आप जितने अधिक वैरागी बन जाते हैं, उतनी ही अधिक संकल्प शक्ति आपको प्राप्त होती हैं |

२९ जुलाई २०११
प्रश्न : प्रिय गुरूजी, जब आप कहते हैं कि मैं शरीर से भिन्न हूँ तो यह बात मेरे समझ में आती है परन्तु जब आप कहते हैं कि मैं मन से भी भिन्न हूँ तो मैं यह समझ नहीं पता | मैं मन से कैसे भिन्न हूँ ?
श्री श्री रवि शंकर : अभी आप आपके विचार हैं या विचार आपके हैं ? मन का अर्थ है विचार | विचार आते जाते रहते हैं | कई विचार आते हैं और कई विचार चले जाते हैं | आप उनमे से कई से सहमत होते हैं और कई से असहमत होते है और जिन विचारों से आप सहमत होते हैं कुछ समय उपरांत आप उन्ही से असहमत हों जाते हैं | आप बैठ कर अपने सभी विचारों को लिखें | कुछ समय बाद आप पाएंगे, क्या मैं वही व्यक्ति हूँ जो यह सब सोच रहा था ? आप आश्चर्य करेंगे, ठीक है ? इस तरह से आप अपने विचारों से भिन्न हैं | विचार आपमें आते जाते रहते हैं | यह आकाश मैं बादल के सामान हैं | आकाश बादल नहीं हों सकता परन्तु जब आकाश पर बहुत सरे गहरे बादल छाये हों तो आपको लगता है बादल ही आकाश है | जब आपने खुले हुए आसमान का स्वाद ले लिया हो तो आपको लगता है कि आकाश बदल से परे है और यही साधना कि सुंदरता होती है | जब आप पहली बार सुदर्शन क्रिया करते हैं तो क्या होता है ? कुछ क्षण आपको ऐसा लगता है जैसे कुछ भी नहीं है | कुछ क्षणों में बादलों के माध्यम से आपमें सजगता आ जाती है | आप सोचते हैं कि बादल ही आकाश है परन्तु उन गहरे बादलों के मध्य में खाली स्थान बन जाये तो आपको उन गहरे बादलों के बीच में नीला आकाश स्पष्ट दिखने लगता है | क्या आपने यह अनुभव किया है ? अब आप कुछ पीछे मुड़कर देखें कि पहला कोर्स, पहला ध्यान या सुदर्शन क्रिया करने के पहले कैसे थे ? और अब आप क्या हैं ? आप में से ऐसे कितने व्यक्ति हैं जो अपने १० वर्ष पूर्व के व्यक्तित्व के साथ समानता नहीं पाते हैं ? (कई लोगों ने अपने हाथ उठाये) इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि आप सिर्फ विचार नहीं हैं | १० वर्ष पूर्व वाला व्यक्ति मन या विचारों का पुन्लिंदा ही तो था | परन्तु अब आपको मन के बाहर कि झलक मिल चुकी है जो कि मन नहीं है और आकाश तत्व है जो कि आप हैं | मन का विलीन होना ही ध्यान है | कभी कभी बादल और विचार आते हैं और चले जाते हैं और आप कुशलता पूर्वक उनके मध्य में केंद्रित रहें |

प्रश्न: प्रिय गुरूजी, जब लोग ज्ञान के सूत्र और आपका नाम लेकर अपने झूठ को झिपाते हैं या अपना काम करवाते है, तो क्या किया जाये?
श्री श्री रवि शंकर: इसके लिये आप क्या कर सकते हैं | मैं या आप उन्हें सिखा तो नहीं सकते | आप उन पर सिर्फ दया कर सकते हैं | उनको उनकी करनी और कर्म का फल अवश्य मिलेगा | करुणा के साथ उन्हें समझायें ‘ आप ऐसा क्यों कर रहे हैं, ऐसा न करें | यदि आप की बात वे नहीं सुनते हैं तो आप क्या करेंगें ? आप क्रोधित नहीं हो सकते या भूख हड़ताल पर नहीं जा सकते ! आप क्या करेंगे ?उनके लिये प्रार्थना करे, उन्हें आशीर्वाद दीजिये, उन पर दया करे और उनसे दूरी बना लीजिये  और यदि आप में शक्ति हो तो उनका सामना करे | उनका सामना कैसे करे? इस के बारे में आप सोचें !!!

प्रश्न : पूजा का क्या महत्त्व हैं ? मूर्ती,प्रकृति और स्वयं की पूजा करना, क्या सब एक ही हैं ?
श्री श्री रवि शंकर: हाँ ! मन को फूल के जैसा खिलने के लिये वातावरण का सृजन करना ही पूजा है |आपका दिल,मन और पूरी चेतना खिल जाती हैं | पूजा सिर्फ एक कृत्य हैं | इससे यह फर्क नहीं पड़ता कि आप क्या कर रहे हैं |यह सब बाहरी रूप में हैं परन्तु सबसे मुख्य हैं आपके भीतर की भावनायें | इसलिये पूजा श्रेष्ठ होती हैं परन्तु मानस पूजा सर्वश्रेष्ठ होती है | मानस पूजा का तात्पर्य हैं पूजा को मन में करना |  मेरा दिल आपका सिंहासन हैं ; “रत्नैः कल्पितमासनं हिमजलैर्स्नानं च दिव्यांबरं,नानारत्नविभूषणं मृगमदामॊदाङ्कितं चन्दनम्” । इस पूरी मानस पूजा में सबकुछ आपका हैं, पूरा संसार भी आपका ही है | मेरा दिल और मन एक फूल हैं | और जब आप विश्राम करते हुये गहन विश्राम में चले जाते हैं; तो आपका मणिपुर चक्र बड़ा होकर खिल जाता हैं |मणिपुर चक्र को मध्य का मस्तिष्क भी कहते हैं और विज्ञानिकों ने पाया कि सामान्यताः मणिपुर चक्र करोंदे के जितना होता हैं और योगियों में यह मशरूम या बेर के जितना बड़ा हो जाता है |जो लोग नियमित रूप से योग और ध्यान करते हैं, उन्होंने पाया कि उनका मणिपुर चक्र बड़ा हो गया था | वह मूंगफली या करोंदे के छोटे आकार से बेर के जितना बड़ा हो जाता हैं | जब मध्य का मस्तिष्क या मणिपुर चक्र बड़ा हो जाता हैं तो  स्वायत्त तंत्रिका तंत्र (आटोनोमस नर्वस सिस्टम) पर अधिक नियंत्रण आ जाता है | योग करने  से ऐसा होता है | इसलिये वे इसे पद्मनाभ कहते हैं | पद्मनाभ का अर्थ क्या हैं? वह योग निद्रा में विश्राम कर रहे हैं | उनकी नाभि फूल के जैसे बन गयी हैं | पद्म का अर्थ हैं कमल या फूल | जब आपकी नाभि फूल के जैसे खिल जाती हैं तो फिर क्या होता हैं ? यदि आप योगी हैं और आप पद्मनाभ हैं तो आप अत्यंत सृजनात्मक बन जाते हैं |आपके भीतर से सृजनकर्ता बहार आ जाते हैं | यह इसका भी प्रतीक हैं कि आपके नाभि से एक कमल आया और सृष्टिकर्ता उस पर आकर बैठ गये |इसका एक गहन अर्थ भी हैं | जब आप योग निद्रा या ध्यान कर रहे होते हैं और जब आप चेतना के चौथी अवस्था के गहन में चले जाते हैं, तो आपकी नाभि कमल या फूल के जैसे बन जाती हैं | पेट में सारी नकारक भावनायें  संग्रहित होती हैं | इसलिये जब आप भय में होते तब आपके पेट में कुछ होता हैं |जब आप चिंता में होते तब आपके पेट में कुछ होता हैं | आपमें से कितनों यह अनुभव किया हैं? चाहे वह भय, चिंता, नकारात्मक भावनायें, लालच या ईर्ष्या हो तब पेट में कुछ होता हैं | हानि होने का भय और दुःख होने से पेट में कुछ होता हैं | वह सिकुड़ कर छोटा हो जाता हैं वह पद्मनाभ नहीं हैं | जब नाभि खिल जाती हैं तो उदारता, प्रेम और सृजनात्मकता जैसे गुण आने लगते हैं | पद्मनाभ वह हैं जो अत्यंत  सृजनात्मक हैं | इसलिये भीतर की पूजा समर्पण हैं | सबकुछ आपका हैं, मेरा मन,शरीर,विचार,भावनायें,पूरा वातावरण आपका हैं और सब कुछ एक ही हैं |आप कह रहे हैं ‘मैं नहीं हूँ,आप भी नहीं हैं, और सिर्फ एक ही चीज़ हैं और वह पूजा हैं | आरती का अर्थ हैं, मेरे जीवन का प्रकाश दिव्यता के पास जाये  और मैं सम्पूर्ण ज्ञान को स्वीकार करता हूँ | मैं इस ज्ञान और विवेक को अपने भीतर समां लेता हूँ |

