भगवद गीता पर श्री श्री


श्री श्री रविशंकरजी के द्वारा

आतंकवादी कायर होते हैं| जब भी दुनिया के किसी कोने में आतंकवादी हमला हुआ है, वहाँ लोगों को हमने कहते हुए सुना है कि वह कायरों के द्वारा किया गया काम था| कायर आगे बढ़कर काम करने से भागता है, और अपने मन में सारी नकारात्मक भावनाओं को रखता है, और पीछे से छुप कर कुछ करता है|
अर्जुन के साथ भी ठीक ऐसा ही हुआ था| वह क्रोधित, परेशान और निराश था और भाग जाना चाहता था| भगवद गीता में भगवान कृष्ण ने उसे कायरता त्यागंने के लिए कहा| अर्थात, यह आतंकवाद को समाप्त करने का उपाय है| कृष्ण ने वीरता के मार्ग को बताया| जब युद्ध अनिवार्य हो तो उसका सामना करे और अपने कर्तव्य को निभाये
एक आतंकवादी अपनी सीमित पहचान में अटका होता है| वह उसे छुपाता फिरता है, उसके पास कोई औचित्य नहीं होता, और वह दूसरों को पीड़ा पहुँचाता है| जब कि भगवद गीता व्यक्ति को उसकी अपनी पहचान से ऊपर उठाने में, उसकी विवेक शक्ति को बढ़ाने में, और उसको ज्ञान से भरने में सहायक हैं| इस प्रकार गीता को आतंकवाद अंत करने का उपाय बताया जा सकता है
एक पुलिसवाला, सैनिक या राजा का कर्तव्य है कि राष्ट्रहित के लिए वे निष्पक्ष रहें चाहे उनके समक्ष उनके पालक हों या उनके रिश्तेदार| आतंकवादी कभी निष्पक्ष नहीं होते| योद्धा वीर होते हैं और आतंकवादी कायर| योद्धा रक्षा करते हैं और हिंसा को रोकते हैं और आतंकवादी पीड़ा व कष्ट पहुँचाते हैं| भगवद गीता भौतिक एवं आध्यात्मिक दोनों स्तरों पर साहस का धर्मग्रन्थ है
आतंकवाद घृणा की भावना से भरा हुआ है| जबकि गीता द्वेष रहित कर्म की सीख देती है| गीता धर्मपालन, आध्यात्मिक उत्थान, और प्रतिकूल से प्रतिकूल परिस्थिति में भी कर्तव्यनिष्ठ रहने के उपदेश का एक प्रतीक है
गीता के अस्तित्व के पिछले ५१४९ वर्षों में ऐसे एक भी व्यक्ति का प्रमाण नहीं है जो कि गीता को पढने के बाद आतंकवादी बन गया हो| वास्तव में महात्मा गाँधी ने गीता पर कई टिप्पणियाँ लिखीं और वह उनके अहिंसा आन्दोलन की प्रेरणास्रोत थी| भगवद गीता एक ऐसा अनोखा धर्मग्रन्थ है, जो कि मानव इतिहास के सभी चरणों में और इस विशाल अस्तित्व के सभी स्तरों का समावेश करते हुए सबके लिए प्रासांगिक है|
गीता संतुलन, समता तथा कर्तव्यपालन की द्योतक है| कृष्ण सब को शस्त्र उठा कर युद्ध करने के लिए प्रोत्साहित नहीं करते, परन्तु एक योद्धा बाज़ार में केले तो नहीं बेच सकता| उसे लोगों की सुरक्षा के लिए शस्त्र उठाने ही पड़ते हैं| यदि भगवद गीता आतंकवाद का धर्मग्रन्थ है तो विश्व की सभी सैन्य शिक्षण संस्थान भी आतंकवादी संस्थाओं के सिवाय कुछ नहीं हैं| क्या ये अजीब नहीं लगता? क्या न्यायालय लेनिन, मार्क्स, माओ त्सो-तंग पर प्रतिबन्ध लगाएँगे, जिन्होंने सत्ता पर टिके रहने के लिए लाखों लोगों पर आतंक फैलाया?
एक आतंकवादी या कायर छिपता है और दूसरों को दर्द देता है जबकि एक सैनिक लोगों में सुरक्षा और शांति लाने के लिए अपने जीवन का बलिदान देता है| वे दोनों ही भले बंदूक उठाते हों, लेकिन उनके पीछे छिपे उद्देश्य में ज़मीन आसमान का अंतर है|
गीता विवेक और संवाद को प्रोत्साहित करती है जबकि आतंकवादी तर्क से दूर रहकर किसी भी तरह की बातचीत के प्रति अपने को बंद रखता हैं| दिलचस्प है, कि दुनिया भर के सभी सैन्य प्रशिक्षण संस्थाओं में, सैनिकों को कहा जाता है कि वे दुश्मन को एक खतरनाक वस्तु की तरह देखें जिसका विनाश करना ज़रूरी है, ऐसी सोच बनाने की सीख के पीछे यह मनोविज्ञान है कि यदि उन्हें लगता है कि शत्रु मानव है तो सैनिक अपने हथियार उठाने में असमर्थ हो जाते हैं| ऐसे कई रणनीतियाँ हैं जहाँ सैनिकों को अपने बचाव के लिए असंवेदनशील बनाया जाता है| 
एक ऐसी ही परिस्थिति अर्जुन के सामने आयी| भगवान श्री कृष्ण ने क्रमपूर्वक अर्जुन की भावनाओं को, अहंकार को, मानसिकता को, और अवधारणाओं को सम्भाला| वह आखिर में उसके आत्मस्वरूप तक पहुँचे, उसे सर्वोच्च ज्ञान दिया और उसे उसकी शाश्वत प्रकृति का एहसास दिलाया| इससे उसे भारी बल मिला और फिर उसे अपने सांसारिक कर्तव्यों को पालन करने के लिए प्रेरित किया|एक डॉक्टर को सिर्फ इसलिए एक डाकू नहीं समझ लेना चाहिए क्योंकि वह मरीज के पेट को चीरता है| भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि ऐसी बुद्धि जिसमें मोह न हो जो और राग और द्वेष से मुक्त हो उसे कोई पाप नहीं लगता है भले ही वह पूरी दुनिया को मार डाले| अब, एक राग और द्वेष से रहित बुद्धि की स्थिति ही अपने आप में आतंकवाद का इलाज है| आतंकवाद तब पनपता है जब बुद्धि में गहरा मोह हो और घृणा से भरा हो| भगवत गीता में दिखाए गए दृष्टांत और मानवता के उच्च मान वाकई में अद्भुत हैं|
यीशु ने कहा था, "मैं शांति लाने के लिए नहीं बल्कि तलवार लाने के लिए आया हूँ| मैं बेटे को अपने पिता के खिलाफ, बेटी को उसकी माँ के खिलाफ, बहु को उसकी सास के खिलाफ खड़े करने के लिए आया हूँ, आदमी के खुद के घर के सदस्य उसके दुश्मन बन जायेंगे|" कुरान में कई आयतें हैं जिसमें काफिरों के दिलों में आतंक बैठाने और उनकी उंगलियों को काटने के बारे में ज़िक्र है| इन पैमानों पर यदि गीता को एक आतंकवादी ग्रन्थ कहा जाए तो ऐसा कहने से पहले बाइबल और कुरान को भी ऐसा ही घोषित कर देना चाहिए|

