सेवा हमारा स्वरूप है, और वह एक फूल की पँखुड़ी की भांति लगनी चाहिये - कोमल, सहज प्राकृतिक!

प्रश्न : हमारे मन व शरीर पर रात और दिन के समय का क्या असर पड़ता है?
श्री श्री रवि शंकर : तुम्हारे पास मन है और वह मन समय के साथ बदलता रहता है। इस बात का कभी परीक्षण क्यों नहीं करते!  तुम्हारा मनोभाव सुबह, दोपहर, शाम और रात में-समय परिवर्तन के साथ बदलता रहता है। प्रातः काल में सजगता और जागरुकता रहती है। प्रेम भरे गीत शायद ही कोई भोर सुबह या दोपहर में सुनना पसन्द करता हो। शायद कोई प्रेमी जोड़ों के यां उनके जो नव दम्पत्ति है सिर्फ़ वो ही सुनते हों!
सुबह - ज्ञान
दोपहर - गतिशील कार्य
और
संध्या विश्राम।
जो दुखी रहना चाहता है वह सब समय दुखी रह सकता है और जो खुश रहना चाहता है वह पूरे दिन खुश रह सकता है। नासमझ व्यक्ति हर पल दुखी रहता है और समझदार व्यक्ति भावों के उथल पुथल के बीच भी खुश रह सकता है।
इसी प्रकार मौसम के बदलाव का भी मन पर असर पड़ता है।
अवश्य ही मन व समय का एक अनूठा प्रगाढ़ सम्बन्ध है। पर यदि तुम मन से ऊपर उठ जाओ तो वहाँ अनन्त आनन्द, अखन्ड शांति और शीतलता का अनुभव प्राप्त होता है।

प्रश्न : हम अपनी जड़ों को मजबूत करने पर क्यों जोर दें यदि हमें अगले जन्म में एक भिन्न धर्म या परम्परा मिलनी है तो?
श्री श्री रवि शंकर : यह इस वक्त के लिये है! अपनी जड़ों को मज़बूत करना यानि पूर्ण रूप से योग्य बनना - यही मतलब है । जड़ों को मजबूत करना, यह किसी धर्म या परम्परा को मजबूत करना नहीं, अपितु कुशल और स्थिर व्यक्ति बनना है।

प्रश्न : मेरे से यही भूल होती है कि मैं भूल पर भूल करता जाता हूँ। क्या करूँ?
श्री श्री रवि शंकर : भूल भी जीवन का ही एक भाग है। कभी कभी भूल हो जाती है तो ठीक है। भूल को स्वीकार करो और आगे बड़ो। बार बार उस गलती को दोहराने पर जो पीड़ा होगी, वो तुम्हे उस गलती से उभारती है। जिस गलती से तुम्हें यातना और पीड़ा की चुभन मिलती है, वही तुम्हें उस गलती से बाहर निकलने को प्रेरित करती है। पर अपनी गलतियों को कभी सही बताने का प्रयत्न मत कर।

प्रश्न : आपके जैसे सरल रहना कैसे सीखा जाये? जीवन इतना जटिल है।
श्री श्री रवि शंकर : जीवन में जटिलता मत खोजो। अपनी दृष्टि सिर्फ़ एक दिशा में रखो। संस्कृत में एक कहावत है, "अन्तर्मुखी सदा सुखी"। यदि मनुष्य के मन की दृष्टि भीतर की ओर रहे तो वह सदा सुखी रहे। जटिल क्या है?- लोगों का मन! लोग अपने मन से परेशान रहते हैं, पर तुम क्यों उनकी परेशानी मोल लेना चाहते हो?
यदि कोई बीमार है तो सब डाक्टर तो उसके साथ बीमार होने में शामिल नहीं होते ना। तुम भी अपने आप को डाक्टर ही जानो और अपना ध्यान वहीं पर रखो। लोगों में परेशानियाँ हैं पर वे कम होंगी,  धैर्य व करुणा रखो।

प्रश्न : पूर्णिमा के समय मन इतना विचलित क्यों होता है? और उत्तर अमरीका में अपराध बहुत बढ़ गया है। इसके लिए क्या करें।
श्री श्री रवि शंकर : सब ग्रहों के प्रभाव से बचने का एक इलाज है - " ॐ नमः शिवाय"। इस मन्त्र के स्वर से पैदा हुई तरंगे हमारे चारों ओर एक कवच बना देती हैं जिससे हमारे शरीर को सुरक्षा के साथ शक्ति भी मिलती है।

