.. थोड़ी देर हम ध्यान करते है... आप सब लोग ध्यान करोगे.....? हाँ...| अच्छा मै एक बात और कहना चाहता हूँ| आपकी कोई भी समस्या है- वह मुझे दे देना| आप बोलो – गुरूजी यह आप ले लो| अपनी समस्या मुझे दे दो और आप देश की चिंता करो| कितने इंजीनियर्स हैं यहाँ पर? हाथ उठाओ.., मुझे आप सब की  जरूरत है| आप सब हमसे मिलिए, हमारे केंद्र से संपर्क करिये, ठीक है! हम ऐसे प्रोजेक्ट बना रहे है- आदर्श गांव के| कितने डाक्टर्स हैं? हाथ उठाइये... आपकी भी जरूरत है| कितने लॉयर्स हैं? आपकी भी जरूरत है| मैं चाहूँगा आप लोग २-३ केस, फ्री में करो ताकि जेलों में जो निरपराधी पड़े हैं, उनके पास वकील करने के लिये पैसे नहीं है, आप उन निर्दोष लोगो को उनके घर पहुंचाओ| आप लॉयर्स लोग यह कर सकते हैं, बाकी तो नहीं कर सकते, इससे बढ़िया सेवा और कुछ नहीं होगी| दोषी को नहीं छुड़ाना, जो निर्दोष हैं, ऐसे लोगो की मदद करो| डाक्टर लोगों से मैं कहूँगा कि आप के लिये मेडिकल कैंप हमारे व्यक्ति विकास केंद्र द्वारा आयोजित हो जायेगा| आप साल में तीन कैम्प करो, बहुत उपकार होएगा| हजारों लोग जो मेडिकल चेक-अप का खर्च वहन  नहीं कर पाते, उनकी बहुत बड़ी सेवा हो जायेगी| करोगे......? हाथ उठाकर बताइये, डाक्टर लोग... कितने लोग करोगे...? हमारे सत्संग में बोलने के बाद करना ही पड़ेगा| ठीक है|

अच्छा, एक और नया विचार यह आया कि अपनी यूनिवर्सिटी में सरपंचों के लिये एक कोर्स करायेंगे| हर एक गांव में अच्छे सरपंच के लिये| उनको सर्टीफिकेट भी मिलेंगे| सभी गावों में जो युवा लड़के लड़कियां है वो एनरोल करे और एक दो साल के लिये आ जाये तो डाक्टर मिश्रा उनको ट्रेंन  करेंगे| इनको ट्रेनिंग चाहिये| कई बार ऐसे लोग सरपंच बन कर आ जाते हैं, जिनको कोई ट्रेनिंग नहीं होती, कोई विजन नहीं होता, इनको पता ही नहीं होता कि कैसे चलाना है| इसी तरह जिला स्तर पर फिर आगे जाकर विधायक तक, ईमानदार और अच्छे प्रशासन (ओनेस्ट एंड गुड गवर्नेंस)  के लिये, अपना एक सर्टीफिकेट कोर्स बना दें| क्या विचार है...? कितने लोगो को यह आईडिया बहुत अच्छा लगा..? हाथ उठाओ...| देखो, सबको अच्छा लगा, बहुत ही अच्छा आईडिया है| आज सुबह ही एक सज्जन बता रहे थे कि गुरूजी, यह सब बहुत अच्छा होएगा| जिले के लिये, फिर विधायक के लिये, जिला परिषद के जो सदस्य बनेंगे, बनने से पहले वो यह कोर्स कर लेंगे तो वे लोग जान लेंगे, पढ़ लेंगे कि जिले को कैसे मजबूत करना है| एक आईडिया हो, विजन हो तो प्रोग्रेस  बहुत जल्दी हो जायेगी| बहुत अच्छा | तो मैं यही कह रहा हूँ कि अपनी सारी तकलीफ , समस्याएं यहाँ छोड़ो और मन में इस विश्वास के साथ जाओ कि जो अति उत्तम है वही आपके साथ होगा|

तो अभी हम लोग थोड़ी देर ध्यान करते हैं फिर और बाते करेंगे.
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एक बार आप इस पथ आ गये तो जान लीजिये कि आप शुद्ध हो गये हैं !!!

