"जीवन प्रतिबद्धता से चलता है, ना कि सिर्फ़ भावनाओं से"


प्रश्न : जो कुछ भी आज तक मैने आप से पाया है, उसके लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद। मुझे पता है कि आप चौबीस घंटे उपलब्ध है! मदद मांगने में शर्म आ रही है। जब किसी के परिवार में किसी का देहान्त हो जाये तो आप उस व्यक्ति की मदद कैसे कर सकते हैं कि वो शांति से जी सके और आप भी शांति की अनुभूति करें? धन्यवाद गुरुजी।

श्री श्री :
किसी के प्रियजन का देहान्त हुआ है और आप सांतवना देना चाहते है तो मौन रहें। ज़्यादा शब्दों का यहां कोई अर्थ नहीं होता। कोई दुखी है तो आप उनके साथ रहें। अपने दिल में शांति की अनुभूति करें। आप शांत होंगे तो वो भी शांति महसूस करेंगे, आराम महसूस करेंगे। जब आप शांत होते हैं तो आपसे शांति प्रसारित होती है, और उससे वे भी भीतर की शांति महसूस करेंगे। आपको ये कहने की ज़रूरत नहीं है, "ओह! बेचारा। ये तुम्हारे साथ क्या हो गया! ऐसा नहीं होना चाहिये था।" ऐसी बातें करने से ना आपको मदद मिलेगी ना ही उनको। आप सिर्फ़ उनके साथ रहें और कहें, "ईश्वर आपको शक्ति देंगे"। आप को इतना ही करना चाहिये। या जो व्यक्ति गुज़र गया है, उसका नाम लेकर कहें कि वो आपको शक्ति देगा इस मुश्किल समय से गुज़रने के लिये। एक दो शब्द कहना काफ़ी है। ज़्यादा बात ना करें, सिर्फ़ उनके साथ रहें। आपका कुछ क्षण का साथ उनकी मदद करेगा। ठीक है?

प्रश्न : हम दुनिया को कैसे सिखा सकते हैं कि दुनिया में सबके लिये बहुत भोजन है, बहुत प्यार है? हमें कमी के भय के कारण लालची नहीं होना चाहिये।

श्री श्री :
इसके लिये हमें आध्यात्म को फैलाना होगा। लोगों को आध्यात्म का महत्व मह्सूस कराना होगा। लोगों को ध्यान करना होगा। सिर्फ़ ध्यान से ही वो भीतर की अमीरी, भीतर की पूर्णता जान पायेंगे। आप जो भी भीतर महसूस करते हैं वही बाहर आता है। अगर आपके भीतर भय है तो आप बाहर भी भयभीत दिखेंगे। अपने भीतर कमी, गरीबी महसूस करेंगे तो बाहर भी वही पायेंगे। प्रचुरता का अहसास भीतर से लाना है। इसके लिये ध्यान करना होगा।

प्रश्न : जब गुरु पर संदेह हो तो क्या करें? इस संदेह से ऊपर कैसे उठें? संदेह को जगने से रोकें कैसे?

श्री श्री :
आपको पता है कि आपका संदेह हमेशा अच्छी बात पर होता है? आप सच पर संदेह करते हो, झूठ पर कभी संदेह नहीं करते। आप खुशी पर संदेह करते हैं, अवसाद(depression) पर नहीं। अगर आप अवसाद में हो, और आपसे कोई पूछे, "क्या आप अवसाद में हो?" आपको विश्वास होता है कि आप दुखी हो। आप ये नहीं कहते, "शायद।" जब आप खुश होते हैं तो कहते हैं, "मुझे पक्का पता नहीं है कि मैं खुश हूं या नहीं।" हम प्रेम पर संदेह करते हैं। जब कोई कहता है, "मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं।" तो आप कहते हैं, "सच?" अगर कोई कहे, "मैं तुमसे नफ़रत करता हूं।" आप कभी नहीं पूछते, "सच?" हमारा संदेह हमेशा किसी सकरात्मक बात पर होता है। संदेह तो आते हैं, जाते हैं। और संदेह करो। मैं नहीं कहूंगा कि संदेह मत करो। जितना ज़्यादा हो सके, संदेह करो। मैं आपको बताता हूं, संदेह अपने आप छूट जाता है। संदेह टिक नहीं सकता। एक गुरु तो शिष्य को संदेह करने के लिये प्रोत्साहित करेगा। गुरु संदेह को नहीं मिटायेगा। गुरु का काम है संदेह को बढ़ाना ताकि आप खूब पक जाओ और एकदम ठोस हो जाओ। क्योंकि, आज नहीं तो कल आपको संदेह होगा ही। तो बेहतर है कि आज ही संदेह कर लो। जितना हो सके संदेह करो। एक ही संदेह बार बार नहीं आता। अलग अलग संदेह उठते हैं। जब संदेह आये तो उससे कतराओ नहीं। उसके साथ रहो। एक समय आयेगा जब आप बिलकुल ठोस हो जाओगे। इससे आप पहले से ज़्यादा मज़बूत, शक्तिवान, केन्द्रित और ज़िम्मेदार बनोगे। मैं कहूंगा, गुरु के बारे में संदेह हुआ है, आने दो। उस संदेह के साथ पको। संदेह एक ऐसा ईधन है जो मन को पका सकता है। आप देखोगे कि आप संदेह से ज़्यादा ताकतवर हो। आपका विश्वास, आपका सौंदर्य, आपका सच, किसी भी संदेह से सौ गुना ज़्यादा शक्तिशाली है। विश्वास सूरज के समान है। संदेह बादल के समान है। कितने भी बादल हों, सूरज को ज़्यादा देर तक नहीं ढक सकते। संदेह के बादल आते हैं, जाते हैं। हां, किसी किसी दिन बादल ज़्यादा देर रह सकते हैं। उसे रहने दो। अंततः सूरज फिर चमकेगा।

प्रश्न : गुरुजी, मुझे नई नौकरी मिली है, जिससे कि मुझे आर्थिक और सामाजिक प्रतिष्ठा मिली है। ये अच्छा है। काम का वातावरण प्रदूषित है। मेरे साथ काम करने वाले भी मुझ में अवसाद और झूठ का ज़हर घोलते हैं। फिर भी मैं अपने काम को सौ प्रतिशत करता हूं और एक अच्छी मिसाल देता हूं। पर मुझे लगता है कि ये स्थिति मेरे लिये अच्छी नहीं है। आप क्या सुझाव देंगे?

श्री श्री :
ऐसी स्थिति में तुम अपने आप को रेगिस्तान में एक छोटे जल के स्रोत की तरह जानो। सोचो, अगर रेगिस्तान से वो भी गायब हो जाये तो लोग कैसे जियेंगे? तुम्हारा वहां होना लोगों पर एक अच्छा प्रभाव डालता है। ऐसे ही अच्छा प्रभाव डालते रहो और देखो कि उसी माहौल में क्या तुम अपने जैसे एक, दो, तीन या चार व्यक्ति बना सकते हो। माहौल बदल सकता है। तुम में वो शक्ति है कि तुम अपने माहौल को बदल सकते हो।
व्यवसायिक माहौल से आये तुम्हारे जैसे लोगों की मांग पर हमने एक कोर्स बनाया है। इसे हम APEX कोर्स कहते हैं। वर्ल्ड बैंक और कई और संस्थान इसे कर रहे हैं और उपयोगी पा रहे हैं।

प्रश्न : गुरुजी, मुझे ऐसा लगने लगा है कि अब आपके पास आना मेरे लिये एक अह्म की बात हो गया है। मैं आपके पास इस आशा से आने लगा हूं कि आप मुझसे कुछ कहेंगे, मुझ पर ध्यान देंगे, ना कि इसलिये कि मैं आपसे गहरा प्रेम करता हूं, या आपका शुक्रगुज़ार हूं। मैं पहले जैसे प्रेम और शुक्राने का भाव चाहता हूं। मै उसी भाव से आपकी सेवा करना चाहता हूं।

श्री श्री :
तुम्हें पता है, भावनायें तो बादलों जैसी होती हैं! सागर की सतह पर लहरों की तरह भावनायें उठती हैं, आती हैं, जाती हैं। ये बदलती हैं। हमें अपनी भावनाओं के आधार पर ज़्यादा नहीं रहना चाहिये। क्या तुम समझ रहे हो? जीवन committment से चलता है, ना कि सिर्फ़ भावनाओं से। प्रेम एक उपहार है। तुम किसी को प्रेम मह्सूस करने के लिये बाध्य नहीं कर सकते। तुम प्रेम में डूबना चाहते हो, यह इच्छा ही प्रेम में डूबनें में रुकावट डालती है। विश्राम करो। भक्ति-सूत्र में इस बारे में मैने बताया है। जब तुम प्रेम चाहते हो, यह इच्छा ही प्रेम के प्रागट्य में देरी का कारण बनती है। प्रेम महसूस करने का प्रयत्न छोड़ दो, विश्राम करो। तुम पाओगे कि तुम्हारा स्वरूप ही प्रेम है। प्रेम तो हमेशा है। प्रेम प्रकट होगा जब उसके प्रकट होने की आवश्यक्ता होगी। जैसे सूरज हर समय चमकता है, पर अपने समय से ही हमारे लिये दिन में प्रकट होता है।
सूरज चौबीसों घंटे है, पर हर समय हमें दिखता नहीं है। किसी अन्य स्थान पर तो वो है!
वैसे ही, जीवन की सभी सुन्दर भावनायें तुम्हारे पास हमेशा हैं, पर तुम उन्हें ज़बरदस्ती प्रकट नहीं कर सकते। वो जीवन में अलग अलग समय में प्रकट होती रहती हैं। इसलिये तुम विश्राम करो, और सहज रूप में जब वो सुन्दर भावनायें आये तो आने दो।

प्रश्न : कभी कभी मुझे बहुत गुस्सा आता है, जैसे कोई भूत मेरे अंदर घुस गया हो। मैं इस गुस्से से कैसे छुटकारा पाऊं?

श्री श्री :
अंदर कोई भूत नहीं है! ना। अगर कोई तुमसे ऐसा कहता है, तो उसकी बात ना सुनो। समझे? तुम पवित्र प्रकाश हो। प्रकाश से तुम्हारा जन्म हुआ है। तुम्हे सिर्फ़ जागने की ज़रूरत है। थोड़ा और मौन, थोड़ा और ध्यान...। शरीर और मन में हो रहे स्पंदन के प्रति जागरूक हो जाओ। हां? ऐसे ही, गुस्से की एक लहर आती है, फिर शांत हो जाती है। थोड़ा समय लगेगा फिर गुस्से की लहर उठेगी ही नहीं। जैसे जैसे वैराग्य बढे़गा, हम केन्द्रित होंगे, वैसे वैसे गुस्सा कम होता जायेगा।
गुस्से का कारण है उत्तमता की चाह। उत्तमता की इच्छा ही क्रोध का कारण है। इच्छा हमारे में क्रोध लाती है। जब तुम दृष्टा हो कर ये देखते हो, इच्छा शांत हो जाती है। तुम अंदर से लचीले हो जाते हो। तुम अंदर से खिल जाते हो। तुम पाओगे कि बहुत कम स्थितियां ऐसी आयेंगी कि तुम्हें गुस्सा आये। कभी कभी गुस्सा होने में कोई हर्ज नहीं है।

प्रश्न : मैं मनोरोग चिकित्सक बनना चाहता हूं। पर आध्यात्म में आने से मुझे अब यह लगता है कि पाश्चात्य मनोविग्यान पूर्ण नहीं है। मैं पूर्व और पश्चिम के मनोविग्यान का समन्वय कैसे कर सकता हूं?

श्री श्री :
हां, ज़रूर! तुम्हे ये करना चाहिये। पाश्चात्य मनोविज्ञान में व्यवहार का संबन्ध मन पर पडी़ छाप और मानसिक रसायनों के मुताबिक बताया जाता है। जबकि पूर्व का मनोविज्ञान चेतना का अध्ययन करता है। अगर तुम इन दोनों को ही पढ़ो तो अच्छा होगा। तुम पूर्व का मनोविज्ञान पढ़ो, फिर पश्चिम का मनोविज्ञान पढ़ना, ताकि तुम उन्हें समझा सको कि पूर्व का मनोविज्ञान क्या कहता है। क्योंकि, पूर्व का मनोविज्ञान कालांतर में परीक्षित हो चुका है। ये पुरातन है। दस हज़ार सालों से ये प्रयोग में लाया जा रहा है। ये काम तुम्हें बड़ा रुचिकर लगेगा। जैसे कि, अगर तुम प्रेम को ही लो, और जानों कि पूर्व और पश्चिम के मनोविज्ञान में प्रेम के बारे में क्या कहा है। ये बहुत रुचिकर है।

प्रश्न : प्रिय गुरुजी, वेद कितने पुराने हैं? क्या सभी वेद आज भी हमारे पास हैं? मैनें सुना है कि उस ज्ञान का कुछ हिस्सा लुप्त हो गया है।

श्री श्री :
तुम सही कह रहे हो! चार मुख्य वेद हैं। वेद का अर्थ है कविता, वो शब्द जो ऋषि मुनियों ने गहरे ध्यान की अवस्था में सुने। उन्होनें जो अनुभव किया अपने शिष्यों को शब्दों में बताया। ये शब्द सत्य के स्वरूप को दर्शाते हैं। इन्हें ब्रह्मांडीय चेतना से download किया गया है। उन दिनों में भी download करने की प्रकिया थी। ये प्रकिया है -- आंखे बन्द करो, ध्यान करो। ध्यान में जो तुम्हें ज्ञात हो, click कर के उसे download करो। Surfing! Surfing around and downloading. तो इस तरह वेदों को download किया गया। ऋषि का अर्थ है, जिसने देखा, या जिसने सुना। ऐसे एक हज़ार से भी अधिक ऋषि रहे। उन्होंने अपने आप नहीं लिखा। उन्होंने अपने शिष्यों को सुनाया, और शिष्यों ने कालांतर में अपने शिष्यों को सुनाया। बहुत लंबे समय तक ये ज्ञान ऐसे ही मौखिक रूप में प्रसारित होता रहा।
इसलिये इस ज्ञान का नाम हो गया श्रुति। मूलतः वेदों को चार भाग में बांटा गया। ऋगवेद में मूलतः २१ शाखायें थी, पर अब केवल ३ ही प्राप्त हैं। इसी प्रकार, सामवेद में हज़ारों ऋचायें थी, कई शाखायें थी। पर अब केवल ३ ही प्राप्त हैं। बाकी सब लुप्त हो गया। मध्य काल में जब भारत पर कई आक्रमन हुये तो वेद के वो सभी हिस्से लुप्त हो गये।

प्रश्न : किस वेद में चिकित्सा संबंधी जानकारी है?

श्री श्री :
उसे आयुर्वेद कहते हैं। ये चारों वेदों की उपशाखा है। आयुर्वेद, ऋगवेद और अथर्वेद - पहले और आखिरी, दोनों ही वेदों से संबंधित है। इसीलिये, आयुर्वेद की सभी कथायें बड़ी सुन्दर हैं। कहा जाता है कि एक साथ में एक हज़ार ऋषि बैठ कर ध्यान कर रहे थे तभी एक ने भारद्वाज ऋषि से कहा, "तुम जागते रहो। हम सब ध्यान में जा रहें हैं। गहरे ध्यान में जो ज्ञान हमें प्राप्त होगा उसे हम बतायेंगे। उस समय उस ज्ञान को लिखने के लिये तो कोई होना चाहिये।" इस तरह महर्षि भारद्वाज ने एक एक ऋषि के पास जाकर इस ज्ञान को संग्रहित किया। इस तरह से आयुर्वेद की किताबें लिखी गई। इसलिये इतने हज़ारों वषों बाद भी आयुर्वेद आज भी माइने रखता है। यह Materia medica है। इसमें लिखा है किस वनस्पति का शरीर के किस भाग पर क्या प्रभाव पड़ता है। इस में स्वास्थ्य सें संबन्धित पूरी जानकारी है, क्या करना, क्या नहीं करना, शरीर की कार्य प्रणाली, औषधि...
भारत पर अंग्रेज़ों के राज के समय अंग्रेज़ी शासन के प्रतिनिधि ने इंगलैंड की महारानी विक्टोरिआ को पत्र में लिखा, "यहां भारत में आकर लोगों को प्लास्तिक सर्जरी का अध्ययन करना चाहिये। नाक को कैसे सुन्दर बनायें, त्वचा को, पैरों को...।"
ये आश्चर्यजनक बात है कि जब इंगलैंड में ज्ञान शून्य या नहीं के बराबर था, उसी समय भी भारत में ज्ञान कितना समृद्ध था!

लौर्ड मकौले ने पार्लियामेन्ट में अपना मत रखा, " अगर भारत पर राज करना हो, तो सर्वप्रथम भारत के आध्यात्म को मिटाना होगा।" मकौले के वक्तव्य पर बहुत कुछ कहा जा चुका है। मकौले ने ये भी कहा," मैनें भारत में पूरे देश में भ्रमण किया और पाया कि यहां कोई भिखारी नहीं है, कोई दरिद्र नहीं है। यहां के लोग विज्ञान और चिकित्सा शास्त्र के बारे में बहुत अच्छी जानकारी रखते हैं। केवल दक्षिण भारत में ही ८८,००० चिकित्सा संस्थान हैं।" तो, अंग्रेज़ों ने योजनाबद्ध तरीके से चिकित्सा संस्थानों को बन्द किया। सभी शास्त्र संस्कृत भाषा में थे, इसलिये सभी संस्कृत विद्यालयों को बन्द किया ताकि अगली पीढ़ियों तक ये ज्ञान ना पहंच सके। ऐसा ही हुआ।
मकौले ने एक विस्तृत अध्य्यन प्रस्तुत किया था कि भारत पर कैसे राज किया जा सकता है। ये सब तो अब इतिहास है। मैं ये कह रहा हूं कि आयुर्वेद का ज्ञान आज भी बहुत कार्यकारी है। आज भी आयुर्वेद एक विज्ञान है। हालांकि आयुर्वेद के कई शास्त्र अब लुप्त हो चुके हैं, क्योंकि उन्हें जला दिया गया था।
एक समय भारत में एक सनकी राजा हुआ, औरंगज़ेब। अपने पिता को जेल में डाल कर उसने राजगद्दी को हथिया लिया था। औरंज़ेब ने भारत में नालंदा जैसे ज्ञान के भंडारों में आग लगवा दी। इतिहास में ऐसा कहा है कि नालंदा के पुस्तकालय की पुस्तकें छ: महीनों तक जलती रही। नालंदा के पुस्तकालय में हज़ारों वर्षों से ज्ञान संग्रहित था - बौद्ध, सनातन, जैन एवं सिख दर्शन शास्त्र यहां थे। चिकित्सा शास्त्र, पुरातन शास्त्र, ज्योतिष, धातु-शोधन, निर्माण, विज्ञान...सभी विषयों पर पुस्तकें थी। सब जला दी गई। जो कुछ भी लोग बचा सके और कंठस्थ कर सके वही बच पाया। ये सब इतिहास है।

प्रश्न : मुस्लिम देशों में सोहम शब्द को लेकर कुछ प्रतिरोध है। कुछ नये अध्यापक भी इस गिनती में आते हैं। किसी ने इन्टर्नेट पर सोहम का अनुवाद पाया, "मैं भगवान हूं।" ये मान्यता इस्लाम के मुताबिक सही नहीं है। क्या आप सोहम शब्द का अर्थ और प्रयोजन बतायेंगे?

