मौन सबसे श्रेष्ठ प्रार्थना है


प्रश्न : आपको मिलने के लिए इतना प्रयास क्यों करना पड़ता है? क्या गुरु ऐसा किसी कारण करते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
मैं तो सहज ही मौजूद हूँ। तुम्हे मेहनत करने में मज़ा आता है। मेहनत करके जो मिलता है उसका फल ज़्यादा आनंद देता है। इंन्सान आसानी से मिली हुइ वस्तु का आनंद नहीं ले पाता। हमारा अहंकार मुश्किल काम करने में गर्व अनुभव करता है। यह कहकर कि तुमने कुछ अलग याँ मुश्किल काम किया, तुम गर्व महसूस करते हो।
मैं यह नहीं कह रहा कि यह सही हैं याँ गलत, पर यह कुछ प्राकृतिक नियम हैं जिनके प्रति हमें सजग होना चाहिए। दिल पुराने की चाह करता है। हम पुरानी दोस्ती में गर्व महसूस करते हैं। मन नए की चाह करता है। हम नइ चीज़ें इस्तेमाल करना चाहते हैं। अहंकार मुश्किल याँ बिल्कुल अलग काम करके, याँ ऐसी वस्तु प्राप्त करने में जो किसी के पास न हो गर्व अनुभव करता है। जैसे माउन्ट एवरेस्ट चड़ना। और स्मृति बुराइ को पकड़ती है। यदि हमारे साथ दस अच्छे अनुभव हुए और एक बुरा, तो स्मृति उस एक बुरे अनुभव को पकड़ लेती है। आत्मा वो है जो इन सभ का साक्षी है, तुम्हारे भीतर का वो तत्व जो कभी नहीं बदलता। मन, बुद्धि, स्मृति याँ अहंकार में होने वाली किसी भी हलचल से अशुद्ध नहीं होता। उपनिष्दों में भी लिखा है कि अगर तुम एक बार अपने भीतर के उस तत्व की झलक पा लेते हो तो कोई भी घटना तुम्हें विचलित नहीं करती। इस का ज्ञान बाकी के स्तरों को भी प्रभावित करता है। जब तुम केन्द्रित होते हो तो बुद्धि और स्मृति तीव्र होते हैं, शरीर तेजस्वी बनता है।

प्रश्न : आध्यात्मिक मार्ग में कब चेष्टा करनी है और कब धैर्य रखना है, यह कैसे जाने?

श्री श्री रवि शंकर :
पथ पर शुरुआत करने के लिए चेष्टा करनी पड़ती है। जैसे यहाँ आने में कई चीज़े बाधा पैदा कर सकती हैं याँ तुम्हे विचलित कर सकती हैं। उस समय तुम्हे चेष्टा करनी पड़ती है और अपने संकल्प से तुम यहाँ आते हो। पर जब तुम एक बार पथ पर आ जाते हो तो तुम्हें विश्राम मिलता है।

प्रश्न : आध्यात्मिक पथ पर आने के बावजूद भी मुझमें ज़्वरता है। मैं इस ज़्वरता से कैसे मुक्त हो सकता हूँ?

श्री श्री रवि शंकर :
थोड़ी ज़्वरता होना अच्छा है। पातान्जली योगसुत्र में भी बताया है कि थोड़ी ज़्वरता पथ पर प्रगति के लिए अच्छी है। उससे तुम आलस और विलंब में नहीं पड़ते।

प्रश्न : हर धर्म और जाति के लोगों को एक साथ कैसे ला सकते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
हम पहले ही यह कर रहे हैं और आगे भी यही करते रहना है। सब को एकसाथ बुलाकर सतसंग और सेवा करो।

प्रश्न: मौन और प्रार्थना में क्या संबंध है?

श्री श्री रवि शंकर :
मौन सबसे श्रेष्ठ प्रार्थना है। हम अकसर किसी भाषा में प्रार्थना करते है - हिन्दी, अंग्रेज़ी, जर्मन...। वास्तव में सभी का एक ही मतलब है। मौन उससे अगला कदम है। मौन वो भाषा है जिसे सारी सृष्टि समझती है। शब्दों में की गई प्रार्थना का मक्सद भी भीतर मौन पैदा करना है। शब्दों का उद्देश्य मौन पैदा करना और श्रम का उद्देश्य विश्राम देना है। गहरा विश्राम तृप्त करता है। वही तृप्ति और पूर्णता तुम्हें आनंदित करता है। प्रेम का मकसद तुम्हारे भीतर आनंद की लहर जगाना है।

प्रश्न : प्रार्थना और ध्यान में क्या अन्तर है?