सच तो यह है कि ग्रन्थ आतंकवाद नहीं पैदा करते, वह एक अज्ञानी और तनावपूर्ण मन होता है जो कि शास्त्रों का उलटा मतलब निकालकर उनका गलत उद्धरण देकर अपने कार्यों को उचित ठहराते हैं|
श्री श्री रवि शंकर द्वारा

यह लेख आम जनता के लिए है| इसे भगवद गीता के खिलाफ एक रूसी अदालत में चल रहे मामले के चलते दिसम्बर 2011 में लिखा गया था| रूसी अदालत ने प्रतिबंध को खारिज कर दिया और मामला समाप्त हो गया|



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ध्यान से आत्मा की शुद्धि होती है!!!


२६.१२.२०११, जर्मनी

क्या आप भगवान को देखना चाहते हैं? आपमें से कितने लोग भगवान को देखना चाहते हैं? इसमें ज्यादा समय नहीं लगता| दुनिया को देखना छोड़ दीजिए| यदि आप दुनिया को देखेंगे, तो आप भगवान को नहीं देख पाएंगे|
या तो आप भगवान को देख सकते हैं, या फिर दुनिया को देख सकते हैं| आप दोनों नहीं देख सकते| आपको एक ही चुनना पड़ेगा| यदि आप भगवान को देखना चाहते हैं, तो मैं आपको फ़ौरन दिखा सकता हूँ; इनमें अंतर देखना बंद कर दीजिए| दुनिया को देखना बंद कर दीजिए| क्वांटम भौतिकी भगवान को देख सकती है| यह जानिए, कि यह सब एक ही हैं, और सब कुछ एक से ही बना है| यह सिर्फ एक भ्रम है, कि यह एक व्यक्ति है, यह दूसरा व्यक्ति है| यह मात्र एक भ्रम है, कि यह एक वस्तु है, यह दूसरी वस्तु है| सारी वस्तुएं एक से ही बनी हैं|
हम एक होलोग्राम की तरह हैं| एक प्रकाश की किरण से होलोग्राम बनता है| ऐसा लगता है, कि कोई वस्तु बन गयी है, लेकिन   वास्तव में वह वस्तु नहीं है, मात्र प्रकाश का ही खेल और प्रदर्शन है| यह पूरी सृष्टि प्रकाश का खेल और प्रदर्शन है, जो दिखने में अलग लगता है| इस ग्रह पर भगवान के अलावा और कुछ भी नहीं है|
यदि  आप कोई फिल्म देखने बैठते हैं, आप सामने परदे पर जो भी देखते हैं, वह केवल प्रकाश है जो उससे निकल रहा है, बस! एक चलती हुई तस्वीर है, जिसमें से प्रकाश निकल रहा है, और प्रतीत होता है जैसे अलग अलग वस्तुएं हैं, लोग हैं, और अलग अलग घटनाएं हैं| इसी तरह यह पूरी दुनिया, चेतना का ही खेल और प्रदर्शन है| न तो कोई तत्व है, और न ही कोई ऊर्जा| न कोई आप हैं, न कोई मैं हूँ, न ही कोई ये है, न ही कोई वो है| ये सब एक ही है| बस! आप स्थिर रहिये|
बाइबल में कहा है, स्थिर रहिये, और जानिए कि मैं ही भगवान हूँ
यह हमारा मन है, जो भिन्नता देखता है| हमारी बुद्धि इन अंतरों को अनुभव करती है| आप बुद्धि से परे जाइये, और स्थिर रहिये| केवल एक ही है| आप एक नहीं कह सकते, क्योंकि एक कहने के लिए, आपको दो चाहिए| अगर आप किसी को पूर्ण कहते हैं, तो इसका मतलब कि आप उससे बाहर हैं और कह रहें है कि वह पूर्ण है| पुराने ज़माने के लोग इतने कुशाग्रबुद्धि थे कि आप हैरान रह जायेंगे| उन्होंने कहा, अद्वैत, यानि दो नहीं है|
एक कहना गलत होगा, केवल दो ही कह सकते हैं कि एक है| यह कहना कि दो नहीं है, यही व्यक्त करने का उत्तम तरीका है| यही है जिसे अद्वैता कहते हैं, लेकिन द्वैत का मतलब होता है दो’| यह ऐसे है जैसे शुद्ध विज्ञान जो स्वयं सिद्ध सत्यों के निगमनों पर आश्रित हो, जैसे क्वांटम भौतिकी| आप उसका अनुभव कर सकते हैं, उसे जान सकते हैं, मगर व्यावहारिक जीवन में, आपको एक कदम नीचे उतरना पड़ेगा| आपको द्वंद्व को मानना पड़ेगा, सृष्टि की बाहुलता को मानना पड़ेगा| यहाँ मेज़, कुर्सी, छत, दरवाज़ा सब लकड़ी का बना है और यह सत्य है| मगर आप दरवाजें की जगह कुर्सी और कुर्सी की जगह दरवाज़े का इस्तेमाल नहीं कर सकते| उस स्तर पर आपको द्वंद्व में संचालन करना होगा| इसलिए रसायन शास्त्र में आवर्त सारणी (पीरिओडिक टेबल) और क्वांटम भौतिकी दोनों ही सही हैं| दोनों एक ही तत्व की बात करते हैं|