२४, नवम्बर, २०११

चंडीगढ़ में श्री श्री रविशंकरजी के साथ महासत्संग

क्या आप के सभी कार्य पूरे हो रहे हैं | इसे ही कृपा कहते हैं |
जो कोई भी इस पथ पर आता है उस पर कृपा बरसती है |
मेरे लिये फूल लाने के बजाय आप खुद फूल के जैसे खिल जाएँ | आपके चेहरे पर हर वक्त एक ऐसी मुस्कान होनी चाहिये जिसे आपसे कोई भी न ले सके | हर समय इस तरह आनंदमय रहें | जश्न और उत्साह के मध्य में यह न भूलें कि आप को साधना, सेवा और सत्संग भी करना है |

खुश रहे और दूसरों के बीच में भी खुशी का फैलाव करे |
“हंसो और हंसाओं, मत फंसो और मत फंसो फंसाओ - आप खुश रहे और दूसरों को भी खुश करे, खुद भी मत फंसो और दूसरों को भी मत फंसाओ |

जब मैं दूसरे स्थानों पर जाता हूँ तो मैं अक्सर कहता हूँ कि मुझे पंजाब की चिंता है | पंजाब में कई युवा, लड़के और लडकियां शराबी बन गये हैं या नशीली दवाइयों के सेवन के आदी हो गये हैं | यदि आप यहां बैठ कर कहते हैं कि गुरूजी हम आपसे प्रेम करते हैं तो यह पर्याप्त नहीं है | देश के सबसे बहादुर लोग पंजाब से होते हैं और यदि यह राज्य नशे की काली छाया में होगा, तो यह देश के लिये काफी बड़ा नुकसान होगा | भारत के लिये यह बहुत बड़ा नुकसान है |

इसलिये जो लोग नशे के आदि हो चुके हैं, आप उनसे कहे कि हम आपको ऐसा नशा देंगे जो कभी नहीं उतरेगा | आप उन्हें इस उत्सव में लाये जिसे वे कभी भी भूल न् पायें | फिर वे अपने नशे की लत से निकलकर सत्संग में आने लगेंगे |

हमें युवाओं को नशे की लत से निकालना होगा | मैंने सुना है कि ७५% युवा शराबी बन चुके हैं | हमें पंजाब और भारत को इससे बचाने की आवश्यकता है | हम सब को इसके लिये साथ में काम करना होगा | जो लोग नशीली दवा का सेवन कर रहे हैं, उन्हें प्राणायाम, ध्यान और सुदर्शन क्रिया करने को कहिये, फिर उनके सारे व्यसन छूट जायेंगे |

सभी युवाओं ने कसम लेनी चाहिये कि उनकी शादी में शराब का सेवन नहीं होगा | लोग दोनों गम और खुशी में शराब का सेवन करते हैं, और इससे उनकी सेहत खराब हो रही हैं | आप सब यह कसम लीजिये कि आपकी शादी में शराब का सेवन नहीं होगा | आपकी शादी में लोगों को खुशी के लिये होना चाहिये न कि शराब के सेवन के लिये |

२०१५ तक हमारे देश शराब की बिक्री ४ गुना और अधिक बढ़ जायेगी | इसलिये जब आप यह संकल्प लेंगे तभी यह बंद होना संभव हो पायेगा | उन सभी को इस पथ पर लायें |
इस वर्ष आर्ट ऑफ़ लिविंग ने ३० वर्ष पूरे किये | आप विश्व के किसी भी कोने में जाएँ वहां आपको आर्ट ऑफ़ लिविंग मिलेगा | यदि आप आर्कटिक ध्रुव के आखिरी शहर पर जायेंगे या ट्राम्सो(नॉर्वे) जहां दो महीनों तक सूर्योदय नहीं होता, वहां भी आपको लोग प्राणायाम, ध्यान और सुदर्शन क्रिया का अभ्यास करते हुये मिलेंगे | जब मैं हवाई अड्डे पर उतरा तो वहां कई लोग थे |