प्रश्न: प्रिय गुरूजी संकल्प शक्ति को कैसे बढ़ायें ? वासनाओं से कैसे मुक्ति पायें ?
श्री श्री रवि शंकर: मौन के माध्यम से | आप जितने अधिक वैरागी बन जाते हैं, उतनी ही अधिक संकल्प शक्ति आपको प्राप्त होती हैं |

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यह जान लीजिये कि एक ही शक्ति है जो सबका ध्यान रखती है और वह शक्ति आप से प्रेम करती है !!!

मॉन्ट्रियल, कनाडा ९ जुलाई २०११                                                                             

प्रश्न: प्रिय गुरूजी, कोई व्यक्ति सभी प्रकार के भय पर कैसे विजय प्राप्त कर सकता है और यदि वह इसमें सफल हुआ तो इस अनुभव से क्या अपेक्षा की जा सकती है ?
श्री श्री रविशंकर:ऐसा कुछ  भी नहीं  है जिसे सभी प्रकार के भय कहते है | सिर्फ एक ही भय होता है और वह लुप्त होने होने का भय है और इसे प्रकृति ने बनाया है | इसे सिर्फ समझ के द्वारा समाप्त किया जा सकता है | सबसे पहेले मैं शरीर नहीं आत्मा हूँ , और फिर मेरे साथ सिर्फ अच्छा ही होगा | इसमें तीसरा कुछ भी नहीं है |

प्रश्न:प्रिय गुरूजी आप कई बार मेरे स्वप्न में आते है और मुझे आध्यात्मिक मार्गदर्शन और समस्याओं का समाधान देते है | क्या यह सत्य है और क्या मुझे इस पर विश्वास करना चाहिये ?
श्री श्री रविशंकर: जब तक सब कुछ ठीक हो रहा है, तब तक उस पर विशवास करे अन्यथा नहीं | यदि बातें  बिगड़ रही है तो यह आपका मन ही है!(हंसी)| यदि आपको अन्तर्बोध के द्वारा कोई विचार आता है, तो वह कब सच होता है | यदि वह वास्तविकता से परेह है तो आप यह नहीं कहते कि “ मुझे अन्तर्बोध हुआ था” आप उसे कैसे कहते है ? “मुझे भ्रम हुआ था” भ्रम और अन्तर्बोध में यह अंतर होता है कि अन्तर्बोध सही होता है और भ्रम गलत होता है |

प्रश्न: खुशी या अपने कर्तव्य में से क्या महत्वपूर्ण है?
श्री श्री रविशंकर: दोनों! आपको अपना कर्तव्य को पूरा करना चाहिये और साथ में खुश भी रहना चाहिये | आप इन दोनों में चुनाव करना क्यों चाहते है? यदि इनमे से किसी का चुनाव करना पड़े तो पहले अपना कर्म या कर्तव्य को करे क्योंकि यदि आप नाखुश है तो वह अस्थायी  है | खुशी तो है और वह  आ ही जायेगी | परन्तु यदि आप खुशी और कर्तव्य के मध्य में खुशी को चुनते है तो अंत में दुख ही मिलेगा |  इसलिए शुरुवात में दुखी रहना ही अच्छा है, उसे लंबा कार्यक्रम बनाने की तुलना में |  

प्रश्न: गुरूजी, कृपया कर के कर्म के नियमों को समझाये,रोगों से मुक्त होकर मैं निस्वार्थ सेवा कैसे कर सकता हूँ ? मेरे रोग मुझे सक्रीय, खुश और प्रेममय रहने में बाधा बन जाते है | मैं बहुत जल्दी थक जाता हूँ | कृपया मार्गदर्शन करे |  आपको बहुत सारा प्यार !!!
श्री श्री रविशंकर: इसका सबसे उत्तम उपाय है कि इसके बारे में बहुत अधिक चिंता न करे | ठीक है !!  कर्म मन में होता है फिर भी आप रोगों की चिंता करते है, “ ओह यह मेरा कर्म है”
शरीर की अपनी एक सीमा होती है  | सबके शरीर की एक सीमा होती है | और यदि आपने प्रकृति के नियमों का उल्लंघन किया है तो,फिर उसे ठीक होने में थोडा समय तो लगेगा | इसलिए अपने चेतना के स्तर को ऊँचा रखे और फिर सभी बातों का ध्यान  अपने आप रखा जायेगा |

प्रश्न: गुरूजी मुझे कब और कैसे परमान्द की प्राप्ति होगी ?
श्री श्री रविशंकर: किसी भी सूरत में नहीं !!(हंसी) उसके बारे में भूल जाये | क्या आप उसके बारे में भूलने के लिए तैयार है ? तो फिर वह आपको अभी प्राप्त हो जायेगा | आपका मन “परमान्द को प्राप्त करने के लिये उत्सुक रहता है, कि उसे मुझे एक दिन प्राप्त करना है” | 

प्रश्न: मेरा दिल आगे बढ़ना चाहता है परन्तु मेरा मन मुझे ऐसा करने नहीं देता, मैं क्या करूं? 
श्री श्री रविशंकर: उनमे आपसी टकराव होता रहता है |  किसी पुराने जोड़े के जैसे उनमे रोज ही टकराव होता है | (हंसी)

प्रश्न: जब मैंने कोई बड़ी गलती करी हो और जिसका प्रभाव दूसरों पर हुआ हैं तो मुझे शान्ति कैसे मिलेगी ?
श्री श्री रविशंकर: आप सही जगह पर आ गए है |

प्रश्न: गुरूजी प्रणाम! बड़ा इनाम जीतने के आशय से क्या लॉटरी खरीदना सही है ? (हंसी) या वैसा पैसा रखना ठीक नहीं है ? कृपया मार्गदर्शन करे !!
श्री श्री रविशंकर: मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहूंगा | मैं नहीं चाहता कि आपके मन में एक और टकराव शुरू हो जाये |

प्रश्न:  गुरु पूर्णिमा के अवसर पर क्या एक बड़ा लॉटरी का इनाम पाने की इच्छा कर सकते है ?
श्री श्री रविशंकर: मन कितना अजीब तरह से काम करता है | बिना कुछ करे आपको लॉटरी पाने की चेष्टा है | बहुत अच्छा !!!

प्रश्न: जय गुरुदेव गुरूजी , कृपया मुझे माफ कर दीजिये |
श्री श्री रविशंकर: माफ किया !

