सेवा हमारा स्वरूप है, और वह एक फूल की पँखुड़ी की भांति लगनी चाहिये - कोमल, सहज प्राकृतिक!

प्रश्न : हमारे मन व शरीर पर रात और दिन के समय का क्या असर पड़ता है?
श्री श्री रवि शंकर : तुम्हारे पास मन है और वह मन समय के साथ बदलता रहता है। इस बात का कभी परीक्षण क्यों नहीं करते!  तुम्हारा मनोभाव सुबह, दोपहर, शाम और रात में-समय परिवर्तन के साथ बदलता रहता है। प्रातः काल में सजगता और जागरुकता रहती है। प्रेम भरे गीत शायद ही कोई भोर सुबह या दोपहर में सुनना पसन्द करता हो। शायद कोई प्रेमी जोड़ों के यां उनके जो नव दम्पत्ति है सिर्फ़ वो ही सुनते हों!
सुबह - ज्ञान
दोपहर - गतिशील कार्य
और
संध्या विश्राम।
जो दुखी रहना चाहता है वह सब समय दुखी रह सकता है और जो खुश रहना चाहता है वह पूरे दिन खुश रह सकता है। नासमझ व्यक्ति हर पल दुखी रहता है और समझदार व्यक्ति भावों के उथल पुथल के बीच भी खुश रह सकता है।
इसी प्रकार मौसम के बदलाव का भी मन पर असर पड़ता है।
अवश्य ही मन व समय का एक अनूठा प्रगाढ़ सम्बन्ध है। पर यदि तुम मन से ऊपर उठ जाओ तो वहाँ अनन्त आनन्द, अखन्ड शांति और शीतलता का अनुभव प्राप्त होता है।

प्रश्न : हम अपनी जड़ों को मजबूत करने पर क्यों जोर दें यदि हमें अगले जन्म में एक भिन्न धर्म या परम्परा मिलनी है तो?
श्री श्री रवि शंकर : यह इस वक्त के लिये है! अपनी जड़ों को मज़बूत करना यानि पूर्ण रूप से योग्य बनना - यही मतलब है । जड़ों को मजबूत करना, यह किसी धर्म या परम्परा को मजबूत करना नहीं, अपितु कुशल और स्थिर व्यक्ति बनना है।

प्रश्न : मेरे से यही भूल होती है कि मैं भूल पर भूल करता जाता हूँ। क्या करूँ?
श्री श्री रवि शंकर : भूल भी जीवन का ही एक भाग है। कभी कभी भूल हो जाती है तो ठीक है। भूल को स्वीकार करो और आगे बड़ो। बार बार उस गलती को दोहराने पर जो पीड़ा होगी, वो तुम्हे उस गलती से उभारती है। जिस गलती से तुम्हें यातना और पीड़ा की चुभन मिलती है, वही तुम्हें उस गलती से बाहर निकलने को प्रेरित करती है। पर अपनी गलतियों को कभी सही बताने का प्रयत्न मत कर।

प्रश्न : आपके जैसे सरल रहना कैसे सीखा जाये? जीवन इतना जटिल है।
श्री श्री रवि शंकर : जीवन में जटिलता मत खोजो। अपनी दृष्टि सिर्फ़ एक दिशा में रखो। संस्कृत में एक कहावत है, "अन्तर्मुखी सदा सुखी"। यदि मनुष्य के मन की दृष्टि भीतर की ओर रहे तो वह सदा सुखी रहे। जटिल क्या है?- लोगों का मन! लोग अपने मन से परेशान रहते हैं, पर तुम क्यों उनकी परेशानी मोल लेना चाहते हो?
यदि कोई बीमार है तो सब डाक्टर तो उसके साथ बीमार होने में शामिल नहीं होते ना। तुम भी अपने आप को डाक्टर ही जानो और अपना ध्यान वहीं पर रखो। लोगों में परेशानियाँ हैं पर वे कम होंगी,  धैर्य व करुणा रखो।

प्रश्न : पूर्णिमा के समय मन इतना विचलित क्यों होता है? और उत्तर अमरीका में अपराध बहुत बढ़ गया है। इसके लिए क्या करें।
श्री श्री रवि शंकर : सब ग्रहों के प्रभाव से बचने का एक इलाज है - " ॐ नमः शिवाय"। इस मन्त्र के स्वर से पैदा हुई तरंगे हमारे चारों ओर एक कवच बना देती हैं जिससे हमारे शरीर को सुरक्षा के साथ शक्ति भी मिलती है।

प्रश्न : जब भी किसी सुंदर लड़की को देखता हूँ तो प्रेम में पड़ जाता हूँ। यह प्रेम है या मात्र आकर्षण ?
श्री श्री रवि शंकर : यह तो वक्त ही बतायेगा तुम्हें! पहले यह तो मालूम करो कि दूसरी तरफ़ भी प्यार है या नहीं? यदि वह बराबर हो तो एक बात है। और यदि बात दोनों ओर की नहीं तो एक अलग ही बात है। जो भी बात हो, तुम परिपक्व जरूर हो जाओगे । प्रेम में नीचे मत गिरो, प्रेम में ऊपर उठो। प्रेम में कुछ पाने की इच्छा नहीं रखते दूसरे से। यदि कुछ पाने की इच्छा रहे तो वह प्रेम नहीं केवल जरूरत है। किसी भी सम्बंध में कुछ पाने की इच्छा रहती है पर सच्चे प्रेम में नहीं। प्रेम तुम्हारा स्वरुप है। अगर यह अभी ज्यादा दार्शनिक लगे तो इस बात को मन में कहीं पीछे रख कर विश्राम करो। एक दिन, दिल टूटने पर यां जब तुम समझ जाओगे कि तुमने बहुत अधिक इच्छाएँ रखी थी तुम्हें समझ आ जायेगा, और तब मन के पर्दे के पीछे से कोई विचार निकल कर तुम्हें बचायेगा।

प्रश्न : आध्यात्म में रुचि रखने पर भी दुर्घटनायें क्यों घटती हैं जीवन में ?
श्री श्री रवि शंकर : घटना दुर्घटना हो जाती है जब तुम उससे प्रभावित होते हो। वही घटना किसी अन्य को तुलना में निम्न व तुच्छ लग सकती है । पर कुछ घटनाओं के लिये साधारण कारण नहीं मिलते हैं। लोगों की मृत्यु क्यों होती है? कई बातों का कोई कारण नहीं होता। ऐसे क्षणों में हम कहते हैं " मेरे साथ ही ऐसा क्यों?" किन्तु यह जान लो, "क्यों" दुख से जुड़ा है और "कैसे" आश्चर्य से जुड़ा है। जब कभी यह प्रश्न तुम्हारे या किसी अन्य के मन में उठे कि मेरे साथ ही यह परेशानी क्यों?, तो कुछ जवाब देने से कुछ नहीं होता। कोई भी उत्तर, समाधान या सन्तुष्टि नहीं देगा। सभी प्रश्नों को उस समय पर तुम्हें छोड़ना होगा और समय तुम्हें आगे ले जायेगा । समय तुम्हें उन घटनाओं से पार लगायेगा। हमारी आदत होती है उत्तर देने की या सान्त्वना देने की । पर एक मुस्कान या फिर कुछ क्षण का मौन ही बेहतर हल है। कोई भी तरीके, समाधान, विचार लाभदायक सिद्ध नहीं होंगे। ऐसा मेरा मत है।

प्रश्न : यीशू (जीसस) का जन्म स्थान बेथेलेहम है, पर आज उनके जन्म स्थान में ही इतनी हिंसात्मक घटनायें क्यों हो रही हैं?
श्री श्री रवि शंकर : यह बड़ी अनोखी बात है! इस जगह जीसस के होने से पहले भी अशांति थी और उनके जाने के बाद भी। यह आश्चर्य करने की बात है कि इस जगह ने लगातार रक्तपात और हिंसात्मक घटनाएँ देखी हैं। क्यों? इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं है। कम से कम मुझे तो इसका कोई उत्तर नहीं मालूम। पर यदि आप इतिहास देखें तो मोसेज़ के समय से पहले और पश्चात भी पूरे पूर्वी मध्य स्थान में और मिस्र (ईजिप्ट) ने लगातार बहुत कष्ट सहा है। ऐसे स्थानों में ज्ञान की सबसे अधिक आवश्यकता है।

प्रश्न : प्राचीन समय से नाक में छिद्र व कर्ण छिद्र की प्रथा रही है पर आजकल तो लोग यहाँ वहाँ, शरीर के किसी भी स्थान पर छिद्र करते हैं । क्या यह उचित है?
श्री श्री रवि शंकर : कान छिद्र करने के पीछे वैज्ञानिक कारण दिखता है: मस्तिष्क में जो नाड़ियाँ सजगता प्रदान करती हैं वे सब कान के नीचे भाग में एकत्रित होती हैं। इसलिये प्राचीन समय के लोग कर्ण छिद्र अधिक सजगता जगाने हेतु करते थे। अरे भई, मुझे शरीर के अन्य जगह पर छिद्र कराने की प्रथा के बारे में नहीं पता।

प्रश्न: सुखी दाम्पत्य जीवन का खास नियम क्या है?
श्री श्री रवि शंकर : मैं इस विषय पर बोलने का अधिकारी तो नहीं हूँ पर मेरा विचार यह होगा कि तुम उन लोगों का परामर्श क्यों नहीं लेते जो खुशहाल दम्पत्ति हैं?
किसी ने कहा है दम्पत्ति के लिये!
शादी से पहले -  एक दूसरे के लिए पागल।
और कुछ समय बाद - एक दूसरे की वजह से पागल!