प्रश्न : जब भी किसी सुंदर लड़की को देखता हूँ तो प्रेम में पड़ जाता हूँ। यह प्रेम है या मात्र आकर्षण ?
श्री श्री रवि शंकर : यह तो वक्त ही बतायेगा तुम्हें! पहले यह तो मालूम करो कि दूसरी तरफ़ भी प्यार है या नहीं? यदि वह बराबर हो तो एक बात है। और यदि बात दोनों ओर की नहीं तो एक अलग ही बात है। जो भी बात हो, तुम परिपक्व जरूर हो जाओगे । प्रेम में नीचे मत गिरो, प्रेम में ऊपर उठो। प्रेम में कुछ पाने की इच्छा नहीं रखते दूसरे से। यदि कुछ पाने की इच्छा रहे तो वह प्रेम नहीं केवल जरूरत है। किसी भी सम्बंध में कुछ पाने की इच्छा रहती है पर सच्चे प्रेम में नहीं। प्रेम तुम्हारा स्वरुप है। अगर यह अभी ज्यादा दार्शनिक लगे तो इस बात को मन में कहीं पीछे रख कर विश्राम करो। एक दिन, दिल टूटने पर यां जब तुम समझ जाओगे कि तुमने बहुत अधिक इच्छाएँ रखी थी तुम्हें समझ आ जायेगा, और तब मन के पर्दे के पीछे से कोई विचार निकल कर तुम्हें बचायेगा।

प्रश्न : आध्यात्म में रुचि रखने पर भी दुर्घटनायें क्यों घटती हैं जीवन में ?
श्री श्री रवि शंकर : घटना दुर्घटना हो जाती है जब तुम उससे प्रभावित होते हो। वही घटना किसी अन्य को तुलना में निम्न व तुच्छ लग सकती है । पर कुछ घटनाओं के लिये साधारण कारण नहीं मिलते हैं। लोगों की मृत्यु क्यों होती है? कई बातों का कोई कारण नहीं होता। ऐसे क्षणों में हम कहते हैं " मेरे साथ ही ऐसा क्यों?" किन्तु यह जान लो, "क्यों" दुख से जुड़ा है और "कैसे" आश्चर्य से जुड़ा है। जब कभी यह प्रश्न तुम्हारे या किसी अन्य के मन में उठे कि मेरे साथ ही यह परेशानी क्यों?, तो कुछ जवाब देने से कुछ नहीं होता। कोई भी उत्तर, समाधान या सन्तुष्टि नहीं देगा। सभी प्रश्नों को उस समय पर तुम्हें छोड़ना होगा और समय तुम्हें आगे ले जायेगा । समय तुम्हें उन घटनाओं से पार लगायेगा। हमारी आदत होती है उत्तर देने की या सान्त्वना देने की । पर एक मुस्कान या फिर कुछ क्षण का मौन ही बेहतर हल है। कोई भी तरीके, समाधान, विचार लाभदायक सिद्ध नहीं होंगे। ऐसा मेरा मत है।

प्रश्न : यीशू (जीसस) का जन्म स्थान बेथेलेहम है, पर आज उनके जन्म स्थान में ही इतनी हिंसात्मक घटनायें क्यों हो रही हैं?
श्री श्री रवि शंकर : यह बड़ी अनोखी बात है! इस जगह जीसस के होने से पहले भी अशांति थी और उनके जाने के बाद भी। यह आश्चर्य करने की बात है कि इस जगह ने लगातार रक्तपात और हिंसात्मक घटनाएँ देखी हैं। क्यों? इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं है। कम से कम मुझे तो इसका कोई उत्तर नहीं मालूम। पर यदि आप इतिहास देखें तो मोसेज़ के समय से पहले और पश्चात भी पूरे पूर्वी मध्य स्थान में और मिस्र (ईजिप्ट) ने लगातार बहुत कष्ट सहा है। ऐसे स्थानों में ज्ञान की सबसे अधिक आवश्यकता है।

प्रश्न : प्राचीन समय से नाक में छिद्र व कर्ण छिद्र की प्रथा रही है पर आजकल तो लोग यहाँ वहाँ, शरीर के किसी भी स्थान पर छिद्र करते हैं । क्या यह उचित है?
श्री श्री रवि शंकर : कान छिद्र करने के पीछे वैज्ञानिक कारण दिखता है: मस्तिष्क में जो नाड़ियाँ सजगता प्रदान करती हैं वे सब कान के नीचे भाग में एकत्रित होती हैं। इसलिये प्राचीन समय के लोग कर्ण छिद्र अधिक सजगता जगाने हेतु करते थे। अरे भई, मुझे शरीर के अन्य जगह पर छिद्र कराने की प्रथा के बारे में नहीं पता।

प्रश्न: सुखी दाम्पत्य जीवन का खास नियम क्या है?
श्री श्री रवि शंकर : मैं इस विषय पर बोलने का अधिकारी तो नहीं हूँ पर मेरा विचार यह होगा कि तुम उन लोगों का परामर्श क्यों नहीं लेते जो खुशहाल दम्पत्ति हैं?
किसी ने कहा है दम्पत्ति के लिये!
शादी से पहले -  एक दूसरे के लिए पागल।
और कुछ समय बाद - एक दूसरे की वजह से पागल!

