अन्याय से लड़ना आपका धर्म है

१९
२०१२
दिसम्बर
बैंगलुरु आश्रम, भारत
प्रश्न : गुरुदेव , अर्जुन ने युद्धभूमि में ही अपनी दुविधा क्यों कही ? युद्ध में आने के पहले भी तो वे भगवान कृष्ण के साथ बहुत समय व्यतीत करते थे , तब क्यों नहीं पूछ लिया ?
श्री श्री रविशंकर : सुनिए , अर्जुन ने कोई दुविधा नहीं कही थी | अर्जुन ने केवल इतना कहा था , मैं लड़ना नहीं चाहता’ , बस इतना ही |
वो तो कृष्ण थे जिन्होंने सबसे पहले प्रश्न पूछा | उन्होंने कहा , अर्जुन , तुम दुखी हो , तुम उन चीज़ों के लिए रो रहे हो जिनके लिए तुम्हें नहीं रोना चाहिये , और तुम बात कर रहे हो एक पंडित की तरह ! उन्होंने कहा ,
 अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे |
गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः | |
(भगवद्गीता अध्याय २ , श्लोक ११)
इस तरह से भगवान कृष्ण ने गीता का आरंभ किया |
वे कहते हैं , तुम उस बात पर शोक मना रहे हो , जिसके लिए तुम्हें शोक नहीं मनाना चाहिये’ |
देखिये , यदि आप एक आर्मी ऑफिसर हैं , या पुलिस ऑफिसर हैं , तब आपको अपना काम करना है |
आज दिल्ली में एक बहुत बड़ी रैली है |
कल आर्ट ऑफ लिविंग के हज़ारों वोलंटियरों ने मिलकर इंडिया गेट पर एक कैंडल-लाइट मार्च करी | और आज कितने सारे और लोग उनके साथ आ गए हैं |
JNU (जवाहरलाल नेहरू युनिवर्सिटी) भी जुड़ गयी है , IIT (इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी) भी साथ है और DU (दिल्ली युनिवर्सिटी) भी जुड़ गयी है | बस किसी को पहला कदम लेने की देर थी |
कल सुबह दिल्ली की टीचर्स ने मुझसे पूछा कि , गुरुदेव , हम कैंडल-लाइट मार्च करना चाहते हैं |’
वहां न तो कोई नारे-बाज़ी थी , न किसी को दोष दिया , न किसी पर चिल्लाये , बस केवल सब लोग शांतिपूर्वक वहां जाकर बैठ गए | उन्होंने कुछ मिनट ध्यान किया , मोमबत्तियाँ जलाईं और सिर्फ यह जागरूकता जगाई कि महिलाओं को सुरक्षित रहना चाहिये |
एक समय था जब इस देश में महिलाएं इतनी सुरक्षित थीं , लेकिन अब तो ये बिल्कुल अलग जगह बनती जा रही है |
तो हमारे वोलंटियर और आर्ट ऑफ लिविंग के टीचर्स ने कल दोपहर को ही ये फैसला किया , कि वे कैंडललाइट मार्च और प्रार्थना करेंगे , और ६ बजे तक सब जगहों से लोग आ गए थे |
मुझे ऐसे लोगों में इतना बड़ा अंतर दिखता है , जिनको उस आंतरिक शान्ति की थोड़ी सी झलक मिल गयी है , उस अंदर की दुनिया के दर्शन हो गए हैं; बजाय उनके जो अपनी भावनाओं के बारे में कुछ नहीं जानते , या जिन्होंने अपने मन को कभी शांत नहीं किया है | जब ऐसे लोग कोई मुद्दा उठाते हैं , तो वे इतना गुस्से में हो जाते हैं , आक्रमक और हानिकारक बन जाते हैं |
मैं ये कहना चाहते हूँ कि अगर कोई पुलिसमैन ये कहे कि , मैं नियम और कानून की कोई जिम्मेदारी नहीं उठाऊँगा’ , तब क्या होगा ?
तो यही हालत अर्जुन की थी | वह एक योद्धा था | और उसका काम था अन्याय से लोगों की रक्षा करना , और वह कह रहा था , मैं किसी की भी अन्याय से रक्षा नहीं करूँगा’ |
तब भगवान कृष्ण ने उससे कहा , अरे भई , आप तो पंडित की तरह बात कर रहे हैं , लेकिन आप नागरिकों की रक्षा करने के अपने धर्म से भाग रहे हैं’ |
ठीक वैसे ही , जैसे दिल्ली पुलिस कह रही है , ये मेरी जिम्मेदारी नहीं है; या फिर राजनेता कह रहे हैं , ये मेरा काम नहीं है’ |
मैं कुछ हद तक उनसे सहमत हूँ , क्योंकि जब तक लोगों के अंदर मानवीय मूल्य नहीं जागेंगे , तब तक कुछ चंद पुलिसकर्मी भी क्या कर लेंगे ? लेकिन फिर भी !!
क्या आप जानते हैं , कितनी बार पुलिस फ़ोर्स का अनुशासन और उत्साह भंग हो जाता है | क्या आप जानते हैं क्यों ?
पुलिसकर्मी अपनी जान पर खेलते हैं , वे किसी अपराधी को ढूँढ कर उन्हें अंदर कर देते हैं , और फिर राजनेता उन्हें एक फोन कॉल करते हैं , और कहते हैं , नहीं , इस आदमी के खिलाफ़ कोई शिकायत नहीं होगी , उन्हें छोड़ दो’ , और फिर पुलिस वालों को उन्हें छोड़ना पड़ता है |
और फिर जब आप किसी अपराधी को इस तरह छोड़ देते हैं , तब वह आपके पीछे आता है और वे (पुलिसकर्मी) हतोत्साहित होते हैं |
यह अधर्म है |
एक और अधर्म है , यह रेसेर्वेशन बिल (आरक्षण बिल) |
मैं तो कहूँगा कि किसी को भी आरक्षण मिलना गलत है |
हाँ , नौकरी के लिए आरक्षण होना फिर भी ठीक है , लेकिन तरक्की के लिए आरक्षण , ये ठीक नहीं है |
आप देखिये , एक मैनेजर है और उसने अपने नीचे एक क्लर्क को नौकरी पर रखा है | अब सिर्फ इसलिए कि क्लर्क एक विशेष जाति का है , तीन साल में अगर वह सीनियर बन जाता है , तो उस मैनेजर के मनोबल का क्या होगा ?
इस देश की सारी प्रशासनिक व्यवस्था बर्बाद हो जायेगी | ये पूरी तरह से खत्म हो जायेगी , अगर जूनियर को सीनियर का सीनियर बना दिया जाए |
ज़रा सोचिये , यदि आप एक सुपरवाईजर हैं , और आपका जूनियर कुछ सालों में आपका भी सीनियर बन जाए तब क्या आपके अंदर इतनी हिम्मत होगी कि आप उसके काम के लिए उसे ज़िम्मेदार ठहरा सकें ? सबसे पहले , नहीं ! दूसरा , मान लीजिए , कि आप अपने डिपार्टमेंट को बहुत अच्छी तरह से चला रहे हैं , और कल की तारीख में आपका जूनियर ही आपका सीनियर बन जाए , और फिर आपसे बदला ले , ये कितनी बेईज्ज़ती की बात है |
ये लोगों के लिए बहुत ही अपमानजनक होगा , जब किसी भी प्रशासनिक सेवा में पद में छोटा व्यक्ति अचानक वरिष्ठ बन जाए | ये प्रशासनिक सिस्टम को बिल्कुल खत्म कर देगा |
ये देश के लिए एक बहुत ही खेद की बात है |