यदि आप दक्षिण गोलार्ध के सबसे दक्षिणी शहर, अर्जेंटीना के तिएर्रा डेल फ़ुएगो में जायेंगे, तो वहां भी आपको आर्ट ऑफ़ लिविंग मिलेगा | लोग इतने खुश हैं, कि उनके जीवन में काफी बदलाव आया है | हम सब एक विश्व परिवार बन गये हैं | यह तभी होता है जब आपका दिल शुद्ध और साफ होता है | यदि आप निरंतर ध्यान, प्राणायाम और ज्ञान में रहते हैं तो इससे आपका दिल इतना साफ हो जाता है कि आपका आशीर्वाद भी फलदायी बन जाता है |
एक बच्चे के जैसे बन जाएँ | एक बार आप जब आप इस ज्ञान के संपर्क में आ गये तो जान लीजिये कि आप शुद्ध हो गये हैं |
यह ज्ञान की गंगा है | जो भी इसमें डुबकी लगायेगा, वह अपने आप को पापी नहीं कहेगा | एक बार आप इस पथ आ गये तो जान लीजिये कि आप शुद्ध हो गये हैं |

आपको तीन बाते अपने मन में ध्यान रखनी हैं |

१. जो लोग शराब का व्यसन करते हैं उन्हें इस ज्ञान, योग, ध्यान, प्राणायाम और सुदर्शन क्रिया के पथ पर लाना है |
२. आप सब को यह कसम लेनी चाहिये कि आपकी शादी में शराब पेश नहीं की जायेगी |
३. और यह जान लीजिये कि आप शुद्ध हैं और आपका दिल साफ है | शुद्ध लोगों की संगत में आप भी शुद्ध हो जाते हैं | आपके सारे पूर्व के कर्म साफ हो जाते हैं |

प्रश्न: लोगों ने क्या करना चाहिये यदि उनकी इच्छा पूर्ण नहीं हो रही हैं ?
श्री श्री रविशंकर: कुछ समय के लिये प्रतीक्षा करें | कभी कभी आपको खुद पता नहीं होता है कि आपको क्या चाहिये, और कभी आपको कुछ चाहिये होता है लेकिन फिर आपका मन बदल जाता है | आपने कितने बार महसूस किया कि आपने जो इच्छा की थी, उसका पूरा न होना ही अच्छा था | (कई लोगों ने अपने हाथ उठाये )
इसलिये अपनी प्रार्थना के साथ इसे भी जोड़े कि, “यदि इससे कुछ अधिक मेरे लिये बेहतर हो तो उसे घटित करने की कृपा करे |
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प्रेम किसी अधिकार को सुनिश्चित नहीं करता


बैंगलुरू आश्रम, १८ नवम्बर २०११

प्रश्न: प्रिय गुरूजी प्रेम के खातिर क्या हमें सब कुछ त्याग देना चाहिये यहां तक अपनी पहचान और आदर्श इत्यादि |
श्री श्री रविशंकर: इसमें विवेक आवश्यक है |
प्रेम कोई भावनात्मक बात नहीं है |
कई बार लोग सोचते हैं क्योंकि मैं इतना अधिक समर्पित हूँ, मुझे यह विशेषाधिकार मिलना चाहिये, मुझे सबसे आगे बैठने को मिलना चाहिये | मुझे मेरे अनुसार चीज़े करने का विशेषाधिकार मिलना चाहिये | यह अच्छी बात नहीं है |
इस तरह प्रेम किसी अधिकार को सुनिश्चित नहीं करता !!!!
श्री श्री रविशंकर: सभी गुरूओं का सम्मान करे और सिर्फ एक पथ पर चले | क्योंकि आपने उनकी सेवा की हैं, इसलिये उन्होंने आपको यह ज्ञान दिया |

