ईश्वर से आपके प्रति प्रेम का प्रमाण मत मांगिये!!!

१८.०२.२०१२, बैंगलुरु आश्रम
प्रश्न : गुरुजी कभी आप कहते है कर्मण्येवाधिकरस्ते और कभी आप कहते है विश्राम में ही राम है। तो मुझे विश्राम करना चहिये या कर्म करना चहिये।
श्री श्री रविशंकर : विरोधी मुल्य एक दूसरे के पुरक होते है। अगर आप कर्म करते है तो अच्छी तरह से आराम कर सकते है और आप विश्राम करते है तो काम कर सकते है। अगर बिना काम किये आप लेटे रहते है तो विश्राम नहीं कर पायेंगे और काम भी नहीं कर पायेंगे तो काम और विश्राम साथ साथ चलते हैं|

प्रश्न : गुरुजी क्या किसी को उसके कर्म के हिसाब से ज्ञान मिलता है?
श्री श्री रविशंकर : ज्ञान को प्राप्त करने के लिये ज्ञान के प्रति प्यास जागनी चाहिये। अगर अब आप मुझसे पूछते हो कि ज्ञान की प्यास कर्म के अनुसार होती है क्या? तो उत्तर हाँ है लेकिन ज्ञान सभी कर्म के बुरे प्रभावों को दूर करता है।

प्रश्न : गुरुजी जीवन में अनुशासन बनाये रखने के लिये क्या करना चहिये?
श्री श्री रविशंकर : सबसे पहिली बात अनुशासन बनाये रखने की ईच्छा मन में होनी चाहिये। जब वो होगी तो समझ लो काम हो गया। अनुशासन तीन कारणों से होता है।
१ प्रेम। जबकि प्रेम में अनुशासन की जरुरत नहीं है लेकिन प्रेम के माध्यम से अनुशासन बनाया जा सकता है।
२ डर कि वजह से। अगर आप किसी से कहते हो कि आपने नियमों का पालन नहीं किया तो आप बीमार हो जाओगे तो वो बीमार होने की डर से अनुशासन में रहेंगे।
३ लोभ। अगर आप किसी को कहते हो की नियमों का पालन नहीं किया तो घाटा हो जायेगा तो वो लोभ की वजह से अनुशासन में रहेगा।
तो बिना शर्त के प्रेम से अनुशासन में रहना अच्छा है वही सबसे उत्तम है।

प्रश्न : गुरुजी ये अक्सर देखा गया है कि आपके किसी शहर आने की खबर से ही
झगड़ा शुरु होता है। ये सेवा कि वजह से इतने विवाद क्यों उत्पन्न होते है?
श्री श्री रविशंकर : पहले
झगड़ा तो होना चाहिये ना तभी तो गीता शुरु होगी। हाँ मैंने भी सुना है कि मेरे किसी शहर मैं आने से पहिले ही झगड़ा शुरु होता है।गुरुजी कहाँ रहेंगे किस के घर में रहेंगे। हर कोई कहेगा मेरे घर में। मैं ऐसा करुंगा और फिर उससे झगड़ा शुरु होता है। मैं भी आश्चर्य से ये सोचत हूँ कि क्या करना चाहिये। प्यार के बिना झगड़ा नहीं होता और झगड़े के बिना प्यार नहीं होता। कही ना कही दोनों को एक दुसरे के साथ आना पड़ता हैं।
 
प्रश्न : गुरुजी ध्यान में प्राप्त की हुई स्थिति बनाये रखने के लिये मुझे क्या करना चहिये?
श्री श्री रविशंकर : जो आप अभी कर रहे है बस वो ही करते रहे। अपको वही बार बार करते रहना है। बार बार रघुवीर समाई। पुनः पुनः ध्यान लगाना है। तो ध्यान, साधना और सत्संग करते रहे और उसके बारे में परामर्श भी अवश्य करे। इससे वाणी में, मन में, और कृत्य में जो चीज आ जाती हैं वो ठीक हो जाती है| अगर आप साधना करते है और बाकी के समय फिजूल बाते करते है तो साधना से जो आपको रस मिला वो चला जायेगा। तो वाणी में भी उसी स्थिति की बात हो। जब भी आप बात करे तो ज्ञान और प्रेम की बात करे। तो आप में वो स्थिति दृढ़ता से स्थापित होगी। ये सत्संग का महत्व है। हम सत्संग में अच्छे चीजों के बारे में बात करते हैं, ज्ञान की बात करते है, ध्यान और चमत्कार की बात होती हैं। आप दूसरों के जीवन में घटित चमत्कारों की बात करते हैं| क्या यही बात करते है ना? आप में से कितने सिर्फ चमत्कारो की बात करते हैं। क्या होता है जब आप सिर्फ चमत्कारों के बारे में बात करते हैं| रोज आप के जीवन में कुछ घटित होता है। रोज नये पाठ पढते है। तो ऐसी चर्चा से मन दृढ़ होता है।