आज सुबह से मैंने इतने लोगों को फोन किया है , और उनसे कहा है कि ये बिल्कुल बकवास है |
राज्यसभा में तो देश भर के बुद्धिजीवी लोगों को होना चाहिये | बुद्धिजीवियों का समूह इस तरह का कानून कैसे बना सकता है ? ये खतरनाक है | भविष्य में लोग इन्हें कभी भी माफ नहीं करेंगे |
यहाँ बात जाति की नहीं है | कुछ विशेष लोगों के गुट , जो आपके जूनियर हैं , उन्हें तरक्की दे दी जाती है , ताकि वे आपके सीनियर बन जाए सिर्फ इसलिए कि वे एक विशेष जाति के हैं ये बात बिल्कुल भी सही नहीं है | ये अन्याय है | मुझे नहीं लगता कि ये बात सुप्रीमकोर्ट भी मानेगा | और तो और , सुप्रीमकोर्ट तो इस कानून को पहले ही दो दफा ठुकरा चुका है , और फिर भी ये लोग ऐसा कानून बना रहे हैं | ये बिल्कुल अस्वीकार्य है |
जब कानून का न्यायालय (सुप्रीमकोर्ट) ही कह रहा है कि ये अन्याय है , और हम उस पूरी कार्यप्रणाली को ही घुमाने की कोशिश कर रहे हैं , तो ये बात बिल्कुल भी सही नहीं है | और हम आम जनता , बिल्कुल भी अपनी आँखें बंद कर के नहीं बैठ सकते |
शिक्षा में आरक्षण , नौकरी में आरक्षण ये ठीक है , लेकिन तरक्की में आरक्षण प्रशासनिक व्यवस्था को नष्ट कर देगा ! ये एक बहुत ही गंभीर मामला है |
क्या आपको ऐसा नहीं लगता ? आपमें से कितने लोग ऐसा सोचते हैं ? (सब लोग अपना हाथ उठाते हैं)
यही बात भगवान कृष्ण ने कही , दुर्योधन इतनी तबाही मचा रहा है , और तुम अपनी आँखें बंद करके बैठना चाहते हो | तुम्हारा धर्म है कि तुम लड़ो | चलो , उठो |’
और जब वह लड़ने के लिए तैयार हुआ , तब कृष्ण ने उसे ज्ञान दिया , योगस्थः कुरु कर्माणि संगं त्यक्त्वा धनञ्जय (भगवद्गीता अध्याय २ , श्लोक ४८)
वे कहते हैं , सबसे पहले अपने अंदर जाओ और खुद को शुद्ध करो | घृणा से लड़ाई मत करो , लेकिन न्याय के लिए लड़ो ; संतुलन के साथ लड़ाई करो |’
यदि आप गुस्से और रोष के साथ लड़ रहे हैं , तो आप खुद को ही हानि पहुंचा रहे हैं | क्योंकि जब आप क्रोध में होते हैं , और भावनात्मक आवेश में होते हैं , तब आपकी बुद्धि और आपका मन ठीक तरह से काम नहीं कर सकते |
इसीलिये , सबसे पहले आपके मन को शांत होना चाहिये | जब यह शांत और उत्तेजनाहीन होता है तब न्याय स्वयं ही प्रकट होगा , सही विचार आयेंगे , और आपके विचार और अधिक सृजनात्मक , रचनात्मक और सकरात्मक होंगे | नकारात्मक विचार तभी आते हैं जब आप क्रोध में होते हैं | जब आप शांत और सकारात्मक होते हैं , तभी रचनात्मक विचार आपके भीतर से निकलेंगे | यही भगवद्गीता का सार है |
वे कहते हैं , युध्यस्व विगतज्वरः ज्वरः का अर्थ है व्याकुलता , वह क्रोध या घृणा; सबसे पहले उससे मुक्त होईये , और फिर लड़िए |
देखिये , किस तरह भगवद्गीता वर्तमान की परिस्थिति से जुड़ गयी है | ये कितना प्रत्यक्ष है |
मैं उन वोलंटियर्स के लिए बहुत खुश हूँ जिन्होंने आज और कल पूरा पूरा दिन बिताया , और इंडिया गेट गए , लोगों में जागरूकता फैलाई , और पूरे देश में एक बड़ी लहर बनाई |
कल हमारे आर्ट ऑफ लिविंग वोलंटियर्स ने दिल्ली में जो किया , वह आज पूरे देश में फ़ैल गया है | हर जगह कैंडललाइट मार्च है , और लोग खड़े होकर महिलाओं के प्रति हिंसा के विरोध में बोल रहे हैं | ये एक अच्छा कदम है |
यही मैं कहता रहता हूँ , अपनी शक्ति को कम मत समझिए | हमारे अंदर जो शक्ति है , वह चीज़ों को बदल सकती है |
यहाँ आपमें से हर एक कोई एक लीडर है , और आप में से एक एक व्यक्ति आज समाज में एक बड़ा परिवर्तन ला सकता है | यदि आप सब एक साथ मिल जायें , और कुछ करें , तब ये देश बदल जाएगा और यहाँ के लोग भी बदल जायेंगे | ये निश्चित तौर पर होगा ही , क्योंकि हर एक किसी के अंदर एक हल्की सी जागरूकता है |
ज़रूरी ये है , कि हम सबको इसकी जिम्मेदारी लेनी है | हम किसी एक इन्सान की तरफ उंगली उठा कर ये नहीं कह सकते कि ये उसकी जिम्मेदारी है | इस देश की आबादी इतनी ज्यादा है , कि हम ये नहीं कह सकते कि इस एक पुलिसकर्मी ने अपनी ड्यूटी नहीं करी |
लोगों को जिम्मेदारी लेना शुरू करना होगा , और ये अब होने लगा है , जोकि एक बहुत ही अच्छी खबर है |

प्रश्न : क्या हमारी मृत्यु की तारीख निश्चित है , या फिर हमारे जीवन के दौरान वह बदल भी सकती है ?
श्री श्री रविशंकर : हाँ , वह बदल सकती है |
जैसे जब आप हाईवे पर होते हैं , तो कुछ exit पॉइंट होते हैं , जहाँ से आप हाईवे से बाहर निकल सकते हैं , है न ?! उसी तरह हर एक के जीवन में , कुछ exit पॉइंट आते हैं | यदि आप एक पड़ाव चूक जाते हैं , तो आप अगले पड़ाव से निकल जाते हैं |