प्रश्न: पतंजलि कहते है कि सिर्फ योग से मुक्ति मिल सकती है | आदिशंकराचार्य के अनुसार सिर्फ ज्ञान से मुक्ति संभव है | कृपया इसे समझाये |
श्री श्री रविशंकर: आप भक्ति योग के बारे में भूल गए जिसके अनुसार सिर्फ भक्ति से मुक्ति संभव है | इसमें सिर्फ जुड़ने की आवश्यकता है | बुद्धि विचारों से शुद्ध होती है | यदि आप बुद्धिजीवी व्यक्ति है तो परमान्द पाने में बुद्धि ही सबसे बड़ी बाधा है | मन अक्सर बीच  में आकर बार बार प्रश्न करता रहता है और भ्रम पैदा करता है |
ज्ञान से बुद्धि को शुद्ध करे !
योग से शरीर, मन और चेतना को शुद्ध करे !!!
प्रेम और भक्ति से दिल को शुद्ध करे !!!

यदि आप इनमे से कोई भी एक पथ पर चलने लगते है तो शेष दो पथ अपने आप आ जाते है | ऐसा होयेगा और ऐसा ही होता है | योग का अर्थ है एक होना और मिलन होना और यदि आप दिल के पथ से चलेंगे तो मिलन अपने आप होगा और ज्ञान का उदय भी होगा | यदि आप ज्ञान के पथ पर चलेंगे और ज्ञान पाने की लालसा ही यदि आपमें न हो तो ज्ञान कैसे आप को प्राप्त होगा ? प्रेम की लालसा हो तो ज्ञान  में प्रेम मौजूद होता है | ज्ञान पाने की लालसा तब तक नहीं हो सकती जब तक उसके लिये प्रेम न हो | जब आप ज्ञान के मार्ग पर चलते है तब प्रेम मौजूद होता हैं पर दिखाई नहीं देता |वह साथ में होते हुए खिल रहा है | जितना आप उसे समझ पाते है उतना ही उस से प्रेम करने लगते हैं | यहीं इसका रहस्य है | अंग्रेजी भाषा की कहावत ‘ फिमिलीआरिटी ब्रिंग्स कंटेम्प्ट’( पहचान से अवमान आता है) काफी सतही प्रतीत होती है | आप इससे जितना अवगत होंगे उतना ही इसके लिये आपमें प्रेम खिलेगा | योग का अर्थ कर्म योग और सक्रियता होता है | शेष दोनों इसके साथ अपने आप आकर जुड जाते है |

प्रश्न: जिससे आप प्रेम करते है, उसे आध्यात्मिक पथ पर कैसे लाये, यदि वे इसका विरोध करते है और किसी भी किस्म का प्रयास विफल हो रहे हों |
श्री श्री रविशंकर: अपने सभी प्रयासों को निरंतर करते रहे और उसे न छोड़े | प्रश्न यह है कि किसी व्यक्ति को आध्यात्मिक पथ पर कैसे लाए यदि वह इसका विरोध करता है ? मैं कहूँगा प्रयास करते रहे और यदि वे हठी है तो आप उनसे अधिक हठी बन जाये | 

प्रश्न: गुरूजी अभी भी शंका होती जबकि मैं शंका करना नहीं चाहता कि आप कौन और क्या है | मुझे क्या करना चाहिये ?
श्री श्री रविशंकर: कोई बात नहीं जितना संशय कर सकते है उतना संशय करे | मुझे आपका संशय करना खराब नहीं लगता | यह जान लीजिये कि आप सिर्फ किसी सकारक बात पर ही संशय करते है | आप किसी के प्रेम पर संशय करते है लेकिन किसी व्यक्ति के क्रोध पर संशय नहीं करते | आप अपनी योग्यता पर संशय करते लेकिन आप अपनी कमजोरी पर संशय नहीं करते | आप अपनी खुशी पर संशय करते है | इसलिए अपने संशय के प्रकृति को समझ लीजिए | 

प्रश्न: गुरूजी किसी व्यक्ति को उसके क्रोध से कैसे मुक्ति दिलायी जाये यदि वह अत्यंत ज़िद्दी हों और आध्यात्मिक मार्ग का सहारा लेना नहीं चाहता ?
श्री श्री रविशंकर: मैं आप से कहूँगा कि हर किसी व्यक्ति को स्वतंत्रता मिलनी चाहिये | आप किसी को नियंत्रित नहीं कर सकते | वह व्यक्ति यदि वैसा है तो आप उसके लिये क्या कर सकते है | किसी व्यक्ति को कुछ कहने से वह बदलने वाला नहीं है और आपको उसका नियंत्रण नहीं करना चाहिये | इस पर मेरा यहीं निष्कर्ष है ? किसी का नियंत्रण न करे | उन्हें वैसा ही रहने दीजिये जैसा वे रहना चाहते है | यदि वे आपकी बात सुनते है, तो उनका सरलता  के साथ मार्गदर्शन करे | यदि वे आप कि बात नहीं सुनते तो यह उनकी समस्या है | फिर आप क्या कर करते है |

क्या आप समझ रहे है कि मैं क्या कह रहा हूँ ? आप अपने बच्चों, पति या पत्नी और मित्रों को बिना किसी आशय के नियंत्रित करना चाहते है और उनको नियंत्रित करने में आपका आशय बिलकुल बुरा नहीं होता | परन्तु जब वे अधिक क्रोधित हों जाते है तो आप क्या कर सकते है |क्योंकि आप किसी को नियंत्रित करना चाहते है इसलिए आपको क्रोध आता है | जिस क्षण  आप किसी पर अपना नियंत्रण करना छोड़ देते है फिर आपका क्रोध  भी गायब हों जाता है | जब आपको कोई सुनता नहीं है तब ही आपको क्रोध  आता है | कोई बात आप उन्हें १० बार बताये फिर भी यदीं वे नहीं सुनते तो आप को  क्या मिलेगा ? क्रोध | फिर आपका ज्ञान उपयोग में आना चाहिये “ यह व्यक्ति  ऐसा ही है | आप क्या कर सकते है ? जय गुरुदेव” फिर तुरंत क्या होता है ? फिर कम से कम आपका दिमाक तो शांत हों  जाता है और आपको क्रोध नहीं आता | 

इसलिए मैं कहता हूँ किसी स्थिति या व्यक्ति को नियंत्रित करना बंद कर दीजिये | आप शान्ति है, नियंत्रण करने की चाहत ही समस्या है |क्या आपको समझ में आ रहा है? किसी भी परिस्थिति में चीजे अलग अलग रूप से होती रहेंगी | आप अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करे और फिर उसे छोड़ दीजिये |

इस बात को सुस्ती, नेतृत्व की कमी, पहल की कमी, या सुव्यवस्था के लिये गैर समझ नहीं करना चाहिये | क्या आप समझ रहे है कि मैं क्या कह रहा हूँ ? यह अत्यंत सूक्ष्म संतुलन है | एक ज्ञानी पुरुष बिना नियंत्रण करे नेतृत्व करने की पहल करता है | बिना किसी नियंत्रण के सरलता से नेतृत्व करने की पहल करे | फिर एक बार नहीं १० बार कहने का संतोष भी रखे | आपको पहली बार कहने के बाद यह नहीं कहना है कि “मैंने तो उसे कहा परन्तु उसने सुना नहीं” | आपको उसे १० बार कहने का संतोष होना चाहिये और यदि फिर भी वे इसे नहीं करते तो आपको उससे परेशान भी नहीं  होना चाहिये |

कोई बात को १० बार कहने का संतोष होना ही विवेक कहलाता है | आप उसे १० बार कैसे कहेंगे यदि वे आपकी बात पहली, दूसरी और तीसरी बार कहने पर भी नहीं सुनते और यदि फिर आप यह कहते है कि “ वे मुझे नहीं सुनते और मेरा कहना नहीं मानते और ये लोग ऐसे ही है” इससे आप यह दर्शाते है कि आप सुस्त हैं , आप में पहल करने की और प्रतिबद्धता की कमी है | मैं आप लोगों को वह बता रहा हूँ जो अत्यंत सूक्ष्म है | जब आप में प्रतिबद्धता होती है तो आप क्या करते हैं ? फिर उसे आप बार बार दोहराते है |