मेरे विचारानुसार विवाह धैर्य, त्याग, एक दूसरे के प्रति ध्यान, सहानुभूति रखने की एक विधि व सम्बंध है। यदि एक दुखी हो तो दूसरे को उसी समय दुखी नहीं होना चाहिए। उसे अपनी बारी के लिए प्रतीक्षा करनी चाहिये! दोनों एक ही समय पर दुखी होंगे तो मुश्किल होगी! हाँ, बच्चों के सामने अवश्य ही सही व्यव्हार होना चाहिये।

प्रश्न : चक्र ध्यान क्या है? उसके बारे में बतायें।
श्री श्री रवि शंकर: चक्र ध्यान यानि प्रत्येक उर्जा चक्र पर भोलेपन से सहजता पूर्वक थोड़े समय के लिए ध्यान ले जाना। ज़्यादा कोशिश करने की जरूरत नहीं, उससे ध्यान नहीं लगता। बस थोड़ा सा ध्यान। जैसे, जब तुम केला या नारंगी शब्द सुनते हो तब क्या केला या नारंगी के रूप की कल्पना करते हो? नहीं, बस तुम को भान हो जाता है।
आजकल कल्पना करने की भी कई विधियाँ निकाली गयी हैं। पर इसमें प्रत्न करना होता है और जब प्रयत्न होता है तो मन और भी अधिक कार्यशील होता है, तब फिर ध्यान कहाँ लग सकता है?
इसलिये, मन को शांत करो, ध्यान हलके से चक्र पर केन्द्रित करो और फिर ध्यान वहाँ से भी हटाकर विश्राम करो।

प्रश्न : मनुष्यों में दोष व अपूर्णता होती ही है तो मानव में दिव्यता कैसे देखें?
श्री श्री रवि शंकर : कौन कहता है कि मनुष्य अपूर्ण हैं? हर मनुष्य के भीतर दिव्यता मौजूद है। उस दिव्यता को जाग्रित करो । एक गुण से दूसरे गुण की ओर बढ़ो, न कि एक दोष से दूसरे दोष की ओर ।
नकारात्मक दृष्टि से तुम सब वस्तुओं में दोष देख सकते हो जैसे दूध का फट कर दही होना और दही का नष्ट होकर मक्खन होना-ऐसा समझना केवल दोष देखना होगा और दूसरे दृष्टिकोण से तुम एक पूर्णता का अन्य पूर्णता में परिवर्तित होना देख सकते हो ।

प्रश्न : क्या हम आप के जैसे बन सकते हैं?
श्री श्री रवि शंकर : तुम मेरा एक अभिन्न अंग हो और मैं तुम्हारा। बस अधिक खाली हो जाओ।

प्रश्न : क्या ज्ञान मार्ग के अलावा अन्य कोई मार्ग भी है?
श्री श्री रवि शंकर : ध्यान, भक्ति, ज्ञान और कर्म - ये चारों मार्ग एक ही रथ के चार पहिये समान हैं। तुम किसी भी एक को अपनाओ, बाकी तीन भी पीछे आ जायेंगे।

प्रश्न : अगर भगवान सब में है तो प्राकृतिक प्रकोप क्यों ?
श्री श्री रवि शंकर : मानलो फ़िल्मों में केवल हीरो ही हो और कोई विलन ना होता! जब कई रोचक घटनाएँ शामिल होती हैं तभी फ़िल्म मज़ेदार होती है। फ़िल्म में केवल हीरो हीरोइन ही होते, शादी करते और बस फ़िर एक साथ रहते, ऐसी फ़िल्म होती तो क्या पसंद करते? यह जीवन भी तो एक ड्रामा है, एक खेल है, जिसमें सभी तरह की बातें होती रहती हैं। यह जगत परिवर्तन शील है, हर तरह की घटनाएँ होती रहती हैं, यह जान कर विश्राम करो। केवल पड़े रहना विश्राम नहीं है, अपने मन को विश्राम दो।
सेवा में कार्यरत रहो, जहाँ कहीं भी सेवा की जरूरत हो उसमें लग जाओ। सेवा हमारा स्वरूप है और हम सेवा के बिना नहीं रह सकते। सेवा भार स्वरुप नहीं लगनी चाहिये- एक फूल की पँखुड़ी की भांति लगनी चाहिये- कोमल, सहज प्राकृतिक!
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हम में से हर एक के भीतर की गहराई में ईश्वर सजीव और स्नेहमय चेतना के रूप में विराजमान है

दिसंबर १६, २०१०. श्री श्री यूनिवर्सिटी

युवाओं को ये महान देश विरासत में मिला है| मैं चाहता हूँ कि युवा फ़ौरन समाज की ज़िम्मेदारी ले लें| हमें एक भ्रष्टाचार-मुक्त समाज चाहिए, है कि नहीं! दूसरा हमें नशा-मुक्त समाज चाहिए, वर्ना हम कभी प्रगति नहीं कर सकते| युवा एक मात्र आशा है| बहुत ज़रूरी है कि तुम इस ओर तुरंत कदम बढ़ाओ!

तुम्हारा काम हो रहा है, ना! अभ्यास, कार्य और ज्ञान पर ध्यान केन्द्रित करो, बाकी सब मुझ पर छोड़ दो| विश्व के इस कोने से इतने उत्साहित युवा समूह को देख कर मैं बहुत खुश हूँ| आज आर्ट ऑफ़ लिविंग सारे विश्व में फ़ैल चुका है| दक्षिणी ध्रुव पर जाओ, अर्जेंटीना के छोर पर, और तुम्हे आर्ट ऑफ़ लिविंग मिलेगा, उत्तरी ध्रुव की तरफ जाओ, वहाँ भी आर्ट ऑफ़ लिविंग है| तुम्हारा एक परिवार है जो सारे भू-मंडल तक फैला हुआ है और तुम में से हरेक इस परिवार का महत्वपूर्ण सदस्य है| हमारा इतना बड़ा परिवार है, और हमारी ज़िम्मेदारी भी है, एक खुशहाल और उत्सवमय समाज के लिए कार्य करना, एक समाज जो हिंसा से मुक्त हो, एक समाज जो आध्यात्मिक रूप से उन्नत हो| मैं चाहता हूँ, तुम में से हरेक १०० गुना बढ़ जाओ। स्कूलों, कोलेजों तक फ़ैल जाओ, और जीवन को उत्सव बनाओ| निश्चिन्त रहो, तुम्हारी ज़रूरतों की देख भाल हो जाएगी| तुम समाज को जो चाहिए वो समाज के लिए करो, और बाकी मुझ पर छोड़ दो| तुम पाओगे कि तुम्हारी मांगें स्वाभाविक रूप से पूरी होती जाएँगी| जो तुम चाहोगे, वही होगा|


प्रश्न: जब आप चलते हैं, आप राजाओं के राजाधिराज हैं
     जब आप ध्यान करते हैं, आप शिव हैं,
     जब आप मुस्कुराते हैं, सारा ब्रह्माण्ड आप के साथ मुस्कुराता है,
     गुरुजी, आप किसके अवतार हैं?
श्री श्री रवि शंकर: तू तो बड़ा कवि बन गया है!

प्रश्न: मुझे भविष्य में क्या करना चाहिए?
श्री श्री रवि शंकर: भूतकाल में जो तुम्हे नहीं करना चाहिए था वो भविष्य में भी मत करना। कुछ ऐसा करो जो तुम्हारे और दूसरों के चेहरे पर मुस्कान लाए|

प्रश्न: मेरा क्या अस्तित्व है?
श्री श्री रवि शंकर: ये एक प्रश्न तुम्हें अपने आप से बार - बार पूछते रहना है| जब तक तुम्हें जवाब न मिले, इस प्रश्न को छोड़ना मत| पीछे से हम तुम्हें इसका उत्तर पाने के लिए धक्का लगाते रहेंगे| बड़ा किमती प्रश्न है!

प्रश्न: जब मैं कुछ अच्छा करता हूँ, तब भी मेरे माता-पिता कभी कभी मुझे करने नहीं देते| ऐसी परिस्थिति में आगे कैसे बढूँ?
श्री श्री रवि शंकर: यहीं पर तुम्हारा कौशल काम आएगा। इसे तुम अपने भीतर के कौशल को बाहर लाने का अवसर मान लो| जैसे आटा कपड़े पर लग जाए, तो कैसे निकालोगे? युक्ति के साथ समझाना, अपनी कुशलता से धैर्य से उनके साथ निपटो|  बात ऐसी कुशलता से करो कि वो मान जाएं।

प्रश्न: आध्यात्मिकता क्या है?
श्री श्री रवि शंकर: सबके साथ अपनेपन का भाव हो जाए, सबको अपनाने की और सत्य को जानने की कला है आध्यात्मिकता।

जैसे ये फूल एक पदार्थ है| लेकिन वैज्ञानिक दृष्टि से फूल अणु से बना है, इससे आगे अणु परमाणुओं से बने हैं, परमाणु उप परमाणु कणों से, और इससे आगे केवल तरंग ही है। क्वान्टम फिजिक्स में कहते हैं ये सब केवल तरंग है| इस तरह सारे संसार के स्त्रोत और मूल को जानना आध्यात्मिकता है| अंतर ज्ञान से फूल के डी.एन. ए को जानना आध्यात्मिकता है|

प्रश्न: क्या परीक्षा में पास होना और अच्छे नंबर लाना ही शिक्षा है? क्या ये इससे अधिक कुछ और नहीं है?
श्री श्री रवि शंकर: तुम्हें क्या लगता है?
(मुझे लगता है ये माता पिता का रवैया है जिस कि वजह से हम ऐसा सोचते हैं)
हाँ, पर इसके साथ तुम पढाई भी करो| वैसे भी तुम्हें बहाव के साथ चलना ही है| परीक्षा ही सब कुछ नहीं है, तुम कभी फेल भी हो जाते हो तो कोई बात नहीं| इसका मतलब ये नहीं कि तुम बेवकूफ़ी वाला कदम उठाओ| ये ठीक नहीं है| इसी के साथ तुम्हे परीक्षा पर भी ध्यान देना चाहिए| पर ज्ञान के लिए शिक्षा करो, केवल अंको के लिए नहीं।

प्रश्न: मैं आप के जैसा कब बन सकता हूँ?
श्री श्री रवि शंकर: तुम पहले से ही हो|

प्रश्न: समाज में भ्रष्टाचार को देख कर दुख होता है। मुझे समझ नही आता मैं क्या करुँ?
श्री श्री रवि शंकर: जब आप जैसे और लोग एक साथ आगे बढ़ेंगे, तो यह ज़रुर होगा। पर अगर भ्रष्टाचार ऐसे ही बढ़ता जाए, फ़िर तो भूल जाओ। २०६० तक भी ऐसा नहीं होगा। उसका कोई अंत नहीं है। इसलिए अभी ही समय है। ब्युरोकरेसी में भ्रष्टाचार है, मीडिया में भ्रष्टाचार है, मनोरंजन दुनिया में भ्रष्टाचार है, और केवल आध्यात्म की लहर ही इसे दूर कर सकती है।
जब हम साथ में काम करेंगे तो अवश्य ही हम हासिल करेंगे।
हमारे कुछ युवकों को आयुर्वेदिक फ़ैक्टरी के लिए सर्टिफ़िकेट चाहिए थे। उन्होने रिशवत देने से मना कर दिया। उन्होने कहा कि वो आध्यात्म के पथ पर हैं और वे ऐसा नहीं करेंगे, चाहे तो २० - ३० - ५० बार बुलाइए। अगर लोग समाज में सही रास्ते पर चलेंगे तो अधिकारी खुदबखुद सही हो जाएंगे। पर अगर लोग भी गलत करें और अधिकारी भी तो यह साधारण सा ही लगता है। जब तुम अपना मन मज़बूत बना लेते हो तो समाज भी बदलता है।

प्रश्न: पढ़ाई करते समय एकाग्रता कैसे बनाएं?
श्री श्री रवि शंकर: कुछ तो करो यार! कभी कभी कुछ तकलीफ़ लेनी भी अच्छी होती है। चल नहीं पाते पर अगर मेराथोन में जाते हो तो पूरी ताकत लगाते हो कि नहीं? पानी में कूद जाओ, तो जब तक किनारा ना मिले तैरते रहते हो ना? थक भी जाओ तो बीच में छोड़ तो नही देते! मन में यह रखो, किसी तरह से पूरा कर ही लूँगा।
(पर मुझे तैरना नहीं आता)
तैरना नहीं आता, पानी मे कूदोगे तो आ ही जाएगा। मुझे भी ऐसे ही आया था!

