प्रेम पत्थर भी पिघला देता है !!!

०२
२०१३
जनवरी
बर्लिन , जर्मनी

प्रश्न : कई कहानियों द्वारा मुझे पता चलता है कि आप सर्वव्यापी है और सब जानते है | यह (बात) कभी कभी मेरे भीतर पैदा होती है कि आपको मेरी सभी गलतियों के बारे में पता है | (मेरी) गलतियों के प्रति आपका क्या दृष्टिकोण है ? क्या आप मुझसे नाराज होते हो जब आप मुझे वही गलतियां बार बार करते हुए देखते हैं ?
श्री श्री रविशंकर : तनिक भी नहीं |
क्या आप जानते हो कि भक्त गुरू से ज्यादा शक्तिशाली होते हैं ? क्या आप जानते हैं ? यह सत्य है | आप लोगों ने मेरी गुरू कहानियां सुनी होगी , किन्तु मेरे पास कई भक्त कहानियां है | मैं आपके साथ एक (कहानी) बांटता हूँ | नवम्बर के आखिरी सप्ताह में , मैं महाराष्ट्र के दूर-दराज के गावों का दौरा कर रहा था | कुछ ऐसे गांव और जिल्ले थे | जहां पर मैं कभी नहीं गया था | कई लोग थे जो मुझे मिलने आये थे | एक गांव में मैं अपने सचिव से कहा , ‘‘तीन लोगों ने अपना मोबाइल फोन खो दिया है और वे तीनों काफी गरीब लोग हैं | तो तीन नये मोबाइल फोन मेरे बैग में रख देना | तो मैंने तीन मोबाइल फोन अपने साथ रख लिया क्योंकि मुझे लगा कि तीन लोगों ने अपना मोबाइल फोन खो दिया हैं |
तो , जब मैं वहाँ पर गया , कार्यक्रम खत्म होने के बाद स्वयंसेवकों के कार्यक्रम में मैंने कहा , ‘‘कुछ लोगों ने अपना मोबाइल फोन खो दिया हैं | मुझे इसके बारे में पता है | जिन लोगों ने अपना मोबाइल फोन खो दिया है , कृपया खड़े हो जाईये ,’’ और केवल तीन लोग ही बड़े हुये | एक महिला थी जो खड़ी हुई , और मैंने उसे कहा , देखिये , आप मेरी तस्वीर के सामने गये गुरूवार के दिन रो रहे थे | आपको पता नहीं था कि क्या करें , अपने परिवार का सामना कैसे करे क्योंकि एक महंगा मोबाइल फोन गुम हुआ था , जो दो तीन महीने के आय के मूल्य जितना रहा होगा | यह लीजिये , एक नया (मोबाईल फोन) लीजिये | जब मैं यह कर रहा था (बांट रहा था) , एक लड़का समूह में से मेरे पास आया और उससे अपनी कहानी बताई | वह एक एडवांस कोर्स में था और उसकी पत्नी घर पर थी और उसे उनसे बात करनी थी | तो उसने वह फोन मेरी तस्वीर के सामने रखी और कहा , ‘‘गुरूदेव फोन चार्ज हो जाए |’’ अगली सुबह , जब वह उठा वह फोन पूरी तरह से चार्ज हो गया था | उस लड़के में मुझे अपना फोन बताया और कहा , ‘‘देखिये डेढ़ साल से मैंने अपना चार्जर फेंक दिया है , और अब मैं अपना फोन केवल आपकी तस्वीर के सामने रख हूँ और वह चार्ज हो जाता है |” उसने अपना चार्जर फेक दिया था |
मैंने कहा , ‘‘यह सच में कुछ बात हैं |’’ मुझे भी अपने फोन के लिए चार्जर की जरूरत पड़ती है और मेरा भक्त अपना फोन मेरी तस्वीर के सामने रखकर चार्ज करता है |’’ देखिये भक्त कितने शक्तिशाली हो सकते हैं | मैं इसीलिए कह रहा हूँ क्योंकि हमारी भावनाएं , हमारी भक्ति और हमारा प्रेम है जो यह सब संभव कर पाता है |
मैं एक दूसरी कहानी आपके साथ बांटता हूँ | मैं दक्षिण अफ्रीका में था , किसी के घर पर एक अतिथि के रूप में | यह करीब दस साल पहले की बात है | तो बस जोहान्सबर्ग जाने से पहले , हम सब अपना सामान बांध रहे थे , और अचानक मैं दूसरे कमरे में गया , जहां अन्य भक्त निवास कर रहे थे और मैं कमरे में इधर उधर देखने लगा |
आमतौर पर मैं किसी के भी कमरे में ऐसे नहीं जाता | लोग हैरान थे और सोच रहे थे कि गुरूदेव क्यों हमारे कमरे में आये है | तनिक सोचिये , मैं आपके होटल के कमरे में आता हूँ , अचानक आप हैरान हो जायेंगे | तो लोग हैरान हो जायेंगे | तो लोग हैरान थे ‘‘गुरूदेव यहाँ क्यों आये हैं और वे बहुत व्याकुल लग रहे हैं | वह क्या ढूंढ रहे हैं ? ‘‘फिर मैंने एक चाय के पैकेट को देखकर पूछा , यह किसका है ?’’ उन्होंने कहा , ‘‘हमें पता नहीं | शायद किसी का हो | मैं कभी चाय नहीं पीता , लेकिन मैंने उसे चाय के पैकेट को लिया और अपने सूटकेस में डाला और सूटकेस बंद कर दिया | तब मैं सांस ले सका | मैं उस चाय के पैकेट के मिलने तक बहुत व्याकुल था | लोगों को यह (घटना) थोड़ी सी अजीब सी लगी , कैसे गुरूदेव एक चाय के पैकेट की चोरी की यह जानते हुए की वह हमारी नहीं थी वह किसी और की थी , उन्होंने परवाह नहीं की , बस उसे लिया और चले गए | तो जब हम डर्बन से जोहान्सबर्ग उतरे , एक बुजुर्ग सज्जन मुझे हवाई अड्डे पर मिले और उन्होंने कहा , गुरूदेव क्या आपको वह चाय का पैकेट मिल गया तो मैंने आपके लिए भेजा था ? यह एक खास चाय है | मैंने खुद जाकर उसे खरीदा और मुझे आपको देना था | मैंने डर्बन नहीं आ सका इसीलिए मैंने उसे किसी के हाथों भिजवा दिया |’’ तो वह किसी के द्वारा भेजी गयी थी ? वह एक खास चाय है | मैंने खुद जाकर उसे खरीदा और मुझे आपको देना था | मैंने डर्बन नहीं आ सका इसलिये मैंने उसी किसी के हाथों भिजवा दिया |’’ तो वह किसी के द्वारा भेजा गया था और उन्होंने उसे किसी दूसरे कमरे में रख दिया क्योंकि उन्हें पता है कि मैं चाय नहीं पीता और इसीलिए उन्होंने मुझे बताया भी नहीं | यह बात थी | फिर मैंने कहा , हां मुझे वह चाय का पैकेट मिल गया |’’ इसका मतलब यह है कि जब आपकी भावनाएं इतनी तीव्र होती हैं , तो तब मैं केवल एक कठपुतली होता हूँ | तो मुझे उस चाय के पैकेट को प्राप्त करना ही था |