यदि आप को लकड़ी काटनी है और  यदि वह पतली है तो आप उसे एक बार में ही काट लेंगे | परन्तु यदि लकड़ी मोटी है तो उसे आप को पूरी तरह से काटने के लिये, उस पर कई बार प्रहार करना पड़ता है | आपने अपने मन में सभी लोगों के लिये यही मापदंड रखना चाहिये | “आप सोचते है कि सारी लकडियां एक बार में ही कट जाती है और यह मोटी लकड़ी भी एक बार में कट जानी चाहिये” | फिर आप क्रोधित हों जाते हैं | यह ठीक नहीं है | कुछ लकडियां पतली और कुछ मोटी होती है | प्रत्येक को काटने का अपना समय होता है | और जब वह नहीं कटती और वह लकड़ी नहीं है तो आप किसी और को बुला लेते है |

आप शांति है | यह मेरा निष्कर्ष है | आप उन्हें नियंत्रित न करे और उन्हें जो करना है, वह करने दीजिये | परन्तु उनका मार्गदर्शन करते रहिये ; यदि वे आप की बात नहीं सुन रहे है तो फिर वे अपने ही मन में कचरा एकत्रित कर रहे है | एक हाथी को स्नान करवाने के लिये ४-५ लोगों की आवश्यकता पड़ती है | कई बार वे हाथी को बैठा कर उस पर कई बाल्टी पानी डालते है | क्या आपने किसी हाथी को स्नान करते हुए देखा है ? नहीं? जब आप बैंगलुरू आश्रम आयेंगे तो आप को दो हाथी देखने को मिलेंगे | उन्हें साफ करने में दो घंटे लगते है और उन्हें स्पा स्नान करवाया जाता है | प्रतिदिन उन्हें साफ करके गुनगुने पानी से स्नान करवाया जाता है | फिर वे चमकने लगते है लेकिन १० मिनिट के लिये आप उन्हें अकेला छोड़ दीजिये फिर वे अपने पूरे शरीर में मिट्टी लगा लेते है | उनमे यह समझ नहीं होती है कि अभी मैने स्नान किया है और मैं फिर से शरीर में मिट्टी लगा रहा हूँ | जैसे ही उन्हें मिट्टी और धुल दिखाई पड़ती है, वे उसे उठाकर अपने सिर पर लगा लेते है और फिर से गंदे लगने लगते है | (हंसी) 
फिर क्या करे ?

प्रश्न: प्रिय गुरूजी सभी से मित्रतापूर्ण होने के अलावा मेरे जीवन में किस किस्म के मित्र होने चाहिये ? यदि वे जरूरत के समय मेरा साथ नहीं देते और मुझ पर विश्वास नहीं करते तो मैं क्या करूं ?
श्री श्री रविशंकर: किसी का भी विश्लेषण न करे | यह भी एक तरह से निष्कर्ष निकलना है | किसी का  भी विश्लेषण न करे | किसी का विश्लेषण करने का समय ही कहां है और अपने स्वयं का भी विश्लेषण न करे | सिर्फ विश्राम करे और  यह जान लीजिये कि एक ही शक्ति है जो सबका ध्यान रखती है और वह शक्ति आप से प्रेम करती है !!!!! यह जान लीजिये और विश्राम करे |  यही उत्तम उपाय है ? आप शान्ति है और उसी तरह आप की सहायता भी करी जायेगी | ऐसा नहीं है कि कोई आपकी सहायता करेगा परन्तु आपको अपना कृत्य करना ही होगा | इसके अलावा प्रकृति और एक शक्ति आपके साथ है जिसे कोई नहीं समझ सकता , यहां तक आप भी उसे नहीं समझ सकते | इसलिए उस शक्ति पर विश्वास रखे और विश्राम करे |

प्रश्न: प्रिय गुरूजी मैं सेवा और प्रत्येक ३ महीने के अंतराल में पार्ट २ कोर्स करना चाहता हूँ जिससे मैं कुछ पूर्व के बुरे संस्कारों से निकल सकूं| मैं अपने परिवार के सदस्यों के कारण ऐसा नहीं कर पा रहा हूँ ? गुरूजी मैं क्या करू? कृपया सहायता करे | 
श्री श्री रविशंकर: कोई बात नहीं, आप वेब कास्ट को देखे, जहां भी हों वहां ध्यान करे | यह आपके अशांति का कारण नहीं हों सकता | इतना सारा ज्ञान है और कितनी ध्यान करने की सीडी है, उसे प्रतिदिन करे | अपनी साधना का अभ्यास करे; आपसे आपका ध्यान करने का अधिकार कोई भी नहीं ले सकता | समय निकालकर ध्यान करे | और इस ज्ञान को सजगता के साथ रखे | यह भी काफी है | अवसर निश्चित आयेगा और आपको यह कहने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी कि प्रत्येक  तीन महीने में या ६ महीने में आपको पार्ट २ कोर्से करना है | जब भी संभव हों तो यहाँ पर आये और यदि ऐसा नहीं हुआ तो पूरे साल में एक बार आये,  लेकिन फिर आपको यहां थोड़ा अधिक प्रयास करना पड़ेगा |

प्रश्न : गुरूजी क्या आपने भगवान को देखा है? आपको बहुत सारा प्यार !!
श्री श्री रविशंकर: क्या आपने अपने स्वयं को देखा है ? आईने में नहीं | आपको यह मालूम होना चाहिये कि भगवान कोई देखने की वस्तु नहीं है | यदि आप भगवान को देखते है तो इसका यह अर्थ हुआ कि भगवान कही और हैं और आप कही और है | आप द्रष्टा है और वह एक सुंदर दृश्य है | भगवान कभी भी दृश्य नहीं हों सकते वे द्रष्टा, दर्शक  है | और आप वहीं है और वैसा बन सकते है | जब मन स्थिर हों जाता है तो आप वैसे बन जाते है |

प्रश्न: गुरूजी मेरी बहन किसी को चाहती है जिसे मेरे पालक पसंद नहीं करेंगे और उसकी स्वीकृति नहीं देंगे | मेरा मानना है कि वह उसका चुनाव है | यदि मैं अपनी बहन को उस व्यक्ति के साथ बाहर घूमने देता हूँ तो मैं अपने पालको से झूठ कहूँगा, जो मैं नहीं चाहता | मुझे क्या करना चाहिये ?
श्री श्री रविशंकर: शान्ति से आपसी सुलह  करवाये | यदि आप अपने पालको को नहीं बतायेंगे तो उन्हें लगेगा कि उन्हें दोहरे रूप में धोखा दिया गया है, वे सोचेंगे कि आप की बहन ने उनका सम्मान नहीं किया और उनका आप से भी विश्वास उठ जायेगा और यह ठीक नहीं होगा  | आपको अपने पालको को इसकी जानकारी देना चाहिये | और यदि आप पाते है कि वहीं सही व्यक्ति है तो फिर आप वकील भी बन जायेंगे |(हंसी)
The Art of living 

जीवन और गुरु अविभाजिनीय है !!!

गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर श्री श्री की वार्ता 
१५ जुलाई २०११, मॉन्ट्रियल, कनाडा

जीवन और गुरु अविभाजिनीय है | आपका जीवन गुरु तत्व से बना है | अपने स्वयं के जीवन पर प्रकाश डालिये | आपके जीवन के द्वारा ज्ञान चमकता है | उसका आपको सम्मान करना चाहिये, और उसे  सम्मान देना ही गुरु है | आपको जीवन ने कई बातें सिखाई है | आपने क्या गलत किया और आपने क्या सही किया, और जब आप अपने स्वयं के जीवन पर प्रकाश नहीं डालते तो फिर वहां गुरु की मौजूदगी नहीं होती है | इसलिए इसे आप अपने जीवन में प्रकट करे  और जीवन में आप को जो भी  ज्ञान प्राप्त हुआ है उसका सम्मान करे |  सम्मान देना ही गुरु है | क्या आप सब मुझे सुन रहे है? क्या यह एक गंभीर विषय है ? 