मेरे विचारानुसार विवाह धैर्य, त्याग, एक दूसरे के प्रति ध्यान, सहानुभूति रखने की एक विधि व सम्बंध है। यदि एक दुखी हो तो दूसरे को उसी समय दुखी नहीं होना चाहिए। उसे अपनी बारी के लिए प्रतीक्षा करनी चाहिये! दोनों एक ही समय पर दुखी होंगे तो मुश्किल होगी! हाँ, बच्चों के सामने अवश्य ही सही व्यव्हार होना चाहिये।

प्रश्न : चक्र ध्यान क्या है? उसके बारे में बतायें।
श्री श्री रवि शंकर: चक्र ध्यान यानि प्रत्येक उर्जा चक्र पर भोलेपन से सहजता पूर्वक थोड़े समय के लिए ध्यान ले जाना। ज़्यादा कोशिश करने की जरूरत नहीं, उससे ध्यान नहीं लगता। बस थोड़ा सा ध्यान। जैसे, जब तुम केला या नारंगी शब्द सुनते हो तब क्या केला या नारंगी के रूप की कल्पना करते हो? नहीं, बस तुम को भान हो जाता है।
आजकल कल्पना करने की भी कई विधियाँ निकाली गयी हैं। पर इसमें प्रत्न करना होता है और जब प्रयत्न होता है तो मन और भी अधिक कार्यशील होता है, तब फिर ध्यान कहाँ लग सकता है?
इसलिये, मन को शांत करो, ध्यान हलके से चक्र पर केन्द्रित करो और फिर ध्यान वहाँ से भी हटाकर विश्राम करो।

प्रश्न : मनुष्यों में दोष व अपूर्णता होती ही है तो मानव में दिव्यता कैसे देखें?
श्री श्री रवि शंकर : कौन कहता है कि मनुष्य अपूर्ण हैं? हर मनुष्य के भीतर दिव्यता मौजूद है। उस दिव्यता को जाग्रित करो । एक गुण से दूसरे गुण की ओर बढ़ो, न कि एक दोष से दूसरे दोष की ओर ।
नकारात्मक दृष्टि से तुम सब वस्तुओं में दोष देख सकते हो जैसे दूध का फट कर दही होना और दही का नष्ट होकर मक्खन होना-ऐसा समझना केवल दोष देखना होगा और दूसरे दृष्टिकोण से तुम एक पूर्णता का अन्य पूर्णता में परिवर्तित होना देख सकते हो ।

प्रश्न : क्या हम आप के जैसे बन सकते हैं?
श्री श्री रवि शंकर : तुम मेरा एक अभिन्न अंग हो और मैं तुम्हारा। बस अधिक खाली हो जाओ।

प्रश्न : क्या ज्ञान मार्ग के अलावा अन्य कोई मार्ग भी है?
श्री श्री रवि शंकर : ध्यान, भक्ति, ज्ञान और कर्म - ये चारों मार्ग एक ही रथ के चार पहिये समान हैं। तुम किसी भी एक को अपनाओ, बाकी तीन भी पीछे आ जायेंगे।

प्रश्न : अगर भगवान सब में है तो प्राकृतिक प्रकोप क्यों ?
श्री श्री रवि शंकर : मानलो फ़िल्मों में केवल हीरो ही हो और कोई विलन ना होता! जब कई रोचक घटनाएँ शामिल होती हैं तभी फ़िल्म मज़ेदार होती है। फ़िल्म में केवल हीरो हीरोइन ही होते, शादी करते और बस फ़िर एक साथ रहते, ऐसी फ़िल्म होती तो क्या पसंद करते? यह जीवन भी तो एक ड्रामा है, एक खेल है, जिसमें सभी तरह की बातें होती रहती हैं। यह जगत परिवर्तन शील है, हर तरह की घटनाएँ होती रहती हैं, यह जान कर विश्राम करो। केवल पड़े रहना विश्राम नहीं है, अपने मन को विश्राम दो।
सेवा में कार्यरत रहो, जहाँ कहीं भी सेवा की जरूरत हो उसमें लग जाओ। सेवा हमारा स्वरूप है और हम सेवा के बिना नहीं रह सकते। सेवा भार स्वरुप नहीं लगनी चाहिये- एक फूल की पँखुड़ी की भांति लगनी चाहिये- कोमल, सहज प्राकृतिक!
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हम में से हर एक के भीतर की गहराई में ईश्वर सजीव और स्नेहमय चेतना के रूप में विराजमान है

दिसंबर १६, २०१०. श्री श्री यूनिवर्सिटी

युवाओं को ये महान देश विरासत में मिला है| मैं चाहता हूँ कि युवा फ़ौरन समाज की ज़िम्मेदारी ले लें| हमें एक भ्रष्टाचार-मुक्त समाज चाहिए, है कि नहीं! दूसरा हमें नशा-मुक्त समाज चाहिए, वर्ना हम कभी प्रगति नहीं कर सकते| युवा एक मात्र आशा है| बहुत ज़रूरी है कि तुम इस ओर तुरंत कदम बढ़ाओ!