प्रश्न: मै अच्छा व्यक्ति बनने की कोशिश करता हूँ पर कभी कभी लोगों का व्यवहार समझ में नहीं आता। क्या करुँ?
श्री श्री रवि शंकर: सबको अपनाना, अच्छा बनना मतलब यह नहीं कि हर तरफ़ भावनाओं को बहा दो। जितना हो सके उतना ही करना। जो तुम नहीं कर सकते कोई तुमसे वो करने की अपेक्षा भी नहीं करेगा।

प्रश्न: क्या आपने कभी भगवान देखा है?
श्री श्री रवि शंकर: पहले यह बताओ कि भगवान तम्हारे हिसाब से है क्या? भगवान ऊपर कहीं बैठा नहीं है। ईश्वर वो है जो सब जगह व्यापक है। जब मन पूर्णत: विश्राम में होता है तो ईश्वर से मिल ही जाता है। पूरा खेल मन को उस आनंदित चेतना में स्थापित करने का है। जब लहर सतह पर होती है तो लहर होती है, पर जब समुन्द्र में विलीन हो जाती है तो वो समुन्द्र ही बन जाती है।
ईश्वर हम सब के भीतर है, और हर जगह है।

इससे आगे अगली पोस्ट में!...
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मन में शांति और कृती में उत्साह जीत के लिए उत्तम तालमेल है

बंगलौर आश्रम, भारत दिसंबर २०१०

प्रश्न: जब किसी काम में बार बार हार मिले तो फ़िर भी उसे करते रहना चाहिए कि छोड़ देना चाहिए?
श्री श्री रवि शंकर: भारत में एक कहावत है - कार्य की सिद्धि सत्व से होती है, वस्तुओं से नहीं। किसी कार्य को सिद्ध करने के लिए सत्व गुण बड़ना चाहिए, और सत्व बड़ाने के लिए क्या करें?
सही आहार, सही व्यवहार और अपने मन को विश्राम देना सबसे पहले है।
अगर इसके बावजूद भी कभी कोई हार हाथ लगे, तो सत्वगुण उत्साह तो कम होने नहीं देता. और फ़िर छोड़ने का प्रश्न ही मन में नहीं उठता। जब एक बार जीतने का चस्का लग जाए, तो फ़िर बार बार खेलने का मन करता है। इधर उधर कोई हार भी हाथ लगे तो फ़िर भी मन में कुछ अच्छा करने का विश्वास तो बना ही रहता है। और यह विश्वास तब आता है जब काम के प्रति श्रद्धा हो। जैसे मन में शांति और कृत में जोश से कितने लोग आज़ादी के लिए लड़ते रहे। ऐसे लोगों को कोई पैसा नहीं मिलता था, वो चोरी नहीं करते थे, पर वे लोग पीछे नहीं हटे।
तीसरा कारण है - हार की वजह। हर हार जीत की ओर एक कदम है। एक कारण अपने में कोई कमी हो सकती हैं यां व्यवस्था में कोई कमी।
अपने में कमी जैसे किसी ने सही ढंग से प्रदर्शन नहीं किया। जैसे अगर तुम एक इंटरव्यु में जाते हो और कुछ ज़्यादा बोल देते हो तो इंटरव्युर के मन में संदेह उठ जाता है कि तुम वो काम कर पाओगे के नहीं। अपने में कमी को दूर करने के लिए योग्यता बड़ाओ। 
हर हार जीत की तरफ़ एक कदम है - तो यह देखो तुमने क्या सीखा! क्या तुम भावनाओं के साथ बह गए? जो लोग उसी काम में हैं, क्या तुमने उन्हे संपर्क किया? तुम उन पर विश्वास नहीं करते, यां तुमने भरोसेमंद लोगों को अपने साथ नहीं रखा?
सब कारण हो सकते हैं। तो अपनी योग्याता बड़ाने के लिए अपने क्षेत्र के ज्ञान की गहराई में जाओ। 
फ़िर आता है व्यवस्था को ठीक करना! तो यह तुम अकेले नहीं कर सकते। जैसे भ्रष्टाचार के खिलाफ़ कुछ करना हो तो तुम अकेले नहीं लड़ सकते। संघ के साथ चलो, और लोगों को अपने भरोसे में लो। लोगों में जाग्रति पैदा करके उन्हे अपने साथ लेकर चलो।
"संघे शक्ति कलियुगे"
कलयुग में संघ में ही शक्ति है। लोग कहते हैं यह समय कलयुग की चरम सीमा है, और ऐसा लगता है जैसे सत्य कहीं दब गया है। अगर तुम्हे ऐसा लगता है तो संघ में चलो, और फ़िर देखो काम होता है यां नहीं। दुनिया में जाओ ताकि अपने साथ और लोगों को ला सको, और अपनी योग्यता बड़ाने के लिए अपने भीतर जाओ। दोनो को साथ लेकर चलने से तुम्हे अवश्य सफ़लता मिलेगी। 
अगर तुमने अपना शत प्रतिशत दे दिया और फ़िर भी सफ़ल नहीं हुए, तो ठीक है। कोई और काम अपने हाथ में लो। पर एक यां दो बार हार हाथ लगने पर भागने का कोई अर्थ नहीं है।

प्रश्न: हमेशा खुश रहने के लिए क्या करें?
श्री श्री रवि शंकर: पहले और ज़्यादा खुश हो जाओ और फ़िर अगर कभी कोई थोड़ी बहुत दुख की बात हो जाए तो उसे भी स्वीकार करो। अगर भूतकाल में तुम कभी खुश नहीं थे तो उसे याद करके दुखी होने का कोई तक नहीं बनता, और तब तुम हमेशा खुश रहोगे।

प्रश्न: कुछ लोगों की अपनी धारनाओं के कारण हम सब की सभ्यताओं पर खतरा है। कई लोग तो इसके लिए मरने मारने के लिए भी तैयार हैं। ऐसे लोगों से हम कैसे निपटें?
श्री श्री रवि शंकर: हाँ, हमे उनके साथ धैर्य से बरताव करने की आवश्यकता है, और फ़िर उन्हे शिक्षित करना है। यह आसान नहीं है पर उन्हे निमंत्रित किया जा सकता है और जब उनमें से एक शांति स्थापित करने में हमारे साथ मिल जाए तो आसान हो जाता है।

प्रश्न: जो लोग अहिंसा के मार्ग पर चल पढ़ते हैं, उनके साथ कैसे बरताव करें?  
श्री श्री रवि शंकर: अपने अस्तित्व के बचाव के लिए अहिंसक होना स्वभाविक है। पर अगर ऐसे लोगों में आत्म विश्वास और दृष्टि जगाई जाए तो तुम पाओगे कोई भी व्यक्ति कैसे आत्म विश्वास से आगे बड़ता है। मैने मौन की गूँज पुस्तक में इस बारे में बात की है, तुम वो पढ़ सकते हो।

प्रश्न: हमें भगत सिंग यां महेश गुरु का अनुसरण करना चाहिए क्या?
श्री श्री रवि शंकर : भगत सिंग भी अहिंसा के पुजारी थे। पर तब कुछ हालात ऐसे बन गए कि उन्हे हथियार उठाने पढ़े। श्री गुरु गोबिंद सिंग का अनुसरण करो - संत सिपाही बनो - मन में संत की शांति और कृत में सिपाही का उत्साह। इसीलिए श्री कृष्ण ने भी अर्जुन को पहले एक योगी बनने के लिए कहा और फ़िर लड़ने को।

प्रश्न: जीवन का मूल क्या है?
श्री श्री रवि शंकर : पहले उस सार की खोज में निकलो तो। पहले ही क्या बताऊं! सारा जीवन रस की खोज में है, जहाँ रस मिल गया वहाँ विश्राम करें। रस मिलता है अंतर्मुखी होने से। थकान मिटी, विश्राम हुआ तो वहाँ राम मिल गए।

प्रश्न: जब दो विपरीत वस्तुओं में से चुनना हो तो क्या करें?
श्री श्री रवि शंकर: कोई भी खलल विकास का लक्षण है। ऐसे में विश्राम करो। जब मन विश्राम करता है तो अंतर्ज्ञान काम करता है। उस पर निर्भर करो।
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हमारा पूरा जीवन भी साधना की तरह ही पूज्य है!

10 दिसंबर, भारत
प्रश्न: मुझे कभी कभी लगता है कि जीवन का कोई मतलब नहीं है, कुछ कठपुतली के खेल जैसा। तो फ़िर कुछ भी करने का क्या मतलब है।
श्री श्री रवि शंकर: पता है अगर कोई बाहर के ग्रह से धरती पर आकर क्रीकेट यां फ़ुटबाल का मैच देखे तो पता है उसे कैसा लगेगा? हैरान रह जाएगा! एक गेंद के पीछे २२ लोगों का भागना उसे बिल्कुल फ़िज़ूल लगेगा। हरेक को एक एक क्यों न दे दो!
तर्कसंगत मन के लिए यह सब फ़िज़ूल ही है। दुर्भाग्य से आज खेल जंग का मैदान और जंग खेल की तरह बन गए हैं। जीवन एक खेल ही है। समय के चक्र में अपना जीवन देखो! करोड़ों साल बीत गए हैं और करोड़ों और आएंगे। तुम्हारा जीवन कितने वर्ष का है? ६०, ७० यां १०० वर्ष? अंतरिक्ष की तुलना में, इतने व्यापक ब्रहांड की तुलना में तो यह शरीर है ही नही! मैं तुम्हे कोई उत्तर नहीं दे रहा। उत्तर तुम्हारे भीतर से उठना चाहिए। तुम खुद देखो इन सबका क्या उद्देश्य है?
अगर तुम्हे सबकुछ बेमतलब लगता है तो तुम्हारे लिए खुशी की बात है। पथ पर तुम्हारी शुरुआत हो चुकी है। बुद्धिमानी का यह पहला लक्षण है। नहीं तो हम रोज़ रोज़ उसी चक्र में फ़ंसे रह सकते हैं, और हमे इसकी सजगता भी नहीं होती। यह बहुत खूबसूरत प्रश्न है और तुम्हे खुश होना चाहिए कि यह तुम्हारे भीतर उठा है।