तो यह कहानी है कि कैसे मुझे एक चाय के पैकेट को चुराना पड़ा , जो वास्तव में चोरी नहीं है | वह मेरे लिए ही था लेकिन उस पल यह प्रतीत हुआ कि जैसे मैं कुछ चोरी कर रहा हूँ जो मेरा नहीं है | ऐसी कई घटनाएं हैं | आपको पता है , मैं दिल्ली में था , एक बड़े हॉल में था | उस हॉल में बहुत भीड़ थी और कार्यक्रम के बाद लोग होटल की लॉबी में कतार में इंतज़ार कर रहे थे | जो लोग मेरा अनुरक्षण करना चाहते थे , उन्होने कहा , ‘‘ओह बहुत भीड़ है | बहुत समय लगेगा और गुरूजी को विमान पकड़ना है |” तो इसीलिए उन्होंने लोगों को चकमाना चाहा और इसीलिए उन्होंने लोगों को चकमा देने का फैसला किया और मुझे तैखाने से सीधे कार की ओर ले गए और हम निकल गये | आपको पता है , करीब एक हजार लोग थे जो निराश हो गये क्योंकि मैं वहां नहीं था और मैं बीमार पड़ गया | लोग गुस्सा थे , व्याकुल थे और उस पूरे दिन मेरा सिर दर्द करता रहा और मैं बहुत बीमार हो गया | मैंने उन लोगों से पूंछा जिन्होंने मुझे सीधे कार की ओर लेकर सीधे हवाई अड्डे पर ले गए ,आपने ऐसा क्यों किया ? मुझे किसी को भी निराश नहीं करना है | मैं किसी को भी निराश नहीं करता |” मैं क्या यह कह रहा हूँ क्योंकि जब आपकी भावनाएं इतनी तीव्र होती है और आपका प्रेम इतना तीव्र होता है तो वह पत्थर को भी पिघला देता है | ठीक है ? तो बहुत सारी कहानियां है | इसीलिए ध्यान का अभ्यास करने वाले , आपको बहुत सचेत रहना पड़ेगा | आपको किसी को भी कभी भी अभिशाप नहीं देना चाहिए | कोई भी बुरा शब्द न कहे | कुछ भी बुरा आपके मुख से बाहर नहीं आना चाहिए | आपको पता है मैंने ५६ सालों में एक भी बुरा शब्द नहीं कहा हैं | मैंने कभी कोई बुरा शब्द नहीं कहा है | मैं इसके लिए श्रेय नहीं ले सकता , यह बस आता ही नही | सबसे बुरी बात मैंने यह कही है कि , “आप मूर्ख हैं | आपने कभी भी मुझे किसी भी बारे में कहीं भी बुरे शब्द का प्रयोग करते नहीं देखा होगा , अपने आप के साथ भी नहीं | तो एक अभ्यासी के तौर पर , आपको अपनी वाणी बुरे शब्दों से रहित रखनी चाहिए |
जहां तक हो सके , क्योंकि आपने शब्दों में ऊर्जा होती है | जैसे जैसे आप ध्यान करते हैं , आपके भीतर आशीर्वाद और श्राप देने की क्षमता आ जाती है | पहले श्राप देने की क्षमता आती है और बाद में आशीर्वाद देने की क्षमता आती है | इसीलिए साधक के लिए यह नियम है कि किसी के बारे में बुरा न सोचे और किसी को भी बुरे शब्द न कहे और अपनी ओर से सकारात्मक रहे | मैं यह नहीं कह रहा हूँ | कि आपको कभी भी गुस्सा नहीं होना चाहिए | गुस्सा जीवन का भाग है | लेकिन यदि आप गुस्सा भी होते हो , तो अपने होंठ को और अपनी जीभ को अपने काबू में रखे | आपको जीवन में कभी कभी गुस्सा होना पड़ेगा , यह जरूरी है लेकिन अपने मुख से गंदे शब्दों के न बहने दे | क्योंकि आप अपनी खूब सारी ऊर्जा खर्च करेंगे जब आप उन सब बुरे शब्दों का उपयोग करेंगे | जरा सोचिये की अगर आप पूरे एक महीने के अपने ध्यान को गवां देंगे केवल कुछ शब्दों के वजह से | क्या यह आर्थिक रूप से बुद्धिमानी है ? यह हजार डॉलर खर्च करके कोक लेने जैसा है जिसका मूल्य केवल एक डॉलर है | तो अपनी शक्ति , अपनी ऊर्जा और अपने संकल्प को कम मत समझना | जब आप ध्यान करते हैं , आपके पास वास्तव में बहुत शक्ति होती है | इसीलिए पुरातन भारत में सभी ऋषि और शिक्षक शिष्यों को शिक्षा नहीं देते थे , क्योंकि उन्हें पता था कि वे बहुत शक्तिशाली हो जायेंगे और यदि वे नियम का पालन नहीं करते हैं , तो वह एक बड़ी समस्या हो सकती है इसीलिए वे यह ज्ञान सभी को नहीं देते थे | वे पहले उनकी बहुत परीक्षा लेते थे और यदि वे सभी परीक्षा में उत्तीर्ण होते थे , तब वे उन्हें ध्यान वगैरह देते थे | लेकिन मैंने कहा कि हम यह ज्ञान सभी को देंगे | यह आवश्यक है | अन्यथा यह एक विकृत परिस्थिति हो जायेगी | यदि आप अच्छे हो तो आपको यह ज्ञान मिल सकता है | जब तक आपको ज्ञान नहीं मिलता आप अच्छे नहीं बन सकते | इसलिए मने दूसरा रास्ता चुना |