प्रश्न : गुरुजी क्या मैं जब भी चाहूँ मौन में रह सकता हूँ? मुझे ऐसा लगता है इससे मुझे बहुत फायदा होगा।
श्री श्री रविशंकर : हाँ औरों को पूँछ कर देख लो। अपने परिवार वालों से पुछलो। लेकिन ऐसा मौन मत रखो जिससे दूसरों को परेशनी या तकलीफ हो। कम बात करो और सिर्फ जितनी जरुरी है उतनी बात करो। आपको मितभाषी, गीतभाषी, प्रियभाषी और सत्यभाषी होना चाहिये| कम बोलो, लाभप्रद बोलो, सुखदायी बोलो, सत्य बोलो।

प्रश्न : गुरुजी सतगुरु से क्या मांगना चहिये? जब सतगुरु होते है तो प्रार्थना की जरुरत होती है क्या?
श्री श्री रविशंकर : जिस चीज की भी जरुरत हो उसे माँग लो तभी तो उसे जरुरत कहते है। आप बैठ के ये मत सोचो कि मैं क्या माँगू। जो भी आपकी आवश्यकता या जरुरत है वो एक सवाल एक विनती की तरह आयेगी।

प्रश्न : गुरुजी जब चेतना निराकार है तो हमे साकार में (मूर्ती में) श्रद्धा रखनी चहिये या सिर्फ निराकर में?
श्री श्री रविशंकर : अगर आप निराकार तक पहुँच गये हो तो अच्छा है। साकार भी निराकार का भाग है। आप निराकार से संबंध नही बना सकते तो जब आप खुली आँखे के द्वारा साकार से जु
ड़ते है। लेकिन जब आप आँखे बंद करके ध्यान के गहन में जाते हो तो निराकार के संबंध होते हो। इस तरह से आप शुरुआत करते हो लेकिन आगे जाकर आप पाओगे कि आँखे बंद है या खुली आप निराकार से ही जुड़े हो।

प्रश्न : गुरुजी जब मैं अपने काम या साधना पर लक्ष्य केंद्रित करता हूँ तो मेरे रिश्तो में हानि होती है। मैं चाहता हूँ कि मैं साधना पर भी ध्यान दू और मेरे आसपास के लोग भी खुश रहे। मैं ये कैसे प्राप्त कर सकता हूँ?
श्री श्री रविशंकर : कुशलता से। आपको दोनों करना हैं। यह स्वाभाविक रूप से अपने आप हो जायेगा|

प्रश्न : गुरुजी कभी कभी मुझे सेवा के लिये वक्त नही होता क्या दान को भी सेवा समझते है।
श्री श्री रविशंकर : हाँ वो भी एक सेवा है। देखिये आप के लिये जो भी मुमकिन है वो सेवा है। अगर आप भारी पत्थर नहीं उठा सकते तो वो उठाने की जरुरत नहीं है। आपको वो नहीं करना चाहिये जो आप नहीं कर सकते। अगर कोई और कर सकता है तो उनको पत्थर उठाने के लिये सहयोग करना भी सेवा है। इसी तरह अगर आप खुद जा के बच्चों को पढा नहीं सकते तो दुसरे शिक्षक के द्वारा मदद कर सकते हो तो सेवा वो है जो आप कर सकते हो। अगर आप के पास वक्त है तो वक्त दीजिये। अगर पैसा है तो दान दीजिये। जिस भी तरीके से आप दूसरे को मदद करते हो वो सेवा है।

प्रश्न : गुरुदेव आपके इतने सारे शिष्य है तो आप उनके हर एक की अध्यात्मिक प्रगती का ध्यान कैसे रखते हो?
श्री श्री रविशंकर : (हँसते हुऐ) वह मेरा व्यापारिक रहस्य है।

प्रश्न : प्रिय गुरुजी दुनिया में हर वॅलेंटाईन (प्रेमी) अपने साथी को बहुत लाड प्यार करता है| हम वहीं संतुष्टी ईश्वरीय वॅलेंटईन (प्रेम) में कैसे पाये?
श्री श्री रविशंकर : ईश्वर ने आपको बहुत लाड प्यार से ही रखा है। ये जान ले कि आपको बहुत ज्यादा लाड प्यार मिल रहा है और मिलता रहेगा।

प्रश्न : गुरुजी हम अपने रोज के जीवन में कर्म बंधन से कैसे बच सकते है?
श्री श्री रविशंकर : जब कर्म करते वक्त तृष्णा या घृणा होती है तो कर्मबंधन होता है। तृष्णा या घृणा दोनों को हम कर्म बंधन कहते हैं| जब आप कोई भी कार्य बिना तृष्णा या घृणा से मुस्कुराते हुये मुक्त मन से और शुद्ध दिल से करते है तो वहाँ बंधन नहीं है। ऐसे कार्य आंतरिक मुक्ती भी लाते है।