प्रश्न: लोग मेरे बारे में क्या सोचते हैं मैं इससे कैसे ऊपर उठुँ?
श्री श्री रवि शंकर: जब मन बाहर है यां किसी बाहर की वस्तु यां परिस्थिति में अटक गया है तो फ़िरसे उसे स्रोत की तरफ़ वापिस लाओ। बस यही करना है। कुछ अच्छा होता हैं यां कुछ बुरा, हमारे मन पर कुछ समय के लिए उसकी छाप पड़ती है। पर ज़्यादा समय के लिए कुछ नहीं रहता और समय के साथ सब धुल जाता है। बुद्धिमानी का लक्षण है कि किसी पर भी अधिक देर नही अटके रहना। ध्यान और साधना इसके लिए सर्वश्रेष्ठ उपकरण हैं।


प्रश्न: साधना और जीवन में क्या संबंध है?
श्री श्री रवि शंकर: पूरा जीवन ही साधना है! पूजा और क्रिया महत्वपूर्ण हैं पर हमारा पूरा जीवन भी साधना की तरह ही पूज्य है।


प्रश्न: आपके लिए जो मेरा सम्मान और प्रेम है, अक्सर बाकियों के साथ उसकी तुलना करता हूँ। क्या यह सही है?
श्री श्री रवि शंकर: तुम्हे अपने आप की किसी से तुलना करने की कोई आवश्यकता नही है। तुम्हारा प्रेम अद्वितीय है। प्रेम को प्रेम ही रहने दो कोई नाम न दो! जो प्रेम किसी रिश्ते से बंधा है वो सीमित है। इससे शुरुआत हो सकती है पर उस प्रेम की ओर अग्रसर रहो जो रिश्तों से परे असीम है। ऐसे दिव्य प्रेम का अनुभव करना ही मक्सद है। जो प्रेम रिश्तों से परे है वो ही सच्चा प्रेम है।

प्रश्न: मैने आपको पहली बार कल देखा, पर मुझे ऐसा नहीं लगा कि आप कोई अन्जान हैं।
श्री श्री रवि शंकर: मुझे कभी भी किसी को भी मिलते हुए ऐसा नहीं लगा कि मैं किसी अन्जान व्यक्ति से मिल रहा हूँ। जिस तरह तुम्हारी भावनाएं होती हैं, तुम वही अनुभव करते हो। तुम किसी भी व्यक्ति को मिलते हो वो तुम्हारी ही परछाईं है।

(अचानक बिजली चली गई, और किसी ने कहा, "गुरुजी आप यहाँ से मत जाना"। जिस पर गुरुजी ने कहा, "हो सकता है यह ध्यान करने की निशानी हो")

दुनिया में कोई अलग है ही नहीं। यही ध्यान का मंत्र है। ऐसा कोई नहीं है जो मुझसे नहीं जुड़ा हुआ। यही प्रेम का मंत्र है। हम सब के शरीर चेतना के समुद्र में गोते खाते हुए सीप जैसे हैं। यही सत्य है। 
सीप में कोई जीवन नहीं है, उसका जीवन पानी में है। मछली का जीवन किधर है - मछली में यां पानी में?
मछली का शरीर केवल जीवन का प्रदर्शन कर रहा है पर जीवन पानी में है। इसी को कारण शरीर कहते हैं।

प्रश्न: हम ईर्ष्या कयों महसूस करते हैं और इससे बाहर आने के लिए क्या करें?
श्री श्री रवि शंकर: ईर्ष्या क्यों महसूस करते हैं? क्योंकि हम यह भूल जाते हैं कि सब बदलने वाला है। ध्यान करो और जीवन को एक ऊँची दृष्टि से देखो। अगर तुम फ़िर भी ईर्ष्या महसूस करो तो संवेदना पर ध्यान दो और यह बीत जाएगा।
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किसी भी बुराई की जड़ तनाव है

प्रश्न: हर कोई आप से मिलना क्यों चाहता है?
श्री श्री रवि शंकर: मैं तो नहीं जानता पर ऐसा होता है। आत्मा एक दूसरे से बात करती है!

प्रश्न: आज बहुत से लोग शाकाहारी हो गए हैं, ३० साल पहले तो भारत के बाहर शाकाहार देखना भी मुश्किल था।
श्री श्री रवि शंकर: हाँ, आज बात अलग है। हर किसी को जानवरों से दोस्ती करने के लिए कहो। एक बार जब आप दोस्ती कर लेते हैं तो आप उन्हे खाते नहीं हैं। जैसे आप अपने पालतु जानवर को भोजन में तो नहीं खाते। जब एक बार रिश्ता बन जाता है तो आप में दोस्ती बन जाती है, और जानवरों से दोस्ती करने से ही विश्व शाकाहारी बन जाएगा।

प्रश्न: जब मन में इच्छाएं उठें तो क्या करें?
श्री श्री रवि शंकर: जब इच्छाएं उठती हैं तो देखो यह तुम्हारे लिए हितकारी हैं कि नहीं। जब इच्छाएं उठती हैं और बुद्धि से होकर गुज़र जाती हैं तो अच्छा है। पर अगर अदक्ष इच्छा है तो मुश्किल हो सकती है।

प्रश्न: आदतों से छुटकारा कैसे पाएं?
श्री श्री रवि शंकर: आदत से मुक्ति पाने के तीन रास्ते हैं। अगर कोई तुम्हे लालच दे। मानलो अगर तुम कोई बुरी आदत छोड़ देते हो  तो तुम्हें दस लाख मिलेंगे। तब तुम वो करोगे? तुम्हारी आदत से कुछ श्रेष्ट तुम में लालच जगा देता है। यां अगर तुम में कोई भय जगा दे! अगर चिकित्सक कह दे कि शराब पीने से तुम्हारा लीवर खराब हो जाएगा, तो क्या तब भी तुम शराब पीओगे? तीसरा तरीका प्रेम का है।

प्रश्न: लोगों में बुराई से छुटकारा कैसे पाएं?
श्री श्री रवि शंकर: लोगों में कुछ बुराई है तो केवल तनाव के कारण। एक बार साधना के पथ पर आ जाने से वो किसी भी बुराई से बाहर आ जाते हैं।

प्रश्न: संपत्ति क्या है?
श्री श्री रवि शंकर: संपत्ति केवल धन नहीं है। जो भी जीवन को समर्थन करता है वो संपत्ति है। स्कैन्डीनेवीया में लोग सूरज के लिए तरस्ते हैं। जब मैं वहाँ सर्दियों में गया था, तो वहाँ अंधेरा था, जैसा यहाँ इस समय है। जब मैने पूछा सूरज कब उदय होगा, तो मुझे किसी ने बताया जनवरी में। 
आज समाज में आध्यात्म की लहर की आवश्यकता है। आध्यात्म माने क्या? जहाँ लोग एक दूसरे से अपनेपन के भाव से जुड़ा हुआ महसूस करते हैं। जब अपनापन बड़ जाता है तो भ्रष्टाचार कम हो जाता है।

प्रश्न: समाधि क्या है?

श्री श्री रवि शंकर: अलग अलग तरह की समाधि है।
पहला है लय समाधि - संगीत का आनंद लेते हुए तुम अपने में गहरे उतर जाते हो।
फ़िर साक्षी समाधि - मन में सजगता।
अगर तुम बहुत ज़्यादा भी करते हो तो सही नहीं है। इसीलिए एक शिक्षक से मार्गदर्शन लेनी चाहिए। जब कोई शरीर त्याग देता है तो हम जीवन की विशालता अनुभव करते हैं। एक व्यक्ति जो पहले था वो अब नहीं है। यह जीवन में एक गहराई लाता है, और तब हम आश्चर्य करते हैं जीवन है क्या? व्यक्ति कहाँ गया? यह जीवन मे गहराई लाता है और इसलिए दुख व्यक्त करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
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संवेदनशील होते हुए मज़बूत और ताकतवर बने रहना सबसे उत्तम है!

मौनट्रीयल, कैनेडा नवंबर 25, 2010
वर्तमान क्षण में अभी जागो! यह केवल एक बहता हुआ क्षण नहीं है। वर्तमान क्षण में अनंत की गहराई है। पूरा अतीत और भविष्य वर्तमान में मौजूद है। तुम्हारा पूरा कृत वर्तमान क्षण का पूर्ण रूप से अनुभव करना ही होना चाहिए। किस को परवाह है तुम कैसा महसूस करते हो? क्या तुम वो कर रहे हो जो तुम्हे करना चाहिए?  क्या आप अपने अस्तित्व के नाज़ुक पहलू से परिचित हैं? क्या आप सब करते हुए भी अपने उस संवेदनशील पहलू में विश्राम कर रहे हैं?वर्तमान क्षंण संवेदनशील है। आमतौर पर जब आप संवेदन शील होते हैं तो आप कमज़ोर पड़ जाते हैं, और जब आप ताकतवर होते हैं तो असंवेदनशीलता झलकती है। दोनो का मेल उत्तम है - संवेदनशील होते हुए मज़बूत और ताकतवर बने रहना। यही ज्ञान है। भूतकाल के कर्मों का प्रभाव स्थायी नहीं है। भूतकाल में होने वाली घटनाओं पर दुखी होना मूर्खता है। परिणाम का सामना करो पर वर्तमान में शांत रहो। अभी जागो! जब अभी जागकर देखते हो तो किसी परिणाम का भय भी नही रहता।  जिस क्षण तुम्हे अपनी गलती का एहसास हो जाता है तुम्हे उसी क्षण माफ़ी मिल जाती है। तुम हर क्षण में नए हो, ताज़ा हो, फूल की तरह खिले हुए हो।
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विज्ञान और अध्यात्म को साथ लेकर चलने से जीवन में प्रगति होती है

बैंगलुरू , भारत, 15 नवंबर:

प्रश्न: जब सब कुछ भगवान की इच्छा है, तो आध्यात्म की क्या आवश्यकता हैं ?
श्री श्री: हम तत्व, और आत्मा दोनों से बने हैं|  आत्मा को आध्यात्मिकता की आवश्यकता है! शरीर (तत्व ) की कुछ भौतिक चीजों की आवश्यकता होती है और हमारी आत्मा का पोषण आध्यात्म  से होता है | आप जीवन को आध्यात्मिकता के बिना जी नहीं सकते | क्या आप शांति चाहते हैं? क्या आप  खुशी चाहते हैं? क्या आप सुख चाहते हैं? हमें लगता है कि आध्यात्मिकता का अर्थ केवल मंदिर, गिरजाघर  या मस्जिद जाना है|  आध्यात्मिकता मानवीय मूल्यों का जीवन में समावेश है|  मानवीय मूल्यों के बिना जीवन व्यर्थ है| यदि  कोई प्रश्न करता है कि  आपको  मानवीय मूल्यों की आवश्यकता क्यों है, तो  आप कहेंगे, यह एक मूर्खतापूर्ण सवाल है!  जब आप मनुष्य हैं तो जानवरों जैसा जीवन जीने का कोई अर्थ नहीं हैं| मानवीय मूल्यों के साथ रहना मनुष्यता है|