प्रश्न: गुरूजी यदि किसी के साथ कई रूपों में सम्मोहन और छल किया जा रहा हो तो उससे कैसे निकला जाये?
श्री श्री रविशंकर: सम्मोहन का प्रतिकारक ध्यान है | जो लोग ध्यान और प्राणायाम करते हैं, वे आसानी से सम्मोहित नहीं हो सकते | उन्हें  सम्मोहित करना अत्यंत कठिन होता हैं |

प्रश्न: गुरूजी, ॐ नमः शिवाय का अर्थ क्या है ?
श्री श्री रविशंकर: ॐ नमः शिवाय वह है जो पांचों तत्वों में रहता है |

प्रश्न: गुरूजी, कई बार कुछ लोग अंदर से कुछ प्रतीत होते हैं और बाहर से कुछ और प्रतीत होते हैं | सही क्या है, इसे कैसे समझें ?
श्री श्री रविशंकर : एक बात होती है, जिसे अंतर भावना कहते है | यदि कोई कहता है कि आप का स्वागत है परन्तु भीतर से आपको लगता है कि वह सिर्फ कहने के लिये कह रहा है कि आपका स्वागत है लेकिन सच में वह मेरा स्वागत नहीं कर रहा है | यह आपकी अंतर भावना ही है जो दूसरों की अंतर भावना की पहचान करती हैं | इसलिये आप उनके बाहरी रूप से मूर्ख नहीं बन सकते |

प्रश्न: प्रिय गुरूजी, मैंने पहली बार एडवांस कोर्स किया | एडवांस कोर्स के दौरान मैं अपनी तुलना दूसरों के साथ करता था | क्या अपनी तुलना दूसरों के साथ करना आवश्यक है ?
श्री श्री रविशंकर: आपको तुलना करने की आवश्यकता नहीं है |
मैं आपसे एक बात कहना चाहूंगा | आपको गहन अनुभव करने के लिये एडवांस कोर्स को बार बार दोहराना चाहिये | एक बार कोर्स करके यह न सोचे कि सब कुछ हो गया |
जब आप दूसरी बार कोर्स करते है तो आप और अधिक गहनता में जाते है और तीसरी बार आपकी समझ और अधिक बेहतर हो जाती है |

प्रश्न:  गुरूजी, मैं अक्सर अपने पुत्र से क्रोधित हो जाती हूँ और उसकी पिटाई कर देती हूँ | उसे सिर्फ समझाने से बात नहीं बनती | अब मैने यह अनुभव किया है कि वह पिटाई के उपरांत थोडा और चौकन्ना रहता है | क्या यह गलत है?
श्री श्री रविशंकर: आपको अपने बच्चों की बार बार पिटाई नहीं करनी चाहिये | साल में एक बार या कुछ सालों में एक बार यह ठीक है | परन्तु यह नियमित बात नहीं बनना चाहिये, अन्यथा उन्हें इसकी आदत हो जायेगी और और उनका रवैया कठोर बन जायेगा | आप उन्हें डांट सकते है लेकिन बार बार नहीं |

प्रश्न: गुरूजी, लोग कहते है कि महिलाओं के लिये ‘ॐ’का उच्चारण ठीक नहीं होता हैं | क्या यह सही है?
श्री श्री रविशंकर: नहीं ! पुरुष लोग भयभीत हैं कि यदि महिलायें ‘ॐ’ का उच्चारण करेंगी तो अधिक शक्तिशाली बन जायेंगी |
सिर्फ ‘ॐ’के उच्चारण करने का सुझाव नहीं दिया जाता है, आपको ‘ॐ’ के साथ कुछ जैसे ‘ॐ नमः शिवाय’ या ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ का उच्चारण करना चाहिये |
एक संप्रदाय कहता है कि यदि आप सिर्फ ‘ॐ’ का उच्चारण करेंगे तो आप में और अधिक वैराग्य आयेगा | इसलिये यह अच्छा होगा कि आप सहज समाधी मंत्र को ग्रहण करे |