प्रश्नः क्या आप वो लोग जो दृष्टिहीन है उनके लिये कृपया करके कुछ कहना चाहेंगे?
श्री श्री रविशंकर : हाँ दृष्टिहीन दोष को प्रगती मे रुकावट नहीं मानना चाहिये। आप सभी ये याद रखें। सुरदास जो एक महान संत थे वो नेत्रहीन थे। ध्रुतराष्ट्र जो महाराजा थे जिन्होने भारतवर्ष पर राज किया वो नेत्रहीन थे। स्वामी श्रद्धानंद जो इस सदी के महान संतो मे से है वो नेत्रहीन थे। अभी कुछ दशक पहले उनका स्वर्गवास हुआ। स्वामी श्रद्धानंद रोज वृंदावन मंदिर देखने जाते थे किसी ने उनको पुछलिया स्वामीजी आप देख नहीं सकते और मंदिर में बहुत भी
ड़ है तो आप वहाँ क्यों जाते है। आप क्या देखते है। उन्होने हँसते हुऐ कहाँ मैं नहीं देख सकता तो क्या कम से कम भगवान को तो मैं दिख रहा हूँ इसिलिये मैं वहाँ जाता हूँ। मैं देख नहीं सकता यह मायने नहीं रखता क्या तुम्हे लगता है भगवान भी मुझे देख नहीं सकता। उनको मुझे देखने दो मेरे वहाँ जाने से उनको खुशी होती है। ये भक्ती और प्रेम की गहराई है और आत्मविश्वास है कि ईश्वर मुझे प्रेम करते है। ईश्वर के आपके प्रति प्रेम का प्रमाण मत मांगिये। आपने वो कभी नही मांगना चाहिये। ये सदा जान ले कि ईश्वर मेरे से प्रेम करते है। बस पुर्णविराम आगे कोई प्रश्नचिन्ह नही। आप की रोज की जिंदगी में भी दुसरों के प्यार पर प्रश्नचिन्ह मत लगाओ।क्या गुरुजी मेरे से प्यार करते है। ये सवाल उठना ही नही चाहिये। इसी तरह क्या मेरे मित्र मेरे से प्रेम करते है क्या मेरे पति या पत्नी मेरे से प्रेम करते है या नहीं? प्रेम के आगे प्रश्नचिन्ह मत लगाईये। ये विश्वास रखे कि वो आपसे प्रेम करते है और आगे बढे। उनका जो भी व्यवहार है वो मायने नहीं रखता। प्रेम के अनेक रंग होते है और ये सब रंग प्रेम का ही भाग है और ये सोच के आराम किजिये।

प्रश्नः गुरुजी भगवान ही ये दुनिया चलाते है और वे ही हमारे पिता है तो ये दुःख गरीबी और अज्ञान क्यों हैं ?
श्री श्री रविशंकर : किसी ने एक साधु को भी यही सवाल पूछा इस दुनिया में दुःख क्यों है? तो साधु ने कहा भगवान ने ये मेरे लिये रखा है। क्योंकि इतना दुखः होने के बावजूद मैं इस संसार का त्याग नहीं कर पा रहा हूँ अगर दुःख भी नहीं हो तो मैं त्याग कैसे करुंगा और त्याग नहीं करुंगा तो अपना ध्यान भगवान कि तरफ कैसे लगाउंगा। भगवान की तरफ ध्यान जाता ही नहीं है।इसिलिये भगवान ने इस दुनिया में दुःख रखा है ताकि कुछ देर इसका आनंद उठा के फिर त्याग करके भगवान की तरफ वापस मु
ड़ जाये इसिलिये ये कहावत है दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करे ना कोई जो सुख में सुमिरन करे तो दुख काहे को होय।

प्रश्नः गुरुजी गुरु, धर्मगुरु और सतगुरु में क्या अंतर है? दुसरा सवाल है ऐसा मानना है कि इस विश्व में किसी एक समय एक ही सतगुरु होते है तो वह सतगुरु कौन है क्या आप हैं। कृपया उत्तर दीजिये ?
श्री श्री रविशंकर : ऐसा कहा जाता है; मेरे गुरु जगत के गुरु है| मेरे नाथ ही जगत के नाथ है| इसी में आपने विश्वास रखना चाहिये और यही सत्य है। धर्मगुरु, जगत गुरु या सदगुरु ये सिर्फ अलग अलग नाम है जिस की आपको जरुरत है उसे आप ले लिजिये और आगे बढिये। जो सत्य के बारे में बोलते है वो सतगुरु है। सतगुरु किसी का नाम नहीं हो सकता। सतगुरु कौन है जो आपको सत्य दिखाये। जैसे कि संगीत गुरु होते है वैसे ही सतगुरु होते है। सतगुरु वे होते है जो आपको सत्य क्या है इस बारे में सचेत कराते है| असत्य क्या है, यह संसार क्या है, आत्मा क्या है बताते है। जो आपको इनके भेदों के बारे में
पढाते है वे सतगुरु है।

प्रश्नः अगर सब कुछ पहले ही नियत किया हुआ है तो मनुष्य को कुछ करने की जरुरत क्या है ?
श्री श्री रविशंकर : सब कुछ पहले से ही नियत होने के बावजुद आदमी ने जो उसे अच्छा लगता है और जो उसे चाहिये वह पाने के लिये प्रयत्न करने चाहिये। उदाहरण के तौर पर अगर आपको घर मे सुर्य का प्रकाश चाहिये तो आपको खिडकियाँ और दरवाजे खोलने पडेंगे। आप खिडकियाँ बंद रख कर रोशनी अंदर आने की चाह नहीं कर सकते। और उसी तरह आधी रात में खिडकियाँ दरवाजे खोल के सूरज की रोशनी नहीं आयेगी तो आपको आपके ध्येय की तरफ प्रयत्न करने चाहिये बाकी जो होना है वहीं होगा। आपके प्रयत्न और किस्मत एक साथ चलते है।