एक नया आरम्भ

१२
२०१२
दिसंबर
बैंगलुरु आश्रम, भारत
जब एक व्यक्ति ध्यान करता है , उसे तपस्या कहते हैं (केंद्रित प्रयत्न जो शुद्धि और आत्मिक ज्ञानोदय प्रदान करता है) | पर जब सारे विश्व के लोग एक साथ जुड़ कर ध्यान करते हैं , तो उसे यज्ञ कहते हैं और यह और भी विशेष होता है क्योंकि हम एक सत्व और तालमेल का क्षेत्र बना लेते हैं जिसकी आज विश्व में अत्यधिक आवश्यकता है | तो एक नए आरम्भ के लिए यह बहुत सुन्दर और पूज्य है |
हमें याद रखना चाहिए कि हम नवीन भी हैं और प्राचीन भी | सूर्य को देखिये , यह प्राचीन है , है न? फिर भी वह आज कितना ताज़ा है ! किरणें कितनी ताज़ा हैं , वायु ताज़ा है , पेड़ कितने ताज़े हैं पुराने पेड़ और ताज़े पत्ते ! ऐसे ही , आप भी हैं नवीन , ताज़े |
ऐसे ही आपको जीना चाहिए मैं प्राचीन हूँ और नवीन भी , शाश्वत और अनंत ! स्वयं को ताज़ा और नया अनुभव कीजिये , और आप देखेंगे कैसे सारी समस्याएं और खेद कितनी सरलता से लुप्त हो जाते हैं | स्वीकृति भीतर से उदय होती है , उत्साह भीतर से उद्भव होता है और हर स्तर पर ताल मेल बैठने लगता है |
जीवन में आपको तीन चीज़ों की आवश्यकता है करुणा , आवेश , और वैराग्य | जब आप व्यथित हैं , तब वैरागी रहिये | जब आप खुश हैं , तब आवेश रखिये | आपको जीवन में कोई धुन होनी चाहिए | और सेवा करने की धुन सबसे अद्भुत चीज़ है जिसकी लालसा व्यक्ति को होनी चाहिए |
तो , जब आप खुश हों , तो सेवा करने के लिए हमेशा तत्पर रहिये | जब दुखी हों , तब वैरागी रहिये , और सदैव करुणामयी रहिये |

प्रश्न : गुरूजी , हम सांसारिक लोगों को कैसे एहसास कराएं आज की चिंताजनक आर्थिक स्थिति में ध्यान का कितना महत्व और आवश्यकता है ?
श्री श्री रविशंकर : यहाँ अतीत की स्मृति आपकी सहायक होगी | अतीत में देखो , दूसरे विश्व युद्ध में या उस से भी पहले , विश्व इतने बड़े संकट में था | भोजन कम था और लोगों के पास सीमित साधन थे क्योंकि सब नष्ट हो गया था , पर फिर भी लोग जीवित रहे |
इस धरती पर हमने उस से भी बुरे वक्त देखे हैं | स्वतंत्रता से पहले , भारत में कितने संकट आये | हमने बहुत से संकटों का सामना किया सूखा , बाड़ , अकाल , महामारी | लोगों ने ऐसे समयों का भी सामना किया है और जिए हैं | अभी का समय पहले से अधिक कठिन नहीं है , इस लिए , चिंता मत करिये , हमने वे सारे कठिन दौर पार किये हैं |
अब का समय है जब हमें मानवीय मूल्यों को प्रोत्साहित करना है | हमें एक दूसरे के काम आना है , मिलबांट के एक साथ रहना है | हमें आस पास के लोगों से अच्छे संपर्क बना कर रखने है | यह मानवीय सम्बन्ध हमें संकट से जूझने की शक्ति देंगे |
जब आप जानते हैं कि आपके समर्थन में आपके पीछे लोगों का झुण्ड है तो आपको कोई भी भय क्यों हो ? यदि आपका चेतना में , ईश्वर में विश्वास है तो वे आपका ख्याल अवश्य रखेंगे , इस लिए आप उदास क्यों रहें ?
इस लिए , आपको हर संकट को ईश्वर की , मानवता की और भीतर की रौशनी की दिशा में मुड़ने का एक अवसर बनाना चाहिए |

प्रश्न : प्रिय गुरूजी , हर परिस्थिति में , सदा नवीन और अनंत कैसे बने रहें ? उदाहरण जब हम लोगों से मिलते हैं , हमारी पिछली भेंटों की छवि मन में रहती है |
श्री श्री रविशंकर : हाँ , यह तो है | इसी कारण मैं कहता हूँ कि आप नवीन भी हैं और प्राचीन भी | आप नवीन है का यह अर्थ नहीं कि आप किसी का नाम भूल जायें | हर बार आप किसी से मिलें , उनसे मत पूछिए , “आपका नाम क्या है?” | नवीन होने का अर्थ अपनी याददाश्त खोना नहीं है | यादों की गहरायी अवश्य होगी , पर उन यादों के साथ एक नयापन भी होगा | यह एक नवीन आत्मा का सार है | इस को समझाना थोड़ा कठिन है पर इसका यही अर्थ है | इस लिए , एक नया आरम्भ , एक नयी शुरुआत का अर्थ याददाश्त खोना नहीं है , ठीक है ?

प्रश्न : प्रिय गुरूजी , क्या ध्यान से बौद्धिक स्तर बढ़ता है ? यदि हाँ , तो ध्यान से ज्ञान कैसे बढ़ाएँ ?
श्री श्री रविशंकर : ध्यान हमारे मन को आवश्यक विश्राम प्प्रदान करता है | विश्राम और मौन सृजन और ज्ञान की जननी हैं इस प्रकार यह आपके ज्ञान की वृद्धि करता है |

प्रश्न : कहते हैं हम अपना पूरा जीवन एक ध्यान के रूप में जी सकते हैं | यह कैसे संभव है? मेरा जीवन एक ध्यान कैसे बन सकता है?
श्री श्री रविशंकर : हर क्षण एक नयी शुरुआत है | आप उठते हैं , और कहते हैं , “यह एक नया आरम्भ है !” बस , यही है ! कोई “कैसे” का भाव नहीं है | बस स्वयं को मुक्त कर दीजिए |

प्रश्न : गुरूजी , कृपया बताइए कि वेदिक ज्ञान कैसे पूरे विश्व का भला कर सकता है?
श्री श्री रविशंकर : यह सबका फायदा कर रहा है यह तो स्वाभाविक है योग , ध्यान , प्राणायाम , आयुर्वेद , यह सब वेदिक ज्ञान ही है | वेद का अर्थ ही ज्ञान है; प्राचीन और नवीन | प्राचीन ज्ञान में भी कुछ मूल्य है और नवीन ज्ञान में भी कुछ | ये एक साथ चलते हैं समाज में आवश्यक परिवर्तन लाने के लिए |