ध्यान के पाँच कदम

०१
२०१३
जनवरी
बर्लिन , जर्मनी

आप सबको नया साल मुबारक हो |
ध्यान के साथ नया साल मनाना बहुत अच्छा है |
ध्यान क्या है ? ध्यान वह अवस्था है जिससे सब कुछ आया है , और जिसमें सब कुछ जाता है | यह वो आतंरिक मौन है जहाँ आप आनंद , खुशी और शान्ति आदि महसूस करते हैं |
क्या आप जानते हैं कि तीन तरह के ज्ञान होते हैं |
एक वह ज्ञान जो हम अपनी इन्द्रियों से प्राप्त करते हैं | पाँचों इन्द्रियां हमें ज्ञान प्रदान करती हैं | देखने से हमें ज्ञान मिलता है , सुनने से हमें ज्ञान मिलता है , छूने से , सूंघने से और चखने से हमें घ्यान मिलता है |
तो संवेदनाओं की अनुभूति से हम ज्ञान प्राप्त करते हैं | ये ज्ञान का एक स्तर है |
ज्ञान का दूसरा स्तर होता है बुद्धि से |
बुद्धि के द्वारा हम जो ज्ञान प्राप्त करते हैं वह इन्द्रियों द्वारा प्राप्त ज्ञान से अधिक श्रेष्ठ होता है |
हम सूरज को उगते और डूबते देखते हैं , लेकिन बुद्धि के द्वारा हम यह जानते हैं कि सूरज न तो उग रहा है और न ही डूब रहा है |
आप एक पेन को पानी में डालते हैं और पेन मुड़ा हुआ दिखता है | लेकिन बौद्धिक ज्ञान से हम्ज ये जानते हैं कि पेन वास्तव में मुड़ा हुआ नहीं है , बल्कि वह तो केवल एक ऑप्टिकल इल्ल्युजन (प्रकाशीय भ्रम) है |
तो बौद्धिक ज्ञान ज्यादा श्रेष्ठ है |
फिर , ज्ञान का तीसरा स्तर है जो इससे भी ज्यादा श्रेष्ठ है , और वह है अंतर्ज्ञान | आपको पेट के अंदर कुछ महसूस होता है , और आपको पता चल जाता है |
वह जो एक गहरे मौन से आता है , रचनात्मकता आती हैं , या कुछ नयी खोज जन्म लेती है | ये सब चेतना के उसी स्तर से आता है , जो ज्ञान का तीसरा स्तर है |
ध्यान इस तीसरे स्तर के ज्ञान तक पहुँचने का दरवाज़ा खोलता है | और ध्यान आनंद के तीसरे स्तर तक पहुँचने का दरवाज़ा भी खोल रहा है |
आनंद के भी तीन स्तर होते हैं |
जब हमारी इन्द्रियां भौतिक वस्तुओं में संलग्न होती हैं , जैसे आँखें देखने में व्यस्त होती हैं , कान सुनने में व्यस्त होते हैं , तब हम केवल देख कर , सुनकर , चख कर या छू कर ही खुश हो जाते हैं | हमें इन्द्रियों से खुशी तो मिलती है , लेकिन इन्द्रियों द्वारा खुशी पाने की क्षमता बहुत कम होती है |
देखिये , आप जब पहला डोनट (एक प्रकार का मालपुआ) खाते हैं , तो उसका स्वाद बहुत अच्छा लगता है | दूसरा खाते हैं , तो उसका स्वाद ठीक ठीक होता है | और तीसरा खाकर लगता है कि बस बहुत हो गया , और चौथे को खाना तो बिल्कुल सज़ा लगता है |
ऐसा क्यों होता है ? वे सब एक ही बेकरी में बने हैं , लेकिन आनंद लेने की हमारी क्षमता कम हो जाती है |
यही बात हमारी बाक़ी इन्द्रियों के साथ भी है | दृष्टि , छूना , सुगंध , स्वाद और सुनना इन सबसे मिलने वाले आनंद की अपनी सीमा होती है | ऐसा है न ?
फिर दूसरे स्तर का आनंद है जब आप कुछ रचनात्मक करते हैं ; जब आप कुछ नया खोजते हैं , या जब आप कोई कविता लिखते हैं या फिर जब आप कोई नये पकवान बनाते हैं |
वह जो किसी तरह की रचनात्मकता से आता है , अपने साथ एक तरह का आनंद लाता है |
जब आपके एक शिशु पैदा होता है , चाहे वह आपका पहला बच्चा हो , या तीसरा , तो वह एक तरह का जोश , एक तरह का आनंद लाता है |
अब एक तीसरे स्तर का आनंद भी है | एक ऐसा आनंद तो कभी कम नहीं होता , और जो इन्द्रियों के द्वारा नहीं आता , न ही रचनात्मकता के द्वारा आता है , लेकिन किसी बहुत गहरे और रहस्यमय स्थान से आता है |
उसी तरह , शान्ति , ज्ञान और आनंद ये तीनों चीज़ें एक अन्य स्तर से आती हैं |
और जहाँ से ये आती हैं , उसका स्त्रोत है ध्यान |
ध्यान के लिए , तीन महत्वपूर्ण नियम हैं |
ये तीन नियम हैं , कि अगले दस मिनट जब मैं ध्यान के लिए बैठ रहा/रही हूँ तब तक मुझे कुछ नहीं चाहिये , मुझे कुछ नहीं करना , और मैं कोई नहीं हूँ’ |
यदि हम इन तीन आवश्यक नियमों का पालन करेंगे , तब हम गहरे ध्यान में जा पाएंगे |
शुरुआत में ध्यान केवल एक तरह का विश्राम है |
दूसरे स्तर पर , ध्यान कुछ ऐसा है जो आपको ऊर्जा देता है ; आप और अधिक स्फूर्तिवान महसूस करते हैं |
तीसरे स्तर पर , ध्यान अपने साथ रचनात्मकता लाता है |
चौथे स्तर पर , ध्यान और अधिक उत्साह और आनंद लाता है |
ध्यान के पांचवे स्तर का वर्णन नहीं किया जा सकता , आप उसे किसी भी तरह से समझा नहीं सकते | ये एक तरह की एकता है आप और ये संपूर्ण ब्रह्माण्ड | यही ध्यान का पांचवा स्तर है , और इससे पहले आप रुकियेगा नहीं |
मैं आमतौर पर इसकी तुलना उन लोगों के साथ करता हूँ , जो स्पेन के समुद्र तट पर या इटली जाते हैं |
कुछ लोग वहां केवल सैर करने जाते हैं , और वे उसी से खुश होते हैं | कुछ और जाते हैं और उसमें तैरते हैं , और तरोताज़ा महसूस करते हैं , और वे उसी से खुश होते हैं | फिर कुछ और होते हैं , जो वहां मछली पकड़ते हैं , या फिर स्कूबा-डाइविंग करते हैं और बहुत से सुन्दर सुन्दर जीव-जंतु देखते हैं , और वे उससे खुश हो जाते हैं | और फिर कुछ ऐसे लोग भी होते हैं , जो जाते हैं और समुद्र के अंदर से खज़ाना निकल के ले आते हैं , वे और गहरे जाते हैं |
तो ज्ञान आपके सामने ये सभी विकल्प रखता है |
सिर्फ कुछ विश्राम पाकर ही आप रुकिए मत , सिर्फ थोड़ा सा आनंद , थोड़ा उत्साह या फिर कुछ छोटी-मोटी इच्छाएं पूरी हो जाने से रुकिए नहीं |
क्या आप जानते हैं , ध्यान करने से आपकी आनंद पाने की क्षमता भी बढ़ जाती है | और ध्यान करने से आपकी खुद की इच्छाएं पूरा करने की क्षमता भी बढ़ जाती है | और जब आपको अपने लिए कुछ नहीं चाहिये होता , तब आप दूसरों की इच्छाएं भी पूरा कर सकते हैं |
ये बस बहुत ही बढ़िया है | तो इसके पहले रुकियेगा नहीं , ध्यान करते रहिये |

