सत्य वो है जो समय से अप्रभावित है

प्र : गुरूजी, मैं अक्सर उलझन में पड़ जाता हूँ, मैं क्या करूँ?

श्री श्री रवि शंकर :
ConFused – Fusion with the consciousness and cosmos. माने अंग्रेजी के confuse शब्द में - 'चेतना और ब्रह्माण्ड के साथ विलय' छुपा हुआ है| तो जब भी तुम उलझन में हो, समझ लो कि तुम्हारा विकास हो रहा है|

प्र : 'सब परिवर्तनशील है' - मैं यह समझता भी हूँ और इस बात से मुझे बड़ी राहत मिलती है| पर अगर सब कुछ बदलने वाला है तो मैं यहाँ किस वजह से हूँ? ऐसा कौन-सा कार्य है जो हमें करने की ज़रुरत है? जब तक मुझे इस सवाल का जवाब नहीं मिल जाता, मैं आगे नहीं बढ़ सकता|

श्री श्री रवि शंकर :
ये जो प्रश्न या विचार है कि 'सब कुछ बदल रहा है' , इसने अपना काम कर दिया है| इसने आतंरिक जाँच कि भावना पैदा कर दी है| मैं यहाँ किस वजह से हूँ? ऐसा क्या है जो मुझे करना है? जीवन का उद्देश्य क्या है? ऐसे प्रश्न उठने चाहियें| ये दिमाग को खरोंचते हैं और तुम्हारे लिए एक नया मार्ग खोल देते हैं| इन प्रश्नों का उत्तर पाने की जलदी मत करो | अगर सब कुछ बदल रहा है तो ऐसा कुछ ज़रूर है जो कभी नहीं बदलता| इस ज्ञान का एहसास और इसके साथ जीना ही जीवन है| वही सन्दर्भ बिंदु है| तो इन प्रश्नों को लेकर विस्मित होना जारी रखो| ये जीवन से बेकार की बातों की चिंता हटा देगा, और तुम ईर्ष्यालु, लालची और क्रोधी बनने से बचे रहोगे|

प्र : प्रेम और सत्य क्या है? कोई रिश्ता बनाये रखूं या नहीं, इसका निर्णय कैसे लूँ?

श्री श्री रवि शंकर :
प्रेम और सत्य के बीच में एक अनोखा सम्बन्ध है| यदि प्रेम और सत्य के बीच में स्पर्धा हो तो ज़रूर प्रेम की ही जीत होगी| प्रेम के खो जाने के डर से कोई उस व्यक्ति से झूठ बोलता है जिसे वो सबसे ज़्यादा प्रेम करता है| वे डरते हैं कि अगर वे सच बोलेंगे तो उनका प्रेम खो जायेगा| तो शक्तिशाली क्या है? प्रेम शक्तिशाली है, और होना भी चाहिए| प्रेम क्या है? अगर ये तुमने अब तक नहीं जाना है, तो उसे जानने का कोई रास्ता भी नहीं है| इस ग्रह का कोई भी प्राणी ये नहीं कह सकता कि उसे पता नहीं कि प्रेम क्या है| क्योंकि ये हमारा दूसरा अनुभव है| हमारा पहला अनुभव पीड़ा का था| पहले नौ महीने आसान थे| हमें आरामदेह, कुनकुने वातावरण में आहार दिया जाता था| फिर एकदम से तुम्हें एक तंग मार्ग से निकलना पड़ा जहाँ तुम्हारा सर अटक गया था, जो कि बहुत पीड़ादायक था| बच्चा इस पीड़ा के कारण रोता है| पहले कुछ दिन शिशु बड़े विनोदी हाव-भाव और चेहरे बनाता है क्योंकि उसे एक पर्वत को हिलाने जितना महान कार्य किया मालूम पड़ता है| इस दर्द के बाद वे माँ के चेहरे की ओर देखता हैं और माँ का प्यार समझने लगता है| वे एहसास करता है कि वे स्वयं प्रेम है, और ये जानता है कि प्रेम के आलावा और कुछ है ही नहीं| तीन साल के होते-होते वे ये सब भूलने लगता है| यही वक्त है जब उनकी बुद्धि विकसित होने लगती है, और वह १०१ सवाल पूछने लगता है| बच्चा प्रश्न पूछते ही चले जाता है| आधे समय तो वह जवाब सुनता भी नहीं| तो सत्य क्या है? ये बहुत परिपक्व प्रश्न है| तुम प्रेम को जान सकते हो पर सत्य क्या है ये बता नहीं सकते| सत्य वो है जो समय से अप्रभावित है| इस परिभाषा के मुताबिक जो तुम देख रहे हो वो सत्य नहीं है| ये ईमारत सत्य नहीं है, ये पहले नहीं थी और भविष्य में शायद न भी हो| ठीक ऐसे ही शरीर को ले लो| ये भूतकाल में नहीं था और भविष्य में रहने वाला नहीं| तो शरीर भी सत्य नहीं है| जो भी कुछ बदलता है वो सच नहीं है| सत्य वो है जिसका अस्तित्व था, है और रहेगा| ये जो आतंरिक जाँच की भावना है कि वो क्या है जो समय से प्रभावित नहीं होता, तुम्हें उस तत्व की ओर ले जाता है जो कभी नहीं बदलता|

प्र : मैंने एक डॉक्टर को दिखाया था| उन्होंने कहा कि टमाटर, आलू, शिमला मिर्च और बैंगन बड़े घातक हैं| उन्हें नहीं खाना चाहिए| क्या 'श्री श्री आयुर्वेद' भी इस तरह के विचार कि तालीम देता है? मुझे ये सब्जियां बहुत पसंद हैं, क्या करूँ?

श्री श्री रवि शंकर :
फ़िक्र मत करो, तुम उन्हें खा सकते हो| आम तौर पर ऐसा कहा जाता है| लेकिन सिर्फ वही सब्जियां खाते मत रहना| उसे सेम, हरी सब्जी या दाल के साथ खाना| किसी भी चीज़ का अतिरिक मात्रा में होना हानिकारक है| बस ये सब ज़्यादा मत खाया करो| उसे रोज़मर्रा की दिनचर्या मत बना देना| हमारा ढांचा मज़बूत है| ये कम प्राण की वजह से होने वाले बुरे असर का मुकाबला कर सकता है|

प्र : आप पहली बार मेरा प्रश्न पढ़ रहे हैं| मैं कभी-कभी उदास हो जाती हूँ क्योंकि मुझे लगता है लड़के मुझे पसंद नहीं करते| किसी ने कभी मुझे बाहर ले जाने के लिए बुलाया नहीं है, और ना ही किसी को मुझसे रिश्ता जोड़ने में दिलचस्पी है और मुझे सचमुच एक प्यारा-सा रिश्ता चाहिए|

श्री श्री रवि शंकर :
अच्छा, मुझे इन मामलों का कोई अनुभव नहीं है! क्या तुम्हें यकीन है तुम्हें किसी ने बाहर ले जाने के लिए नहीं बुलाया है?ऐसा भी हो सकता है कि वे शर्मीले हों और तुम भी| जब तुम ऐसा महसूस करते हो कि मैं निकम्मा हूँ, बेकार हूँ, तो उसी तरह कि तरंगें उठतीं हैं| असल में तुम जितना सोचते हो उससे तुम कहीं ज़्यादा लायक हो| सुन्दरता तुम्हारे आत्म-विश्वास और तुम्हारी मुस्कान में है, तुम्हारे भीतर जो शांति है वही सच्ची सुन्दरता है| अपने पर भरोसा रखो और ब्रह्मांड से जुड़े रहो, फिर देखो सब कुछ कैसे बदलता है|

प्र : मैं उन लोगों के प्रति सजग हो गया हूँ जो हमारे खाद्य और जल संचय को नियंत्रित करना चाहते हैं | इसके लिए क्या किया जा सकता है?

श्री श्री रवि शंकर :
'आर्ट ऑफ़ लिविंग' इस पर बहुत ध्यान दे रही है| भारत में कुछ लोग आनुवांशिक रूप से परिष्कृत(Genetically modified plants) पौधों का उत्पादन करना चाहते थे| फ्रांस और अन्य देशों में इस पर प्रतिबन्ध लगाया गया है| 'आर्ट ऑफ़ लिविंग' ने बड़ी दृढ़ता से साथ में खड़े होकर इसका विरोध किया, और सरकार को ये रोकना ही पड़ा| ऐसा कार्य आप अकेले नहीं कर सकते| इसके विरोध में आपको एक जन आन्दोलन के रूप में खड़ा होना पड़ेगा, और इस तरह धरती को न्याय दिलाना होगा| कुछ गिने-चुने लोगों का लालच उनके दिमाग पर चढ़ जाता है | हम वैज्ञानिक प्रयोगों के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन ठीक से परिक्षण लिए बिना, इसकी साइड एफ्फेक्ट है कि नहीं इसकी जाँच किये बिना व्यापारिक उद्देश्य के लिए बड़े पैमाने पर उत्पादन करना स्वीकार्य नहीं है| जैसे कि आनुवंशिक रूप से संशोधित कपास की पहले साल में तीन गुना अधिक उपज हुई| दूसरे साल में भी फसल अच्छी हुई | हालाँकि इससे तीसरे साल में पूरी फसल नष्ट हो गयी और कई सारे किसानों ने आत्महत्या की| 'आर्ट ऑफ़ लिविंग' ने किसानों की आशा जगाने के लिए कार्य किया और उन्हें अपने जीवन की कीमत समझने में मदद की| पशु जिन्होंने आनुवंशिक रूप से संशोधित कपास खाया वे मर गए| इन फसलों से फैली वाइरस ने पेड़ों पर बुरा प्रभाव डाला| इससे सारा क्षेत्र अनुपजाऊ बन गया| कंपनी को बहुत सारा मुनाफा हुआ| ये आर्थिक हिंसा है| आतंक के कई रूप हो सकते हैं| आर्थिक हिंसा तब होती है जब कुछ लोगों का लालच बाकी सब लोगों को पीड़ित करता है| वे सारी अर्थ-व्यवस्था को अस्त -व्यस्त कर देते हैं और न जाने कितने घरों को उजाड़ कर रख देते हैं|

प्र : आप अद्भुत हैं| सिर्फ आप के साथ कुछ ही मिनट बिताने से मेरी सारी परेशानियाँ दूर हो गयीं| इन सब के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया| आप यीशु(Jesus) और उनके सन्देश के साथ कैसे एकाकार होते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
उनका सन्देश प्रेम का था| 'आर्ट ऑफ़ लिविंग' भी उसी के बारे में है| यीशु ने सेवा करने को कहा था, और 'आर्ट ऑफ़ लिविंग' भी सेवा से ही सम्बंधित है| ये यीशु के सन्देश के साथ १०० प्रतिशत बैठती है| हो सकता है ये चर्च की कार्यप्रणाली के अनुकूल न हो पर यीशु के विचारों के साथ ये यक़ीनन बैठती है| यीशु ने ये कभी नहीं कहा, "तुम पापी हो|" पहले के समय में जब लोग अशिष्ट थे, चर्च ने लोगों में भय और अपराध की भावना जगाने की कार्यप्रणाली अपनाई जो शायद इस युग के लिए उचित नहीं है| आज के युग में हम आधुनिक और मैत्रीपूर्ण हैं, हमें अपराध भाव और उदासी ले कर घुमने की ज़रुरत नहीं| हम यीशु के विचारों के साथ १०० प्रतिशत अनुकूल हैं| सबसे पहली प्राथमिकता है - दूसरों को और खुद को दोष मत दो| अगर तुम ऐसा करते रहोगे तो अपने मन को कभी स्थिर नहीं कर पाओगे, तुम लोगों से दूर भागोगे और खुद से भी| अपने आप को दोष देना बंद करो और दूसरों को भी|

प्र : भूतकाल को छोड़ना और समर्पित करना इतना मुश्किल क्यों है? मैं क्या करूँ?

श्री श्री रवि शंकर :
कुछ मत करो| बस अतीत में रहो| भूतकाल में जीना इतना आसान नहीं है| उसे स्वीकार करो, उसका सामना करो| तुम ठीक जगह पर हो| अतीत को समर्पित करना, उससे भागने की कोशिश करना नहीं है| ठीक है, आगे बढ़ो| अतीत को दोनों हाथों से गले लगाओ| अनुभवों से गुज़रने में कोई हर्ज़ा नहीं है | उनसे डरो मत| तुम उन्हें संभाल सकते हो| उसे टालते रह कर या उससे नफरत करके तुम उसे दूर नहीं भगा सकोगे|
कोई एक पुस्तक तैयार कर रहा है जिसमें समर्पण के पांच स्तरों का वर्णन है| तुम समर्पण की क्या परिभाषा करोगे? कई बार समर्पण शब्द का दुरुपयोग हुआ है| पहले प्रकार का समर्पण असफलता के समय आता है| जब तुम हार जाते हो, तब दुखी हो जाते हो और सब कुछ छोड़ देते हो| जब जीवन ज़्यादा करके किसी हार को लेकर एक बोझ हो, तब जैसा है वैसे छोड़ देते हैं, ये एक तरह का समर्पण है| दुसरे प्रकार का समर्पण प्रेम से आता है जैसे माँ का प्रेम होता है| माँ के लिए और किसी चीज़ का महत्त्व नहीं है| अगर उसे खुद के और बच्चे के सुख के बीच में चुनना हो तो वह बच्चे का सुख चुनेगी| पति-पत्नी के बीच प्यार का रिश्ता होता है, वे एक दुसरे के साथ बिलकुल आराम से, निडर और बेफिक्र होते हैं| माँ बच्चे से इतनी जुडी हुई होती है, वो बच्चे से इतना प्यार करती है कि बच्चे के लिए वह छोटी-छोटी सुविधाएं और अपने सुख ख़ुशी से छोड़ देती है| तीसरे प्रकार का समर्पण ज़्यादातर ज्ञान से आता है| आपको पता है कि वैसे भी कुछ नहीं है| आप जब इश्वर को समर्पण कर देते हो तब ऐसा होता है| चौथे प्रकार का समर्पण है - ये जानना कि सब भ्रम है| ये सोचना कि तुम्हें कुछ छोड़ना है जो तुम्हारे पास है ही नहीं, ये भ्रम ही है| ये बुद्धिमता का समर्पण है| ये एक आराम की स्थिति है जिसमें हम जानते है कि सब कुछ एक का ही है| इस तरह के समर्पण की स्थिति एक ही जगह पहुंचाती है - जहाँ छोटा मन तुम्हारे विशाल 'स्वरूप' की ओर खुलता है|

प्र : क्या कोई ऐसा अभ्यास है जिसका पालन करने से हमारे पीड़ा के कारण ख़तम हो जाएँ? क्या कोई ऐसी आनंद दायक पद्धति है?

श्री श्री रवि शंकर :
वास्तविकता के प्रति सजगता| अपने स्वरूप की पहचान जिससे तुम भक्ति और प्रेम की स्थिति तक जा सकते हो| ये स्वतः ही होता है| समर्पण करने की कोई ज़रुरत नहीं है क्योंकि ये पहले से ही है| ये जानना कि सब कुछ इश्वर का ही है, कांटें भी इश्वर के हैं और साथ ही फूल भी इश्वर के ही हैं| जब तुम समर्पण करते हो तो क्या होता है? तुममें एक अखंड शांति प्रकट होती है, एक मुस्कान जो तुमसे कोई नहीं छीन सकता| तुम आश्चर्य-चकित हो जाते हो कि ये सब भ्रम था| तुम मुस्कुराते हो ये समझ कर कि देने के लिए तुम्हारा अपना कुछ है ही नहीं| फ़र्ज़ करो तालाब में से तुमने मटका भरा और तुम पानी से भरा मटका पकडे हुए हो| फिर तुम वो पानी वापिस तालाब में डाल देते हो| तुम ऐसे इन्सान को क्या कहोगे जिसको लगता है कि उसने तालाब को पानी दिया है? ऐसा करने से ईश्वर से जुड़े रहने की भावना वापिस आती है, और अलगाव की भावना जो दुःख और पीड़ा का कारण है, ख़तम हो जाती है| ईश्वर से जुड़े हुए रहने कि भावना शांति और आनंद लाती है| तो इस आत्म-ज्ञान से, ध्यान के अभ्यास से, सत्संग की ध्वनि में एकाकार हो कर गाने से तुम उस एक चेतना में लीन हो जाते हो| सब लोग साथ में उस चेतना को, उर्जा को, सत्संग की ध्वनि को बांटते हैं - ये सत्संग है| सत्संग में सब जुड़ जाते हैं, सबके मन ब्रह्माण्ड की उर्जा के साथ एक हो जाते हैं| जब आप की जागरूकता केन्द्रित हो तब सत्संग में गाने से अधिक लाभ होता है|

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ज्ञान के विश्वीकरण से ही हिंसा मुक्त और तनाव मुक्त समाज बन सकता है


प्रश्न : लोग पीड़ित क्यों हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
सब में कुछ अच्छा और कुछ बेवकूफियां होती हैं| अपनी मूर्खता के कारण हम दुखी होते हैं|

प्रश्न : आप जीवन में सफलता को कैसे परिभाषित करते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
केवल सच्चे आत्मविश्वास के क्षणों में तुम सच्ची सफलता पहचान सकते हो|

प्रश्न : आप विनम्रता और आत्मविश्वास में कैसे संतुलन करते हो?