प्रश्न : धर्म लोगों को बांटता क्यों है जबकि धर्म का उद्देश्य लोगों को भगवान के समीप लाना है ?
श्री श्री रविशंकर : जब अहं प्रवेश कर जाता है , तब धर्म में द्वंद्व उत्पन्न हो जाता है | एक धर्म इस लिए महान हो जाता है क्योंकि वह “मेरा” धर्म है , नाकि उसके अपने लिए | क्योंकि यह मेरा धर्म है , इस लिए महान है | यह “मैं”; अहम जो द्वंद्व का कारण है , नाकि धर्म स्वयं | पर हम धर्म को एक कारण बना लेते हैं; अपनी पहचान बना लेते हैं संसार में बहुत से झगडों के लिए , है ना ?
यदि धर्म को केवल भगवान से जुड़ने के लिए प्रयोग किया जाए ना कि राजनीति के लिए तब धर्म आध्यात्म बन जाता है |

प्रश्न : गुरूजी , मैं किस पर भरोसा कर सकता हूँ जो कभी डगमगाय नहीं?
श्री श्री रविशंकर : स्वयं पर | आपको किसी पर भी भरोसा क्यों करना है? बस निश्चिन्त हो जाइए | आप देखेंगे कि सब कुछ स्वयं अपने स्थान पर आ रहा है | जो भी आपको परेशान करता है , उसे यहाँ छोड़ दीजिए | उसे मुझे भेज दीजिए | मैं आपके साथ हूँ , हाँ !

प्रश्न : मैं हार के बारे में बहुत चिंता करता हूँ , विशेषतः जब मैं कुछ महत्वपूर्ण कर रहा होऊं | इस से मेरी क्षमता कम हो जाती है | मैं इस से कैसे बहार आऊ ?
श्री श्री रविशंकर : एक नया आरम्भ | वह अतीत था , उसे त्याग दीजिए | विश्वास रखिये कि बहुत सी नयी चीज़ें आपके जीवन में आणि हैं | एक बात जो आपको जाननी चाहिए वो है कि आप स्वयं को नहीं जानते | जब आप अपने अतीत में आपने क्या किया उसे देखते हिनहिन , या अपनी कमज़ोरी को देखते हैं , तो आत्मविश्वास जगाने के लिए पहला कदम है यह जाना कि आप स्वयं को नहीं जानते | जब आप सोचते हैं आप स्वयं को जानते हैं तभी आप स्वयं को इन सारे नकारात्मक विचारों और घटनाओं से जोड़ते हैं | पर जब आप उठते हैं और देखते हैं , “अरे , मैं स्वयं को नहीं जानता” , तब यह एक नयी शुरुआत होती है | तब आप पायेंगे कि आपमें इतनी सारी योग्यताएं और शक्तियां हैं जिनसे आप स्वयं अनभिज्ञ थे |

प्रश्न : मैं कैसे अबद्धता से प्रेम कर सकता हूँ , बिना अपेक्षाओं और बंधनों के ?
श्री श्री रविशंकर : आप प्रेम में सुरक्षा चाहते हैं , और साथ ही आप प्रतिबद्धता से भी डरते हैं | ऐसे में आपके मन में बहुत से भाव लिपटे हुए हैं एक चीज़ में , और उसे संभ्रम कहते हैं | जब प्रेम में संभ्रम हो , तो मैं कहूँगा कि आप अधिक ध्यान करिये और विश्राम करिये | सब कुछ स्वयं जगह पर आ जायेगा |

देवताओं का पूजन

२९
२०१२
नवम्बर
बैंगलुरु आश्रम, भारत
प्रश्न : कृपया हमें हनुमान के विषय में कुछ बतायें ?
श्री श्री रविशंकर : कहा गया है कि रामायण आपके अपने भीतर ही घटित हो रही है । आपकी आत्मा राम है , मन सीता , आपके श्वास या प्राणशक्ति हनुमान है , आपकी चेतना लक्ष्मण और आपका अहं रावण है ।
जब अहं (रावण) मन (सीता) का हरण कर लेता है तो आत्मा(राम) व्याकुल हो उठती है। अब आत्मा अपने आप मन तक नहीं पहुँच पाती , इसे श्वास - प्राणशक्ति (हनुमान) की सहायता लेनी पड़ती है । प्राणशक्ति की मदद से , मन फिर से आत्मा से मिल जाता है , और अहं का नाश हो जाता है ।
यही इस कथा का आध्यात्मिक महत्त्व है ।
और दूसरी प्रकार से , हनुमान वानर थे , और उन दिनों वानर भी बहुत समझदार और बहुत ही श्रद्धालु होते थे । श्रद्धालु गुरु से अधिक सामर्थ्यवान होते हैं । यह वास्तविकता है । सच्चे श्रद्धालु ईश्वर से भी कहीं अधिक सामर्थ्यवान होते हैं ।