जीवन और गुरु अविभाजिनीय है | जब आप अपने स्वयं के जीवन पर प्रकाश डालते है और आपको ज्ञान प्राप्त होता है तो उसका सम्मान करे | ज्ञान ही गुरु तत्व है | इसलिए जब गुरु तत्व होता है तो वहाँ पर ज्ञान होता है | हम सब में ज्ञान और विवेक होता है, उस पर प्रकाश डालिए |जीवन में ज्ञान का उदय होता है और ज्ञान प्राप्त होता है उसका सम्मान कीजिये | जब आप ज्ञान का सम्मान करना छोड़ देते है तो फिर  अमावस्या के जैसे अँधेरा छा जाता है, जब पूर्ण चंद्रमा या चंद्रमा दिखाई नहीं देता | चंद्र ही मन है और जब वह ज्ञान से  परिपूर्ण होता है तो वहीं गुरु पूर्णिमा है | इसलिए आपका प्रत्येक दिन भी गुरु पूर्णिमा हो सकता  है जब आपको  जीवन ने जो कुछ भी दिया है आप उसका सम्मान करते है |


कई बार हम इसका विपरीत करते है और अपनी आँखे बंद करके अपनी इच्छाओं की तरफ भागते है | मुझे यह चाहिये, मुझे वह चाहिये कहते हुये आप अपनी इच्छाओ के वश में होकर ज्ञान का सम्मान नहीं करते | देने वाले ने वैसे भी बहुत कुछ दिया है | सबसे पहेले आपको ज्ञान का सम्मान करना चाहिये और फिर इस गुरु पूर्णिमा पर आपने यह प्रण लेना चाहिये कि जीवन में जो आपको उपहार मिला है आप उसका उपयोग करेंगे |  आप पर  बहुत सारा आशीर्वाद और कृपा निछावर की गई है | जो भी आशीर्वाद आपको मिले है यदि आप उसका उपयोग करेंगे तो आप को और आशीर्वाद प्राप्त होगा | देने वाला बिना थके आपको आशीर्वाद दे रहा है और इसके लिये वह सम्मान की अपेक्षा भी नहीं करता और आपको यह अहसास कराता है कि वह आपका  ही है | वह आपको यह अहसास कराता है  कि वह आपकी अपनी उपलब्धि है | देने वाले का कोई अंत नहीं है और वह देने से थकता नहीं और आपको असीमित और बहुत सारी प्रचुरता प्रदान करता है और आपको उसका  उपयोग अच्छे कार्यो में करना चाहिये |


आपको अच्छी वाणी मिली है उसका अच्छा उपयोग किजिये | अपनी वाणी का उपयोग दोष गिनाने में और शिकायत करने में या बुरी बातें कहने में नहीं कीजिये | आपको अत्यंत प्रतिभाशाली बुद्धि प्रदान की गई है, उस बुद्धि का अच्छा उपयोग करे | मुझे समझ में नहीं आता कि कई लोग अपनी बुद्धि का प्रयोग करने में इतने कंजूस क्यों होते है | शराब जितनी पुरानी होती है वह उतनी ही बेहतर और महंगी हो जाती है | मैने ऐसा सुना है उसका सेवन कभी नहीं किया | वैसे जितना आप अपनी बुद्धि का उपयोग करेंगे वह उतनी बेहतर होती जायेगी | जितना आप उसका उपयोग अच्छे काम के लिये करेंगे वह उतनी ही तीव्र और प्रतिभाशाली बनेगी | इस बात को न सोचे या इसकी चिंता करे कि आप अपनी बुद्धि का उपयोग करने से उसे खो देंगे | उसका उपयोग न करने से आप उसे खो देंगे | अपने बुद्धि का उपयोग अच्छे काम के लिये करे | यदि आपकी वाणी मधुर और मीठी  है तो उसका उपयोग अच्छे से करे | यदि आपके शारीर में शक्ति है तो सेवा करे | आपको जो कुछ भी मिला है उसका उपयोग अच्छे कार्यो में करे | जब मैं कहता हूं, “अच्छा उपयोग करना” तो उसका तात्पर्य है, उसका उपयोग स्वयं के लिये न होकर समाज और विश्व  के उपयोग के लिये होना चाहिये | दिव्यता इसी संसार में रहती है | इसलिए इस संसार की सेवा करना दिव्यता की पूजा करने के जैसा है |


ज्ञान का सम्मान करने से आपका जीवन उन्नत हो जाता है| और जब आप इन दोनों बातों को समझ जाते है तो फिर आप कृतज्ञता का अनुभव करते है और फिर आप भाव,प्रेम और भक्ति में परिपूर्ण हो जाते हैं, जो दिव्यता को अति प्रिय है |


यह जान लीजिये आप सभी के भीतर एक गुरु छुपा हुआ है जो आपमें ज्ञान का प्रकाश देता है , आप उस भीतर के गुरु की आरती करे | आरती करने का तात्पर्य क्या है ?ज्ञान के साथ परमानन्द को प्राप्त करना और जीवन ने जो आपको दिया है, उस पर प्रकाश डालना चाहिये |  क्या वस्ताविक है और क्या वास्तविक नहीं है ? क्या सही है और क्या सही नहीं है? आप उसे क्यों चुनते है जो सही नहीं है और आप उसे करने के लिए कौन प्रलोभन देता है | और सही क्या है और गलत क्या है ? इसे आप को किसे से पूंछने की जरूरत नहीं है | आपके भीतर कुछ है जो आपको यह बताता है | आपके भीतर कुछ हैं जो आपको यह बताता है कि यह सही है | आपके भीतर कुछ चुभता जो यह बताता हैं कि यह सही नहीं है | उसी का सम्मान करे | क्या आप सभी लोग सुन रहे है?

यह बहुत  ही सरल है फिर भी  अत्यंत गहन है |

यह एक और सुंदर बात होती है कि आप सच्चाई और धर्म की राह पर होते हुये उसके होने का दावा नहीं करे | यदि आपको कोई व्यक्ति उपहार दे और आपको उपहार  देने का अहसास कराये तो क्या वह उपहार रह जाता है ? देखो मैं तुम्हे उपहार दे रहा हूं| दस बार कोई व्यक्ति आपको यह कहे कि मैं तुम्हे टोफ़ी दे रहा हूं तो आप क्या कहेंगे? आप कहेंगे कि आप ही उसे रख लीजिए | मुझे नहीं चाहिये | उसी तरह जब आप सच्चाई और धर्म की राह पर होते है तो उस पर होने का दावा न करे कि, “मैं सच्चाई और धर्म की राह पर हूं”|सच्चाई और धर्म की राह पर होने का दावा करने से क्रोध, और निराशा आती है और आप किसी और रूप में गलत बन जाते है | एक रूप में आप सही हो सकते है लेकिन किसी और रूप में आप गलत हो जाते है |क्या आप मेरे साथ है? क्या इसका कुछ तात्पर्य है ? सच्चाई और धर्म की राह पर होने का दावा न करना , शुद्ध और पवित्र होने पर उस पर गर्व न करना, उदार होते हुये उसका प्रदर्शन न करना ही सही होता है | क्या आप समझ रहे है कि मैं क्या कर रहा हूं | समझदार होने का ढिंढोरा पीटना, कि देखो ‘मैं कितना समझदार और ज्ञानी हूं’ ऐसा कहने से उसका रस निकल जाता है | आपको समझदार, स्वाभाविक और सरल होना चाहिये और कभी कभी मूर्ख बनने के लिए भी तत्पर होना चाहिये | यह कितना सुंदर ज्ञान है | आपका जीवन आपको यह प्रदान करता है और फिर यह आप पर झलकता है | जीवन में इस ज्ञान का बार बार प्रदर्शन होना चाहिये |


दूर छोर पर कुछ लोगों की चाल को देखकर श्री श्री ने कहा :