श्री श्रे रवि शंकर :
आत्मविश्वास और अभिमान एक साथ नहीं होते| आत्मविश्वास के साथ आप हर जगह और हर किसी के साथ सहज रहते हो| आप खुद भी आराम में रहते हो और हर कोई आपकी उपस्थिति में आराम महसूस करता है| जब आप अभिमानी होते हो, आप अपने को लोगों से बेहतर दिखाने की कोशिश करते हो| दो प्रकार के शिक्षक हैं| पहले, जो तुम्हे छोटे या अपर्याप्त बताते हैं ताकि तुम बड़े या पर्याप्त महसूस करना सीखो|
दूसरे, तुम्हे बताते हैं कि तुम महान हो, जागो और देखो कि तुम बहुत कुछ कर सकते हो| दोनों अलग अलग परिस्थितियों में आवश्यक हैं|

प्रश्न : किसी प्रिय को खोने के डर से कैसे बाहर आ सकते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
ध्यान से|

प्रश्न : मैं किसी वस्तु की लत से कैसे बाहर आ सकता हूं?

श्री श्री रवि शंकर :
प्यार, भय और लालच से| यदि आपको शराब यां सिगरेट की लत है, और मैं आपको कहता हूं कि आपको एक मिलियन डॉलर मिल जाएगा अगर तुम एक महीने के लिए धूम्रपान नहीं करोगे, तो तुम ऐसा करना बंद कर दोगे| लालच से भी बुरी आदत छूट जाती है| प्रेम से भी बुरी आदत छूट जाती है| एक कैथोलिक परंपरा है और भारत में भी ऐसा है - आप स्वीकार करते हो कि और कहते हो,"यह मेरी आदत है, मैं कैसे इसे बदल सकता हूं?" | तीसरा डर है| अगर मैं कहता हूँ कि आप एक महीने में मर जाओगे यदि आप अपनी आदत नहीं छोड़ते, तो आप उसे छोड़ देंगे| मैं प्रेम को अन्य दो से अधिक महत्व देता हूं|

प्रश्न : अगर प्रेम हर जगह है तो हम इसे क्यों खोजते रहते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
क्योंकि तुम्हे यह आभास नहीं है| एक बार यह जान लेने के बाद तुम नहीं खोजते|

प्रश्न : हम किसी को भीतर से माफ कैसे कर सकते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
किसी को माफ करने का संघर्ष क्यों करना? मत करो माफ और अगले जन्म के लिए भी पकड़ कर रखो| तुम्हे कुछ मुश्किल करने की ज़रूरत नहीं है| क्षमा करना आसान है| हर आपराधी में एक हिस्सा क्षमा और मदद की पुकार करता है| अन्याय करने वाले को आध्यात्मिक प्रगति नहीं है| मानवीय गुण विकसित करने के लिए आध्यात्मिक शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण है|

प्रश्न : लोग सुखी से अधिक दुखी प्रतीत होते हैं| ऐसे में ईश्वर कहां है?

श्र श्री रवि शंकर :
तुम्हे 'मौन की गूंज' पुस्तक पढ़नी चाहिए| ईशवर निर्माण करने वाला है, सब चलाने वाला और विनाशक भी है| कुछ लोगों में ईशवर की गलत धारणा है| कई लोग सोचते हैं कि ईशवर सर्वशक्तिमान है, और आप की एक गलती करने पर क्रोधित हो जाता है| पर ऐसा नहीं है| ईश्वर ने तुम्हे बुद्धि और समझ दी है| यह प्रकृति के नियमों में स्थापित है| पशु प्रकृति के नियमों का उल्लंघन नहीं करते हैं| जिसमें सब जन्मा है, सब मौजूद है और सब विलीन होता है, वही ईश्वर है|

प्रश्न : आपकी सबसे बड़ी इच्छा क्या है? मैं अपने को आपके निकट कैसे महसूस कर सकता हूं?

श्री श्री रवि शंकर :
तुम पहले ही निकट हो| मैं चाहता हूं अधिक से अधिक बच्चों को आध्यात्मिक शिक्षा मिले और एक हिंसा मुक्त और तनाव से मुक्त समाज बन सके| हमे ज्ञान का विश्वीकरण करने की आवश्यकता है| सेवा करो| हमे अपनी आय का २ प्रतिशत दान में देना चाहिए| इससे तुम्हे पुण्य और पाने वालों को बहुत राहत मिलेगी|

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"कोई काम आनंद की अभिव्यक्ति में करना या उस काम को आनंद की उम्मीद में करना - दोनों में अंतर है"


डार कोंसीटीच्युशन हॉल
वाशिंगटन डी सी,
अप्रैल २५,२०१०

'आर्ट ऑफ़ लिविंग' में हम एक योजना को लागु करने के लिए इन्तजार नहीं करते| हम काम करना शुरू कर देतें हैं और जो भी आवश्यक होता है अपने आप आने लगता है| इसे सिद्धि या पूर्णता कहतें हैं - जब जो कुछ भी आवश्यक होगा, मिल जाएगा| प्राणायाम और ध्यान की फिर यहाँ भूमिका है| इस से आप ऐसे बन जाते हो कि कोई कमी ही महसूस नहीं होती| हमें वापिस इस अवस्था में आने की आवश्यकता है| वातानुकूलित कमरे और सब तरह के ठाट का क्या फायदा यदि इससे साथ अनिद्रा और मुधुमेह जैसे रोग हों? इसलिए हमें अपने आसपास सकरात्मक उर्जा पैदा करने की जरूरत है| ये चिंतित रहने यां सोचते रहने से नहीं हो सकता| मैं आपको कार्य करने के दो तरीके बताना चाहूँगा| एक तो यह कि आप कुछ करते हो क्योंकि आप को कुछ चाहिए होता है, आप उस कार्य की पूर्णता से खुशी की उम्मीद करते हो| दूसरा, आनंद की अभिव्यक्ति के साथ कुछ करना ,आप एक कार्य करते हो क्योंकि आपके पास कुछ है| आनंद की अभिव्यक्ति के साथ कुछ करना और आनंद पाने के लिए कुछ करना , दोनों में बहुत अंतर है| आज दुनिया में बहुत से लोग अवसाद से पीड़ित हैं| आंकड़े बतातें हैं कि आने वाले दशक में यह संख्या बढ़ कर ५० प्रतिशत हो जायेगी| दुनिया की आधी जनसंख्या - यह बहुत दुःख की बात है| हमें इसे बदलना होगा| psychiatric दवाएं लेना समाधान नहीं है| ध्यान और प्राणायाम से ही यह बदला जा सकता है|

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ध्वनि में सामंजस्य सं"गीत है;चाल में सामंजस्य नृत्य है;मन में सामंजस्य ध्यान है;जीवन में सामंजस्य उत्सव है"


अप्रैल २४,२०१०

प्रेम सभी नकरात्मक भावनायों का जन्मदाता है| जिनको उत्तमता से प्रेम होता है वे शीघ्र क्रोधित हो जाते हैं| वे सब कुछ उत्तम चाहते हैं| उनमें पित्त अधिक होता है( प्राचीन विज्ञान आयुर्वेद के अनुसार शरीर की एक विशेषता)| वे हर चीज में पूर्णता ढूंढते हैं| ईर्ष्या प्रेम के कारण होती है| आप किसी से प्रेम करते हो तो ईर्ष्या भी आती है| लालच आता है जब आप लोगों की बजाय वस्तुयों को अधिक चाहते हो| जब आप अपने आप को बहुत ज्यादा प्रेम करते हो तो अभिमान बन जाता है| अभिमान अपने आप को विकृत रूप से प्रेम करना है| इस ग्रह पर कोई एक भी ऐसा नहीं है जो प्रेम नहीं चाहता और प्रेम से अलग रहना चाहता हो| फिर भी हम प्रेम के साथ आने वाले दुःख को नहीं लेना चाहते| ऐसी अवस्था कैसे प्राप्त की जा सकती है? अपने अस्तित्व और आत्मा को शुद्ध करके जो कि आध्यात्म द्वारा ही संभव है| हम पदार्थ और आत्मा दोनों से बने हैं| हमारे शरीर को विटामिन की आवश्यकता होती है| यदि शरीर में कोई पोषक तत्व नहीं हो तो शरीर में इसकी कमी हो जाती है| इसी तरह हम आत्मा भी है| आत्मा सुंदर,सत्य,आनंद,सुख,प्रेम और शांति है| मेरे अनुसार आध्यात्म वह है जिससे ये सारे गुण बढ़ते हैं और सीमाएं खत्म हो जाती है| हम अपने बच्चों और युवायों की इस अध्यात्मिक तरीके से परवरिश कर सकते हैं|
आजकल कॉलेज कैम्पस में हिंसा आम बात हो गई है| यह बड़े दुर्भाग्य की बात है| यदि वहां हिंसा है तो वहां मूलरूप में कुछ गलत है| जब मैं बड़ा हुआ उस समय अहिंसा और समभाव को बहुत गर्व से देखा जाता था| स्कूल और कॉलेजों में शांति,ख़ुशी,उत्सव और आनंद लाना होगा| पर अगर हम स्वयं दु:ख में है तो यह संभव नहीं होगा| पहले हमें अपने दुःख की ओर ध्यान देना होगा| यह कैच २२ की तरह है| यदि आप खुश नहीं हो तो आप दूसरों को खुश करने के लिए कुछ नहीं कर सकते| तो आप कैसे खुश हो सकते हो? खुश रहने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण महत्त्वपूर्ण है| दुखी होने के लिए एक तरीका है| यदि आप हर समय केवल अपने बारे में सोचते रहोगे - "मेरा क्या होगा?", तो आप उदास हो जाओगे| हमें अपने आप को किसी सेवा परियोजना में व्यस्त रखने और अध्यात्मिक अभ्यास की आवश्यकता है, जिससे नकारात्मक भाव खत्म होते हैं| इससे हमारा अस्तित्व शुद्ध होता है, भाव में खुशी आती है और सहज ज्ञान (Intuitive knowledge) प्राप्त होता है| अंतर्ज्ञान (Intuition) आवश्यक है| यदि आप कोई व्यापारी हो तो आपको किस शेयर में पैसे लगायें जाए, यह जानने के लिए अंतर्ज्ञान की आवश्यकता होगी| यदि आप कोई कवि हो या साहित्य से संबंध रखते हो तो भी आपको अंतर्ज्ञान की जरूरत होगी| यदि आप डॉक्टर हो तो आप को अंतर्ज्ञान की जरूरत होगी| डॉक्टर दवाई का सुझाव केवल अवलोकन के आधार पर ही नहीं देते| उसमें किसी और कारण का योगदान भी होता है - अंतर्ज्ञान| यहाँ पर उपस्थित सारे डॉक्टर मेरे साथ सहमत होंगे| अंतर्ज्ञान तब आ सकता है जब हम अपने भीतर जाते हैं| बिना अंतर्ज्ञान और आध्यात्म के जीवन बिना सिम के मोबिल इस्तेमाल करने जैसा है| हम प्रार्थना करतें हैं परन्तु उस स्रोत से सम्पर्क में नहीं होते | तब हम हैरान होते हैं कि हमारी प्रार्थना सुनी क्यों नहीं जा रही| क्योंकि हम में आध्यात्मिकता और मानवीय मूल्य नहीं होते| इस तरह से बहुत से लोग नास्तिक बन जाते हैं| उनके जीवन में एक घटना होती है, उनकी प्रार्थना सफल नहीं होती और वे भ्रम में आ जातें हैं| हम में से हर एक में विशाल क्षमता है| आपके विचार बहुत शक्तिशाली हैं| आप जो चाहें बना सकते हो| इसका मतलब यह नहीं कि कल ही तुम चाँद पर जा सकते हो परन्तु ऐसा होने के लिए पहले दृष्टि रखना आवश्यक है| पहले अंतर्ज्ञान की शक्ति आनी चाहिए| पहले यह विश्वास करो कि आपके लिए असीमित प्रेम और शांति में रहना संभव है| एक बच्चे के रूप में आप इस अवस्था का अनुभव कर चुके हो| तब हम जोश से भरे हुए थे| ऐसा अभ भी संभव है|

तब श्री श्री ने उपस्थित लोगों को ध्यान करवाया|

प्रश्न : क्या थोड़ा अहंकार ठीक है?

श्री श्री रवि शंकर :
अगर आप को पता चलता है कि आप में अहंकार है, तो भगवान के लिए इससे पीछा छुड़ाने की कोशिश मत करो| यदि आप अपने अहंकार से पीछा छुड़वा लेते हो तो यह उससे भी अधिक अहंकार के चक्र का कारण बन जायेगा| इसलिए यदि आप को पता चलता है कि अहंकार है तो इसे अपनी जेब में रख लो| अहंकार का केवल एक ही इलाज है - सरलता से रहो | आप आपने अहंकार से क्यों बचना चाहते हो? क्योंकि यह अन्य लोगों की बजाय आप को ज्यादा परेशान करता है| आप विवश और बेचैन हो जाते हो|आपको लगता है दूसरे लोग आपका आदर नहीं करते| आप अपनी तुलना अन्य लोगों के साथ करते हो| इस लिए मैं यही कहूँगा यदि आपको लगता है आपमें अहंकार है तो इसे रहने दो|हम इसके साथ नहीं उलझेगें| यदि ये आता है तो इसे आने दो|

प्रश्न : आजकल सरकारों और दुनिया की अन्य स्तिथियों में बहुत भ्रष्टाचार है | हम भ्रष्टाचार को कम करने के लिए क्या कर सकतें हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
भ्रष्टाचार तब शुरू होता है जब अपनेपन की भावना नहीं रहती| जब हममें अपनेपन की भावना होती है तो हम भ्रष्ट नहीं हो सकते| जब हम सबके साथ अपनेपन की भावना विकसित कर लेते हैं तो भ्रष्टाचार गायब हो जाता है| भ्रष्टाचार अपनेपन की सीमा के बाहर शुरू होता है|

प्रश्न : कोई हर रोज कैसे खुश रह सकता है?

श्री श्री रवि शंकर :
उदास होने के लिए कोई कारण होना चाहिए| खुश होने के लिए किसी कारण की जरूरत नहीं होती|

प्रश्न : जब कोई आपसे घृणा करे और उनकी उपस्थिति में आपको अच्छा न लगे, उस स्थिति में क्या करना चाहिए?

श्री श्री रवि शंकर :
उन्हें आशीर्वाद दो| शांत और निर्मल मन लेज़र की किरन की तरह हो जाता है| तब आपके पास आशीर्वाद की शक्ति आ जाती है| भारत और चीन में एक प्रथा है| जब भी घर में कोई शादी या समारोह हो तो आपको घर में सबसे बड़े व्यक्ति के पास जाकर उनका आशीर्वाद लेते है| इसके पीछे वैज्ञानिक कारण है| जैसे जैसे आप बड़े होते हो तो आप और अधिक निर्मल और संतुष्ट हो जाते हो| एक संतुष्ट मन के पास आशीर्वाद की शक्ति होती है| यदि आप संतुष्ट नहीं हो तो आपके पास आशीर्वाद की शक्ति नहीं होगी,तब आप किसी और को आशीर्वाद कैसे दे सकते हो? यदि आप अपने जीवन में पाने वाली वस्तुओं से कृतज्ञ हो तो आपमें लोगों को आशीर्वाद देने की योग्यता आती है| पहले आप केन्द्रित हो| यदि वे आपसे घृणा करते हैं तो क्या? आप खुश रहो और उनको आशीर्वाद दो कि उनका घृणा से पीछा छूट जाए| प्राय हम लोगों को सुधारने की कोशिश करते हैं क्योंकि उनके रवैये से हम परेशान हो जाते हैं| परन्तु यदि आपक इरादा उनमे बदलाव लाना है क्योंकि उनका बरताव उनको कष्ट दे रहा है तो, धीरे धीरे उनमे बदलाव अवश्य आएगा| क्या आप समझ रहे हो मैं क्या कह रहा हूँ?