प्रश्नः प्रिय गुरुजी मैं चाहे जितना भी ध्यान करूं अपने क्रोध पर काबू नहीं कर पाता हूँ मैं क्या करूं?
श्री श्री रविशंकर : अपने क्रोध को काबू में करने की कोशिश मत कीजिये। नियमित रूप से प्राणायाम कीजिये| इस दुनिया में लोग जैसे है वैसे उन्हे स्वीकार कीजिये उनको बदलने की कोशिश कभी मत कीजिये उनको स्वीकार करे और ध्यान करते रहे। अगर ध्यान करने के बावजूद आप अपना क्रोध काबू नहीं कर सकते तो सोचिये बिना ध्यान के कितना क्रोध आयेगा तो प्राणायाम और ध्यान कीजिये क्रोध धीरे धीरे कम होगा।

प्रश्नः गुरुजी मैं आपका पिछले चार साल से अनुयायी हूँ और मैं ने दाढी भी बढाना शुरु किया है और श्वेत कपड़े भी पहनता हूँ| मेरे माता-पिता और पत्नी मेरे से बहुत दुखी है।
श्री श्री रविशंकर : आपको ये सब करने की जरुरत नहीं है वो दाढी काट दीजिये और साधारण रंगीन कपड़े पहनिये और आम आदमी की तरह रहे। किसी का अनुयायी होने का मतलब यह नहीं कि आप उसी तरह कपड़े पहनो और सब कुछ उसी तरह करो। नहीं। करुणामय रहे, प्रेममय रहे और जो आपने करना है वह अच्छा काम करते रहे।

प्रश्नः गुरुजी क्या आप शिवरात्रि और उसके महत्व के बारे में बात करेंगे?
श्री श्री रविशंकर : महाशिवरात्रि के दिन शिव तत्व पृथ्वी की भूमि को छूता है। चेतना जो इस स्थूल भूमि से दस इंच उपर रहती है| प्रभामंडल या आकशीय शक्ति जो सतह से दस इंच उपर होती है वो महाशिवरात्रि के दिन धरती को छुती है तो जो उस रात्री जगते है और ध्यान करते है उनके लिये ये सहायक होती है। ज्यादा भोजन न खाये, हल्का खाना खाये और ध्यान कीजिये उससे मनोकामना पूरी होंगी। यह पुरानी धारणा है। यह आपको आत्मिक बल प्रदान करता है। ये एक साधक के लिये नववर्ष की संध्या की तरह है। अध्यात्मिक प्रगती, अध्यात्मिक प्राप्ती और भौतिक सुखों की प्राप्ती के लिये यह समय शुभ माना जाता है। इस रात को जब नक्षत्र एक विशिष्ट स्थिति में हो तो ध्यान के लिये शुभ होते है, यह पुरानी धारणा है। इसका मतलब यह नहीं कि और दिनो में ध्यान नहीं होता। जब भी आपक हृदय खुला होता है, मन शांत होता है और स्थिर होता है तो आपकी प्रार्थना सुनी जाती है लेकिन शिवरात्री को भजन का गान करके वेदिक मंत्रो के साथ विधि करके मनाया जाता है| यह आध्यात्मिक साधक के लिये बहुत ही शुभ समय माना जाता है। यह भौतिक जगत का अध्यात्मिक जगत से विवाह मिलन है।भौतिक जो आठ स्तर का है, वह आठ स्तर के आकाशीय तत्व के नजदीक आता है तो ये आठ स्तर कि प्रकृतियाँ क्या है? भूमि, जल, वायु, आकाश और अग्नि; मन, बुद्धी और अहंकार ये सब जो सूक्ष्म आठ तत्व यानी शिव तत्व है उनके साथ संपर्क में आते है। लोग अक्सर बहुत कम खाते है थोडे फल या ऐसा ही कुछ और उपवास करते है। मैं आपको बिना कुछ खाये उपवास करने की सलह नहीं दूंगा। थोड़े  फल या आसनी से पचनेवाले भोजन लिजिये और दिन में जगते रहे और रात को ध्यान करे। आपको पूरी रात ध्यान करने की जरुरत नहीं है। कुछ देर ध्यान करे। हम लोग सत्संग करेंगे और कुछ धूमधाम से उसे मनायेंगे। बस यही है। वैसे तो रोज का दिन ही शुभ है क्योंकि हम रोज ही सत्संग करते है। पुराने समय में लोग कहते थे ठीक है, यदि आप रोज नहीं कर पाते तो कम से कम साल में शिवरात्री के दिन ध्यान कीजिये और जागते रहिये। आपके अंदर की गहराई से ईश्वर तत्व को जगाईये। ईश्वर आपके अंदर है उसे जागने दीजिये।

प्रश्नः क्या पूरी रात न सोने की कोई सर्थकता है। हमे कब तक जागना चाहिये ?
श्री श्री रविशंकर : नहीं अपने आपको ज्यादा तनाव मत दीजिये। सहज रहे।

प्रश्नः महाशिवरात्रि को महाशिवरात्रि क्यों कहते है महाशिवदिवस क्यों नहीं कहते ?
श्री श्री रविशंकर : हाँ मैंने इसके बारे बोला है। उस किताब को पढ लीजिये। रात्री का अर्थ है जो आपको आराम देती है और विश्राम देती है। किससे? वह जो आपको तीन तपों से विश्राम देती है, वह शिवरात्रि है। तप है आधिभौतिक, आध्यात्मिक और आधिदैवीक। तपस्या का मतलब है दुखः या रुकावटे। वह काल या अवधि जो हमे दुखों से राहत दिलाती है वह शिवरात्रि है।



The Art of living © The Art of Living Foundation

अविनाशी प्रेम को पाया जा सकता है!!!