मनुष्य की कुछ जरूरते होती है और वह  जिम्मेदारियाँ लेता है | जब जरूरते कम और जिम्मेदारीया अधिक हो तो जीवन अच्छा होता है|  जब जरूरतें अधिक और जिम्मेदारीया कम हों तो फिर जीवन इतना अच्छा नहीं होता| जब आपकी जरूरतें अधिक हों और आप बहुत ही कम जिम्मेदारी लेते हैं, तो आप दुखी हो जाते हैं| यह आध्यात्मिक जीवन नहीं हैं |  भरथियार, कामराज और गांधीजी ने पूरे राष्ट्र की जिम्मेदारी ली और उन्होंने कैसा जीवन व्यतीत किया - उनकी जरूरतों कम से कम थी |

अधिक  से अधिक  जिम्मेदारी लें| यदि पिता अपने बच्चो और उनकी जरूरतों की जिम्मेदारी नहीं लेगा, तो क्या बच्चे उसकी सुनेंगे? जो लोग जिम्मदारी लेते हैं उन्हें ही अधिकार प्राप्त होते हैं | जो लोग राजनीती में हैं उन्हें तो पूरे राष्ट्र की जिम्मेदारी लेनी होगी|  परन्तु यदि वे भ्रष्ट तरीको से सत्ता में आये हैं तो पतन निश्चित हैं|  जब हम और अधिक जिम्मेदारी लेते हैं तो उसका प्रबंधन कैसे करे ? हमारी क्षमता से परे जिम्मेदारी लेना और उसका प्रबंधन करना आध्यात्म से आता है |

प्रश्न : ऐसा क्यों हैं जब मैं अच्छी बातो का  पालन करता हूँ फिर भी बुरी बाते मेरा पीछा करती हैं ?
श्री श्री: यदि आप नीम के पेड़ को बोयेंगे तो क्या उस पर आम लगेंगे ? आपको बुद्धिमान होना होगा | आप अच्छे इंसान हो सकते हैं और फिर भी आप बुद्धिमान हो सकते हैं|  यदि आप अच्छे इंसान हैं और आप आग में अपना हाँथ ड़ालते हैं , तो आपका हाँथ जलेगा ही | अपने बुद्धि का अच्छे से इस्तमाल करें|  हम अपने बुद्धि का इस्तमाल सिर्फ भ्रष्टाचार के लिए करते हैं ना कि एक अच्छे इंसान बनने के लिए | हम सोचते हैं कि हम अच्छे हैं और दुसरे बुरे हैं | यह ऐसा नहीं हैं |  कुछ अच्छाई हर किसी में होती हैं | आध्यात्म से  उसमे बढावा होता हैं |  जब छोटी कठिनाइयाँ हों तो उनसे भी हमें गहराई मिलती है -. खुशी से  विस्तार मिलता  है, कठिनाइयो से  गहराई मिलती हैं |


प्रश्न : हमारे युवायो के लिए आप की क्या सलाह हैं ?
श्री श्री: आधुनिक और प्राचीन दोनों से सीखे , और आगे बढे. | आध्यात्म हमारी परंपरा और संस्कृति की बुनियाद हैं |  उसकी पत्तियाँ और शाखाए विज्ञान हैं|  कभी कभी अध्यात्म के नाम पर, हम अंधविश्वासों का पालन करते यां यह सोचते हैं कि हम वैज्ञानिक हैं, और हम अपनी  परम्पराओं को अनदेखा करते हैं |  यह ठीक नहीं हैं| आपने मध्यस्त मार्ग लेना चाहिए | हमें अपनी परंपरा का सम्मान करना चाहिए, वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखना चाहिए और दूसरों के लिए हम जो भी कुछ अच्छा कर सकते हैं उसे करते रहना चाहिए |

प्रश्न : मनुष्य का सर्वोच्च कर्तव्य क्या है?
श्री श्री: जब कर्तव्य को प्रेम से करते हैं तो बोझ नहीं लगता।  कभी कभी आप सिर में दर्द महसूस करते हो क्युकि आपको कर्त्तव्य बोझ लगता है|  यदि आप कुछ प्रेम से करते हो तो वह उत्तम है|  जब आप कोई जिम्मेदारी प्रेम से लेते हैं तो वह आपके लिए बोझ नहीं रहती|  वह पूजा के जैसे हो जाती है और वह उत्तम है| यदि आप पूजा को ही कर्त्तव्य समझने लगते हैं तो उसे करने से कोई लाभ नहीं हैं| वो प्रेम का भाव ज़रुरी है।

यदि कोई पिता सोचे कि मुझे अपनी बेटी की शादी करनी हैं और किसी तरह अपनी जिम्मेदारी से छुटकारा मिले तो फिर वह बोझ बन जाता हैं|  परन्तु यदि वह उसकी शादी को प्रेम से लेता है तो फिर सारा कार्यक्रम उत्सव बन जाता हैं और सबको प्रसन्नता होती है|  इसलिए ज़िम्मेदारी को प्रेम से लीजिए और सारे विश्व की जिम्मेदारी लिजिये| छोटे कदम के साथ शुरू करें |  पहेले अपना परिवार, पडोसी, समाज, गाँव – आपके गाँव में किसी को दुखी नहीं होना चाहिए! ऐसे दृष्टिकोण से आपका दिल खिल उठेगा |  और जब जब दिल खिलता है तो वहाँ पर खुशहाली होती है|  ईश्वर खिले हुए दिल में वास करते हैं| आपको कही जाकर ईश्वर को खोजने की आवश्यता नहीं हैं| उनका निवास आपका दिल है|

प्रश्न : आपदाये  और प्राकृतिक आपदाये  क्यों  होती  हैं?
श्री श्री: हम इस ग्रह का शोषण कर रहे हैं, परमाणु बमों का इस्तेमाल करके , उनका विस्फोट पानी के नीचे कर रहे हैं  - इस तरह कई परमाणु हथियारो का परिक्षण चुपके से पानी के निचे किया जा रहा है। पृथ्वी इसे सहन नहीं कर सकती | इस सब को बदलना होगा – हमें रसायन रहित कृषि के तरीको को प्रोत्साहन देना चाहिए | हमारे देश का मक्का छोटा है|  आयातित मकई बडी है|  हमारे चावल के दाने छोटे हैं, आयातित अनाज/चावल  बड़े होते हैं|  लेकिन हमारे अनाज अधिक स्वास्थ्य होते हैं|  हमें अपने स्वदेशी बीजों की रक्षा करना चाहिए| हमारे गाय के गोबर और गौमूत्र में औषधीय गुण है| देशी गायो  और बीजो की रक्षा करनी होगी! आयातित संकर बीज (Imported hybrid seeds)पहले दो या तीन साल में अच्छी उपज देते हैं पर वे भूमि/मिटटी को पूरी तरह से बर्बाद कर देते हैं | महाराष्ट्र के कई हजार कृषको ने इस वजह से आत्महत्या कर ली|  हमें कृषि के प्राकृतिक तरीकों को प्रोत्साहित करना चाहिए|

प्रश्न:मैं ऐसा क्या करूँ जिससे मैं जो भी इच्छा करू वह पूरी हो जाये ?
श्री श्री: ध्यान से सोचे! यदि आप जो चाहते वह सब कुछ पूरा हो जायेगा तो आप बहुत जल्द ही पूछेंगे 'क्यों ऐसा हुआ" | एक राजा ने भगवान से वरदान माँगा कि - वह जिसे भी छुए वह सोने का हो जाये | भगवान ने उसकी इच्छा पूरी करी और वह बहुत खुश था परन्तु सिर्फ कुछ मिनटों के लिए | वह प्यासा था और उसे पानी चाहिए था | जैसे ही उसने उसे छुआ वह सोना बन गया | उसका भोजन और उसकी छोटी बेटी सब सोना बन गयी जैसे ही उसने उन्हें छुआ|  राजा बहुत परेशांन हो गया और उसने प्रार्थना करी कि वरदान को वापस कर दिया जाये |

थोडा पीछे देखो  और याद करो – एक बालक के रूप में आप क्या बनना चाहते थे? इंजन ड्राइवर? आजकल बच्चो के पास बहुत सारे खिलौने होते हैं | ३० से ४० साल पहेले बच्चे सिर्फ इंजन ड्राइवर या पायलट बनना चाहते थे |  कई  चीजे जो आपको पहले पसंद थी, वो आपको अब पसंद नहीं हैं| जो आपके लिए सबसे उत्तम हैं ईश्वर आपको वही देगा |  अपने विश्वास के साथ आगे बढे |  यदि आपकी कोई इच्छा हैं , तो यह मत सोचे कि उसके लिए प्रार्थना नहीं करनी हैं | सिर्फ सोचे – मुझे यह मिल जाए या इससे कुछ बेहतर मिले |

प्रश्न: साम्यवाद आध्यात्म का विरोध क्यों करता हैं ?
श्री श्री: आप जिस भी दिशा में जायेंगे, आपको कोई बिंदु मिलेगा क्युकि पृथ्वी गोलाकार है |  साम्यवाद और आध्यात्मिकता एक दूसरे के विरोधी लगते हैं, लेकिन अंत में वे साथ में मिल ही जायेंगे|
क्या आपको पता है कि चीन की सरकार ने चीन के संविधान में आध्यात्म की आवश्यकता को सम्मलित किया है| चीन में हर व्यक्ति को समृद्धि, विकास और आध्यात्म  उपलब्ध कराई जायेगी |

क्या  आपको पता है कि बहुत ही कम लोग आध्यात्म से नफरत करते हैं |  अपने दिल की गहराई में देखे | ईश्वर के प्रति आपके मन में श्रद्धा या तो भय होगा | साम्यवाद का सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत क्या है? यह की सबको सबकुछ मिलना चाहिए |  आध्यात्म भी वही कहता है|  दूसरों को स्वयं के रूप में देखे| सब में अच्छाई को देखे |

प्रश्न: यदि सब  भगवान के बच्चे हैं, तो लोगों के बीच में अंतर क्यों है?
श्री श्री: हम इसमें फर्क बना देते हैं | किसी को स्कूल में 'ए' ग्रेड या 'बी' ग्रेड मिलता है| हम में अलग अलग प्रतिभा और गुण हो सकते हैं |  कुछ लोग 100 किलोग्राम, कुछ दस किलोग्राम, और कुछ दो किलोग्राम भी नहीं उठा सकते हैं|

