ललक चैतना के परिपक्व होने का संकेत है!!!


२२
२०१२ बैंगलुरु आश्रम
मई

प्रश्न : प्रिय गुरूजी, योगसार उपनिषद में आपने कहा है कि भगवान अवैयक्तिक है| गुरु दोनों है, व्यक्तिगत और ईश्वरीय| क्या आप इसके बारे में हमें और बता सकते हैं? भगवान अवैयक्तिक कैसे हैं?
श्री श्री रविशंकर : हाँ, यह दोनों है| जैसे आप तत्व है, फिर भी अरूप है| आपके शरीर का रूप है पर क्या आपके मन का कोई रूप है? नहीं| उसी प्रकार, यह प्रत्यक्ष ब्रह्माण्ड भगवान का रूप है और अप्रत्यक्ष चेतना, अंतरिक्ष एक अरूप रूप है|

प्रश्न : गुरूजी, आपने उपनिषदों में कहा है कि जब तक हमारी आत्मा अपने आप को प्रकट नहीं करना चाहे तब तक हम में ज्ञानोदय नहीं होता| इस पूरे चित्र में लालसा कहाँ आती है? मुझ में कुछ है जो स्वयं को जानना चाहता है पर वो सामने नहीं आता| क्यों?
श्री श्री रविशंकर : हाँ| जब फल पक जाता है तो उसका रंग बदल जाता है| एक सेब जब पक जाता है तो उसका रंग बदल जाता है| जैसे पपीता पकने पर पीले रंग का हो जाता है| उसी तरह ललक चेतना के परिपक्व होने का संकेत है|

प्रश्न : गुरूजी, आत्मा एक है, तो फिर हमारे कर्मों को एक शरीर से दूसरे शरीर तक क्या ले के जाता है?
श्री श्री रविशंकर : हाँ, आत्मा दो स्तर पर होती है; सर्वात्मा, और जीवात्मा| जैसे गुब्बारे के अंदर भी हवा होती है, पर वह गुब्बारे के भीतर भी है, ठीक है न? वह जीवा है| तो जो छाप है वह जीवा बनती है पर हवा जो अंदर है, वह ही बाहर है|

प्रश्न : प्रिय गुरूजी, हर चीज़ का दुष्प्रभाव होता है| ज्ञानोदय के दुष्प्रभाव क्या हैं?
श्री श्री रविशंकर : इसका कोई उल्टा प्रभाव नहीं है, केवल सीधा प्रभाव है| यह सीधा असर करता है|

प्रश्न : प्रिय गुरूजी, हमें बताइए कि श्याम ऊर्जा क्या है? आपने इसके बारे में हाल ही में एक सत्संग में कहा था| इन्टरनेट पर किये व्याख्यानों से समझ पाना कठिन है|
श्री श्री रविशंकर : श्याम ऊर्जा के बारे में बहुत सा ज्ञान है| सारा जगत श्याम ऊर्जा से भरा है| जब वे कहते हैं कि सूर्य गोल है, वो इसलिए क्योंकि सूर्य के आसपास श्याम ऊर्जा है जो उसे गोल रख रही है| सारे तारे, ग्रह आदि सब श्याम ऊर्जा में होते हैं|
जैसे आसमान श्याम है पर सितारे रौशनी का स्रोत हैं| हम सोचते हैं कि ये तारे वस्तु हैं पर विज्ञान कहता है नहीं, यह सितारों के बीच की जगह है जो श्याम ऊर्जा से भरी है, एक गहरे महासागर की तरह| आप उसे नहीं देख सकते पर सितारों के बीच की इस ऊर्जा को श्याम ऊर्जा कहते हैं|
यही शिव तत्व है| पुराने ज़माने के लोग यह जानते थे और उसे शिव तत्व के नाम से जानते थे; सर्वं शिवामयम जगत| सारे ब्रह्माण्ड को शिव तत्व ने जोड़ रखा है|