प्रश्न : गुरुदेव , हम भगवान राम व भगवान कृष्ण की तो पूरी देह की पूजा करते हैं , परंतु शिव के लिंग का ही पूजन किया जाता है , ऐसा क्यों है ?
श्री श्री रविशंकर : लिंग भगवान शिव का प्रतीकात्मक स्वरूप है । पहले आप यह समझें कि लिंग है क्या । लिंग एक प्रतीक है ।
जननांगों को भी लिंग क्यों कहा जाता है ? वो इसलिये , क्योंकि यही एक प्रतीक है जिससे कि यह जाना जा सकता है कि बच्चा लड़का है या लड़की । जब बच्चा पैदा होता है तो उसके लिंगनिर्धारण के लिये एक ही जगह देखा जाता है । इसलिये यह पहचान का प्रतीक है ।
भगवान शिव पूरे ब्रह्मांड में विद्यमान हैं , तो कोई उनकी पहचान कैसे करे या उनके साथ कैसे जुड़े ? इसीलिये , प्राचीन समय में , समझदार ज्ञानियों ने एक पिंड या एक गोल अथवा अंडाकार पत्थर रख दिया और इसे भगवान शिव तुल्य मान लिया ।
इस प्रकार , लिंग और योनि (वो आधार जिस पर कि शिवलिंग रखा रहता है) को रखा गया , क्योंकि इस से नर व मादा की पहचान होती है । अब , आप ब्रह्मांड के स्वामी , जोकि निराकार है , को कैसे वर्णित करेंगे ?
प्राचीन काल में , भगवान शिव की त्रिशूल , और कुछ भी ऐसा पकड़े हुये कोई आकृति नहीं थी । प्राचीन समय में , केवल पिंड को ही रखा जाता था और फिर मंत्रोचारण द्वारा चैतन्य शक्ति को जागृत किया जाता था और पिंड में इसका अविर्भाव किया जाता था । इस प्रकार से इसका पूजन किया जाता था ।
मूर्तियों का सृजन तो बहुत बाद में हुआ ।तब क्या हुआ ? लोगों ने पिंड के ऊपर आँखें , मुँह आदि बनाना शुरु कर दिया । पिंड के ऊपर चेहरा बनाने की परम्परा पहले नहीं थी ।
इसी प्रकार से भगवान विष्णु का पूजन भी उनके चरणों ( संस्कृत में पाद ) की पूजा करके किया जाता था ।
यदि आप गया (भारत में बिहार के दूसरे बड़े शहर में) जायें , तो वहां लोग “विष्णु पाद” ही बोलेंगे । वहां केवल भगवान के चरण ही पूजे जाते हैं ।
कहा जाता है कि मूर्ति की अपेक्षा यंत्र ( देवता की प्रतीकात्मक आकृति) अधिक महत्त्वपूर्ण है ।
हर देवी-देवता का एक यंत्र और एक मंत्र होता है , जोकि उन्हें समर्पित किया गया है , और उनके पूजन के विधि विधान को तंत्र के नाम से जाना जाता है ।
मूर्ति में तब तक आध्यात्मिक शक्ति नहीं आती जब तक कि इसके यंत्र की स्थापना नहीं की जाती । और यंत्र में तब तक शक्ति नहीं होती जब तक कि इसे मंत्रोच्चारण द्वारा सशक्त नहीं किया जाता ।यही कारण है कि हर मंदिर में पहले यंत्र स्थापित किया जाता है और फिर उसके ऊपर मूर्ति की स्थापना की जाती है । ऐसा मंदिर में आने वालों के भीतर गहन श्रद्धा का भाव जगाने के लिये किया जाता है ।
पहले भी , सनातन धर्म में मूर्तियां या मूर्तिपूजन नहीं थे , केवल हवन किये जाते थे और भगवान शिव के पिंड को उनकी उपस्थिति दिखाने के लिये रखा जाता था । बस , इसके सिवा और कुछ नहीं किया जाता था ।मूर्तियां स्थापित करने का रिवाज़ तो बाद में शुरु हुआ ।गणेश देवता को सुपारी में , भगवान शिव को पिंड में देखा जाता था और देवी माँ की अराधना नारियल रखे कलश के रूप में की जाती थी । सनातन धर्म के अनुसार यही विधान था ।
आज भी कलश के बिना किसी मूर्ति के पूजन की कोई महत्ता नहीं है । कलश के जल से मूर्ति का अभिषेक किया जाता है । यही परम्परा है ।
अब , मूर्तिस्थापना की परम्परा का प्रारम्भ क्यों हुआ ?
ऐसा इसलिये क्योंकि मूर्ति को देख कर श्रद्धा की भावना भीतर से जागृत होती है ।
दूसरा कारण यह है कि जब बौद्धों व जैनियों ने अपने मंदिर बनवाये तो उन्होंने इतनी सुंदर प्रतिमायें रखीं कि सनातन धर्म को मानने वालों को भी लगा कि उन्हें भी ऐसा ही कुछ करना चाहिये । इसलिये उन्होंने भी इसका अनुसरण किया और भगवान विष्णु , भगवान राम और भगवान कृष्ण की विभिन्न मूर्तियां स्थापित करनी शुरु कर दीं ।
आपको भगवद् गीता या रामायण में पूजा के लिये मूर्तियां लगाने की प्रथा का वर्णन कहीं नहीं मिलेगा ।
केवल शिवलिंग ही रखा जाता था । इसीलिये प्राचीन काल में केवल शिवलिंग ही था , जिसकी भगवान राम , भगवान कृष्ण व बाकि सब पूजा करते थे ।
क्या आप जानते हैं कि पवित्र काबा (मक्का , सऊदी अरब) में रखा गया पत्थर भी भगवान शिव ही हैं ।
भविष्य पुराण में भगवान विष्णु के एक बौने ब्राह्मण के रूप में लिये गये पांचवे अवतार वामन द्वारा लिये गये तीन कदमों के विषय में एक श्लोक है । भगवान का पहला कदम गया में पड़ा था और दूसरा मक्का में ।
पैगंबर मोहम्मद के आने से बहुत पहले से ही लोग तीर्थ यात्रा के लिये मक्का जाते थे । इसीलिये तीर्थयात्री वहाँ जाते हैं और वहां रखे पत्थर (सलीब) को चूमते हैं और इसकी सात बार परिक्रमा करते हैं । यह बिल्कुल शिव मंदिरों की तरह किया जाता है , जहाँ पर कि लोग बिना सिले सफेद कपड़े पहन कर जाते हैं और पत्थर की पूजा करते हैं ।
यह प्राचीन काल से चली आ रही परम्पराओं के बिल्कुल अनुरूप है । इस तरह से गया और मक्का में की जाने वाली पूजा में अद्भुत समानता है : एक ही प्रकार का पत्थर रखा गया है और इसे ही पूजा जाता है , एक ही तरह से परिक्रमायें ली जाती हैं , और एक ही तरह के अनसिले कपड़े पहने जाते हैं ।
ये सब कहीं न कहीं आपस में सम्बन्धित हैं और जुड़े हैं ।

प्रश्न : शिवलिंग को अकेले क्यों नहीं , बल्कि योनि के साथ ही क्यों पूजा जाता है ?
श्री श्री रविशंकर : जैसा कि मैंने पहले बताया है कि , दोनों को शिव और शक्ति के रूप में पूजा जाता है । इन्हें अकेले भी पूजा जाता है । कई ऐसे स्थान हैं जहाँ पर कि केवल पिंड ही रखा गया है ।
प्रश्न : गुरुदेव , वैदिक काल में , भगवान ब्रह्मा , विष्णु व शिव की उपस्थिति का कोई उल्लेख नहीं है । ३५०० ईसा पूर्व से २८०० ईसा पूर्व का समय भारतीय इतिहास में वैदिक काल के रूप में जाना जाता है , और २८०० ईसा पूर्व से २६०० ईसा पूर्व तक के समय को रामायण का युग कहा गया है । इस सारे समय में , भगवान शिव की पूजा का कोई प्रमाण या उल्लेख नहीं है । तो फिर भगवान शिव की लिंग व योनि के रूप में पूजा वास्तव में कब शुरु हुई और क्यों ?
श्री श्री रविशंकर : भारत ज्ञान नामक एक पुस्तक है , जिसे आपको अवश्य पढ़ना चाहिये । २८०० वर्ष के जिस काल की आप बात कर रहे हैं वह सही नहीं है । भगवान कृष्ण ५,२०० वर्ष पहले हुये , और भगवान राम लगभग ७,५०० वर्ष पूर्व , और उससे कम से कम १०,००० वर्ष पूर्व वेदों के बारे में विचार किया गया था और उन्हें लिखा गया था ।
मेरा सुझाव है कि आप भारत ज्ञान के विभाग से सम्पर्क करें , या फिर डा.डी.के.हरि से मिलें । वे आपको इस विषय में सब कुछ बतायेंगे । उन्होंने इस क्षेत्र में गहन शोध किया है अत: वे आपके सब प्रश्नों का उत्तर दे पायेंगे ।