तुम्हारा काम हो रहा है, ना! अभ्यास, कार्य और ज्ञान पर ध्यान केन्द्रित करो, बाकी सब मुझ पर छोड़ दो| विश्व के इस कोने से इतने उत्साहित युवा समूह को देख कर मैं बहुत खुश हूँ| आज आर्ट ऑफ़ लिविंग सारे विश्व में फ़ैल चुका है| दक्षिणी ध्रुव पर जाओ, अर्जेंटीना के छोर पर, और तुम्हे आर्ट ऑफ़ लिविंग मिलेगा, उत्तरी ध्रुव की तरफ जाओ, वहाँ भी आर्ट ऑफ़ लिविंग है| तुम्हारा एक परिवार है जो सारे भू-मंडल तक फैला हुआ है और तुम में से हरेक इस परिवार का महत्वपूर्ण सदस्य है| हमारा इतना बड़ा परिवार है, और हमारी ज़िम्मेदारी भी है, एक खुशहाल और उत्सवमय समाज के लिए कार्य करना, एक समाज जो हिंसा से मुक्त हो, एक समाज जो आध्यात्मिक रूप से उन्नत हो| मैं चाहता हूँ, तुम में से हरेक १०० गुना बढ़ जाओ। स्कूलों, कोलेजों तक फ़ैल जाओ, और जीवन को उत्सव बनाओ| निश्चिन्त रहो, तुम्हारी ज़रूरतों की देख भाल हो जाएगी| तुम समाज को जो चाहिए वो समाज के लिए करो, और बाकी मुझ पर छोड़ दो| तुम पाओगे कि तुम्हारी मांगें स्वाभाविक रूप से पूरी होती जाएँगी| जो तुम चाहोगे, वही होगा|


प्रश्न: जब आप चलते हैं, आप राजाओं के राजाधिराज हैं
     जब आप ध्यान करते हैं, आप शिव हैं,
     जब आप मुस्कुराते हैं, सारा ब्रह्माण्ड आप के साथ मुस्कुराता है,
     गुरुजी, आप किसके अवतार हैं?
श्री श्री रवि शंकर: तू तो बड़ा कवि बन गया है!

प्रश्न: मुझे भविष्य में क्या करना चाहिए?
श्री श्री रवि शंकर: भूतकाल में जो तुम्हे नहीं करना चाहिए था वो भविष्य में भी मत करना। कुछ ऐसा करो जो तुम्हारे और दूसरों के चेहरे पर मुस्कान लाए|

प्रश्न: मेरा क्या अस्तित्व है?
श्री श्री रवि शंकर: ये एक प्रश्न तुम्हें अपने आप से बार - बार पूछते रहना है| जब तक तुम्हें जवाब न मिले, इस प्रश्न को छोड़ना मत| पीछे से हम तुम्हें इसका उत्तर पाने के लिए धक्का लगाते रहेंगे| बड़ा किमती प्रश्न है!

प्रश्न: जब मैं कुछ अच्छा करता हूँ, तब भी मेरे माता-पिता कभी कभी मुझे करने नहीं देते| ऐसी परिस्थिति में आगे कैसे बढूँ?
श्री श्री रवि शंकर: यहीं पर तुम्हारा कौशल काम आएगा। इसे तुम अपने भीतर के कौशल को बाहर लाने का अवसर मान लो| जैसे आटा कपड़े पर लग जाए, तो कैसे निकालोगे? युक्ति के साथ समझाना, अपनी कुशलता से धैर्य से उनके साथ निपटो|  बात ऐसी कुशलता से करो कि वो मान जाएं।

प्रश्न: आध्यात्मिकता क्या है?
श्री श्री रवि शंकर: सबके साथ अपनेपन का भाव हो जाए, सबको अपनाने की और सत्य को जानने की कला है आध्यात्मिकता।

जैसे ये फूल एक पदार्थ है| लेकिन वैज्ञानिक दृष्टि से फूल अणु से बना है, इससे आगे अणु परमाणुओं से बने हैं, परमाणु उप परमाणु कणों से, और इससे आगे केवल तरंग ही है। क्वान्टम फिजिक्स में कहते हैं ये सब केवल तरंग है| इस तरह सारे संसार के स्त्रोत और मूल को जानना आध्यात्मिकता है| अंतर ज्ञान से फूल के डी.एन. ए को जानना आध्यात्मिकता है|

प्रश्न: क्या परीक्षा में पास होना और अच्छे नंबर लाना ही शिक्षा है? क्या ये इससे अधिक कुछ और नहीं है?
श्री श्री रवि शंकर: तुम्हें क्या लगता है?
(मुझे लगता है ये माता पिता का रवैया है जिस कि वजह से हम ऐसा सोचते हैं)
हाँ, पर इसके साथ तुम पढाई भी करो| वैसे भी तुम्हें बहाव के साथ चलना ही है| परीक्षा ही सब कुछ नहीं है, तुम कभी फेल भी हो जाते हो तो कोई बात नहीं| इसका मतलब ये नहीं कि तुम बेवकूफ़ी वाला कदम उठाओ| ये ठीक नहीं है| इसी के साथ तुम्हे परीक्षा पर भी ध्यान देना चाहिए| पर ज्ञान के लिए शिक्षा करो, केवल अंको के लिए नहीं।