प्रश्न : अष्टवक्र गीता में आपने बात की है कि महात्मा गाँधी की एक बहुत ही हिंसक मौत हुई थी| क्या आप कुछ कह सकते हैं कि ईसा मसीह को क्यों सूली पर जान देनी पड़ी?
श्री श्री रविशंकर : मुझे नहीं लगता हमें इस पर बहुत ज़्यादा गौर करना चाहिए| क्यों? क्या हुआ और कब? इस ब्रह्माण्ड का और हर घटना के होने का एक ही कारण है, और वो है; परम करना करण्य, सब कारणों का कारण एक ही शिव तत्व, ईश्वरीय इच्छा है| बस इस विषय पर इतना ही समझ लेते हैं|

प्रश्न : कर्म या पाप कौन करता है? क्या वो शरीर है या आत्मा? और यदि आत्मा पाप करती है तो शरीर को क्यों सहना पड़ता है?
श्री श्री रविशंकर : देखो, इन सब बारीकियों और भ्रांतियों में मत जाये| यदि आप इनके बारे में जानने के इच्छुक हैं, तो अनुसंधान करे ;मैं कौन हूँ? क्या मेरा कर्म है या नहीं? यदि कर्म है तो कहाँ है? यह सब आपको बैठ कर सोचना है|
यदि मैं आपको उत्तर दूंगा, तो वो उत्तर आपको संतुष्ट नहीं करेगा क्योंकि वो बराबर अनुभव के स्तर पर नहीं होगा| इसलिये, यदि आप मुझे सुनेंगे, फिर कुछ दिन बाद आपको कुछ और प्रश्न होंगे तो बार बार आप उसी राह पर रहेंगे| उचित है कि आप मौन में रहें, गहरे ध्यान में जायें, और कुछ प्रश्नों के लिये उत्तर स्वयं ही सहज प्रकट हो जायेंगे|

प्रश्न : गुरूजी, अधिकतम प्रयत्न करने के बाद भी मैं असफल क्यों हो जाता हूँ? ऐसी स्थिति में मैं क्या करूं?
श्री श्री रविशंकर : यदि आप सही में वो चाहते हैं जिस ओर आपके प्रयत्न हैं तो उसे पकड़ कर रखिये| पर यदि आपको लगता है उस कार्य में और प्रयत्न करना व्यर्थ है, तो किसी और कार्य की तरफ बाद जाये, जो आसान हो|
एक बार भारत में एक प्रधान मंत्री थे| वे कुछ महीनों के लिए ही इस पद पर थे|
इन सज्जन ने मुझे दिल्ली के बहार अपने खेत पर बुलाया| मैं वहां पर गया| जब मैं वहां था, वे बोले, “गुरूजी, ४० वर्ष तक मैंने सब कुछ किया, अच्छे और बुरे खेल खेले इस कुर्सी को पाने के लिए, प्रधान मंत्री होने के लिए| अब मैं प्रधान मंत्री हूँ तो यह पाता हूँ कि इस कुर्सी के लिए मैंने इतना संघर्ष किया और अब मुझे यह अर्थहीन लगती है| पहले मैं आराम से सो सकता था पर अब ५० पुलीस वाले पहरा देते हीं और मैं अपने ही घर के बाहर नहीं बैठ सकता| जीवन भर का संघर्ष व्यर्थ था|”
मैंने कहा, “इसे समझने के लिए आपको इतने वर्ष लगे| कोई बात नहीं, अब तो आपको एहसास हुआ| बहुत लोग यह समझ भी नहीं पाते|”
जो उत्तर अफ्रीका के शासकों के साथ हो रहा है, हजारों लोगों को मार रहे हैं, केवल सत्ता के लिए| यह मूर्खता है| इन सज्जन को कम से कम इसकी व्यर्थता का एहसास तो हो गया| मैंने उनसे कहा, “आप इस बारे में किस्मत वाले हैं”|
इसी तरह, यदि आप दिल से कुछ पाना चाहते हैं, तो अपना सारा जीवन, सारी शक्ति उसमें डाल दें| पर यदि आपको लगता है कि कुछ और इस से बेहतर है, तो अपने प्रयत्न उसमे डाल दें, उस दिशा में बढ़ जायें|
एक दिन एक युवक मेरे पास आये और कहने लगे कि वो सी ए की परीक्षा में सात वर्ष से असफल हो रहा है और उसके माता पिता चाहते हैं कि वो इस बार भी परीक्षा में बैठे| मैंने कहा, “तुम ऐसा क्यों करना चाहते हो? तुम सात बार असफल हो चुके हो! क्या तुम्हें इस बार सफलता की उम्मीद है?” वह बोला, “नहीं, मुझे सफल होने की कोई उम्मीद नहीं है”|
तो जब आपको कोई उम्मीद नहीं है सफल होने की तो क्यों समय बर्बाद करना? कोई व्यवसाय करो| कोई और नौकरी करो| यह अधिक समझदारी की बात होगी|