प्रश्न: हनुमान जी और उनकी तरह के बाकी सब कहाँ विलुप्त हों गए? क्या वे सच में वानर थे, या क्या थे? ऐसी उत्तम वानर जाति कैसे विलुप्त हो सकती है?
श्री श्री रविशंकर: आप किसी मानव विज्ञानी से बात करिये| वे आपको इतिहास बताएँगे| यह दुनिया सिर्फ परिवर्तन है| सब कुछ बदलता रहता है| इस दुनिया का केवल एक ही अचल सत्य है, कि सब कुछ बदलता रहता है|

प्रश्न: गुरूजी, क्या आप हमें कुछ ऐसे सूत्र दे सकते हैं, जिससे हम अपनी रोज़मर्रा की जिंदगी में हर समय आपकी उपस्तिथि को महसूस कर सकें?
श्री श्री रविशंकर: बस स्थित रहिये| चाहे केवल एक मिनट या आधे मिनट के लिए ही सही|

प्रश्न: गुरूजी, आपकी हर दिन की साधना क्या होती है? क्या आप भी हमारी तरह उन्हीं मुद्दों में पड़ जाते हैं, जैसे बहुत विचार आना, चिंता, या फिर आप हमेशा अपने सहज स्वभाव में रहते हैं? 
श्री श्री रविशंकर: एक शिक्षक के लिए एक आचरण संहिता (कोड ऑफ कंडक्ट) होती है, कि वे अपने अनुभवों को बाँट नहीं सकते| क्या आप जानते हैं क्यों? क्योंकि फिर छात्र सोचने लगेंगे, मुझे ऐसा क्यों नहीं हो रहा, मुझे भी यह चाहिए’| यह चाहना, स्वयं से प्रश्न करते रहना चलता रहेगा| इसलिए उत्तम है, कि अपने ही अनुभवों के साथ रहें| एक एक कदम बढ़ते हुए, आपकी उन्नति ही होगी, और एक समय आएगा जब सब कुछ ही ध्यान है|

प्रश्न: मैं अपने रुपये पैसे का क्या करूँ, क्या आप मुझे कोई सलाह दे सकते हैं? 
श्री श्री रविशंकर: आप एक ऐसी दुनिया में रहते हैं, जो बहुत जटिल है| किसी न किसी तरह आप किसी न किसी चीज़ के लिए दुनिया पर निर्भर हैं| आप अपने आप को पूरी तरह से पृथक नहीं कर सकते|
अब देखिये, जर्मनी ने अपनी मुद्रा डच मार्क से यूरो कर ली है| तब आप यह नहीं कह सकते थे, कि नहीं, मुझे यूरो में नहीं रहना, मैं तो वही पुरानी डच मार्क अपने पास रखूंगा| आप ऐसा नहीं कह सकते थे, और अगर आप ऐसा करते, तो आप बहुत बड़े मूर्ख हों जाते| तो इसलिए, दुनिया में जो भी हों रहा है, उससे आप पूर्णतः अलग और पृथक नहीं हों सकते|
आप तीव्रबुद्धि हो सकते हैं, लालची नहीं| जो लोग लालची होते हैं, वे मुसीबत में पड़ जाते हैं| वे इश्तिहार देखते हैं जो कहते हैं, अपना पैसा लगाईये और २०० प्रतिशत मुनाफा पाईये’| आप वैज्ञानिक तौर से नहीं सोचते, कि वे आपको २०० प्रतिशत क्यों देंगे| आप ख्याली बादलों में फँस जाते हैं, कि ये लोग मुझे बहुत सा पैसा देने वाले हैं ऐसे वक्त में, जब आप इतना उत्तेजित होते हैं, आपके दिमाग में कोई बुद्धिमत्ता नहीं जागती| आपको लगता है, कि यह इतना वास्तविक है, आप पैसा लगते हैं, और आपका पैसा डूब जाता है| मैंने इतने लोगों को देखा है जो ऐसा करते हैं, और इतना लोगों को अपना सारा पैसा खोते हुए देखा है, सिर्फ इसलिए कि वे लोभी हैं|
इसलिए आपको  इतना बुद्धिमान होना चाहिए कि यह देख पाएं कि कहाँ पैसा लगाना अच्छा है| मैं आपको वह सब तो नहीं बता सकता| यह तो नीति के विरुद्ध होगा| आप ऐसी जगह लगाईये, जहाँ आपको लगे कि पैसा सुरक्षित है|

प्रश्न: प्रिय गुरूजी, मैं बातों को छोड़ नहीं पाता| क्या करूं?
श्री श्री रविशंकर: बस पकड़े रहिये| साँस अंदर लीजिए और रोक लीजिए| देखिये कि आप कितनी देर रोक पाते हैं| कोई और चारा ही नहीं है! क्या आप अपनी उम्र को रोक सकते हैं? नहीं! आप यह नहीं कह सकते, कि मैं अगले साल ४९ साल को होऊंगा, मैं सोचूंगा, कि मैं ५० का होऊं या नहीं’| क्या आप अपनी जन्मतिथि बदल सकते हैं? नहीं! अगर आप कर भी लेते हैं, तो यह सत्य नहीं होगा| आप ऐसा पासपोर्ट में कर सकते हैं, मगर वह वैध नहीं है, सही नहीं है| आप एक निश्चित दिन पैदा हुए थे, और बस वही है|