श्री श्री :
सोहम हमारी सांस की स्वाभाविक ध्वनि है। जब तुम सांस बाहर छोड़ते हो, तो स्वाभाविक आवाज़ आती है, हं। इसे तुम उल्टा कर के देखो तो शब्द का अर्थ हुआ, जो ऊपर उठाये, तैराये, विवेक लाये। वो चेतना जो सही और ग़लत में फ़र्क दिखाये, नित्य और अनित्य का अंतर बताये, सुन्दर और कुरूप में अंतर दिखाये - चेतना।
सोहम का अर्थ, "मैं भगवान हूं," नहीं है। सोहम का अर्थ है, "मैं वही हूं।" ‘वही’ क्या है? ‘वही’ प्रेम है। ‘वही’ सत्य है। ‘वही’ सुन्दर आकाश है। ‘वही’ मैं असल में हूं। पहले मुझे विचार आता है कि मै केवल विचार हूं, भाव हूं, मन हूं। लेकिन यथार्थ अनुभूति में जानते है कि, "मैं विचार नहीं हूं। मैं शरीर नहीं हूं। मैं ‘वही’ हूं। ‘वही’ क्या है? ये अनुभूति शब्द के परे है। वह सत्य समझ से परे है। वह सुन्दरता कल्पना से परे है।वह सत्य जिसे तुम पूरी तरह समझ नहीं सकते। मैं ‘वही’ प्रेम हूं। और अगर प्रेम ही ईश्वर है, और ईश्वर ही प्रेम है, और मैं प्रेम हूं, तो मैं भी ईश्वर हूं। जीसस ने कहा है, "प्रेम ही परमात्मा है।" और कहा, "मैं प्रेम हूं!मैं वही हूं! मैं हूं!" ऐसा बाइबल में भी कहा है। तुम भी वही हो। पर अर्थ इतना महत्व का नहीं है जितना का कि सोहम शब्द का स्पंदन। सोहम शब्द का ब्रह्माण्ड में एक निश्चित स्पंदन होता है जो कि हमें खिलने में सहायता करता है। यही इसका प्रयोजन है।

प्रश्न : प्रिय गुरुजी, आपके साथ यहां बैठ कर मैं आज ये जान रहा हूं कि जीवन में अभी तक के मेरे जो अनुभव रहे वो ज़रूरी थे ताकि मैं वो अनुभव कर सकूं जो आज कर रहा हूं...पूर्णता, प्रेम, आभार, उत्साह, प्रेरणा। ये सिर्फ़ इसलिये सम्भव हुआ है क्योंकि आपने इतना कुछ दिया है इस दुनिया में। क्या गुरु की शक्ति इस बात में निहित है कि वे एक पिता के रूप में हमारे उन ज़ख्मों को भरते हैं जो कि हमारे अस्ली पिता से हमें मिले हों?

श्री श्री :
ज़ख्मों को भरने की ज़रूरत है। ज़ख्म भरना मुख्य है। रिश्ते को तुम जो भी नाम दो इतना महत्व नहीं रखता। संसार को नये नज़रिये से देखो। जिस किसी ने तुम्हे कभी दुख पंहुचाया हो, ये जान लो कि उन्होनें ऐसा इसलिये किया क्योंकि उन्हें ज्ञान नहीं था। वे आध्यात्मिक ज्ञान से वंचित थे, इसीलिये ऐसा व्यवहार कर रहे थे। उनके हाथों में हथकड़ी थी। उनकी आंखों पर पट्टी थी। वे स्वयं विपत्ति-ग्रस्त थे, शिकार थे। उन्हें इस दृष्टि से देखो तो तुम्हें उनसे सहानुभूति होगी, और अपने जीवन में तुम्हें जो मिला है उस कृपा को महसूस कर सकोगे। हां?

प्रश्न : कृपया ये समझाइये कि हम जो महसूस कर रहे हैं उसके लिये हम कैसे ज़िम्मेदार है? जैसे कि, एक सुन्दर लड़की देखी तो मन में एक विचार आया, फिर सुख की अनुभूति हुई।

श्री श्री :
शायद तुम भूल रहे हो, जब तुम पांच, छ:, सात या आठ साल के थे, तब तुम्हें सुन्दर लड़की आकर्षित नहीं करती थी। तब तुम सुन्दर भोजन से आकृष्ट होते थे! मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूं। इस में तीन पीढ़ी के लोग, पिता, पुत्र और दादा, एक साथ छुट्टी मनाने गये। परिवार का सबसे छोटा सदस्य खुश हो गया, उसे बढि़या भोजन जो मिला। उसके पिता खुश थे, कैम्प में मौजूद सुन्दर सुन्दर लड़कियां देख कर। दादाजी बोले, "मुझे यहां बहुत आराम मिला! कितना अच्छा हुआ हम छुट्टी मनाने यहां आये! आज मेरा पेट अच्छी तरह साफ़ हुआ। ऐसा कभी नहीं हुआ! कितना अच्छा लग रहा है!" और वे आगे बोले, "तुम दोनों कितनी बचकानी बातें कर रहे हो! ये भोजन से खुश हो और तुम सुन्दर लड़कियां देख कर खुश हो! मेरी उम्र में आओगे तो असली खुशी जानोगे।" किसी बुज़ुर्ग का पेट ठीक से साफ़ हो जाये, या उन्हें अच्छी नींद आ जाये, उनके लिये ये स्वर्ग के सुख जैसा है। अभी कुछ समय और रुको तो जानोगे कि जीवन में और अधिक सुंदर क्या है।

प्रश्न : प्रिय गुरुजी, आज जब विडियो में चक्रों की ऊर्जा के बारें में बात हो रही थी, तो मन में एक प्रश्न आया। मैं अपने दूसरे चक्र में लगातार ऊर्जा का अनुभव करता हूं, पर मुझे sex में रुचि नहीं है। Sex के बाद मैं थकावट और तमस महसूस करता हूं। पर दूसरी ओर, मेरी सृजनात्मक शक्ति उजागर नहीं हो पा रही है। मैं सृजन करना चाहता हूं, लिखना चाहता हूं, गाना चाहता हूं, नाचना चाहता हूं। मेरा मार्गदर्शन कीजिये कि मैं मेरी सृजनात्मक शक्ति जागृत हो।

श्री श्री :
हां, ध्यान करते रहो। अगर कोई एक चक्र बहुत ज़्यादा प्रयोग में रहा हो, तो स्वतः वहां ज़्यादा ऊर्जा जाती है। ऊर्जा चलती रहेगी। निश्चित रूप से चलती रहेगी। तुम नाभि चक्र पर ज़्यादा ध्यान केन्द्रित करो और फिर नाचो, गाओ। नृत्य और गायन तो हमारी साधना पद्दति में है ही। ये कई तरह से तुम्हें ऊपर उठाता है।


art of living TV

© The Art of Living Foundation For Global Spirituality

भक्ति प्रेम की चरम सीमा है

बेंगलोर आश्रम,14,दिसम्बर,2009

प्रश्न : गुरूजी, मैंने कहीं पढ़ा था मृत्यु के बाद यदि नर्क में जाते हो तो वहां एक पैन में तला जाता है| यह पढ़ने के बाद मुझे बहुत डर लग रहा है| कृपया इस बारे कुछ बताइए|

श्री श्री रवि शंकर :
चिंता मत करो|जब आप यहाँ पर(इस पृथ्वी पर) स्वयं में स्थिर रहते हो तो कोई दर नहीं रह जाता| यह लोगों को सही रास्ते और अच्छे काम करने के लिए एक तरीका रहा| गलत काम करने पर मरने के बाद बहुत कष्ट भुगतना पड़ेगा - यह इसीलिए कहा जाता था कि लोग सही रास्ते पर रहे| कुछ हद तक इस कर्म को बदला जा सकता है| यदि आप कर्म को बिलकुल न बदल सकते तो साधना का कोई फायदा न होता| साधना और ध्यान करते रहो|

प्रश्न : किशोरों को कितनी आजादी देनी चाहिए और किस हद तक रोक लगानी चाहिए?
 श्री श्री रवि शंकर :
आप भूल चुके हो क्योंकि आपने वह उम्र पार कर ली है,आप को याद नहीं कि इस उम्र में क्या परेशानियाँ होती है| उनके शरीर में कितने हार्मोनल बदलाव आ रहे होते है| उनके से हाथ मिलाओ और विनम्रता से उनका मार्ग दर्शन करो|

किशोरावस्था के भावनात्मक विकार कुछ सालों के लिए ही होतें है| न केवल शरीरिक परन्तु मानसिक और भावनात्मक अशांति भी उनमें बहुत होती है| तीन साल की उमर से ले कर इर्ष्या,अधिकार जमाने की इच्छा जैसी भावनाएं किशोरावस्था तक जारी रहती है| कुछ लोग किशोरावस्था से बिलकुल बाहर नहीं आते| मानसिक अशांति उनके लिए बड़ी होती है| किशोरावस्था कठिन समय है |इस उम्र के बच्चों के साथ निभाने के लिए बहुत धैर्य की जरुरत होती है|इस तरह एक मित्र और दार्शनिक की भांति बहुत धैर्य से उन्हें कुछ आजादी दो और साथ ही साथ न कहने के लिए दृढ रहो| उस समय किसी तरह की ढील मत दो|

प्रश्न : गुरूजी, भक्ति और प्रेम में क्या अंतर है?
 श्री श्री रविशंकर :
भक्ति प्रेम की चरम सीमा है| 'सा त्वस्मिन परम प्रेम रूपा' -अवतार के लिए परम प्रेम ही भक्ति है| आप भगवान पे अधिकार नहीं कर सकते| साधारण प्रेम सम्बन्धों में आप किसी से प्यार करते हो और बदले में वैसा ही चाहते हो| आप भगवान पर अधिकार का दावा नहीं कर सकते|उस अनंत चेतना के लिए प्रेम भक्ति है|

संत नारद कहते है,"योग चित्त वृत्ति निरोध" अर्थात योग का मतलब है जो आपके मन की प्रवृतियों को शांत करे| 'तथा द्र्श्तु स्वरूपे अवस्तनम 'अर्थात योग व्यक्ति का वह कौशल है जिस से वह दृश्य की बजाय द्रष्टा में स्थिर रहता है' - भीतर गहरे जा कर द्रष्टा में स्थिर रहना| ऐसे विचार से ध्यान लगने लगता है| तब समाधि आरम्भ होती है| आप का मन पूरी तरह से शांत हो जाता है| एक क्षण के लिए आप पूरी तरह अस्तित्वहीन और शून्यता का अनुभव करते हो|

प्रश्न : प्रदक्षिणा का क्या अर्थ है?
 श्री श्री रविशंकर :
प्रदक्षिणा का अर्थ है इर्दगर्द जाना| दक्षिण का अर्थ है कुशलता से कुछ पूरा करना| अंग्रेजी का शब्द (dexterous) 'डेक्सटरोस'संस्कृत के दक्षिणा शब्द से आया है जिसका मतलब है निपुणता| प्रदक्षिणा का अर्थ है एक बहुत ही बिशेष रूप से निपुण होना,एक बहुत ही निपुण तरीका जोकि कौशल और योग्यता से बहुत निपुणता से प्राप्त किया जाता है| प्र का अर्थ है इर्दगिर्द जाना| प्रदक्षिणा का अर्थ है निपुणता से इर्दगिर्द जाने की योग्यता प्राप्त करना|

जब आप किसी मंदिर के अंदर जाते हो तो मंदिर के निर्माण की व्यवस्था के अनुसार इसके तीन घेरे होतें हैं| पहला घेरा हर्बल बगीचा होता है,जिसमें खूब सारे पेड़ पौधे होतें हैं| ये पेड़ किस दिशा में लगाये जाएँ ये मंदिर के निर्माण की व्यवस्था के अधीन आता है| सभी पेड़ पौधे दिशायों और हवा के बहाव के अनुसार लगाये जाते हैं| कुछ औषिधि वाले पौधे,फूल और पेड़ बाहरी घेरे में लगाये जातें हैं और जब आप इस हर्बल खुशबू से निकलते हो तो इससे भावनात्मक और शारीरिक समस्यायों का इलाज होता है और शरीर के असंतुलन ठीक हो जातें हैं| यह प्राय एक किलोमीटर लम्बा रहता है और इस मे से गुजरते समय सारे शरीर में संचार बेहतर हो जाता है| शरीर के लिए जरुरी तेल और सुगंध खास कर पीपल के पेड़ की,शरीर के द्वारा सोख ली जाती है| यही अकेला पेड़ है जो चौबीसों घंटे आक्सीजन छोड़ता है| बाकि के पेड़ आधा समय आक्सीजन और बाकि के समय कार्बोनडैकसाइड छोड़ते है| पेड़ एक व्यक्ति की बहुत सारी समस्याएं दूर करतें हैं खास कर इन्फ्रटीलीटीकी|
प्रदक्षिणा इश्वर के लिए या अन्य किसी और कारण से नहीं बल्कि स्वास्थ्य के लाभ के लिए की जाती है|
तब दूसरा घेरा आता है जिसमें बहुत से स्त्री - परुषों की मूर्तियाँ रखी रहती हैं| पुराने समय में वहां पर बैठ के कुछ देर के लिए ध्यान करने को कहा जाता था| इस तरह से पहला घेरा आपको शरीरिक रूप से बेहतर बनाता है| वहां की हवा में सांस लेने से वात,पित्त और कफ का संतुलन ठीक होता है| दूसरे घेरे में मन की सारी कल्पनाएँ ख़त्म होती हैं| तब अंत में आप मुख्य भाग में आते - पवित्र मुख्य स्थान - जहाँ आप आँखें बंद करके बैठते हो और शून्यता का अनुभव करते हो|

प्रश्न : मुझे नहीं पता मेरे लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा है?
 श्री श्री रवि शंकर :
वह छोड़ दो जो तुम्हे थोड़े समय के लिए ख़ुशी देतें हैं और लम्बे समय तक दुःख देतें हैं| बस इतना अपने मन में रखो|

art of living TV

© The Art of Living Foundation For Global Spirituality

"जीवन भावनाओं और बुद्धि के बीच एक महीन संतुलन है"

प्रश्न : गुरुजी, कई बार आपने स्पष्ट किया है कि गुरु उपस्थिति है, केवल शरीर नहीं है। लेकिन जब मैं आपको देखता हूँ तो आपके अंदाज़ व कार्य से इतना मंत्रमुग्ध हो जाता हूँ| कृपया मुझे बताइए मैं क्या करूँ?

श्री श्री रवि शंकर : तुम बस समझ लो की तुम अपने पास जो है उसी की सराहना करते हो| तुम भी सुंदर हो| हम में से हर एक में सौंदर्य है। हम सब में ये सभी गुण हैं| कुछ गुण अभी विकसित है और कुछ जल्दी ही प्रकट होंगे|

प्रश्न : गुरुजी, क्या आपकी कोई भी अधूरी इच्छाएं है?

श्री श्री रवि शंकर : (थोड़े विराम के बाद) हाँ, मैं करोड़ों लोगों को मुस्कुराते हुए देखना चाहता हूँ और चाहता हूँ कि विश्व के ये सारे मतभेद समाप्त हो जाएँ| कोई युद्ध नहीं होना चाहिए। युद्ध का अर्थ है 'अधिनियम का सबसे बुरा कार्य (war - worst act of reason)| जो लोग युद्ध में हैं, वे उनके कार्यों को न्याय संगत ठहराते हैं। लेकिन यह वास्तव में तर्क का सबसे बुरा कार्य है| विश्व में आज कल घरेलू हिंसा बहुत अधिक मात्रा में है| यह सब रोकना होगा। यह तभी हो सकता है जब लोग और अधिक दयालु और समझदर बनें|

प्रश्न : जन्म और मृत्यु के चक्र को तोड़ने के लिए हमें मुक्ति प्राप्त करनी है तो प्रबुद्ध पुरुष(Enlightened Masters) पुनः अवतार क्यूँ लेते हैं?

श्री श्री रवि शंकर : केवल एक लक्ष्य के साथ - जिन्हें ज़रुरत है उनकी मदद करने के लिए।

प्रश्न : क्या पार्किंसंस सिंड्रोम से ग्रस्त एक व्यक्ति के जीवन के शांतिपूर्ण अंत के लिए प्रार्थना करना उचित है?

श्री श्री रवि शंकर : जब भी कोई पीड़ित है, उसके आसपास के लोग उस व्यक्ति से अधिक पीड़ित होते हैं| एक मानसिक रूप से मंद बच्चे के परिवार को खुद बच्चे से ज्यादा भुगतना पड़ता है
| बच्चे का मन एक अलग ही दिशा में होता है| प्रकृति किसी भी मुश्किल और पीड़ा से गुज़रने की शक्ति देती है| एक जानवर को उतनी ही भारी पूंछ दी जाती है, जिसे वह संभाल सके|
जरा कल्पना कर के देखो एक चूहे की जिसको एक हाथी की पूंछ हो| प्रकृति बहुत बुद्धिमान है। वह आपको वही समस्या देती है जिसे आप संभाल सकें|

प्रश्न : गुरुजी, मैंने कहीं पढ़ा है कि ओम का जप महिलाओं के लिए अच्छा नहीं है
कृपया विस्तार से बताएं

श्री श्री रवि शंकर : शायद वह पुस्तक किसी पुरुष ने लिखी है!(हँसी) शायद उन्हें डर है कि इससे स्त्रियाँ पुरुषों की तुलना में अधिक शक्तिशाली, बुद्धिमान, स्वतंत्र और मजबूत न हो जाएँ!
यह सब सच नहीं है| मध्य युग में कुछ लोगों ने ज्ञान को केवल अपने तक सीमित रखने के स्वार्थी उद्देश्य से ये संदेश फैलाया था|

प्रश्न : क्या दान मोक्ष प्रदान कर सकता है?

श्री श्री रवि शंकर : दान संपत्ति को शुद्धता प्रदान करता है|
घी भोजन को शुद्ध करता है|
ज्ञान बुद्धि को शुद्ध करता है|
भजन मन को शुद्ध करता है और सेवा कार्य को शुद्ध बनाती है|

प्रश्न : आत्म-सम्मान और अहंकार के बीच क्या अंतर है? अगर कोई कठोर शब्द सुनाता है तो पीड़ा होती है| ये अहंकार है या आत्म सम्मान?