परम पूज्य श्री श्री रविशंकर जी के द्वारा
कुछ लोग कहते हैं कि जीवन का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होता है कि कोई इस ग्रह में वापस न आये क्योंकि यह प्रेम से वंचित है। वे सोचते हैं कि यदि प्रेम है तो वह इतना पीड़ापूर्ण क्यों है? कोई भी जीवन में कुछ चाहता है तो वह प्रेम है। हर कोई इंसान उस प्रेम की इच्छा करता है जो कभी मर नहीं सकता, वह प्रेम जिसमें पीड़ा न हो, वह प्रेम जो खिलता है और हर समय के लिए जीवित रहेगा। जीवन का वह बहुमुखी दृष्टिकोण लेने से कोई जीवन को विभिन्न पहलू से देख सकता है और यह अनुभव कर सकता है कि जीवन का उद्देश्य इस किस्म के प्रेम को प्राप्त करना है जो उस आदर्श प्रेम में खिलता है।
यदि आप अत्यधिक सफल हैं और आप के पास बहुत सारा धन है परन्तु आपके जीवन में कोई प्रेम नहीं है तो फिर जीवन सही मायने में सार्थक नहीं होगा, और वह बंजर के जैसा प्रतीत होगा। परन्तु इसके बाद भी कई लोग प्रेम के बिना जीवन जी लेते हैं। क्या आपने यह सोचा है कि ऐसा क्यों होता है? यह आपका अहंकार होता है, जो आपको उस प्रेम को पाने से रोकता है। जब तक अहंकार होगा, प्रेम नहीं हो सकता है और जब प्रेम होता है तो वहाँ पर अहंकार का निशान भी नहीं होता है। अहंकार क्या है? अहंकार का अर्थ है अस्वाभाविक होना। अर्ध ज्ञान अहंकार लाता है परन्तु जब ज्ञान पूर्ण हो जाता है तो अहंकार समाप्त हो जाता है और सरलता का उदय होता है।
अब यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि यदि अहंकार इतना अस्वाभाविक होता है तो फिर हर इंसान में अहंकार क्यों होता है? अहंकार इसलिए आवश्यक है क्योंकि वह जीवन में आपके विकास में किसी तरह से आवश्यक है। इसका यह अर्थ नहीं है कि उसे शुरुआत से ही नहीं होना चाहिए। अहंकार आवश्यक है परन्तु ज्ञान के द्वारा आप उससे निकल सकते हैं। नारद भक्ति सूत्र में एक सूत्र है ‘‘ज्ञान स्वाभाविकपन की परत को उतारने में सहायक है‘‘ स्वयं का अवलोकन करने से और ध्यान में स्वयं के और भीतर जाने से कोई अहंकार से परे हो सकता है।
एक बीज पर एक परत या छिलका होता है और जब आप उसे पानी में भिगोते हैं तो वह अंकुरित होता है और छिलका निकल जाता है। उसी तरह अहंकार आवश्यक अस्वाभाविकपन है जो जैसे आपका विकास होता है वह भी बढ़ता है। जब आप दो या तीन वर्ष के शिशु होते हैं तो कोई अहंकार नहीं होता है, आप सम्पूर्ण भोलेपन और आनंद की अवस्था में होते हैं। फिर अहंकार की परत बनती है। ज्ञान इस परत को निकालता है और आपको फिर से शिशु बना देता जो स्वाभाविक, सरल और भोला है। जब आप स्वाभाविक, सरल और भोले होते हैं तो कोई अहंकार नहीं होता है।
अहंकार कोई तत्व नहीं है वह अंधेरे के जैसे तत्वहीन है। अंधेरा सिर्फ प्रकाश की कमी है। अहंकार के जैसा कुछ नहीं है जिसमें कोई तत्व हो। अहंकार सिर्फ संपूर्ण विकास की कमी है, पूर्ण समझ की कमी है। वह सिर्फ परिपक्वता या ज्ञान की कमी है।
हमें कई विषयों की शिक्षा प्रदान की गई है। हम किसी कठिन यंत्र को कैसे चलाना यह जानते हैं परन्तु जब हमारा सामना जीवन को बनाने वाले बल से होता है तो हम लड़खड़ाने लगते हैं। हमें जीवन को कैसे जीना यह कोई नहीं सिखाता है। हमें हमारे स्वयं के मन और अहंकार को समझने के लिए अधिक प्रयास करने होंगे और यह समझना होगा कि हम कौन हैं और यहाँ पर हम क्यों हैं और सिर्फ प्रेम ही हमारे ज्ञान का विस्तार कर सकता है, और जीवन की और हमारे आसपास के विश्व की समझ दे सकता है।
The Art of living © The Art of Living Foundation

मैं सभी प्रश्नों का उत्तर हूँ!!!