प्रश्न: गुरूजी हमारे क्षेत्र के लोगों में इस ज्ञान को बाँटना एक चुनौती के जैसा है| क्या यह हमारा मन है जो बाधा बन रहा  है या अभी उनको यह ज्ञान मिलने का समय नहीं आया है ? 
श्री श्री रविशंकर: इसे कठिन या चुनौती न समझे | सिर्फ प्रयास करते रहे और फिर वह हो जायेगा |

प्रश्न: प्रकृति हमें सबकुछ दे रही है फिर भी वह इस संसार से इतनी क्रोधित क्यों है | फिर प्राकृतिक आपदा, भूकंप और बाढ़ क्यों? 
श्री श्री रविशंकर: प्राकृतिक आपदा इसलिये घटती है क्योंकि वह भी इसका हिस्सा होता है | फिर आप  प्रकृति का उपयोग अच्छे से नहीं करते है| आप इसके लिये अत्याधिक लालची बन गये हैं |
आप प्रतिदिन पृथ्वी पर बारूद लगाकर विस्फोट करते है | फिर एक दिन पृथ्वी को काँपना ही है, पृथ्वी भी जीवित जीव है |

प्रश्न:गुरूजी क्या यह सही है कि प्रत्येक पीड़ा के पीछे कुछ अच्छा छुपा हुआ होता है | यह कहां तक सही है?
श्री श्री रविशंकर: बैठ कर किसी बात का विश्लेषण न करे | जो भी अतीत में बीत गया वह मृत और जा चुका है, इसलिये भविष्य कि ओर बढ़े | पूरे अतीत को एक स्वप्न के जैसे देखे | अब तक जो कुछ भी हुआ हैं, वह एक सपने के जैसे ही तो हैं | भविष्य की ओर देखे कि अगले ३०-४० वर्षों में आप क्या करना चाहेंगे | उस के लिये पूरी ऊर्जा ओर उत्साह के साथ केंद्रित रहे |

प्रश्न: प्रिय गुरूजी जब भी मैं आपको देखता हूँ, तो मेरे आँसू बहने लगते हैं | ऐसा क्यों होता है?
श्री श्री रविशंकर: यह प्रेम के आँसू हैं | जब आप मुझे देखते है, तो आप प्रेम के कारण रोने लगते है |
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स्वीकार करने से मन को शान्ति मिलती है !!

२० नवम्बर २०११

प्रश्न: हमें कब दिमाग की और कब दिल की सुननी चाहिये ?
श्री श्री रविशंकर: व्यापार करते समय दिमाग की सुनें | जीवन यापन करते समय दिल की सुनें |

प्रश्न :बस्वन्ना (एक महान कन्नड़ कवि, जो कई सदी पूर्व में थे) ने कहा है, धर्म का शुरूआती बिंदु करुणा है’ | धर्म पर आपकी राय क्या है ?
श्री श्री रविशंकर: जो कुछ भी जीवन और मानवीय मूल्यों को उठाता है, वह धर्म है |

प्रश्न: जाति प्रथा के बारे में आपके विचार क्या हैं ?
श्री श्री रविशंकर: लोगों को जन्म के आधार पर वर्गीकृत करना गलत है | सभी मानव समान होते हैं |

प्रश्न: विश्वास बढ़ाने के लिये क्या करना चाहिये?
श्री श्री रविशंकर: इसके लिये प्रयास करने की आवश्यकता नहीं है | यह अपने आप आता है |
विश्वास तीन प्रकार का होते हैं :
१. स्वयं पर विश्वास
२. समाज पर विश्वास
३. सर्वोच्च शक्ति जो आप सब को नियंत्रित करती है |
यदि आप को इन तीनों में से किसी पर भी विश्वास हो तो आपका जीवन में विकास हो सकता है |

प्रश्न : गुरूजी आप हम सब से कहते हैं, आपनी सारी समस्यायें मुझे दे दीजिये | जब हम सिर्फ एक समस्या से निपटने में कठिनाई महसूस करते हैं, तो आप इतनी सारी समस्यायें कैसे संभाल लेते हैं ? श्रीश्री रविशंकर: आप अपनी सारी समस्यायें मुझे दे दीजिये | उनसे निपटने का मेरा अपना तरीका है |