श्री श्री रवि शंकर :
ईश्वर से माँगना प्रार्थना है और ईश्वर को सुनना ध्यान है।

प्रश्न: आलोचनात्मक प्रवृति को कैसे बदल सकते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
जिस समय तुम इसके प्रति सजग हो जाते हो तुम इससे बाहर आ ही चुके हो। यह सजगता कि तुम आलोचनात्मक हो रहे हो, का मतलब ही यही है कि तुम उससे बाहर हो।

प्रश्न : गुरूजी, आप कहते हैं कि आपमे और मुझमे कोई फ़र्क नहीं है, पर मुझे ऐसी अनुभूती कैसे हो सकती है?

श्री श्री रवि शंकर :
मौन और सेवा में।

प्रश्न : मन पैसे, ग्लैमर और शोहरत के पीछे भागता है। क्या यह सभ ज़रुरी है?

श्री श्री रवि शंकर :
तुमने पहले यह समझा कि मन भाग रहा है, तभी तो तुम्हें यह प्रश्न सूझा। यह प्रश्न मैं तुम पर छोड़ता हूँ। यह बहुत ही व्यक्तिगत है। मेरे हिसाब से यह ज़रुरी नहीं है पर मेरा उत्तर तुम्हें संतुष्ट नहीं करेगा। यह अपने भीतर से उठना चाहिए। नहीं तो यह केवल मूड बनाने जैसा ही होगा। मन का एक हिस्सा कहेगा मुझे यह सब नहीं चाहिए पर कहीं तो यह खटकता रहेगा। इस तरह मन में एक युद्ध चलता रहता है। पर जब तुम यह देखते हो कि यह सब होने के बावजूद भी लोग अन्दर से खोखले हैं तो सहज ही यह समझ में आता है कि इन सब में कोई महत्व नहीं है। तब न तो इसके लिए लालसा तंग करती है, और ना ही तुम इसको छोड़ने का प्रयास करते हो। जब तुम यह अनुभव करते हो कि सुर्य की मौजूदगी में मोबत्ती की आव्श्यकता नहीं, तो वह अनुभव, तुम्हारा सच्चा अनुभव है। जब तुम ऐसी भ्रम पैदा करने वाली चीज़ों के पीछे भागते हो तो तुम पाते हो यह केवल तुम्हें पीड़ा ही दे रहा है , और वो नहीं जो तुम असल में चाहते हो। तब भीतर से ऐसी उर्जा जगती है कि इन सब के होने याँ ना होने का तुम पर कोई प्रभाव नहीं होता।

प्रश्न : कुछ बुरा होने पर जैसे किसी करीबी इंसान की मृत्यु, हम अपने मन को कैसे शांत रख सखते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
उठ कर देखो यह सब एक सपना है। सपने में कुछ अच्छा भी हो सकता है और बुरा भी। बुद्धिमान व्यक्ति सपने में हुइ घटना के किए दुखी नहीं होते।

प्रश्न : गुरुजी, हम कैसे जाने कब वैराग्य इस्तेमाल करना है और कब दया?

श्री श्री रवि शंकर :
जब किसी चीज़ के प्रति लगाव परेशान करे तो वैराग्य और बाकी हर समय करुणा का इस्तेमाल करो। असल में तुम दया का इस्तेमाल नहीं कर सकते क्योंकि याँ तो तुम दयालु हो, याँ नहीं हो। यह किसी औज़ार की तरह नहीं है जिसका तुम कभी इस्तेमाल कर सकते हो और कभी नहीं।

प्रश्न : सफ़ेद चीनी और चाय का क्या वैकल्पिक उपाय(alternative) है।

श्री श्री रवि शंकर :
किसी भी धारणा पर एक ज़रुरत से ज़्यादा मत अड़ो। तुम्हारे शरीर में खुद को ढालने की योग्यता है। गुड़ का प्रयोग करना श्रेष्ठ है| पर ऐसा हर समय संभव नहीं भी हो सकता। जैविक खाना सबसे बेहतर है पर ऐसा नहीं कि कुछ और खाते ही तुम बीमार पड़ जओगे। जो लोग खाने के लिए बहुत चिंतित रहते हैं उनका प्रतिरक्षा प्रणाली(immune system) इतना मज़बूत नहीं रहता। इसलिए कभी कभी प्रतिरक्षा प्रणाली को काम करने का मौका भी देना चाहिए। पर ऐसा करना अपनी आदत नहीं बनानी चाहिए। एक बीच क रास्ता चुनो।

प्रश्न: हमे कैसे पता चलता है कि हम बीच के रास्ते पर हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
जब तुम गिरते नहीं हो तो तुम मध्य मार्ग पर होते हो।

art of living TV

© The Art of Living Foundation For Global Spirituality

"खुशी केवल तुम्हारे मन पर आधारित है"


प्रश्न : गुरुजी आप इतनी कम नींद लेते हैं तो क्या आप को इससे कोई परेशानी नहीं होती?

श्री श्री रवि शंकर :
एक योगी ऐसी बातों की चिन्ता नहीं करता। योगा से कुछ भी मुमकिन है।

प्रश्न : भक्ति के अनुभव के लिए मुझे कहाँ जाना होगा?