गुरु के समीप बैठना

२९
२०१२
दिसंबर
बैड एंटोगस्त, जर्मनी

प्रश्न : उपनिषदों में आपने गुरु के समीप जाने के बारे में बात करी है | क्या इसका अर्थ है कि हम शारीरिक रूप से गुरु के समीप बैठें ?
श्री श्री रविशंकर : हम तो यहाँ पहले से ही हैं | हम सब के शरीर एक दूसरे के समीप ही तो बैठें हैं , है कि नहीं ?
निकटता मन से आती है और आपके दिल में महसूस होती है | यदि आपका मन कहीं और है , और वह संशय व नकारात्मकता से भरा है , तब आप अगर मेरे समीप बैठें भी होंगे , तो भी कोई फ़ायदा नहीं होगा | लेकिन यदि आपका दिल साफ़ है और आपका मन शुद्ध है ; अगर आपका स्पष्ट उद्देश्य है , तब अगर आप मुझसे हज़ारों मील दूर भी हैं तब भी मेरे समीप हो जायेंगे |
तब ही आपको इस बात का पूर्ण बोध होगा , कि हम एक हैं , हम साथ हैं |
जब ऐसा पूर्ण अनुभव हो , तभी निकटता होती है |
लेकिन यदि आप यहाँ बैठ कर ये सोचेंगे , ओह , गुरुदेव आखिर क्या चाहते हैं ? शायद ये कोई अधिकार ज़माना चाहते हैं’ , तब ऐसा नहीं हो पायेगा |
एक महिला ने मुझसे पूछा , आप ऐसा क्या करते हैं जो आप इतने लोगों पर अधिकार जमा पाते हैं ?’
मैंने उन्हें बताया , लोगों के ऊपर अधिकार ? मैं तो खुद ही बल हूँ | मुझे किसी से बल नहीं चाहिये | मुझे किसी से कुछ नहीं चाहिये |’
देखिये , आप अपना बल ज़माना चाहते हैं क्योंकि आपको लोगों से कुछ चाहिये होता है , और आप वो निकलवाना चाहते हैं | लेकिन मुझे कुछ नहीं चाहिये | मैं बस इतना चाहता हूँ कि सब लोग खुश रहें , और आध्यात्मिक पथ पर चलें | बस इतना ही |
देखिये , आज इस दुनिया को आध्यात्मिक ज्ञान चाहिये | हमें एक हिंसा-विहीन समाज चाहिये |
क्या आप जानते हैं कि भारत में क्या हुआ ? इतनी भयानक घटना हुई | ये बहुत ही दुर्भाग्य की बात है ; पूरे देश में लोग आग-बबूला हैं | आज महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं , क्योंकि अपराध इतने बढ़ गए हैं | लोग एक दूसरे को इंसान नहीं समझते |
तो हमें ये चाहिये | हम एक सुरक्षित संसार चाहते हैं , जिसमें अपराध न हो | और हम सबको इसी की आशा रखनी चाहिये | हम सबको समाज के लिए कुछ अच्छा करना चाहिये , है न ?
कोई मुझसे कह रहा था , गुरुदेव , आपके पास कितनी ताकत है’ ; कैसी ताकत ?
मैंने कहा , तुम अगर कहोगे कि मैं लोगों पर रौब जमाता हूँ , तो मैं इसे अपना अपमान समझूंगा |’
ये सिर्फ लोगों के मन का खेल है , ओह ये आध्यात्मिक गुट , ये पंथ , वे सब पर रौब जमाते हैं’ , ये सब बकवास है |
मैंने उन महिला से पूछा , क्या आप मदर टेरेसा से भी यही बात पूछेंगी ?’ नहीं! और क्यों नहीं ? क्योंकि वे एक स्वीकृत धार्मिक परंपरा से जुडी हुई थीं (ईसाई धर्म)
किसी ने भी कभी भी नहीं कहा , कि मदर टेरेसा लोगों के ऊपर रौब जमाती थीं ; लोगों से काम निकलवाती थीं |
केवल उनकी मोनास्ट्री में ही चार हज़ार लोग रहते थे | उन सबने अपने अपने घर छोड़ दिए थे और दरिद्रता का प्रण लिया था |
मैं किसी से भी उनके घर छोड़ने के लिए नहीं कहता | मैं हमेशा कहता हूँ , अपने घर को संभालो और जहाँ भी हो खुश रहो ; समाज में रहो |
चार हज़ार महिलाएं आयीं और वे सब उनके साथ रहीं , इस उम्मीद में कि उन्हें मोक्ष मिल जाएगा | लेकिन आप जाकर मदर टेरेसा को ये नहीं कहेंगे कि आप लोगों पर रौब जमा रहीं हैं | ये आपके मन का वहम है |
हाँ , बेशक आध्यात्म के मार्ग पर बहुत से सच्चे लोग नहीं हैं | इसीलिये मैं लोगों को स्पिरिचुअल शौपिंग पर जाने की सलाह नहीं देता | सिर्फ ज्ञान से जुड़े रहिये , एक पथ से जुड़े रहिये | दुनिया में ऐसे बहुत से लोग हैं , जो आध्यात्म के नाम पर क्या क्या नहीं करते | हालांकि आजकल ये बात सच है , लेकिन हमें इस बारे में कोई वहम नहीं पालना चाहिये | हमें ये नहीं कहना चाहिये , कि हर आध्यात्मिक संस्था लोगों का इस्तेमाल कर रही है , और इस तरह की बातें | इससे बाकी लोगों के मन में भी वहम आता है | मैंने हमेशा कहा है कि एक संस्था केवल एक फ्रेम की तरह है जो किसी तस्वीर को एक जगह रखती है | उसकी ज़रूरत है | एक संस्था के बिना कुछ काम नहीं होगा |
क्या आप जानते हैं कि कितने लोग हैं जो पीछे आपके अच्छे रहने , अच्छे भोजन और बाकी सब के लिए काम कर रहे हैं ? आपको उन सबको धन्यवाद देना चाहिये जिन्होंने इतना अच्छा इटालियन भोजन बनाया है | इन्होंने ये काम कोई नौकरी या पेशा समझ के नहीं किया है , बल्कि निस्वार्थ सेवा के रूप में किया है | लोग पूरी भक्ति से काम करते हैं , अपना पूरा मन और दिल लगा कर सेवा करते हैं | मैं खुद भी करता हूँ!
मैं पूरे विश्व में यात्रा करता हूँ और लोगों को कोर्स सिखाता हूँ , मैं किसी से कोई पैसे नहीं लेता , न ही अपने लिए कुछ रखता हूँ | तो मेरे साथ जो भी कोई काम करता है , वह भी सहजता से ऐसा ही करता है | अगर मैंने सारा पैसा अपने पास रखा होता , तो मैं अब तक अरबपति बन गया होता |
मैं आता हूँ , और कोर्स लेता हूँ , और एक जगह से दूसरी जगह जाता हूँ | अगर मैं एक साल तक इस आश्रम में नहीं आऊँगा , तो इस आश्रम को बन कर देना पड़ेगा | ये लोग अकेले इसे नहीं चला सकते | तो इसलिए मैं समय समय पर आकर इनके काम में मदद करता हूँ |
ऐसा मत सोचिये कि हर एक कोई काम करता है और उसका फल गुरु को दे देता है | बल्कि , आप को ये मालूम होना चाहिये कि वे गुरु हैं , जो काम करते हैं और सबको सहारा देते हैं | ये उलटी बात है |
मैं दिन में 19 घंटे काम करता हूँ और मैं कितने सारे लोगों को सहारा देता हूँ | और मैं बस इतना चाहता हूँ कि वे खुश रहें | यदि वे नाखुश रहते हैं , तो मैं भी नाखुश हो जाता हूँ |
क्या आप जानते हैं कि इन दिनों दुनिया में बहुत अविश्वास हो गया है |
पति-पत्नी के बीच में अविश्वास , बच्चों और माता-पिता में , पड़ोसियों में | हाँ , अगर पूरी व्यवस्था ही ऐसी हो जायेगी तो हमारा समाज वाकई में बीमार हो जाएगा | इसे बदलना होगा |
लोगों को अपने ऊपर ही भरोसा नहीं होता | हमें खुद पर भरोसा होना चाहिये , समाज की अच्छाई पर भरोसा होना चाहिये और उस अनदेखी शक्ति , उस दिव्यता पर भरोसा होना चाहिये जो सर्व-व्याप्त है | ये तीन तरह के विश्वास बहुत ज़रूरी हैं , और अध्यात्म यही है |
खुद पर विश्वास करिये , अपने आस-पास के लोगों पर विश्वास करिये और दिव्यता में विश्वास करिये | यही इसका सार है |

प्रश्न : प्रिय गुरुदेव , वैज्ञानिक दृष्टिकोण कहता है कि समय बदल रहा है और आकाश स्थिर है | प्राचीन ग्रन्थ कहते हैं कि समय स्थिर है और आकाश बदल रहा है | क्या आप इस घटना को समझा सकते हैं ?
श्री श्री रविशंकर : समय में भी दो प्रकार के समय होते हैं |
एक वह समय जो बदलता है , यानि , भूत , वर्तमान और भविष्य ; और दूसरा है महाकाल जो बदलता नहीं ; इसी को केन्द्र बिंदु रखकर बाकी सारे समय मौजूद हैं |
जब आप कहते हैं कि कुछ बदल रहा है , तो आपको एक ऐसे केन्द्र-बिंदु की आवश्यकता होगी जिससे कि आप उस बदलते समय को मापेंगे | परिवर्तन को जानने के लिए कुछ ऐसा तो ज़रूर होगा जो कि नहीं बदल रहा , फिर चाहे वह आकाश के सन्दर्भ में हो या समय के सन्दर्भ में |
इसलिए , ये केन्द्र-बिंदु बदलता नहीं है और यही सभी परिवर्तनों का मूल है |
समय को जानने के लिए , आपको मन को जानना होगा | जब तक आप मन को नहीं जानेंगे , आप समय को नहीं पहचान सकते , और मन अपरिमेय है | इसे पूरी तरह से समझा नहीं जा सकता |
इसीलिये , आप जितने अंश तक मन को समझ पाएंगे , उतने ही अंश तक समय को भी समझ पाएंगे |