२१.०२.२०१२, बैंगलुरू आश्रम
प्रश्न : गुरूजी, कृपया बताएं, चित्त क्या होता है?
श्री श्री रविशंकर : चित्त आकाश तत्त्व की तरह है जो हमारे अन्दर भी विद्यमान है। चित्त चेतना भी है। चैतन्य शक्ति, चित्ती, चैतन्य, चित्त; यह कुछ ऐसा है जैसे बर्फ, पानी, भाप। बस अलग-अलग अवस्थाएं।

प्रश्न : हम मदिर में घंटियाँ क्यों बजाते हैं?
श्री श्री रविशंकर : क्योंकि इससे मन में चल रहे विचार थम जाते हैं, और मन इस क्षण में आ जाता है। ढोल, घंटी, शहनाई, नादस्वरम, शंख ये सब ऊंची आवाज़ में बजाने से दिमाग शांत हो जाता है। नहीं तो मन अशांत ही रहता है - वैसे ही जैसा आपने देखा होगा जब बच्चा रोता है तब माँ और उंची आवाज़ में चिल्लाती है, तभी बच्चा शांत होता है। हमारा दिमाग बच्चे की तरह है।
शोर में मन भटक नहीं पाता, सोच नहीं पाता और स्थिर हो जाता है। अतः इसका उपयोग यह एक तकनीक की तरह किया जाता है। बाहर का शोर मन के अन्दर के शोर को दबा देता है, और तब एक क्षणिक मौन का अनुभव होना चाहिए। ऐसा हो तो ध्यान की गहराई में मन के सारे शब्द अर्थहीन लगते हैं, शब्द जिन्होंने मन को परेशान कर रखा था। यानी, घंटीयों आदि का शोर, मन को आराम देता है। बौद्ध मठों में भी आपने बड़ी घंटियाँ देखी होंगी जो लगातार बजाई जाती हैं। शोर/शब्द से मौन की यह यात्रा बहुत महत्वपूर्ण हैं।

प्रश्न : ईश्वर ने कुछ लोगों को बहुत सुन्दर बनाया और औरों को उतना नहीं। क्या ऐसा पिछले कर्मों के कारण होता है?
श्री श्री रविशंकर : सुन्दरता देखने वाले की आँखों पर निर्भर करती है। क्या कोई असुंदर लगता है? उसकी माँ या दादी से पूछें, अपना बच्चा कभी बदसूरत नहीं लगता। और फिर, सुन्दरता क्या है? आज जो खूबसूरत है, वह कल बदल जाएगा; उतना सुन्दर नहीं लगेगा।
बाहरी नहीं, अन्दर की, आत्मा की सुन्दरता जो शाश्वत है, जो दिनो दिन बढ़ती जाती है। उम्र के साथ विवेक और परिपक्वता भी सुन्दरता बढ़ाते हैं। सिर्फ बाहरी सुन्दरता सब कुछ नहीं है।
केवल दिखने में ही कोई असुंदर हो ऐसा नहीं है। यदि कोई सज-संवर कर सुन्दर लगता भी हो, लेकिन यदि उसकी नीयत बुरी हो, मन में नकारात्मक भावनाएं हों, तो उसके आस-पास की ऊर्जा के कंपन से समझ में आ जाता है कि असलियत क्या है। अर्थात सुन्दरता मन और विचारों पर ज्यादा निर्भर करती है।   

प्रश्न : सात चक्रों और जीवन के सात स्तरों में क्या कोई सम्बन्ध है ?
श्री श्री रविशंकर : सिर्फ संख्या समान है।

प्रश्न : गुरूजी, अगले शुक्रवार बैंगलुरू में योग महोत्सव है, क्या आप लोगो से वहाँ आने को कह सकते हैं?
श्री श्री रविशंकर : हाँ, ताज सिटी बैंगलुरू में योगा रेव है। बहुत सुन्दर, ज़रूर जाएँ, शहर को मस्त कर दें!

प्रश्न : क्या मृत्यु के बाद जीवन होता है? कहते है कि सात जन्म होते हैं, क्या यह मानव-जन्म को मिला कर या इसके बाद होते हैं?
श्री श्री रविशंकर : हाँ, मृत्यु के बाद भी अगला जीवन होता है, हम बार-बार वापस आते हैं, जीवन सात ही हों, ऐसा ज़रूरी नहीं है। यह कोई भी संख्या हो सकती है।

प्रश्न : मौन का जीवन में क्या महत्व है? दिनचर्या में हम मौन कैसे रख सकते हैं?
श्री श्री रविशंकर : दिनचर्या में मौन रखने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन ज़रूरत से बातें ज्यादा भी न करें। मौन का महत्व यह है कि बोलने से पहले थोडा सोच सकें, अन्यथा बहुत बोलने से कभी-कभी खुद को समझ नहीं आता कि हम क्या बोले जा रहे हैं।