प्रश्न: मैं आप के जैसा कब बन सकता हूँ?
श्री श्री रवि शंकर: तुम पहले से ही हो|

प्रश्न: समाज में भ्रष्टाचार को देख कर दुख होता है। मुझे समझ नही आता मैं क्या करुँ?
श्री श्री रवि शंकर: जब आप जैसे और लोग एक साथ आगे बढ़ेंगे, तो यह ज़रुर होगा। पर अगर भ्रष्टाचार ऐसे ही बढ़ता जाए, फ़िर तो भूल जाओ। २०६० तक भी ऐसा नहीं होगा। उसका कोई अंत नहीं है। इसलिए अभी ही समय है। ब्युरोकरेसी में भ्रष्टाचार है, मीडिया में भ्रष्टाचार है, मनोरंजन दुनिया में भ्रष्टाचार है, और केवल आध्यात्म की लहर ही इसे दूर कर सकती है।
जब हम साथ में काम करेंगे तो अवश्य ही हम हासिल करेंगे।
हमारे कुछ युवकों को आयुर्वेदिक फ़ैक्टरी के लिए सर्टिफ़िकेट चाहिए थे। उन्होने रिशवत देने से मना कर दिया। उन्होने कहा कि वो आध्यात्म के पथ पर हैं और वे ऐसा नहीं करेंगे, चाहे तो २० - ३० - ५० बार बुलाइए। अगर लोग समाज में सही रास्ते पर चलेंगे तो अधिकारी खुदबखुद सही हो जाएंगे। पर अगर लोग भी गलत करें और अधिकारी भी तो यह साधारण सा ही लगता है। जब तुम अपना मन मज़बूत बना लेते हो तो समाज भी बदलता है।

प्रश्न: पढ़ाई करते समय एकाग्रता कैसे बनाएं?
श्री श्री रवि शंकर: कुछ तो करो यार! कभी कभी कुछ तकलीफ़ लेनी भी अच्छी होती है। चल नहीं पाते पर अगर मेराथोन में जाते हो तो पूरी ताकत लगाते हो कि नहीं? पानी में कूद जाओ, तो जब तक किनारा ना मिले तैरते रहते हो ना? थक भी जाओ तो बीच में छोड़ तो नही देते! मन में यह रखो, किसी तरह से पूरा कर ही लूँगा।
(पर मुझे तैरना नहीं आता)
तैरना नहीं आता, पानी मे कूदोगे तो आ ही जाएगा। मुझे भी ऐसे ही आया था!

प्रश्न: मै अच्छा व्यक्ति बनने की कोशिश करता हूँ पर कभी कभी लोगों का व्यवहार समझ में नहीं आता। क्या करुँ?
श्री श्री रवि शंकर: सबको अपनाना, अच्छा बनना मतलब यह नहीं कि हर तरफ़ भावनाओं को बहा दो। जितना हो सके उतना ही करना। जो तुम नहीं कर सकते कोई तुमसे वो करने की अपेक्षा भी नहीं करेगा।

प्रश्न: क्या आपने कभी भगवान देखा है?
श्री श्री रवि शंकर: पहले यह बताओ कि भगवान तम्हारे हिसाब से है क्या? भगवान ऊपर कहीं बैठा नहीं है। ईश्वर वो है जो सब जगह व्यापक है। जब मन पूर्णत: विश्राम में होता है तो ईश्वर से मिल ही जाता है। पूरा खेल मन को उस आनंदित चेतना में स्थापित करने का है। जब लहर सतह पर होती है तो लहर होती है, पर जब समुन्द्र में विलीन हो जाती है तो वो समुन्द्र ही बन जाती है।
ईश्वर हम सब के भीतर है, और हर जगह है।

इससे आगे अगली पोस्ट में!...
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मन में शांति और कृती में उत्साह जीत के लिए उत्तम तालमेल है