प्रश्न : गुरुदेव , कृपया हमें समझाएं कि (Blessing) ब्लेस्सिंग किस तरह काम करती है ?
श्री श्री रविशंकर : (Blessing) ब्लेस्सिंग और कुछ नहीं बल्कि सकारात्मक ऊर्जा है जो एक शुद्ध मन से निकलती है |

प्रश्न : प्रिय गुरुदेव , आपने कितने सुन्दर ढंग से वैराग्य के बारे में और व्याकुलता रहित रहने के बारे में बताया है , लेकिन जब आप आस-पास होते हैं , तब ये सारा ज्ञान खिड़की के बाहर चला जाता है और केवल व्याकुलता ही रहती है |
श्री श्री रविशंकर : ये तो मन का स्वभाव है कि वह किसी को पकड़ के बैठना चाहता है | तो जब तक ये बाकी सब चीज़ों से मुक्त नहीं हो जाता , तब तक एक चीज़ को पकड़ के रखना ठीक ही है |
लेकिन जैसे जैसे मन शान्त होगा , तब समय के साथ ये उस एक चीज़ से भी मुक्त हो जाएगा |

प्रश्न : गुरुदेव , क्या ये समझना ठीक है कि बच्चे न करने से या किसी रिश्ते में न पड़कर आपका कर्म कटता है , या ये केवल मेरी मर्जी के ऊपर है ?
श्री श्री रविशंकर : ये सिर्फ आपकी मर्जी पर निर्भर है | असली बात ये है कि आप अपने मन को किस तरह सँभालते हैं |

प्रश्न : गुरुदेव , कृपया क्या आप उन तीन ध्यानों के बारे में बात कर सकते हैं जो 12.12.12. को मानवता , पृथ्वी और इस पूरे ब्रह्माण्ड के लिए की गयीं थीं ?
श्री श्री रविशंकर : देखिये , आप ध्यान के प्रभाव को कुछ सीमित मापदंडों से नहीं माप सकते | इसका प्रभाव हमारे जाने-बूझे मापदंडों से भी परे है | इसका प्रभाव अवश्य है , और इसके इस प्रभाव को समय ही बताएगा |

प्रश्न : प्रिय गुरुदेव , आप कहते हैं कि ये शरीर केवल कुछ ही समय के लिए है | तब फिर महाभारत में भीष्म पितामह इतने लंबे समय तक कैसे जीवित रहे और उन्होंने मृत्यु भी अपनी मर्जी से प्राप्त करी ?
श्री श्री रविशंकर : सुनिए , मैं भीष्म की वकालत नहीं करूँगा , या फिर किसी भी और किरदार की | आप किसी वकील के साथ या किसी मानव-विज्ञानी के साथ बैठकर ये सारी रिसर्च कर सकते हैं |
जब हम छोटे बच्चे थे , हम यहाँ तक आश्चर्य करते थे कि कैसे एक पक्षी अपनी पीठ पर इतने सारे लोगों को बिठा सकता है | हम सोचते थे कि पक्षी की पीठ तो इतनी छोटी है , वहां ये झरोखा कैसे बन गया |
आम तौर पर पौराणिक चित्रों और कथाओं में हमने एक पक्षी के बारे में पढ़ा है और देखा है , कि वह अपनी पीठ पर एक बड़ा मंडप लेकर उड़ रही है |
लेकिन , आप जानते हैं कि जब आप विज्ञान में और गहरे जाते हैं , तब आप पायेंगे कि हमारे वैज्ञानिक भी ये बात कहते हैं कि वास्तव में इतने बड़े बड़े पक्षी हुआ करते थे , जिनका भार ३०० टन के लगभग होता था |
डायनासोर के ज़माने में , इतने बड़े बड़े पक्षी हुआ करते थे कि वे हवाई जहाज जैसे थे | यदि वे इतने बड़े थे , तो आप निश्चय ही दस लोगों को उनके ऊपर बिठा सकते थे | और दस ही क्यों , सौ लोग भी उनके ऊपर बैठ सकते थे |
उन पक्षियों को इस तरह के काम करने की ट्रेनिंग दी जा सकती थी | ये सब बिल्कुल संभव है |
हमें हमेशा यही कहना चाहिये , कि सब कुछ संभव है’ |

प्रश्न : गुरुदेव , हम किस तरह सजगता और सावधानी हर समय बरकरार रख सकते हैं , और जब सब कुछ गड़बड़ हो रहा हो , तब भी क्रोधित कैसे न हो ?
श्री श्री रविशंकर : सुनिए , कभी कभी यदि आप क्रोधित हो भी जाते हैं , तो कोई बात नहीं | सिर्फ क्रोधित ही रहिये | लेकिन उसे आपके सिर में ज्यादा देर तक नहीं रहना चाहिये | उसे सिर्फ आकर चले जाना चाहिये |
क्रोध लाज़िमी है और कभी कभी ज़रूरी भी है | इसलिए , उसे रहने दीजिए |
यदि वह किसी अच्छे कारण के लिए है , यदि आपका गुस्से से लोगों का भला हो रहा है , तब वह ठीक है | लेकिन , यदि आपका गुस्सा आपका खुद का ही सिर काट रहा है , आपकी उंगली , या फिर आपको परेशान कर रहा है , तब फिर वह ठीक नहीं है , और आप उसके बारे में सावधान हो जाएँ |
क्या आप जानते हैं कि आप नाराज़ क्यों होते हैं ? क्योंकि या तो आपको लगता है कि दूसरे गलत हैं , या फिर आपको लगता है कि आप खुद गलत हैं और आप खुद से ही नाराज़ होते हैं |
इसीलिये , ये ज्ञान आपके लिए ज़रूरी है , क्योंकि इससे आप अपने मन को संभाल सकते हैं |
यदि आप बहुत बिगड़े हुए हैं , तब आप ये नहीं देख पाते कि आपके पास क्या है , और आप ये भी नहीं देख पाते कि आप क्या हैं |
इसलिए , प्रकृति आपको सही समय पर सही पाठ पढ़ाती है और वास्तविकता के प्रति आपको जागृत करती है |