प्रश्न : मैं ६३+ आयु का हूँ| क्या 'आर्ट ऑफ़ लिविंग' से मरने की कला भी सीख सकते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
आप भूल जाओ कि आप ६५ के हो| जाग जाओ, अभी देर नहीं हुई है| आपके अंदर गहराई में ऐसा कुछ है जो वृद्ध नहीं हुआ है| वह शुद्ध और गतिशील है| अपने आप को कम मत समझो| अपने आप को बेकार मत समझो| मैं आपको बताता हूँ,आप बैठ कर ध्यान कर सकते हो और आप दुनिया को आशीर्वाद दे सकते हो| तब सब कुछ अलग तरह से होगा| मैं आपके साथ हूँ| आप अकेले नहीं हो| यदि कोई भी किसी समय अकेला ,उदास,दुखी, नाखुश या उदास महसूस करे ,तब यह याद कर लेना आप अकेले नहीं हो| आप बिलकुल भी अकेले नहीं हो|

प्रश्न : क्या आप २०१२ के आसपास आने वाले बर्षों में बदलाव के बारे में कुछ कहेंगे? इसके बाद क्या होगा?

श्री श्री रवि शंकर :
मैं आपको आश्वासन देता हूँ कि हम २०१३ देख पाएंगे| जरा १९९९ में होने वाले अव्यवस्था को याद करो| कुछ लोगों ने छह महीने के लिए घरों में भोजन इकट्ठा करना शुरू कर दिया था | तब भी मैंने कहा था सब सामान्य होगा| २०१२ में भी सब सामान्य होगा| वास्तव में आने वाले बर्षों में आध्यात्म और अधिक फैशन में होगा और लोग और अधिक अध्यात्मिक बन जायेंगे|हर कोई चेतना के बारे में और अधिक समझ पाएंगे| इसी समय यहाँ पर ब्रह्मांड और अस्तित्व की कई परतें हैं| आने वाले समय में और अधिक जानने को मिलेगा| लोग समझ पाएंगे और विज्ञान भी अविष्कार करेगा|

प्रश्न : जब हम अपने आप और संबंधों पर संदेह करने लगें तो क्या करें?

श्री श्री रवि शंकर :
संदेह हमेशा अच्छी बातों पर ही होता है| आप जानते हो यदि कोई आपसे यह कहे कि वे आपसे प्यार करते हैं तो आप पूछ्ते हो,"सचमुच?"| परन्तु यदि कोई अपनी नफरत व्यक्त करता है तो आप इसे सच समझ लेते हो| यदि कोई आपसे पूछे "क्या आप खुश हो?" तो आप कहते हो "मुझे नहीं पता|" | हम जो भी अच्छा है उस पर संदेह करते हैं| हम प्रेम पर संदेह करते हैं| हम लोगों की अच्छाई पर संदेह करते हैं| हम ईमानदारी पर संदेह करते हैं| हम कभी बेईमानी पर संदेह नहीं करते| क्या ऐसा नहीं है? हम अपनी योग्यताओं पर संदेह करते हैं| हम अपनी त्रुटियों पर संदेह नहीं करते| आप अपनी उदासी पर संदेह नहीं करते|परन्तु अपनी ख़ुशी पर हमेशा संदेह करते हो| इस तरह अगर आप ध्यान दें तो संदेह हमेशा अच्छी बातों पर ही होता है|

प्रश्न : हम समाज में सेवा कैसे कर सकते हैं| दूसरा, मैं समाज में अच्छा व्यक्ति कैसे बन सकता हूँ?

श्री श्री रवि शंकर :
बहुत से तरीके हैं| आप 'आर्ट ऑफ़ लिविंग' के अध्यापक या स्वयंसेवक बन सकते हो| आप ग्रामीण बच्चों के स्कूल में मदद कर सकते हो| हजारों पढ़ रहे है और हजारों दाखिले के लिए इन्तजार कर रहे हैं| आप डोलर ए डे (Dollar a Day) प्रयोजना में हिस्सा बन सकते हो| एक दिन का एक डोलर एक बच्चे के लिए शिक्षा, मेडिकल ,भोजन और कपड़े प्रदान करता है| हम इस आडिटोरियम में १००० लोग हैं| यदि हम में से हर कोई एक बच्चे का प्रयोजक बन जाए तो और १००० बच्चों को शिक्षा मिल जाएगी| नहीं तो इन बच्चों को छोटी उम्र में काम करने लिए विवश होना पड़ता है| यदि आप कोई और परियोजना लेना चाहते हो तो
आप का स्वागत है| यदि आप अपना समय, छह महीने या एक बर्ष, देना चाहो तो आप किसी जगह जा सकते हो और लोगों में शांति ला सकते हो|आपका भारत में आपका स्वागत है|

प्रश्न: कभी कभी मुझे पता नहीं चलता मैं सही कर रहा हूँ| मैं साहस खो देता हूँ| ऐसी स्तिथि में क्या करूँ?

श्री श्री रवि शंकर :
ऐसे क्षणों में अपने भीतर विश्राम में रहो| आपके साथ सब सही होगा!

प्रश्न : यदि हर व्यक्ति इस धरती पर कोई एक ऐसा काम करना चाहे जिससे यह दुनिया एक बेहतर स्थान बन सके तो वह क्या होगा?

श्री श्री रवि शंकर :
आप इसे केवल एक ही पर सीमित क्यों कर रहे हो? हम सब कितने अलग अलग हैं| हर कोई अपनी विशेषज्ञता के अनुसार सेवा कर सकते हैं| परन्तु यदि आप केवल एक पर ही जोर देते हैं तो मैं कहूँगा "और अधिक मुस्कुराओ"| कुछ सेवा करो और अपना दायरा धीरे धीरे बढ़ाओ| तब आप और सेवा कर सकते हो| जितनी आप सेवा करते हो, आप उससे अधिक पाते हो |

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"दान संपत्ति को शुद्ध करता है|"


मिडवेस्ट एरलाइन सेंटर
मिलवॉकी

२३ एप्रिल, २०१०

प्रश्न : हम ईश्वर को क्यों ढूँढते हैं जब कि वो तो हमारे भीतर ही है|

श्री श्री रवि शंकर :
क्योंकि हमें पता नहीं है, हमारे मन में उसके बारे में सिर्फ़ एक धारणा है| तुम्हें ईश्वर का पूर्व अनुभव है| अगर तुम्हें मालूम ही न हो कि आम का अस्तित्व है, तो तुम उसे तलाश करने नहीं जाओगे| तुम किसी भी चीज़ जैसे 'बर-बर' की तलाश में नहीं निकलते हो, क्योंकि तुम्हें मालूम है कि 'बर-बर' जैसी चीज़ का अस्तित्व ही नहीं है| तो भूतकल में तुम्हें ईश्वर का अनुभव हुआ है, पर वर्तमान में वो नहीं है| ईश्वर को इधर-उधर मत ढूँढो| अपने भीतर गहराई में जाओ, भीतर देखो| विश्राम करो| वो तुम्हारे भीतर है|

प्रश्न : क्या सचमुच परम सत्य का अस्तित्व है?

श्री श्री रवि शंकर :
आदि शंकराचार्य ने कहा है कि सत्य की परिभाषा वो है जो समय से अछूती है| सत्य वो है जो कल भी था, आज भी है और कल भी रहेगा| तो इस परिभाषा के हिसाब से शारीर और मन सत्य नहीं हैं| सत्य संपूर्ण जगत कि बुनियाद है| हमारे अस्तित्व के केंद्र में कुछ है जो कभी नहीं बदलता और वही परम सत्य है| इसीलिए जब तुम वृद्ध हो जाते हो तब भी तुम्हें लगता नहीं है कि तुम वृद्ध हो गए हो| मन के किसी कोने में हमें मालूम है कि हम में कुछ है जो कभी नहीं बदलता और ना ही मरता है|

प्रश्न : क्या आध्यात्मिक होने के लिए धार्मिक होना ज़रूरी है?

श्री श्री रवि शंकर :
तुम कैसे रहते हो, कैसा महसूस करते हो, और जीवन और ब्रह्मांड के पहलुओं से कैसे जुड़े हो, ये अध्यात्म है| ये सभी धर्मों का निचोड़ है| धर्म के साथ अध्यात्म मिल जाए तो अद्भुत है, पर अध्यात्म के बिना धर्म विनाशकारी होगा!

प्रश्न : हम आनेवाली पीढ़ी के लिए आतंकवाद को किस तरह मिटा सकते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
आतंकवाद तब उठता है जब कोई ये सोचने लगे कि सिर्फ वही स्वर्ग में जायेगा और बाकी सब लोग नरक में जायेंगे| वे सोचते हैं कि वे सबको अपने रस्ते पर चलना सिखा दें ताकि वे भी स्वर्ग में जा सकें| इस तरह की संकुचित विचार-धारा ही दुःख का कारण है| यदि हर बच्चा बहुसांस्कृतिक वातावरण में शिक्षित हो तो उसकी सहनशीलता ज़रूर विकसित होगी| अगर अफ्गानिस्तान के बच्चों को थोड़ा उनके मूल धर्म के बारे में, और थोड़ा हिन्दू, इसाई और दुसरे धर्मों के बारे में सिखाया जाता तो वे शायद इतने असहिष्णु नहीं होते और तालिबान खड़ा नहीं होता| उन्हें बुद्ध और उपनिषद की महान बातों के बारे में थोडा-बहुत मालूम होना चाहिए| कृष्ण ने वही कहा जो कि यीशु ने| बहु-धार्मिक परवरिश विश्व में प्रेम और संवादिता ले आयेगी|
अंतर-धर्मिक शिक्षण और उसके परिचय से प्रेम और संवादिता ज़रूर आयेगी| यदि सभी देश अपने बजट में से २% ज्ञान और बुद्धिमता को सारे विश्व में फ़ैलाने में लगायें तो दुनिया का हरेक बच्चा एक ज्यादा खुश इन्सान बन सकेगा|
भारत से एक छोटी उम्र कि महिला 'आर्ट ऑफ़ लिविंग' की ओर से आईवरी कोस्ट में सिखाने के लिए गयीं| आईवरी कोस्ट में इस्लाम और ईसाई सम्प्रदायों में काफी अन-बन है| वो लोग अलग-अलग गांवों में रहते हैं और सदियों से वे एक दुसरे के प्रति ज़रा भी सहन शील नहीं रहे हैं| उस महिला के वहां रहते हुए सिर्फ एक महीने में उसके कार्य की वजह से दो अलग - अलग धार्मिक सम्प्रदायों के बीच बात-चीत शुरु हुई| मुसलमानों ने ईसाई गाँव में स्कूल खुलवाया| ईसाईयों ने मुसलमानों के लिए रोड और शौचालय बनवाये| ये चमत्कार बहुत कम समय में हुआ| अगर एक व्यक्ति इतना बड़ा बदलाव ला सकता है तो सोचो अगर हम सब साथ मिल जाएँ तो क्या हो सकता है| अगर हम साथ चलें तो कुछ बड़ा हासिल कर सकते हैं|

प्रश्न : आध्यात्मिक जीवन की खोज में धन की क्या जगह होनी चाहिए?

श्री श्री रवि शंकर :
समस्या तब होती है जब तुम पैसे जेब में ही नहीं बल्कि दिमाग में भी ले के घूमते हो| वैसे भी रात-दिन इसके बारे में सोच-सोच के क्या फायदा जब जेब खाली हो? पैसा एक साधन है जीवन को चलाने का, जीवन का लक्ष्य नहीं| विश्वास रखो कि तुम्हें जब भी जितने पैसों कि ज़रुरत होगी, मिल जायेंगे| इस आस्था के साथ प्रयत्न करो और आगे बढ़ो| इसके आलावा जो भी तुम कमाते हो उसका २-३% समाज के लिए खर्च करो| हम इसे धन-शुद्धि कहते हैं|
संस्कृत में एक शब्द है अन्न शुद्धि| इसमें चावल में घी डालने को कहा गया है| अगर तुम बिना कुछ डाले चावल खाओ तो वो तुम्हारे शारीर के लिए इतना अच्छा नहीं है क्योंकि इससे तुम्हारे शारीर में शक़्क़र का प्रमाण एकदम से बढ़ जाता है| तो इस में ज़रा-सा घी डालने से शक़्क़र को स्टार्च में बदलने कि प्रक्रिया धीमी हो जाती है| इस तरह पाचन क्रिया धीमी पड़ने से तुम्हें डायबिटीस होने का खतरा कम रहता है| इसलिए हम कहते हैं घी डालने से चावल शुद्ध हो जाता है| इसी तरह ज़रुरत-मंदों को देने से धन शुद्ध हो जाता है| 'आर्ट ऑफ़ लिविंग' गाँव के स्कूलों में सेवा-कार्य कर रही है|
'डॉलर अ डे' कार्यक्रम में हम बच्चों को भोजन, कपड़े और शिक्षा दिलाते हैं| हमारे पास इस तरह के ज़रुरत-मंदों के लिए ऐसे १०० स्कूल हैं| ये बच्चे को ज़बरदस्ती के बाल-श्रम से छुटकारा दिलाता है| इससे उनके सर से बोझ उतर जाता है | ये बच्चे क्षेत्र में पढ़नेवाली पहली पीढ़ी बनते हैं और ये बदलाव बहुत प्रभावशाली है| ये ऐसा है जैसे किसी को मछली देने के बजाए उसे मछली पकड़ना सिखाना ज्यादा लाभदायक है| साथ ही अगर महिलाओं को ऐसे सशक्त बनाने वाले कार्यक्रम में भारती किया जाये तो बहुत अद्भुत रहेगा| यही ज़रूरी है - शिक्षा जो तकनिकी , वैज्ञानिक और साथ ही आध्यात्मिक हो|

प्रश्न : जो लोग धोखाधड़ी या अन्य अपराध करते हैं उन्हें कैसे प्रेम करते रहें?

श्री श्री रवि शंकर :
ये लोग ऐसे नहीं हैं जिनको सुधारा ही न जा सके| हर अपराधी उसकी कमजोरियों का शिकार है जो मदद की पुकार करता है | अगर तुम गौर से देखो तो पाओगे कि समाज में लालची लोगों के कोई दोस्त नहीं होते| जैसे ही वे दोस्ती करते हैं, लालच गायब हो जाता है|
इसी तरह भ्रष्टाचार मित्रता के अन्दर हो ही नहीं सकता| बेईमान और धोखेबाज़ लोग असल में अपनी कमजोरियों के शिकार होते हैं| क्योंकि इन्हें अध्यात्म कि शिक्षा नहीं दी गयी है| पता है, हमने अपने सब कार्यक्रमों में, खास कर के 'प्रिजन स्मार्ट') प्रोग्राम में देखा है कि एक अपराधी के अन्दर भी एक अच्छी आत्मा है जो मदद के लिए रो रही है और प्यार के लिए तरस रही है| हम उनकी मदद कर सकते हैं|

प्रश्न : नींद के दौरान हमारा मन कितना सक्षम होता है? क्या चेतना की सभी सतहों के पर जाना मुमकिन है?

श्री श्री रवि शंकर :
सजग अवस्था में तुम्हें सबसे अच्छा विश्राम ज्ञान से मिलता है| स्वप्न की अवस्था गहरा विश्राम है| निद्रा उससे भी गहरा विश्राम है| चौथी अवस्था ध्यानावस्था है| यह तुम्हे पूर्ण विश्राम देती है|

प्रश्न : ह्रदय रोग से पीड़ित व्यक्तियों को प्राणायाम और ध्यान से क्या लाभ हो सकता है?