प्रश्न : मैं हमेशा ईर्षालु और अहँकारी हो जाता हूँ, और दूसरों से अपनी तुलना करता रहता हूँ| मैं इस आदत से छूटना चाहता हूँ| मुझे क्या करना चाहिए?
श्री श्री रविशंकर : आपका इस आदत को छोड़ने की चाह करना अर्थात आप आधे लक्ष्य तक पहुँच गए हैं| अपने प्रयत्न चालू रखिये| साधना और सत्संग में और रहिये और आप इस आदत से बाहर आ जायेंगे|

प्रश्न : गुरूजी, भगवान का नाम जपने का क्या महत्व है? महाराष्ट्र में कहते हैं यदि व्यक्ति विट्ठल का नाम जपता रहे, तो उसे योग के सारे फायदे मिल जाते हैं|
श्री श्री रविशंकर : हम तो यह हर शाम सत्संग में करते हैं| हम ईश्वर का नाम जपते हैं| हाँ, जैसे जप करते करते आप अजप की स्थिति में आ जाते हैं, जहाँ आप मंत्र दोहराने के लिए दिमाग से प्रयत्न लगाए बिना ही जप करने लगते हैं, आप शांत हो जाते हैं और उस जप से आगे एक समाधि की स्थिति में चले जाते हैं| इसे भाव समाधि कहते हैं|
भाव समाधि एक ऐसा पहलू है जिसका हमें अभ्यास करना चाहिए| पर ज्ञान के बिना भक्ति परिपक्व नहीं होती| ज्ञान और भक्ति दोनों साथ साथ चलने चाहिए|