बंगलौर आश्रम, भारत दिसंबर २०१०

प्रश्न: जब किसी काम में बार बार हार मिले तो फ़िर भी उसे करते रहना चाहिए कि छोड़ देना चाहिए?
श्री श्री रवि शंकर: भारत में एक कहावत है - कार्य की सिद्धि सत्व से होती है, वस्तुओं से नहीं। किसी कार्य को सिद्ध करने के लिए सत्व गुण बड़ना चाहिए, और सत्व बड़ाने के लिए क्या करें?
सही आहार, सही व्यवहार और अपने मन को विश्राम देना सबसे पहले है।
अगर इसके बावजूद भी कभी कोई हार हाथ लगे, तो सत्वगुण उत्साह तो कम होने नहीं देता. और फ़िर छोड़ने का प्रश्न ही मन में नहीं उठता। जब एक बार जीतने का चस्का लग जाए, तो फ़िर बार बार खेलने का मन करता है। इधर उधर कोई हार भी हाथ लगे तो फ़िर भी मन में कुछ अच्छा करने का विश्वास तो बना ही रहता है। और यह विश्वास तब आता है जब काम के प्रति श्रद्धा हो। जैसे मन में शांति और कृत में जोश से कितने लोग आज़ादी के लिए लड़ते रहे। ऐसे लोगों को कोई पैसा नहीं मिलता था, वो चोरी नहीं करते थे, पर वे लोग पीछे नहीं हटे।
तीसरा कारण है - हार की वजह। हर हार जीत की ओर एक कदम है। एक कारण अपने में कोई कमी हो सकती हैं यां व्यवस्था में कोई कमी।
अपने में कमी जैसे किसी ने सही ढंग से प्रदर्शन नहीं किया। जैसे अगर तुम एक इंटरव्यु में जाते हो और कुछ ज़्यादा बोल देते हो तो इंटरव्युर के मन में संदेह उठ जाता है कि तुम वो काम कर पाओगे के नहीं। अपने में कमी को दूर करने के लिए योग्यता बड़ाओ। 
हर हार जीत की तरफ़ एक कदम है - तो यह देखो तुमने क्या सीखा! क्या तुम भावनाओं के साथ बह गए? जो लोग उसी काम में हैं, क्या तुमने उन्हे संपर्क किया? तुम उन पर विश्वास नहीं करते, यां तुमने भरोसेमंद लोगों को अपने साथ नहीं रखा?
सब कारण हो सकते हैं। तो अपनी योग्याता बड़ाने के लिए अपने क्षेत्र के ज्ञान की गहराई में जाओ। 
फ़िर आता है व्यवस्था को ठीक करना! तो यह तुम अकेले नहीं कर सकते। जैसे भ्रष्टाचार के खिलाफ़ कुछ करना हो तो तुम अकेले नहीं लड़ सकते। संघ के साथ चलो, और लोगों को अपने भरोसे में लो। लोगों में जाग्रति पैदा करके उन्हे अपने साथ लेकर चलो।
"संघे शक्ति कलियुगे"
कलयुग में संघ में ही शक्ति है। लोग कहते हैं यह समय कलयुग की चरम सीमा है, और ऐसा लगता है जैसे सत्य कहीं दब गया है। अगर तुम्हे ऐसा लगता है तो संघ में चलो, और फ़िर देखो काम होता है यां नहीं। दुनिया में जाओ ताकि अपने साथ और लोगों को ला सको, और अपनी योग्यता बड़ाने के लिए अपने भीतर जाओ। दोनो को साथ लेकर चलने से तुम्हे अवश्य सफ़लता मिलेगी। 
अगर तुमने अपना शत प्रतिशत दे दिया और फ़िर भी सफ़ल नहीं हुए, तो ठीक है। कोई और काम अपने हाथ में लो। पर एक यां दो बार हार हाथ लगने पर भागने का कोई अर्थ नहीं है।

प्रश्न: हमेशा खुश रहने के लिए क्या करें?
श्री श्री रवि शंकर: पहले और ज़्यादा खुश हो जाओ और फ़िर अगर कभी कोई थोड़ी बहुत दुख की बात हो जाए तो उसे भी स्वीकार करो। अगर भूतकाल में तुम कभी खुश नहीं थे तो उसे याद करके दुखी होने का कोई तक नहीं बनता, और तब तुम हमेशा खुश रहोगे।

प्रश्न: कुछ लोगों की अपनी धारनाओं के कारण हम सब की सभ्यताओं पर खतरा है। कई लोग तो इसके लिए मरने मारने के लिए भी तैयार हैं। ऐसे लोगों से हम कैसे निपटें?
श्री श्री रवि शंकर: हाँ, हमे उनके साथ धैर्य से बरताव करने की आवश्यकता है, और फ़िर उन्हे शिक्षित करना है। यह आसान नहीं है पर उन्हे निमंत्रित किया जा सकता है और जब उनमें से एक शांति स्थापित करने में हमारे साथ मिल जाए तो आसान हो जाता है।

प्रश्न: जो लोग अहिंसा के मार्ग पर चल पढ़ते हैं, उनके साथ कैसे बरताव करें?  
श्री श्री रवि शंकर: अपने अस्तित्व के बचाव के लिए अहिंसक होना स्वभाविक है। पर अगर ऐसे लोगों में आत्म विश्वास और दृष्टि जगाई जाए तो तुम पाओगे कोई भी व्यक्ति कैसे आत्म विश्वास से आगे बड़ता है। मैने मौन की गूँज पुस्तक में इस बारे में बात की है, तुम वो पढ़ सकते हो।

प्रश्न: हमें भगत सिंग यां महेश गुरु का अनुसरण करना चाहिए क्या?
श्री श्री रवि शंकर : भगत सिंग भी अहिंसा के पुजारी थे। पर तब कुछ हालात ऐसे बन गए कि उन्हे हथियार उठाने पढ़े। श्री गुरु गोबिंद सिंग का अनुसरण करो - संत सिपाही बनो - मन में संत की शांति और कृत में सिपाही का उत्साह। इसीलिए श्री कृष्ण ने भी अर्जुन को पहले एक योगी बनने के लिए कहा और फ़िर लड़ने को।

प्रश्न: जीवन का मूल क्या है?
श्री श्री रवि शंकर : पहले उस सार की खोज में निकलो तो। पहले ही क्या बताऊं! सारा जीवन रस की खोज में है, जहाँ रस मिल गया वहाँ विश्राम करें। रस मिलता है अंतर्मुखी होने से। थकान मिटी, विश्राम हुआ तो वहाँ राम मिल गए।

प्रश्न: जब दो विपरीत वस्तुओं में से चुनना हो तो क्या करें?
श्री श्री रवि शंकर: कोई भी खलल विकास का लक्षण है। ऐसे में विश्राम करो। जब मन विश्राम करता है तो अंतर्ज्ञान काम करता है। उस पर निर्भर करो।
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हमारा पूरा जीवन भी साधना की तरह ही पूज्य है!