श्री श्री रवि शंकर : तुम्हारा आत्म-सम्मान तुमसे कोई नहीं छीन सकता| यदि तुम्हें कुछ चुभता है तो वह अहंकार या तुम्हारी मूर्खता के कारण है। यदि कोई तुम्हारे साथ कठोर है तो चोट लगना स्वाभाविक है लेकिन तुम्हे उस से ऊपर उठना आना चाहिए| केवल ज्ञान से हम दुख की भावना से बाहर आ सकते हैं|

प्रश्न : यदि सब कुछ पूर्व-निर्धारित है, तो कर्म की क्या जरूरत है?

श्री श्री रवि शंकर : हम कर्म के बिना नहीं रह सकते| एक पशु के लिए सब पूर्व-निर्धारित है लेकिन मनुष्य के लिए नहीं| कुछ बातें पहले से तय हैं और कुछ नहीं| यदि सब कुछ पहले से तय होता, तो हम यहाँ भजन किस लिए कर रहे होते? तब तो ये एक जानवर होने से बिलकुल भिन्न नहीं होता|
मनुष्य की कुछ जिम्मेदारियां हैं और मनुष्य ज़िम्मेदारी लेता भी है| एक पशु को न तो कोई ज़िम्मेदारी और न ही उसकी कोई मांग है| मनुष्य की कुछ जिम्मेदारियाँ और कुछ माँग हैं। मनुष्य के पास स्वतंत्रता है और साथ ही बुद्धि भी है|

प्रश्न : लोग जैसे हैं वैसे उनका स्वीकार करने में और वे जैसे हैं वैसे उन्हें अंकित(label) करने में क्या अंतर है?

श्री श्री रवि शंकर : उत्तर तुम मुझे बताओ| अगर तुम्हें सचमुच जवाब चाहिए तो बैठ कर इसके बारे में सोचो| यदि तुम्हारे मन में यह सवाल उत्पन्न हो गया है, तो इसका जवाब भी आ जाएगा| तुम्हारे मन में स्वीकृति और लेबलिंग के लिए पहले ही कोई धारणा है| यही कारण है कि तुम दो अलग अलग शब्दों का प्रयोग कर रहे हो| तुम केला और banana के बीच का अंतर नहीं पूछोगे| तुम्हें अपने मन में पता है और एक छोटा-सा आत्मनिरीक्षण तुम्हे इसका जवाब दे देगा|

प्रश्न : मुझे ध्यान के दौरान कुछ तस्वीरें दिखतीं हैं
क्या ये ठीक है?

श्री श्री रवि शंकर : उस पर ध्यान देने की कोई जरूरत नहीं है| यह सिर्फ एक अनुभव है। क्रिया या ध्यान में आप कुछ सुन सकते हो, कुछ छवियों या रूपों को देख सकते हो, लेकिन ये सब आते जाते रहते हैं। यह तनाव मुक्त होने का ही एक रुप है|

प्रश्न : आपकी पुस्तकों में आप ने कहा है कि धर्म केले के छिलके की तरह है और आध्यात्मिकता अंदर का फल है
क्या इसका अर्थ ये है कि जो आध्यात्मिक है उसे धर्म से कोई लेना देना नहीं है?

श्री श्री रवि शंकर : धर्म अनिवार्य है| तुम्हारे जन्म के समय से धर्म तुम्हारे साथ है|
तुम्हारा नाम ही सूचित कर देता है कि तुम किस धर्म से हो| तुम इससे इंकार नहीं कर सकते|
आध्यात्मिकता सभी धर्मों को एकजुट करती है| ये सभी धर्मों का निचोड़ है|

प्रश्न : यदि एक रिश्ता आसानी से नहीं चल रहा है, तो क्या किया जाये?

श्री श्री रवि शंकर :तुम्हें रिश्ते में एक जगह छोड़नी चाहिए।किसी रिश्ते की मजबूती विपरीत परीस्थितियों को संभालने की क्षमता में निहित है। अन्यथा तुम्हें कैसे मालूम पड़ेगा कि तुम कितने मिलनसार, समझदार और विचारशील हो| ये गुण तुम्हारे जीवन में विपरीत परीस्थियों से गुज़रने पर ही खिलते हैं| ऐसी परिस्थिति को यह सब गुण उजागर करने के अवसर क़ी तरह देखो| तुम्हे दूसरे व्यक्ति को बदलने की बजाय अपने व्यक्तित्व के पूर्ण विकास करने पर ध्यान देना चाहिए|

प्रश्न : गुरुजी, हम किस हद तक एक रिश्ते को बनाए रखने के लिए झुक सकते हैं?

श्री श्री रवि शंकर : तुम बहुत ज्यादा भी झुक नहीं सकते। यदि अन्य व्यक्ति हिंसक हो रहा है या तुम्हारा लाभ ले रहा है तब तुम स्पष्ट रूप से प्रकट करो| इन सब से निपटने के लिए तुम अपनी भावनाओं का नहीं, बुद्धि का उपयोग करो|
संघर्ष हमेशा भावनात्मक होता है| संकल्प बौद्धिक है। भावनात्मक संघर्ष भावनाओं से नहीं संभाला जा सकता| इसी प्रकार एक बौद्धिक तर्क बुद्धि से नहीं निपटा सकते -उसके भावनात्मक पक्ष को ध्यान में लिया जाना चाहिए| अगर तुम ध्यान से देखोगे तो पाओगे कि एक बौद्धिक तर्क के पीछे भावनाओं की एक धारा है। जीवन भावनाओं और बुद्धि के बीच एक महीन संतुलन है|
कब किसका उपयोग करना है, यही असली बुद्धिमता है| और यह ज्ञान कैसे प्राप्त करते हैं? जवाब है ध्यान, ध्यान और ध्यान !

प्रश्न : हमें 'नाड़ी शोधन'(Alternate nostril) प्राणायाम के बारे में कुछ बताएं

श्री श्री रवि शंकर : हमारे शरीर में १,८२,००० नाड़ियाँ हैं| जब हम साँस लेते हैं ये सक्रिय हो जाती हैं|
इसीलिए हम जीवित है| जब हम बाईं नथना से साँस लेते हैं तो कुछ नाड़ियाँ कार्यान्वित होती हैं। दायीं नथना से साँस लेने पर बाकी की नाड़ियाँ सक्रिय होती हैं| जब हम वैकल्पिक नाड़ी(Alternate nostril) से सांस लेते हैं, हमारे शरीर में कुछ बदलाव आते हैं| हमारा शरीर शुद्ध होता है| ताज़ा ऊर्जा का प्रवाह तनाव दूर कर देता  है।शरीर में जैव रासायनिक परिवर्तन आते हैं! इससे विभिन्न ग्रंथियां बेहतर काम करती हैं व शरीर का कोई भी असंतुलन जड़ मूल से निकल जाता है
प्राणायाम के कई लाभ हैं

प्रश्न : गुरुजी, आज कल अखबार इतने अस्पष्ट और निरर्थक ख़बरों से भरे होते हैं?। क्या हम पर्यावरण पर एक पूरा पृष्ठ नहीं पा सकते?

श्री श्री रवि शंकर : क्या आप लेख लिखते हैं?मैं चाहता हूँ कि वे सब जिनके पास अच्छा लेखन कौशल है, एक साथ बैठें और लेखों का कुछ संग्रह करे।

"वह जो तुम व्यक्त नहीं कर सकते, प्रेम है
जो कि तुम अस्वीकार याँ त्याग नहीं सकते, सौंदर्य है
जिसे तुम टाल नहीं सकते, सत्य है"
~ परम पूज्य श्री श्री रवि शंकर

art of living TV

© The Art of Living Foundation For Global Spirituality

जड़ों को मजबूत करो ओर दृष्टिकोण को व्यापक करो

प्रश्न : भारत कब और कैसे पूरी तरह उन्नत हो जाएगा?
श्री श्री रवि शंकर :
जब तुम्हारे जैसे नवयुवक यह सोचने लगेंगे कि वे क्या कर सकतें हैं|

प्रश्न : गुरूजी यदि कोई मेरी आलोचना करता है और यह सही है,तो ठीक है| परन्तु यदि यह सही नहीं है तो मुझ से वह आलोचना सहन नहीं होती और मैं संतुलन खो बैठता हूँ| कृपया मेरा मार्ग दर्शन करें|
श्री श्री रवि शंकर :
दोषी ठहराने को ही तुम आलोचना करना कहते हो न। जिसे तुम सहन नहीं कर सकते| धैर्य और यह विश्वास की सत्य की हमेशा जीत होती है स्थिति को बेहतर करता है।

प्रश्न : मैं अपने आप में सूक्षम स्तर पर बहुत से बदलाब महसूस करता हूँ परन्तु मेरे आस पास के लोग ऐसा अनुभव नहीं करते|
श्री श्री रवि शंकर :
तुम अपने में परिवर्तन देखते हो ये काफी है| दूसरे लोग नहीं देख पाते क्योंकि वे अपने मन में ही उलझे हैं| धैर्य रखकर अपने आप को बेहतर ढंग से व्यक्त करो| बहुत बार हमारा व्यवहार हमारी भावनाओ के साथ लय में नहीं होता| बाहरी व्यव्हार असभ्य हो सकता है परन्तु अंदर से तुम ऐसा महसूस नहीं करते| तुम्हारी भावनाएं बदल गई है परन्तु तुम्हारी अभिव्यक्ति नहीं बदली है| अधिकतर ऐसा ही होता है| तब आपको अपने को बेहतर ढंग से व्यक्त करने की आवश्यकता है|

प्रश्न : जो लोग आध्यात्मिकता को पसंद नहीं करते उन्हें कैसे शिक्षित किया जाए?
श्री श्री रवि शंकर :
यदि आपके घर में कोई अध्यात्म के रास्ते के खिलाफ है तो आपको अप्रत्यक्ष रास्ता अपनाना होगा| तब आपको घर के उस सदस्य के करीबी दोस्त के द्वारा उनको कहलवाना पड़ेगा और जब ये मित्र की तरफ से आएगा तो वे जरुर सुनेगे| बाकी लोगों को आप शिक्षित करते रहो| उनके साथ ज्ञान बांटो| कई लोग आध्यात्मिकता से सही परिचिय न होने के कारण भी इसे पसन्द नहीं करते।
माओवादी और वामपंथी की भावना ने बहुत से लोगों को अध्यात्मिकता के विरुद्ध कर दिया है| नेपाल के अंदर भी बहुत से लोग आध्यात्मिकता के खिलाफ हैं| इंडिया में 600 में से 212 गाँव में अभी तक आर्ट ऑफ़ लिविंग नहीं आया है| एक बार हम वहां तक पहुँच जाएँ तो पूर्ण बदलाव आ जायेगा| एक घटना हुई थी जब झारखण्ड के एक गाँव में एक सत्संग में एक माओवादी ’आर्ट ऑफ़ लिविंग’ के अध्यापक पर हमला करने आया था|
वे आये और उन्होंने लोगों को ख़ुशी से गाते हुए देखा तो वे भी इस में शामिल हो गए|

बुद्ध के जीवन की उंगलीमार की कहानी केवल इतिहास या पौराणिक कथा ही नहीं है| ये आज अभी यहाँ घट रही है| जहाँ कोई कानून या पैसा काम नहीं करता, जो काम करता है वो प्यार है|

प्रश्न : क्या आत्मा की मृत्यु होती है?
श्री श्री रवि शंकर :
जब आप टी वी बंद करते हो तो क्या तरंगे दिखाई देती हैं?तुम नहीं देख पाते पर तरंगें वहां होती है| उसी तरह से आत्मा हमेशा उपस्थित है| चाहे दिखाई दे या नहीं,प्रकट या अप्रकट हो यह एक अलग बात है|

प्रश्न : हम कैसे तय करें कि किसी की प्रशंसा की जाए?
श्री श्री रवि शंकर :
मूर्खों की प्रशंसा करना अच्छा है परन्तु बुद्धिमान की प्रशंसा करने की कोई जरुरत नहीं| प्रशंसा हो यां ना हो, बुद्धिमान व्यक्ति दोनो परिस्थितियों में काम करेगा|

प्रश्न : महाराष्ट्र एस्मबली के झगड़े, बंगलादेश,पाकिस्तान..यह सब देख कर मेरा मन रोता है| कभी कभी मुझे बहुत डर लगता है|
श्री श्री रवि शंकर :
जब आप ये सब देखते हो तो मन में पीड़ा अनुभव होती है| पीड़ा होनी भी चाहिए| जब पीड़ा होगी तो आप कोई कदम उठाओगे| नहीं तो आप तब तक बैठे रहोगे जबतक कि आपके अपने घर में आग नहीं लग जाती|

ध्यान से देखो महात्मा गाँधी ने उन दिनों में कैसे रास्ता दिखाया| इस तरह से आप को भी विचार आयेगा कि कैसे आगे बढ़ना है| सभी को थोड़ा थोड़ा त्याग करना चाहिए| जो कुछ भी हम कर सकतें हैं करना चाहिए| कभी कभी आपको डर लगता है ,वह भी सही है| ध्यान और प्राणायाम से इससे बहार निकल जाओगे|

प्रश्न : पश्चाताप से कैसे छुटकारा पाएं?
श्री श्री रवि शंकर :
जब आप यहाँ आयें तो एक नए जीवन में प्रवेश हो गया| वह पुराना व्यक्ति मर चुका है - यह नया जीवन है, तुम एक नए इंसान हो| क्या अभी भी तुम उस पुराने पत्थर का बोझ साथ लेकर चलना चाहते हो? प्राचीन समय में एक प्रथा थी| जब कोई गुरु के पास आता था तो उनका नाम बदल दिया जाता था तांकि उन्हें यह याद रहे कि अब उनका नया जीवन है|

प्रश्न : एक बच्चे को आदर्श नागरिक बनने के लिए क्या करना चाहिए?
श्री श्री रवि शंकर :
अपने आंख और कान खुले रखो| अपने मूल को जानो| जड़ों को मजबूत करो ओर दृष्टिकोण को व्यापक करो|

प्रश्न : पर्यावरण के विषय में आप क्या कहेंगे?
श्री श्री रवि शंकर :
पर्यावरण वास्तव में गंभीर मुद्दा है|आप सब को पेड़ लगाने चाहिए,फ्रोजेन खाने(frozen food) का इस्तेमाल कम करना चाहिए, और शाकाहारी बन जाना चाहिए| आज वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि जानवरों को मारना बंद कर दे तो ग्रीन हाउस के प्रभाव का सारा मामला हल हो जाए| एक जानवर को मारने से जो मिथेन निकलती है वह 500 पेड़ों को काटने के प्रभाव के बराबर है| औसत रूप में एक जानवर को जितना अनाज खिलाया जाता है उस से 400 लोगों को खाना खिलाया जा सकता है| शाकाहारी बनो और पृथ्वी को बचाओ |

प्रश्न : मैं राजनीति में कैसे जायूं ?क्या ये केवल अमीर लोगों के लिए है यां राजनितिक सम्बन्ध होने आवश्यक है?
श्री श्री रवि शंकर :
राजनितिक संबंध से पहले लोग महत्वपूर्ण हैं| एक अच्छे समाज सेवक बनो,लोग अपने आप ही आपके लिए वोट देंगें| पहले लोगों के बीच में, उनके साथ काम करो|

प्रश्न : असहाय महसूस करना कमजोरी यां शक्ति का प्रतीक है?
श्री श्री रवि शंकर :
असहाय महसूस करना तो ज़ाहिर है कि कमजोरी का लक्षण है।परन्तु यदि उस असहाय स्तिथि में तुम्हारे अंदर प्रार्थना जगती है तो भीतर से एक शक्ति मिलती है| अपने आप को असहाय महसूस करना और उस स्थिति मे प्रार्थना उठने के लिए जबरदस्ती नहीं कर सकते| यह अपने आप ही होता है|

art of living TV
© The Art of Living Foundation For Global Spirituality

प्रबोधन सबसे बढ़ी ख़ुशी है

बैंगलोर आश्रम ९/१२/२००९ :

वह जो निष्क्रिय है उसे किसी चीज कि जरुरत नहीं होती और न ही उसकी कोई जिम्मेदारी होती है| इसके साथ वह व्यक्ति जो पूरी तरह से प्रबुद्ध है उसे किसी चीज की आवश्यकता नहीं होती और न ही वह कोई जिम्मेदारी समझता है| इन दो प्रकार के लोगों के अतरिक्त सभी लोगों कि कुछ जरूरतें और जिम्मेदारियां होती हैं|
अब प्रश्न यह है कि आप अपने जिम्मेदारियों और जरूरतों को कैसे पूरा करते हो? यदि आप अपनी ज़िम्मेवारियों पर अधिक ध्यान देते हो तो आप कि जरूरतों का ख्याल रखा जाता है|यदि आपकी जरूरतें बहुत ज्यादा होंगी और आप केवल उन्हीं पर ध्यान देते हैं तो आपकी जिम्मेदारियां नजरंदाज हो जाती हैं| यह आलस और उदासीनता का मार्ग है|जब हम जिम्मेदारियों को नहीं समझते तो हमेशा शिकायत करते है,असंतुष्ट रहते है और खुश नहीं रहते|

यदि आप जिम्मेदारी समझते हो और आपकी जरूरतें भी ज्यादा नहीं होती तो आप उत्साहपूर्ण और खुश रहते हो, और नई कलाएं भी सीख पाते हो| आपके जीवन में एक ऐसा समय आता है जब आप अपनी जरूरतों और जिम्मेदारियों का समर्पण कर देते हैं| परन्तु उस स्तिथि तक जाने के लिए कई स्तरों से गुजरना पड़ता है| जैसे कि यदि कोई भूखा है तो क्या?तब उसे खाना खाना पड़ेगा|यदि किसी को प्यास लगी हो तो पानी पीना पड़ेगा|ये सारी जरूरतें शरीर से सम्बंधित हैं|आपका शरीर इस समाज और दुनिया के लिए है|यह दुनिया/समाज इसका ख्याल भी रखेगा|आप इश्वर के हो और इश्वर ही आप का ख्याल रखेगा|वस्तव में इश्वर ही आप का ख्याल रख रहा है|आप यह जान लो कि आप इस शरीर से अलग हैं| जितनी जल्दी आप इस अंतर को समझ जाओगे कि आप शरीर से अलग हो तो आपकी मुस्कान स्थाई हो जायेगी|तब गुरूजी ने उपस्थित लोगों से प्रश्न पूछने के लिए कहा|