प्रश्न: मैं हमेशा ढूँढता हूँ कि कोई मुझे प्यार करे| मैं यह कैसे जानूं, कि कोई मुझे प्यार करता है, या मैं किसी के प्यार करने के लायक हूँ?
श्री श्री रविशंकर: मेरे प्रिय, मैं कितनी बार कह चुका हूँ, कि आप ही प्यार हो! प्यार ढूँढिये नहीं, बल्कि प्यार दीजिए| जब आप देने लगते हैं, तब वह बहुत बार गुणा होकर आपसे पास वापस आता है|

प्रश्न: गुरूजी, कुछ दिन पहले मेरे पिता का देहांत हो गया था| मेरी माताजी अकेली हैं, कमज़ोर, जीवन में जैसे कोई लक्ष्य नहीं है| मैं उनकी सहायता करने के लिए क्या कर सकता हूँ?
श्री श्री रविशंकर: ज्ञान सहायता करेगा! उनसे ज्ञान के बारे में बात करें| उनके साथ बैठें, और कुछ ज्ञान पढ़ के सुनाएं| शास्त्र पढ़ें, कुछ कहानियां या योग वशिष्ट| उन सबसे ज्यादा, आप उनके आस पास हैं, यही उन्हें उठाएगा| समय बहुत आरोग्यसाधक है| बल्कि, समय ही सबसे बड़ा आरोग्यसाधक है|

प्रश्न: मेरे प्यारे गुरूजी, आप कहते हैं, कि कर्म बदला नहीं जा सकता| सिर्फ कृपा से ही कर्म का बंधन छुट  सकता है| कृपा क्या है, और क्या करने से कृपा को ला सकते हैं?
श्री श्री रविशंकर: ऐसा कोई भी काम जो विकासवादी है, और जो जीवन का भरण-पोषण करता है, नि:स्वार्थ निष्ठावान सेवा| ऐसा नहीं कि मैं कोई सेवा करूँ, और फिर सोचूँ, कि मुझे बदले में क्या मिलेगा? नहीं, वह सेवा नहीं है| सेवा ऐसा कृत्य है, जिसके बदले में हम कुछ नहीं चाहते| यह कृत्य बहुत महत्वपूर्ण है| सेवा हमारे कर्मों की शुद्धि करती है|
भारत में कहावत है, एक चम्मच घी को चावल पर डालने से चावल शुद्ध हो जातें हैं| पता है क्यों? क्योंकि अगर आप बिना घी के चावल खायेंगे तो वह बहुत जल्दी पच जाएगा और बहुत जल्दी शुगर बन जायेगा| इसलिए बहुत से लोग जो चावल बिना घी के खाते हैं, उन्हें मधुमेह (डायबिटीज़) हो जाता है|
एक बार एक हृदयरोग विशेषज्ञ ने मुझे बताया था, कि जब भी आप अनाज लें, तो उसके साथ कुछ वसा भी लें| एक चम्मच घी से पाचन धीमा हो जाता है, और उससे आपका ह्रदय स्वस्थ तरीके से काम करता है| वह कार्बोहाइड्रेट बन जाता है, और शरीर में शुगर की मात्रा को संतुलित रखता है| इसीलिए पुराने ज़माने के लोग कहते थे, कि एक चम्मच घी से चावल शुद्ध होते है|
ज्ञान बुद्धि को शुद्ध करता है| आपमें से कितने लोगों ने इस बात का अनुभव किया है, कि ज्ञान बुद्धि को शुद्ध करता है’? सारा गुस्सा, लालसाएं, दूसरे लोगों से घृणा, सब दूर हो जाती है| संगीत भावनाओं को शुद्ध करता है|
दान करने से आपके कमाए हुए पैसे की शुद्धि होती है| आप जितना कमाएँ, उसमे से कम से कम ३-४ प्रतिशत दान में देना चाहिए| अगर हम जो भी कमाएँ, वह सारा अपने ही ऊपर खर्च करें तो उसे शुद्ध धन या अच्छा धन नहीं माना जाता| दान देने से धन शुद्ध होता है और फिर शेष  बचे हुए धन का आप आनंद उठा सकते हैं| नहीं तो, पैसा सिर्फ अस्पतालों में या इधर उधर जाता है|
प्रार्थना मन की शुद्धि करती है| ध्यान आत्मा की शुद्धि करता है| आयुर्वेद, त्रिफला शरीर की शुद्धि करते हैं और आँतों को स्वच्छ करते हैं| आप  हमेशा शरीर में भोजन ठूंसते रहते हैं, लेकिन कभी कभी आपको  अपने शरीर की प्रणाली (सिस्टम) को साफ़ भी करना चाहिए| ४-५ गोलियाँ रात में सोने से पहले लेने से, सुबह पेट एकदम साफ़| इसलिए आयुर्वेद, योग, प्राणायाम और व्यायाम शरीर की शुद्धि करते हैं| प्राणायाम से पूरी प्रणाली शुद्ध होती है, मन शरीर सब कुछ| इसीलिए सुदर्शन क्रिया के बाद आप इतना स्वच्छ और निर्मल महसूस करते हैं| वह आपको सारे कर्मों से शुद्ध कर देती है, जिससे वह प्रांजलता, स्पष्टता आती है|

प्रश्न: गुरूजी, क्या आत्मा को बार बार जन्म लेना पड़ता है, जब तक कि सारी इच्छाएं और सारे कर्म पूरे नहीं हो जाते? जन्म और मृत्यु के इस चक्रव्यूह से कैसे बाहर आ सकते हैं? क्या निर्वाण ही इसका मार्ग है?
श्री श्री रविशंकर: बिलकुल सही! इस प्यास को बुझाने का एक ही रास्ता है, कि कुछ पी लिया जाये! भूख मिटाने के लिए कुछ खाना ही पड़ता है| इसी तरह इस चक्रव्यूह से बाहर आने के लिए निर्वाण, या ध्यान से  पूर्ण तृप्ति मिलेगी|

प्रश्न: पिछली किसी भूल के कारण लोग मेरी प्रतिभा को कम क्यों समझने लगते हैं?
श्री श्री रविशंकर: आपने अपने प्रश्न का खुद ही उत्तर दे दिया| आपके अंदर प्रतिभा है, लेकिन जब आप कोई गलती कर बैठते हैं, तो वे डर जाते हैं, क्योंकि हर गलती किसी व्यक्ति या कंपनी को बहुत महंगी पड़ सकती है| इसलिए आपको उन्हें यह भरोसा दिलाना पड़ेगा कि अब गलती नहीं होगी, और आप अपनी प्रतिभाओं का सही उपयोग करेंगे| आज कल लोग ज्यादा खतरा नहीं उठाना चाहते|