श्री श्री रवि शंकर :
अनुसंधान बताते हैं कि श्वास और ध्यान से कोलेस्ट्रॉल कम होता है और हृदय मजबूत होता है|इनसे तनाव कम होता है, होरमोन नियंत्रित होते हैं और ग्रंथियों पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है|

प्रश्न : हमें सुबह जगने पर सबसे पहले और रात को सोते समय आखिर में क्या करना चाहिए?

श्री श्री रवि शंकर :
आइने में अपना चेहरा देखो और अपने आप को एक बड़ी-सी मुस्कान दो| अगर मुस्कुरा नहीं सकते तो भौहों को चढ़ा के देखो| धीरे धीरे तुम मुस्कुराना शुरू कर दोगे|

प्रश्न : आत्म-प्रेम कितना ज़रूरी है? क्या ये ज़रूरी है कि हम दुनिया को प्यार करने से पहले अपने आप को प्यार करें ?

श्री श्री रवि शंकर :
हाँ, पर बैठ कर यह मत जपते रहो कि "मैं खुद को प्रेम करता हूँ" | क्या तुम "मैं मिल्वौकी में हूँ" ऐसा जपते रहते हो? तुम्हारा शारीर, मन और चेतना सत्य, प्रेम, सौन्दर्य और शांति से बने हैं| बस समझ लो कि तुम अपने आप से प्रेम करते हो| अगर तुम्हें ऐसा लगता है कि तुम खुद से प्रेम नहीं करते तो ये तुम्हारा भ्रम है|

प्रश्न : क्या आप मानते हैं कि यह समय मानव विकास का बड़े पैमाने पर वैश्विक परिवर्तन का युग है?

श्री श्री रवि शंकर :
तीस साल पहले आध्यात्म और ज्ञान पर लोगों को बड़ा पूर्वग्रह था| लोग आध्यात्म को दस कदम दूर रखते थे और सोचते थे ये सब उनके लिए नहीं है| आज इन सब को लोग स्वीकृति से देखते हैं| वे ये देखने के लिए तैयार हैं कि उन्हें इन सब से कितना फायदा है और उनका पूर्वग्रह कम हुआ है| इससे मानवीय मूल्य और ऊपर आएंगे| और २०१२ की फ़िक्र मत करना| मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ कि विश्व का विनाश नहीं होने वाला है|

प्रश्न : जिसे हम मृत्यु कहते हैं, उसके परे का अनुभव क्या है?

श्री श्री रवि शंकर :
तुम्हें अभी के अभी सब कुछ क्यों जानना है? मैं नहीं चाहता कि मरने के बाद भी तुम उब जाओ| पहले हम जीवन को समझ लें, उसके बाद हम मृत्यु को समझेंगे|

प्रश्न : संसार में आप सबसे ज्यादा आशावान किस बात के लिए हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
मैं अपनी दृष्टि के बारे में सबसे अधिक वास्तविक हूँ| अभी तक 'आर्ट ऑफ़ लिविंग' १५१ देशों में पहुँच चुका है| बहुत से लोग ये तकनीक सीख रहे हैं| अगर मोबाइल फोन की तकनीक दुनिया में सब जगह फ़ैल सकती है, तो लोगों को खुश और शांत बनाने की तकनीक और बुद्धिमता घर-घर क्यों नहीं पहुँच सकती? यह ज़रूर पहुंचेगी| हममें मुश्किल कार्य को संभव करने की दृष्टि होनी चाहिए| ये मेरी आदत और रूचि है|

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"तकनीक ने सारे संसार को एक गांव में और अध्यात्म ने एक परिवार में बदल दिया है"


२२ अप्रैल २०१०
Wayzata Community Church,
Minneapolis

प्रश्न : वेदान्त के अनुसार हम सब एक हैं | पर हमारे व्यक्तित्व और विचार
अलग-अलग क्यों हैं ?

श्री श्री रविशंकर :
प्रत्येक चीज़ अणुओं से बनी है| जैसे फर्नीचर लकड़ी से
बनता है| दरवाजा, बेंच, मेज, कुर्सी – सब लकड़ी से बने हैं| लकड़ी इन सभी
चीज़ों में है, लेकिन इनका काम अलग-अलग है| दरवाजा कुर्सी की तरह
इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, और न मेज़ को दरवाजे की तरह इस्तेमाल किया जा
सकता है| परमाणु-भौतिकी अद्वैत के सिद्धांत पर आधारित
है|

प्रश्न : तनाव को बिना संघर्ष के कैसे संभालें?

श्री श्री रविशंकर :
पहले आंतरिक शान्ति प्राप्त करो, फिर तुम
परिस्थितियों को संभाल सकते हो| जब तुम शांत होगे, तब तुम्हें हल मिलेगा|
क्या तुम्हारा मतलब सम्बन्धों की समस्याओं से है? यदि तुम्हारा प्रश्न
परिवार के झगड़ों से सम्बंधित है, तो इसके तीन विकल्प हैं;

महिलाओं के लिये सलाह : अपने पति को स्वयं को सिद्ध करने के लिये मत कहो|
उसके स्वाभिमान को बढ़ाओ| भले ही पूरा संसार उसे मूर्ख कहे, लेकिन एक
पत्नी के रूप में तुम हमेशा उसकी तारीफ़ करो| तुम उससे कहो कि “ तुम
बुद्धिमान हो| यह अलग बात है कि तुम अपनी पैनी बुद्धि का प्रयोग नहीं
करते|” उसके अहं को कभी न कुचलो| संसार में उसे स्वयं को सिद्ध करना पड़ता
है, लेकिन जब वह घर आता है तो वह विश्राम चाहता है| उसे घर में स्वयं को
सिद्ध करने की ज़रूरत नहीं होनी चाहिये|

पुरुषों के लिये सलाह : अपनी पत्नी की भावनाओं को कभी ठेस मत पहुं्चाओ|
वह तुम्हें घर की समस्याओं के बारे में बताएगी और अपने पिता, भाई या
रिश्तेदारों की शिकायत भी कर सकती है|लेकिन, यदि तुम भी उसमे शामिल हो जाते हो तो वह पक्ष बदल लेगी| फिर तुम्हे ही कुछ सुनना पड़ सकता है|
यदि वह किसी आध्यात्मिक या धार्मिक कार्यक्रम में जाना चाहती है, तो उसे
मत रोको| यदि वह बाज़ार जाना चाहती है, तो उसे अपना क्रेडिट कार्ड दे दो|

दोनों के लिये सलाह : अपने प्रति किसी के प्रेम पर कभी सवाल न उठाओ| अगर
कोई तुमसे बार बार अपना प्रेम सिद्ध करने के लिये कहे, तो तुम्हें कैसा
लगेगा? यह भार स्वरुप होगा| मांग प्यार को नष्ट कर देती है| प्यार कभी मांगो
नहीं| इसके बजाय तुम यह कहो, “ तुम मुझे इतना ज्यादा प्यार क्यों करते या
करती हो| मैं तुम्हारे प्यार के लायक नहीं हूँ|” जैसे ही तुम यह कहोगे,
अगला व्यक्ति पिघल जाएगा और तुमसे और अधिक प्यार करने लगेगा तथा
तुम्हारी गलतियां भी माफ कर देगा|

प्रश्न : श्री श्री, आपकी उपस्थिति में मुझे लगता है कि अन्धकार मिट गया
है और मैं प्रकाश व प्रसन्नता का अनुभव करता हूँ| मैं इस स्थिति को कैसे
बनाए रख सकता हूँ?

श्री श्री रविशंकर :
ध्यान करो, सेवा करो, सेवा-कार्यक्रम का एक अंग बन
जाओ| तुम मेरे नज़दीक होगे और इस प्रकार अपनी स्थिति को भी बनाए रख सकोगे|

प्रश्न : किशोरों को संभालने वाले माता-पिता को आप क्या सलाह देंगे?

श्री श्री रविशंकर :
'आर्ट ऑफ लिविंग' फाउन्डेशन के ‘नो युअर चाइल्ड’
वर्कशाप जैसे कार्यक्रम हैं जो माता-पिता को अपने बच्चों को बेहतर
समझने में मदद करते हैं|

प्रश्न : बिना अपेक्षायों के जीवन में बड़े लक्ष्यों को
कैसे पा सकते हैं?

श्री श्री रविशंकर :
पूर्ण खिलने के लिए और ऊंचा उठने के लिये आवश्यक सभी चीज़ें तुम्हारे पास हैं|सुदर्शन क्रिया करो, ध्यान करो| ‘पार्ट-२ / मौन की कला’ कार्यक्रम
में सहभागी अपनी प्रतिभाओं को निखरता हुआ और नई योग्यताओं को बढ़ता हुआ
महसूस करते हैं|

प्रश्न : अगर कोई वुअक्ति गलत सम्बन्ध में फंस जाए तो उसे क्या करना चाहिए?

श्री श्री रविशंकर :
पहले अपराध-बोध से बाहर निकलो| कोई दूसरा तुम्हें
इससे बाहर नहीं निकाल सकता| हम सब के केन्द्र में एक ऐसा हिस्सा है जो घटनायों और परिस्थितियों से अछूत रहता है| वह हमेशा शुद्ध और निर्मल है| जब हम अपनी समस्याओं के बारे में बहुत अधिक बात करते हैं, तो हमें उनके बारे में बात करना अच्छा लगने लगता है| सत्य और सुलह
महत्त्वपूर्ण हैं|

प्रश्न : श्री श्री, जब आनंद हमारी प्रकृति है, तो हम अपनी प्रकृति से
नाता क्यों तोड़ लेते हैं? हम भटकने क्यों लगते हैं?

श्री श्री रविशंकर :
आध्यात्मिक उन्नति तुम्हें आनंद दे सकती है और
तुम्हें अपनी प्रकृति से जुड़ा हुआ रख सकती है|

प्रश्न : आप महात्मा गांधी की तरह हैं? क्या उन्होंने आपको प्रेरणा दी है?

श्री श्री रविशंकर :
जब हम छोटे बच्चे थे, हम गाँधी जी की कहानियां सुनते
हुए बड़े हुए| हम अहिंसा में गर्व महसूस करते बड़े हुए| मेरे अध्यापक
गांधी जी के निकट संपर्क में थे| अहिंसा की कहानियां हमारी शिक्षा का एक
अंग थीं| किसी को चोट पहुंचाने के बारे में हम सोच भी नहीं सकते थे| यह
भाव हमारे जीवन का एक अंग था|

प्रश्न : धार्मिक-अपवादों के बारे में आप क्या सोचते हैं? ऐसे घोटाले
से कैसे बच सकते हैं|

श्री श्री रविशंकर :
अगर किसी ने ऐसी गलती की है तो उसे साधारण तरह से
इसे स्वीकार कर लेना चाहिये| हर क्षेत्र में ऐसे लोग हैं जो झूठ बोलते है| इसके लिये क्षेत्र को दोष मत दो| ऐसे भी डॉक्टर हैं जो गुर्दे चुराते हैं और चंद पैसों में बेचते हैं| कुछ लोग ऑपरेशन से डरते हैं|लेकिन तुम सभी डॉक्टरों पर शक नहीं कर सकते| चिकित्सा और शिक्षा जैसे
आदर्श व्यवसाय भी आज भ्रष्ट हो गए हैं| सतर्कता और मानसिक उन्माद के बीच एक पतली
सी रेखा है| पक्षपात जन्मता है जब तुम वह रेखा पार करते हो|

प्रश्न : कोई भविष्य-वाणी कि संसार कब एक होगा?

श्री श्री रविशंकर :
जब तुम और मैं साथ-साथ काम करना शुरू कर देंगे| तकनीक
ने सारे संसार कों एक गाँव बना दिया है| अध्यात्म इसे एक परिवार बना
देगा|

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"अपनी क्षमता के अनुसार और बिना किसी अपेक्षा के किए जाने वाला कर्म सेवा है"

GODDESS LAXMI(LEFT) AND GODDESS SARASWATI(RIGHT)

संगीत हमे जोड़ता है और ध्यान हमे अपनी भीतर गहराई में ले कर जाता है| इससे हम में संपूर्णता आती है| यदि आप भारत में ज्ञान की देवी सरस्वती को देखें तो पाएँगे कि वे एक चट्टान पर बैठतीं हैं| चट्टान स्थिर और अचल है| यह इस बात का प्रतीक है कि सीखा हुआ ज्ञान आप का हिस्सा बन जाता है| जब कि धन की देवी लक्ष्मी कमल के फूल पर विराजमान हैं| बरसात आती है और पानी के बहाव के साथ कमल का फूल भी हिलता है| देवी सरस्वती के हाथों में वीणा, पुस्तक और माला है| पुस्तक ज्ञान का, वीणा संगीत का और माला ध्यान के प्रतीक हैं| ध्यान, ज्ञान और संगीत - ये तीन पहलू हमें जीवन में उतारने चाहिए|

प्र : 'आर्ट ऑफ लिविंग' व्यक्ति की धार्मिक मान्यताओं और पद्धतियों से कैसे संबधित है?

श्री श्री रवि शंकर :
आप अपनी मान्यताएँ और पद्धतियाँ बनाए रख सकते हैं क्योकिं 'आर्ट ऑफ लिविंग' में हम विविधता में विश्वास रखते हैं| अपना धर्म निभाते हुए अध्यात्म में आगे बढ़ा जा सकता है|

प्र : मुश्किल के समय में देखा गया है कि शासन, व्यापार और धर्म के क्षेत्र में लोग हमारी आशाओं पर पानी फेर देते हैं| आपके हिसाब से ऐसे में परिस्थिती कैसे संभाल सकते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
महात्मा गाँधी ने ऐसे नेताओं की एक नस्ल बनाई जो दुनिया के चारों ओर सम्मानित हुए|
राजनीति में अध्यात्म , ज्ञान का विश्विकर्ण और धर्म में धर्मनिरपेक्षता आव्श्यक है| हर किसी को हरेक धर्म के बारे में थोड़ा बहुत मालूम होना चाहिए| यदि सभी बौध धर्म, हिंदू धर्म, सिख धर्म, जैन धर्म और ईसाई धर्म के बारे में थोड़ा-थोड़ा सीख लें तो हमारे पास धर्म का एक पूरा सम्मिश्रण तैयार मिलेगा| यही एक तरीका है जिससे हम एक दूसरे को समझ सकते हैं और आध्यात्म की तरफ आगे बढ़ सकते हैं| अगर हर बच्चा हरेक धर्म के बारे में थोड़ा-बहुत जानता हो, तो वे सभी धर्मों को स्वीकार करते हुए आगे बड़ेगा |

प्र : सेवा का ऐसा कौनसा कार्य है जो हर कोई कर सकता है?

श्री श्री रवि शंकर :
कोई भी कार्य सेवा का कार्य हो सकता है| दुनिया आप से ऐसे काम की आशा नहीं करेगी जो आप से न हो सके| आप जो भी कर सकते हैं और बदले में बिना किसी अपेक्षा के जो आप करते हैं वही सेवा है| कोई भी कार्य दो तरह से हो सकता है| पहला, हम इसलिए करें कि हमें काम पूर्ण होने के बाद खुशी की अपेक्षा है| दूसरा, हम आनंद के साथ कार्य पूर्ण करते है| नौकरी और सेवा में यही फ़र्क है|

प्र : मेरे दिल और दिमाग़ हमेशा संघर्ष करते रहते हैं| मुझे किसका कहना मानना चाहिए?

श्री श्री रवि शंकर :
दोनो का अलग-अलग समय पर इस्तेमाल करो| व्यापार दिल से नहीं बल्कि दिमाग़ से करो| सेवा दिमाग़ से नहीं बल्कि दिल से करो|

प्र : कैसे मालूम हो कि किसी को कब माफ़ करना है?

श्री श्री रवि शंकर :
जब कोई चीज़ तुम्हें बहुत परेशान करने लगे|

प्र : आप में जो इतनी शक्ति है, इतना बड़ा दिल है और इतनी करुणा है- इसका राज़ क्या है?

श्री श्री रवि शंकर :
सादगी| जब आप अपने स्वभाव से हटकर कुछ और बनने का प्रयत्न करते हैं तब ये आपको थका देता है| जब आप किसी को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं या किसी से कुछ उम्मीद रखते हैं तो भी आप बोझ महसूस करने लगेंगे|

प्र : मुझे हवाई जहाज़ की उड़ान से बहुत डर लगता है| मुझे डर ने पकड़ रखा है| इस डर को अंकुश में रखने के लिए मैं क्या करूँ?