प्रश्न : ग्रहणशीलता को कैसे बढाया जाए?
 श्री श्री रवि शंकर :
आप सुन रहे हो पर अगर मन कहीं और है तब एकाग्रता नहीं होती| जब आप का मन बहुत सी इच्छायों से भरा रहता है और विषय आपकी इच्छाओं से सम्बंधित न हो तो आप ध्यान से नहीं सुन पाते|और यदि सम्बंधित हो तो भी आप अपनी कल्पना की उड़ान भरने लगते हो|एक वाक्य सुनते हो और कल्पना लोक में चले जाते हो|जैसे किसी आदमी की मुख्यमंत्री बनने कि बहुत इच्छा हो और यदि कोई उनसे यह कह दे कि उनके मुख्यमंत्री बनने का पूरा चांस है तो तुरंत उनकी कल्पना शुरू हो जाती है|इसलिए सिर्फ सुनो, बस सुनो|यदि मन बहुत से विचारों से भरा हो तो भी जल्दी ध्यान नहीं दे पाते|मन कि एकाग्रता के लिय वात और कफ के असंतुलन को संतुलित करके भी ठीक किया जा सकता है|जब मन कुछ भी देखते या सुनते ही एकदम उतेजित हो जाता है तो भी मन की एकाग्रता नहीं बन पाती| लगातार sensory stimuli से भी ग्रहण करने की क्षमता और एकाग्रता नहीं बन पाती| क्या आपने यह अनुभव किया है? तीन घंटे की फिल्म देखने के बाद कोई आपको कुछ बताना चाहे तो आप सुनना नहीं चाहते और कह देते हो बाद में बताना|
एकग्रता बढ़ाने के लिए क्या करें? मौन,प्राणायाम,सही भोजन,मन में कम इच्छाएं,इन सब से मदद मिलेगी|यदि कोई विष्य आप को पसंद आता है तो इसमें ध्यान लगता है| अक्सर किशोरों के जीवन में एक कठिन दौर आता है जब उन्हे विषय चुनना होता है - गणित ,कंप्युटर इन्जीनियरिंग आदि और यदि कोई सभी विष्य में अच्छा हो तो और मुश्किल हो जाती है|

प्रश्न : आत्म समर्पण में कौन किसके प्रति समर्पण करता है?
श्री श्री रवि शंकर :
तुम स्वयं को समर्पण करते हो| जब आत्म समर्पण करते है तो पता चलता है कि अन्य कोई है ही नहीं|

प्रश्न : प्रसन्नता और प्रबोधन में एक को चुनना पढ़े तो हमें क्या चुनना चाहिए?
श्री श्री रवि शंकर :
प्रबोधन सबसे बढ़ी ख़ुशी है|तो यदि सबसे बड़ी ख़ुशी मिल रही हो तो छोटी ख़ुशी के लिए क्यों जाएँ? इश्वर में विश्वास करना आसान नहीं है|इश्वर है - यदि आप इस पर विश्वास कर लेते हो तो मन शांत हो जाता है|तब आप को लगता है कि केवल इश्वर ही है, मैं तो हूँ ही नहीं |

इन आँखों से आँख मिला के देखो तो सही,प्यार दिखता है कि नहीं,
एक कदम बढ़ा के देखो तो सही,रास्ता मिलता है की नहीं,
हाथ बढ़ा के देखो तो सही काम होता है की नहीं,
एक बार मुस्करा के देखो तो सही,दुनिया अपनाती है की नहीं,
एक बार नाम लेके देखो तो सही,जीवन सफल होता है की नहीं|

प्रश्न : मन की राय बनाने की आदत से कैसे निकलें?

श्री श्री रवि शंकर : यदि आप को पता है की आप की राय बनाने की आदत है तो आप पहले से ही इस से मुक्त हो गए|

प्रश्न : आत्म निर्भरता वैराग से कैसे भिन्न है?
श्री श्री रवि शंकर :
पूर्ण आत्मनिर्भरता संभव नहीं है|एक दूसरे के उपर निर्भरता रहती है|तुम्हे एक दर्जी पर कपड़ों के लिए निर्भर होना पड़ता है|एक किसान फसल उगाने के लिए उत्तरदायी है तो इस तरह आप उस पर निर्भर करते हो|यदि तुम बीमार हो जाते हो तो डाक्टर के पास जाते हो, इस तरह एक डाक्टर पर निर्भर होना पड़ता है|शिक्षा के लिए शिक्षक पर निर्भर होना पड़ता है|हर कोई किसी न किसी तरह एक दुसरे पर निर्भर करते है|परन्तु हमे भी कदम बढ़ाना है|बैचैनी और उदासी तब तक बनी रहती है जब तक हम किसी के लए उपयोगी न बने|
निर्भरता क्या है?
एक दिन आप की बाई नहीं आती और आप अपने घर की सफाई न करे तो यह निर्भरता है|आप जो भी कर सकते हो करते रहो|यह महत्पूर्ण है कि आप की आत्मनिर्भरता आप का अभिमान न बने|"मैं कभी भी किसी की मदद नहीं लेता, सब कुछ स्वयं करता हूँ - यह अभिमान है|"

आप एक जिम्मेदार नागरिक हो,आप के उपर आपके परिवार की जिम्मेदारी है| परन्तु आप की जिम्मेदारी वही है जो आप कर सकते हो|जो आप नहीं कर सकते वोह आपकी जिम्मेदारी नहीं है|यदि आप एक डाक्टर नहीं हो तो आपकी जिम्मेदारी डाक्टर को बुलाने की है न कि इलाज करने की|जो कुछ भी हम आसानी से कर सकते हैं, वही हमारी जिम्मेदारी है|जब मन और बुद्धि का विस्तार होता है तो आप बड़ी जिम्मेदारी उठाते हो, और जब आप और अधिक जिम्मेदारी उठाते हो तो आपको अधिक शक्ति मिली है|
क्या आपने पर्भुपाद की कहानी सुनी है?७५ की आयु में उनके गुरु ने उनसे कहा कि वे कृष्ण भगवान का नाम प्रसिद्ध करें|इस आयु में भी वह अमरीका चले गए|एक महीने तक जहाज पे रहे|वे बहुत कठिन हालत में रहे,बहुत ठंडी जगहों पे रहे ,किसी के तहखाने में रहे ,परन्तु उनकी आस्था इतनी पक्की थी कि १००० लोग सत्संग करने लगे और इश्वर का नाम जपने लगे |जब किसी का संकल्प और इरादा पक्का होता है तो आयु का भी कोई फरक नहीं पड़ता| मैं किसी भी स्तिथि और परस्तिथि से उपर उठूँगा - ऐसा इरादा रखना चाहिए|

प्रश्न : गुरूजी मैंने आपको सपने में देखा और ऐसा महसूस किया कि आप सचमुच वहां थे|क्या आप सचमुच वहां सपने में थे?
श्री श्री रवि शंकर :
यह भी एक सपना हो सकता है|क्या तुम्हे पूरा विश्वास है कि यह सपना नहीं है?(हंसी)जब कभी भी कुछ अच्छा होता है तो वह सपने की तरह ही लगता है|

art of living TV

© The Art of Living Foundation For Global Spirituality

"यदि आप ब्रह्मांड का सिद्धांत नहीं जानते तो आप स्वयं को भी नहीं जान सकते"


बैंगलोर आश्रम,8 दिसम्बर ,2009

आज का सत्संग ब्रह्मांड के रहस्यों की एक सुंदर झलक थी। ब्रह्मांड के रहस्य जो अनादि और अनंत है|
यह आचार्य रत्तानंदा(गुरूजी के पिता जी) के 86वें जन्मदिन के समारोह से शुरु हुआ| उन्होंने उस समय चल रहे टी टी सी के प्रशिक्षण के कई सौ उमीदवारों को प्यार और उत्साह भरे शब्दों से संबोधित किया|

पिताजी :
आज मुझे गर्व है और मैं विनम्र हूँ :गर्व इस बात का है कि मैं एक महात्मा के निकट बैठा हूँ ,और विनम्र इस लिए हूँ कि उनके लाखों अनुयायियों में मैं एक हूँ| मैंने अपने जीवन में हमेशा कहा,"जीवन जीने के लिए है,आज मैं जानता हूँ,"जीवन केवल जीने के लिए है|"
एल.आई.एफ.ई.-जीवन प्यार (Love) है,निष्ठा(Integrity), भाईचारा (Fellowship) - सारे संसार से अपनापन, ई(Enlightenment)अध्यात्मिक जागरूकता है |मेरे लिए मेरी अध्यात्मिक जाग्रति मेरे गुरु और सिर्फ मेरे गुरु के कारण है| जीवन की प्रगति के लिए ,युवा रहो| यहाँ तक कि एक बच्चा भी आप को सिखा सकता है| हम युवा रह सकतें हैं और युवा रहना चाहिए क्यूंकि हम एक नवयुवक गुरु के अनुयायी हैं|

पिताजी के जन्मदिन का केक काटा गया|

श्री श्री रवि शंकर

"भाषण के चार स्तर हैं-पर,पश्यन्ति,मध्यमा,विकारी
जो भाषा हम इस्तेमाल करते हैं वह विकारी है। यह भाषा का सबसे प्रचलित रूप है| मनुष्य केवल चौथी प्रकार की भाषा बोलते हैं| विकारी से सूक्ष्म है मध्यमा| इसको बोलने से पहले ही आपको विचार के रूप में सतर्कता आ जाती है| जब आप इसे उस स्तर पे पकड़ लेते हो तो यह मध्यमा है| पश्यन्ति एकदम समझ आने वाला है| इसमे कुछ शब्द कहने की आवश्यकता नहीं होती| ’पर’ - अनकहा ,अप्रकट ज्ञान है जो शब्दों यां समझ से परे है|
सारा ब्रह्मांड गोलाकार है| यह न तो कभी शुरू हुआ था और न कभी इसका अंत होगा|यह अनादि और अनंत है|
तो ब्रह्मा (संसार को रचने वाले) का कार्य क्या है?यह कहा जाता है कि हर युग में बहुत से ब्रह्मा,विष्णु,और शिव होते हैं| समय और अन्तरिक्ष में ऐसा होता रहता है| तो इस सर्जन का स्रोत कहाँ है? परमे व्योम -आकाश से परे है| ज्ञान आकाश से परे है| ज्ञान पंच तत्वों से परे है|
ऋचो अक्षरे परमे व्योमन - वेदों का ज्ञान विकारी नहीं हैं| ये ज्ञान अन्तरिक्ष से परे है| सभी दैवी शक्तियाँ उस तत्व में निहित हैं जो कि सर्वव्यापी है| यह आकाश क्या है?आकाश को व्योम व्याप्ति कहा गया है जिसका अर्थ है सर्वव्यापी अर्थात सब जगह पाया जाने वाला| और वह क्या है जो आकाश से भी परे है? जो आकाश से परे है उसकी कल्पना नहीं की जा सकती है| आकाश में सब कुछ विद्यमान है,सारे चार तत्व आकाश में हैं| सबसे स्थूल भूमि है,फिर जल,अग्नि,वायु और आकाश है| वायु अग्नि से सूक्ष्म है| आकाश सबसे अधिक सूक्षम है| वह क्या है जो आकाश से भी परे है? वे है मन,बुद्धि,अहम्,और महात्तत्व| इसे तत्त्व ज्ञान कहते हैं -ब्रह्मांड के सिद्धांत को जानना| जब तक आप ब्रह्मांड के सिद्धांतों को नहीं जानोगे तब तक आप स्वयं को नहीं जान सकते| जब आप आकाश से परे जाते हो यह एक अनुभवात्मक क्षेत्र है| सारा क्षेत्र आकाश के परे शुरू होता है|
प्राचीन संतों ने द्रव्य गुण सम्बन्ध यां पदार्थ और इसके गुणों के संबंधों के बारे में कहा है| पदार्थ और उसके गुणों को अलग करने को लेकर एक बहुत मनोरंजक विवाद है| यह सारा ज्ञान बहुत मज़ेदार है, और निष्कर्ष यह था कि तुम पदार्थ से गुण अलग नहीं कर सकते| क्या चीनी से मिठास हटाई जा सकती है?तो क्या यह फिर भी चीनी ही रहेगी?क्या गर्मी और रौशनी आग से अलग कि जा सकती है?और इसके बाद भी क्या वह अग्नि ही रहेगी ?
पदार्थ में गुण कहाँ से आतें हैं?पहले क्या आता है - गुण या वस्तु?बहुत सारे ऐसे प्रश्न आते हैं| जितनी गहराई में आप जाते हो आप पाते हो - परमे व्योमन.यस्मिन देवाधी विश्वे निषेदु - सभी देवी, देवता उस अनुभवात्मक क्षेत्र में रहते हैं|
ब्रह्मांड के इस आश्चर्यजनक रहस्योद्घाटन के बाद अर्चना शर्मा (Particle Physicist) जोकि सी ई र एन जनेवा स्वित्ज़रलैंड में हैं ने कुछ एल एच सी(large Hydron Collider)के द्वारा आकाश के कणों पर चल रहे प्रयोजनों के कुछ अंश दिखाए।
श्री श्री प्राय कहतें है "जहाँ विज्ञान समाप्त होता है वहां से अध्यात्म शुरू होता है|"आज के सत्संग में हमें आकाश से परे,अभिव्यक्ति से परे जो है उसके बारे में सुनने का अवसर मिला और विज्ञान के द्वारा अज्ञात की एक हल्कि झलक|


art of living TV

© The Art of Living Foundation For Global Spirituality

केवल साधारण व्यक्ति ही आध्यात्मिकता प्राप्त कर सकते हैं

मेलबोर्न,
दिसम्बर 4,2009:

श्री श्री रवि शंकर
के साथ आस्ट्रेलिया के नवयुवकों की एक मुलाकात के कुछ अंश :
मैं बातचीत का सिलसिला शुरू करते हुए आपको कुछ भी पूछने के लिए आमंत्रित करता हूँ। हम वहां से बातचीत शुरू करते हैं|

प्रश्न : धर्मो में भिन्नता क्यों हैं?
श्री श्री रवि शंकर :
धर्म के तीन मुख्य अंग है :प्रतीक,रीति-रिवाज़ और परम्परा, और मूल्य | जहाँ तक मूल्यों का प्रश्न है,उनमें कोई मतभेद नहीं है। सभी एकता की बात करते हैं| रिवाज़ और प्रतीक सभी बिलकुल भिन्न हैं,और होने भी चाहिए। इससे संसार सुंदर बनता है। भगवान को विविधता पसन्द है| प्रकृति को भी कितनी विविधता के साथ रचा गया है-कितने सारे फूल हैं,जानवर हैं,लोग हैं| विविधता ही इश्वर की भाषा है| भारत में इश्वर के कितने ही नाम और रूप हो सकते हैं परन्तु ये सब एक ही देवत्व की और इशारा करते हैं|

प्रश्न : तीन मुख्य मूल्य कौन से हैं?
श्री श्री रवि शंकर :
आप इन्हें तीन तक ही सीमित कर देना चाहते हो?
सारे संसार के साथ अपनेपन की भावना| आप को यह कदम उठाना होगा, यह महसूस करना है कि तुम सारी दुनिया का हिस्सा हो और सब आप का ही एक हिस्सा हैं|
जो भी कार्य हाथ में लेते हो उसे पूरा करने की प्रतिबद्धता।
तीसरा मूल्य है वर्तमान क्षण में रहना। अतीत को पकड़े रहने से खुद भी और दूसरों को भी मुश्किल में डालते हैं।

प्रश्न : एक नौजवान जीवन के उतार चढ़ाव कैसे संभाल सकता है?
श्री श्री रवि शंकर :
जीवन सबका मिश्रण है :असफलता और सफलता-ये दोनों एक दूसरे के पूरक हैं| तुम कभी असफल हुए तभी तो सफलता की कीमत पता चलती है,यह आगे बढ़ने के लिए एक मार्ग दर्शन का काम करता है|
अपने आप से पूछो कि तुमने अतीत से क्या सीखा,और भविष्य के लिए तुमहारा दृष्टिकोण क्या होना चाहिए? इससे आगे बढ़ने में मदद मिलेगी| इसके लिए वर्तमान क्षण में रहने की और तनाव मुक्त होने जरूरत है|
तुम एक खिलाड़ी हो न कि प्यादे | यदि तुम प्यादे होते तो कोई और तुम्हे चला रहा होता और तुम पर तुम्हारा कोई नियंत्रण न होता|आपको खिलाड़ी होना होगा,अपने आप को सशक्त करो। 'आर्ट ऑफ़ लिविंग' के प्रोग्राम इसी में मदद करते हैं|

प्रश्न : अतीत से सबक सीख के इससे अलग कैसे हो सकते हैं?
श्री श्री रवि शंकर :
सबक तो एक अपने आप होने वाली घटना है, आपने जो भी अनुभव किया है वह अतीत ही है|अतीत में रहना मतलब अतीत में अटके रहना|जीवन के पास आपको देने के लिए बहुत कुछ है| पर अतीत में रहने से हम उस से अछूते रह जाते हैं|

प्रश्न : दुःख और पीड़ा का क्या महत्व है?
श्री श्री रवि शंकर :
दर्द तो रोक नहीं सकते परन्तु उससे पीड़ित होना याँ न होना अपने हाथ में है|

प्रश्न : मुझे अतीत बहुत दुखदायी लगता है|
श्री श्री रवि शंकर :
अतीत को भाग्य जानना चाहिए| यदि आप को लगता है कि अतीत में आपके पास कोई विकल्प था तो आपका वर्तमान भी खराब हो जाएगा। आप अतीत के लिए पश्चताप करते रहोगे| अतीत के बारे में लगातार पश्चताप करने से वर्तमान भी उज्ज्वल नही रहता और भविष्य भी।
हमारी शिक्षाओ में भी कर्म और पुरुषार्थ है| अतीत को भाग्य के रूप में देखो,भविष्य को तुम्हारी इच्छा की तरह देखो और वर्तमान में रहो|

प्रश्न : करुणा और निष्पक्षता को व्यवहार में कैसे लायें?
श्री श्री रवि शंकर :
जब आपके मन में पक्षपात नहीं होता, करुणा अपने आप आती है|जब हर किसी के साथ अपनापन होता है,बिना किसी श्रेणी, आर्थिक या बुद्धिमता के मतभेद के,यदि आप सभी से मिलजुल रह सकते हो तो करुणा अपने आप ही आती है|
आप कोई भी हो -चीनी ,अफ्रीकन, अपने आप को अलग अलग जगहों पर रख सकते हो अलग रोल अदा करते हुए। अचानक आप को लगता है कि आपका अस्तित्व केवल अपने एक तक ही नहीं पर सार्वभौमिक है।

प्रश्न : स्वार्थरहित कैसे बने?
श्री श्री रवि शंकर :
तुम स्वार्थरहित क्यों होना चाहते हो? क्योंकि तुम खुश होना चाहते हो| अगर आप का परिवार ही खुश नहीं होगा तो आप कैसे खुश रह सकते हो?आपके खुश रहने के लिए आपके आसपास के लोग खुश रहने चाहिए| ऐसे स्वार्थी बनो जिसमें आपकी ख़ुशी आसपास मौजूद सभी को अपने साथ मिला ले |स्वार्थी बनो परन्तु अपने स्वार्थ को जितना बड़ा सको बड़ाओ| परन्तु चरम सीमा तक मत जाओ-धीरे धीरे अपनी क्षमता के अनुसार अपनेपन का दायरा बड़ाओ। तुम चाहते हो कि तुम्हारा पड़ोसी तुम्हारे लिए सोचे, सहयोग दे, परन्तु जो तुम दूसरों को नहीं देते उसकी दूसरो से उपेक्षा कैसे कर सकते हो|