प्रश्न: गुरूजी, ज्ञान के पथ पर चलने के लिए क्या कोई सही तरीका है? हम उन विचारों और धारणाओं का क्या करें, जो हमें परेशान करती  हैं, और ये उन लोगों के बारे में है, जो हमारे जीवन में बहुत महत्व रखते हैं?
श्री श्री रविशंकर: आपका अतीत जैसा भी है, उसके बारे में ज्यादा चिंता न करें| वर्तमान समय में अपनी मासूमियत पर भरोसा करें| आप वर्तमान क्षण में मासूम हैं| अतीत में जो भूलें आपसे हुईं, वे आपकी नादानी की वजह से हुईं थीं| मगर असली बात तो यह है कि वर्तमान क्षण में आप मासूम हैं|

प्रश्न: क्या ज्योतिष विद्या पढ़ने का कोई फायदा है? क्या हम कभी भी बहुत जान पाएंगे?
श्री श्री रविशंकर:ज्योतिष विद्या एक विज्ञान है, मगर किसी वजह से यह विलुप्त हो चुकी है| इसका पूरा ज्ञान अब उपलब्ध नहीं है, इसलिए वे जो भी ज्ञान देते हैं, वे केवल ७०-८० प्रतिशत ही है| वे थोड़ा बहुत भविष्यवाणी कर सकते हैं|
लेकिन, एक तर्क है जो सभी ज्योतिषी देते हैं, कि एक जो सबसे बड़ी शक्ति है, सब से ऊंची ताकत, वह इन सब से कहीं ज्यादा ताकतवर है| क्योंकि वह उच्चतम शक्ति, वह उत्कृष्ट बल स्वतंत्र है, वह दैवीय है, दैवीय कृपा है और दैवीय कृपा कभी भी कुछ भी बदल सकती है|

प्रश्न: गुरूजी, मैं किस प्रकार अपनी बीवी को अपने से अभद्रता से बात करने से रोकूँ?
श्री श्री रविशंकर: ओह! यह तो चुनौती है! अगर वे आपसे खराब तरीके से बात करती हैं, वह भी बिना किसी कारण, तो आप उनसे वजह बताने के लिए कहें!

प्रश्न: अष्टवक्र गीता में आपने कहा है कि जीवन तीन चीज़ों से बना है; बीज, अंडे और शून्यता| जीवन शून्यता से कैसे बना है?
श्री श्री रविशंकर: सब कुछ शून्यता में आता है, शून्यता में रहता है, और शून्यता में ही समा जाता है| आपको शून्यता का अध्यनन करना चाहिए| तब आप देखेंगे, कि शून्यता के अलावा तो कुछ और है ही नहीं! सब कुछ शून्यता में ही बना है|

प्रश्न: प्रिय गुरूजी, मुझे लगता है कि मैंने पिछले तीन साल में बहुत सी गलतियाँ की हैं, और मुझे उनका फल भुगतना पड़ेगा, जिससे मैं भयभीत हूँ| क्या मैं ऐसा कुछ कर सकता हूँ, जिससे इन परिणामों को कम कर सकूं?
श्री श्री रविशंकर: आप अब सही रास्ते पर हैं, यही परिणामों को कम कर रहा है| और आप इन परिणामों को स्वीकार रहे हैं, वही एक बहुत तसल्ली की बात है| यह आपको एक ऊंचा दर्जा दे रहा है|

प्रश्न: प्रिय गुरूजी, मैंने तीन साल तक बहुत मेहनत की, मगर मेरे पर्यवेक्षक (सुपरवाइज़र) ने बिना कुछ सोचे मेरे कैरियर को खत्म कर दिया| अब मेरे पास नौकरी नहीं है, और न ही जीवन के लिए कोई लक्ष्य| अपने बॉस के लिए मेरे मन में जो नकारात्मक भावनाएँ हैं, उनसे मैं कैसे निपटूं?
श्री श्री रविशंकर: सुनिए, जो हो चुका है, अब उसके बारे में बैठ कर सोचने से कुछ नहीं होगा! जागिये! पूरी ऊर्जा के साथ आगे बढ़िए! अगर आपकी एक नौकरी चली गयी, तो क्या हुआ? दुनिया में लाखों और नौकरियां हैं आप कोई और ले सकते हैं| कोई बात नहीं, अगर आपको यहाँ थोड़ी कम तनख्वाह मिले, और वहां थोड़ी ज्यादा थी, आगे बढ़िए!
खाली बैठकर सोचना, और जो हो चुका है उसके बारे में सोच कर अपनी ऊर्जा व्यर्थ करना | जीवन इस सबसे कहीं ज्यादा मूल्यवान है| ऐसा इसलिए हुआ होगा, कि या तो वर्तमान में आपकी कुछ गलती रही होगी, या फिर भूतकाल में आप अपनी गलतियाँ देख न पाएं हों| ऐसा आपकी किसी पिछले जन्म की वजह से भी हो सकता है, मगर फ़िक्र न करें! अतीत का विश्लेषण करने से कोई फायदा नहीं है| हमें आगे का सोचते हुए, आगे बढ़ना होगा! अपने उत्साह को किसी भी वजह से खोइये मत!