जीवन में चमत्कारों को होने का मौका देना चाहिये

२८
२०१२
दिसंबर
बैड एंटोगस्त, जर्मनी
आपने बहुत सी गुरु-स्टोरी सुनी हैं , है न ? तो आज मैं आपको एक भक्त-स्टोरी सुनाता हूँ |
नवम्बर के आखिरी हफ्ते में , मैं महाराष्ट्र के कुछ एकांत इलाकों का भ्रमण कर रहा था | कुछ ऐसे गांव और जिलें जहाँ मैं पहले कभी नहीं गया था | तो वहां मुझसे मिलने बहुत से लोग आये |
एक गांव में मैंने अपने सेक्रेटरी से कहा , तीन लोगों का मोबाइल खो गया है , और वे बहुत गरीब लोग हैं | तो मेरे बैग में तीन नए मोबाइल फोन रख दो |’
जब मैं वहां पहुंचा , तो वहां २००० से २५०० वोलंटियर थे , और करीब २ लाख लोगों की भीड़ थी | प्रोग्राम खत्म होने के बाद कब वोलंटियर मीटिंग हुई , तो मैंने कहा , आपमें से तीन लोगों के मोबाइल फोन खो गए हैं | मैं ये बात जानता हूँ | आपमें से जिन जिन लोगों के मोबाइल फोन खोये हैं , वे खड़े हो जाएँ’ , और केवल तीन लोग खड़े हो गए | एक महिला थीं , जो खड़ी हुई , और मैंने उनसे कहा , देखो , तुम पिछले गुरूवार को मेरी फोटो के सामने रो रही थीं | तुम नहीं जानतीं थी कि तुम क्या करो , किस तरह अपने परिवार का सामना करो क्योंकि एक बहुत महंगा मोबाइल फोन खो गया था , जिसकी कीमत कम से कम दो-तीन महीनों की आमदनी जितनी होगी | ये लो , एक नया मोबाइल फोन ले लो |’
जब मैं ये सब कर रहा था , तब एक ग्रुप में से एक लड़का मेरे पास आया और उसने अपनी कहानी सबके साथ बांटी | वह एक एडवांस कोर्स में था , और उसकी पत्नी घर पर थी , और वह अपनी पत्नी से बात करना चाहता था | उसके फोन में बिल्कुल भी बैटरी नहीं थी , और वह अपना चार्जर घर पर ही भूल आया था | तो उसने अपना फोन मेरी फोटो के सामने रख दिया और कहा , गुरुदेव , मेरा फोन चार्ज हो जाए’ |
अगली सुबह जब वह उठा , तो देखा कि फोन पूरा चार्ज था |
उस लड़के ने मुझे अपना फोन दिखाया , और कहा , देखिये , डेढ़ साल से मैंने अपने चार्जर को फ़ेंक दिया है , और अब मैं सिर्फ अपना फोन आपकी फोटो के सामने रख देता हूँ और वह चार्ज हो जाता है |’
उसने अपना चार्जर ही फ़ेंक दिया !
मैंने कहा , ये तो बहुत बड़ी बात है | मुझे तक अपना फोन चार्ज करने के लिए चार्जर की ज़रूरत पड़ती है , और मेरा भक्त मेरी फोटो के सामने फोन रखकर उसे चार्ज करता है |’
देखिये , भक्त कितने शक्तिशाली हो सकते हैं |
मुझे लगा कि ये तो बहुत ही रोचक कहानी है | तो मैं बंगलौर वापस आया और वहां रूस , पोलैंड और यूरोप भर से करीब १५० लोग आये हुए थे , और मैंने ये कहानी उन्हें सुनायी , देखो , मैं अपने फोन को बिना चार्जर के चार्ज नहीं कर सकता , और यहाँ ये भक्त है , जिसने अपना चार्जर ही उठा कर फेंक दिया है , और वह हर दिन अपना फोन मेरी फोटो के आगे रख कर चार्ज करता है |’
तो उन सब १५० लोगों ने कहा , हाँ , ये हमारे साथ भी होता है |’
मेरी इस कहानी ने उन्हें बिल्कुल भी चौंकाया नहीं |
एक रूसी ने कहा , ये मेरे साथ भी हो चुका है | एक दिन , मैंने भी अपना फोन रखा और प्रार्थना करी कि वह चार्ज हो जाए , और वह वास्तव में चार्ज हो गया’ |
पोलैंड और स्केंडिनेविया के भक्तों ने भी इसी तरह के किस्से सुनाये |
एक और व्यक्ति ने अपना अनुभव सुनाया और कहा , मेरी गाड़ी में पेट्रोल खत्म हो गया था और पेट्रोल की टंकी जीरो तक पहुँच गयी थी और टंकी खाली हो चुकी थी | लेकिन मैं गाड़ी चलाता गया , और खाली टंकी में ११७ किलोमीटर चला गया’ |
ऐसा कैसे हो सकता है ? ये तो ऐसा मालूम पड़ता है जैसे प्रकृति के सारे नियम ही टूट गए हो |
मैं आपसे कहता हूँ , हमें जीवन में चमत्कारों को होने का मौका देना चाहिये | किसी का भी जीवन चमत्कारों से खाली नहीं है | सिर्फ इतनी बात है , कि हम उन पर विश्वास नहीं करते हैं |