श्री श्री रवि शंकर :
भक्ति के लिए कहीं जाने की ज़रुरत नहीं। भक्ति केवल स्मरण से ही उजागर हो जाती है। तुम कहीं भी हो याँ किसी भी काम में लगे हो, तुम भक्त हो सकते हो।

प्रश्न : ’आर्ट ऑफ लिविंग’ से मुझे बहुत कुछ मिला है। मैं कैसे योगदान कर सकता हूँ?

श्री श्री रवि शंकर :
तुम आश्रम में किसी भी समय आकर सेवा कर सकते हो।

प्रश्न : मेरा अतीत मुझे बहुत परेशान करता है। मुझे क्या करना चाहिए?

श्री श्री रवि शंकर :
जो हुआ सो हुआ। किसी को माफ करना भी भूल जाओ। माफ करने के लिए भी तुम्हें याद करना पड़ता है। उसे एक सपने की तरह देखो। किसी भी बाधा को तुम्हे आगे बड़ने से मत रोकने दो।

प्रश्न : मैं जहाँ भी जाता हूँ दुख ही अनुभव करता हूँ। मुझे कहाँ जाना चाहिए और कया करना चाहिए?

श्री श्री रवि शंकर :
अपने भीतर - अन्तरमुख।

प्रश्न : मैं सी.डी से ध्यान करते समय आपके निर्देशों का अनुसरण नहीं कर पाता।

श्री श्री रवि शंकर :
ध्यान में मुझे सुनने की कोशिश मत करो। जो होता है, उसे होने दो। उसे एक सलाह की तरह लो। तुम ध्यान में बैठे हो, यही बहुत है।

प्रश्न : जीवन की परिभाषा क्या है? हुम एक खुशहाल जीवन के लिए क्या कर सकते हैं?

श्री श्री रवि शंकर:
’आर्ट ऑफ लिविंग’ इसी के बारे में है। जीवन परिभाषा से परे है। जीवन इतना विशाल है कि कुछ शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। खुशी हमारा स्वभाव है पर उसकी खोज में कहीं हम वो खो देते है। आध्यात्मिकता का अर्थ है ऐसी मुसकान लाना जो तुमसे कोई ले नहीं सकता। एक बार यह पा लेने के बाद तुम्हे सारा अतीत एक सपने जैसा लगता है। वर्तमान क्षण मे खुशी ही है और अपनी खुशी के लिए तुम दूसरों पर निर्भर नहीं हो। खुशी केवल अपने मन पर निर्भर करती है। जब मन अतीत की छापों और भविष्य की चिन्ता से मुक्त होता है, तो खुशी इसी पल मौजूद है।

प्रश्न : मैं जन्म से मांसाहारी हूँ और मुझे यह समझ में नहीं आता कि माँस क्यों नहीं खाना चाहिए?

श्री श्री रवि शंकर :
थोड़ी देर के लिए आध्यात्म के बारे में भूल जाओ। एक खोज के अनुसार एक किलो माँस पैदा करने में जितनी खपत होती है उससे ४०० व्यक्ति भोजन कर सकते हैं। एक और खोज के अनुसर अगर केवल १० प्रतिशत लोग मांसाहार छोड़ दें तो ग्लोबल वार्मिंग की समस्या खत्म हो जाएगी। इस आधार पर इस ग्रह के लिए और तांकि सब लोगों को भोजन मिल सके, इस के लिए मांसाहारी भोजन की खपत कम करना ज़रुरी है। भगवान ने हमें धरती की और धरती पर रहने वालों की देखभाल करने की होश तो दी है।
हम जितना भोजन उगाते हैं उससे ४० - ५० प्रतिशत अधिक इस्तेमाल करते हैं। ध्यान के साथ साथ पेड़ उगाना, जानवरों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी और शाकाहारी होना भी आध्यात्म का हिस्सा है।

प्रश्न : क्या कभी ऐसा होगा कि दुनिया में हिंसा ना हो और सिर्फ शांति ही हो?

श्री श्री रवि शंकर :
हाँ, इसी के लिए हमे कार्य करते रहना चाहिए। सारी दुनिया एक ही परिवार है - वासुदेव कुटुम्बकम।

art of living TV

© The Art of Living Foundation For Global Spirituality

"प्रकृति तुमसे प्रेम करती है"

बैंगलोर आश्रम, भारत
१६.०१.२०१०

प्रश्न : जितना लगाव मैं आपके लिए महसूस करता हूँ, क्या आप वैसा अनुभव करते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
उससे भी ज़्यादा। कनेक्शन का मतलब है कि वहाँ एक अंतर है। मैं तो तुम से अलग ही नहीं महसूस करता।

प्रश्न : यदि सत्य विरोधाभासी है, तो सत्य को कैसे खोजें?