श्री श्री रवि शंकर :
जब ऐसा हो, शरीर में उठ रही संवेदनाओं को महसूस करें| डर प्रेम का विपरीत है, फिर भी डर को प्रेम में बदला जा सकता है| आप 'अड्वान्स मेडिटेशन कोर्स' के ज़रिए भी इन सब चक्रों से गुज़र कर उनसे परे जा सकते हैं|

प्र : इतने लोगों पर हो रहे अन्याय को देख कर मुझे जो गुस्सा आता है, उसके लिए मैं क्या करूँ?

श्री श्री रवि शंकर :
सिर्फ़ गुस्सा महसूस करके बैठे मत रहो| उसके लिए कुछ करो| अपना मानसिक संतुलन खोने की कोई ज़रूरत नहीं है| तुम्हें उसे स्वीकार करते हुए धैर्य से जवाब देना चाहिए| ये एक कौशल है| मन से शांत रहो और योग से जुड़े रहो| यही गीता का संदेश है|

प्र : एक व्यक्ति के लिए एक जीवन काल में मोक्ष प्राप्त करना कितना वास्तविक है?

श्री श्री रवि शंकर :
इसके लिए तुम्हें विशिष्ट होने की ज़रूरत नहीं है| तुम उसे इसी पल इस जगह भी पा सकते हो|

प्र : मैं विश्व शांति के लिए कैसे सहयोग दे सकता हूँ?

श्री श्री रवि शंकर :
यह प्रश्न मैं आप पर ही छोड़ना चाहूँगा क्योंकि आप ऐसा बहुत से तरीकों से कर सकते हो| सेवा के लिए तैयार रहो| ऐसे प्रश्नों का एक जवाब नहीं हो सकता|

प्र : क्या आप कामुकता के स्वाभाव के बारे में कुछ बता सकते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
जिसके बारे में जानते न हों और जिस बात में विश्वास न करते हों उसके बारे में उपदेश देना सही नहीं है| जिन लोगों ने गहरी समझ पा ली है वे किसी बात की एक राय नहीं बनाते| आध्यात्मिकता के साथ आप अनुभव के एक अन्य स्तर पर जा सकते हैं| सेक्स का आदर करो पर उससे उँचे स्तर पर पहुंचो|

प्र : रिश्ते को सफल बनाने का क्या तरीका है?

श्री श्री रवि शंकर :
मैं रिश्तों के मामले में विशेषज्ञ नहीं हूँ ! पर मैं पुरुषों और स्त्रियों के लिए एक-एक सलाह दे सकता हूं | स्त्रियों को पुरुष के अहंकार पर कभी चोट नहीं पहुंचानी चाहिए | सारी दुनिया चाहे उसे बेवकूफ कहे पर तुम्हें उससे कहना है कि वह सबसे अधिक बुद्धिमान है| तुम्हें उसकी काबिलियत पर शक नहीं करना है| उससे कहो, "तुम सबसे ज़्यादा बुद्धिशाली हो| अगर तुम उसका उपयोग नहीं करते तो इसका मतलब ये नहीं कि तुममें समझ नहीं है|" अगर तुम उसे बेवकूफ कहती रहोगी तो वह सचमुच बेवकूफ ही बन जाएगा| अपने पति से प्रेम का प्रमाण माँगते रहना ठीक नहीं है| बस समझ लो कि वह तुमसे प्यार करते हैं| अगर किसी को रोज़ ये साबित करना पड़े कि वो तुम से प्रेम करते हैं तो वो उन्हें थका देगा| प्रेम को बहुत ज़्यादा व्यक्त नहीं करना चाहिए| बहुत बार समस्या ये हो जाती है कि हम अपना प्रेम कुछ ज़्यादा ही व्यक्त करते रहते हैं| अगर तुम बीज को सतह पर ही लटकाए रखो तो तुम उसकी जड़ें कभी नहीं देख पाओगे| लेकिन अगर उसे गहरे में गाड़ दोगे तब भी उससे अंकुर नहीं फूटेगा ! बीज को सही ढंग से बोओ| इस तरह से तुम्हें अपना प्यार जताना चाहिए| अपने प्रेम का गौरव बनाए रखो|

अब पुरुषों के लिए एक सुझाव है कि स्त्री की भावनाओं पर कभी पैर मत रखना | अगर वो अपनी माँ, बहन, अपने परिवार वग़ैरह की शिकायत करे तो उसमें शामिल मत हो जाना| थोड़ी देर के बाद वो पक्ष बदलेगी और हो सकता है तुम्ही निशाना बन जाओ! अगर वो कुछ ध्यान करना चाहे, किसी मंदिर में जाना चाहे या कोई आध्यात्मिक साधना करना चाहे तो उसे रोकना मत| अगर वो खरीदारी के लिए जाना चाहे तो उसे अपना क्रेडिट कार्ड दे दो| इससे घर में शांति रहेगी|

प्र : क्या ज्ञान की तलाश में गुरु या आध्यात्मिक नेता की ज़रूरत है?

श्री श्री रवि शंकर :
आप प्रश्न पूछ रहे हो और आप को जवाब चाहिए| आप को दवा चाहिए और जो भी आप को वो दे दे वो आप के लिए डॉक्टर बन जाता है| साधक को उत्तर चाहिए, उसे चाहिए कि कोई उसे सही मार्ग दिखाए| अगर कोई कहे मैं मरीज नहीं हूँ पर मुझे दवा चाहिए और कोई कहे मैं डॉक्टर नहीं हूँ पर मैं तुम्हें दवा दूँगा तो इन दोनों को आप क्या कहेंगे?
आप जो सुनना चाहते हो वो तो कोई भी आप से कह सकता है पर आपको सही मार्ग दर्शन की ज़रूरत है| कोई होना चाहिए जो आप का होंसला बँधा सके| जब आप तैरना सीखते हैं, ट्रेनर कहता है, " कूदो, आगे बढ़ो" और आप में आत्म-विश्वास जगता है| जिसमें ऐसा आत्म-विश्वास हो, वही आप का मार्ग दर्शक बन सकता है|

प्र : आप सारे विश्व के लोगों का भार उठाने का काम कैसे संभालते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
जब आप अपने को ये कहते हैं कि आप सिर्फ़ एक साधन यां मध्यम हैं| आप इस ब्रह्मांड के एक अंश हो| जब आप किसी भी परिस्थिति से प्रभावित नहीं होते तो यह सहजता से ही हो जाता है | ये बिल्कुल मुमकिन है, तुममे भी वह क्षमता है|

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"ज्ञान का विश्विकर्ण ही आतंकवाद का इलाज है"


डेनवर ,कोलोराडो
अप्रैल.२०.२०१०


हम अपने जीवन में प्राय धन्यवाद बोलते हैं और क्षमा मांगते हैं पर महसूस नहीं करते| यह लगभग वैसे ही है जैसे विमान परिचारिकाएं विमान से उतरते समय आपको बोलती हैं, 'आपका दिन शुभ हो|' विमान प्रचारिका आपका अभिवादन करती है परन्तु बिना किसी भाव के| यही शब्द यदि किसी प्रिय व्यक्ति की ओर से आये तो इनका भाव ओर असर अलग रहता है| हमारा अस्तित्व हमारे शब्दों से अधिक महतव्पूर्ण है| एक बच्चा बिना बोले जो प्रेम का भाव व्यक्त करता है कोई दूसरा बोल कर भी वैसे नहीं कर सकता| हम सब इस भाव के साथ सम्पन्न है परन्तु यह भाव कहीं परेशानी और भागदौड़ में गुम हो गया है| यह तनाव के कारण है| ना तो घर पर और ना ही स्कूल में किसी ने हमें अपने भाव को शुद्ध रखना सिखाया है| यदि हम घर पर गुस्सा हो तो यही गुस्सा लेकर दफ़तर पहुंच जाते हैं|जब हम दफ़तर में परेशान रहते हैं तो यह तनाव हमारे शरीर की कार्य प्रणाली में आ जाता है और हम घर पर भी तनाव में रहते हैं| हम इसे छोड़ नहीं पाते| इसके लिए हमे अपने भीतरी स्रोत में जाना होगा| अब प्रश्न यह है - हम अपने स्रोत के पास कैसे जाएँ? हम अपने भाव को कैसे शुद्ध करें? इसी के लिए ध्यान किया जाता है| ये शोर से मौन की ओर जाना है|
बहुत से लोग सोचते हैं कि ध्यान यानि एकाग्रता| ऐसा नहीं है| बल्कि ध्यान एकाग्रता के विपरीत है| यदि आपको किसी वाहन को चलाना हो तो एकाग्रता की आवश्यकता होती है| यदि आपको विश्राम करना हो तो किसी प्रयास की जरूरत नहीं होती| ध्यान गहरा विश्राम है नाकि एकाग्रता| इसलिए यदि ध्यान में कोई विचार आते हैं तो हम उनके पीछे नहीं भागते| जितना हम उनके पीछे भागते हैं उतने ही और विचार आते हैं| यदि आप किसी विचार से पीछा छुड़ाने का प्रयत्न करते हो तो यह आसानी से नहीं जायेगा| यह और सशक्त हो कर वापिस आ जाएगा| हम एक और रणनीति अपनाते हैं| यदि कोई बुरे विचार आते हैं तो हम उन्हें आने देते हैं| हम उन्हें मित्र बना लेते हैं| तब वे गायब हो जाते हैं| यदि अच्छे विचार आते हैं तो हम उन्हें आने देते हैं तब वे शांत हो जाते हैं| जो कोई भी विचार आये हम उन्हें रोकने की कोशिश नहीं करते| यह एक प्रयास रहित प्रक्रिया है|
ध्यान में उतरने के लिए तीन महत्वपूर्ण नियम हैं| सबसे पहला है - "मुझे इस समय कुछ नहीं चाहिए|" जब आपको कुछ नहीं चाहिए तो आप को कुछ करना भी नहीं होता| यदि आप कहो "मुझे पानी पीना है यां मुझे अपनी अवस्था बदलनी है" तो ध्यान नहीं हो सकता| दूसरा महत्वपूर्ण नियम है - "मैं कुछ नहीं करता"| आप केवल साँस लेते हो| और फिर - "मैं कुछ नहीं हूँ|" ध्यान के समय आप अपने बारे में सभी धारणायों का त्याग कर देते हो| उस समय ना आप बुद्धिमान हो, ना आप मूर्ख हो, ना अमीर हो, ना गरीब हो|तो आप हो क्या? कुछ भी नहीं| "मैं कुछ नहीं हूँ| मैं कुछ नहीं चाहता हूँ| मैं कुछ नहीं करता|" ध्यान के बाद आप दोबारा कुछ हो सकते हो| यह आपकी इच्छा है,परन्तु यदि ध्यान के समय आप स्वयं को महान यां बेकार समझते हो तो आप अपने भीतर विश्राम नहीं कर सकते| उस चेतना में स्थित होने के लिए जिससे हम सब बने हैं यह सबसे पहला कदम है| यह ध्वनी से मौन की यात्रा है|
इस तरह से हम तीन बार ॐ का उच्चारण करके अपने चारों ओर प्रेम और शांति की लहर फैलायेंगे| यह आन्तरिक शांति है| जब हम में यह आन्तरिक शांति होती है,हम में धैर्य होता है और हमारा सोचने का तरीका बेहतर होता है| हमारी निरिक्षण करने की योग्यता और अभिव्यक्ति बेहतर होती है| प्राय हम यह कहते हैं, "कोई भी मुझे नहीं समझता|" हम कभी नहीं कहते, "मैं अपने को अच्छे से व्यक्त नहीं कर पाया|" हमारी अभिव्यक्ति ध्यान से सुधरती है| यह ध्यान का जादू है|
कुछ लोग पूछ्ते हैं ध्यान से क्या होता है? इससे समाज हिंसा रहित हो सकता है| आज कोल्म्बिन हाई स्कूल की ग्यारहवी बर्षगांठ है| अपराधी और अपराध के शिकार हुए दोनों के लिए ही जानने की जरुरत है कि मन को कैसे शांत करना है| ना तो स्कूल में और ना ही घर पर कोई सिखाता है कि नकरात्मक भावनायों से कैसे पीछा छुड़ाना है| ये भावनाएं आती हैं और आप इनमें फस के रह जाते हो| वर्ल्ड हेल्थ संगठन (WHO) की भविष्यवाणी है अगले दस बर्षों में अवसाद (Depression) सबसे बड़ा घातक रोग होगा| अवसाद के बाद कैंसर दूसरा बड़ा घातक रोग होगा| ध्यान इससे निपटने के लिए आवश्यक है| प्राणायाम,योग,सुदर्शन क्रिया और ध्यान से इस तरह के बदलाव लाये जा सकतें हैं|

यदि हर बच्चा हर धर्म के बारे में थोड़ा बहुत सीख ले तो वे कट्टर नहीं बनेंगे| वे ऐसा नहीं कहेंगे,"ओह,केवल मेरे पास सत्य है|" वे देख सकेंगे कि सब में सत्य है| नहीं तो कुछ कमी रह जायेगी| इसे ही मैं ज्ञान का विश्वीकरण कहता हूँ| फिनलैंड में नोकिया फ़ोन बनाते हैं परन्तु दुनिया में सब लोग उनका इस्तेमाल करते हैं| उसी तरह से डेनिश कुकीज़ दुनिया भर में जानी जाती हैं| हालाकि सितार भारत से है पर सब इसे सुनतें हैं| फिर भी जब ज्ञान कि बात आती है तो सब संकुचित हो जाते हैं| इसी कारण से दुनिया में आज आतंकवाद है| यदि इस दुनिया का एक छोटा हिस्सा भी यह सोचे कि सत्य केवल उनके पास है तो सारी दुनिया के लिए मुसीबत हो जाएगी| हम सुरक्षित नहीं हो सकते| ऐसे में आत्मघाती हमलावर होंगे| हमें प्रत्येक बच्चे को बहु धार्मिक शिक्षा देनी होगी | हर बच्चे को उपनिष्द के बारे में कुछ ज्ञान होना चाहिए| उपनिष्द प्रेम से पूर्ण है| इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती| महात्मा बुद्ध की शिक्षा भी बहुत अनमोल है| सभी को बुद्ध और उनकी शिक्षा के बारे में जानना चाहिए| सभी को दाओइज़म , ईसा मसीह और मुहम्मद ने क्या कहा है -इसका कुछ ज्ञान होना चाहिए| कोई भी अपने धर्म का अनुसरण करते हुए व्यापक दृष्टि कोण रख सकते हैं| यदि आप यहूदी हो तो आप अन्य धर्म के ज्ञान को समझ के भी एक यहूदी रह सकते हो| इससे किसी तरह हमारे जीवन पर अच्छा प्रभाव ही होगा| हमने पोटेटो चिप्स और कोक का तो विश्वीकरण कर दिया परन्तु ज्ञान का नहीं किया| हमें ऐसा करने की जरूरत है| यदि हम जो खर्चा राष्ट्र की रक्षा पर करते हैं उसका कुछ हिस्सा बच्चों को शांति और अहिंसा के प्रति शिक्षित करने पर करें तो दुनिया में बहुत अंतर आ जायेगा|

फिर श्री श्री ने उपस्थित लोगों को ध्यान करवाया|

प्रश्न : माता-पिता बच्चों को कैसे जिम्मेवार बना सकते हैं और दोनो के लिए यह आनंदमय अनुभव बना सकते हैं?

श्री श्री रविशंकर :
उन्हें हर रोज एक नया दोस्त बनाना सिखाओ| उन्हें वे सब हिंसात्मक वीडियो खेल खेलने के लिए मत दो| बच्चों के लिए 'आर्ट ऑफ़ लिविंग' प्रोग्राम हैं – Art Round Training in Exellence| इस प्रोग्राम में बच्चों को खेल खेल में सीखना बहुत अच्छा लगता है| यूरोप में इसे एन ए पि(Non – Aggression Program) के नाम से जाना जाता है| जो बच्चे बहुत आक्रामक होते है वे खुश और मैत्रीपूर्ण बन जाते हैं| माता -पिता के लिए एक प्रोग्राम है - के वाइ सी (Know Your Life)|

प्रश्न : व्यक्तिगत विकास के लिए वे कौन सी बातें हैं जिनके लिए एक व्यक्ति को प्रतिबद्ध होने की जरूरत है?