प्रश्न : गुरूजी, क्या अंडा शाकाहारी है या मांसाहारी?
श्री श्री रविशंकर : सत्संग में बैठकर अंडे के बारे में चर्चा करना, मेरे ख्याल से यह उचित नहीं है| अंडे को छोड़िये, ब्रह्माण्ड के बारे में बात करिये| यहाँ हम शरीर और ब्रह्माण्ड के बारे में चर्चा करते हैं, अंडे के बारे में नहीं| आप गूगल में देख सकते हैं, कि अंडे के क्या फायदे और नुकसान हैं|
कल ही मैंने एक डॉक्टर से सुना, जिन्होंने काफी शोध किया है, कि हमें हर रोज़ १० मिनट के लिए सूरज को ताकना चाहिये| ऐसा कहते हैं, कि हमारी आँखों में कुछ अनूठी कोशिकाएं होती हैं, जो सौर ऊर्जा को सोख लेती हैं, और शरीर में रक्त बनाती हैं| यह कुछ कुछ फोटोसिन्थेसिस जैसा होता है| सूरज की किरणों को सोख कर, पेड़-पौधे उसे क्लोरोफिल में परिवर्तित कर देते हैं|
सूरज की रोशनी में से यही पदार्थ हमारी आँखों की रक्त कोशिकाएं सोख लेती हैं, और फिर उन्हें रक्त में परिवर्तित कर देती हैं| वह बहुत ही अच्छी प्रस्तुति थी| इसलिए, रक्त को शुद्ध करने के लिए या उसका उत्पादन बढ़ाने के लिए, सूरज की ओर ताकिये | हमारे पूर्वज भी तो यही कहा करते थे!
संध्या-वंदन का क्या अर्थ होता है? आप अपने हाथों में जल लेकर, उगते हुए सूरज की तरफ मुहँ करके खड़े हो जाएँ, और तब तक सूरज की तरफ ताकते रहें, जब तक कि वह सारा पानी आपके हाथों से निकल न जाए| आप ऐसा तीन बार करें, और इसमें करीब १० मिनट लगते हैं| इसके बाद आप सूरज की ओर देखते हुए, गायत्री मन्त्र का उच्चारण करें|
इसी तरह शाम को भी करें|
जब आप सूरज की तरफ ताकते हैं, तो शरीर में ऊर्जा का प्रसारण होता है|
ऐसा भी कहते हैं कि हमें ज्यादा से ज्यादा कच्चा और प्राकृतिक भोजन, कच्ची सब्जियां, फल और जूस लेने चाहिये; यही हम सबको लेना चाहिये| हमारे भोजन में ८० प्रतिशत खाना कच्चा होना चाहिये और केवल २० प्रतिशत पका होना चाहिये| और उन्होंने बहुत से लोगों के उदाहरण दिए, जिन्हें ब्रेन ट्यूमर था, कैंसर था, जो केवल तीन हफ़्तों में कच्चे खाने और सूरज की ओर ताकने से ही ठीक हो गये|
हाँ, बेशक सुदर्शन क्रिया से भी लाभ होता है|
और हाँ, वह क्रीम जो हम अपने शरीर पर लगते हैं, अगर आप उस क्रीम को खायेंगे, तो आप मर जायेंगे, क्योंकि उनमें बहुत से हानिकारक केमिकल होते हैं| यही क्रीम है, जिसे हमारा शरीर सोख लेता है| यह सीधा हमारे रक्त-प्रवाह में शामिल हो जाती है| तो इसलिए, हमें अपने शरीर पर कभी भी ऐसा कुछ नहीं लगाना चाहिये, जिसे हम खा न सकें|
इसीलिये, आयुर्वेदिक क्रीम के अलावा कोई भी और क्रीम लगाने का कोई फ़ायदा नहीं है| चूहे मारने की दवा भी क्रीमों में मिलाई जाती है, तो कोई अगर इसे खा ले, तो वह मर जाएगा| त्वचा पर लगाने से कोई भी धीरे धीरे मर जाएगा|
पहले के दिनों में, हम मिट्टी के उघटन लगाया करते थे, दूध की मलाई, बेसन और हल्दी| हमें ये सब इस्तेमाल करने चाहिये, त्वचा को साफ़ रखने के लिए| यही हमें करना चाहिये|
मैं इसके बारे में कुछ सोचता हूँ| हमें कुछ इस तरह के और उत्पाद बनाने होंगे जो बेसन और ऐसी चीज़ों से बने हैं, जो कि खाए भी जा सकते हैं, और शरीर पर लगाये भी जा सकते हैं| मैं अपने डॉक्टर से बात करूँगा, कि वे कुछ ऐसी क्रीम बनाएँ, जिसमे कोई ज़हरीले पदार्थ न हों|

प्रश्न : क्या ज्ञानोदय होने से मनुष्य और अधिक संवेदनशील नहीं हो जाता? अगर हाँ, तो बहुत से ज्ञानी लोग क्यों अवांछित रूप से व्यवहार करते हैं?
श्री श्री रविशंकर : सुनिए, इस दुनिया में हर तरह के लोग होते हैं| अच्छे लोग हैं, साधारण लोग हैं और कुछ निकम्मे लोग भी हैं, और आपको इन सबके साथ चलना है| निकम्मे लोग आपके संकल्प को और अधिक मज़बूत करेंगे, साधारण लोग आपकी कुशलता को बाहर निकालेंगे और अच्छे लोग हमेशा आपको प्रोत्साहन देंगे|
तो आपको इन तीनों तरह के लोगों को स्वीकार करना है|

प्रश्न : जब मुझे मोक्ष के बारे में कुछ पता ही नहीं है, तो मुझे मोक्ष पाने की इच्छा कैसे आएगी?
श्री श्री रविशंकर : जब आपको बंधन का एहसास होगा, तभी आपको मोक्ष पाने की इच्छा होगी| जब आप सुखी है, और किसी तरह का बंधन महसूस नहीं करते, तब आपको मोक्ष पाने की अभिलाषा नहीं होगी|
जो खुशी की इच्छा नहीं रखता, उसे मोक्ष प्राप्त होता है, और जिसे मोक्ष पाने की भी इच्छा नहीं होती, उसे परम प्रेम प्राप्त होता है|
जो लोग प्रेम में होते हैं, उन्हें मोक्ष की ज्यादा परवाह नहीं होती| एक प्रेमी सोचता है, कि मोक्ष क्या है? मुझे इसकी ज़रूरत नहीं है| गोपियाँ यही कहतीं थीं हमें मोक्ष की ज़रूरत नहीं है, हमें किसी ज्ञान की ज़रूरत नहीं है, बस केवल प्रेम में रहने से ही हम प्रसन्न हैं|
प्रेम का स्वभाव ही मोक्ष है|