ऐसे कई लोग है जो कई बार ऊपर और निचे आ जा रहे होते है और उन्हें पता ही नहीं होता है कि कहां जाना है और क्या करना है | ऐसी ही परिस्थिति में गुरु की आवश्यकता होती है | कई लोग उसी पथ पर चलते रहते है और उन्हें पता ही होता है कि द्वार कहां है और कहां प्रवेश करना है | अपने आस पास इन छोटी छोटी बातों का अवलोकन करने से आपको कई पाठ सिखने को मिलते हैं |


एक संत की कथा है; मुझे लगता है कि वे संत रामदास थे | वे एक गांव में प्रातः काल में सैर कर रहे थे, और एक महिला अपने झोपड़ी के सामने के भाग को साफ कर रही थी, और उसने कहा हे राम उठ जाओ, तुम कब तक सोते रहोगे? उसने अपने पुत्र से यह कहा जो भीतर सो रहा था और उस छोटे बालक का नाम भी राम था | जब संत ने यह सुना तो उन्होंने कहा कि कोई मुझे जागने के लिए कह रहा है | ऐसा कहा गया है कि उस क्षण वे सचमुच जाग गए और उन्हें ऊर्जा और स्फुर्ती महसूस होने लगी | उन्होंने कहा कि फिर मैं कभी नहीं सोया क्योंकि मैं अत्यंत  ऊर्जा और स्फुर्ती पूर्ण महसूस कर रहा था और पहेले मेरा मन पूरे समय अतीत और भविष्य में भटकता रहता था | 

उन्हें ऐसा करने को किसी ने नहीं कहा,और मन आपको ऐसी सैर पर लेकर जाता हैं | हमारा मन अपना स्वयं की माया निर्मित करता है और अपने स्वयं के विश्व और बबूले का संचालन करता है और आप अपने बबूले के आस पास ही घुमते रहते है|आप पूरी दुनिया को अपने ही चश्मे से और अपने दृष्टिकोण से देखना ही चाहते   है | इसे विपरार्य कहते हैं |

विपरार्य का अर्थ होता हैं रंगीन दृष्टि और न किकी वास्तिविक दृष्टि | इसलिए गुरु तत्व या जीवन में ज्ञान का प्रकाश आपको जगाता हैं और यह समझ देता है कि यह ऐसा है |

आप लोगों ने कितने बार यह महसूस किया है कि आपकी राय या मत गलत थे ?
 अधिकांश समय आपकी राय या मत गलत होते है पर आप सब उसी राय के साथ जी रहे थे और समझ रहे थे सब कुछ ऐसा ही है |यह वहीँ बबूल हैं जिसमे आप रहते है | इसी   बबूल से गुरु तत्व आता है ,जो आपके जीवन में प्रकाश देता है और उस ज्ञान पर प्रकाश देता है जो इस जीवन ने आपको दिया है | फिर आप देखेंगे कि आपकी राय या मत अधिक से अधिक सही होने लगेंगे | आपके ९०% राय या मत गलत होते है और सिर्फ १०% सही होते है | वास्तव में इसका विपरीत होना चाहिये | ९०% सही होना चाहिये और १०% गलत होना चाहिये | २ से ३ या १० % गलत हुआ तो कोई बात नहीं |
१.आपका स्वयं का जीवन ही आपका गुरु होता हैं |
२. जीवन और गुरु अविभाजिनीय है| यह कोई नर्सरी शिक्षक के जैसे नहीं है,कि आप उनसे कुछ सीखा और फिर आप चले गए परन्तु जीवन और गुरु अविभाजिनीय है |
३. जीवन का ज्ञान ही आपका गुरु है | अपने जीवन पर प्रकाश डालने से ज्ञान का उदय होता है |
४.देने वाले ने आपको प्रचुरता के साथ दिया है और वह आपको देता ही रहता हैं और आप उसका अच्छा उपयोग कीजिये | आप अपने कौशल और योग्यता  का जितना अच्छा उपयोग करेंगे उतना ही आपको और  अधिक प्राप्त होगा |
५. ज्ञान का सम्मान करे | ज्ञान का सम्मान इसलिए करना चाहिये क्योंकि गुरु और ज्ञान अविभाजिनीय है और जीवन और ज्ञान को भी अविभाजिनीय होना चाहिये | कई बार आप अपना जीवन ज्ञान बिना जीते है | फिर गुरु तत्व मौजूद नहीं रहता | और आप गुरु का सम्मान नहीं करते | समझ में आया क्या ?
वह सतगुरू है |
६. जब आप सच्चाई और धर्म की राह पर रहे और  उस पर होने का दावा न करे | सच्चाई और धर्म की राह पर होने का दावा करने से क्रोध, और निराशा आती है और आप किसी और रूप में गलत बन जाते है | यह अच्छाई के साथ भी है | जब आप सोचते है कि ‘ मैं अच्छा हूं फिर आपको लगता हैं कि दुसरे लोग बुरे है, और आप दूसरों को बुरा बना देते हैं | जब आप सोचते हैं कि मैं बहुत अच्छा हूं , तो इससे आप में उदासी आती है | जो लोग सोचते कि वे बहुत अच्छे है वे उन लोगों की तुलना में दुखी होते है जो यह सोचते है कि वे बुरे हैं |जो लोग सोचते है कि वे बुरे है, वे परवाह नहीं करते लेकिन यदि कोई सोचता है कि वह बहुत अच्छा है तो वह यह सोचने लगता है कि उसे क्या हो रहा है | इसलिए यदि आप सोचते है कि ‘मैं  अच्छा हूं’ और उसका दावा करने से आप दुखी और निराश हो जाते है | अपनी अच्छाई का दावा करने से आप क्रोधित हो जाते है | आप कितने भी अच्छे हो परन्तु उसका दावा न करे | दूसरों को उसके बारे में बोलने दीजिए, और उसका ढिंढोरा न पीटे | उदार रहे और उदारता का दिखावा न करे | 

आप सब को यह सब करना है  और इन सभी बातों को बार बार इकट्ठा हुए इसे अपने बुद्धि में समाना हैं | यहीं सत्संग होता है | सत्संग सत्य, विवेक और आपके भीतर के ज्ञान की संगति होती है |  आपका परिचय  अपने भीतर के सत्य के होता है और यहीं सत्संग होता है |


देने वाला देने से थकता नहीं है और वह आपको यह अहसास करता है कि यह आपका है | उसकी उदारता इतनी अधिक है कि वह देकर आपको उस पर गर्व महसूस करवाता है | यह देखो’ यह मेरा है, वास्तव में आपका कुछ भी नहीं है | देने वाला आपको इस तरह से देता है कि आपको यह अहसास ही नहीं होता कि आपने कुछ लिया है | देने वाला आपको इस तरह से देता है कि आपको लगता है कि वह चीज़ आपकी ही है और आपने कुछ भी नहीं लिया | उसकी यहीं महानता और सुंदरता है |


उस महिला का अपने पुत्र के लिए चिल्लाना ही था जिसे एक संत जाग गए और उनका ज्ञानोदय हो गया | एक महिला ने कहा; राम तुम कब तब निद्रा लोगे ?- जाग जाओ, और इसी वाक्य ने शुरुवात करी | प्रकृति आपको काफी  सारे संकेत देती है कि प्रिय अब तो जाग जाओ, और कितने देर निद्रा में रहोगे और कब तक अपने मन से कहते  रहोगे कि “ क्यों, क्यों | एक रोता हुआ ढलता हुआ और शिकायत करने वाले मन को जागना होगा, जीवन बहुत छोटा है | जीवन की इस छोटी सी अवधि में जीवन का सम्मान करे | जीवन बहुमूल्य हैं | आपके कौशल, योग्यताओं और साधन जो कुछ भी आपको मिला है उसका अच्छा उपयोग करे | आपके पास जो कुछ है जैसे वाणी, बुद्धि इत्यादि उनका अच्छा उपयोग करे | बुद्धि का अच्छा उपयोग करे | गान करे चाहे उसकी कोई प्रशंसा करे या न करे |


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अस्थायी सुखों के लिए वैरागी बने और परिवर्तन के लिए उत्साहित रहें !!!