प्रत्येक व्यक्ति कुछ न कुछ कर लेने में अद्भुत हैं परन्तु अन्य स्तर पर हर कोई सामान है | हर व्यक्ति के खून का रंग लाल है|  गाय किसी भी नस्ल की हो उसके दूध का रंग सफेद ही होगा |
कोई भी दो लोगों के उँगलियों के निशान एक जैसे नहीं होते | यदि आप अपने गुण और प्रतिभा को देखें , तो हम सब अद्भुत हैं |  प्रेम के स्तर पर हम सब सामान हैं | इसमें कोई अंतर नहीं है। एक छोटा बच्चा दस इडली नहीं खायेगा |  यदि आप एक वयस्क, को छोटा कप और चम्मच देंगे, तो क्या वह ठीक होगा? क्षमता भिन्न हैं, फिर भी हर कोई सामान ही है|

प्रश्न: क्या यज्ञ और मंत्र कर्मो को साफ़ कर सकते हैं ?
श्री श्री: ध्यान और प्राणायाम कर्म को साफ़ कर देंगे |  यज्ञ भी कर सकता है| हालांकि, बिना ध्यान की अवस्था में यज्ञ से भी समान लाभ नहीं मिलते|

प्रश्न: व्यक्ति को क्या सफल बनाता हैं : विज्ञान या अध्यात्म ?
श्री श्री: जब आप  टीवी देख रहे होते हैं,  तो क्या अधिक महत्वपूर्ण है? देखना या सुनना? आपको दोनों की आवश्यकता हैं| उसी तरह, जीवन में भी,हमें  दोनों की आवश्यकता हैं |

प्रश्न: आध्यात्मिक गुरु ज्यादातर पुरुष क्यों होते  हैं?
श्री श्री: आध्यात्म लिंग से परे होता हैं |  पुरुष और महिलाये समान हैं | यहाँ पर कई महिलायों के लिए रिक्तिया हैं जो स्वामी बनना चाहती हैं | वे भी आगे आ सकती हैं

प्रश्न: मन और बुद्धि के बीच अंतर क्या है?
श्री श्री: यह मुझसे ऐसा पूछने के जैसा हैं कि कठल और केले के बीच में अंतर क्या है?  यदि वे समान होते तो आप मुझसे यह सवाल नहीं करते| मन किसी एक स्थान पर नहीं है, वह पूरे शरीर के इर्द गिर्द फैला हुआ हैं |

प्रश्न: क्या सेवा करने से अहंकार को नष्ट होने में मदद मिलेगी?
श्री श्री: यदि आप में अहंकार है, तो उसे आप अपनी जेब में रख लें |  उसे नष्ट करने की कोशिश मत करें, क्युकि वह प्रयास इसे और बढायेगा |  एक शिशु के भांति स्वाभाविक रहें|  यदि वह हैं, तो कोई बात नहीं | जब आप अपने और दूसरों के बीच अलगाव या दूरी महसूस करते हैं, तो अहंकार उत्पन्न  होता है | हमें  अपने परिवार के साथ या जो लोग हमारे करीबी हैं उनके साथ अहंकार नहीं होता है | उसी तरह जिन्हें हम बिलकुल ही नहीं जानते उनके साथ हमें अहंकार नहीं होता | यह सिर्फ लोगो के साथ होता हैं जिन्हें  हम बहुत थोडा जानते हैं, हमारा अहंकार विकसित हो जाता हैं | यदि सब आपके हैं या कोई आपका नहीं हैं तो वहाँ पर अहंकार नहीं होता हैं |

एक बच्चे की तरह सहजता होना जरूरी है |  जब हम अन्य लोगों के हमारे बारे में विचार के बारे में चितिंत हैं , तो वह अहंकार है |  यहां तक कि जब आप कुछ अच्छा कर रहे हैं,  तो भी कुछ लोग उसमे दोष निकालेंगे |  उसी तरह कई लोग प्रशंसा करने के लिए भी होंगे चाहे वह व्यक्ति भ्रष्ट क्यों न हो|  इसलिए इसकी चिंता मत करे| यदि आप गलती करते हैं तो उसे स्वीकार करे | यह बुद्धिमानी है|  उसी तरह दूसरे लोग भी गलती कर सकते हैं| उनके माफी मांगने का इन्तज़ार मत करे | आप उन्हें माफ करे और आगे बढे|  यदि कोई गलती हो गयी हैं तो उसे भूल जायें| पूर्व की गलतियों के बारे में न सोचे और उसे गोंद की तरह चिपका के मत रखें|  यह कचरे के ढेर का मंथन करने की तरह हैं| आपको हर कीमत पर अपने मन को सुरक्षित रखना हैं|

यदि आप अपने मन को सुरक्षित रखते हैं , तो आप इच्छाओं और जरूरतों से मुक्त हो जायेंगे |  तब आप दूसरों को आशीर्वाद दे  सकते हैं, तो उनकी जरूरते पूरी हो जाती हैं|  इसलिए लोग घर के बड़ो से आशीर्वाद लेते हैं|  जैसे आप बड़े होते हैं तो आप और संतुष्ट हो जाते हैं | परन्तु यह बात हर समय नहीं रहती | जैसे लोग बड़े होते हैं , वे चिंताओ और इच्छाओं को इकट्ठा कर लेते हैं |  जब आप चिंताओ और इच्छाओं से मुक्त रहते हैं तो आप में आशीर्वाद देने की क्षमता प्राप्त हो जाती है|  किसी न किसी समय पर आपको यह कहना होता है, 'मैं संतुष्ट हूं.' | यह  शक्ति आध्यात्म से ही आती है| जब आपको यह अनुभव हो जाता हैं कि आप कौन हैं तो  आपकी सारी आवश्यकताये  पूरी हो जाती हैं | आपका सबसे बड़ा दुश्मन आपका मन है, इसलिए मन को शांत रखने के लिए हम इतनी सारी चीजे करते हैं | आशीर्वाद लीजिए और खुश रहें|
बहुत से लोगों को सुदर्शन क्रिया से लाभ हुआ है और बहुत से लोग इसके लाभ का इंतज़ार कर रहे हैं।
ऐसा संकल्प लें कि जो आनंद आपको मिला, वो सारे विश्व को भी मिले।

प्रश्न: मैं अपनी पत्नी या गुरु किसकी सुनु ?
श्री श्री: यह फँसने वाला सवाल है, लेकिन मैं फँसने वाला नहीं हूँ! (हंसते हुए)  यदि आपकी पत्नी कुछ कहेगी तो आप कहेंगे कि मुझे अपने गुरु से पूँछने दो और यदि आपके गुरु कुछ कहेंगे तो आप कहेंगे कि " मेरी पत्नी इससे सहमत नहीं हैं " |  अंत में आप वही करोगे जो आप करना चाहते हैं| आदमी के साथ ऐसा हमेशा होता आया है ! इसलिए मैं कहता हूँ कि  "चुनाव आपका है, और मेरा आशीर्वाद है"!

प्रश्न:  कभी कभी सेवा करते समय मैं थक जाता हूँ और निराश हो जाता हूँ |
श्री श्री: यह हो सकता है |  जब आप गतिविधि में हैं, तो  शरीर में थकान हो सकती हैं और  ऊर्जा का स्तर नीचे जा सकता हैं | कभी कभी यह समय के प्रभाव से भी होता हैं |  हालांकि, हमें सिर्फ इसे जारी रखना हैं और रूकना नहीं हैं | थोडा प्राणायाम और ध्यान  आपकी  ऊर्जा के स्तर को बहाल कर आपको ताज़ा कर सकता है|  इसके लिए सत्संग बहुत महत्वपूर्ण हैं | जब हम सत्संग में बैठते हैं तो हम उत्साहित हो जाते हैं और नई ऊर्जा के साथ सेवा कर सकते हैं|

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लोग कहते हैं ईश्वर दिखाई नहीं देता, हम कहते हैं ईश्वर के बगैर कुछ और दिखाई नहीं देता।

पंजाब , भारत १२, नवम्बर २०१०

(पंजाब को नशे से मुक्त कराने के लिए और कन्या भ्रूण हत्या को खत्म करने के लिए मौजूद लगभग ३०,००० लोगों ने शपथ ली)
गुरुओं की नगरी मे आकर हम धन्य महसूस कर रहे हैं। सिख परंपरा के १० गुरुओं ने मानवता के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया, और अपना जीवन बलिदान दिया। श्री गुरु नानक देव जी से श्री गुरु गोबिंद सिंग जी तक सब गुरुओं की कृपा इस पवित्र धरती पर चौबिस घंटे बरस रही है। कीर्तन करके हम उस पुरानी परंपरा को नमन करते हैं| प्रेम की आवाज़ को दृढ़/बुलंद करना आज अत्यंत महत्वपूर्ण है| जिनका दिल साफ़ है और जिनमें जोश है वही इसे कर सकते हैं। पंजाब पूरे भारत की भूमि का चेहरा है। लेकिन यह पवित्र भूमि नशीली दवाओं की लत/कैद और कन्या भ्रूण हत्या जैसी बुराइयों से पीड़ित है| इसे देखकर मेरे मन में यह संकल्प उठा कि पंजाब को नशीली दवाओं की लत/कैद से मुक्त कराना चाहिए। इसलिए सारे बच्चे, बुजुर्ग, और सब लोग व्यसनों से मुक्त हो जाये, और मन ईश्वर की ओर लगे - ऐसी कामना करनी है। मन की शान्ति और वास्तविक नशा परमात्मा में ही मिलता है। एक और महत्वपूर्ण मुद्दा जिसे प्रकाश में लाना है - देशी बीजो को बचाना। कितने लोग शरीर के दर्द से पीड़ित है?(बहुत से लोगो ने हाथ उठाये) यह आहार में कीटनाशक सामग्री(Pesticide content) के उपयोग को ग्रहण करने से होता है| इसका उपाय स्थानीय बीजों का संरक्षण और जैविक कृषि को अपनाना है|
युवाओं को धर्म के वास्तविक सार के बारे मे जागृत करने की आवश्यकता है| हम कहीं आध्यात्मिकता या धर्म के वास्तविक विश्राम और सुखद पहलू को प्रस्तुत करने में असफल रहे हैं| यदि जड़ खराब हो जाए तो पेड़ मुर्झाने लगता है। हमे अपनी बुनियाद और परंपरा को सम्मान देने की ज़रुरत है|

जापानियों से टीम में काम करने की भावना, जर्मन लोगो से यथार्थता, अंग्रेजो से शिष्टाचार और अमरीकीयों से विपणन(Marketing) सीखने की जरूरत है| अमरीकी अमावस्या के दिन भी चाँद बेच सकते हैं! भारत मानवीय मूल्यों के लिए और मानवता के लिए है| प्रेम क्या है - यह केवल हिन्दोस्तान ही दुनिया को बता सकता है।