प्रश्न : गुरूजी, धर्म का ईश्वर के साथ क्या सम्बन्ध है?
श्री श्री रविशंकर : ऐसा क्या है, जिसके साथ ईश्वर का सम्बन्ध नहीं है, यह बताईये? ईश्वर का धर्म के साथ भी सम्बन्ध है, और अधर्म के साथ भी सम्बन्ध है| अधर्म का विनाश कर, धर्म की सत्ता कायम करना, यह भी ईश्वर की जिम्मेदारी| इसलिए ईश्वर हर चीज़ से संबद्ध है|
इसी तरह, पूजा के अनुष्ठान में कहते हैं, धर्मय नमः, अधर्मये नमः| हम दोनों को नमः कहते हैं| यह संसार धर्म और अधर्म का मिश्रण है, और ईश्वर का दोनों के साथ रिश्ता है; अधर्म का विनाश और धर्म की स्थापना|

प्रश्न : शिव तत्व क्या है?
श्री श्री रविशंकर : जब आप कहें, यह नहीं, यह नहीं, यह नहीं, और सब कुछ अलग हटा दें; तब जो बचता है, वही शिव तत्व है|

प्रश्न : गुरूजी, मैंने एक ऑनलाइन व्यापार में बहुत सा पैसा लगाया और वह सारा डूब गया| तब से मुझे सत्संग में कोई दिलचस्पी नहीं रह गयी| मुझे क्या करना चाहिये?
श्री श्री रविशंकर : सुनिए, सब कुछ एक न एक दिन चला जाएगा, हाँ? आपको भी जाना है और मुझे भी जाना है| आम तौर पर, पहले हम जाते हैं, और उसके बाद हमारा व्यापार जाता है| यहाँ पर व्यापार पहले चला गया और उसके पीछे पीछे हम जायेंगे| इसलिए, जो चला गया, उसके बारे में भूल जाईये और आगे बढ़िए|
जब आप पैदा हुए थे, तब तो आप अपने व्यापार के साथ नहीं आये थे| जब आप एक छोटे शिशु थे, किसी ने आपकी देखभाल करी, है न? किसी ने आपको भोजन दिया, आपका हाथ पकड़ कर चलना सिखाया, और आपको सुलाया| इसी तरह कोई न कोई आपकी अब भी देखभाल करेगा|
जिंदगी चलती रहती है, आप किसी चीज़ के बारे में चिंता मत करिये, और बस आगे बढ़ते रहिये|
हाँ, आपको दुःख ज़रूर होगा, आखिर आपने अपनी जिंदगी भर की कमाई किसी में लगाई और वह फेल हो गया, यह स्वाभाविक है कि आपको कष्ट होगा, लेकिन आप अपने कष्ट को त्याग करने के लिए बिल्कुल सही जगह आये हैं|

प्रश्न : लालच का अंत कहाँ है?
श्री श्री रविशंकर : कब्रिस्तान में; आप वहां लालची नहीं हो सकते|
यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है, कि लालच ने हमारे समाज में इतनी जड़ पकड़ ली है, बल्कि पूरी दुनिया में ही| ऐसा मत सोचिये, कि भ्रष्टाचार केवल भारत में ही है| मैं जहाँ भी जाता हूँ, यही बात है, बुल्गारिया में भ्रष्टाचार, रूस में भ्रष्टाचार, यूक्रेन में भ्रष्टाचार, हर देश भ्रष्टाचार के कारण त्रस्त है|
ग्रीस में भयंकर भ्रष्टाचार है; वह देश डूब गया है भ्रष्टाचार के कारण| बहुत से देशों में भ्रष्टाचार बहुत बड़ी समस्या है, ऐसा सिर्फ भारत में ही नहीं है|