श्री श्री रवि शंकर :
सत्य से ना तुम बच सकते हो और ना ही उसका सामना कर सकते हो। सत्य सामने आ ही जाता है। झूठ बोलने के लिए तुम्हें उसका निर्माण करना पड़ता है पर सत्य के लिए कोइ श्रम नहीं करना पड़ता।

प्रश्न : समर्पण के बाद भी समस्याएं मुझे तंग करती हैं। मुझे क्या करना चाहिए?

श्री श्री रवि शंकर :
यह ऐसा है जैसे कुछ देने के बाद भी वो तुम्हारे पास है। जितनी बार तुम्हे समस्या परेशान करती है, तुम उसका समर्पण करते जाओ।

प्रश्न : एक आदर्श भक्त के क्या लक्षण हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
तुम हो। इसमे तुम संशय मत करो। तुम जो भी विशेषता अपने में देखना चाहते हो, वो तुम अपने में विकसित कर सकते हो।
१. जिसका मन शांत हो।
२. जो ज्ञान में रहना चाहता है। जिसे कुछ ज्ञान है और वो अधिक ज्ञान पाना चाहता हो।
३. किसे के प्रति नफ़रत की भावना ना रखता हो।
४. दया भाव रखता हो।

प्रश्न : आप हमसे क्या उम्मीद रखते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
तुम हमेशा खुश रहो, ज्ञान में रहो, सेवा करते रहो और पथ पर दृड़ रहो। यह मेरी उम्मीद नहीं क्योंकि मैं जानता हूँ तुम ऐसा ही करोगे। पर मैं चाहता हूँ कि तुम बहुत जल्दी ऐसा करो।

प्रश्न : सच बोल के बाहर समस्या हो जाती है और झूठ बोलने से अपने भीतर। ऐसे में क्या करें?

श्री श्री रवि शंकर :
समस्या का समाधान। समस्याओं को चुनौतियों के रूप में लो। जो बहादुर है उसे चुनौती पसन्द होती है और तुम बहदुर हो।

प्रश्न : गुरुजी, जब हम ’जय गुरुदेव हैं’ कहते हैं , हम सामने वाले व्यक्ति में गुरु तत्व को ध्यान में रखते हैं याँ हम अपने में गुरु को याद करते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
मैं इसे तुम पर छोड़ता हूँ, जो भी तुम चाहते हो। इसके बहुत अर्थ हैं - नमस्ते, हैलो, तुम कैसे हो, धन्यवाद। इसमे सब कुछ आ जाता है। यह एक आदत की तरह हो गया है। मैं यह तुम पर छोड़ता हूँ, अगर तुम्हारी इच्छा है तो ही कहो।

प्रश्न : क्या शरीर और आत्मा के परे भी मेरा अस्तित्व है? अगर है तो किस रूप में?

श्री श्री रवि शंकर :
आत्मा के परे कुछ नहीं है। शरीर के परे? हाँ। अभी के लिए इस को यहीं पर छोड़ते हैं। नहीं तो यह सिर्फ़ एक और धारणा बन जाएगी। जब तुम धीरे धीरे खुद अनुभव करते हो कि तुम सिर्फ़ शरीर नहीं पर तुम्हारा अस्तित्व इससे ज़्यादा है तो तुम खुद को भी पहचान लेते हो।

प्रश्न : गुरुजी, ऐसे कई पल होते हैं जब मैं बहुत उत्साहित और खुश होता हूँ। पर दो समस्याएं है - ऐसी स्थिति में मैं चीजों को भूल जाता हूँ जैसे मेरा समान याँ कोई ज़रुरी मुलाकात। दूसरा मैं डरता हूँ कि अगर ऐसा चलता रहा तो कया होगा। यह डर विशेषकर मेरी पत्नी को है।

श्री श्री रवि शंकर :
मुझे याद है एक कोर्स में एक सज्जन ने अपनी पत्नी के साथ भाग लिया। हर ज्ञान वाणी(knowledge point) में वे एक दूसरे को कहते "देखा मैने भी ऐसा ही कहा था। मैं कब से यही बता रहा हूँ तुम्हे।" हमे उन्हे बताना पड़ा कि यह ज्ञान तुम्हारे लिए है और इसलिए नहीं के तुम इसको अपने साथी पर लाद दो। तुम अपने भीतर देखो और जहाँ किसी सुधार की ज़रुरत है वहाँ ज्ञान को इस्तेमाल करो। प्रेम, शांति और दान अपने घर से शुरू होता है। तो पहले अपने से शुरू करो।

प्रश्न :मैं शारीरिक रूप से कई लोगों से आकर्षित हो जाता हूँ। यह प्राकृतिक है याँ इसके लिए मुझे कुछ करना चाहिए?