प्रेम भाषा से परे है| जब दिल को मार्ग मिल जाता है तो, भाषा की कोई बाधा नहीं रह जाती| परन्तु इसे महसूस करने के लिए मैं अप्रसन्न/दुखी हूँ यह बोर्ड दिल से हटाना है। हम इस लेबल को अपने ऊपर लाद लेते हैं और प्रोत्साहित करते रहते हैं| और हम ऐसा क्यों करते हैं? तनाव और उसके कारण पैदा होने वाले संघर्ष के कारण। हमें हर घर को तनाव से मुक्त करने के लिए कार्य करना होगा | परन्तु इसके पहले हमारे मन में जो द्वन्द चल रहा हैं, हमें उससे मुक्त होना होगा| यह आत्म ज्ञान है| जब तनाव होता है तो हम क्रोधित हो जाते हैं और खुद भी दुखी होते हैं और दूसरों को भी दुःख देते हैं| तनाव को जड़ो से निकालने के लिए हमें निरंतर कुछ समय ध्यान करना चाहिए| जब आप कीर्तन को सुनने के लिए बैठते हैं तो उसमे डूब जाये| पर अगर कीर्तन के दौरान भी मन भागता है तो प्राणायाम, योग और ध्यान इससे निकलने में सहायक हैं|

हिंसा मुक्त समाज, रोग मुक्त शरीर, कंपन मुक्त श्वास, भ्रम मुक्त मन, निषेध मुक्त बुद्धि, आघात मुक्त स्मृति, दुख मुक्त आत्मा, और अहंकार जिसमे यह सबकुछ सम्मलित हो, इस गृह के सभी लोगो का जन्मसिद्ध अधिकार है| हमें सदियों से ज्ञान उपलब्ध है और हमे इसके लिए शुक्र गुज़ार होना है। परन्तु दुःख कि बात यह है कि हम अपनी परंपरा को ही नहीं जानते| तामिलनाडु में दस गुरुओं के बलिदान के बारे में कोइ नहीं जानता। बच्चों ने केवल गुरु नानक देव और गुरु गोबिंद सिंह का नाम स्कूलो के पाठ्यक्रम में पढ़ा है। उसी तरह, यहाँ कोई नहीं जानता कि तमिलनाडु में 63 महान संत थे | पांच साल पहले, हमने दस गुरुओं के बारे में एक प्रदर्शनी आयोजित करी, जिससे लोगो में सजगता आई| . हमारी विरासत क्या है? हमारी जड़ें/ बुनियाद क्या हैं? आत्म ज्ञान हमारी प्राचीन परंपरा का आधार है| विज्ञान का आधार आध्यात्म है, जो प्राचीन ग्रंथों का ज्ञान है|

समाज मे आने वाले पीढ़ी के लिए हम कैसा समाज छोड़ना चाहते हैं? यदि हम उन्हें हमसे बेहतर समाज नहीं देते हैं, तो हम अपनी ज़िम्मेदारी से चूक रहे हैं| सत्श्रीकाल, उस ईश्वर रूपी सत्य का सम्मान करना जो समय से परे है और भीतर के अनमोल भंडार का सम्मान करना, एक विशेष अभिनंदन है| जब आप भीतरी आनंद को पहचानते हैं तो सांसारिक समृद्धि अपने आप आती है| आंतरिक समृद्धि तो है ही, लेकिन उस खजाने को पहचानना हैं| '' की ध्वनि - वैज्ञानिकों ने पाया है कि पृथ्वी की घूमने की आवृत्ति (Frequency) और ' ओम् ' की आवृत्ति समान है| दोनों आवृत्तियों के लिए जो ग्राफ बनाये गये वे समान थे | इसलिए जब भी हम ओम् का उच्चारण करते हैं तो वह पृथ्वी की प्राकृतिक आवृत्ति से मेल खाता है।

कुछ दिन पहले एक चिकित्सक ने अपना अनुभव बाँटा| वे स्वयं इतनी सारी दवाईयाँ ले रहे थे, लेकिन कुछ भी ठीक नहीं हो रहा था | फिर उन्होंने एकदम से ओम् की ध्वानि वाला गीत गाना शुरु किया और वे ऐसा एक घंटे के लिए रोज़ करने लगे| वे कहते हैं कि मुझे आश्चर्य है कि मेरी समस्याएं कैसे दूर होती चली गई। उन्होंने ओम् ' शब्द के प्रयोग से संगीत चिकित्सा को भी शुरू कर दिया| हमारे प्राचीन ऋषियों द्वारा भी यही कहा गया है | महर्षि पातंजलि ने कहा है कि अगर आप दुख से छुटकारा पाना चाहते हैं, तो उस दिव्य सिद्धांत/ईश्वर को याद करें जो परमानन्द है| 'जपजी साहिब' की शुरूआत - ओंकार से होती हैं ,वह एक ओंकार | ईश्वर के स्मरण से सारे दुःख समाप्त हो जाते हैं ,सारे संदेह समाप्त हो जाते है, और आप स्वास्थ्य के सिद्धांत को पाते हैं| इसलिए बौद्ध धर्म, जैन धर्म, सिख धर्म और हिंदू धर्म में, ' ओम् ' को एक विशेष स्थान प्राप्त है| दाओइज़म और शिन्तोइस्म में भी ऐसा ही है| इस्लाम और ईसाई धर्म में भी हम ' ओम् ' की एक झलक अमीन में देखते हैं|
अब हम तीन बार ' ओम् ' का उच्चारण करेंगे , और दिव्य कीर्तन का आनंद लेंगे।

अब हम थोड़ी देर ध्यान करते हैं।
(16 मिनट का आनंदित ध्यान दो मिनिट की छोटी अवधि में ही निकल गया)

अब आपको को कैसा लग रहा हैं? आप में से कितने लोगो का शरीर का दर्द ठीक हो गया
(दर्शकों में से कई लोगों ने अपने हाथ उठाये )

जब हम तृप्त होते हैं और हम अपनी ज़रुरतों के पीछे नहीं भागते तो हम में आशिर्वाद देने की क्षमता आ जाती है, और हमें इस तृप्ति को पाने के कौशल को सीखना है। ऐसी तृप्ति केवल ध्यान करने से ही आ सकती है। हमारी यह सुन्दर परंपरा है कि हर उत्सव और त्यौहार में हम बड़ों का आशीर्वाद लेते हैं। यह बहुत ही वैज्ञानिक है। कायदे से बड़ों मे आशीर्वाद देने की क्षमता होनी चाहिए| परन्तु आज यह कही गुम गया है | तृप्ति महसूस करने के लिए बुजुर्ग होने तक इंतजार करने की आवश्यकता नहीं हैं| मन में तृप्ति अभी विकसित होनी चाहिए| अपना कार्य करते रहे और तृप्ति महसूस करें। जीवन में कभी तो इस स्तर तक पहुँचना चाहिए कि, "मैं तृप्त हूँ" संतोष के बिना, आप के भीतर वह शक्ति नहीं जग सकती| कई लोग जिन्होंने ब्लेसिंग (आशीर्वाद) कोर्स किया है, उन्होंने अनुभव किया है कि वे जब भी दूसरों के लिए कुछ अच्छी इच्छा करते हैं तो वह पूरी हो जाती है| आप में से कितनो ने यह अनुभव किया है? (कई लोगो ने अपने हाथ उठाये)। अपने जीवन को उत्सव और आनंद के साथ बिताएं और साधना, सेवा और सत्संग करते रहे|

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आज है बैगलोर आश्रम की तीस्वीं सालगिरह!

१३ नवंबर २०१०

आश्रम एक ऐसी जगह होती है जहां श्रम ना हो। प्रमाद के रहते तुम बिना श्रम के नहीं रह सकते हो! मन शांत हो और दिव्य शक्ति तुम्हारे भीतर संचरित होती रहे तो वहां श्रम नहीं होता। ऐसा कब होता है? जब तुम अपने साथ और अपने वातावरण के साथ सामंजस्य का अनुभव करते हो। और, आश्रम का यही महत्व है - यह तुम्हारा घर है। यहां तुम अपने साथ और अपने वातावरण के साथ सामंजस्य का अनुभव कर सकते हो।

आज आश्रम की तीस्वीं सालगिरह है। पहले ये बंजर भूमि थी। यहां पत्थरों के सिवा कुछ नहीं था। देखो, इतने सालों में यह जगह कितनी सुंदर हो गई है! इतने सारे हरे भरे पेड़, जीव-जंतु, चिड़ियां, ध्यान करने के सभा कक्ष - यह सब इसलिये संभव हुआ है क्योंकि हम सब यहां मिलकर ध्यान, सत्संग और सेवा करते आये हैं।
हमारे वातावरण और मन पर संगीत और भजन का बहुत प्रभाव पड़ता है।

जब तुम्हें सत्य का अनुभव हो जाता है तो या तो तुम्हारे लिये आश्रम का महत्व घट जाता है, या फिर सभी स्थान तुम्हारे लिये आश्रम ही बन जाते हैं। पर ऐसा होने तक तुम्हारे लिये आश्रम का बहुत महत्व है। आश्रम का वातावरण, यहां की ऊर्जा तुम्हारे लिये उपयोगी है। तो, आश्रम की इस तीस्वीं सालगिरह पर, इसे अपना घर जानो, और अपने भीतर शांति और सामंजस्य का अनुभव करो। तुम जहां भी हो, उस स्थान को आश्रम बना दो। हर घर आश्रम बन जाये, हम सब ऐसी कामना करें!




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रोज़मर्रा की भागदौड़ में हम ये भूल जाते हैं कि दिव्यता हमारे भीतर ही है

धनतेरस के बहुत से अर्थ हैं। जीवन में हर तरह की समृद्धि होनी चाहिए। आमतौर पर पैसे को समृद्धि के साथ जोड़ा जाता है। भीतरी तृप्ति ही सही समृद्धि है। हवा, पानी और भूमि भी समृद्धि है। समय का सही उपयोग भी बहुत आवश्यक है। ज्ञान में समृद्धि है, और उसका रस हमारी चेतना होना चाहिए। जो भी हमारी पास है, हम जहाँ भी बांट सके हमें बाँटना चाहिए। हमे कुछ ना कुछ दान अवश्य करना चाहिए।

आज यहां विद्वान पंडितों ने यज्ञ और वेदिक अनुष्ठान किए हैं। ईश्वर के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना ही पूजा है। आठ साल पहले हमने यहाँ यज्ञ किया था। उसके बाद से यहाँ कभी सूखा नहीं पड़ा। पहले यहाँ हर जगह बंजर भूमि होती थी पर आज यहाँ चारों तरफ़ हरियाली है। हम लक्ष्मी देवी के प्रति कृतज्ञ हों और उनकी कृपादृष्टि हम पर यूं ही बनी रहे।

दिव्य प्रेम कहीं दूर नहीं है, वो अभी यहीं है मेरे करीब। अगर हम में यह विश्वास है तो हम कभी भी दिव्य प्रेम से अलग नहीं महसूस करते। मैं आपको यही कहने आया हूँ कि आप ईश्वर से कभी दूर नहीं हो सकते। अगर आप में आज यह विश्वास जग जाता है तो मैं सोचूंगा मेरा काम हो गया।