प्रश्न : गुरुदेव , हमने चार महान युगों सतयुग , त्रेतायुग , द्वापरयुग और कलियुग , के विषय में पढ़ा है । जबकि , स्कूल व कॉलेज में पढ़ाया जाने वाला इतिहास युगों के विभाजन की इस प्रणाली को नहीं मानता और इसे पूर्णत: नकारता है । यह कहा जाता है कि आर्य जाति का भारत में आगमन लगभग ५,५०० वर्ष पूर्व हुआ था । हम इस विसंगति को कैसे समझें ?
श्री श्री रविशंकर : सुनिये , अब ये सब धारणायें परे फैंक दी गई हैं । आर्य लोगों के आगमन की धारणा , जिसे पढ़ाया जा रहा है , गलत सिद्ध हुई है ।
विश्व की आयु २८ बिलियन या १९ बिलियन वर्ष बताई गई है , जोकि बिल्कुल उससे मेल खाता है जैसा कि हमारे पंचाग में बताया गया है ।
इस ब्रह्मांड का समय व आयु जैसा कि वैदिक काल के अनुसार पंचाग में बताया गया है उससे बिल्कुल मेल खाता है , जैसा कि आधुनिक वैज्ञानिक बता रहे हैं । यही कारण है कि मैं आपसे भारत ज्ञान विभाग के साथ बैठने व शोध का अध्ययन करने को कह रहा हूँ ।
रोमिला थापर ने स्वयं यह माना है कि जो भी उसने लिखा है , वो गलत है ।
इतिहास की पुस्तकें लिखते समय सब कुछ ६,००० वर्ष पूर्व के बाद हुआ बताया गया है । उसके जैसे विद्वानों ने न तो संस्कृत पढ़ी है और न ही हमारे प्राचीन अभिलेखों को । उन्होंने भारत के इतिहास को पूर्णत: विकृत कर दिया है ।
बहुत से आविष्कार यहाँ हुये थे । कई नये तथ्य व खोजें की गई थी । रोमिला थापर , जिसने कि यह सब लिखा है , ने स्वयं यह कहा है कि हमें आर्यों के आगमन के विषय में पुनर्विचार करना होगा । इसीलिये मैं आपको सुझाव देता हूँ कि आप यहां भारत ज्ञान विभाग पर एक नज़र डालें और उनसे सम्पर्क करें ।

प्रश्न : गुरुजी , उन चीज़ों को कैसे जाने जो हमारे लिये अज्ञात हैं ? ऐसी बहुत सी चीज़ें हैं जिन्हें कि हम नहीं जानते । कई बार मुझे बहुत पीड़ा होती है और मैं अज्ञात का ज्ञान न होने के कारण रो पड़ता हूँ ।
श्री श्री रविशंकर : मैं आपकी परेशानी को समझता हूँ ।
कुछ जानने की चाह की तीव्र पिपासा है , पर वह कुछ क्या है , यह आप नहीं जानते । आप जानते हैं कि कुछ है , पर आप नहीं जानते कि उस कुछ को कैसे जाने । ऐसा ही है न ?
बस शांत हो जाइये और ध्यान कीजिये । यही वहां पहुँचने का मार्ग है ।

प्रश्न : गुरुदेव , क्या आप हमें असुर और देवों के विषय में कुछ बता सकते हैं ? क्या असुर बुरे लोग थे ?
श्री श्री रविशंकर : असुर वे हैं जो कि आत्मा के विषय में नहीं सोचते , वे केवल शरीर से या धरती से जुड़े हैं । देव आत्म-बद्ध हैं ।
वास्तव में , असुर और देव दोनों एक ही व्यक्ति की संतान हैं । प्रजापति की दो पत्नियां थीं , अदिति व दिति । दिति से असुरों की और अदिति से देवों की उत्पत्ति हुई । यही कथा बताती है ।

एक बेहतर देश के लिए आपका योगदान

२०१२
दिसम्बर
नयी दिल्ली, भारत

जब मैं दीपक प्रज्वलित कर रहा था , तो उसमें थोड़ा समय लग रहा था | मैंने कहा तेल के दिए को आग पकड़ने में थोड़ा समय ज़रूर लगता है , लेकिन जब एक बार वह आग पकड़ लेता है तो जलता है’ |
इस देश के लोगों के साथ भी यही बात है | वे शुरुआत में थोड़ा धीमे होते हैं , लेकिन एक बार जब कुछ शुरू करते हैं , तो फिर रुकते नहीं हैं |
आप जानते हैं , कि भ्रष्टाचार वहां से शुरू होता है जहाँ अपनापन खत्म होता है |
कोई भी अपने परिवार या रिश्तेदारों के साथ भ्रष्ट नहीं होता , या उन लोगों के साथ जो उन्हें लगता है कि ये उनके अपने हैं |
जब अपनेपन की भावना खत्म हो जाती है , बस वहीँ उसी सीमा से भ्रष्टाचार शुरू होता है |
आर्ट ऑफ लिविंग में सभी वोलंटियर , टीचर और बाकी सब यही करने का प्रयास कर रहे हैं; इस अपनेपन की भावना को बढ़ावा दे रहे हैं पूरा विश्व हमारा अपना है |
हर समुदाय , हर धर्म , हर आयु के लोग , चाहे वे ग्रामीण हों या शहरी वे सब हमारा ही हिस्सा हैं , और वे सब हमारे अपने हैं |
ये पूरी मानवता एक परिवार की तरह है , एक दूसरे की अपनी है यह एक नैतिक और न्यायसंगत समाज के लिए आवश्यक है |
हालाँकि यह सुनने में एक आदर्शलोक जैसा लगेगा , लेकिन हमें इस सपने को कभी नहीं छोड़ना चाहिये | हमें ऐसे समाज का स्वप्न देखना चाहिये और उसी दिशा में आगे बढ़ना चाहिये |
इस सही दिशा में लिया गया एक छोटा सा कदम भी हमें बहुत आगे ले जाएगा , और हम ये देख भी चुके हैं |

जब समाज में हिंसा और भ्रष्टाचार भरा होता है , तब ये किसी के भी रहने के लिए सुरक्षित जगह नहीं है | और हम नहीं चाहते कि भारत में ऐसी डर और अन्यायपूर्ण जगह बने , जहाँ लोग खुद को सुरक्षित महसूस न करें | ये भारत नहीं है |
यहाँ तो लोग हमेशा से निडर रहे हैं | हर धर्म , हर संस्कृति , हर भाषा ने इस भूमि में संरक्षण पाया है | लेकिन आज हमें बिल्कुल अलग ही तस्वीर दिखती है , जहाँ लोग अलग अलग तरह के डर के साथ जी रहे हैं | महिलाओं के प्रति हिंसा , बच्चो के प्रति हिंसा दिन-रात बढ़ रहे हैं | इसलिए , अब हमें ये कदम उठाना पड़ेगा लोगों को साथ लाने का , और उन्हें सुरक्षित और भय-रहित बनाने का |

