तीन प्रकार के भक्त होते हैं!!!


०१
२०१२ बैंगलुरु आश्रम
जून

पहले प्रकार के भक्त वे होते हैं जो हमेशा मांगते रहते हैं, भगवान मुझे ये दे दीजिए, भगवान मुझे वो दे दीजिए|
दूसरे प्रकार के भक्त वे हैं, जो हमेशा कृतज्ञ रहते हैं, धन्यवाद भगवान, आपने मुझे यह दिया, और आपने मुझे वह दिया, एक ऐसा भक्त जो भावुक है, प्रार्थनापूर्ण है और कृतज्ञता में आँसू बहाता है|
तीसरे प्रकार का भक्त वह है, जो हमेशा खुश रहता है, मुस्कुराता रहता है, झूमता और गाता रहता है, आनंदपूर्ण भक्त’|
ये सभी तीन अलग अलग तरह के भक्त हैं, यद्यपि ये सभी श्रेष्ठ हैं| ऐसा नहीं है, कि इन में से कोई एक बाकी से बेहतर है| एक रोता हुआ भक्त, एक हँसता हुआ भक्त, और एक भक्त जो हमेशा मांगते रहता है, तो आप इनमें से किस श्रेणी में हैं, वह आप खुद देखिये|
ऐसा हो सकता है, कि आपके अंदर इन सबका थोड़ा थोड़ा अंश हो| वह भी ठीक है| तब वह चौथे प्रकार का भक्त हो जाएगा, जिसके अंदर इन तीनों का कुछ कुछ अंश विद्यमान है|
वह, जो हंसी-मजाक में ही उलझ कर रह जाता है, उसे गंभीरता प्राप्त नहीं होती, और गंभीरता (अथवा गहराई) आवश्यक है| इसीलिये संत कबीर ने कहा है, कबीरा हंसना दूर कर, रोने से कर प्रीत, बिन रोये कित पाईये, प्रेम पियारा मीत'|
लेकिन जिस रोने के बारे में कबीर बात कर रहें हैं, वह अलग प्रकार का रोना है, वह रोना है, जो प्रशंसा के कारण आता है, कृपा और तृष्णा के कारण आता है| यह उस तरह का रोना नहीं है, जिसमें किसी को लगता है, कि उसके पास इस चीज़ की कमी है, उस चीज़ की कमी है, यह नहीं हुआ, वह नहीं हुआ| वे (कबीर) इस तरह के रोने की बात नहीं कर रहें हैं, जो सांसारिक कारणों या माया के कारण हैं| वे उन लोगों के बारे में चर्चा कर रहें हैं जो आनंद और भक्ति के कारण रो रहें हैं| तो वह भी आवश्यक है|
लेकिन जो भक्त आनंदित रहते हैं, कहते हैं, कि वे ज्ञानी होते हैं, क्योंकि वे जानते हैं, कि भगवान यहीं हैं, वे मेरे अंदर हैं, और वे इसी क्षण में मौजूद हैं|
अक्सर  लोग सोचते हैं, कि भगवान कहीं और हैं; उनका अस्तित्व अतीत में कभी था, या भविष्य में कभी आयेंगे| वे भूल जाते हैं, कि भगवान यहीं है, इसी पल, हर एक के अंदर विद्यमान, मेरे अंदर विद्यमान है| सिर्फ यही एक विश्वास चाहिये| बस इसी के लिए, आप ये सब कसरत कर रहें हैं, ये सब अभ्यास| नहीं तो इन सब व्यायामों, जैसे प्राणायाम करना, आसन, कीर्तन, भजन के करने का क्या फायदा, इन सबका क्या उद्देश्य है? यह जानना, कि भगवान मेरे भीतर हैं, इसी जगह और इसी पल|
बस आज के लिए इतना ही! बहुत अधिक ज्ञान सुनने से अपच हो जाता है| इसे पचाना बहुत मुश्किल हो जाएगा| तो आज केवल इतना ही पचाइये| आज गुरूजी ने केवल एक ही वाक्य कहा भगवान यहाँ हैं, इसी पल हैं, मेरे भीतर हैं, सबके भीतर हैं|'