प्रश्न : हम दान कैसे करें?
श्री श्री रवि शंकर :
तीन तिहाई अपने बच्चों को दिया जा सकता है,और एक तिहाई पड़ौसी के बच्चे को| आपका पहला कर्तव्य अपने बच्चे को पालना है| जैसे कि कहा गया है आज दुनिया में सबकी जरुरत के लिए काफी है पर लालच के लिए नहीं|
आप सेवा करने के लिए अपने परिवार की हर जरूरत पूरी होने का इन्तजार नहीं कर सकते। दोनो काम एक साथ करो|

प्रश्न : क्या साधारण व्यक्ति आध्यात्मिकता प्राप्त कर सकतें है?
श्री श्री रवि शंकर :
केवल साधारण व्यक्ति ही आध्यात्मिकता प्राप्त कर सकते हैं|यदि कोई सोचे कि वह खास है तो नहीं प्राप्त कर सकते|

प्रश्न : 'आर्ट ऑफ़ लिविंग' कि सफलता के लिए कौन से तीन मुख्य कारण हैं?
श्री श्री रवि शंकर :
उदेश्य के प्रति निष्ठा,सम्मलित रवैया (सब एक हैं कोई भी बाहर का नहीं है,अपनेपन की भावना)और इश्वर की कृपा|

प्रश्न : इस संगठन को शुरू करने के पीछे क्या उदेश्य था?
श्री श्री रवि शंकर :
हर चहरे पर मुस्कान देखना|

प्रश्न : दुनिया के नेता जो भी निर्णय लेते हैं उसका असर हम पर पड़ता है।जबकि कोई कार्य हम व्यक्तिगत रूप से करते हैं तो इसका असर केवल कुछ ही लोगों पर पड़ता है।
श्री श्री रवि शंकर :
पहले तो तुम यह मत सोचो की राजनितिज्ञ कोई ख़ास किस्म है,वे हम में से ही एक हैं| बहुत से राजनीतिज्ञ अच्छे हैं जो समाज को बदलना चाहते हैं, आर्थिक बदलाव लाना चाहते हैं परन्तु अपने आप को असहाय पाते हैं| कोई भी समझदार राजनीतिज्ञ समाज को हिंसा से दूर रखना चाहेगा,पर उन्हें लगता है कि उनके हाथ बंधे हैं। ये समाज से शुरू होना चाहिए| तुम सोचते हो कि वे शक्तिशाली हैं पर वास्तव में समाज को चलाने के लिए सामूहिक सहयोग की आवश्यकता है। एन जी ओ(NGO) ,धार्मिक नेता और ऐसे संगठन प्रेरणा लाने के लिए ज़रूरी हैं|

समाज के चार स्तम्भ है-राजनीति,व्यवसाय,नागरिक समाज और विश्वसनीय संगठन(Faith based organizations)। यह ज़रूरी है कि यह सब एकसाथ काम करें। इसी को ध्यान में रखते हुए UN ने नेताओं की समिति बनाई है| सभी को इसमें काम करना है।

प्रश्न : हिरोशिमा में बोम्ब गिराए गए,आदि..सभी बड़े अत्याचार राजनीतिज्ञयों के फैसलों के परिणामस्वरूप हुए।
श्री श्री रवि शंकर :
राजनीतिज्ञयों को अध्यात्मिक होने की जरुरत है|जब आप में करुणा और देखभाल की भावना होगी तो ऐसे नहीं होगा|
संस्कृत में एक कहावत है -पहले शांति से,फिर क्षमा से ,फिर करुणा से|यदि कुछ भी काम न करे तो अंत में डंडा उठा लो|

art of living TV

© The Art of Living Foundation For Global Spirituality

"धर्म का उद्देश्य है लोगों में आध्यत्मिक जागरूकता और समाज में ख़ुशी लाना है"

श्री श्री रवि शंकर जी ने ’पार्लियामेंट ऑफ़ वर्ल्ड रिलिजन’(Parliament of world religion) 2009 को संबोधित किया| उसी के कुछ अंश यहाँ पर है|

धर्म का उद्देश्य है कि वह लोगों में आध्यत्मिक जागरूकता और समाज में ख़ुशी लाये, व्यक्तिगत पहचान से सार्वभौमिकता की ओर ले जाए तथा इश्वर से मिला दे| ऐसे समय में जबकि ये आदर्श वास्तविकता से बहुत दूर हैं, ऐसी सभाएं जहाँ पर अलग अलग धर्मों के लोग एक साथ जमा हों,उनकी ये बहुत बड़ी जिम्मेदारी बन जाती है कि ऐसे महत्वपूर्ण विषयों पर गहराई से विचार करें| ये हमारे ग्रह के बचाव के लिए अति आवश्यक है|
चाहे कुछ लोग यह सोचते है कि वे स्वर्ग को जा रहे हैं, और बाकि दूसरे लोग नरक में जा रहे है,वे सबके लिए इसे नर्क बना देंगे|
हमें बहु-सांस्कृतिक और बहु.धार्मिक शिक्षा को दुनिया के कोने कोने तक पहुँचाने की आवश्यकता है|
आज हिंसा खतरा बन गई है,चाहे यह घरेलू हिंसा हो या सामाजिक हिंसा - हम इसे हर अख़बार के पन्नों पे देखते है और एक तरह का गर्व हिंसा के साथ जोड़ा जा रहा है| स्कूलों में हिंसात्मक बच्चों को हीरो की तरह देखा जाता है|
जब हम बड़े हुए थे,महात्मा गाँधी और अहिंसा की कहानियां सुन कर बड़े हुए थे| अगर किसी व्यक्ति को गुस्सा आता था तो लोग सोचते थे कि कुछ गलत है और उन्हें मनोवैज्ञानिक के पास जाने कि आवश्यकता है| यहाँ तक कि आज हमारी फिल्मों में भी हिंसा को बढ़ावा देने की प्रथा बन गई है,जिसे हमें बदलना होगा-इसकी जिम्मेदारी हमारे समुदाय के उपर हैं जिसका आधार विश्वास है|
आज की दुनिया में दो प्रकार कि हिंसा है - धार्मिक हिंसा,जिसके बारे हम सब जानते हैं,परन्तु वामपंथी हिंसा भी है| भारत में 604 जिलों में से 212 जिलों में नक्सलवादियों का नियंत्रण है| ऐसे इलाकों में आध्यात्मिकता का पहुंचना जरुरी है,परन्तु इसके लिए हम सब को काम करना पड़ेगा| यहाँ तक कि कोलम्बिया,साउथ अमेरिका भी हिंसा से प्रभावित हैं| एफ़ बी ओ(Faith baised organizations) को काम करना पड़ेगा|
आज शाम को जब मैं संगीत की धुन सुन रहा था,मैंने इन सुंदर गायकों और कलाकारों को देखा,सब अपनी धुन बजा रहे थे परन्तु सब प्रशिक्षक का अनुसरण कर रहे थे|
सभी धार्मिक नेताओं को ऐसी भूमिका निभानी है| उस इश्वर को नजरंदाज नहीं किया जा सकता जिसने ये सुंदर विविधता रची है| अन्यथा हमारे पास एक धुनकी बजाय अव्यवस्था ही होगी|
इस संसार ने बहुत सी अव्यवस्था देखी है,आओ अब हम प्रशिक्षक की ओर ध्यान दे- GOD - Generator, Operator and Destroyer.भगवान जोकि बनाने ,चलाने और परिवर्तन लाने वाला है| एक पहलु पे ध्यान रखो परन्तु अपना वाद्य बजाते रहो| यदि हम सब एकता के एक सूत्र में ,मानवता के मूल्यों पर चलें,जोकि हम सब के दिलों में हैं ,तो किसी भी परम्परा और संस्कृति को कोई भी खतरा नहीं है|

मुझे कुम्भ मेले की याद आ गई जोकि हजारों सालों से चला आ रहा है| जब मैं पिछली बार कुम्भ मेले में था तो मैंने कुछ अद्दभुत देखा| 30 लाख लोग वहाँ जमा थे और फिर भी वहां कोई अपराध नहीं था,कोई हिंसा,कोई चोरी नहीं| कल्पना करके देखो लोग ऐसी आस्था रख सकतें हैं|
एक बार कुम्भ मेले में रात को बहुत ठण्ड थी,जनवरी का महीना था| हम बाहर कुछ कम्बल बाँटने के लिए गए|
इस तरह अपनेपन की भावना,एक दूसरे की मदद करना -केवल ऍफ़ बी ओ(FBO) ही दुनिया में इस तरह की भावना ला सकतें हैं|
समाज में सुधार लाने जैसे नेक कार्य करने और आत्मा के साथ ड़ने के लिए मैं आप सब को एक बार फिर से बधाई देता हूँ|
इस बात की जरुरत है कि हम पर्यावरण,बच्चों और कृषि से सम्बंधित मामलों पर गहराई से विचार करें | यह शब्द"पार्लियामेंट" सचमुच डरावना है| इसके बजाय मैं इसे परिवारिक पुनर्मिलन कहना चाहूँगा,क्योंकि पार्लियामेंट में बहुत टकराव होता है| सब की आस्था पर आधारित एक संगठन जोकि अवसाद की समस्याओं का हल निकालने के लिए इकट्ठा हुआ है|
डब्लू एच ओ (WHO) का कहना है कि अवसाद(depression) शीघ्र ही दुनिया का द्वितीय बढ़ा हत्यारा बन जाएगा| पोप्पिंग प्रोजेक (अवसाद के लिए एक दवा) पर्याप्त नहीं हैं|अफगानिस्तान से अपनी बहनों से यह सुन कर बहुत दुःख होता है कि वहां पूरी एक पीढ़ी अवसाद से पीड़ित है| 92 प्रतिशत पलेस्तीनी अवसाद ग्रस्त हैं| 160 लाख यूरो केवल इ यू में मानसिक रोग के इलाज के लिए खर्च किये जा रहे हैं|
हमें इस खतरनाक चक्रव्यूह से बाहर आना होगा| बहुत से लोगों के पास अच्छी कारें हैं,नौकरियां है और यदि अवसाद ग्रस्त हैं तो यह तो ऐसे हुआ जैसे लाश को कपड़े पहना रखें हो ,लाश का श्रृंगार किया हो|
हमें मानव मूल्यों को जानना होगा,और यह भी जानना होगा कि कैसे हम गहरे अवसाद,चिंता और हिंसा से बाहर निकल कर आत्मा को उन्नत्त कर सकें |
आओ हम सब मिल के कोई चतुर युक्ति से ठोस योजना बनाएं ताकि इस धरती का कोना कोना पहले जैसा हो जाए|

art of living TV

© The Art of Living Foundation For Global Spirituality

"ऐसे सात गुण हैं जिन पर भारत को गर्व होना चाहिये"


चेन्नई, २६ नवंबर २००९


परम पूज्य श्री श्री रवि शंकर ने चेन्नई के Great Lakes Institute of Management में MILK (Meditation and Inspiration Center for Living and Kindness) केन्द्र का उद्घाटन किया। श्री श्री ने छात्रों के साथ कुछ समय बिताया जिसमें की गई कुछ बातें निम्नलिखित हैं:

विष्णु शक्ति :
‘विष्णु
, नाग पर विश्राम करते हैं। उन्हें ज़्यादा कुछ नहीं करना पड़ता। बाकी के सब काम ब्रह्मा करते हैं। ब्रह्मा सृष्टि का निर्माण करते हैं और विष्णु उसका रखरखाव करते हैं। प्रबंधक लोग निर्माण और रखरखाव दोनो ही करते हैं।’

युवा शक्ति और बदलाव :

`आज दुनिया बदलाव की मांग कर रही है| युवाओं के पास अच्छा मौका है एक नई दुनिया बनाने का। आज दुनिया कुछ थम सी गई है। भारत से ही दुनिया में बदलाव आयेगा।
आर्थिक समृद्धि सच्ची समृद्धि नहीं है। जीवंतता, जोश, प्रेम, करुणा - भारत में से यह गुण प्रवाह हुए थे। जीवन का अर्थ ही है सृजन, उत्साह, प्रेम और करुणा। अगर ये गुण तुम में खत्म होने लगें तो तुम एक मृत शरीर रह जाओगे।‘

श्री श्री ने नई खोज और सृजन पर बहुत ज़ोर दिया। उन्होंने जो है केवल उसीकी देखभाल करने के इलावा सृजनात्मक विचारों को बढा़ने पए प्रोत्साहन दिया।
वसुधैव कुटुम्बकं
‘समस्त विश्व एक ही परिवार है – वसुधैव कुटुम्बकं। उस मायने में हमने खुद को दूसरों से अलग नहीं समझा। हमने जापान से सीखा कैसे एक टीम अच्छी तरह से कार्य करती है। हमने अंग्रेज़ों से तौर तरीके सीखे। अमरीका से marketing सीखी। जर्मनी से हमने तकनीकी सूझबूझ सीखी, और भारत ने विश्व को मानवीय गुण दिये।

मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूं। एक बार मैनें सभी भक्तों से कुछ सृजनात्मक कार्य करने को कहा, क्योंकि सृजनात्मकता में आत्मा की झलक मिलती है। तीन महीने बाद सभी भक्त कुछ बढ़िया प्रोजेक्ट लेकर आये। एक टीम ने बिना अंडे की आइसक्रीम बनाई, और ये साबित करने में लग गये कि उनकी बनाई आइसक्रीम विश्व में सर्वश्रेष्ठ है। एक बुज़ुर्ग महिला अपना प्रोजेक्ट लेकर आई। उसने एक रुमाल बनाया था, और उसने उस रुमाल के १७ तर्कसंगत गुण बताये जिनसे ये साबित कर सकी कि वह दुनिया का सर्वश्रेष्ठ रुमाल था।

आपने देखा, अमरीका में marketing skills उनके product से बेहतर हैं। भारत में हमारे पास बढ़िया products हैं, पर हमारी marketing skills कमज़ोर हैं।

भारत :

ऐसे सात गुण हैं जिन पर भारत को गर्व होना चाहिये। अभी इन्हें पूरी तरह पहचाना नहीं गया है।
भोजन :
भारत में भोजन के अनेक प्रकार हैं। भारत के एक छोटे से प्रांत त्रिपुरा में ही २०० से अधिक भोजन व्यंजन हैं।
उत्तर भारत के लोग दक्षिण भारत में प्रचलित अलग अलग व्यंजनों को नहीं जानते। दक्षिण भारत के लोग उत्तर भारत के भोजन को पूरी तरह नहीं जानते हैं। हमारे पास भोजन की अधिकतम क़िस्में है, फिर भी इस गुण को हम ठीक तरह market /project नहीं कर पाये हैं।

पर्यटन :

भारत के इतिहास का एक बहुत बड़ा हिस्सा अभी पर्यटकों से अछूता है।

संगीत और नृत्य :

भारतीय संगीत और नृत्य के कई प्रकार हमने अभी तक दर्शाये नहीं हैं।

वस्त्र और आभूषण :

भारतीय वेषभूषा विश्व भर में सराही जाती है। हमें अपने वस्त्रों पर कोई मान ही नहीं है! थाइलैंड और मलेशिया के लोगों को अपने वस्त्रों और आभूषणों पर बहुत गर्व है। हमें गर्व नहीं है। हम अपने आप को अच्छा नहीं समझते। Low self esteem हमारी मानसिकता और संस्कृति को खाये जा रही है।

Information Technology :

ये भारत को नई ऊंचाइयों तक ले जायेगी।

आयुर्वेद :

भारत में २८० प्रकार के पौधे और जीव पाये जाते हैं जो विश्व में और कहीं नहीं पाये जाते। इस पर हमारा ध्यान ही नहीं जाता! आयुर्वेद इक्कीसवीं सदी की लोकप्रिय चिकित्सा पद्दति होगी।

त्रिफला :

विदेश में त्रिफला का नुसख़ा ले लिया गया है। ऐसी और भी भारतीय वस्तुएं हैं जो विश्व में अपनाई जा रहीं हैं, पर भारतीय लोग उनकी उपयोगिता से अंजान हैं।

आध्यात्म :

केवल अमरीका में योग के व्यवसाय का बाज़ार मूल्य २७ बिलियन डालर का है, और इसमें 99% वर्चस्व अमरीकीयों का है। योग, भारत का विश्व को दिया गया उपहार है। अमरीका में योग के अभ्यास में उपयोग होने वाली वस्तुयें बनाई जाती हैं। न्यू यार्क में एक जगह भजन और मंत्र-जप के लिये लोगों को सादर बुलाया जाता है। और भारत में हम मंत्र जप की महत्वता को भूल गए है।


प्रश्न-उत्तर

प्रश्न : राजयोग के अनुसार ध्यान करना उनके लिये उपयुक्त है जिन्होंने मोक्ष प्राप्ति के लिये अभ्यास और एकांत का कठिन व्रत लिया हो। एक व्यक्ति जिस के पास कई ज़िम्मेदारियां हो, आसानी से ध्यान नहीं कर सकता। आप ने कहा कि सभी को ध्यान करना चाहिये। एक साधारण व्यक्ति के लिये इसका क्या अर्थ हुआ?

श्री श्री :
योग के कई प्रकार हैं। राज योग एक राज-मार्ग है। योग के किसी किसी प्रकार में साधना-अभ्यास में बहुत समय देते हैं। योग के कुछ प्रकार उन लोगों के लिये भी होते हैं जिन के पास कई ज़िम्मेदारियां होती हैं, और थोड़े ही समय में साधना हो जाती है। ध्यान हरेक व्यक्ति के लिये उपयोगी है।

प्रश्न : आपने सृजनातमकता और नई खोज का महत्व बताया है। पर इनके साथ कुछ जोखिम और अनिश्चित्ता भी बनी रहती है। कोई नई तकनीक या वस्तु कई बार असफल होने के बाद ही सफल हो पाती है। इन असफलताओं से कैसे निपटें? बार बार असफल होने के बाद भी नई खोज की यात्रा कैसे जारी रखें?

श्री श्री :
असफलता, विकास प्रक्रिया का एक अंग है। ध्यान करने से तुम्हें असफलताओं के बावजूद आगे बढ़ने में सहायता मिलेगी। असफलता के बिना भी कोई नई खोज और सृजन संभव है अगर तुम अपने अंतर्ज्ञान का सही प्रयोग करो तो। ध्यान से अंतर्ज्ञान विकसित होता है।
ध्यान और अंतर्ज्ञान के सामंजस्य से किसी नई खोज या सृजनात्मक कार्य में असफलता की संभावना शून्य हो जाती है। अगर अंतर्ज्ञान अधिक विकसित नहीं है तो असफलतायें अधिक आती हैं।

प्रश्न : भगवद् गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है कि कर्म करो, फल की चिंता मत करो। अगर हम फल के बारे ना सोचे तो कड़ी मेहनत से कर्म क्यों करना चाहेंगे?