श्री श्री रवि शंकर :
सबसे पहले समाज के हित के लिए प्रतिबद्ध होना| मुझे यह कहने की आवश्यकता नहीं कि आप को अपने हित के लिए प्रतिबद्ध होना है| तुम पहले ही इसके लिए प्रतिबद्ध हो| अगर आपको प्रतिबद्ध होना है तो मानव कल्याण के लिए कोई बड़ी प्रतिबद्धता लो| ऐसा पहले से ही है| जब हम तनाव से मुक्त होते हैं तो हम स्वभाविक रूप से समाज के प्रति प्रतिबद्ध होते हैं| समाज में बहुत कुछ करने की आवश्यकता है| विशेषरूप से जहाँ पर एक वंश से दूसरे वंश में हिंसा फैल रही है| उन्हें खास तौर पर अहिंसा के बारे शिक्षित करने की आवश्यकता है|

प्रश्न : वे कुछ आदतें क्या हैं जिनसे सफलता मिलेगी?

श्री श्री रविशंकर :
पहले आप को सफलता को परिभाषित करना होगा| बहुत बड़े बैंक खाते हो पर नींद न आए तो यह सफलता नहीं है| आपके पास बहुत से पैसे हो सकते हैं परन्तु उसके साथ यदि आपको बहुत सी स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियां हैं, डर और चिंता से भरे हो,आपके पास मित्र नहीं है तो यह सफलता नहीं है| मेरे लिए सफलता आपकी मुस्कान से मापी जा सकती है| आपका जीवन कितना मुसकान से भरा है और अन्य लोगों की मुस्कान के लिए आपका क्या योगदान है? आपको अपनी योग्यता में कितना साहस और विश्वास है? आप केवल अपने भविष्य को लेकर चिंतित नहीं हैं- मेरे लिए यह सफलता का निशान है| पैसा जीवन के लिए आवश्यक है परन्तु जीवन केवल पैसे के लिए ही नहीं है|

प्रश्न : प्रेम की परिभाषा क्या है?

श्री श्री रवि शंकर :
प्रेम वह है जिसकी कोई परिभाषा नहीं हो सकती| इसे केवल महसूस किया जा सकता है| यह वह है जिसे हम समझ नहीं सकते|

प्रश्न : अब पृथ्वी को बचाना महत्वपूर्ण क्यों होता जा रहा है?

श्री श्री रवि शंकर :
क्योंकि हम पृथ्वी का इतना शोषण कर रहे हैं जिसे यह सम्भाल नहीं पा रही है| हम व्यक्तिगत रूप से पृथ्वी की कुछ मदद कर सकते हैं| आप किसी सेवा प्रयोजना का हिस्सा बन सकते हो जैसे पेड़ उगाओ, प्लास्टिक बैग का प्रयोग न करने के लिए लोगों को जागरूक करके| आप प्रतिदिन ध्यान कर सकते हो और इन मुद्दों पर विचार कर सकते हो| जब हम कोई इरादा रखते हैं और ध्यान उस पर लगाते हैं तो ये पूरे होने लगते हैं| प्रकृति ने जो हमें मन की शक्ति प्रदान की है हम उसे प्रयोग नहीं करते| यह सबसे बड़ा तोहफा है जो हमे दिया गया है|

प्रश्न : वरिष्ठ प्रबंधन अपनी टीम के बेहतर प्रदर्शन के लिए क्या कर सकती है?

श्री श्री रवि शंकर :
कॉर्पोरेट वातावरण के लिए ’आर्ट ऑफ़ लिविंग’ का एपेक्स(APEX) कोर्से है| वर्ल्ड बैंक के साथ साथ सभी ने इस सराहा है|

प्रश्न : हम ऐसे युग में रह रहे हैं जहाँ घोटाले और धोखाधडी हो रही है| यहाँ तक कि अध्यात्मिक गुरुओं में भी | हम वास्तविक और नकली आध्यत्मिक गुरुओं में अंतर कैसे करें?

श्री श्री रवि शंकर :
यह भारत में बहुत होने लगा है और ऐसी ही कुछ कहानिया यूरोप में भी होने लगीं है| ये बहुत दुःख की बात है| फिर भी मैं कहूंगा कई बार रेलगाड़ियाँ पटरी से उतर जाती हैं परन्तु हम रेल से सफर करना बंद नहीं करते| विमान दर्घटना ग्रस्त हो जाते हैं परन्तु हम उड़ान भरना बंद नहीं करते| कुछ लोग ऐसे होतें हैं जो किसी आकर्षणवश या किसी विशेष प्रयोजन से गलत रास्तों पर चल पड़ते हैं| ये दुर्भाग्य की बात है| मैं यह कहूँगा यदि कोई अध्यात्मिक या धार्मिक नेता कुछ गलत करता है तो उसकी सजा भी दुगनी होनी चाहिए| उसने न केवल अपराध किया है बल्कि उसने एक मत के पुरे संगठन का अपमान किया है| ऐसे नेताओं को अपने आप सामने आना चाहिए| गलती करने पर उन्हें अपने आप सामने आकर माफी मांगनी चाहिए| यदि वे छुपने की कोशिश करें तो उनकी सजा तीनगुनी कर देनी चाहिए| अध्यात्मिक रास्ते पर होकर और गलती छुपाना इस ओर इशारा करता है कि उनमें विश्वास और अपनेपन की कमी है| इस तरह से आप अपनी ही आत्मा और भावना को चोट पहुंचा रहे हो| इसमें कुछ नया नहीं है| रामायण में रावन एक प्रसिद्ध संत था फिर भी उसने सीता का हरण किया| यहाँ तक चिकित्सा के क्षेत्र में ऐसे डाक्टर हैं जो गुर्दे चुराते हैं| आपने बहुत से लोगों के बारे में सुना होगा जो हर क्षेत्र में अविश्वास फैलाते हैं| हमे पक्षपात में पड़ते हुए इसके बारे में मत नहीं बनाना चाहिए| हमे आगे बढ़ना है| मैं इन पर इलज़ाम देने की बजाय इनसे करुणा का भाव रखता हूं | ठीक है उन्होंने गलती की है,अब उन्हें सही रास्ते पर आने दो| प्रत्येक अपराधी के अन्दर एक अपराध का शिकार व्यक्ति मदद की पुकार करता है| यहाँ तक सबसे बड़े अपराधी में भी एक घाव और असंतुष्टि होती है| हमें उस चोट खाए व्यक्ति का इलाज करना है और अपराधी गायब हो जायेगा|

प्रश्न : हम अत्यधिक दुःख और नुकसान से कैसे बाहर आएं?

श्री श्री रवि शंकर :
ध्यान और सुदर्शन क्रिया से आप देखोगे कितनी आसानी से आप इससे बाहर आ जाते हो|

प्रश्न : क्या इस दुनिया में तनाव रहित होना मुमकिन है?

श्री श्री रवि शंकर :
मैं तनाव रहित हूँ | बहुत से और भी ऐसे हैं| यह मुमकिन हैं| आप एक बच्चे के रूप में तनाव से मुक्त थे| आप ऐसे हो सकते हो | आप को वृद्ध होने तक इसका इंतजार नहीं करना है| यह इसी वक्त संभव है|

प्रश्न : क्या हिंसात्मक कार्य उपयुक्त है?

श्री श्री रवि शंकर :
हिंसा को रोकने के लिए सचेत कार्य हिंसात्मक दिख सकता है| पर ऐसा नहीं है| फिर भी मैं मृत्युदंड के पक्ष में नहीं हूँ| मुझे लगता है कि हर किसी में सुधार की गुंजाईश होती है|उन लोगों के लिए दया करो जो हानिकारक कार्य करते हैं और पश्चाताप भी नहीं करते| उनमें शिक्षा की कमी के लिए उन पर दया करो और इसे जानो कि हर अपराधी के अन्दर एक चोट खाया व्यक्ति होता है|

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भगवान प्रेम है और संपूर्ण जगत हर तरह से प्रेम से भरा हुआ है


प्रश्न : हम दूसरों की गलती के पीछे उनका इरादा कैसे ना देखें?

श्री श्री रवि शंकर :
हम अकसर लोगों की गलती के पीछे उनका गलत इरादा देखते हैं| अगर हम एक विशाल दृष्टिकोण से देखें तो हर अपराधी हालात का शिकार है| हर अपराधी के अंदर मदद की पुकार करता एक व्यक्ति है| उन्होने सही ज्ञान यां जानकारी के अभाव में, तनाव में यां अपनी संकुचित सोच के कारण अपराध किया हो सकता है| हम केवल अपराध ही देखते हैं पर उस के पीछे सही वजह नहीं देखते|
हर बच्चे को अन्य धर्मों का कुछ ज्ञान होना चाहिए| अगर लोगों को यीशु, कुरान, वेद, जैन धर्म, सिख धर्म, इस्लाम, उपनिष्द और अन्य धर्मो की कुछ जानकारी हो तो दुनिया में एक भी आतंकवादी ना हो| केवल अपने धर्म को सही समझना और अन्य धर्मों के ज्ञान को अस्वीकार करना ही आंतकवाद का मूल कारण है| हम ने सारी दुनिया के खाद्द पद्धार्थ जैसे पेप्सी इत्यादि तो स्वीकार कर लिया पर ज्ञान के मामले में हम अपनी सोच संकीर्ण कर लेते हैं| हर देश में बच्चों के लिए बहु सांस्कृतिक और बहु धार्मिक शिक्षा अनिवार्य है| फिर दुनिया में एक भी व्यक्ति आतंकवादी नहीं होगा|

प्रश्न : आत्मबल को कैसे बढ़ा सकते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
ध्यान और श्वास की क्रिया से भीतर की शक्ति बढ़ती है| इनके अभ्यास से हम अपने केन्द्र से जुड़ते हैं| आत्मबल तीन तरह से आता है - जब तुम प्रेम में होते हो तो प्रतिबद्धता का पालन सहज ही होता है|
जब तुम्हे कोई भय यां लालच होता है तो भी तुम प्रतिबद्धता का पालन करते हो| प्रतिबद्धता का पालन करने के लिए प्रेम सबसे श्रेष्ठ मार्ग है|

प्रश्न : भगवान किस जगह है?

श्री श्री रवि शंकर :
भगवान के लिए कोई जगह ढूंढना व्यर्थ है क्योंकि भगवान हर जगह है| भगवान सम्पूर्ण सृष्टि का जोड़ है| भगवान वो उर्जा है जिसमें हम सब हैं| भगवान स्वर्ग में कोई पुरुष नहीं जो तुम्हे सज़ा देने के लिए बैठा है| भगवान की ऐसी कलपना केवल कुछ किताबों में हो सकती है| भगवान प्रेम है और संपूर्ण जगत हर तरह से प्रेम से भरा हुआ है| जब तुम्हारा मन अपने केन्द्र में विश्राम करता है तो तुम इस उर्जा का अनुभव करते हो|

प्रश्न : अगर खुशी का स्रोत हमारे भीतर है तो आध्यात्मिक गुरु की हमें क्या आवश्यकता है?

श्री श्री रवि शंकर :
तुमने अपने प्रश्न में ही उत्तर भी दे दिया | अगर प्रश्न ना होता तो उत्तर की भी आवश्यकता ना होती| जिस समय तुम्हारे भीतर प्रश्न उठा तुम उत्तर ढूंढते हो और जो तुम्हे उत्तर देता है वो तो गुरु बन ही गया| अगर कोई उत्तर दे और कहे वो गुरु नहीं यां तुम प्रश्न पूछो और कहो कि तुम शिष्य नहीं तो दोनो ही ईमान्दार नहीं हुए| यह ऐसा ही है जैसे एक डॉक्टर तुम्हे कहता है कि वो दवा तो देता है पर डॉक्टर नहीं है यां तुम कहो, " मैं दवा तो लेता हूं पर मैं रोगी नहीं हूं"|

प्रश्न : हमारे जीवन का क्या उद्देश्य है?

श्री श्री रवि शंकर :
यह प्रश्न हर किसी को स्वयं से पूछना चाहिए| अगर कोई तुम्हे उत्तर देता भी है तो उसे स्वीकार मत करो| जिसे पता है वो तुम्हे नहीं बताएगा और जो बताते हैं उन्हे वास्तविक्ता में पता नहीं है| 'जीवन का क्या उद्देश्य है?' – यह बहुत कीमती प्रश्न है| अगर यह सवाल तुम्हारे मन में उठा है तो तुम खुद को बधाई दे सकते हो| इससे हमारे मन के भ्रम दूर हो सकते हैं| इसका कोई एक उत्तर नहीं है| यह एक रास्ता है जिस पर हमें यात्रा करने की आवश्यकता है| 'मैं कौन हूं?', 'मुझे क्या चाहिए?' और 'मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है'? - यह प्रश्न हमें जीवन में आगे ले जाते हैं| बहुत से लोग इस प्रश्न के बारे में सोचते भी नहीं|

प्रश्न : भगवान को पाने के लिए कौन से गुण चाहिए?

श्री श्री रवि शंकर :
मुस्कराओ और सेवा करो| अपने मन की चंचलता पर मुस्कराओ| मन के साथ मत बहो | अपनी क्षमता के अनुसार सेवा करो| जितना तुम कर सकते हो उतना ही करो| जो तुम नहीं कर सकते उसकी तुमसे उम्मीद भी नहीं की जाती| अगर तुम डॉक्टर नहीं हो तो तुमसे कोई ईलाज कराने की उम्मीद भी नहीं करता| समाज के हित के लिए सोचो|हम जो भी कमाते हैं उसका कुछ हिस्सा समाज को वापिस जाना चाहिए|
जब मैं स्कूल में था तो सादगी और समता के साथ गर्व जोड़ा जाता था| समता होने से मुस्कान और करुणा बनी रहती है| हिंसक व्यवहार को बुरा और तुच्छ समझा जाता था| आज आक्रामकता और हिंसा के साथ गर्व जोड़ा जाता है| टी वी में हीरो और कॉलेज में हिसंक छात्र आदर्श बन जाते हैं |आदर्श में यह बदलाव दुनिया भर में एक समस्या है| हमें आध्यात्म को वापिस लाने की आवश्यकता है| संतुलित मन और सबके लिए करुणा का भाव रखो|

प्रश्न : हमे धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार का सामना कैसे करना चाहिए?

श्री श्री रवि शंकर :
अपनेपन की भावना के अभाव से भ्रष्टाचार होता है| मित्रता की कमी से धोखाधड़ी होती है| हम अपने दोस्तों को धोखा नहीं देते| मित्रता ना हो तो डर रहता है और धोखे की संभावना होती है| डर और केवल अपने बारे में सोचने के कारण भ्रष्टाचार होता है| इसलिए मित्रता और अपनेपन का भाव जगाना आवश्यक है| राजनीति में आध्यात्म, व्यापारिक कम्पनियों में सामाजिक दायित्व की भावना और धर्म में धर्मनिरपेक्षता अनिवार्य है|

प्रश्न: क्या हमें सच में जीवन में उद्देश्य चाहिए यां हम ऐसे ही खुश रह सकते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
तुम ने खुश रहना अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया है| तुम्हारे पास तो पहले ही उद्देश्य है| पर क्या तुम खुश रह सकते हो जब तुम्हारे आसपास के लोग खुश नहीं हैं? जब तुम अपने दृष्टिकोण का विकास करते हो तो तुम सब में अपने आप को पाते हो| अगर तुम्हारे आसपास के लोग खुश नहीं हैं तो तुम खुश नहीं रह सकते| तुम जितना अपने केन्द्र में जाते हो तुम दुनिया में सबके साथ एक महसूस करते हो| तुम इंसान, वनस्पति और जानवरों के साथ भी एकता महसूस करते हो| तुम वातावरण की देखभाल करना भी शुरु कर देते हो|

प्रश्न : हम निस्वार्थ कैसे हो सकते हैं? मैं स्वयं में संशय करना कैसे त्याग सकता हूं?