प्रश्न : गुरूजी, मैं सिर्फ सेवा, साधना और ज्ञान में रहना चाहती हूँ। लेकिन इन दिनों मेरा मन भटक जा रहा है जैसे लड़कों के प्रति आकर्षित होना, आदि। मै ऐसा नहीं चाहती। मै चाहती हूँ कि मेरा मन आप पर ही लगा रहे, मैं क्या करूँ?
श्री श्री रविशंकर : आपको शादी करनी है? बहुत बढ़िया! स्वयं एक अच्छा सा वर ढूंढ लें और शादी कर लें, या आर्ट ऑफ़ लिविंग वैवाहिकी में अपना नाम रजिस्टर करा लें, वे आपकी मदद कर देंगे।

प्रश्न : गुरूजी, ध्यान के समय कुछ लोगों के फोटो लिए गए और देखा गया कि उनके त्वचा पर छोटे सफ़ेद दाग है। यह भी कहा गया कि ये धूल के कणों का परावर्तन है।
श्री श्री रविशंकर : कोई बात नहीं, जब हम ध्यान करते हैं तब कई फ़रिश्ते और देवता हमारे आस-पास होते हैं।

प्रश्न : गुरूजी, मुझे शादी नहीं करनी है!
श्री श्री रविशंकर : शादी नहीं करना है? ठीक है, कोई बात नहीं।                    

प्रश्न : गुरूजी, कहा जाता है अमावस्या की रात घर से बाहर नहीं जाना चाहिए, ऐसा क्यों?
श्री श्री रविशंकर : पुराने समय में, जब बिजली नहीं थी, अमावस्या की रातें एकदम गहरी अँधेरी होती थीं। तब यह कहा जाता था कि बाहर न जाएँ, ताकि पैर सांप पर या गड्ढे में न पड़ जाए। हाँ, ग्रहों का भी थोडा असर होता है। इसका यह अर्थ नहीं है कि अमावस्या की रात में बिलकुल यात्रा नहीं करनी चाहिये|

प्रश्न : गुरूजी, जीवन का सार क्या है?
श्री श्री रविशंकर : जीवन का सार! बस यहाँ नियमित आकर बैठें, एक दिन स्वयं अनुभव हो जाएगा!

प्रश्न : मैं अपने विचारों को प्रभावी ढंग से कैसे व्यक्त कर सकता हूँ? मैं कुछ सोचता हूँ और कहता पूरी तरह से कुछ अलग हूँ
श्री श्री रविशंकर
: आपने पहले ही इस प्रश्न को प्रभावी ढंग से पूछा है, कि आप अपने विचारों को व्यक्त करना चाहते हो।
और अधिक एडवांस कोर्स करना है। क्या आप देख नहीं सकते कि आप में पहले से सुधार हुआ है?
आप में कितना सुधार हुआ है
? ५०% सुधार हुआ है? तो आपको पहले से ही पता है कि कैसे आप और ५०% सुधार कर सकते हैं। अधिक एडवांस कोर्स करे।
इसके अलावा बेसिक कोर्स दोहराने से। ऐसा नहीं सोचो कि मैंने पहले से ही बेसिक कोर्स एक बार किया
है, नहीं! यदि आप इसे दोहराते है, यह आप को हर बार एक उच्च ज्ञान की ओर ले जाता है।

प्रश्न : गुरुजी, अगर एक लड़का और एक लड़की शादी कर रहे हों, कुंडली मिलानी चाहिए या नहीं?
श्री श्री रविशंकर : आप कुंडली मिलाते हैं, यह ठीक है। अगर मेल होता है यह वास्तव में अच्छा है, लेकिन अगर कुंडली से मेल नहीं होता है, यह ठीक है। बस प्रार्थना करते हैं! सब कुछ स्वीकार्य है।

प्रश्न : गुरुजी, हम एक गौशाला स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन हमें अधिक सफलता प्राप्त नहीं हो रही है?
श्री श्री रविशंकर : कुछ भी आप शुरू करते हैं, आपको शुरू में कुछ कठिनाई का सामना करना पड़ेगा। कृषि के क्षेत्र में भी, इतनी खेती करने के बाद, वहाँ कोई लाभ नहीं है, क्या यह नहीं है?
थोडी  Alpha
कठिनाई वहाँ आएगी।

प्रश्न : गुरुजी, नेत्र दान का क्या महत्व है?
श्री श्री रविशंकर : नेत्र दान का महत्व है कि आप के बाद भी, आपकी आँखें किसी के लिए उपयोगी होंगी।

प्रश्न : गुरुजी, एक बार लोग कोर्से करने के बाद धीरे धीरे वे इस से दूर चले जाते हैं। उन सभी को एकजुट करने के लिए योजना का सुझाव दें। इसके अलावा, मैं कल घर जा रहा हूँ, कृपया मेरे साथ रहना!
श्री श्री रविशंकर : कार्यक्रमों और हर जगह सत्संग का संचालन और उनमें से हर एक के लिए कुछ जिम्मेदारी दें। यदि आप उन्हें जिम्मेदारी देंगे तो वे करेंगे।
यदि जो मेहमान के रूप में आए हैं, हम सोचते हैं और उनके साथ मेहमान के रूप में व्यवहार करते हैं, तो वे आते हैं और मेहमान के रूप में जाएंगॆ। लेकिन अगर हम उन्हें जिम्मेदार लोगों के रूप में देखते हैं, तो उन्हें दिलचस्पी समझ में जाएगी
खुशी से घर जाओ। मैं हमेशा आपके साथ हूँ, सब श्रीलंका और तमिलनाडु के लोग।