श्री श्री :
फल पर कोई नियंत्रण नहीं है। अगर तुम्हारा ध्यान केवल कर्म फल पर है तो तुम ठीक तरह अपना कर्म नहीं कर पाओगे।
एक दौड़ प्रतियोगिता में भाग लेने वाले व्यक्ति का उदाहरन लेते हैं – अगर वह बार बार पीछे मुड़कर देखता रहे कि पीछे से कौन आ रहा है, और आगे के रास्ते से उसका ध्यान भटके, तो वो कितना ही अच्छा क्यों ना दौड़ता हो, पर वो हार जायेगा। तुम्हें अपने ही मार्ग पर आगे जाना है और दौड़ पूरी करनी है - चाहे तुम जीतो या हारों।भगवान श्री कृष्ण की सलाहें बहुत व्यवहारिक और उपयोगी है।

प्रश्न : साधना के अनेको प्रकार और पथ हैं। मैं किसे चुनूं?

श्री श्री :
योग सभी को एक साथ लाता है। योग के साथ सब आ जाता है। सुदर्शन क्रिया तुम्हारी मदद करेगी। ये आज के नौजवानों के लिये उपयुक्त हैं जो कि बहुत व्यस्त रहते हैं। थोड़े समय में ही वे गहरे अनुभव प्राप्त करते हैं। इसका कोई हानिकारक प्रभाव भी नहीं है।

प्रश्न : क्या धार्मिक क्रियायें करना आवश्यक है? मैं ध्यान के पथ पर हूँ और कभी कभी धार्मिक क्रियायें करने में मेरी रुचि नहीं होती।

श्री श्री :
ये संस्कृति की बात है। धार्मिक क्रियाओं से खुशी का माहौल बनता है। उत्सव में कोई बुराई नहीं है। पटाखे, इत्यादि..
पारंपरिक उत्सवों से परिवार में, खासतौर पर बच्चों में अपनापन बढ़ता है।

माओवादियों के घरों में भगवान के चित्र या दिया जलाने की प्रथा नहीं होती। जब बच्चे ऐसे माहौल में बड़े होते हैं तो वे अपने जीवन में बहुत खालीपन पाते हैं।
रूस में ४० सालों तक कोई धर्म नहीं था। कथीड्रलों को तोड़ा गया। और एक कथीड्रल को तोड़कर स्विमिंग पूल बना दिया गया! तबाही के उस समय के गुज़र जाने के बाद अब दोबारा उस चर्च को बनाया गया है। अगर लोग धर्म का पालन नहीं करते तो कुछ समय के बाद उन्हें खालीपन महसूस होता है। धर्म केले के छिलके की तरह हैं और आध्यात्म बीच का फल।

प्रश्न : गुरुजी, ऐसा क्यों है कि संस्कृत भाषा का जन्म भारत में हुआ पर उसका दूसरा संदर्भ शिकागो में पाया जाता है?

श्री श्री :
तुमने तो मेरा सवाल पूछ लिया! हम संस्कृत पर अपना स्वामित्व खो रहे हैं। तुम्हें पता है डाक्टर भीम राओ अम्बेडकर ने संस्कृत को राष्ट्रभाषा का दर्जा देने का प्रस्ताव रखा था और नसीरुद्दीन ऐहमद नें उनका समर्थन किया था। मलयालम के ८०% शब्द संस्कृत के हैं। तेलेगु के ७०% शब्द संस्कृत के हैं। तामिल के ३०% शब्द संस्कृत के हैं और हिंदी के ८०% शब्द संस्कृत के हैं। विदेशी भाषाओं में भी कई शब्द संस्कृत से मिलते जुलते हैं – जैसे कि ‘स्वसा – sister’, `दुहिता – daughter’ । हालांकि हमने इन के बीच की कड़ी खो दी है और संस्कृत की साख को नहीं बना सके।

तुम्हें पता है Italian में बारिश को क्या कहते हैं? ‘Piyorja!’ इसका संस्कृत शब्द है ‘पर्जन्य’। ऐसी बहुत सी मिसालें मिलती हैं।

प्रश्न : एक सोच के अनुसार हमें अपने प्रतिद्वंद्वी के कार्य-कलापों के बारे में सजग रहना चाहिये। अगर ऐसा नही किया तो हमारी स्थिति उस घोड़े जैसी होगी जिसे सामने के रास्ते के सिवा कुछ नहीं दिखता। नहीं तो ऐसा हो सकता है कि हम दुनिया का सबसे बढ़िया calculator बना पायें, जबकि दुनिया computer के युग में पंहुच चुकी हो! इन दोनों विपरीत विचारों के बारे में आप का क्या विचार है?

श्री श्री :
युवाओं को दोनों ही स्थितियों का समन्वय करना है। अपने प्रतिद्वंद्वी के प्रति सजग रहना चाहिये, और साथ ही अर्जुन की तरह अपने ध्येय पर दृष्टि होनी चाहिये। अपने परिवेश के प्रति सजग रहो और अपने ध्येय के प्रति एकाग्रचित्त रहो। हद से अधिक महत्वाकांक्षी होने से कुछ लाभ मिलने वाला नहीं है। अपने अंतर्ज्ञान, जोश और विश्राम को बढ़ाओ। इससे तुम्हें वो सब मिलेगा जिसकी तुम्हें आवश्यकता होगी।


art of living TV

© The Art of Living Foundation For Global Spirituality

" अतीत एक स्मृति के सिवा कुछ भी नहीं है।"


बैंगलोर आश्रम,
२७ नवंबर २००९

प्रश्न : ये मेरा दसवां अड्वांस कोर्स है, पर मैं अभी तक भय से छुटकारा नहीं पा सका हूं। क्या करूं?

श्री श्री रवि शंकर :
योगासन। योगासन से तुम्हारे नर्वस सिस्टम और एन्डोक्रिन सिस्टम दोनों की शक्ति बढ़ेगी।

प्रश्न : आप कहते हैं कि व्यक्तियों को वो जैसे हैं वैसा स्वीकार कर लो। मैं ऐसा करता हूं पर निराश और चिड़चिड़ा हो जाता हूं। कोई ऐसा उपाय बताइये कि मैं व्यक्ति को वो जैसा है वैसा स्वीकार भी कर लूं और चिड़चिड़ाऊं भी नहीं।

श्री श्री रवि शंकर :
जब तुम अपने भीतर क्रोध महसूस करते हो, तो क्या अपने भीतर हो रही संवेदना को महसूस करते हो? दूसरे व्यक्ति को भूल जाओ। ये भीतर की संवेदना है जो तुम्हे कष्ट पंहुचा रही है। जब तुम उस संवेदना पर अपना ध्यान ले जाते हो, वो खत्म हो जाती है। अपने नर्वस सिस्टम को तुम खुद क्यों बिगाड़ रहे हो? तुम्हे पता है, तुम्हारे चेहरे पर व्यग्रता का भाव लाने के लिये ७२ मांस पेशियों पर दबाव होता है| तुम्हारे शरीर को ही नुक्सान होता है।

प्रश्न : मैं अपनी समस्याओं में फंस जाता हूं। इससे बाहर कैसे आऊं?

श्री श्री रवि शंकर :
जब तुम सोचते हो कि तुम्हारी समस्या बहुत बड़ी है, जान लो कि तुम उन लोगों की समस्याओं से अन्जान हो जिनकी समस्या तुम्हारी समस्या से कई गुना अधिक है|। जब तुम अपनी समस्याओ की तुलना दूसरों की समस्याओं से करोगे तो तुम्हे अपनी समस्या बहुत छोटी जान पड़ेगी।

प्रश्न : वैराग्य और अस्वीकार की स्थिति में क्या अंतर है?

श्री श्री रवि शंकर :
जब तुम अपनी भावनाओं को समझ ना पाओ, मैं कहता हूँ उन्हे समझने की कोशिश का त्याग कर दो। कई बार तुम अपनी मानसिक स्थिति से परेशान हो कर परामर्श लेने जाते हो, तो परामर्शकर्ता तुम्हें बताता है, "ओह! बचपन में तुम्हारी मां तुम्हें मेले में घुमाने नहीं ले गई, इसलिये तुम क्रोध का अनुभव करते हो।" मैं तुमसे कहूंगा, अपने अतीत को एक सपने की तरह जानो और आगे बढ़ जाओ, भविष्य की ओर।
किसी घटना से तुम्हें सुख हुआ, किसी घटना से तुम्हें दुख हुआ। अपनी स्मृतियों में रह कर तुम वर्तमान को ख़राब कर रहे हो। अतीत एक स्मृति के सिवा कुछ भी नहीं है। अतीत की उस घटना का कुछ प्रभाव आज भी हो सकता है, पर वो घटना अब नहीं है। जागो और अपने आप को झंकझोरो।
तुमने देखा है कैसे एक कुत्ता या बिल्ली जब वो गन्दा हो जाता है, अपने आप को झाड़ता है और आगे बढ़ जाता है? हमें अपने मन की रक्षा वैसे ही करनी चाहिये।

प्रश्न : क्या ये सही है कि माता पिता अपने बच्चे के सदगुणों को महत्व ना देकर, उसके अवगुणों की तुलना दूसरों बच्चों के सदगुणों से करते रहें?

श्री श्री रवि शंकर :
अगर उनका लक्ष्य है कि उनका बच्चा कुछ सीखे, तो कभी कभी ऐसा करना ठीक होगा। परंतु हर बार अगर ऐसा हो, तो ये ठीक नहीं है।

प्रश्न : क्या कृपा से भाग्य बदल सकता है?

श्री श्री रवि शंकर :
हां। तभी तो उसे कृपा कहते हैं।

प्रश्न : गुरुजी, मुझमें क्रोध और अहंकार है। क्रोध के आवेश में मैं होश खो देता हूं। कृपया कोई उपाय बताइये।

श्री श्री रवि शंकर :
जब तुम अपने आप पर क्रोध करते हो, तब तुम दूसरों पर भी क्रोध करोगे।
जब तुम दूसरों पर क्रोध करते हो, तो अपने आप पर क्रोध करते हो कि तुमने दूसरों पर क्रोध किया। ये एक पेन्ड्युलम जैसी प्रक्रिया है। इसे रोकना होगा।
अगर तुम्हें क्रोध आया, तो कोई बात नहीं। इस बात पर अपने आप पर क्रोध नहीं करना कि तुमनें दूसरों पर क्रोध कर लिया। कभी तुम्हें अच्छा लगता है, कभी बुरा लगता है। जीवन एक जंगल की तरह है। यहां कांटे भी हैं, फूल भी हैं, फल, मोर, हिरन, शेर, बाघ...सब हैं यहां। यहां सब का स्थान है। अपने दृष्टिकोण में समग्रता रखो।
तुम सहज रहो। विश्राम करो। घटनाओं को स्वीकार कर आगे बढ़ते रहो। एक जगह पर रुक मत जाओ। ये मन कई प्रक्रियाओं से तुम्हें दुख में उलझाये रखता है। गान, ध्यान और सेवा करो। हमें अपने मन की रक्षा करनी है।

प्रश्न : एक सीधी स्थिति आगे चलकर बहुत जटिल कैसे बन जाती है?

श्री श्री रवि शंकर :
तो क्या हुआ? आगे चलकर एक जटिल स्थिति सामान्य हो जाती है। हर जटिलता तुम्हारे कौशल की परीक्षा है। जब तुम उस जटिलता को सुलझा कर एक सामान्य स्थिति बना लेते हो, और अपने आप को कर्ता समझने लगते हो, तुम पाओगे कि स्थिति फिर से जटिल हो गई है, ताकि तुम्हारे अहं पर नियंत्रण हो सके। जब तुम ये जान लेते हो कि जो भी हो रहा है, वो दिव्य शक्ति की इच्छा से हो रहा है, तो तुम अहं से मुक्त हो जाओगे।

प्रश्न : इच्छा और अहं मुझे परेशान कर रहे हैं। क्या करूं?

श्री श्री रवि शंकर :
सहज रहो। जो जैसा है, उसे स्वीकार करो।

प्रश्न : मैं अपनी पत्नि से लड़ता क्यों हूं, जबकि मैं उससे प्रेम करता हूं?

श्री श्री रवि शंकर :
किसी ने मुल्ला नसरुद्दीन से पूछा कि वो अपनी पत्नि से इतना लड़ते क्यों थे, तो मुल्ला ने जवाब दिया, "क्योंकि मैं उससे इतना प्रेम करता हूँ। लड़ाई और प्रेम अलग अलग व्यक्तियों से करना तो न्याय नहीं होगा। ऐसा नहीं हो सकता! मैं सब कुछ एक ही व्यक्ति के साथ करता हूं।" लड़ाई भी जीवन का एक हिस्सा है।
जब तुम एक दूसरे पर बहुत अधिक ध्यान देते हो, तब कलह होती है। अगर दोनों का ध्येय एक हो - सेवा करना, समाज का उत्थान करना, तब लड़ाई नहीं होती और प्रेम खिलता है। हरेक पति-पत्नि के लिये बहुत काम है।
भारतीय विवाह पद्दति में सात वचन होते हैं। उनमें से एक वचन है - पति पत्नि साथ में मिलकर समाज के उत्थान के लिये कार्य करेंगे।

प्रश्न : गुरुजी, मैं आपको चिठ्ठी नहीं लिखता क्योंकि मुझे पूरा विश्वास है कि मेरी समस्या यूं ही सुलझा देंगे। कई लोगों ने मुझे आप को चिठ्ठी लिखने को कहा है, पर मैं नहीं लिखता। जब मैं अड्वांस कोर्स के लिये आया तो मैने देखा के कई लोग अपनी समस्यायें चिठ्ठी में लिख रहे थे। कृपया बताइये कि मैं चिठ्ठी लिखूं या ना लिखूं?

श्री श्री रवि शंकर :
तुम अपने हिसाब से चलो। दूसरों को उनके हिसाब से चलने दो। ये आवश्यक नहीं कि सब रास्ते एक जैसे ही हों।

प्रश्न : हीन भावना से कैसे छुटकारा पाऊं?

श्री श्री रवि शंकर :
जा कर गांवों और झुग्गी-झोपड़ीयों में काम करो, तुम्हारा आत्मसम्मान वापस आ जायेगा। एक हफ़्ते, दस दिन, चाहे सप्ताह के अंत में छुट्टी के दिन जाकर काम करो। बच्चों को कुछ सिखाओ, और देखो तुम्हारा आत्मसम्मान कैसे बढ़ता है।

art of living TV

© The Art of Living Foundation For Global Spirituality

एक भक्त ही दूसरों में भक्ति को जगा सकता है

चेन्नई, भारत

आज महासत्संग में उन तीनों तत्वों का समन्वय था, जो कि एक आर्ट आफ़ लिविन्ग उत्सव का समग्र हिस्सा हैं - गान, ग्यान और ध्यान। पाश्चात्य और भारतीय संगीत में निपुण गुणीजनों ने संगीत प्रस्तुत किया। तदुपरान्त, श्री श्री ने सबको संबोधित किया और सामूहिक ध्यान कराया।

किसी भी समय में गान, ध्यान और ध्यान का बड़ा महत्व है।

सत्य को आप ना नज़रअंदाज़ कर सकते हैं , ना नकार सकते हैं।

प्रेम वही है जिसे आप पूरी तरह छुपा भी नहीं सकते, जता भी नहीं सकते।

सौंदर्य को आप बांध कर नहीं रख सकते, उसका त्याग भी नहीं कर सकते।

प्रश्न: शरीर में मन किस स्थान पर रहता है?
श्री श्री: यह प्रश्न पूछने वाला कौन या क्या है? और वो क्या है जो इस प्रश्न का उत्तर सुनेगा? बुद्धि उत्तर को दर्ज करेगी, पर वस्तुतः वो मन है जो इस उत्तर की तलाश में है।


प्रश्न: पांचों इन्द्रियों को कैसे जीतें? क्या आप एक वाक्य में बतायेंगे?
श्री श्री: सूर्य के प्रकाश के आगे मोमबत्ती का महत्व नहीं रहता। वैसी ही अन्य चीज़ें निरर्थक हो जाती हैं।

प्रश्न: ये हम कब जान पाते हैं कि हम प्रेम से ही बने हैं?
श्री श्री: प्रेम को जाना या समझा नहीं जा सकता। इसे सिर्फ़ महसूस किया जा सकता है। एक बच्चा अपनी मां से नहीं पूछता कि, "तुम्हारी योग्यता क्या है? तुम क्या करते हो? तुम्हारे मित्र कौन हैं? मुझे बताओ। तब मैं तुम्हें प्रेम करूंगा।" जैसे हमारा शरीर कार्बोहाईड्रेट्स और अमीनो ऐसिडस से बना है, हम एक ऐसे तत्व से बने हैं जो कि प्रेम है। क्रोध, लालच, ईर्ष्या ये सब प्रेम के ही विकृत रूप हैं।


प्रश्न: आतंकवाद का नियंत्रण कैसे करें?
श्री श्री: समस्त संसार में सभी धर्मों में यही चर्चा चल रही है कि आतंकवाद को कैसे रोकें। भारत के आध्यात्म और ज्ञान में इतनी ताकत है जिससे कि आतंकवाद और धर्मांधता को नियंत्रित किया जा सकता है।

प्रश्न: क्या ज्योतिष एक विज्ञान है?
श्री श्री: हां, यकीनन ज्योतिष एक विज्ञान है। पर इसका अर्थ ये नहीं कि सभी ज्योतिषी वैज्ञानिक हैं!