६ जुलाई २०११, बर्लिन जर्मनी 

प्रश्न : वर्ल्ड कल्चर फेस्टिवल ( विश्व सांस्कृतिक उस्तव) के दौरान आप को किस बात में सबसे अधिक  आनंद मिला ?
श्री श्री रविशंकर : प्रत्येक क्षण में |

प्रश्न :  यदि हमको सारे  प्रयासों को छोड़ ही देना है तो हम प्रयास ही क्यों करें ? 
श्री श्री रविशंकर : ध्यान के दौरान सारे प्रयासों को छोड़ दीजिए परन्तु ध्यान के पूर्व आप को को प्रयास करने ही होंगे अन्यथा कुछ भी छोड़ने का प्रश्न ही नहीं होगा |

प्रश्न : मौन और एकांत  में रहने के दौरान  मेरा मनोभाव निराशाजनक हो जाता है और मैं स्वयं के प्रति खेद महसूस करता हूँ क्या यह सही है ?
श्री श्री रविशंकर : नहीं! अपने लिए खेद महसूस न करें |

प्रश्न : प्रत्येक समय जब मेरा आप से विलाप होता है तो मुझे दुःख होता है क्या आप एसे किसी ध्यान का सृजन करेंगे जिसमें यह कहा गया हो “ फिर से शीघ्र मिलेंगे” ?
श्री श्री रविशंकर : यह एक अच्छा विचार है | कुछ बातें अच्छी  होती है जैसे अच्छे  विचार |

प्रश्न : वैराग्य  और परमानंद का अनुभव करने के बाद भी मन सांसारिक बातों पर क्यों चला जाता है ?
श्री श्री रविशंकर : यह मन का स्वभाव है फिर भी कोई बात नहीं | मन तीन गुणों से बना होता है जैसे  सत्व(शुद्धि / स्पष्टता), रजस ( कृत्य / कार्यवाही ) और तमस  (अक्रियता ) | इन तीन गुणों के अनुरूप विभिन्न समय पर मन की अवस्था भिन्न होती है , इससे परेशान न होयें| सब कुछ आता जाता रहता है |

प्रश्न : मैं असफलता को सफलता में कैसे  परिवर्तित कर सकता हूँ ? 
श्री श्री रविशंकर : सिर्फ आगे बढते रहें और पीछे मुड कर न देखें | असफलता सिर्फ अतीत में हो सकती है , भविष्य  में  नहीं | यह सिर्फ घटनाक्रम को समझने जैसा है | यदि इसे आप बड़े द्रष्टिकोण से देखेंगे तो आप इसे बेहतर समझ सकेंगे |

प्रश्न : आज हमने मेडिटेशन इन मोशन ( ध्यान में कृत्य ) को किया . वह अत्यंत पीड़ादायक था | क्या आपने कभी इसे किया है ? 
श्री श्री रविशंकर : हाँ ! यह परमानंद का अनुभव करने जैसा है | पीड़ा के उपरांत ही परमानंद प्राप्त होता है |

प्रश्न :- क्या आप महिलाओं की भूमिका के बारे में कुछ कह सकते हैं ?आज कल  महिलाओं को भोग करने वाली वस्तु के जैसे देखा जाता है , क्या हम इसे परिवर्तित कर सकते है ?
श्री श्री रविशंकर : उन पर दया करें जो महिलाओं को भोग  की वस्तु के जैसे देखते है और उनकी प्रशंसा करें जो महिलाओं को इस द्रष्टि से देखते है जो समाज में परिवर्तन ला सकती है |

प्रश्न : हिंदू धर्म में शरीर  का दाह संस्कार अग्नि के द्वारा क्यों किया जाता है ?
श्री श्री रविशंकर : सारे विश्व की काफी अधिक जनसंख्या है | इसमें अत्यंत कम जगह की आवश्यकता पड़ती है और आज कल भूमि का मूल्य अत्यधिक बढ़ गया है| शरीर  प्रकृति के पास चला जाता है | सिर्फ आस्तियां रह जाती  जिसे पूज्य नदियों को अर्पित कर दिया जाता है  | जब  शरीर  का दाह संस्कार अग्नि से कर दिया जाता है तो ७०० ग्राम से लेकर १ किलो की  अस्थियां और भस्म ही रह जाती हैं| और आत्मा की मुक्ति हो जाती है |

प्रश्न :- मैं एक युवा हूँ और कभी कभी मैं अपने मित्रों के साथ शराब पीने के लिए बहार जाता हूँ इसमें मुझे कोई दोष नहीं दिखता , क्या यह सही है ?
श्री श्री रविशंकर : कभी कभी आप सामाजिक तौर पर शराब का सेवन करते है| फिर जब कभी भी आप दुखी होते है तो यह सामाजिक शराब का सेवन आप पर भारी पड़ने लगता है और आप इसका और अधिक सेवन करने लगते है | इसके कारण आप शराबी भी बन सकते है |इसे हमेशा नहीं कहें और इससे दूर रहें | इस बात के लिए दृढ़ रहें कि आप इसका सेवन नहीं करेंगे फिर आप सुरक्षित रहेंगे | यहाँ पर आने के बाद आप कभी भी शराबी नहीं बन सकते| मैंने ऐसे कई लोगों को देखा है जो इसी तर्क के कारण शराबी बन गए| उन्होंने कभी कभी इसका सेवन करते हुए इसकी शुरुवात की और फिर वे शराबी  बन गए | शराब आप के तंत्रिका तंत्र को अत्यंत हानि  पहुंचाता  है जो आपकी शुद्ध चेतना और वास्तविक सच्चाई में झलकता है | शराब से सुस्ती आती है | यह ब्रेक  लगाकर वाहन की सवारी करने के जैसा है |
यदि आप को जीवन में प्रगति करना है तो आप को कुछ प्रतिबंध अवश्य लगाने होगें जैसे तम्बाखू और धूम्रपान ३०-४० वर्ष पूर्व संस्कृति का हिस्सा माने  जाते थे परन्तु आज ऐसी स्तिथि नहीं है | हम कई वर्षों से इस बात को कह रहे है और इसमें कई जीवन समाप्त हो गये | और कई जीवन  बचाये जा सकते थे |
धूम्रपान, ड्रग और तम्बाखू का सेवन नहीं करे - यह तीन प्रतिबंध लगाने होंगे |

प्रश्न : उसी द्वार पर बार बार दस्तक देना और उसे कब छोड देना यह कैसे मालूम होगा ?
श्री श्री रविशंकर : हाँ – आप को दोनों को करना होगा पहले दस्तक दीजिये और फिर छोड दीजिये और फिर छोडते हुए फिर से दस्तक दीजिये  |

प्रश्न : सकारात्मकता और नकारात्मकता दोनों को भगवान को कैसे अर्पित करूँ ?
श्री श्री रविशंकर : आप उस विचार को सिर्फ  छोड़ते चलें यदि इसमें आप को इसमें कठनाई हो रही हो तो और सिर्फ वर्तमान क्षण में रहें | अतीत बीत चुका है और भविष्य को अभी आना है |

प्रश्न : क्या ध्यान करना संभव होगा  जब आप का पडोसी खर्राटे ले रहा हो? (हंसी)
श्री श्री रविशंकर : इसके कई विकल्प है | उनको हिलाये और यदि फिर भी वे इसे जारी रखते है तो उसे स्वीकार करें | यदि इससे आपको और अधिक परेशानी हो रही हो तो कहीं और बैठ कर ध्यान करें |

प्रश्न : यह मेरा पहला एडवांस कोर्स है और अब तक यह मेरी अपेक्षा से कहीं अधिक सुखदायक  था | मुझे चिंता है कि मैं हर  समय ध्यान करना चाहता हूँ, मुझे क्या करना चाहिए ? 
श्री श्री रविशंकर : घर जाते समय  आप को इसकी जानकारी प्रदान की जायेगी |
जीवन का आनंद लीजिए |जीवन को सहजता और गंभीरता से से व्यतीत करें | यदि आप जीवन को अत्यंत गंभीरता से लेगें तो वह उबाऊ बन जायेगा| यदि आप जीवन को पूरी तरह से विनोदपूर्ण लेगें तो वह तुच्छ और सामान्य बन जायेगा | जीवन मौन और उत्सव का मिलन होना चाहिए| वैरागी रहते हुए पूरी तरह से केंद्रित रहें और परिवर्तन लाने के लिए उत्साहित रहें | अस्थायी सुखों  के लिए वैरागी बने और परिवर्तन के लिए उत्साहित रहें- इन दोनों बातों से आप अत्यंत गहन व्यतितत्व  के व्यक्ति बन सकते है | यदि आप इस पथ  पर चल रहें है तो आपको किसी भी बात की कमी नहीं होगी क्योंकि सब कुछ समय पर होता जायेगा |The Art of living

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आगे बढते रहे और अपनी चेतना के स्तर को ऊंचा रखे !!!