श्री श्री रवि शंकर :
अगर तुम अपने मन को देखो तो इसमे कितने ही विचार आते हैं। हर विचार का अनुसरन करने की कोशिश में व्यक्ति पागल हो सकता है। तुम कितने लोगो से आकर्षित होते हो और कई लोगों से प्रतिकर्षित। तुम मन में आने वाले हर विचार का अनुसरन कर ही नहीं सकते। तुम्हे अपनी समझ से काम करना है। पहले देखो कि क्या सही है और क्या गलत, क्या तुम्हे विकास की ओर ले के जा रहा है और क्या तुम्हारे विकास में बाधक है, और क्या स्थायी है और क्या बदल रहा है। यह समझना ही विवेक है। हमे अपने काम इसी विवेक से करने है। नहीं तो तुम बिना सोच समझ के काम करते हो और ऐसा कार्य तुम्हे दुख ही देता है।

प्रश्न : हम आपको इतनी चिन्ताएं समर्पण करते है। आप वो सब किसे देते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
इसकी चिन्ता तुम मत करो। मेरे पास प्रोसेसिन्ग यूनिट है जो सब कचरे को खाद बना देती है।

प्रश्न : अगर आत्मा न खत्म होती है और ना ही पैदा होती है तो संसार में इतनी नई आत्माएं कहाँ से आती हैं? जनसंख्या कैसे बड़ती है?

श्री श्री रवि शंकर :
तुम यह भूल रहे हो कि कितने जानवर भी खत्म हो रहे हैं। बाकि का उत्तर तुम सोच ही सकते हो।

प्रश्न : गुरुजी, जब मैं समस्या मे होता हूँ तो साधना करता हूँ। पर जब समस्या दूर हो जाती है तो मैं पथ से दूर हो जाता हूँ। इसके लिए मैं क्या करूँ?

श्री श्री रवि शंकर :
तुम देखो इसका क्या करना है। एक कहावत है
"दु:ख मे सिमरन सब करे, सुख मे करे ना कोई।
सुख मे सिमरन जो करे, सो दु:ख काहे को होए॥
यह हम पर भी लाघु होती है। हम खुशी मे भी प्राणायाम, सुदर्शन क्रिया, साधना करते हैं तो वो सुख बना रहता है।
आज ही अख़बार में था कि डिपरैशन का पूरा इलाज केवल ध्यान से ही हो सकता है। एन्टी डिपरैशन दवाइयों से पूरा ईलाज नहीं होता और कुछ समय में डिपरैशन वापिस आ जाता है। कुछ समय के लिए लगता है कि डिपरैशन ठीक हो गया है पर बाद में डिपरैशन ज़्यादा प्रबलता से वापिस आता है। आज कई लोग डिपरैशन से पीड़ित है और नहीं जानते ऐसा कुछ भी है जिससे वो डिपरैशन से बाहर आ सकते हैं। इसलिए ज़रुरी है कि हम ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक यह पहुँचाएं।

प्रश्न : यहाँ आकर हमें जितनी खुशी और शांति मिली है उसका अनुभव इससे पहले कभी नहीं किय था। हम यही खुशी और शांति कश्मीर में कैसे ले के आएं?

श्री श्री रवि शंकर :
तुम भी इस पर सोचो और हम भी सोचते हैं। अच्छा होगा अगर तुम जैसे युवक यहाँ आएं और इस अनुभव के बाद वपिस जा कर वहाँ भी यह खुशी और शांति फैलाएं। अगर तुम सब ऐसा निश्चिय कर लेते हो तो हम कश्मीर में ’आर्ट ऑफ़ लिविन्ग’ ज़रुर शुरु करेंगे।

प्रश्न : ऐसा कहते हैं कि अगर कोई दु:ख अनुभव करता है तो व्यक्ति के पिछ्ले जन्म के कर्म जिम्मेदार हैं। आप इसके बारे में बताएं।

श्री श्री :
'पाप क्या पुण्य क्या तू भूलादे, कर्म कर फल की चिन्ता तू मिटादे। इसके बारे में ज़्यादा मत सोचो। अगर कुछ गलत हो गया तो हो गया। अब क्या कर सकते हो वो देखो। क्या ठीक कर सकते हैं, उसके बारे में सोचो। कर्म के बारे मे ’मौन की गूँज’ पुस्तक में कहा है मैने।

प्रश्न : गीता ज्ञान को जीवन में कैसे उतारें? मुझे ऐसा करना मुश्किल लगता है।

श्री श्री :
यह बिल्कुल मुश्किल नहीं है। सहज रहो। जीवन जैसे आता है वैसे उसको स्वीकार करो और आगे बड़ते चलो। ’आर्ट ऑफ़ लिविन्ग’ के ज्ञान के सूत्र जीवन में से ही लिए गए हैं। यह ज्ञान सहज ही जीवन में उतरता है। थोड़ा योगा, प्राणायाम और ध्यान करो, तुम देखोगे सहजता से ही जीवन परिवर्तित हो गया है।

art of living TV

© The Art of Living Foundation For Global Spirituality

"हमारी वाणी में मिठास हो"