प्रश्न: ऐलोपैथी में कैंसर या क्षयरोग का इलाज नहीं है। क्या आयुर्वेद या सिद्ध चिकित्सा पद्दति में इनका इलाज है?
श्री श्री: अवश्य है। तुम्हें पता है, सिद्ध चिकित्सा पद्दति केवल तमिल नाडू में ही उपलब्ध है। आयुर्वेद पूरे देश में उपलब्ध है।

प्रश्न: क्या २०१२ में दुनिया का अंत हो जायेगा? क्या ये सच है?
श्री श्री: १९९९ में लोग कहते थे कि नई सह्स्त्राब्दि के पूर्व दुनिया का विनाश हो जायेगा। कनाडा में तो कुछ लोगों ने छः छः महीने का राशन भी संग्रहित कर के रख लिया था! (हंसी)
२०१२ में एक सकरात्मक बदलाव आयेगा, और ये आध्यात्मिक होगा। तुम्हें पता है, दक्षिण ध्रुव के पास टेर डेल फ़िआगो में और उत्तरी ध्रुव के पास नौर्वे में लोग ध्यान कर रहे हैं, शाकाहारी हो रहे हैं, भारतीय परंपराओं को अपना रहे हैं और ॐ नमः शिवाय का जप कर रहे हैं।

प्रश्न: गुरुजी, हमारी दो बिनती हैं। आप चेन्नई में क्यों नहीं आते और यहां पर एक आश्रम क्यों नहीं शुरु करते?
श्री श्री: कल से यहाँ एक ध्यान केन्द्र खुलने जा रहा है। तुम सब यहाँ आकर ध्यान किया करना।

प्रश्न: हम ’आर्ट आफ़ लिविन्ग’ का एक टी वी चैनेल क्यों नहीं शुरु करते, ताकि ज्ञान सब तक पंहुचे?
श्री श्री: इसे सिर्फ़ एक चैनेल तक सीमित क्यों रखें? ये सभी चैनेलों पर होना चाहिये। (हंसी)
यदि तुम एक चैनेल शुरु करना चाहते हो तो मैं तुम्हारा प्रोत्साहन करता हूं। उस चैनेल में सिर्फ़ ध्यान और संगीत ना होकर आध्यात्मिक ज्ञान भी हो, और दुनिया में क्या हो रहा है उसकी भी खबर हो।
एक आखिरी बात, जब भी तुम्हें कोई चिंतायें सतायें, तुम पत्र या कोरियर के द्वारा मुझे दे दो। कुछ ऐसा करो जो तुम्हारे आसपास के लोगों के लिये उपयोगी हो। अगर तुम ऐसा करते हो तो तुम्हारे बाकी सब विषयों की देखभाल हो जायेगी।


art of living TV

© The Art of Living Foundation For Global Spirituality

प्रयत्न और प्रार्थना, दोनों एक दूसरे के पूरक हैं

बैंगलोर आश्रम, २२ नवंबर २००९

अगर हम रोज़ प्रेम व्यक्त करते रहते हैं तो वो सिर्फ़ शब्द रहे जाते हैं जिनमें भाव नहीं रहता। अगर रोज़ कहते रहो, "मैं तुम्हें प्रेम करता हूँ।" तो अंतत: ये हो जाता है, "मैं तुम्हें बर्दाश्त नहीं कर सकता।" ज़रुरत से अधिक अभिव्यक्ति बात को बिगाड़ देती है। अगर बिलकुल अभिव्यक्त ना करो, तब भी ठीक नहीं है। संतुलन होना चाहिये। जैसे कि एक बीज को अगर सतह पर ही रख दोगे तो वो उगेगा नहीं, और ना ही तब उगेगा जब वो धरती के भीतर बहुत गहरा दब गया हो। इसे सही गहराई पर बोने की आवश्यकता है, संतुलन की आवश्यकता है।

प्रश्न: औरा को साफ़ करने में नींबू का क्या महत्व है?
श्री श्री: तुमने कभी माइक्रोस्कोप से नींबू के रस को देखा है? वो सूर्य की किरणों की तरह दिखता है। विटामिन सी को माइक्रोस्कोप से देखो तो वो सूर्यमुखी के फूल की तरह दिखता है। कुछ पदार्थ जैसे कि नमक, नींबू और सही मात्रा में मिर्च ऐसी शक्ति रखते हैं कि वो नकरात्मक ऊर्जा को मिटा देते हैं। यहाँ श्रद्धा भी काम करती है। अगर तुम कोई दवा भी लेते हो और तुम्हें उस दवा या उसे देने वाले डाक्टर पर भरोसा नहीं है तो शायद वो दवा तुम पर असर ना करे।

प्रश्न: शक्ति और भक्ति कैसे प्राप्त कर सकते हैं?
श्री श्री: विश्राम से तुम भक्ति को प्राप्त करते हो। जब तुम विश्राम के साथ में प्रयत्न लगाते हो तब तुम्हें शक्ति मिलती है। प्रयत्न और प्रार्थना, दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। एक दूसरे के बिना दोनों अधूरे हैं। किसी कार्य की पूर्णता के लिये दोनों की आवश्यकता है। आमतौर पर महिलायें केवल प्रार्थना करती हैं और पुरुष केवल प्रयत्न करते हैं। प्रार्थना और प्रयत्न दोनों को ही करना होगा।

प्रश्न: मैं परिवार और आजीविका में किस को चुनू, ये तय नहीं कर पा रहा हूँ।
श्री श्री: आजिविका पर ध्यान दोगे तो माता पिता भी तुम पर प्रसन्न होंगे। अगर आजिविका के अभाव में तुम घर पर बैठ जाओ तो क्या उन्हें अच्छा लगेगा? नहीं! इस तरह से परिवार और आजिविका दोनों एक साथ आ गये।

प्रश्न: मैं जीवन में कभी सफल नहीं हुआ। मैं अपने आप को अपने माता पिता पर बोझ समझता हूँ।
श्री श्री: आलस छोड़ो और अधिक नुक्ताचीनी ना करो। जो भी काम मिले उसे करो। ये ना सोचो कि कोई काम तुम्हारे लिये तुच्छ है। ये ना सोचो कि तुम सफल नहीं हो। हर काम आदर और प्रतिष्ठापूर्ण है।

प्रश्न: गुरुजी, मेरे परिवार में कुछ अलगाव है। एक सदस्य ’आर्ट आफ़ लिविन्ग’ को मानता है। दूसरा सदस्य किसी और आध्यात्मिक मार्ग, प्राणिक चिकित्सा की पद्दति पर चलता है।
श्री श्री: दोनों अपने अपने आध्यात्मिक मार्ग पर दृढ़ रहो।

प्रश्न: ध्यान करते समय, मन कई जगह जाता है। एक बार आपने कहा था कि, "मन जहां भी जाये उसे जाने दो।" क्या इसका अर्थ हुआ कि मेरा और मेरे मन का अस्तित्व अलग अलग है? अगर ये सच है तो मेरा मन क्या है और मैं कौन हूं?
श्री श्री: जब तुम अपने मन को रोक कर रखने की कोशिश करते हो तो ये इधर उधर भागता है। जब तुम इस भागते मन को देखते हो तो तुम्हें ये एहसास होता है कि तुम अपने मन से बड़े हो। जब तुम ये जान लेते हो कि तुम मन नहीं हो, शरीर नहीं हो, कुछ और नहीं हो, जो बचता है वही तुम हो। अपने आप को जान कर तुम श्रेष्ठतम को जान लेते हो। तुम पाते हो कि तुम ही सर्व हो। तुम ही मन हो। तुम ही विचार हो। तुम ही पूरा संसार हो। पर ये होता है दूसरे स्तर पर। जब तुम स्वयं को जान लेते हो, तुम दैवी शक्ति को जान लेते हो। सर्व खल्विदम ब्रह्म - सब वही एक शक्ति है। ये जानकर ज्ञान में स्थापित हो जाओ।

प्रश्न: गुरुजी, एक बार आपने कहा था कि इच्छायें आती हैं, जाती हैं। जिन इच्छाओं को पूर्ण होना होता हैं वे रहती हैं, बाकी गायब हो जाती हैं। पर उन इच्छाओं का क्या जो रहती हैं, पर पूरी नहीं होती?
श्री श्री: प्रतीक्षा करो और दृढ़ रहो।

प्रश्न: मैं यहां आने के लिये इतना पागल क्यों रहता हूं?
श्री श्री: क्योंकि मैं भी ऐसा ही हूँ। कोई अमीर ही दूसरे को अमीर बना सकता है। कोई मुक्त ही दूसरों को मुक्त करा सकता है। एक भक्त ही दूसरों में भक्ति को जगा सकता है। ईशवर से प्रेम करने वाला व्यक्ति दूसरों को भी वैसा बना देता है। जो तुम्हारे भीतर है, वही दूसरे तुम से ले पाते हैं। जो तुम्हारे भीतर है, वही तुम दूसरों में देखते हो।

प्रश्न: जीवन साथी(Soul mate) क्या है?
श्री श्री: पहले अपनी आत्मा (Soul) से मिलो, फिर जीवन साथी (Soul mate) के बारे में जान सकते हो।



art of living TV

© The Art of Living Foundation For Global Spirituality

मानवीयता के अभाव में कोई भी वाद चल नहीं सकता

बैंगलोर आश्रम, भारत


१८ नवंबर, २००९ को परम पूज्य श्री श्री रवि शंकर ने बैंगलोर आश्रम में पधारे जर्मनी के मंत्री-राष्ट्रपति श्री गुन्थर ह. ओएट्टिंगर एवं उनके साथ पधारे राजनैतिक प्रतिनिधिमंडल का स्वागत किया। इस प्रतिनिधिमंडल में जर्मनी के वित्त एवं अर्थशास्त्र के राज्य मंत्री एवं अन्य संसद सदस्य शामिल थे। इस उपल्क्ष्य में कर्नाटक प्रदेश के उद्योग मंत्री श्री मुरुगेश रुद्रप्पा निरानी एवं फ़ेडरेशन आफ़ करनाटक चेंबर आफ़ कौमर्स एण्ड इन्डस्ट्री के अध्यक्ष श्री क्रास्टा भी मौजूद थे।
श्री श्री ने कहा:
आप सब का स्वागत है। हमें बहुत खुशी है कि आप जर्मनी के अपने घर से इस घर में आये। ये भी आपका घर है। इस देश में आपका स्वागत है। इसे अपना ही घर जान कर आराम करें।
इस देश की पुरातन विचारधारा रही है, "ये विशव एक ही परिवार है।" हम सब एक ही परिवार का अंश हैं। ऐसा परिवार जहां मानवीय गुणों की सत्ता का सर्वोच्च महत्व हो। मानवीय गुणों की आवश्यकता व्यापार, राजनीति और सामाजिक जीवन में भी है। किसी भी क्षेत्र में आप देखें, अगर वहां मानवीय गुण हैं, एक जुड़ाव है, सामंजस्य है तो समाज जीवित रहता है। १० वर्षों में कम्यूनिज़्म ढह गया। १० महीनों से भी कम समय में पूंजीवाद ढह गया। मानवीयता के अभाव में कोई भी वाद चल नहीं सकता। कुछ लोगों के लालच के कारण ही आज पूरी दुनिया एक वित्तीय संकट से जूझ रही है।
ये पुरानी बात है कि सब अलग अलग कक्षों में काम करें। समाज अलग था। राजनीति अलग थी। व्यापार का क्षेत्र अलग था। धर्म और आध्यात्म अलग थे। समाज के सर्वांगीण विकास के लिये समाज के सभी अलग अलग हिस्सों को एक ताल में सामंजस्य स्थापित कर के, एक दूसरे को सहयोग देते हुए काम करना होगा।
नैतिकता ही व्यापार की रीढ़ की हड्डी है। व्यापार से विश्व का पोषण होता है। व्यापार से ही विश्व से भुखमरी जायेगी और समाज में आत्मविश्वास जगेगा।
मुझे खुशी है कि भारतीय और जर्मन व्यापार मंडल यहां आये हैं। मैं चाहता हूं कि आप लोग आपस में बात करें और भारत, जर्मनी और यूरोप के बीच हमारी पुरानी परंपरा पुष्ट करें।
हम सब एक ही परिवार का अंग हैं। स्वस्थ शरीर, सौम्य समाज और प्रसन्न मन हरेक का जन्मसिद्ध अधिकार है। आइये, हम सब साथ मिलकर एक सुखी समाज के लिये काम करें । धन्यवाद।


art of living TV

© The Art of Living Foundation For Global Spirituality

"बुद्दि की शुद्धि ज्ञान से होती है"

बैंगलोर आश्रम

तुम्हें प्रतिदिन ध्यान करना चाहिये। तुम प्रतिदिन दांत मांजते हो। शरीर को स्वच्छ रखने के लिये नहाते हो। वैसे ही, प्रतिदिन थोड़ा ज्ञान सुनो और ध्यान करो। बुद्दि की शुद्धि ज्ञान से होती है। वो ज्ञान जो तुम्हें बोध कराता है कि यहां सब कुछ नाशवान है। संगीत और समरसता भावनाओं को शुद्ध बना कर हृदय को संपन्न बनाते हैं। कुछ देने से हृदय शुद्ध होता है। ज्ञान और ध्यान से सब शुद्ध हो जाता है।

प्रश्न : गुरुजी, किसी का देहांत होने पर ‘राम नाम सत्य है’ क्यों कहते हैं?

श्री श्री : किसी के देहांत पर तुम ये समझ जाते हो कि यही सत्य है। एक दिन हर किसी की मृत्यु होगी। जीवित रहते हुए तुम इस सत्य से अन्भिग्य रहते हो। तुम बेकार बातों में फंसे रहते हो।
सत्य को तुम टाल नहीं सकते। सौंदर्य का त्याग नहीं हो सकता। प्रेम की पूर्ण अभिव्यक्ति नहीं हो सकती।
ये तीन बातें ही याद रखने के लिये बहुत हैं। इन्हें पचाओ।

प्रश्न : यज्ञ के क्या क्या अंग होते हैं?

श्री श्री : किसी भी यज्ञ में ध्यान, दान, ज्ञान और गान होता है। गान दिमाग के दायें भाग को पुष्ट करता है। ज्ञान दिमाग के बायें भाग को पुष्ट करता है। ध्यान से दिमाग के दोनों भाग पुष्ट होते हैं। यज्ञ से हमारा विकास होता है।

प्रश्न : गुरुजी, अपना जीवनसाथी चुनते समय हमें उस में किन किन गुणों को परखना चाहिये?

श्री श्री : (मुस्कुराते हुये) मुझे इस का अनुभव नहीं है! उन से पूछो जिन्हें अनुभव है। तुम यहाँ वैवाहिक विभाग से भी मदद ले सकते हो।
तुम्हें पता है ये क्यों कहते हैं कि ‘विवाह स्वर्ग में पूर्वनिश्चित किये जाते हैं’? क्योंकि, तुम्हारे लिये चुनाव हो चुका है। तुम्हें सिर्फ़ उसे लेना है और आगे बढ़ना है। तुम चुनाव की प्रक्रिया से मुक्त हो। जो तुम्हारी थाली में आये, उसे लो और आगे बढ़ो।
तुम्हें पता है, सबसे अच्छी बात होगी कि तुम अपने जीवनसाथी की कमियों पर ध्यान ना दो। किसी भी रिश्ते में अगर दोनों व्यक्तियों का ध्यान आध्यात्म पर होगा तो वे समांनांतर रेखाओं की तरह बिना किसी टकराव के अनंत तक साथ साथ आगे बढ़ पायेगें। जिस क्षण आध्यात्म से ध्यान हटा और एक दूसरे पर गया तो टकराव होंगे। आध्यात्म के पथ पर रहना बहुत महत्वपूर्ण है।

प्रश्न : गुरुजी, विशालाक्षी मण्डप का निर्माण कैसे हुआ?

श्री श्री : मनुजी (एक शिष्य) ने कहा, "गुरुजी, एक सभा कक्ष होना चाहिये जहां लोग ध्यान कर सकें।" तो मैनें एक चित्र बनाया और उसे बनाया गया। पहले कोई सभा कक्ष नहीं था। अष्टावक्र गीता की व्याख्या ऐसी जगह की गई थी, जहां बारिश का पानी भीतर आ जाता था।
जब हमने विशालाक्षी मण्डप का उद्घाटन किया, तो इतने लोग आये कि वो उसी वक्त छोटा पड़ गया! तुम्हें पता है, जब लोग एक साथ ध्यान करते हैं तो वो ऊर्जा विशव में प्रसारित होती है।

प्रश्न : गुरुजी, इस स्थान का रहस्य क्या है?

श्री श्री : (मुस्कुराते हुए) रहस्य यहाँ है (अपने हृदय को इंगित करते हुए)।


art of living TV

© The Art of Living Foundation For Global Spirituality

हमें आगे बढ़ कर, जनता को शिक्षित करना है

बैंगलोर आश्रम, १४ नवंबर २००९

कन्नड़ में हो रहे Advanced Meditation Course, के तहत:

प्रश्न: मैं अपने गांव में कुछ बदलाव लाना चाहता हूँ, पर हर कोशिश में कई बाधाओं का सामना कर के मैं परेशान हो गया हूँ। क्या करूं?
श्री श्री: संघे शक्ति कलियुगे - एक या दो व्यक्ति अकले बदलाव को नहीं ला सकते। एक साथ जुड़ने की आवश्यकता है। उसके लिये ज्ञान का उदय आवश्यक है। लोगों को ऐसे कार्यक्रमों के लिये लाओ। लोगों को साथ लाकर ये काम करो। कभी कभी हम जो काम करते हैं, उनमे असफलता मिलती है। अगर बार बार असफलता मिले तो कभी कभी हिम्मत हार जाते हैं। पर जब हम बदलाव लाना चाहते हैं, तो चाहे हम १० बार क्यों ना हार जायें, हमें आगे बढ़ते रहना चाहिये। हमें मज़बूत होना चाहिये। ये जान लो कि तुम कभी अकेले नहीं होगे। समाज में जागरूकता बढ़ाने के लिये लोगों को साथ में लेकर काम करो, सत्संग करो। मैं हमेशा तुम्हारा मार्गदर्शन करता रहूँगा।

प्रश्न: जब हम योगनिद्रा करते हैं तो अपने ध्यान को शरीर के विभिन्न भागों पर क्यों ले जाते हैं, जबकि हमें शरीर के स्तर से ऊपर उठना है?
श्री श्री: जब हम एक ऊंची इमारत बनाना चाहते हैं तो ध्यान रखते हैं कि उसकी नींव गहरी हो। धनुष की प्रत्यंचा को पूरी तरह पीछे तान कर खींचते हैं तो तीर आगे दूर तक जाता है। तो, मन के पार जाने के लिये हम अपना ध्यान शरीर पर लाते हैं, और फिर ये अनुभव करते हैं कि हम शरीर से परे हैं।

प्रश्न: दुनिया में इतनी समस्यायें हैं। ये अच्छा होता अगर हम में यह शक्ति होती कि हम उन सब समस्याओं को जान सकते, तो हम उनको सुलझाने में कुछ सहायता कर सकते।
श्री श्री: क्या जितना तुम टी वी पर देख रहे हो उतना काफ़ी नहीं है? तुम दुनिया की सब समस्याओं को क्यों जानना चाहते हो? अगर तुम्हें उन सब के बारे में ना भी पता हो, तब भी ध्यान और सत्संग से तुम बदलाव ला सकते हो। सभी समस्याओं को जानना कोई बड़ी बात नहीं है। तुम अपने ध्यान को जहां ले जाओगे वहां की जानकारी तुम्हें मिल जायेगी। जब तुम्हारे पास ये शक्ति आ जायेगी तो तुम इसका प्रयोग करना नहीं चाहोगे। एक विद्यार्थी हर समय अपनी सभी किताबें अपने सिर पर उठा कर नहीं घूमता। जब किसी किताब की आवश्यकता होती है तो वो उसे खोल कर देख लेता है। उसी तरह, तुम्हारे भीतर की चेतना सब जानती है। जब आवश्यक होता है वो जान लेती है। कुछ कर्मों को भोगना पड़ता है। कुछ कर्मों का असर उपायों द्वारा कम किया जा सकता है।