प्रश्न: कुछ दिन पहले आप सत्व के बारे में बात कर रहे थे, कि जल सबसे उत्तम हस्तांतरण करता है| क्या सत्त्वगुण को माँपने का कोई तरीका है?
श्री श्री रविशंकर: हाँ, ऊर्जा शक्ति को माँपने का कोई तो तरीका होना चाहिए| हमारे एक आर्ट ऑफ लिविंग के शिक्षक हैं, जो वैज्ञानिक भी हैं| उन्होंने एक ऐसा यंत्र बनाया है, जो ऊर्जा की तरंगों को माँपता है| वे उसका प्रयोग किसी व्यक्ति पर ध्यान करने से पूर्व और ध्यान करने के उपरान्त करते हैं, और उन्होंने पाया कि उनका प्रभावमंडल कुछ दूरी से बढ़ गया है| यह बहुत दिलचस्प है|

प्रश्न: प्रिय गुरूजी, जब हमारे शरीर को आघात पहुँचता है, तब हम मर जाते हैं, और हमारी आत्मा शरीर को छोड़ देती है| क्या आत्मा का शरीर से इतना ढीला सम्बन्ध है? क्या आत्मा बिना किसी आघात के आगे बढ़ पाती है?
श्री श्री रविशंकर: आत्मा को कभी आघात नहीं पहुँचता| वह आगे बढ़ जाती है|
आप शून्यता को चोट नहीं पहुंचा सकते| आप वायु को चोट नहीं पहुंचा सकते| आप जैसे जैसे सृष्टि की सूक्ष्मता में जायेंगे, तो वहां ऐसा कुछ नहीं पाएंगे जिसे आप आहत कर सकें| आप उसका विभाजन भी नही कर सकते| यह बेहद अद्भुत है|


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योग दिल और दिमाग के बीच सामंजस्य स्थापित करता है!!!



२५.१२.२०११, जर्मनी

सभी को क्रिसमस और नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें|
२०१२ आने मे बस सिर्फ एक सप्ताह शेष है| हर साल की तरह यह भी अच्छा साल है| प्रलय के बारे मे मत सोचिये; वह नहीं आएगा| लोग जागेंगे और इस सच्चाई को जानेंगे, और गलत लोगों को पृष्ठभूमि में जाना होगा| जिन लोगों ने गलत कार्य किये हैं वे पीछे की ओर जायेंगे और जो लोग सही दिशा में कार्य कर रहे हैं; वे आगे की ओर बढ़ेंगे| मार्च के बाद एक बहुत बड़ा बदलाव आयेगा|
यदि आप इस विश्व को दिल से देखें, यह बहुत अलग है| इस विश्व को दिल के जरिये देखिये तो आपको इसकी सुंदरता, इतना सारा प्यार, इतनी मासूमियत एवं लोगों के अच्छे इरादों के बारे में पता चलेगा| यदि आप इसी विश्व को दिमाग से देखें तो हमें ढेर सारी चालाकी, ढेर सारा अविश्वास और संदेह ही मिलेगा| यह सब तब दिखता है जब हम विश्व को दिमाग से देखेंगे| जब दिल से देखें, तो यह बहुत छोटी सी दुनिया है| परन्तु दोनों की ही जरुरत है| परन्तु इतने भोले होकर सिर्फ दिल के शीशे से ही इस दुनिया को नहीं देखा जा सकता| कभी कभी दिमाग का भी इस्तेमाल करना पड़ता है, दोनों में तालमेल बनाना होगा| कुछ लोग हैं जो दिमाग में ही फंसे रहते हैं और कुछ लोग हमेशा भावुकता में| दोनों ही अपूर्ण हैं| योग दिल और दिमाग के बीच सामंजस्य स्थापित करता है|
आप सभी को यह सोचना है कि आध्यात्म यूरोप में कैसे लायें| आध्यात्म को यूरोप में लाने के लिए आप को हर संभव प्रयास करने होंगे| मेक्सिको की संसद के १३० सदस्यों ने आर्ट ऑफ लिविंग का कोर्से किया है| हर तरफ से काफी प्रयास हो रहा है|

प्रश्न: कोर्से करने के बाद लोग फोलो अप में नहीं आते, ऐसे में क्या किया जाये?
श्री श्री रविशंकर : वे कभी न कभी वापस आएंगे| देखिये आप खाना खा चुके हों तब आप खाने के बारे में नहीं सोचते क्योंकि आप तृप्त रहते हैं| परन्तु जब आपको भूख लगती है, तब आप फिर खाना ढूंढते हैं|
आर्ट ऑफ लिविंग का बेसिक कोर्से अपने आप में इतना समृद्ध है कि वह लोगों को संशय में नहीं छोड़ता है, पूरी तरह से तृप्त करता है| तो जब लोग कोर्से करने के बाद खुशी महसूस करते हैं| यह एक कारण है| दूसरा कारण है कि जब आप लोगों से आग्रह करते हैं कि उनको प्रतिदिन प्राणायाम और क्रिया रोज करनी है, और मानो कि किसी ने ये नहीं किया हो तो उसके मन में अपराध की भावना आती है कि उन्होंने यह नहीं किया| वे यह सोचते हैं कि मैं वापस जाकर लोगों का कैसे सामना करूँगा, कैसे मैं जा कर वह सब दोहराऊंगा| यह अपराध की भावना लोगों के मन में आती है| फिर वे अपने आपको यह कहकर समझाते है कि कल से जरूर करूँगा और फिर जाऊँगा| कोर्से करके कोई पछताता नहीं है| वे पछताते हैं कि यह उन्होंने पहले क्यों नहीं किया| वे इसलिए वापस नहीं आते क्योंकि वे संतुष्ट महसूस करते हैं| परन्तु कुछ समय बाद वे वापस फोलो अप में आते हैं| १० वर्ष बाद भी वे आते हैं और कहते हैं कि उन्होंने १० वर्ष पहले कोर्से किया था|
एक यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष ने कुछ १५ वर्षों पहले कोर्से किया था| और जब वे अपने टीचर से मिले तो वे बताते हैं कि वे रोज क्रिया करते हैं| एक दिन भी वे क्रिया करना नहीं भूलते| उन्होंने कभी एडवांस कोर्से नहीं किया है परन्तु वे प्रतिदिन क्रिया करते हैं| तो, लोग अपने व्यस्त कार्यक्रम के बावजूद क्रिया करते हैं|