श्री श्री रवि शंकर :
तुम पहले ही स्वार्थी नहीं हो| तुम बस यह जान लो की तुम स्वार्थी नहीं हो| जब तुम स्वार्थी होते हो तो तुम्हारे अंदर होने वाली संवेदना तुम्हे कष्ट देती है| तुम आराम तब महसूस करते हो जब तुम हर कहीं और हर किसी के साथ सहजता से व्यवहार करते हो | यही उदारता है| तुम गुण पैदा नहीं कर सकते| यह जान लो कि तुम्हारे भीतर गुण मौजूद हैं| तब गुण विकसित होते हैं|
तुम जानते हो तुम संशय किस पर करते हो? जो सकारात्मक है तुम्हे संशय उसी पर होता है| अगर कोई तुमसे कहे कि वो तुमसे प्रेम में है तो तुम संशय करते हो| पर तुम किसी के नफरत पर संशय नहीं करते|

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"शांति के लिए राजनीति में आध्यात्मिकता, व्यापारिक कंपनियों में सामाजिक दायित्व की भावना और धर्म में धर्मनिरपेक्षता का होना आवश्यक है"

लोस एन्जेल्स अप्रैल १६:

श्री श्री रवि शंकर
ने दक्षिणी कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय द्वारा प्रायोजित व्यवसाय,नैतिकता और आध्यत्मिक चर्चा में अपने विचार प्रकट किये| उसके कुछ अंश यहाँ प्रस्तुत है|
इस चर्चा में श्री श्री के साथ जॉन पाल देजोरा, जोकि पहली पीढ़ी के अमरीकन,एन्टरप्रिनेउअर हैं,मानव कल्याण के लिए कार्य करतें हैं और व्यवसायिक समुदाय के अभिन्न अंग हैं; इनके साथ रोब डीरेक,एक व्यावसायिक सकेटबोर्डर,टेलीविज़न के सितारे,फिल्म निर्माता ,एन्टरप्रिनेउअर और बहुमुखी जन कल्याण के लिए कार्य करतें हैं|

श्री श्री रवि शंकर :
कुछ बर्षों पहले किसी अध्यात्मिक व्यक्ति का व्यापार में होना ठीक नहीं समझा जाता था| व्यापार और आध्यात्मिकता,या व्यापार और दान दोनों एकदम अलग प्रतीत होते थे| वास्तव में व्यापार में कम देकर अधिक लेते हैं| यदि एक केला दस सेंट का है तो इसे बारह में बेचा जाएगा| व्यापार में आप लेते अधिक हो और देते कम हो| जबकि दान में लेने की बजाय देना अधिक होता है|

विश्वास व्यापार का आधार है| यदि यह टूट जाए तो व्यापार सफल नहीं होता|लालच चेतना को मार देता है| यही हम वित्तीय संकट में देखतें हैं| इसे रोकने के लिए यह आवश्यक है कि 'जॉन पाल मिस्चेल सिस्टम' जैसी कम्पनियां विकसित हों| पालमिस्चेल एक उदाहरण है जो यह दर्शातें है कि एक व्यक्ति का अमीर और सफल होने के लिए अनैतिक होना आवश्यक नहीं है|

दुनिया में भ्रष्टाचार सबसे बड़ी दुविधा है| अफ्रीका के पास लोगों को खिलाने के लिए पैसे नहीं हैं,फिर भी भ्रष्ट राजनीतिकों के बैंक खातों में कई बिलियन पड़े हैं| दुनिया अकाल और दुःख से पीड़ित देशों के लिए अंधी कैसे हो सकती है? भ्रष्टाचार तभी होता है जब अपनेपन का भाव नहीं होता| कोई भी अपने लोगों के लिय भ्रष्ट नहीं हो सकता| हमें हर व्यक्ति में अपनेपन की भावना लानी है| ऐसा कैसे हो सकता है? जब मन तनाव रहित होता है| तनाव रहित मन प्रेम का स्रोत है| हमें अपनेपन की भावना को पैदा करना होगा जिससे राष्ट्र भेदभाव और धर्म का पक्षपात ख़त्म होतें हैं| 'आर्ट अफ लिविंग' में ऐसे बहुत से कार्यक्रम हैं जिनसे लोग सीख सकते है कि अपनेपन की भावना को कैसे विकसित करना है|
हमें दूसरों के साथ बाँटने और ध्यान रखने की जरूरत है| हेटी ,चीन और दूसरी जगहों पर भूकंप आ चुकें हैं| आज व्यापारी उनकी मदद कर रहें हे| अमेरिका को मदद के लिए अपने आप को बधाई देनी चाहिए|
एक कहानी है जो मैं आपको सुनाना चाहूँगा| बहुत बर्षों पहले गुजरात में भूकंप हुआ था| हमारे स्वयंसेवक वहां काम करने गए| वहां वे एक वृद्ध महिला से मिले| उन्होने अपने सारे परिवार को भूकंप में खो दिया था| उसने अपने बेटों,बहुओं और पति को खो दिया| उसका घर टूट चुका था| उसके पर्स में थोड़े से पैसे थे जो वह दान में देना चाहती थी| हमारे सेवकों ने कहा वे देने आयें हैं नाकि कुछ लेने| इस पर महिला ने कहा,"प्रकृति ने मुझसे सब कुछ ले लिया है| मेरे देने के अधिकार को भी मुझसे मत छीन लो| कृपया मेरा योगदान स्वीकार करो,यह मेरा धर्म है|"हमारे सेवकों की आँखों में आंसू आ गए| जब आपके पास हो और आप दूसरों को दें तो कोई बड़ी बात नहीं परन्तु जब आपके पास न हो और तब आप दूसरों को दे तो बड़ी बात है|

प्रश्न : कृप्या धन के बारे में बताइए|

श्री श्री रवि शंकर :
पुराने ग्रंथों के अनुसार आठ प्रकार का धन होता है| केवल दौलत ही धन नहीं है| हालाकि बैंक बैलंस धन है,वंश भी एक तरह की दौलत है| इसी तरह से सेहत भी एक प्रकार का धन है| आपका आत्मविश्वास कि आप किसी भी स्थिति में पैसा कमा सकतें हैं, यहाँ तक कि जब अर्थ व्यवस्था ठीक न हो, भी एक प्रकार का धन है| साहस और आत्मविश्वास दौलत है| दोस्त बनाने की योग्यता दौलत है| ज्ञान भी दौलत है|

धन की देवी ,लक्ष्मी,कमल पर तैरती हैं| पानी के बहाव के साथ कमल भी हिलता है| ज्ञान की देवी सरस्वती एक पत्थर पर हैं| एक पत्थर स्थिर होता है| एक बार सीखा हुआ ज्ञान उम्र भर ही नहीं बल्कि आने वाले जीवन में भी आपके साथ रहता है| दौलत अपने आप में एक लक्ष्य नहीं है|यह लक्ष्य के लिए एक साधन है| धन,ख़ुशी और जीवन अपने आस पास के लोगों के साथ बाँटना चाहिए|
आज बहुत से लोगों ने विश्वास खो दिया है| जब आप विश्वास खो देते हो तो यह आपको अपने भीतर ले जाता है| हर दुविधा अपने भीतर जाने का एक अवसर है| जब सब दरवाजे बंद हो जातें हैं और आपके पास जाने के लिए कोई जगह नहीं होती तब आप अपने भीतर जाते हो|
बहुत सी रुकावटें और दुविधाएं आती है,परन्तु आपको अपने इरादे मजबूत रखने हैं| आपको एक सही दृष्टिकोण रखना है| जब आप अपने आसपास देखते हो ऐसे कुछ ही लोग हैं जो आपका विश्वास तोड़ते हैं| कुछ लोगों के ही मूल्य लड़खड़ाते हैं| हालाँकि आप भी कभी कभी डगमगा सकते हो परन्तु अपने दृष्टिकोण और मिशन पर पकड़ बनाए रखो|
यदि आप चाहते हो कि दूसरे लोग आपको धोखा न दें तो आप अन्य लोगों को धोखा कैसे दे सकते हैं? धन आवश्यक है,फिर भी आप सिर्फ पैसे होने से ही चैन से नहीं सो सकते| लोग आधा स्वास्थ्य धन कमाने में और फिर अपना आधा पैसा स्वास्थ्य वापिस लेने में खर्च कर देतें हैं|

प्रश्न : आप सफलता को कैसे परिभाषित करोगे?

श्री श्री रवि शंकर :
सफलता को आपकी दिल से आने वाली मुस्कुराहटों से तोला जा सकता है| यह आपका आत्मविश्वास है जिनसे आप चुनौतिओं का सामना करते हो| जब सब ठीक चल रहा हो तो आप आसानी से मुस्कुरा सकते हो| जब आप पूरी तरह असफल रहते हो और फिर भी मुस्कुरा सकते हो ,वह सफलता है| एक व्यक्ति जो जीवन की सारी चुनौतियों को स्वीकार करता है ,सफल है!

प्रश्न : क्या व्यापार राष्ट्रों में शांति बढाने के लिए एक शक्ति है?

श्री श्री रवि शंकर :
तीन पहलू है जो शांति लायेंगे| राजनीति में आध्यात्मिकता,व्यापार में कंपनियों का समाजिक उत्तरदायित्व और धर्म में धर्मनिरपेक्षता| ये हमारे मन में गहरा उतरना चाहिए| महात्मा गाँधी और नेल्सन मंडेला धर्म में निष्पक्षता और राजनीति में आध्यात्मिकता के उत्कृष्ट उदाहरण हैं|


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"अपनी जड़ें मज़बूत करो, दृष्टिकोण विशाल करो और मानवता की सेवा करो"

(श्री श्री रवि शंकर ने अप्रैल १४,२०१० को लोस अन्जेल्स में 'आर्ट ऑफ़ लिविंग' सेंटर के उदघाटन समारोह में संबोधित किया| एक १०० साल पुराना चर्च 'आर्ट ऑफ़ लिविंग' सेंटर के रूप में रजिस्टर हो गया जिसमें योग,ध्यान,और सेवा को प्रोत्साहित किया जाएगा|)

श्री श्री रवि शंकर :
यह इमारत दो उद्देश्य पूरे करती है| यह स्थानीय क्षेत्र में उत्साह और उत्सव लाएगी| दूसरा इस जगह ध्यान होने से शांति,संतुष्टि और ख़ुशी फैलेगी| यह जगह लोगों के सुंदर व्यक्तित्व का विकास करेगी| यही जीवन का उद्देश्य है कि हम अंदर से और अधिक सुंदर बनें|सुन्दर्ता केवल बाहरी सुन्दर्ता नहीं है| यह आत्मा का गुण है जो आपको और भी जीवंत और सुंदर बनाता है| एक आध्यात्मिक सेंटर वह है जहाँ हमारी आत्मा शांत होती है,शरीर शक्तिशाली बनता है और बीमारियों से मुक्त होता है,मन केन्द्रित होता है, और बुद्धि पक्षपात रहित और तीक्षण होती है| एक ऐसा स्थान जहाँ आप सभी समुदायों और विभिन्न संस्कृति के लोगों को अपनों की तरह गले लगाते हो|यह सब का घर है| खास कर यहाँ के स्थानीय लोग मेजबान हैं| मैं आपको बताना चाहूँगा आप सब हमारे हो और हम सब आपके हैं|
मैं चाहता हूँ कि हर आंसू एक मुस्कान में बदल जाए, और आसपास का हर युवा इसे आगे बढाए और इसे एक ऐसा पेड़ बना दे जिसकी जड़ें मजबूत हों और टहनियां दूर तक फैली हों| 'जड़ें मजबूत करें,विशाल दृष्टिकोण रखें और मानवता की सेवा करें' मैं चाहता हूँ और प्रार्थना करता हूँ कि यह सेंटर सारे इलाके के लोगों को यह प्रेरणा देगा| मैं चाहूँगा कि ये स्थान पुरुषों,स्त्रियों,बच्चों.युवाओ,वृद्धों और हर किसी के लिए उपयोगी हो|
हम सब के लिए यह एक बहुत सुंदर पल है| मैं सभी स्वयंसेवकों(volunteers) को बधाई देता हूँ जिन्होंने यह अद्भुत कार्य किया है| वे सभी अपना १०० प्रतिशत दे रहे हैं और बहुत अच्छा काम कर रहे हैं| जानते हो यह तभी हो सकता है जब प्रतिबद्धता और अपनेपन की भावना हो| जब आप खुश होते हो,आप हर किसी के साथ वह ख़ुशी बांटते हो और यह ख़ुशी तब मिलती है जब आप ध्यान से स्वयं में गहरे जाते हो|


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"समाज में शांति के लिए राजनीति में आध्यात्मिकता, व्यापारिक कंपनियों में सामाजिक दायित्व की भावना और धर्म में धर्मनिरपेक्षता होना आवश्यक है"

Ramsay Taum (Director of External Relations & Community Partnerships, University of Hawaii at Manoa and Chairman of the Board of Sustain Hawaii) ने एक हवाइ मंत्र के साथ श्याम की शुरुआत की। फ़िर उन्होने भारतीय और हवाइ सभ्यता की समानता के बारे में कहा।
श्री श्री ने धन्यवाद देते हुए शुरुआत की।

श्री श्री रवि शंकर :
एक ही बात को एक अलग नज़रिए से सुनकर बहुत अच्छा लगा। यह बहुत ही सुन्दर है कि किस तरह सभी सभ्यतायों में एक जैसी बात कही गई है। जिस तरह Ramsay Taum ने ज़िक्र किया, उसी तरह संस्कृत में भी पाँच तत्व हैं - पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। फिर हैं मन, बुद्धि और अहंकार। और फ़िर आत्मा।
जब हम ने एक दूसरे को mahalo कह कर नमस्कार किया, तो वो अहंकार से परे एक कदम है। ’मा’ का अर्थ है - जिसे तुम जानते हो। बच्चे का पहला शब्द माँ होता है। एक बच्चा मैं की भावना से परे देखता है। यह बहुत ही सुन्दर है कि दुनिया में सभी सभ्यतायों का मूल एक जैसा ही है।

प्रश्न : हम अहंकार पर काबू कैसे कर सकते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
अहंकार को काबू करने का प्रयास भी मत करो। अगर तुम्हे लगता है कि तुममे अहंकार है तो इसे अपनी जेब में रखो। अहंकार को काबू करने में उससे भी बड़ा अहंकार हो जाता है। अहंकार अनदेखा किया जाना पसन्द नहीं करता। अहंकार का इलाज है - बच्चे की तरह सरलता में रहना। अगर फ़िर भी तुम्हे अहंकार परेशान करे तो उसे वहीं रहने दो।

प्रश्न : कुछ लोग लालची और क्रूर क्यों होते हैं? हम उन्हे बदल सकते हैं यां उन्हे वैसे ही स्वीकार कर लेना चाहिए?

श्री श्री रवि शंकर :
कुछ लोग नहीं जानते वो भीतर से कितने सुन्दर है। हर अपराधी के भीतर हालात का शिकार एक व्यक्ति मदद की पुकार कर रहा है। कोई भी पैदाइश से हिंसक नहीं होता। सही शिक्षा के अभाव में इन्सान ऐसा बन जाता है।

प्रश्न : ध्यान का यह तरीका अन्य तरीकों से कैसे विशेष है?

श्री श्री रवि शंकर :
यह तुम्हे साधारन बनाता है और यह केवल साधारन लोगो के लिए ही है। अगर तुम खुद को बहुत विशेष मानते हो तो ध्यान नहीं होगा। इसकी यही विशेषता है।

प्रश्न : हमें प्रेम के बारे में कुछ बताएं। अनुशासन का पालन कैसे करें?

श्री श्री रवि शंकर :
तुम अपने पर किसी चीज़ को प्रेम करने यां ना करने के लिए दबाव नहीं डाल सकते। सहजता से अपने स्वभाव में रहो।
तीन सूरतों में तुम अनुशासन का पालन कर सकते हो:
प्रेम, भय और लालच। जब तुम प्रेम में होते हो तो अनुशासन सहज ही हो जाता है। किसी चीज़ का भय यां कोई बड़ा लालच भी तुम्हे अनुशासन में रखता है।

प्रश्न : अपना भाग्य पूरा करने के लिए क्या चाहिए?