प्रश्न: भारत में चरणों में नमन करने का क्या महत्व है?
श्री श्री: केवल भारत में ही चरणों को इतना महत्व दिया गया है। चरण तुम्हें आगे ले जाते हैं। हमारी ऊर्जा, हाथों और पैरों द्वारा किसी को भी दी जा सकती है। ये ऊर्जा या स्पंदन सिर ग्रहण कर लेता है। उर्जा का संचरण सिर्फ़ एक दृष्टिपात से भी हो सकता है। केवल किसी की उपस्थिति में होने से भी दिव्य ऊर्जा ग्रहण की जा सकती है।

प्रश्न: गुरुजी, आप कहते हैं कि खुद पर दोषारोपण करना ठीक नहीं है। पर मुझे लगता है कि कभी कभी इससे व्यक्तित्व में उत्तमता आती है।
श्री श्री: अगर तुम्हें लगता है कि खुद पर दोशारोपण करने से तुम्हारे व्यक्तित्व में उत्तमता आती है, तो करो। पर अगर तुम बार बार अपने आप को दोषी समझते रहे तो ये उत्तमता नहीं है। साथ ही, इस बात का भी ध्यान रखो कि तुम दूसरों को भी दोष ना दो! दूसरों को उत्तम बनाने की कोशिश ना करो!
हम सब में दिव्य गुण हैं। जब तुम किसी में इन गुणों को बढ़ाना चाहते हो और वो ऐसा नहीं चाहते तो क्या फ़ायदा? ये तो ऐसा होगा जैसा एक बुज़ुर्ग महिला सड़क पार करना ना चाहे और आप उसे ज़बरदस्ती सड़क पार करा दें।
हम जो भी काम करें अच्छे भाव से करें। किसी का श्राप तुम्हें प्रभावित नहीं कर सकेगा अगर तुम्हारा हृदय शुद्ध है। अगर तुम्हारा हृदय शुद्ध नहीं है तो किसी के श्राप का असर ज़रूर पड़ेगा।

प्रश्न: नमक से बुरी नज़र उतारने का क्या महत्व है?
श्री श्री: हमारी ऊर्जा को नमक के प्रयोग से साफ़ किया जा सकता है। पश्चिम के देशों में लोग नमक से श्नान करते हैं। किसी और की भावनाओं से हमारी ऊर्जा में फ़र्क पड़ सकता है। इसकी चिंता करने के बजाय, नमक का प्रयोग कर लो।
हर वस्तु की अपनी ऊर्जा होती है। पानी में घुले नमक की वजह से लोगों को समुद्र के किनारे विश्राम महसूस होता है। नमक से शरीर और मन के विषाणु मिट जाते हैं। पर अगर नमक का अत्यधिक प्रयोग करोगे तो उच्च रक्तचाप हो सकता है। अगर रोज़ ही त्वचा नमकीन जल से स्पर्ष होती रहेगी तो त्वचा पर विपरीत असर पड़ेगा। मध्य मार्ग पर चलो-अति सर्वत्र वर्जयेत।

प्रश्न: शंख का क्या महत्व है? शंख का प्रयोग हर पूजा और उत्सव में होता है।
श्री श्री: प्राचीन समय में, शंख बजा कर लोग युद्ध की शुरुवात करते थे। हर वस्तु का एक विशेष स्पंदन होता है। शंख, शुभ और समृद्धि का प्रतीक है। शंख-भस्म स्वास्थ्य के लिये बहुत अच्छी है। ये शरीर में शक्ति लाती है।
इस सृष्टि में, घास के एक एक तिनके का भी महत्व है। बिल्व, परिजात, नीम – सब का अपना महत्व है। उससे भी अधिक, तुम सब का महत्व है। तुम्हारी चेतना महत्वपूर्ण है। तुम अपने आस पास के परिवेश को महत्व देते हो और अपने घर को कूड़े से भर लेते हो – तब इसका कोई महत्व नहीं होता। तो, पहले अपने हृदय को पवित्र रखो, तब तुम्हारे लिये सृष्टि की हर चीज़ महत्वपूर्ण होगी।


प्रश्न: कप्या वास्तु के महत्व के बारे में बताएं?
श्री श्री: सृष्टि में हरेक वस्तु का एक विशेष स्पंदन है। ये संसार स्पंदनों का एक सागर है। हर जीव का एक विशेष स्पंदन है। देवताओं को किसी ना किसी वाहन पर सवार दिखाया है। ये देवताओं के विशेष उर्जा के द्योतक हैं। हाथी अंतरिक्ष से श्री गणेश की विशेष उर्जा को आकर्षित करता है। शेर, देवी के विशेष स्पंदन को आकर्षित करता है। मोर, भगवान सुब्रमण्यम के विशेष स्पंदन को आकर्षित करता है। पर तुम इस सब की चिंता मत करो। बस ॐ नमः शिवाय कहो, वास्तु के सभी दोषों का निवारण हो जायेगा।

प्रश्न: क्या शास्त्रीय संगीत सीखने से हम आध्यात्मिक बनते हैं?
श्री श्री: संगीत लय योग है। भक्ति अलग है। भक्ति के बिना संगीत उतना सहायक नहीं है। उससे तुम्हारे दिमाग का केवल एक ही भाग विकसित होता है। संपूर्ण व्यक्तित्व का विकास नहीं होता। ज्ञान, गान और ध्यान – तीनों की आवश्यकता है। ज्ञान से दिमाग के बाहिने भाग का पोषण होता है। गान से दिमाग के दाहिने भाग का पोषण होता है। ध्यान से दोनों भागों का पोषण होता है। ज्ञान, गान और ध्यान, तीनों की आवश्यकता है।

प्रश्न: मानव के रूप में जन्म को सभी जीवों से श्रेष्ठ क्यों कहा गया है?
श्री श्री: क्योंकि तुम ये प्रश्न पूछ सकते हो और उनके जवाब समझ सकते हो। अगर तुम पूछते नहीं और समझते भी नहीं हो, तो तुम और जीवों से बेहतर नहीं हो।

प्रश्न: ध्यान करने के बावजूद भी मुझे गुस्से और तनाव का अनुभव होता है। मैं क्या करूं?
श्री श्री: तुम अब भी तनाव का अनुभव करते हो, पर वो चला जाता है, है ना? गुस्सा, तनाव...कई लोग तो ये जानते भी नहीं कि वो ऐसे हैं! कम से कम तुम जानते तो हो। एक सफ़ेद कपड़े पर धूल का एक कण भी नज़र आ जाता है। जब मन साफ़ हो तो थोड़ा सा गुस्सा और तनाव भी नज़र आ जाता है। धीरे धीरे तुम पाओगे के तुम्हें किसी बात से फ़र्क नहीं पड़ता। कुछ महीनों या सालों की साधना से तुम पाओगे कि तुम्हें कुछ नहीं छू सकता।

प्रश्न: महिलाओं की शिक्षा के विरोध में फ़तवे के बारे में आपकी क्या सलाह है?
श्री श्री: ये अज्ञान है। ये विकास के पथ में बाधा है। महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार मिलने चाहिये। अर्धनारीश्वर एक प्रतीक है – आधा भाग शिव है, और आधा भाग शक्ति है। महिलाओं के साथ दूसरे यां तीसरे दर्जे यां नौकर की तरह व्यवहार नहीं करना चाहिये।
‘वंदे मातरम नहीं गाना चाहिये क्योंकि वो धरती को मां का दर्जा देते हुये स्तुति है,’ - ऐसी बातों पर पर लोग अब ध्यान नहीं दे रहें हैं।
महिलाओं को सभी अधिकार मिलने चाहिये। महिलाओं को सशक्त बनाना चाहिये। हर बात में उनकी राय होनी चाहिये।  वोट बैंक के लिए राजनेता समाज को विभाजित कर सुविधाओं का उपभोग करते हैं। वे नहीं चाहते कि गरीब लोगों तक शिक्षा पहुंचे, ताकि वे हमेशा गरीबों पर राज़ करते रहें। ये एक सड़ा हुआ दिमाग है। हमें आगे बढ़ कर, जनता को शिक्षित करना है। निरक्षरता की वजह से ही गलत लोग राजनीति में प्रवेश पाते हैं।
art of living TV
© The Art of Living Foundation For Global Spirituality

"यदि तुम अपनी भावनाओं को अपनी जिम्मेदारी बनाते हो, तुम्हें कोई भी सुखी या दुखी नहीं कर सकता|"

प्रश्न : हम कैसे जानें कि सच्चा प्यार क्या है?

श्री श्री रविशंकर : हम कैसे जाने कि झूठा प्यार क्या है? मेरे प्रिय ! प्यार प्यार है, तुम इसे सच्चा या झूठा नहीं कह सकते| प्रेम पर संदेह मत करो| हम घृणा पर संदेह नहीं करते| क्या गारंटी है कि लोग तुमसे घृणा करते हैं? हो सकता है कि उस समय वे तुमसे गुस्सा हों ! प्रेम हमारा स्वभाव है| इच्छाओं और लालच के कारण कभी-कभी प्रेम छिप जाता है| प्रेम के बिना कोई प्राणी नहीं है| प्राण उर्जा प्रेम से ही बनी है| हज़ारों परमाणु मिलकर शरीर का निर्माण करते हैं| प्रेम(प्राण उर्जा) के बिना ये सभी परमाणु अलग-अलग हो जायेंगे और वह मृत्यु के सिवा कुछ नहीं है| जब प्राण शरीर को प्रेम करते हैं, तो शरीर में रहते हैं और जीवन होता है| जब उस प्रेम का अंत हो जाता है, मृत्यु होती है| हमें भावनाओं को प्रेम नहीं समझना चाहिए। प्रेम हमारी प्रकृति है। भावनाओं और प्रेम में अलगाव को जानो|

प्रश्न : अप्रसन्नता क्यों होती है?

श्री श्री रविशंकर : ताकि परमात्मा कुछ कार्य कर सके| एक बुद्धिमान व्यक्ति ईश्वर का खेल समझता है| यह एक कठपुतली के खेल में होने जैसा है| जब तुम ज्ञान में होते हो, तुम परमात्मा के हाथों में तार की तरह हो| इस ज्ञान के बिना तुम कठपुतली हो जाते हो|

प्रश्न : ज्योतिर्लिंग का क्या महत्व है? (भारत में १२ वर्णित तीर्थ-स्थल ज्योतिर्लिंग कहलाते हैं)

श्री श्री रविशंकर :
लिंग प्रतीक है| ज्योति प्रकाश है| ज्योतिर्लिंग प्रकाश का प्रतीक है| आदि-कालीन ऋषियों और साधुओं ने इन स्थानों पर ध्यान और तपस्या की, और इन स्थानों पर वो उर्जा प्रकट हुई| यहाँ (विशालाक्षी मंटप में) एक ज्योतिर्लिंग है| वह तुम्हें दिखाई नहीं देता, लेकिन वहाँ प्रकाश है| स्वयाम्ही तिर्तानी पुनाम्ही सन्तः -जहाँ कोई संत रमता है, वहीँ तीर्थ (पवित्र स्थल) होता है| प्रत्येक तीर्थ-स्थल वह स्थान है, जहाँ किसी संत ने ध्यान किया, तपस्या की और फिर अपनी शक्ति को पत्थर, पानी आदि में प्रेषित किया और वह स्थान उस चेतना से प्रकम्पित हो उठा| जब किसी स्थान में आध्यात्मिक ऊर्जा कम होती है, तब संघर्ष बढ़ता है| वहाँ ध्यान, पूजा, सेवा और आध्यात्मिक जीवन होना चाहिए| तब चैतन्य-शक्ति (आध्यात्मिक ऊर्जा) बढ़ती है|
प्रश्न: पानी भी भाप बनने में एक निश्चित समय लेता है| मेरी अज्ञानता दूर होने में कितना समय लगेगा|
श्री श्री रविशंकर: ‘मैं बस एक साधारण व्यक्ति हूँ| मेरे लिए यह कैसे संभव है?’ ऐसा मत सोचो| केवल एक साधारण व्यक्ति ही यह ज्ञान प्राप्त कर सकता है| एक पात्र खाली होने में कितना समय लेता है? चाहे वह चांदी, कीचड़ या सोने से भरा हो, यह खाली होने में उतना ही समय लेता है| कीचड़ भरने में कम समय लगता है, सोना भरने में अधिक| तुम्हें बहुत प्रयास करना पड़ता है| लेकिन खाली होने में कोई समय और कोई प्रयास नहीं लगता| ईश्वर को प्राप्त करने के लिए किसी योग्यता व किसी प्रयास की आवश्यकता नहीं है|
अकिंचन- मैं कुछ नहीं हूँ।
अप्रयत्न- मैं कुछ नहीं करता।
अकाम- मैं कुछ नहीं चाहता।
जब तुम देखते हो कि किसी ने बड़ी तपस्या की और तब उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया, तो जानो कि ताप स्वयं को खाली करने के लिए था|
जब रजस शांत हो जाता है,सारी बेचैनी दूर हो जाती है| तब उसमें दैवी चेतना का अनुभव होता है| मत सोचो कि कोई प्रकट होगा और यह और वह बतलायेगा! वह केवल भ्रमित होना होगा| बस विश्राम करो| आराम और विश्राम में कोई दूरी नहीं है| ईश्वर तुम्हारे बिलकुल पास है| तो थोड़ी देर के लिए ध्यान करो| और महसूस करो कि तुम्हारा कुछ भी नहीं है| यदि तुम मंत्र-जाप करते हो, तो यह तुम्हें ध्यान में जाने में सहायता करता है| किसी भी पूजा में पहले ध्यान होता है| पूजा समाप्त होने पर भी ध्यान होता है| यह परम्परा छोड़ दी गयी है| इसके बिना यह चाबुक के बगैर घोड़े पर सवारी करने जैसा है| तुम घोड़े को कैसे नियंत्रित करोगे?
एक बार मुल्ला नसीरुद्दीन को एक ऐसे ही घोड़े की पीठ पर बिठाकर शहर के चारों ओर घुमाया जा रहा था| किसी ने मुल्ला से पूछा कि वे कहाँ जा रहे हैं| तो उन्होंने उत्तर दिया,‘घोड़े से पूछो|’
हमारा दिमाग भी ऐसा ही हो गया है| जहाँ कहीं हमारा दिमाग दौड़ता है, वहीं हम भी दौड़ते हैं| किसी को तुम्हारे बारे में सोचने की फुर्सत नहीं
है-कि तुम खुश हो या नहीं| यह ज्यादातर सिर्फ पूछने के उद्देश्य से है| वास्तव में कोई भी इसका उत्तर नहीं चाहता कि तुम कैसा महसूस कर रहे हो और तुम्हारा मन कैसा है, इसको खुश रखना तुम्हारी जिम्मेदारी है| यदि तुम अपनी भावनाओं को अपनी जिम्मेदारी बनाते हो, तुम्हें कोई भी सुखी या दुखी नहीं कर सकता| जहाँ तुम्हें ईश्वर को बसाना है, वहाँ कूड़ा-करकट क्यों भरते हो? मन साफ़ रखो- यही ध्यान है| इसे आसक्ति और विरक्ति (लालसा और घृणा) से दूर रखो| यह शिष्य-वृत्ति है| एक शिष्य में घृणा का स्थान नहीं होना चाहिए| वहाँ केवल गुरु के लिए स्थान है|
मन निर्मल है|तुम्हारे संतुलन को बिगाड़ने का प्रयत्न करने वाली १,००,००० चीजें होंगी| अपनी घृणा का समर्पण कर दो, मन से इसे पूरी तरह निकाल दो यही अग्निहोत्र है| काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद तथा अन्य सभी बुरे आशायों (इरादों) – इन सबको इस आग में जल जाने दो| अपने भीतर निर्मल ज्योति (दोष-रहित शुद्ध प्रकाश) जलने दो| पुन: पुन: ज्ञान में रहने से तुम्हारा मन और बुद्धि को शुद्ध होता है | तुम्हारे और ईश्वर के बीच बुद्धि है| ज्ञान से इस अलगाव को दूर (नष्ट) किया जा सकता है| समर्पण, ज्ञान, भक्ति और ध्यान से, अलगाव मिट जाता है|

प्रश्न : मुझे कैसे और कब मन्त्रों का प्रयोग करना चाहिए?

श्री श्री रविशंकर : मंत्र का उच्चारण बिना प्रयास के और स्वाभाविक ढंग से करो| तुम्हें एक दिन में २४ घंटे जप नहीं करना है| थोड़ी देर जाप करो और ध्यान करो| तम्हें साफ़ होने के लिए २४ घंटे नहाना नहीं पड़ता ! कुछ मिनटों की सफाई तुम्हें पूरे दिन या कम से कम आधा दिन तारो-ताज़ा रखने के लिए काफी है| उसी प्रकार मंत्र-स्नान महत्त्वपूर्ण है|

प्रश्न : गुरु जी, मैं क्या करूँ, मैं नास्तिक बनूँ या आस्तिक?

श्री श्री रविशंकर : तुम अपने आप पर ठप्पा क्यों लगाना चाहते हो? एक दिन नास्तिक हो और एक दिन आस्तिक| क्या तुम ऐसा करने के लिए तैयार हो? जो भी तुम बनो, सच्चे बनो| आजकल तथाकथित नास्तिक सच्चे नहीं हैं| नास्तिक कहते हैं, ‘ऐसा कुछ भी नहीं जिसे मैं नहीं जानता|उसी का अस्तित्व है जो मुझे दिखता है, अन्य किसी का नहीं|’ आस्तिक कहता है, ‘मैं जानता हूँ कि जो मैं जानता हूँ उससे परे भी बहुत कुछ अज्ञात है|’
सृष्टि में किसी भी चीज़ के अस्तित्व को नकारने के लिए तुम्हें सृष्टि में प्रत्येक चीज़ को जानने की आवश्यकता है| अब इस सृष्टि के बारे में प्रत्येक चीज़ कौन जानता है? तुम केवल यह कह सकते हो कि ‘मैं नहीं जानता कि इस चीज़ का अस्तित्व है या नहीं|’ बिना समय और अंतरिक्ष की पूरी जानकारी के, किसी वस्तु के अस्तित्व को नकारा नहीं जा सकता। इस सृष्टि में, इस समय और अंतरिक्ष में क्या तुम हर चीज़ को जानते हो?
तुम्हारी अनभिज्ञता के प्रति तुम्हारी स्वीकृति तुम्हें एक नास्तिक बनने की इज़ाज़त नहीं देती| इसलिए तुम एक सच्चे नास्तिक नहीं बन सकते|

प्रश्न : गुरु जी, मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है?

श्री श्री रविशंकर : तुम बहुत भाग्यशाली हो| कितने लोग यह प्रश्न पूछे बिना ही जीवन जीते रहते हैं| इसका पोषण करो| यह प्रश्न तुम्हारे दिल
में है, तुम बहत भाग्यशाली हो| मैं तुम्हें एक बात बताता हूँ| वह जो इस प्रश्न का उत्तर जनता है, तुम्हें बतलायेगा नहीं और जो तुम्हें बतलाएगा,
वह जानता नहीं|


art of living TV

© The Art of Living Foundation For Global Spirituality