बैंगलोर आश्रम, भारत

हमारी वाणी में मिठास हो
भारत में आज संक्रान्ति का त्यौहार है। पूरे देश के किसान यह उत्सव मनाते हैं। दक्षिण भारत में इसे ’पोंगल’ कहते हैं। लोग आपस में तिल और गन्ना बाँटते हैं।
पुराने समय में जब पैसे का चलन नहीं था तो लोग आपस में सामान बदलते थे। जैसे बादाम के बदले सेब, चावल के बदले गन्ना। इस तरह से पूरे विश्व में कुछ लेन देन चलता रहता था।
आज के दिन भी वैसा ही व्यव्हार चलता है। ज़्यादातर लोग मिठाई बाँटते हैं। इस इच्छा के साथ कि इस वर्ष हम अपनी वानी में मिठास लाएँ, और ज्ञान की बात करें।
कई जगह ऐसा कहते हैं:
तिलगुड़ खाया,
गुड़ गुड़ बोला।

art of living TV

© The Art of Living Foundation For Global Spirituality

"तुम्हारा अस्तित्व तुम्हारी करनी से अधिक महत्व रखता है"

भारत का गर्वपूर्ण इतिहास

पुणे में १३ जनवरी २०१० को सदगुरु परिवार की ओर से गुरुजी को सदगुरु भूषण अवार्ड से सम्मानित किया गया। इस उपलक्ष्य में गुरुजी ने कहा -
महाराष्ट्र की भूमि संतों की भूमि रही है और आगे भी रहेगी। हर बच्चे में एक संत होता है और हर संत में एक बच्चा। सदगुरु परिवार बच्चों में संस्कृति और परंपरा जागृत रखने का बहुत अच्छा काम कर रहा है।
महाराष्ट्र के एक गांव की बालिका, जो आगे चलकर महारानी बनी, ने १८१ मंदिरों का निर्माण करवाया। हर बच्चे को रानी अहिल्याबाई होल्कर की कथा मालूम होनी चाहिये। उनकी जीवनी एक विदेशी व्यक्ति फ़्रान्कोइस गौटियर ने बड़ी खूबसूरती से लिखी है। ये भारत के हर बच्चे के लिये एक प्रेरणादायक हो सकती है।

art of living TV

© The Art of Living Foundation For Global Spirituality

"खुशी के स्रोत आपके भीतर है"

बैंगलोर आश्रम, भारत
०५.०१.२०१०

प्रेम सभी जगह उपस्थित है। बुद्धिमान व्यक्ति प्रेम को विकृत होने से बचा लेते हैं। प्रेम विकृत हो जाये तो लालच, ईर्ष्या, भय और घृणा का रूप ले लेता है।
जब व्यक्ति आसक्त हो जाता है, तो मोह का जन्म होता है - obsession.
हर भावना का स्रोत प्रेम ही है। भावना चाहे सकरात्मक हो या नकरात्मक। प्रेम कि बिना उसका अस्तित्व ही संभव नहीं है। हमें प्रेम चाहिए। ऐसा प्रेम जिसमें दुख ना हो, जो सुख और शांति लाए। पवित्र प्रेम ही आनंद बन जाता है। आध्यात्म का मार्ग, प्रेम को लालच से दूर रखता है और तुम्हें आनन्द और सुख की ओर ले जाता है। यही इन क्रियाओं की उपयोगिता है।

प्रश्न : गुरुजी, क्या आप शब्दों की उपयोगिता के बारे में बताएंगे?

श्री श्री रवि शंकर :
विचार शक्ति में बहुत सामर्थ्य है। जब तुम असमंजस में होते हो तो तुम्हारे शब्दों का दूसरों पर खास प्रभाव नहीं पड़ता। तुम्हारी सोच जितनी स्पष्ट होगी, तुम्हारे शब्दों को उतनी ही शक्ति मिलेगी। अगर तुम दुविधा में हो तो तुम्हारे शब्द भी कमज़ोर होंगे। प्राणायाम और ध्यान करने से मन स्वच्छ होता है। जो विचार उस स्वच्छ मन से आते हैं वो भी सीधे और स्पष्ट होते हैं। एक संतुष्ट व्यक्ति के शब्दों में भी ताक़त होती है।
भारत में बड़ों से आशीर्वाद लेने की प्रथा है। हम ये मानते हैं कि उनका मन शांत होता है। जब उस शांत मन से आशीर्वाद देते हैं तो उस आशीर्वाद में बहुत शक्ति होती है। विवाह हेतु निमंत्रण पत्र में परिवार के सबसे बड़े व्यक्ति का आशीर्वाद लिया जाता है। ऐसी ही प्रथा उत्तर अमरीका, आस्ट्रेलिया, और न्यूज़ीलैन्ड के मूल निवासियों में भी है। पूरी दुनिया में पुरानी सभ्यताओं में बड़ों के सम्मान की प्रथा रही है। सम्मान के बिना, ५० वर्ष से अधिक उम्र के लोग भी अब अवसाद और तनाव की ओर जा रहे हैं। इसे बदलना होगा । माता पिता भी आनंदित और उत्साहपूर्ण होने चाहिए उम्र के साथ साथ प्रसन्न्ता भी बढ़ती रहनी चाहिए।

प्रश्न : सेवा की ज़िम्मेदारी लेने पर उसको अच्छे से पूरा करने की चिन्ता महसूस होती है। मुझे क्या करना चाहिए?