10 दिसंबर, भारत
प्रश्न: मुझे कभी कभी लगता है कि जीवन का कोई मतलब नहीं है, कुछ कठपुतली के खेल जैसा। तो फ़िर कुछ भी करने का क्या मतलब है।
श्री श्री रवि शंकर: पता है अगर कोई बाहर के ग्रह से धरती पर आकर क्रीकेट यां फ़ुटबाल का मैच देखे तो पता है उसे कैसा लगेगा? हैरान रह जाएगा! एक गेंद के पीछे २२ लोगों का भागना उसे बिल्कुल फ़िज़ूल लगेगा। हरेक को एक एक क्यों न दे दो!
तर्कसंगत मन के लिए यह सब फ़िज़ूल ही है। दुर्भाग्य से आज खेल जंग का मैदान और जंग खेल की तरह बन गए हैं। जीवन एक खेल ही है। समय के चक्र में अपना जीवन देखो! करोड़ों साल बीत गए हैं और करोड़ों और आएंगे। तुम्हारा जीवन कितने वर्ष का है? ६०, ७० यां १०० वर्ष? अंतरिक्ष की तुलना में, इतने व्यापक ब्रहांड की तुलना में तो यह शरीर है ही नही! मैं तुम्हे कोई उत्तर नहीं दे रहा। उत्तर तुम्हारे भीतर से उठना चाहिए। तुम खुद देखो इन सबका क्या उद्देश्य है?
अगर तुम्हे सबकुछ बेमतलब लगता है तो तुम्हारे लिए खुशी की बात है। पथ पर तुम्हारी शुरुआत हो चुकी है। बुद्धिमानी का यह पहला लक्षण है। नहीं तो हम रोज़ रोज़ उसी चक्र में फ़ंसे रह सकते हैं, और हमे इसकी सजगता भी नहीं होती। यह बहुत खूबसूरत प्रश्न है और तुम्हे खुश होना चाहिए कि यह तुम्हारे भीतर उठा है।


प्रश्न: लोग मेरे बारे में क्या सोचते हैं मैं इससे कैसे ऊपर उठुँ?
श्री श्री रवि शंकर: जब मन बाहर है यां किसी बाहर की वस्तु यां परिस्थिति में अटक गया है तो फ़िरसे उसे स्रोत की तरफ़ वापिस लाओ। बस यही करना है। कुछ अच्छा होता हैं यां कुछ बुरा, हमारे मन पर कुछ समय के लिए उसकी छाप पड़ती है। पर ज़्यादा समय के लिए कुछ नहीं रहता और समय के साथ सब धुल जाता है। बुद्धिमानी का लक्षण है कि किसी पर भी अधिक देर नही अटके रहना। ध्यान और साधना इसके लिए सर्वश्रेष्ठ उपकरण हैं।


प्रश्न: साधना और जीवन में क्या संबंध है?
श्री श्री रवि शंकर: पूरा जीवन ही साधना है! पूजा और क्रिया महत्वपूर्ण हैं पर हमारा पूरा जीवन भी साधना की तरह ही पूज्य है।


प्रश्न: आपके लिए जो मेरा सम्मान और प्रेम है, अक्सर बाकियों के साथ उसकी तुलना करता हूँ। क्या यह सही है?
श्री श्री रवि शंकर: तुम्हे अपने आप की किसी से तुलना करने की कोई आवश्यकता नही है। तुम्हारा प्रेम अद्वितीय है। प्रेम को प्रेम ही रहने दो कोई नाम न दो! जो प्रेम किसी रिश्ते से बंधा है वो सीमित है। इससे शुरुआत हो सकती है पर उस प्रेम की ओर अग्रसर रहो जो रिश्तों से परे असीम है। ऐसे दिव्य प्रेम का अनुभव करना ही मक्सद है। जो प्रेम रिश्तों से परे है वो ही सच्चा प्रेम है।

प्रश्न: मैने आपको पहली बार कल देखा, पर मुझे ऐसा नहीं लगा कि आप कोई अन्जान हैं।
श्री श्री रवि शंकर: मुझे कभी भी किसी को भी मिलते हुए ऐसा नहीं लगा कि मैं किसी अन्जान व्यक्ति से मिल रहा हूँ। जिस तरह तुम्हारी भावनाएं होती हैं, तुम वही अनुभव करते हो। तुम किसी भी व्यक्ति को मिलते हो वो तुम्हारी ही परछाईं है।

(अचानक बिजली चली गई, और किसी ने कहा, "गुरुजी आप यहाँ से मत जाना"। जिस पर गुरुजी ने कहा, "हो सकता है यह ध्यान करने की निशानी हो")