प्रश्न : गुरूजी, अनहत नाद क्या होता है? उसे कैसे बनाते हैं और उसके फायदे क्या हैं?
श्री श्री रविशंकर : अनहत नाद का अर्थ ही है, कि जिसे किन्हीं दो चीज़ों से उत्पन्न नहीं किया जा सकता, बल्कि वह स्वतः ही उभरता है| आप ध्यान में गहन जायें, सिर्फ ध्यान में ही उसे कभी कभी सुना जा सकता है| ऐसा ज़रूरी नहीं है, कि हर एक किसी को उसे सुनना चाहिये| किसी को अनहत नाद सुनायी पड़ सकता है, किसी को कोई प्रकाश दिख सकता है, किसी को एक उपस्तिथि महसूस हो सकती है,अलग अलग प्रकार के अनुभव हो सकते हैं|

प्रश्न : गुरूजी, हमारी हिंदू पुराणों में कहते हैं, कि यह पृथ्वी एक कोबरा के सिर पर टिकी हुई है, और जब वह कोबरा अपना सिर उठाता है, तो पृथ्वी हिल जाती है| इसके पीछे क्या रहस्य है?
श्री श्री रविशंकर : देखिये, दो तरह के पृथ्वी-बल होते हैं, एक होता है केन्द्राभिमुख बल (सेंटरीपीटल फ़ोर्स) और एक केंद्रत्यागी बल (सेंटरीफ्युग्ल फ़ोर्स)| इन बलों की गति सीधी नहीं होती, बल्कि एक सर्प की तरह होती है| यह तथ्य हमारे पूर्वजों को ज्ञात था| पृथ्वी साँप के सिर पर नहीं टिकी है, लेकिन साँप से उनका अर्थ था, केन्द्राभिमुख बल, और वह जिसे केंद्रत्यागी बल कहते हैं| तो यह तथ्य इन प्रकार उनके द्वारा समझाया गया था| उदाहरण के लिए, भगवान शिव गले में सर्प लिए बैठे हैं,इसका अर्थ है, कि वे गहन ध्यान में हैं, जहाँ उनकी आँखें बंद हैं, जिसका अभिप्राय है कि वे सो रहें हैं; लेकिन वे सो नहीं रहें, अंदर से वे जागरूक हैं| इसे व्यक्त करने के लिए दिखाया गया है, कि शिवजी के गले में एक सर्प लटका हुआ है| नहीं तो क्या कारण है, कि भगवान शिव ने गले में सर्प लटका रखा है? अरे वे तो ब्रह्माण्ड के स्वामी हैं, क्या उन्हें कुछ और नहीं मिला गले में पहनने के लिए? ब्रह्माण्ड के स्वामी चाहें तो अपने गले में अलग अलग तरह के हार पहन सकते हैं, वे एक साँप को गले से क्यों लटकाएंगे? नहीं, हमारे पूर्वजों ने जो भी कुछ कहा, उसके पीछे इतने गहरे रहस्य छुपे हैं|
इसी तरह, पृथ्वी शेष नाग पर टिकी है , नाग मतलब केन्द्राभिमुख बल| एक साँप कभी भी सीधी चाल नहीं चलता, वह घुमावदार तरीके से आगे सरकता है| इसे केन्द्राभिमुख बल कहते हैं| केन्द्राभिमुख बल अर्थात वह जो सीधा नहीं जाता, और पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है, और साथ साथ सूरज के चारों ओर चक्कर भी लगाती है| तो ये दो तरह के बल हैं ,केन्द्राभिमुख बल और केंद्रत्यागी बल| इसी को पूर्वजों ने कोबरा के रूप में व्यक्त किया है|
और कोबरा किस पर खड़ा है? वह एक कछुए पर स्थित है, और कछुआ प्रतीक है स्थिरता का| यह बहुत रोचक है!
अब यह भी कहते हैं, कि अगर बृहस्पति (जुपिटर) ग्रह नहीं होता, तो पृथ्वी ग्रह बच नहीं सकती थी| बृहस्पति ग्रह क्या करता है, कि बाहरी अंतरिक्ष से जो भी उल्का आते हैं, ब्रहस्पति उनको अपनी तरफ खींच लेता है, और पृथ्वी की रक्षा करता है| बाहरी अंतरिक्ष से इतने सारे उल्का, छोटी आकाशीय वस्तुएं बरसती रहती हैं और बृहस्पति क्या करता है, उन सबको अपनी ओर खींच लेता है और पृथ्वी को बचाता है|
नासा ने इस बारे में बहुत ही सुन्दर एक प्रस्तुति बनाई है|
हमने कहा था, कि गुरु ही इस पूरे ब्रह्माण्ड के रक्षक हैं| इसलिए, इस ग्रह को भी यही नाम दिया गया, गुरु (जुपिटर) क्योंकि यह पृथ्वी की रक्षा करता है|

ज्ञान ही है, जो हर बुरे सपने को एक सुन्दर सपने में परिवर्तित कर देता है!!!