बर्लिन, ४ जुलाई २०११ 

बर्लिन में वर्ल्ड कल्चर फेस्टिवल (विश्व सांस्कृतिक उत्सव) कार्यक्रम के उपरांत स्वयंसेवियों ने श्री श्री के साथ अपनी चुनौतियों के अनुभव को बाँटा |

श्री श्री रविशंकर: चुनौतियां इसलिए आती है कि आप उसका सामना करते हुये उस पर विजय प्राप्त कर सके और यह समझ सके कि उसका सामना करने की उर्जा आप में है | आप के चेतना का स्तर हर समय ऊंचा होना चाहिये | किसी भी चुनौती के सामने आगे बढते रहे और अपनी चेतना के स्तर को ऊंचा रखे | इसमें यही सन्देश है कि आप घटना से प्रभावित नहीं होते है और चुनौतियों से आप को शिक्षा मिलती है | चुनौतियां अस्थायी होती है और आपको मुस्कुराते हुये उसका सामना करना चाहिये |

प्रश्न: मेरा बॉस बहुत ज़िद्दी हैं और मेरी उससे बहुत लड़ाई होती है | उससे कैसे निपटा जाये ?
श्री श्री रविशंकर:यह बहुत आसान है| आपको जो कुछ भी कहना है उसे अलग तरीके से कहे | मैं आप लोगों को एक छोटीसी  कहानी सुनाता हूं | एक आदमी की पत्नी बहुत ज़िद्दी थी | उसका पति जो कुछ भी कहता था वह उसका विपरीत करती थी | पति बहुत परेशान था और वह एक स्वामीजी  के पास सलाह  मांगने के लिए गया |स्वामीजी  ने उस व्यक्ति के कान में कुछ कहा | तीन महीने उपरांत स्वामीजी उस व्यक्ति के नगर में आये और उन्होंने उस व्यक्ति को बहुत खुश देखा | पति ने स्वामीजी को धन्यवाद दिया और कहा “आपकी तरकीब रंग लायी” स्वामीजी ने उस व्यक्ति को यह सलाह दी थी कि उसे जो कुछ भी चाहिये वह उसका विपरीत  कहे | जैसे यदि उसे तले हुये आलू चाहिये तो उसे अपनी पत्नी को कहना था कि उसे तले हुये आलू नहीं चाहिये | यह सिर्फ मन को समझ कर उसे संभालने की बात है | जब संपर्क टूट जाये तो आपको बात ही नहीं करनी चाहिये | मजबूत लोग अपनी योग्यताओं को स्वयं ही निखार लेते है |

प्रश्न: उदासी (अवसाद) मिटाने की दवाईयों पर आपकी राय क्या है?
श्री श्री रविशंकर: ज्ञान में रहे | ज्ञान को सुने और अपने आध्यात्मिक अभ्यास को प्रतिदिन करे | फिर आपको कभी भी उदासी नहीं होगी | चिकित्सकों की सलाह को माने और धीरे धीरे वह ठीक हो जायेगा| किसी समूह से जुडकर सेवा करे |जब आपके पास करने को कुछ नहीं होता है, तो आप अपने बारे सोच कर उदास हो जाते है |

प्रश्न: हमें आपकी या भगवान की प्रार्थना करनी चाहिये ? क्या आप भगवान के पास हमारी प्रार्थना पहुंचा देंगे या वे आपके पास सीधे ही पहुंच जाती है ? 
श्री श्री रविशंकर: प्रार्थना बहुत ही सहजता से  होती है| यह ऐसा नहीं है जिसे आप मन में सोच कर करते है या यह मन में अपने आप होती है| यह अपने आप तब होती है, जब आपको सहायता की आवश्यकता होती है| प्रार्थना करने के लिये कोई प्रयास न करे |सिर्फ विश्राम करे | सिर्फ एक ही भगवान होता है जो सब में कृत्य करता है | आप अपनी प्रार्थना किसी को भी करे वह सिर्फ एक ही भगवान के पास पहुंचती है जिसने  इस ब्रह्माण्ड की रचना करी है | किसी भी बात की चिंता न करे | आप अपनी सारी समस्यायें मुझे दे दीजिये और खुशी से घर जाये |

प्रश्न: क्या आप सारी प्रार्थनाओं का उत्तर देते हैं?
श्री श्री रविशंकर: कोई भी इच्छा करने से पहेले सावधान रहे | आपको उस इच्छा के अंत में यह जोड़ देना चाहिये “ या जो कुछ भी मेरे लिये अच्छा है”|

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बर्लिन से गुरुजी के उद्भोषण के कुछ अंश


२, जुलाई, २०११ बर्लिन, जर्मनी

एक दिव्यता,एक मानवता, और हमारे बीच के मतभेद/ भिन्नता/सभ्यता  को भूल कर जीवन का उत्सव मनाना ही हमारा परम पवित्र उद्देश्य है  !!!

द आर्ट ऑफ लिविंग के ३० वर्ष पूर्ण होने के उस्तव  पर  परम पूज्य श्री श्री रविशंकरजी के वर्ल्ड कल्चर फेस्टिवल, बर्लिन, पर दिनाक २ जुलाई २०११, (विश्व संस्कृति उस्तव ,बर्लिन), के उद्भोषण के कुछ अंश | 

मुझे इस शहर में आने में खुशी है, जहां पर लोगों की बीच की दीवार अब नहीं है, अब समय आ गया है, जब संस्कृति और सभ्यता की दीवार भी टूट जानी चाहिये | हम सब को याद रखना चाहिए कि हम सब एक ही परिवार हैं, और हमें अब प्रेम, सेवा और करुणा का  मनोभाव भी सभी में लाना हैं |

जब हमने शुरुवात की, तब जैसे इंद्रधनुष में रंग होते हैं वैसी हमारी कल्पना थी कि,  परन्तु अब वर्षा आ गयी  है | आपस में बुरे वक्त में साथ देने का तात्पर्य हुआ कि हमने साथ मिलकर किसी लक्ष्य को प्राप्त कर  किया हैं | कैसी भी परस्थिति होने पर  और हम में कोई भी मतभेद/ भिन्नता/सभ्यता  होने पर भी हम सब मिलकर विश्व की एक मानव परिवार के रूप में सेवा करेंगे |

अब समय आ गया है कि हम आपसी मतभेद/ भिन्नता/सभ्यता  को भूलकर  अपने  जीवन का उत्सव इस गृह में मनाये | मुझे  पूर्ण विश्वाश है कि सभी स्वयंसेवियों की मदद से हम तनाव मुक्त और हिंसा मुक्त समाज का निर्माण कर सकेंगे |एक दिव्यता,एक मानवता,भीतर की दिव्यता के साथ जुड़ना, गरीबी को दूर करना, और हमारे बीच मतभेद/ भिन्नता/सभ्यता  को भूलकर  जीवन का  उत्सव मनाना हमारा परम पवित्र उद्देश्य है |

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