श्री श्री रवि शंकर :
उतना करो, जितना के कर सकते हो। अपनी क्षमता को धीरे धीरे बढ़ाओ। इस तरह से हमें खुद को एक नई दिशा देनी है।
समाज में होने वाली घटनाओं का फ़र्क न पड़ना, याँ शिकायत करते रहना - दोनों ही बर्ताव सही नहीं हैं। कर्म ना करना भी ठीक नहीं है, और जीवन की अंतिम घड़ी तक दूसरों में कमियां निकालते रहना भी ठीक नहीं है।

प्रश्न : हम कहते हैं कि स्थिति को स्वीकार करो। परंतु घर में अगर चोर घुस आये तो उस स्थिति को कैसे स्वीकार कर सकते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
जब एक चोर दरवाज़े से भीतर आता है तब तुम डर से कांपने लगते हो, सवाल करने लगते हो। चोर तुम्हारे घर चोरी करने क्यों आया, ये सवाल बेकार है! ये उसका काम है। स्वीकार कर लो कि वो एक चोर है। और फिर कोई कदम उठाओ।
अगर कोई तुम्हें धोखा देता है तो तुम इस बात को लेकर उलझ जाते हो कि, "मुझे धोखा क्यों दिया?" तुम परेशान हो जाते हो, और काम नहीं कर सकते। जब तुम चोर को स्वीकार करते हो तब तुम आगे काम करते हो, पुलिस को बुलाते हो, इत्यादि।
माता पिता चिंतित रह्ते हैं, "मेरा बच्चा पढ़ता नहीं है।" स्वीकार कर लो, तब तुम सही कदम उठा पाओगे। जब तक आप स्वीकार नहीं करते, भावनायें ऊठी रहती हैं और बुद्धि में स्पष्टता नहीं आ पाती। ऐसे में लिए हुए कदम पर पछताना पड़ता है।

प्रश्न : आपदा पीड़ित (डिसास्टर विक्टिम्स) व्यक्तियों को ध्यान से क्या लाभ है?

श्री श्री रवि शंकर :
ध्यान से गहन पीड़ा से हुये मानसिक घाव भर जाते हैं। परामर्श से केवल मन की ऊपरी सतह का इलाज संभव है। आनंद का स्रोत हमारे भीतर है। घटनायें स्थायी नहीं होती। ध्यान मन पर किसी घटना की छाप नहीं पड़ने देता। अपने मन को शीशे की तरह साफ़ रखना, यही योग और ध्यान का कार्य है।

art of living TV

© The Art of Living Foundation For Global Spirituality

"साधना का अर्थ है हर तरह के प्रयत्न से विश्राम"

बैंगलोर आश्रम, भारत

ध्यान में कोई प्रयत्न नहीं है।
हम जो भी प्रयत्न से प्राप्त करते हैं, वो हमारे अहंकार को बढ़ाता है। जो तुम नहीं कर सकते, तुम्हें करने की आवश्यकता नहीं है। कोई कहे कि तुम्हें ४० दिन तक उपवास रखना है। तुम्हारा शरीर इसे सहन नहीं कर सकता। ऐसा करने की कोई आवश्यकता नहीं है। पर अगर तुम सोचो कि तुम कुछ नहीं कर सकते, तो तुम आलसी हो जाओगे। तब भी तुम कुछ नहीं पाओगे।

art of living TV

© The Art of Living Foundation For Global Spirituality

"जो कह रहा है, जो सुन रहा है, जो समझ रहा है, वही आत्मा है"

प्रश्न : इस वर्ष को विरोधी क्यों कहा गया है?

श्री श्री रवि शंकर :
शायद इसलिए कि विरोध के लिये समाज में कुछ स्थान रहे। यह मार्च में ख़त्म हो रहा है। आगे बढ़ो।

प्रश्न : आत्मा कौन है?

श्री श्री रवि शंकर :
जो पूछ रहा है, जो सुन रहा है, जो जान रहा है, वही आत्मा है।

प्रश्न : गुरुजी, मैंने अतीत में पाप किया है...

