जब कोई
भी व्यक्ति का जन्म होता है तो वह सबसे पहला कृत्य जो करता वह सांस लेता है। जब कोई
व्यक्ति दुनिया छोड़ देता है तो भी अंतिम कृत्य के रूप में सांस छोड़ देता है। दिन
भर में भी व्यक्ति सबसे ज्यादा जो कृत्य करता है वह सांस लेना होता है। इसके बावजूद
भी व्यक्ति अपनी सांस के प्रति सजग नहीं है।
मन की प्रत्येक भावना उत्पन्न होने पर व्यक्ति एक विशेष लय से
सांस लेता है जैसा कि अगर व्यक्ति बहुत क्रोधित है तो उसकी सांस की गति तेज और छोटी
हो जाती है। वैसे ही सांस की गति लंबी और गहरी हो जाती है यदि मन शांत और प्रसन्न है।
इसका यह तात्पर्य है कि मन में उठने वाली हर भावना का संबंध सांस से है और हर भावना
के लिए सांस की गति या लय बदल जाती है। भावनायें हमारे मन का अभिन्न हिस्सा हैं और
उसका सीधा संबंध सांस से है।
विश्व के
प्रत्येक धर्म आपको आपके मन पर कैसे विजय पाना है, यह सिखाते हैं। जब आप इस बात से
सजग हो जाते हैं कि आपके मन का सीधा संबंध आपके सांस से है तो क्यों न आप अपनी सांसों
को अपने वश में करना सीख लें| यदि आप ऐसा कर सकें तो मन अपने आप आपके वश में हो जायेगा।
सांस ही जीवन है और सांस के द्वारा मन पर विजय पाना ही जीवन जीने की कला है।
आर्ट ऑफ़
लिविंग (जीवन जीने की कला) ६ दिवसीय प्रशिक्षण शिविर में आपको सांस के द्वारा मन पर
विजय पाने की कला सिखाई जाती है। इस कला या तकनीक का नाम सुदर्शन क्रिया है। सुदर्शन
क्रिया के निरंतर अभ्यास से व्यक्ति अपने सांसों के द्वारा अपने मन पर विजय पाने लगता
है।
मन का एक
स्वभाव होता है कि वह भूतकाल में जाकर अपने साथ हुई खुशी के पल या दुख के क्षण को याद
करता रहता है या मन भविष्य में चला जाता है। भविष्य के बारे में विचार करते हुए व्यक्ति
या तो खुश होता है कि उसका भविष्य बहुत अच्छा है या इस बात से दुखी हो जाता है कि उसका
भविष्य बहुत बुरा है और उसके साथ सब बुरा होने वाला है। जो बीत
गया है याने कि भूतकाल में बीत गये अच्छे और बुरे क्षण के बारे में आप कुछ नहीं कर
सकते हैं और भविष्य आपके हाथ में नहीं है। आप भविष्य को अच्छा बनाने के लिए सिर्फ प्रयास
कर सकते हैं।
मन की यह
भूतकाल और भविष्यकाल में जाने की प्रवृत्ति को सुदर्शन क्रिया के निरंतर अभ्यास से
मन को वर्तमान में लाया जा सकता है। जब व्यक्ति का मन वर्तमान में होता है तो वह अपने
प्रत्येक कार्य में अपना सौ प्रतिशत लगा सकता हैं और निश्चित ही सौ प्रतिशत प्रयास
करने से कोई भी कार्य का परिणाम अच्छा ही होगा। आप जब किसी कार्य में अपना सौ प्रतिशत
दे देते हैं तो फिर आप उसके परिणाम से परेशान नहीं होंगे क्योंकि आपको यह पता होता
है कि आपने सौ प्रतिशत प्रयास किया।
सुदर्शन
किया के निरंतर अभ्यास से मन वर्तमान में रहने लगता है और आप सभी कार्यों में अपना
सौ प्रतिशत प्रयत्न देने लगते हैं।