१७
२०१२ सोफिया, बुल्गारिया
मई
प्रश्न : क्या हम अपनी वास्तविकता स्वयं ही बनाते हैं, या फिर सब कुछ पहले से ही निर्धारित है?
श्री श्री रविशंकर : क्या आपके घर में पालतू कुत्ता है? (उत्तर: हाँ)
देखिये, जब आप पार्क में जाते हैं, तब आप उसके गले में पट्टा बाँध के ले जाते हैं| यह वैध है| अब जितनी लंबी उस पट्टे की रस्सी है, उतना ही स्वतंत्र आपका कुत्ता है| सही कहा न? वह या तो पट्टे के एकदम पास बैठ सकता है, या फिर जितनी लंबी रस्सी है, उतना दूर जा सकता है| इतनी ही उसकी स्वतंत्रता है| अगर आपने किसी कुत्ते को एक ही क्षेत्र में रहने के लिए ट्रेन(सिखाया) किया हुआ है, तो फिर उसकी स्वतंत्रता उतनी बड़ी हो जाती है| वह २० कि.मी. के दायरे में ही रहेगा|
इसी तरह, जीवन में प्रत्येक व्यक्ति के पास कुछ स्वतंत्रता होती है, और कुछ चीज़ें निश्चित हैं|
मनुष्यों में यह स्वतंत्रता होती है, क्यों क़ि उनमें बुद्धि होती है| पशुओं का जीवन निर्धारित होता है| वे कभी भी बहुत ज्यादा नहीं खाते| उनका जीवन प्रकृति के साथ लय में होता है, लेकिन हम मनुष्यों में आज़ादी होती है, कि या तो हम प्रकृति के साथ लय में रहें, या फिर प्रकृति के नियमों का उल्लंघन करें| क्या आप समझ रहें हैं, मैं क्या कह रहा हूँ?
जब आप प्रकृति के साथ संरेखित हो जाते हैं, तब सामंजस्य होता है| और जब आप प्रकृति के नियमों के विरुद्ध जाते हैं, तब वही सामंजस्य टूट जाता है| इसलिए, जीवन में, बहुत सी बातें निर्धारित होती हैं, और कुछ बातें आपकी इच्छा के अनुसार होती हैं|
मैं आपको एक और उदाहरण देता हूँ| जब बारिश हो रही होती है, तब आप उसमें भीगे या नहीं, यह आपकी इच्छा पर निर्भर करता है| आप चाहें तो छाता या रेनकोट (बरसाती) ले सकते हैं और भीगने से बच सकते हैं|
तो जीवन इच्छाशक्ति और भाग्य दोनों का समावेश है| आप जितना ध्यान में गहरा जायेंगे, उतने ही अधिक प्रसन्न आप होंगे, जितना आप प्रकृति के साथ एक सुर में आएंगे, उतनी अधिक आपकी इच्छाशक्ति प्रबल होगी|

प्रश्न : जब जीवन समाप्त हो जाता है, तब दुनिया तो समाप्त नहीं होती| लेकिन जब दुनिया समाप्त हो जाती है, तब जीवन का अंत हो जाता है| क्या इस दुनिया का कोई अंत है?
श्री श्री रविशंकर : अगर आप किसी टेनिस की गेंद को देखें, और फिर मुझसे पूछें कि यह गेंद कहाँ से शुरू होती है, और कहाँ खत्म होती है, तो मैं क्या कह सकता हूँ?
इस सृष्टि में तीन चीज़ें हैं, जो न तो कभी शुरू होती हैं, और न ही कभी खत्म होती हैं|
१.        दैवीय प्रकाश, या चेतना, जिसका न तो कोई आरंभ है, और न ही कोई अंत|
२.      जीवन का कोई आरंभ नहीं है, और कोई अंत नहीं है|
३.      यह पृथ्वी, हमारी दुनिया का कोई आरंभ नहीं है, और कोई अंत नहीं है|