इस दुनिया के सभी रीति-रिवाज़ और दर्शनशास्त्र चमत्कारों पर ही आधारित हैं | बल्कि वे चमत्कारों से ही चलते हैं | केवल बाइबल में से सारे चमत्कार निकाल दीजिए , और आपको लगेगा जैसे बाइबल का अस्तित्व ही नहीं है | इसी तरह , दुनिया का कोई भी धार्मिक ग्रन्थ ले लीजिए , उसमें चमत्कार भरे पड़े हैं | लेकिन हम ऐसा सोचते हैं , कि चमत्कार तो भूतकाल में होते थे , वर्तमान में नहीं होते | मैं आपसे कहता हूँ , कि ये आज भी हो सकते हैं , वर्तमान क्षण में |
एक बार में बोस्टन एअरपोर्ट पर था , और एक भक्त मेरे लिए कुछ भोजन लाया , और मेरे साथ यात्रा करने वाले चार लोगों के लिए भी | क्या आप जानते हैं , कि मेरे साथ कितने लोग थे ? ६०-७० लोगों का एक बड़ा समूह , और वह भोजन जो चार लोगों के लिए था उसे ६० लोगों ने मिल बाँट कर खाया | सबने वह भोजन खाया |
ये आपको सोचने पर मजबूर कर देता है ऐसा कैसे हो सकता है ?
इसका एक वैज्ञानिक स्पष्टीकरण भी है |
ये पूरा विश्व कुछ नहीं , बल्कि केवल तरंगें हैं ; सब कुछ तरंगें हैं | तत्व कुछ नहीं , बल्कि सिर्फ तरंगें है | तत्व और ऊर्जा ये दोनों एक ही हैं , ये केवल तरंगें हैं |
देखिये , जब आप किसी ऑटोमेटिक दरवाज़े के पास जाते हैं , तो वह ग्लास का दरवाज़ा अचानक खुद ही खुल जाता है | ज़रा सोचिये , अगर इस तरह की घटना आज से १००-२०० साल पहले होती | उस समय के लोग तो बिल्कुल पागल हो जाते | वे अचम्भे में पड़ जाते कि ये कैसे हो रहा है | आप केवल गए और अचानक दरवाज़ा खुल गया |
आज हम ये जानते हैं कि ये बायो ऊर्जा के कारण हो रहा है | हमारे शरीर से ऊर्जा का प्रवाह हो रहा है |
क्या आप जानते हैं कि इस तरह के ताले भी आते हैं , जिन्हें सिर्फ एक ही व्यक्ति खोल सकता है ?
आपने बायोमेट्रिक तालों के बारे में सुना होगा | अगर उस ताले में आपकी ऊर्जा समाहित होती है , तो फिर उस ताले को कोई और नहीं खोल सकता | सिर्फ जब आप उसे छुएंगे , वह तभी खुलेगा |
इसका अर्थ हुआ , कि हर एक कोई ऊर्जा प्रवाहित कर रहा है |
जब आप प्रेम और भक्ति की अवस्था में होते हैं , तब आपकी ऊर्जा इतनी शक्तिशाली , इतनी बड़ी होती है , कि अगर आप चाहें कि सेलफोन चार्ज हो जाए , तो वह आसानी से चार्ज हो जाता है |
ये बायोमेट्रिक ताले की तीक्ष्ण ऊर्जा के जैसा है | जब आप दरवाज़े के पास जाते हैं , तो दरवाज़ा खुल जाता है , क्योंकि आपकी ऊर्जा दरवाज़े के ऊपर लगे एक छोटे से डिब्बे द्वारा पकड़ी जाती है |
इसी तरह , ये पूरा ब्रह्माण्ड सिर्फ ऊर्जा से बना है | ये सब ऊर्जा ही है | इसलिए , चमत्कारों को होने के मौका दीजिए |
ये सब कब मुमकिन है ? ये तभी हो सकता है जब आप अंदर से खोखले और खाली हैं |
जब , आपका दिल और दिमाग दोनों साफ़ और स्वच्छ हैं , तब आपके भीतर सकारात्मक ऊर्जा पनपती है | लेकिन अगर आपका मन नकारात्मकता से भरा हुआ है , या आप तनावग्रस्त हैं , या फिर आप इधर उधर की बातों को लेकर निंदा कर रहे हैं , या बड़बड़ा रहे हैं , खीझ रहे हैं , तब कोई चमत्कार संभव नहीं है | और तो और , जो सामान्य कार्य हैं , वे भी नहीं होते | आसान से काम भी ठीक से नहीं होते , क्योंकि आपकी ऊर्जा बहुत कम और नकारात्मक है |
जब ऊर्जा बहुत अधिक है , तब जो आपको असंभव लगता है वह भी होने लगता है |
यहाँ तक कि एक वैज्ञानिक के नज़रिए से भी , चमत्कार वास्तव में हो सकते हैं |
कुछ भी असंभव नहीं है | आपको सिर्फ ये जानना है , कि ये सब किस कार्य-प्रणाली से होता है , और चेतना की कौन सी अवस्था में वह होना संभव है |
आपमें से कितने लोगों को चमत्कारों का अनुभव हुआ है ? (बहुत से लोग अपने हाथ उठाते हैं)
देखिये ! आपमें से हर एक किसी ने एक न एक चमत्कार होते हुए देखा है | देखिये , जब हम उस गहरे सम्बन्ध को महसूस करते हैं , जब उस प्रेम और भक्ति को अनुभव करते हैं , तब ये सब सहजता से ही होता है |
अब अगर आप मुझसे पूछेंगे कि , मैं अपनी भक्ति कैसे बढ़ाऊँ ?’
मैं कहूँगा , कि इसे बढ़ाने का कोई तरीका नहीं है | ऐसा करने की बिल्कुल कोशिश न करें , सिर्फ विश्राम करिये |
यही समस्या है |
बहुत से लोग मुझसे पूछते हैं , मैं समर्पण कैसे करूँ ? मैं अपनी भक्ति कैसे बढ़ाऊँ ?’
मैं आपसे कहता हूँ , ऐसा करने का कोई साधन नहीं है | लेकिन , अगर आप मुझसे पूछेंगे , मैं अपनी नकारात्मकता से कैसे मुक्त होऊँ ?’ तब मैं कहूँगा , कि हाँ , एक रास्ता है’ |
कैसे ? जागिये और देखिये ! जागिये !! नकारात्मकता को छोड़ दीजिए | सोचिये , सोहम और सो वॉट ! ये दोनों बातें हैं |
पहली , जब कोई समस्या आये , या कोई नकारात्मकता आये , सिर्फ इतना सोचिये , तो क्या हुआ ? ठीक है |’ और फिर सोचिये , सोहम (जिसका अर्थ है , मैं वही हूँ)
इस तरह आप अपनी नकारात्मकता से मुक्ति पा सकते हैं और अपने उत्साह को बनाये रख सकते हैं |
आप जानते हैं , कि जब कोई अच्छा महसूस न कर रहा हो , तब वे अपने आसपास के लोगों का भी मूड खराब कर देते हैं | और अगर आप उनसे बात करेंगे , तो आप देखेंगे , कि वे न केवल खुद दुखी बैठे हैं , बल्कि बाकी सबको भी दुखी करने की कोशिश कर रहे हैं | यही उनका काम है |
अगर आप किसी व्यक्ति को पसंद नहीं करते , तो आप उनकी निंदा करते रहते हैं , और अगर कोई और उन्हें पसंद भी करता है , तो आप उनसे कहते हैं , देखो , वो व्यक्ति अच्छा नहीं है |’
और तो और , कुछ लोग तो इस बात को इतना घुमा फिर के कहते हैं , कि आप उनकी नकारात्मकता का शिकार हो जाते हैं | वे कहते हैं , देखो , मैं उस इंसान के बारे में कोई गलतफहमी पैदा नहीं करना चाहता , इसलिए मैं उनके बारे में कोई बात नहीं करूँगा | मैं उनके बारे में आपके विचारों को बदलना नहीं चाहता |’ लेकिन नुकसान तो तब तक हो ही चुका होता है |
क्या आपने देखा कि क्या हुआ ? आपके मन में शक का बीज बो दिया गया है |
तो इसलिए , जिन लोगों की ऊर्जा शक्ति बहुत कम होती है , जब वे दुखी होते हैं , तो अपने साथ साथ सबको नीचे खींचते हैं | और फिर वो ये देखकर खुश होते हैं , कि बाकी लोग दुखी हो गए हैं |
वे ऐसा अनजाने में ही करते हैं | वे इसके बारे में सजग नहीं होते , वे नहीं जानते कि वे ऐसा कर रहे हैं |
रामायण में एक कहानी है |
भगवान राम कि सेना के बन्दर चाहते थे कि वे भारत और श्री लंका के बीच एक पुल बनाएँ , और पूरी सेना उसकी तय्यारी कर रही थी | तो उन्होंने क्या किया , कि हर पत्थर पर श्री राम लिखते गए और फिर उस पत्थर को वे पानी में डाल देते थे | और वह पत्थर तैरने लगता था |
अब जब भगवान राम खुद वहां पहुंचे , तो वे यह देखकर आश्चर्यचकित रह गए , कि ये सब लोग पत्थरों पर उनका नाम लिख-लिख कर पानी में डाल रहे हैं , और वे पत्थर तैर रहे हैं | तो वे भी कोशिश करने लगे कि वे भी ऐसा कर सकते हैं या नहीं | इसलिए , उन्होंने एक पत्थर लिया और उसपर लिखा , श्री राम’ , और फिर उसे पानी में डाल दिया , लेकिन वह पत्थर डूब गया और तैरा नहीं | तब उनके भक्तों ने उन्हें बताया , आप नहीं जानते कि भक्ति क्या होती है | आप वो नहीं कर सकते जो हम कर सकते हैं |’
इसलिए , कहा जाता है कि भक्त एक कदम ऊपर होते हैं , और उनमें अपार शक्ति होती है |