श्री श्री रवि शंकर :
देखो, अब तुम यहां आ गये हो, सब पाप और पुण्य भूल जाओ। अपने पुण्य के कारण तुम यहां आये हो और तुम्हारे सब पाप धुल गये हैं।

प्रश्न : घर में जब लोगों के विचार नहीं मिलते तो उस स्थिति में क्या करें?

श्री श्री रवि शंकर :
उसे स्वीकार कर लो। मतभेद हो सकते हैं। स्वीकार करने से तुम शांत हो जाओगे। क्या तुम कह सकते हो कि सागर में लहरें नहीं होनी चाहिये? यह प्रकृति है। उसी प्रकार इस संसार में अलग अलग लोग अलग अलग बात कहेंगे। तुम बस मुस्कुराओ और आगे बढ़ जाओ। बार बार इसको मन में दोहराने से कभी न कभी यह बात समझ में आ ही जाएगी।

प्रश्न : लोग २०१२ में दुनिया ख़त्म होने की बात कर रहे हैं। जब मैं दुनिया के अंत की बात सोचने लगा तो विचार आया - सृष्टि क्यों है?

श्री श्री रवि शंकर :
२०१२! ऐसा कुछ नहीं होगा। हम तब भी यूं ही सत्संग करेंगे। बस तब लोग ज़्यादा होंगे|

प्रश्न : जब ध्यान करते समय द्वैत का आभास हो और कई विचार आयें तो मुझे क्या करना चाहिये?

श्री श्री रवि शंकर :
ध्यान में कुछ देखने का प्रयत्न ना करो। विश्राम करो। यदि कई विचार आएं तो उन्हें स्वीकार कर लो। द्वैत क्या है? अच्छा और बुरा, सही और ग़लत - ये सब संघर्ष है। ध्यान करते समय तीन बातों का ख़याल रखो - अकिंचन, अचाह, अप्रयत्न।
मैं कुछ नहीं हूं।
मुझे इस क्षण कुछ नहीं चाहिये।
मुझे इस क्षण कुछ नहीं करना|
इन तीन सिद्धांतों से तुम ध्यान कर पाओगे।

प्रश्न : पूर्ण शांति कब होगी?

श्री श्री रवि शंकर :
पहली बात, क्या तुम में पूर्ण शांति है? जब तुम पूर्ण रूप से शांत होगे तब समस्त संसार में भी पूर्ण शांति होगी। लहरें आती हैं, लहरें जाती हैं। संसार में हर समय सभी सुखी हों, ऐसा संभव नहीं है।

प्रश्न : मैं अपनी प्रतिबद्धताओं(कमिटमेन्ट्स) को पूरा नहीं कर पाता। मुझे क्या करना चाहिए?

श्री श्री रवि शंकर :
जो तुम कर सकते हो, उस पर ध्यान दो। यह देखो कि तुमने दो काम पूरे किए। अगली बार तीन पूरे करना, फिर चार...। इस पर ध्यान दो।

प्रश्न : कैसे जाने कि हमने अपना १०० प्रतिशत दिया है?

श्री श्री रवि शंकर :
तुम्हे ये खुद ही महसूस होगा!

प्रश्न : मैं पर्यावरण के लिये कुछ करना चाह्ता हूं।

श्री श्री रवि शंकर :
क्या तुम्हारे फ़्लैट में एक बाल्कनी है? गमलों मे कुछ पौधे उगाओ। यहाँ से शुरु करो।

प्रश्न : शिव क्या है?

श्री श्री रवि शंकर :
शिव महाकाल है, समय।

प्रश्न : मैं अपने साक्षातकार(इंटरव्यु) के परिणाम के बारे में चिंतित हूं। क्या करूं?

श्री श्री रवि शंकर :
उज्जई श्वास, प्राणायाम, भस्त्रिका, ध्यान करो, और गाओ और नाचो। प्रस्न्न रहो।

प्रश्न : परिपक्व(mature) होना किसे कहते हैं? मैं इस बारे में असमंजस(कनफ्युज़) हूं।
श्री श्री रवि शंकर :
जब असमंजसता खत्म हो जाती है तब तुम परिपक्व होते हो।

प्रश्न : कभी कभी मैं सब से एक अलगाव मह्सूस करता हूं।

श्री श्री रवि शंकर :
यह अच्छा है। उस समय अपनी आंखें बन्द करो और मुस्कुराओ। उस समय मैं तुम्हारे पास हूं।

प्रश्न : सब लोग कब ’आर्ट ऑफ़ लिविन्ग’ को अपनायेंगे?

श्री श्री रवि शंकर :
ऐसा कुछ नहीं है जो ’आर्ट ऑफ़ लिविन्ग के भीतर या बाहर हो।

प्रश्न : आप पूरी दुनिया को एकदम से क्यूं नहीं बदलते? इतती धीरे क्यों?

श्री श्री रवि शंकर :
तुम सब को भी तो काम चाहिए!

art of living TV

© The Art of Living Foundation For Global Spirituality