श्री श्री रवि शंकर :
विश्वास - यह विश्वास की तुम अपना भाग्य पा सकते हो।

प्रश्न : क्या विश्व के नेता दुनिया की मुश्किलों का हल कर सकते हैं? यां वो आर्थिक रूप से कुछ ही लोगो से प्रेरित हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
मुझे लगता है तुम्हारे प्रश्न में उत्तर भी है। मुझे लगता है ऐसे बहुत से विश्व के नेता हैं जो समाज के लिए कुछ अच्छा करना चाहते हैं पर उनके हाथ बन्धे हैं। बहुत बार वो सामाजिक व्यवस्था के कारण कुछ कर नहीं पाते। कुछ ऐसे भी हैं जिनको केवल अपनी पदवी और पार्टी से ही मतलब है। लोगों के हित से ज़्यादा इनके लिए अगले चुनाव और पार्टी की ज़रुरतें ज़्यादा महत्वपूर्ण है। ये बड़े मुद्दों पर काम करना भी चाहें तो इनके सामने अपने राजनीतिक एजेंडे खड़े हो जाते है। एक शासक सुधारक नहीं बन सकता और एक सुधारक शासक नहीं बन सकता। इनकी अलग अलग भूमिका है और इनको मिलकर काम करना चाहिए।

प्रश्न : शादी के महत्व के बारे में हमे बताएं।

श्री श्री रवि शंकर :
मुझे इस विषय में अनुभव नहीं है!
शादी एक महत्वपूर्ण पद्धती है जो तुम्हे जीवन में किसी को स्वीकार करके आगे बढ़ना सिखाती है। इससे तुम बाँटना, दूसरे की देखभाल करना और अपनी देखभाल कराना सिखते हो।


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ध्यान में बैठना सर्वोत्तम पूजा है

बैंगलोर आश्रम, ४ सितंबर २००९

प्रश्न: लाखों लोग आध्यात्म के पथ पर चलते हैं, पर कोई कोई व्यक्ति ही लक्ष्य तक पहँच पाता है। क्या मैं उन भाग्यशाली व्यक्तियों की गिनती में आ सकता हूं?
श्री श्री रवि शंकर: ये कोई नई बात नहीं है। भगवद गीता में भगवान कृष्णः ने कहा था कि विश्व की इतनी जन्संख्या में से कुछ ही लोग इस पथ पर चलते हैं।
जैसे प्रधान मंत्री की कुर्सी के लिये कई लोग चुनाव लड़ते हैं, पर अंत में एक ही चुना जाता है। जैसे कई लोग IPS, IAS अफ़सर बनना चाहते हैं...। आध्यात्म के पथ पर ये अच्छी बात है कि हर व्यक्ति लक्ष्य तक पहुँच सकता है।

बुद्ध के काल में दस हज़ार लोगों ने मुक्ति प्राप्त की। आज भी लाखों लोग साधना कर रहें हैं और उन में से कई लक्ष्य को पा लेंगे।
सागर के पास कुछ लोग जाते हैं ताज़ी हवा खाने के लिये। कुछ लोग सागर से मोती निकालने जाते हैं। कुछ लोग सागर से तेल निकालने के लिये जाते हैं। हमारी पात्रता ये निर्धारित करती है कि हम कहां पहुँचेंगे। इस पथ पर एक भी कदम बेकार नहीं जाता है। वो तुम्हें आगे ही ले जायेगा।
एक बार तुम प्रेम में पीड़ा का अनुभव कर लेते हो तो तुम मुक्ति चाहते हो। शांति और प्रेम के बिना, आनंद अधूरा है। आनंद हमारा स्वभाव है। वहाँ पहुँचने में कोई व्यवधान नहीं है। ये ना सोचो कि तुम वहाँ पहुँच पाओगे या नहीं। अगर तुम ऐसा चाहते हो, तो ये होगा – आज या कल।

प्रश्न: ईसाई धर्म में ‘फ़ैसले के दिन’ का क्या रहस्य है?
श्री श्री रवि शंकर: ईसाई धर्म कहता है कि फ़ैसले का दिन आयेगा। उस दिन सभी मुर्दे धरती से बाहर आ जायेंगे, और उनसे उनके अच्छे और बुरे कर्मों का हिसाब लिया जायेगा, जिसके हिसाब से उन्हें स्वर्ग यां नर्क में भेजा जायेगा।
आज जो ‘फ़ैसले के दिन’ का मतलब समझा जाता है, वो उसका असल रूप नहीं है। समय के फेर और भिन्न व्याख्याओं से इसका अर्थ वो नहीं रहा जो कि असल में था। जिस भौगोलिक स्थान पर ईसाई धर्म और इस्लाम धर्म का जन्म हुआ था, वहाँ लकड़ी की कमी थी। वहाँ की धरती पहाड़ी और पथरीली थी। वहाँ मुर्दों को दफ़न करना बेहतर विकल्प था, और ये महंगा भी नहीं था।

भारत में लकड़ी की तादाद बहुत थी, तो यहां मृत शरीर को जलाने की प्रथा चली। जबकि इस्लाम और ईसाई धर्म जहाँ जन्में वहाँ मुर्दों को जलाना संभव नहीं था। तो, स्थान के अनुसार लोग प्रथा बनाते हैं।

‘फ़ैसले के दिन’ की लोक प्रचलित व्याख्या ये है कि मरे हुये लोग अपनी समाधि से बाहर आयेंगे। पर ऐसा नहीं है।

बाइबल में ईसा ने कहा है, ‘Judge not and ye shall not be judged.’ ईसा कहते हैं, किसी व्यक्ति की आलोचना मत करो। निर्णय का काम भगवान पर छोड़ दो। एक दिन (फ़ैसले के दिन), भगवान अपना निर्णय उस व्यक्ति को देंगे।
भारत में हम कर्म पर विश्वास करते हैं, जिसका अर्थ है कि तुम अपने सभी कर्मों का फल भोगोगे। अच्छे कर्म सुख लायेंगे और बुरे कर्म दुख लायेंगे। इसी तरह, ईसाई धर्म में कहा कि किसी के कर्म की आलोचना मत करो, सबको अपने कर्मों का सलीब उठाना ही है।

प्रश्न: कभी कभी मैं अपने भीतर कई विकार पाता हूं, और ये महसूस करता हूं कि मैं आध्यात्म के पथ पर चलने लायक नहीं हूं। मैं क्या करूं?
श्री श्री रवि शंकर: आत्मग्लानि से छुटकारा पाओ। अभी तक तुम आत्मग्लानि में तप रहे थे और तुम्हें ये पता तक नहीं था। अब जब तुम ये जान गये हो, तो इसे और नहीं सह पाओगे। इससे तुम साधक बन गये। कितने लोगों ने अपने विकार छोड़ दिये हैं। सत्संग और सेवा करते रहो और ध्यान की गहराई में जाओ – इस से तुम्हारे सब विकार और पुराने संस्कार मिट जायेंगे। अगर तुम एकदम नाकारा होते तो तुम्हें यहाँ, सत्संग में, इस पथ पर आने का सौभाग्य नहीं मिलता। तुमने कुछ अच्छे कर्म किये हैं। अपने अच्छे कर्मों पर भी ध्यान दो।

प्रश्न: क्या समाधि से आगे भी कुछ है?
श्री श्री रवि शंकर: समाधि से आगे है बोध मात्र शुद्ध सत्ता।
ऐसी सजगता जो ना भीतर की है और ना बाहर की। बेहोशी नहीं है। शुद्ध चेतना है। कोई फ़र्क नहीं पड़ता चाहे आंखें खुली हों या बंद – सब एक जैसा ही लगता है।

प्रश्न: समाधि क्या है?
श्री श्री रवि शंकर: जब मन केन्द्रित और विश्राम में होता है, तब समाधि की एक झलक मिलती है। सुदर्शन क्रिया के बाद जब तुम लेटते हो तो ये अनुभव तुम्हें होता है। जब तुम्हें लगता है – मुझे पता नहीं मैं कहाँ हूं, पर मैं हूं।

प्रश्न: आप कहते हैं कि भगवान के सभी रूप चित्रकार की कल्पना से बने है। फिर मंत्रजाप से इनका क्या संबंध है?
श्री श्री रवि शंकर: कांचीपुरम के कामाक्षी मंदिर में एक सुंदर स्वरूप है। वहाँ तुम्हें प्रसाद मिलता है। पर ऐसा कहा जाता है कि इस का फल तुम्हें तब तक नहीं मिलेगा जब तक तुम इसे मंदिर के पीछे अरूप लक्ष्मी को अर्पित नहीं करते। अरूप लक्ष्मी से तुम्हें फिर प्रसाद मिलता है।
इसका अर्थ बहुत गहरा है। ये एक प्रथा है जिसकी जड़ वेदांत में है। तुम्हें रूप से अरूप तक ले जाया जाता है। पहले तुम रूप की पूजा करते हो, फिर शालिग्राम (काले रंग का गोलाकार पत्थर) की। मन, जब रूप में केंद्रित हो जाता है, तब उसे गोल पत्थर में केंद्रित किया। जब वहाँ मन लग जाये तो उससे आगे मंत्र आता है।
भगवान कहीं आसमान में नहीं हैं, बल्कि स्पंदन में है – हमारी चेतना है। ध्यान में बैठना सर्वोत्तम पूजा है। उस में मंत्रों को भी समर्पित कर देते हैं। मंत्र का उपयोग भी कुछ कुछ रूप जैसा ही है (केंद्रित करने के लिये)। ये एक पड़ाव है।

प्रश्न: प्रसाद का वैज्ञानिक महत्व क्या है?
श्री श्री: प्रसाद वही है, जिसके मिलने से मन प्रसन्न हो जाता है। कर्नाटक के एक संत ने लिखा है कि, ये समय जो हमें मिला है, ये प्रसाद है, हमारी सांस, शरीर, मन, प्राण और भाव, सभी प्रसाद हैं। हमें जीवन में जो भी मिला है वो प्रसाद है। जो मैंने बिछाया है वो प्रसाद है, और जिससे मैंने अपने आप को ढका है, वो भी प्रसाद है।


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"सभी धर्म ग्रन्थ सार्वभौमिक आत्मा से जोड़ते हैं"

अप्रैल ३,२०१०

प्रश्न : मुझे में सकरात्मक गुण कैसे आ सकतें हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
यदि तुम सोचते ही कि तुम में सकरात्मक गुण नहीं हैं तो तुम्हारे पास कभी नहीं होंगे| ऐसे सोचो कि तुम्हारे पास सभी सकरात्मक गुण हैं - वे केवल प्रकट होने के लिए कुछ समय ले रहे हैं|

प्रश्न : एक शिक्षक को कैसा होना चाहिए?

श्री श्री रवि शंकर :
दो प्रकार के शिक्षक होतें हैं| एक वे जो डांटने और गलतियों की ओर ध्यान दिलवाने में विश्वास करतें हैं| यह तामसिक स्टाइल है| दूसरी तरह के हैं जो आपको बताएँगे कि आपमें सब सकरात्मक गुण हैं| कुछ लोग जो कठोर होतें हैं उन्हें अनुशासित करने की आवश्यकता हो सकती है|

प्रश्न : प्राचीन ग्रन्थ का क्या महत्व है?

श्री श्री रवि शंकर :
सारे ग्रन्थ सार्वभौमिक आत्मा से जोड़ते हैं| ज्ञान और ध्यान दोनों मन को पूर्ण आराम देते हैं|

प्रश्न : क्या समलैंगिकता (Homo sexuality) गलत है?

श्री श्री रवि शंकर :
यह एक प्रवृति है| यह कभी भी बदल सकती है| ये बहुत से लोगों के साथ होता है| इंसान अपने माता और पिता दोनों का संयोग है| कभी कभी स्त्री शक्ति हावी हो जाती है और कभी पुरुष शक्ति हावी हो जाती है| अपने आप को दोषी मत मानो| इस सब से उपर उठो और अपने आपको ज्ञान के प्रकाश में देखो| तुम केवल मांस का ढांचा नहीं हो| तुम चेतना की रोशनी हो| अपने आप को आत्मा समझो जो की लिंग भेद से उपर है| तुम्हे बहुत राहत मिलेगी|

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ध्यान से मन में पूर्ण हां होती है


प्रश्न : कभी कभी मैं दिल से बहुत कमज़ोर महसूस करता हूँ। मुझे तब क्या करना चाहिए?

श्री श्री रवि शंकर :
कभी हमे सब छोड़ने की इच्छा होती है। ऐसा तनाव के कारण होता है। उस समय कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए। तुम्हे उसपर पछताना पड़ सकता है। पहले अपने स्वभाव में वापिस आजाओ।

प्रश्न : मै आपके पास कैसे आ सकता हूँ?

श्री श्री रवि शंकर :
तुम ऐसा मान कर चलो के तुम पास हो। यह तुम ही हो जो सोचते हो कि तुम पास नहीं हो।

प्रश्न : क्या बाकी के ग्रहों पर जीवन है?

श्री श्री रवि शंकर :
इस ग्रह पर भरपूर जीवन है। पहले इसकी देखरेख करते हैं। फिर बाकी के ग्रहों की तरफ़ बड़ेंगे।

प्रश्न : हमे कैसे पता चले की जीवन किस लिए है?

श्री श्री रवि शंकर :
पहले यह समझो की जीवन किस लिए नहीं है। यह ज़्यादा आसान है। जीवन दुख में रहने के लिए यां औरों को दुखी करने के लिए नहीं है।

प्रश्न : जीवन में जब चुनाव करना कठिन हो जाए तो क्या करना चाहिए?

श्री श्री रवि शंकर :
उसको चुनो जो तुम्हे लंबे समय में फ़ायदा पहुँचाता है। चाहे वो थोड़े समय के लिए दुख ही क्यों ना दे। जो थोड़ी देर की खुशी और आगे चलकर दुख दे वो चुनाव नासमझी है।

प्रश्न : कल आपने कहा था - चुनाव तुम्हारा है और आर्शिवाद मेरा। क्या इसका मतलब मैं कुछ भी चुनाव करुँ, आपका आर्शिवाद हमेशा साथ है?

श्री श्री रवि शंकर :
तुम मुझे एक मुश्किल परिस्थिति में डाल रहे हो। अगर यह तुमहारे व्यवसाय यां रिश्ते से संबंधित है तो चुनाव तुम्हारा है और आर्शिवाद मेरा।

प्रश्न : अगर सब उत्तर भीतर से ही मिलते है तो प्रश्न पूछने का क्या महत्व है?

श्री श्री रवि शंकर :
अगर मैं उत्तर ना दूँ तो। किसी भी उत्तर का क्या महत्व है? तांकि मन में हाँ हो। सब प्रश्न और उत्तर का महत्व मन में हाँ लाना ही है।

प्रश्न : मुझे ऐसा लगता है कि मैं उतनी सेवा नहीं करता जितना मुझे बदले में मिलता है।

श्री श्री रवि शंकर :
सेवा करते रहो।

प्रश्न : क्या समलैंगिकता(homosexuality) गलत है? यह परिवर्तित भी की जा सकती है?

श्री श्री रवि शंकर :
यह केवल एक प्रवृत्ति है। कई बार यह बदल भी जाती है। अपने को लेबल करने की ज़रुरत नहीं है। तुममे अपने माता और पिता दोनो के गुण हैं। कभी पुरुष प्रवृत्ति हावी हो सकति है तो कभी स्त्री प्रवति। इसमे अपने को दोष देने की ज़रुरत नहीं है। तुम केवल माँसपेशियों से बना शरीर नहीं हो। तुम अपनी पहचान लिंग से परे आत्मा से करो। इससे बहुत आराम मिलता है।

प्रश्न : मैने कई लोगों को भोजन करने से पहले प्रार्थना करते देखा है। इसका क्या महत्व है?

श्री श्री रवि शंकर :
जो भी तुमने कल खाया वो तुम्हारे शरीर का हिस्सा बन चुका है। वो सब अभी तुम्हारे साथ यहाँ मौजूद है। सृष्टि में हर वस्तु किसी न किसी तरह से जीवित है। प्राचीन लोग यह जानते थे और इसीलिए उन्होने भोजन से पहले प्रार्थना करने को कहा। मन के विचार केवल उर्जा ही है। भोजन में विचारों को समाने की क्षमता होती है। इसलिए आज भोजन से पहले प्रार्थना करना। भोजन करते समय कुछ बुरा मत सोचना। वहीं से विचारों का चक्र शुरु होता है। यह बहुत वैज्ञानिक है।


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