देवी और देवता ईश्वर के विभिन्न अंग हैं। उनके लिए श्रद्धा से हम अपने सूक्ष्म स्वरूप में विश्राम करते हैं। क्या मिठाई केवल एक ही तरह की होती है? तो फिर का एक ही रूप क्यों हो! कल यहाँ 5600 तरह के व्यंजन परोसे गये थे। 35, 000 बच्चों ने इतने व्यंजन कभी देखे भी नहीं थे, कल यहाँ सब चखे।

दो साल पहले १२00 सितार वादकों का ब्रह्म नाद हुआ था। लोगों ने कहा यह संभव ही नहीं है। असंभव को संभव बनाना ही हमारा काम है, और फ़िर गुजरात की टीम ने अन्न ब्रह्म के इस कार्यकम को सामने रखा।
यह सब लक्ष्मी देवी का ही एक रूप है।

आठ प्रकार की समृद्धि  हर किसी के जीवन में आती है। हम लक्ष्मी माँ के आशीर्वाद को आज जीवन में पुनः ग्रहण करें। बस इतना जान लो कि जो भी तुम्हें चाहिए वो तुम्हे मिलेगा।

भगवान कृष्ण ने कहा सब धर्म छोड़ दो और मुझ में विश्राम करो। मैं तुम्हे हर पाप से मुक्त करा दूँगा। पर हम उल्टा ही करते हैं। हम धर्म से चिपके रहते हैं कि हमें पापों से मुक्ति मिले। रोज़मर्रा की भागदौड़ में हम भूल जाते हैं कि दिव्यता हमारे भीतर ही है।

आज यह संकल्प लेते हैं कि इसे नहीं भूलेंगे कि दिव्य संगीत हमारे भीतर है। मैं और मेरा परिवार यह संकल्प लेते हैं कि पूरे विश्व में लोग खुश रहें और मैं इस मे योगदान दे सकूँ।

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पूरा जीवन उतसव है

मनुष्य का स्वभाव है। प्रेम के भाव की एक श्रेष्ठ झलक पेड़ का बीज बोने में है।

फ़िर हमे हमारे आसपास के लोगों का ध्यान रखना है। महिलाओं को पकाते समय एक मुठ्ठी

आहार निकाल लेना चाहिए और हफ़्ते यां महिने में किसी गरीब को खिलाना चाहिए। ऐसा कहा

जाता है कि २00 - ३00 साल पहले तक भारत में एक भी गरीब यां भूखा व्यक्ति नहीं था।

हमारा देश इतना पूर्ण और स्मृद्ध हुआ करता था।

एक भार फ़िर हमे अपने देश को उसी मुकाम पर लेकर जाना है।

आनंद के बिना जीवन,

दया के बिना दिल,

कल्पना के बिना मन,

और भीतर की आवाज़ सुनने में अस्मर्थ बुद्धि किसी भी काम की नहीं।

पूरा जीवन उतसव है। उत्सव तब होता है जब सब इकट्ठा होते हैं। और बिना उतसव के समाज

किसी काम का नहीं।

गुजरात पूर्ण उत्सव है। जितना नृत्य यहाँ होता है, शायद ही किसी और जगह हो। नवरात्रि

के दौरान पूरा गुजरात नाच उठता है। अब दीवाली का त्यौहार है।


एक दूसरे से गले मिलते हुए, गाते हुए और दीया जलाते हुए हम दीवाली मनाते हैं। जीवन में

केवल एक दीये से नहीं बात बनेगी। हर क्षेत्र में दीये जला कर रोशनी डालते हुए उत्सव

मनाते हैं। आध्यात्मिक, सामाजिक, आर्थिक और सभी क्षेत्रों में रोशनी जगमगाती रहे -

यही दीवाली का संदेश है। रोज़मर्रा के व्यव्हार में किसी से कुछ मन मुटाव यां बात हो जाती

है और हम खुद को भी और औरों को भी दुखी कर देते हैं। मगर कब तक झेलते रहेंगे, वो सब

कुछ छोड़ देना चाहिए। एक नई शुरुआत - इसीलिए गुजरात में दीवाली के तुरंत बाद नया साल

शुरु हो जाता है। नए साल का भी शुभकामाना है - हम सबके जीवन में आध्यात्मिक रोशनी

जलती रहे, देश प्रेम का आग प्रज्वलित रहे और खुशियों की लहर उठती रहे। इसी कामना के

साथ मैं आप सबको बधाई देता हूँ - दीवाली स्वर्णिम गुजरात के साथ।

भारत सात क्षेत्रों में अपने योगदान के लिए प्रसिद्ध है| पहला, वस्त्रों मे विविधता, फिर

व्यंजनों की विशाल विविधता, इस के बाद आते हैं नृत्य और संगीत - भारत इन में भी

प्रसिद्धि हासिल कर रहा है| इस के बाद आते है - पर्यटन–प्रवास उद्योग, और IT उद्योग,

(सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग) | आध्यात्मिक ज्ञान के क्षेत्र में तो भारत का नाम सदैव रहा

ही है -

इस तरह भारत ने इन सभी सात क्षेत्रों में अपनी विशेष पहचान बना ली है|


हमे इसे और लोकप्रिय बनाना है, यह आज अत्यंत महत्वपूर्ण है, इन बांतो को विश्व की

विरासत द्वारा और अधिक पहचान और मान्यता प्राप्त हो, इसके लिए हमे और काम करना

है।

आज का विषय भोजन हैं : अन्न ब्रह्म: - हमारे सारे उपनिषद मे कहा गया हैं कि भोजन

ब्रह्म हैं , इसलिए हर किसी को उसका आदर करना चाहिए | जैसे वे कहते हैं कि "जैसा अन्न

वैसा मन" – आपका मन वही होता हैं जो आपका अन्न/भोजन होता हैं | शुद्ध शाकाहारी भोजन

आपके मन को परिपूर्ण, बुद्धि को तीव्र और शरीर को चुस्त रखता हैं | इसलिए आइनस्टाइन

जैसे कई वैज्ञानिक शाकाहारी रहे|

भोजन की विशाल विविधता जो भारत में है, हम उसके बारे मे सजग भी नहीं हैं | त्रिपुरा

से कन्याकुमारी और केरल से कश्मीर तक जो भी व्यंजन लोग खाते हैं वो सब आज यहाँ

उपलब्ध हैं|

हम भोजन से पहले प्रार्थना करते हैं! भोजन को सम्मान करने का अर्थ किसान का सम्मान

करना है, हमें

यहीं से विचारों का चक्र शुरु होता है | यह हमारी सुंदर परंपरा है जिसके पीछे गहरा विज्ञान

छुपा हुआ हैं |

इसी की साथ हम सब नाचते, गाते और ध्यान करते हुए दीवाली का त्यौहार मनाते हैं।





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मेरे जीवन में ज्ञान का प्रकाश सदैव रहे

बैगलोर आश्रम, भारत

यह शुक्ल पक्ष का समय ईश्वर आराधना के लिये विशेष रहा है। हम प्रति दिन पूजा करते हैं। आज अंतिम दिन है और शरद पूर्णिमा भी है। हर पूर्णिमा की तिथि का एक विशेष ऐतिहासिक महत्व है।
वैशाख मास (अप्रैल/मई) में आने वाली बुद्ध पूर्णिमा, गौतम बुद्ध के जन्म, आत्मज्ञान पाने और महासमाधि की तिथि है। आषाण पूर्णिमा, महर्षि वेद व्यास को समर्पित है। व्यास जी भौतिक  और आध्यात्मिक, दोनों ही विषयों के महाज्ञानी थे। वे जगत को भी जानते थे और आत्मा को भी। वेद व्यास जी ने सभी प्रकार के ज्ञान को सुव्यवस्थित  किया।
पिछली पूर्णिमा अनंत को समर्पित थी। अनंतता का उत्सव - कोई दीवार नहीं, कोई आदि या अंत नहीं।
यह पूर्णिमा, शरद पूर्णिमा है - सबसे उज्ज्वल, कोई दाग नहीं, ये लंबी भी चलती है, पूर्ण चन्द्र का उत्सव। हज़ारों साल पहले भगवान श्री कृष्णः ने इसी शरद पूर्णिमा के अवसर पर गोपियों के साथ नृत्य (रास) किया था। गोपियों के भक्ति का आचार्य कहा गया है। शरद पूर्णिमा नृत्य और उत्सव के लिये जाना जाता है। सभी भक्त भगवान श्री कृष्णः के साथ नृत्य करना चाहते थे। नाचते हुये सभी ने उन्हें अपने साथ ही पाया। शरद पूर्णिमा का चन्द्रमा, सौंदर्य का भी प्रतीक है। आकाश साफ़ है, और बड़ा सा पूर्ण चन्द्र चमकता है। हमारा मन भी चन्द्रमा से संबंध रखता है। जब चन्द्रमा पूर्ण हो तो मन भी पूर्ण होता है। इस दिन ऊर्जा बहुत अधिक होती है, और उत्सव से ये और अधिक हो जाती है। परंतु, इस ऊर्जा का सही प्रयोग आवश्यक है।
हर पूर्णिमा पर हम उत्सव का कोई ना कोई प्रयोजन ढूंढ लेते हैं। आध्यात्मिक उत्सव। यह शुक्ल पक्ष एक दैवी समय था। हमने पूजा और यज्ञ किये। पूजा क्या है? जो ईश्वर हमारे लिये करते हैं, उसी का अनुकरण करना, पूजा है। भगवान सूर्य और चन्द्र को हमारे चारों तरफ़ घुमाते हैं, हमें बारिश, फल-फूल, इत्यादि देते हैं, तो हम भी इस ईश्वरीय प्रेम की अभिव्यक्ति का अनुकरण करते हैं। पूजा, अपनी कृतज्ञता और सम्मान दर्शाने का सब से स्वाभाविक तरीका है। हम पूजा में बिताये गये इस शुक्ल पक्ष के सुंदर समय की पूर्णाहुति, हृदय के उमड़ते आनंद के साथ इस संकल्प से करें कि, ‘मेरे जीवन में प्रकाश रहे और मेरे आस पास ज्ञान हमेशा रहे। मैं जीवन के प्रकश को अपने भीतर ग्रहण करूं। मैं प्रेम और ज्ञान को स्वीकार करूं।’

दिव्य शक्ति हर जगह है, जैसे कि हवा हर जगह है। पर, पंखे के पास हवा का विशेष अनुभव होता है। उसी तरह, दिव्य शक्ति हर जगह है, पर पंखे के पास उसका विशेष अनुभव होता है। ज्ञान, यज्ञ और गुरु उस पंखे की तरह हैं, जिस के पास आने पर उस दिव्य शक्ति का विशेष अनुभव होता है।

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