कल मैं 756 अपराधियों से मिला था | उन्हें यहाँ गुंडे कहते हैं |
कल हमने उन्हें एक नया नाम दिया है कर्णधार , जिसका अर्थ है वह जो समाज में एक नयी रोशनी , एक नयी आशा लाने का बीड़ा उठाये |
जब हमने उनसे सुना कि किस तरह केवल एक ही हफ्ते में उनका जीवन-परिवर्तन हो गया , (उन्होंने आर्ट ऑफ लिविंग का YLTP प्रोग्राम किया था) , तब हमारी आशा बिल्कुल आसमान छू गयी |
ये लोग जो झोपड़-पट्टियों में छोटे से लेकर बड़े बड़े अपराध करते हैं , अगर उनके दिल और मन परिवर्तित हों सकते हैं , तब तो हमारे मन में बहुत आशा है | और सिर्फ आशा ही नहीं , बल्कि इससे हमारे कन्धों पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी भी आ जाती है |
जब हम ये जानते हैं कि हम बहुत कुछ कर सकते हैं , तब तो हमें वह करना ही पड़ेगा | हम चुप नहीं रह सकते |
Volunteer for a Better India (एक बेहतर देश के लिए आपका योगदान) एक बहुत ही सुन्दर पहल है | मुझे पूरा यकीन है कि आप सबमें से एक एक व्यक्ति हज़ारों स्वयंसेवकों को जुटाएगा , ताकि हम एक हिंसा-मुक्त , भ्रष्टाचार-मुक्त और न्यायपूर्ण भारत का सन्देश लोगों तक पहुंचा सकें |
क्या कहते हैं ? (सभी लोग कहते हैं , हाँ)

1 मार्च , 2009 को मुझे याद है कि कुछ आप जैसे स्वयंसेवक और कुछ YES+ के बच्चों ने India Against Terrorism (आतंकवाद के खिलाफ़ भारत) की शुरुआत करी थी , क्योंकि 2008 में भारत में १२ महीने में १३ आतंकवादी हमले हुए थे , और इन हमलों में कई सौ लोगों की जाने गयी थीं |
ये कितने दुःख की बात थी | कितने दुःख की बात है कि हमारे यहाँ ऐसे हादसे हुए | और वे आप थे , दिल्ली के युवा थे , जिन्होंने खड़े होकर इस आंदोलन की शुरुआत करी और किरण बेदी , केजरीवाल और बाकी सब को आमंत्रित किया | इसी आन्दोलन ने आगे चलकर India Against Corruption (भ्रष्टाचार के खिलाफ़ भारत) का बीज बोया |
इसलिए स्वयंसेवक बहुत कुछ कर सकते हैं , और आप ही असली प्रेरणा की शक्ति हैं |
अगर भारत के युवा आगे आकर इन मुद्दों को उठायें , जैसे बालिका-भ्रूणहत्या , नशामुक्ति के कार्यक्रम , शराब-मुक्ति के कार्यक्रम , और भ्रष्टाचार के खिलाफ़ कुछ ठोस कदम , तब आप बहुत कुछ बदल सकते हैं |
अपनी शक्ति को कम मत समझिए | मैंने आपसे कहता हूँ , कि आप चमत्कार कर सकते हैं | आप चीज़ों को 180 degree घुमा सकते हैं | आज के युवा और हमारे देश की नौजवान पीढ़ी ये आप ही हैं जिनके पास शक्ति है | और जब मैं कहता हूँ युवा’ , तो मेरा मतलब उन बहुत से वृद्ध युवाओं से भी है | (सब हँसते हैं)
ऐसे ही एक युवा ने कल अपनी शादी की 56वीं सालगिरह मनाई | ये दंपत्ति , मैं आपको क्या बताऊँ , वे 80 वर्ष के ऊपर हैं , लेकिन उनके अंदर का जोश और ऊर्जा अद्भुत है | यह होती है आंतरिक शक्ति’ |
पूर्णता और अंतर्ज्ञान सिर्फ तभी आ सकता है जब आपके पास आंतरिक शक्ति हों |
आंतरिक शक्ति का अर्थ है , जब आप जीवन को एक बड़े दृष्टिकोण से देखें , प्रेम और दायित्व के साथ देखें | जीवन वह छोटा सा समय है जो हम यहाँ , इस पृथ्वी पर बिताने वाले हैं , और उसके अनुसार ही हमें अपनी प्राथमिकताएं बनानी चाहिये |
मैंने आपको एक उदाहरण देना चाहता हूँ | गुजरात में एक IAS ऑफिसर है , जो आर्ट ऑफ लिविंग टीचर भी है |\अब अब इन सज्जन को 51 करोड़ रुपये लेने का प्रस्ताव आया , सिर्फ एक छोटे से कागज़ पर साइन करने के लिए | 51 करोड़  ! !
एक ऑफिसर कभी भी 51 करोड़ अपने एक जन्म में कमाने के बारे में सोच भी नहीं सकता | एक जन्म भी छोड़िये , बल्कि तीन जन्मों में भी वह 51 करोड़ नहीं कमा सकता |
मैंने कभी भी किसी भी ऑफिसर को 51 करोड़ कमाते हुए नहीं देखा , यानि 10 मिलियन डॉलर |
तो इन सज्जन को 51 करोड़ देने की पेशकश हुई , और इन्होंने कहा , नहीं , मैं साइन नहीं करूँगा’ |
अगर उन्होंने साइन कर भी दिए होते , तो भी किसी को पता नहीं चलता | वे कोई भी सफाई दे सकते थे उस पैसे को लेने के लिए |
वे कह सकते थे , ओह मैं ये पैसा लेकर गरीब लोगों में बांट दूंगा , या मैं समाज में कुछ अच्छा काम करूँगा’ |
10 मिलियन डॉलर बहुत बड़ी चीज़ होती हैं , लेकिन इस आदमी की ईमानदारी देखिये | इन्होंने उस पैसे को लेने से मना कर दिया | मुझे इन सज्जन पर इतना गर्व है !