प्रश्न: गुरूजी मेरी माँ कहती है कि एकादशी के दिन चावल नहीं खाना चाहिये, अन्यथा आपका अगला जन्म अच्छा नहीं होगा | क्या यह सही है ?
श्री श्री रविशंकर: नहीं ऐसा नहीं है | कुछ लोग एकादशी के दिन उपास करने का प्रण करते हैं | यह पूर्णतः व्यक्तिगत निर्णय होता है |

प्रश्न: गुरूजी काम के सिलसिले में मुझे कई बार होटलों और रेस्टोरेंट में खाना पड़ता है | क्या उस भोजन का मन पर पड़ने वाले प्रभाव को कम करने का कोई उपाय है ?
श्री श्री रविशंकर: भोजन का प्रभाव मन पर अधिक नहीं रहता  | उसका प्रभाव कम से कम २४ घंटे और अधिक से अधिक ३ दिन तक होता है, फिर वह खत्म हो जाता है | इसके लिये चिंता करने की आवश्यकता नहीं है |

प्रश्न:गुरूजी मुझे कई बार राजनीतिक परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है, जिसमें मेरे खिलाफ कई लोग होते हैं | मैं उस समय केंद्रित और शांत कैसे रह सकता हूँ? जब मैं घर आकर क्रिया करता हूँ और आपका स्मरण करता हूँ, तो मुझे शांति मिलती है|
श्री श्री रविशंकर: यदि आपने कोर्स नहीं किया होता तो आप उस परिस्थिति का कैसे सामना करते ? इसके बारे में सोचें |
जीवन में दो विषय हैं | पहला जीवन आर्ट ऑफ़ लिविंग कोर्स के पहले और दूसरा आर्ट ऑफ़ लिविंग कोर्स के बाद | इसलिये धीरे धीरे केंद्रित और शांत होने के लिये आपका विकास होगा | यदि आप उस समय कुछ अस्थिरता भी महसूस करते हैं, तो भी चिंता न करें और अपना अभ्यास जारी रखें |
एक दिन आप अनुभव करेंगे कि कुछ भी होने पर आप खुश ही है | आपकी खुशी को कोई भी नहीं ले सकता |
इस प्रकार की सजगता आपको एक दिन प्राप्त होगी |

प्रश्न: गुरूजी हमने लोगों और परिस्थितियों को स्वीकार करना सीखा है लेकिन कितनी सीमा तक ?
श्री श्री रविशंकर : आप स्वीकार करें और आपके स्वीकार करने से मन को शान्ति मिलती है | जब मन शांत होता है तो आप कृत्य कर सकते हैं | जब आप स्वीकार नहीं करते फिर आप बैचैन और क्रोधित हो जाते हैं | आप जो भी कृत्य करेंगे उस पर पछतावा करेंगें | इसलिये स्वीकार करना अनिवार्य है |

प्रश्न: मुझे पिछले ४ वर्षों से एक मनोविकार है जिसे सिज़ोफ्रेनिया कहते हैं | मैं इसलिये उपचार ले रहा हूँ परन्तु इसमें कोई सुधार नहीं है | चिकित्सकों ने मुझे उपचार जारी रखने की सलाह दी है, परन्तु मुझे यह विश्वास नहीं है कि मैं उनके उपचार से ठीक हो पाऊँगा | मुझे इसके कारण काफी कठनाई हो रही है |
श्री श्री रविशंकर: अपना उपचार चालू रखें | जब आप एक बार उपचार चालू करते हैं तो उसे  बंद नहीं करना चाहिये | दवाई का असर थोडा धीरे होता है | जब आप इन एलोपैथिक दवाई लेना शुरू करते हैं तो उसे बीच में बंद नहीं करना चाहिये |

धर्म, जाति प्रथा, विश्वास, एकादशी, केंद्रित होना, लोगों को स्वीकार करना
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