प्रेम इस ग्रह की सबसे ताकतवर चीज़ है | किसी भी व्यक्ति को , किसी भी परिस्थिति को , किसी भी कारण या किसी भी वजह से इसे नष्ट मत होने दीजियेगा |
हमारा प्रेम इतना नाज़ुक होता है , और हम सिर्फ कुछ चंद लोगों की नकारात्मक बातें सुनकर , उस प्रेम को डांवाडोल कर देते हैं | उन लोगों की नकारात्मक बातें हमारे सिर में चढ़ जाती हैं , और हम खुद आपनी उच्च ऊर्जा को खत्म करने लगते हैं |
अब इसका ये मतलब नहीं है , कि हम अंधे हो जाएँ | हमें बुद्धि से तीक्ष्ण होना है और तर्क से सही होना है , और साथ ही ये जो सुन्दर तोहफा हमें मिला है-जिसे प्रेम कहते हैं इसे भी बचा कर रखना है | हमें इसे बचाना है , ठीक वैसे ही जैसे आप अपने बच्चे की रक्षा करते हैं |
आप किस तरह अपने बच्चे को गिरने से बचाते हैं , खो जाने से बचाते हैं ? आप उसकी रक्षा करते हैं , उस पर हर वक्त नज़र रख कर , जब बच्चा इधर उधर जा रहा है , कहाँ जा रहा है , क्या कर रहा है | उसी तरह , हमें इस अंदर के खजाने को भी बचा कर रखना है | एक बार जब हमें ये मिल जाए , तो हमें इसकी सुरक्षा करनी है | ये बहुत ज़रूरी है | चमत्कारों को होने का मौका दीजिए | ये नहीं , कि सिर्फ चुपचाप एक जगह बैठ गए , और फिर कहा , मैं चाहता हूँ कि अब चमत्कार हो |’ नहीं , ऐसे नहीं |
मैं आपसे कहता हूँ , जब आप किसी चमत्कार के होने की जिद्द करते हैं , तो ये उतनी ही बेवकूफी की बात है , जितनी कि अगर कोई आपको चमत्कार के द्वारा प्रभावित करने की कोशिश करे |
ऐसे किसी भी व्यक्ति के पास मत जाईये , जो आपको चमत्कार से प्रभावित करने की कोशिश करे , और कहे , मैं हवा में से कोई चीज़ बना दूंगा |’ ये बिल्कुल भी सही नहीं है |
चमत्कारों के पीछे मत भागिए , लेकिन उसी समय उन्हें होने से रोकिये भी नहीं | कोई ऐसा व्यक्ति जो समता में है , जो मुक्त है , वह कभी भी चमत्कार करने की कोशिश नहीं करेगा | चमत्कार स्वयं ही होते हैं , वे तो जीवन का अंग हैं | उन्हें होने दीजिए |
किसी को भी प्रभावित करने की कोशिश मत करिये , या कुछ ऐसा बनाने का प्रयास मत करिये , ये अच्छा नहीं है |
क्या आप देख रहे हैं , कि मैं क्या कह रहा हूँ ?
ये आपकी चेतना की प्रौढ़ता और खिलना नहीं दर्शाता |
हमें किसी को भी प्रभावित करने की दरकार नहीं है | अगर कोई ऐसा करने की कोशिश करता है , तो इसका मतलब वे वहां नहीं है , जहाँ वो समझते हैं , या जहाँ उन्हें होना चाहिये |
प्रेम और भक्ति की शक्ति इतनी अधिक होती है | और ये सब (सेवा , साधना और सत्संग) सिर्फ इस तक पहुँचने की रास्ते हैं | सत्संग में बैठिये , और देखिये कि किस तरह आपके भीतर की ऊर्जा ऊपर उठती है | इतनी सारी प्रेरणास्पद कहानियां हैं जो आपको सुनने को मिलती हैं |
आप सबके पास कुछ प्रेरणादायक कहानियां हैं , आपको उन्हें लिखना चाहिये और लोगों के साथ बांटना चाहिये , क्योंकि उससे अन्य लोगों को प्रेरणा मिलेगी |
मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ , क्योंकि जब आप ये सुनते हैं कि किसी के साथ कुछ अच्छा हो रहा है , तो उसे सुनकर आप भी अच्छा महसूस करते हैं |
आजकल की दुनिया में आप हर समय इतनी सारी नकारात्मक बातें सुनते रहते हैं | आप सुनते हैं कि कहाँ डकैती हो गयी , या बलात्कार हो गया | आप सुनते हैं कि किसने किसको धोखा दिया , या आपके आसपास क्या क्या अपराध हो रहे हैं |
जब आप ये सब सुनते हैं , तो आपकी भी जीवन में रूचि खत्म हो जाती है | बहुत से युवा लोग जीवन में दिलचस्पी कम हो जाती है , सिर्फ इस तरह की नकारात्मक खबरें सुनकर |
गर्मियों में मैं कनाडा में था , और वहां एक दंपत्ति मुझसे मिलने आये |
उन्होंने कहा , गुरुदेव , हमारे १८ साल के बेटे ने आत्महत्या कर ली | वह बहुत ही बुद्धिमान युवा था | उसने एक पत्र छोड़ा जिसमें उसने लिखा , मम्मी , पापा , मैं इस दुनिया को जीने लायक नहीं समझता | हर दिन कितने अपराध हो रहे हैं | मैं ऐसी दुनिया में जीना नहीं चाहता और मैं इससे तंग आ चुका हूँ |’
आप जानते हैं उसकी ऐसी सोच कैसे बनी ? सिर्फ न्यूज़ देखकर |
उसने अपने पत्र में आगे लिखा , मुझे माफ करिये कि मैं आपके दुःख और कष्ट का कारण बन रहा हूँ , लेकिन मैं जीना नहीं चाहता |’
तो उस लड़के ने ये पत्र लिखा , और फिर अपने आप को खत्म कर दिया |
हम सबको ये संकल्प लेना चाहिये , कि हम अपने आस पास के लोगों तक अच्छी और सकारात्मक खबरें ही लायें , क्योंकि ये सृष्टि प्रेम से ही नियंत्रित है , उस प्रकाश से ही प्रज्वलित है |
ये प्रकाश आप तक कितने उपहार लाता है , और कितने सारे चमत्कार संभव हैं |
हर दिन मुझे दुनिया भर से लोगों की हज़ारों ई-मेल आती हैं , वे अपना आभार प्रकट करते हैं और अपने जीवन में होने वाली आश्चर्यजनक बातें बताते हैं |
अब ऐसे अच्छा नहीं लगेगा अगर मैं उन सब चिट्ठियों को बाहर आपके सामने लाऊँ , लेकिन मैं आपसे कहूँगा , कि आपको अपने अनुभव लिखने चाहिये और दूसरे लोगों के साथ बांटना चाहिये | ऐसे लोगों के जीवन में आशा की किरण लाईये , जिन्हें उसकी सख्त ज़रूरत है |
आपको कहानियां बनाने की दरकार नहीं है | झूठी कहानियां बनाना भी अति है | वह अच्छा नहीं है | लेकिन आपके जीवन में जो भी कुछ अच्छा हो रहा है , कम से कम वो तो आप दूसरों के जीवन में लाईये | आपको लोगों को उसके बारे में सजग करना चाहिये |
अपने जीवन में होने वाली सभी सुन्दर बातों को लिखिए |
उसे छोटा ही रखिये , ज्यादा लंबा नहीं | कभी कभी लोग इतनी लंबी कहानियां लिख देते हैं , कि आपका उन्हें पूरा पढ़ने का मन भी नहीं करता | केवल एक अनुच्छेद पढ़कर ही आप उसे बंद कर देना चाहते हैं | इसलिए , अपने अनुभव लिखिए , लेकिन उन्हें छोटा और सारांश में लिखिए |
आप अपने किसी वास्तविक अनुभव को ही लिखिए जिसे आप जानते हैं और बांटना चाहते हैं | वही होगा जो वास्तव में लोगों को प्रेरणा देगा |
आप जानते हैं , जब हम कोई सच्ची बात बांटते हैं , तो उससे दूसरों की जिंदगी में बहुत सकारात्मक प्रभाव पड़ता है | यही वो तरीका है जिससे हम लोगों को उस प्रकाश की तरफ , जीवन की तरफ , प्रेम की तरफ मोड़ सकते हैं |
इसकी आज पहले से भी ज्यादा ज़रूरत है |
हर दिन मुझे लोगों के इतने सारे पत्र आते हैं |
इनमें कुछ डॉक्टरों की कहानियां हैं , जिन्होंने आशा छोड़ दी थी , और उन्होंने कह दिया था कि कोई छह महीने में मर जाएगा , लेकिन फिर भी वह मरीज आज सालों बाद भी जिंदा है |
तो इस तरह बहुत से इलाज भी हुए हैं | ऐसे हज़ारों पत्र हैं |
आज हमारी मानसिकता ऐसी हो गयी है कि हम इस ऊर्जा शक्ति के क्षेत्र पर अब विश्वास नहीं करते | हम तो अब उन केमिकल गोलियों पर ज्यादा विश्वास करते हैं जो डॉक्टर हमें लिख कर देते हैं | लेकिन आपको किसी भीई चीज़ की अति में नहीं जाना है | ऐसा मत सोचिये , ओह , गुरुदेव ने ऊर्जा क्षेत्र के बारे में कहा है , तो आज से मैं कोई दवाई नहीं लूँगा , मैं उन सबको बाहर फेंक दूंगा |’ नहीं ! हमें ये सब नहीं करना है |
हमें डॉक्टरों की सलाह लेनी है , लेकिन साथ ही मैं आपसे ये कह रहा हूँ , कि चमत्कारों को होने का मौका दीजिए |
यही इसका सार है |