अब ऐसा क्या है जो आपको इस तरह की आंतरिक शक्ति दे सकता है ?
आपको कोई वैरागी होने की ज़रूरत नहीं है; हाँ , एक वैरागी तो ये कर ही सकता है | लेकिन एक गृहस्थ को इस तरह के बड़े प्रस्ताव को ठुकराना आसान नहीं है , जब तक कि उसके अंदर वह आंतरिक शक्ति , और संतोष न हों |
संतोष , करुणा , ईमानदारी , पूर्णता , अंतर्ज्ञान ये सब नैतिक मूल्य आपके अंदर से खुद ही फूंटते हैं | और जो आपके जीवन में इन मूल्यों को पनपने में सहयता करता है , उसे मैं कहता हूँ आध्यात्मिकता’ |
सिर्फ कुछ प्रार्थनाएं करना नहीं , या पवित्र स्थानों की यात्रा करना नहीं , लेकिन इन नैतिक मूल्यों को अपने जीवन में उतारना ही आध्यात्मिकता है |
असली श्रद्धा का यही अर्थ है; और यह श्रद्धा , यह विश्वास बहुत ज़रूरी है | स्वयं में विश्वास , और अपने आस-पास के लोगों में विश्वास |
आधे समय तो हम यही सोचते रहते हैं , कि सब लोग बुरे हैं , इस पूरे समाज में सिर्फ मैं ही कैसे ठीक हो सकता हूँ ?
जब आप हर एक को बुरा व्यक्ति ही समझते हैं - तब आप अंदर ही अंदर भ्रष्टाचार को स्वीकार करने की सफाई दे रहे होते हैं | आप सोचते हैं , अब क्या करें , ये तो जीवन का अंग है , हमें तो वैसे ही चलना पड़ेगा जैसा हो रहा है’ |
खुद को बचाने के लिए इस तरह की बातें आपके मन में आती हैं |
अब अगर आप (इस सबके विरुद्ध) खड़ा होना चाहते हैं , तो आपको आंतरिक शक्ति चाहिये होगी , और यही ध्यान है |
ध्यान करने से आपको वह आंतरिक शक्ति मिलती है , आपके व्यक्तित्व में वह पूर्णता आती है , और आपके जीवन में उस अंतर्ज्ञान को पनपने में सहायता करता है , जो पहले से ही आपके अंदर निहित है | मुझे लगता है कि यह बेहद ज़रूरी है |
जैसा कि मैं कह रहा था , कि जब मैं उन अपराधियों से बातचीत कर रहा था; बल्कि मुझे उन्हें अपराधी कहना ही नहीं चाहिये; उन्हें भटके हुए युवा कह सकते हैं , तो मुझे उन सबमें एक सुंदरता दिखी | बस ऐसा हुआ कि उन्हें अपने तनाव और गलतफहमियों से छुटकारा पाने का अवसर ही नहीं मिला |
उन्हें ये मौका दिया ही नहीं गया कि वे अपनी परेशानियों और टेंशन से मुक्त हो पाएं , और ये समझ पाएं , कि समाज में पर्याप्त प्रेम है , कि इस ग्रह पर अच्छे लोग भी हैं , आस-पड़ोस में रहने वाले अच्छे लोग जो उनकी मुसीबत के समय में उनके साथ खड़े हो जायेंगे |
ऐसे लोग हैं , जो आपक्से साथ खड़े होते हैं , आपके कंधे से कंधा मिला कर आपकी मदद करने को तैयार रहते हैं |
समाज की अच्छाई में ऐसा विश्वास हमें दोबारा जगाना होगा | जब तक ये नहीं होगा , समाज में नैतिकता टिक नहीं पाएगी |
जिस समाज में मानवीय मूल्यों में विश्वास नहीं है , लोगों में आपसी विश्वास नहीं है , और समुदायों में आपस में विश्वास नहीं है , ऐसे समाज में नैतिकता पनप ही नहीं सकती |
इसलिए , खुद पर विश्वास , आस-पास के लोगों पर विश्वास , और उस अनदेखे , अनसुने , और उसअज्ञात हाथ पर विश्वास जो हमेशा हमारी मदद कर रहा है ये सब ज़रूरी हैं |
आप इसे ईश्वर पर भरोसा कह सकते हैं , प्रकृति पर भरोसा कह सकते हैं या फिर कोई दैवीय शक्ति मान सकते हैं | ये सब एक न्यायपूर्ण , मुक्त और सुखी समाज के लिए ज़रूरी है |
इसलिए , Volunteer for a Better India (एक बेहतर देश के लिए आपका योगदान) न केवल समाज की बुराईयों और अस्वस्थता को साफ़ करेगा , बल्कि इस पर खुशी की लहरें फैलाने की भी जिम्मेदारी है |
आज , युनाइटेड नेशन (UN) , GDH (Gross Domestic Happiness) के बारे में बात करने लगा है | यानी कि किसी देश के विकास को मापने के लिए ये देखना कि उस देश में लोग कितने खुश हैं | नाकि , उस देश में कितना आर्थिक विकास हो रहा है , जिसे GDP (Gross Domestic Product) कहते हैं |
क्या आप जानते हैं , हमारे पड़ोसी देश भूटान का सबसे ज्यादा GDH है | हालांकि वह अभी तक काफी नियंत्रित देश रहा है लेकिन फिर भी इस देश ने अपनी खुशी बरकरार रखी है |
आज भी ग्रामीण भारत में , लोग ज्यादा खुश नज़र आते हैं | अगर उनके पास एक ग्लास लस्सी भी होगी , तो भी वे उसे आपक्से साथ बांटेंगे | उनके अंदर इतनी करुणा और इतना अपनापन है | वे आपसे आपकी पृष्ठभूमि नहीं पूछते , या ये नहीं पूछते कि आप कौन हैं , कहाँ से आये हैं , आपकी क्या शैक्षिक योग्यता है , या फिर आपका नाम क्या है | वे सबसे पहले कहेंगे , आईये अंदर आईये , चाय पीजिए या लस्सी पीजिए’ | और उसके बाद वे आपसे पूछेंगे , कि आप कहाँ से आये हैं , और आप क्या करते हैं |
तो इसलिए , वे अपना हाथ पहले बढ़ाते हैं , और उनके पास जो भी है , उसे आपके साथ बांटते हैं , और फिर बाक़ी सारे सवाल बाद में आते हैं |

दिल्ली , मुंबई और इस तरह के जितने बड़े शहर हैं , यहाँ तो हमें ये तक नहीं पता कि हमारे पड़ोसी कौन हैं | Volunteer for a Better India (एक बेहतर देश के लिए आपका योगदान) इन घेरों को तोड़ेगी , पड़ोसियों को साथ में लाएगी , समुदायों को साथ में लाएगी |
समुदाय साथ में मिलकर जब काम करते हैं , तो बहुत खुशी होती हैं | न केवल कन्या-भ्रूणहत्या और भ्रष्टाचार के लिए लड़ना , बल्कि ये एक खुशी की लहर ले कर आती है , जो कि डिप्रेशन (अवसाद) की बीमारी के लिए बढ़िया दवा है |
इन शब्दों के साथ , मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि वे आपको बहुत शक्ति और सामर्थ्य प्रदान करे , ताकि आप Volunteer for a Better India (एक बेहतर देश के लिए आपका योगदान) के लिए काम कर सकें |
आर्ट ऑफ लिविंग केवल एक NGO है | मुझे लगता है कि मैं आर्ट ऑफ लिविंग में फंसा नहीं हूँ | ये बहुत सी संस्थाओं में से एक है और मैं बहुत सी संस्थाओं से जुड़ा हूँ केवल आर्ट ऑफ लिविंग से ही नहीं | इसलिए , मुझे आशा है कि आप भी ऐसा ही महसूस करते होंगे | और बाकी सभी NGO जो आज यहाँ मौजूद हैं , हम सब एक ही मानव परिवार के हिस्सा हैं , और हमारा एक ही लक्ष्य है , कि हम इस ग्रह पर और ज्यादा खुशियाँ व और ज्यादा मुस्कुराहट ला पाएं |
धन्यवाद !