प्रश्न: आप हमारे पास क्यों आते हैं?
श्री श्री रविशंकर: आपको यह बताने कि अपने भीतर झांकिये|
आप अभी क्यों आये हैं कोर्से करने? आपको तब आना चाहिए जब मैं यहाँ नहीं हूँ| क्या आपको पता है कि क्या आपको यहाँ खींच लाता है! यदि आपका दिल कहता है कि आपको जाना चाहिए तो आप आइये| अन्यथा, तब कीजिये जब मैं यहाँ नहीं हूँ| वास्तव में मौन बेहतर होता है जब मैं यहाँ नहीं होता, परन्तु शुरू में यह एक अवसर है अपनी चेतना की गहराइयों में जाने का| ज्यादा से ज्यादा लोग बैठकर ध्यान करते हैं और अपने गहन में जाते हैं| देखिये कोई अंदर नहीं है, कोई बाहर नहीं है| यदि आप सोचते हैं कि अंदर कुछ है, तो कुछ बाहर भी है| यदि आप सोचते हैं कि बाहर कुछ है, तो अंदर भी कुछ है| तो वास्तविक खिलना वह है जब कोई अंदर या बाहर न हो| सब एक सामान है, अंदर और बाहर सामान है|

प्रश्न: (अश्राव्य (  
श्री श्री रविशंकर: जैसे कि गहरी नींद में कोई दो नहीं है| यह भी नहीं कि मैं सो रहा हूँ| वैसे ही ध्यान के गहन में कोई दो नहीं है| शरीर भी सोफे पर एक तकिये की तरह है| यदि आप सोचते हैं कि दोनों में कोई फर्क नहीं है, तो यही शरीर व चेतना का अलगाव है| तब आप देखते हैं कि कुछ भी नहीं है| जैसे बर्फ, पानी और भाप| बर्फ ठोस है, पानी तरल और भाप उससे भी सूक्ष्म है| परन्तु वे सब एक ही तत्त्व से बने हैं| तो, कुछ भी दो नहीं है| न कोई मैं हूँ और न कोई आप है| हमारा छोटा सा दिमाग यह बाधा डालता है, यह भेदभाव देता है| तो, विश्राम कीजिये और आप देखेंगे कि सिर्फ एक, एक ही तरंग है|

प्रश्न: कैसे मैं एक शिशु विहार का आरम्भ कर सकता हूँ?
श्री श्री रविशंकर: सिर्फ कुछ बच्चे ले आइये| मैं अपने आप को हमेशा एक बाल विहार में महसूस करता हूँ| यहाँ आने वाले व्यस्क भी जो यहाँ आते हैं, बच्चे बन जाते हैं| पुराणों में एक सुन्दर कथा है| ऊपर तिब्बत में कुमारा-वनम नामक एक बगीचा है और उस बगीचे में इश्वर का वास है| जो कोई भी उस बगीचे में जाता, वह बच्चा बन जाता था|
इसी तरह कि एक कथा दुसरे ग्रंथ मे है| एक बगीचा था जहां पुरुष प्रवेश नहीं कर सकते थे| जो भी उस बगीचे में जाता, वह महिला बन जाता| पुरुषों का प्रवेश वर्जित था| यही वह जगह है जहाँ इश्वर वास करते हैं| ये सभी कहानियां यह संदेश देती हैं कि आपको दिमाग से अपने दिल पर विश्वास करना चाहिए| बच्चे बहुत निर्दोष होते हैं और वे जो भी करते हैं वह दिल से करते हैं| वैसे ही महिलाएं ज्यादा भावनात्मक होती हैं और वे दिल से सोचती हैं, न कि दिमाग से| परंतु मैं कहूँगा कि आप मे दोनों का संतुलन हो, दिल और दिमाग में|

प्रश्न: बड़ा धमाका जिससे ब्रह्माण्ड की शुरुआत हुई कैसे हुआ?
श्री श्री रविशंकर: कुछ द्रव्य था| बिना द्रव्य के बड़ा धमाका नहीं हो सकता| किसका धमाका किससे होगा? एक दूसरे से धमाका करने के लिए कुछ तो होना पड़ेगा| कुछ द्रव्यमान, कोई क्षेत्र, ऊर्जा| ऊर्जा का वह क्षेत्र का तो सृजन हुआ था और ही विनाश, वह सिर्फ परिवर्तित हुआ था|
बड़ा धमाका केवल ऊर्जा का परिवर्तन था| मात्र गैस(वाष्प) और क्वांटम ऊर्जा से पर्याप्त ऊर्जा में, बस इतना ही| यही पुराने ज़माने के ऋषियों ने कहा है, और वे इसे अनादि जिसका आरंभ नहीं है कहते थे| और अनंत जिसका अंत नहीं है| इस सृष्टि की कोई शुरुआत नहीं है और कोई अंत भी नहीं है, जैसे अंतरिक्ष है| अंतरिक्ष की शुरुआत कहाँ है? पृथ्वी कहाँ से शुरू होती है? या तो कहिये कि कोई शुरुआत नहीं है, या मानिये कि हर बिंदु शुरुआत है, और हर बिंदु अंत है| अगर आप कहेंगे कि भूमंडल यहाँ से शुरू हुआ है, तो उसे खत्म भी वहीँ होना होगा, नहीं तो वह गोलाकार नहीं रहेगा|
तो इस तरह कुछ अति बुद्धिवादी विचार थे जो हज़ारों साल पहले प्रकट किये गए थे|
जो जहाँ शुरू होता है, उसे वहीँ अंत होना होगा, और वही गोलाकार है| इसीलिए तो कोई शुरुआत है, ही कोई अंत है, अनादि और अनंत! इस सृष्टि का कोई आरंभ नहीं है, और कोई अंत नहीं है|

प्रश्न: (अश्राव्य)
श्री श्री रविशंकर: एक काँटा ही दूसरे कांटे को निकाल सकता है| देखिये, यह तो वही बात हुई, कि शरीर पर साबुन लगाने की क्या ज़रूरत है, यदि हमें उसे बाद में धो ही देना है? कपड़े धोने के लिए आप क्या करते हैं? आप साबुन लगाते हैं और फिर उसे धो देते हैं| इसी तरह, आप मुझसे पूछ रहें हैं, कि यदि बस से उतरना ही है, तो मैं बस में चढूं क्यों?
लेकिन जिस जगह से आप बस में चढ़े हैं, और जिस जगह उतरे हैं, वे अलग अलग हैं|