प्रश्न : गुरुजी, यह कहा जाता है कि जब आपकी कृपा होती है तो हमें हमारे सवालों का जवाब मिलता है। और कुछ लोगों का कहना है कि हमें आप से सवाल पूछते रहना है जब तक आप जवाब नहीं देते तो कौन सा सही तरीका है? कैसे हमें आपसे जवाब मिलता है?
श्री श्री रविशंकर : अब आप ने पूछा है, मैं सभी सवालों का जवाब हूँ। मैं क्या जवाब दे सकता हूँ? क्या आपके मन में कोई प्रश्न रहता है जब आप मेरे सामने आते हैं? सब कुछ साफ हो जाता है, है ना? तो फिर यह ठीक है।
उपनिषदों में, कहा है कि सभी सवाल गायब हो जाते है जब दिल खुल जाता है।
मुझे लगता है कि मैंने इसके बारे में चार दिन पहले कहा था। यह होता है, क्या ऐसा नहीं है? आपके प्रश्न गायब हो जाते हैं, सही? हाँ! यहाँ हम कुछ सवाल लाने के लिए प्रयास कर रहे हैं कि हम कल के विपरीत कुछ बातचीत कर सकें।
अन्यथा, मुझे कुछ नहीं कहना है और आपको कुछ नहीं सुनना है और आप खुश हैं और मैं खुश हूँ। हम खुश-खुश दुनिया में हैं। तो हम शब्दों के माध्यम से बात नहीं करते, हम ऊर्जा के माध्यम से बात करते हैं, क्या ऐसा नहीं है ?

प्रश्न : गुरुजी, राजस्थान में, सती माता में गहरी आस्था है। शिव की पत्नी को सती के रूप में पूजा जाता है। सती माता राजस्थान की और शिव सती एक ही हैं या अलग?
श्री श्री रविशंकर : सभी शक्ति का रूप हैं, केवल एक ही सती है। यह शिव शक्ति है जिस की अलग अलग रूपों में लोगों द्वारा पूजा की जाती है।
लेकिन अनुष्ठान है कि कोई सती बन है। एक रस्म है, जहां विधवा अपने पति की चिता पर खुद जल जाती है। अब यह कहीं नहीं है। यदि कोई परंपरा होती महाभारत में कुंती सती बन जाती, लेकिन कुंती सती कभी नहीं नी इसी तरह, कई अन्य मातृ लोग है जिनके जीवन अपने पति के मरने के बाद भी अस्तित्व में थे। वे सती नहीं हो गए।
यह मध्य युग में कहीं था कि इस प्रवृत्ति को शुरू कर दिया। यह नहीं किया जाना चाहिए। यह सही नहीं है।
शास्त्रों में, हमारे वेदों में, यह कहीं नहीं लिखा है कि बेहतर आदमी और औरत कम है, या औरत बेहतर है और आदमी कम है। ऐसा नहीं है। सब बराबर हैं। महिला, पुरुष, सभी एक ही हैं।
जाति पर आधारित भेदभाव नहीं करें, धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करें, लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं करें। व्यक्ति आदमी या औरत है के आधार पर भेदभाव नहीं करें। सभी में एक देखो। हर कोई एक ही चमक (नूर), एक ही आत्मा है। बस मुझे यहीं कहना है।

प्रश्न : हमारे देश में, बहुत सारे आध्यात्मिक संगठन हैं, लेकिन वे किसी भी आम कारण के लिए एक साथ शामिल नहीं है। यदि विभाजन रहता है, दुनिया कैसे एक परिवार बन जाएगी?
श्री श्री रविशंकर : हाँ! हम तैयार हैं। अन्य संगठनों को भी मैंने आमंत्रित किया है, शामिल होने के लिए और सबको साथ लेकर चलने के लिए। रवीन्द्रनाथ टैगोर की एक कविता है, ‘एकला चलो रे, अकेले ही जाना है, अगर कोई मिलता है; ठीक है और अच्छा है, लेकिन आप आगे बढ़ते रहें।

प्रश्न : गुरुजी, मुझे जानना है कि क्या गुरु भी अपने भक्तों के सामने असहाय महसूस करते हैं
श्री श्री रविशंकर : बिल्कुल! वे अपने भक्तों के नौकर हैं।

प्रश्न : गुरुजी, हम हमारे सेवा में यम (संयम) और नियम (अनुशासन) का अभ्यास कैसे कर सकते हैं?
श्री श्री रविशंकर
: केन्द्रित हो, नियमित रूप से ध्यान, और अपने मन में संकल्प कि आप यम और नियम का अभ्यास करना है। अपना संकल्प मजबूत रखें। एक या दो बार, भले ही आप इस से फिसल जाएँ, आप वापस आ जायेंगे।

प्रश्न : गुरुजी, आपको हमारी समस्याओं के बारे में कैसे पता लता है इससे पहले कि हम उन्हें कहते हैं? और इससे पहले कि हम कुछ करें, वे हल हो जाती हैं और मुझे लगता है कि यह सब आपकी वजह से है। कृपया मुझे बताओ कि यह कैसे होता है?
श्री श्री रविशंकर
: मैं आपको अपना रहस्य क्यों बताऊं?

The Art of living © The Art of Living Foundation