दुनिया में कोई अलग है ही नहीं। यही ध्यान का मंत्र है। ऐसा कोई नहीं है जो मुझसे नहीं जुड़ा हुआ। यही प्रेम का मंत्र है। हम सब के शरीर चेतना के समुद्र में गोते खाते हुए सीप जैसे हैं। यही सत्य है। 
सीप में कोई जीवन नहीं है, उसका जीवन पानी में है। मछली का जीवन किधर है - मछली में यां पानी में?
मछली का शरीर केवल जीवन का प्रदर्शन कर रहा है पर जीवन पानी में है। इसी को कारण शरीर कहते हैं।

प्रश्न: हम ईर्ष्या कयों महसूस करते हैं और इससे बाहर आने के लिए क्या करें?
श्री श्री रवि शंकर: ईर्ष्या क्यों महसूस करते हैं? क्योंकि हम यह भूल जाते हैं कि सब बदलने वाला है। ध्यान करो और जीवन को एक ऊँची दृष्टि से देखो। अगर तुम फ़िर भी ईर्ष्या महसूस करो तो संवेदना पर ध्यान दो और यह बीत जाएगा।
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किसी भी बुराई की जड़ तनाव है

प्रश्न: हर कोई आप से मिलना क्यों चाहता है?
श्री श्री रवि शंकर: मैं तो नहीं जानता पर ऐसा होता है। आत्मा एक दूसरे से बात करती है!

प्रश्न: आज बहुत से लोग शाकाहारी हो गए हैं, ३० साल पहले तो भारत के बाहर शाकाहार देखना भी मुश्किल था।
श्री श्री रवि शंकर: हाँ, आज बात अलग है। हर किसी को जानवरों से दोस्ती करने के लिए कहो। एक बार जब आप दोस्ती कर लेते हैं तो आप उन्हे खाते नहीं हैं। जैसे आप अपने पालतु जानवर को भोजन में तो नहीं खाते। जब एक बार रिश्ता बन जाता है तो आप में दोस्ती बन जाती है, और जानवरों से दोस्ती करने से ही विश्व शाकाहारी बन जाएगा।

प्रश्न: जब मन में इच्छाएं उठें तो क्या करें?
श्री श्री रवि शंकर: जब इच्छाएं उठती हैं तो देखो यह तुम्हारे लिए हितकारी हैं कि नहीं। जब इच्छाएं उठती हैं और बुद्धि से होकर गुज़र जाती हैं तो अच्छा है। पर अगर अदक्ष इच्छा है तो मुश्किल हो सकती है।

प्रश्न: आदतों से छुटकारा कैसे पाएं?
श्री श्री रवि शंकर: आदत से मुक्ति पाने के तीन रास्ते हैं। अगर कोई तुम्हे लालच दे। मानलो अगर तुम कोई बुरी आदत छोड़ देते हो  तो तुम्हें दस लाख मिलेंगे। तब तुम वो करोगे? तुम्हारी आदत से कुछ श्रेष्ट तुम में लालच जगा देता है। यां अगर तुम में कोई भय जगा दे! अगर चिकित्सक कह दे कि शराब पीने से तुम्हारा लीवर खराब हो जाएगा, तो क्या तब भी तुम शराब पीओगे? तीसरा तरीका प्रेम का है।

प्रश्न: लोगों में बुराई से छुटकारा कैसे पाएं?
श्री श्री रवि शंकर: लोगों में कुछ बुराई है तो केवल तनाव के कारण। एक बार साधना के पथ पर आ जाने से वो किसी भी बुराई से बाहर आ जाते हैं।

प्रश्न: संपत्ति क्या है?
श्री श्री रवि शंकर: संपत्ति केवल धन नहीं है। जो भी जीवन को समर्थन करता है वो संपत्ति है। स्कैन्डीनेवीया में लोग सूरज के लिए तरस्ते हैं। जब मैं वहाँ सर्दियों में गया था, तो वहाँ अंधेरा था, जैसा यहाँ इस समय है। जब मैने पूछा सूरज कब उदय होगा, तो मुझे किसी ने बताया जनवरी में। 
आज समाज में आध्यात्म की लहर की आवश्यकता है। आध्यात्म माने क्या? जहाँ लोग एक दूसरे से अपनेपन के भाव से जुड़ा हुआ महसूस करते हैं। जब अपनापन बड़ जाता है तो भ्रष्टाचार कम हो जाता है।

प्रश्न: समाधि क्या है?

श्री श्री रवि शंकर: अलग अलग तरह की समाधि है।
पहला है लय समाधि - संगीत का आनंद लेते हुए तुम अपने में गहरे उतर जाते हो।
फ़िर साक्षी समाधि - मन में सजगता।
अगर तुम बहुत ज़्यादा भी करते हो तो सही नहीं है। इसीलिए एक शिक्षक से मार्गदर्शन लेनी चाहिए। जब कोई शरीर त्याग देता है तो हम जीवन की विशालता अनुभव करते हैं। एक व्यक्ति जो पहले था वो अब नहीं है। यह जीवन में एक गहराई लाता है, और तब हम आश्चर्य करते हैं जीवन है क्या? व्यक्ति कहाँ गया? यह जीवन मे गहराई लाता है और इसलिए दुख व्यक्त करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
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