प्रश्न: मन हमेशा नकारात्मक को ही क्यों पकड़ता है, सकारात्मक को क्यों नहीं?
श्री श्री रविशंकर: हाँ, यह उसका स्वभाव है| आप किसी की दस तारीफें करें और एक अपमान करें, तो मन उस अपमान को पकड़ के बैठ जाता है| जैसे ही आप इसके प्रति सजग हो जाते हैं, तो आप में परिवर्तन जाता है| जब आप इसके प्रति सजग नहीं होते, तब आप फँस जाते हैं और इसमें बह जाते हैं| लेकिन एक अच्छे वातावरण में, जहाँ उच्च प्राण शक्ति और उच्च ऊर्जा शक्ति है, वहां ऐसा नहीं होता|
गुरु आते हैं, आपकी प्राण शक्ति बढ़ाने के लिए| प्राण शक्ति और ऊर्जा शक्ति गुरु की भौतिक उपस्थिति में बढ़ जाती हैं| जब प्राण शक्ति ज्यादा होती है, तब नकारात्मकता कम होकर विलुप्त हो जाती है|
और यदि आप लंबे समय से निरंतर साधना कर रहें हैं, तब भी नकारात्मकता आपको छू नहीं सकती| आप इतने शक्तिशाली हों जाते हैं, कि आप जहाँ जाते हैं, वहां की प्राण शक्ति आप बनाते हैं!
अगर दिए की लौ बहुत ऊंची होती है, तो हवा उसे बुझा नहीं सकती| लेकिन अगर छोटी होती है तो हवा उसे बुझा देती है|
आपको ज़रूरत है बुद्ध’, संघ और धर्म की| सर्वप्रथम आप बुद्ध या परम ज्ञानी के पास जाते हैं, आप उनके साथ बैठते हैं, ध्यान करते हैं| यह संघ के सामान है, एक समूह में ध्यान करना, उससे भी प्राण शक्ति बढ़ जाती है| जब ये दोनों ही उपलब्ध हों, तब धर्म, यानि बिलकुल निष्पक्ष हो जाये| सब कुछ छोड़ दे, और अपनी आत्मा’, अपने स्वभाव में रहे| यह भी प्राण शक्ति बढ़ाता है|
तीन तरीकें हैं, और ये तीनों एक से हैं|

प्रश्न: गुरूजी, कभी कभी मैं बहुत श्रद्धा में होता हूँ, और कभी कभी बहुत संशय में| इस पर कैसे काबू पाऊँ?
श्री श्री रविशंकर: जब सकारात्मक ऊर्जा होती है, तब श्रद्धा, विश्वास होता हैं| जब नकारात्मक ऊर्जा होती है, तब संशय होता है| लेकिन, कोई बात नहीं, अगर संशय आता है| जीवन इन सबका ही तो खेल और प्रदर्शन है| संदेह आते हैं, फिर विश्वास आता है| आपको संशय से डरना नहीं चाहिए| मैं तो कहूँगा, उनका स्वागत करिये|

प्रश्न: (अश्राव्य)
श्री श्री रविशंकर: हाँ, वे दोनों एक ही हैं| बुद्ध ने कहा सब शून्य है और आदि शंकर ने कहा सब पूर्ण है’| बुद्ध ने कहा जीवन दुःख है और आदि शंकर ने कहा जीवन आनंद है’| पहले उदाहरण के लिए बुद्ध सही कह रहें हैं| जब तक आप यह नहीं देखेंगे कि सब कुछ दुःख और कष्ट है, तब तक आप अंतर्मुखी नहीं होंगे| तो यह तरीका है| एक बार आप अंतर्मुखी हों गए, तब आपको सब आनंदमय लगता है| आदि शंकर इसी के बारे में कह रहें हैं|

प्रश्न: गुरूजी, क्या हमें आपकी आवाज़ में एक भजन की सी.डी. मिल सकती है?
श्री श्री रविशंकर: मैं हर चीज़ पर हावी नहीं होना चाहता| यहाँ बहुत सारे महान संगीतज्ञ हैं, जो इतना अच्छा गाते हैं| मैं चाहता हूँ कि आप उनकी आवाज़ सुनें| मैं तो केवल सोहम करता हूँ, और बाकी सबके लिए आप संगीतकारों को सुनें| हाँ, प्रवचन तो हैं ही| नहीं तो क्या होगा, कि गुरूजी के भजन’, गुरूजी के प्रवचन’, सब कुछ गुरूजी का! नहीं! इसीलिए योग भी कोई और कराते हैं|
हम सब साथी हैं, हर एक की कोई भूमिका है| मैं सारी भूमिकाएं नहीं लेना चाहता| हालाँकि मैं कोई भी भूमिका निभा सकता हूँ, लेकिन मैं सारे किरदार नहीं निभाना चाहता| फिर आप कहेंगे, कि गुरूजी आप कितना अच्छा खाना पकाते हैं, आप रोज़ क्यों नहीं पकाते?’
कभी कभी मैं यहाँ भोजन पकाता हूँ, लेकिन आपको पता नहीं चलता कि कब! आपको दिन में किसी एक समय का भोजन मुझसे मिलेगा| भारत में तो अब भोजन पकाना बिलकुल असंभव हों गया है| मैं तो रसोई में घुस भी नहीं सकता, इतनी भीड़ होती है| आम तौर पर, पुराने दिनों में मैं रसोई में जाता था और कुछ नए नए व्यंजन बनाने के प्रयोग करता था| कम से कम यहाँ ऐसा करने की सुविधा है, मगर भारत में तो यह असंभव है|
आपको पता है, हम भारत में एक दिन में कितना नमक इस्तेमाल करते हैं? जब मैं वहां होता हूँ, तो एक समय के भोजन में करीब १५० किलो! जब मैं नहीं होता हूँ, तब एक समय के भोजन में १०० किलो! कभी कभी तो यह ३०० किलो तक पहुँच जाता है, तो आप सोच ही सकते हैं, कि कितना सारा खाना बनता है और कितने सारे लोग आते हैं|


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