यह पृथ्वी गोल है| यह अपना स्वरुप बदल लेगी, मगर यह चलती रहेगी| घबराईये नहीं, दुनिया खत्म नहीं हो रही है, खास तौर पर वर्ष २०१२ में| दुनिया केवल अमेरिका की फिल्मों में खत्म होती है|

प्रश्न : मुझे स्वप्न आया था, कि मैं इस कोर्स में आ रहा हूँ, और मुझे आपके स्वप्न भी आते रहें हैं| क्या स्वप्न एक तरह का अंतर्ज्ञान होते हैं?
श्री श्री रविशंकर : स्वप्न ६ प्रकार के होते हैं| क्या आप जानना चाहते हैं?
पहला प्रकार है, दिन में सपने देखना| उसे हम छोड़ देते हैं| यह अपने आप में कोई सपना नहीं है|
दूसरे प्रकार का स्वप्न है, जो आपके भूतकाल के अनुभवों के बारे में होता है| आपके भूतकाल के अनुभव और छाप स्वप्न की तरह आते हैं|
तीसरे प्रकार का स्वप्न है आपकी इच्छाएं और भय; वे भी आपको स्वप्न की तरह आती हैं|
चौथे प्रकार का स्वप्न होता है अंतर्ज्ञान, या किसी विषय में पूर्वज्ञान हो जाना| जो होने वाला है, वह हमें पहले से ही स्वप्न के रूप में ज्ञात हो जाता है|
पांचवे प्रकार के स्वप्न का आपसे कोई सीधा सम्बन्ध नहीं होता| आप जिस जगह पर सो रहें हैं, यह उस पर निर्भर करता है| आपको कुछ चेहरे दिखते हैं, या कुछ ऐसी भाषाएँ सुनायी देती हैं, जिनके बारे में आप कुछ नहीं जानते|
छटवें तरह के स्वप्न होते हैं, जो इन सबका मिश्रण होते हैं| और ९९ प्रतिशत सपने इसी तरह के होते हैं| तो इसलिए, उत्तम है, कि अगर आप स्वप्न को समझने की कोशिश न करें, या उनके बारे में ज्यादा परेशान न हों!
आप नहीं जानते, हो सकता है, आपके कुछ स्वप्न अंतर्ज्ञान या पूर्वज्ञान हो सकते हैं, और कुछ केवल आपके भय या चिंता को दर्शा सकते हैं| इसलिए, बेहतर है, कि आप उसे भूल जाएँ, एक कप चाय पीएं, और खुश रहें| सपने से जाग जाएँ!
ज्ञानी लोग तो इस जीवन को भी स्वप्न की तरह देखते हैं| आपको अपने पूरे अतीत को स्वप्न की तरह देखना है| वह सब चला गया, है न? बिल्कुल एक सपने की तरह|
सपने और कुछ नहीं, बल्कि पुरानी बातों की स्मृतियाँ हैं| वह सब तो चला गया! और यह वर्तमान भी सपना ही तो बन जाएगा| यह भी चला जाएगा| और कल, परसों, और तीन साल बाद, आप सब अपने घर चले जायेंगे, और कहेंगे, ओह, हम सब बुल्गारिया में थे| यह सब एक सपने की तरह है|’
इसी तरह अगर आप सोचें, आप हर एक दिन के बाद दूसरा दिन जियेंगे, एक दिन के बाद दूसरा दिन, इसी धरती पर अगले ५० साल तक, और फिर आप अचानक जागेंगे, और कहेंगे, ओह, यह सब तो एक सपने की तरह था, ये सब तो चला गया|’ सही है न!
और यह ज्ञान ही है, जो हर बुरे सपने को एक सुन्दर सपने में परिवर्तित कर देता है|
प्रश्न : क्या कोई आत्मा उसी परिवार में दोबारा जन्म ले सकती है?
श्री श्री रविशंकर : ऐसा संभव है, यदि व्यक्ति अपने नाती-पोतों से बहुत अधिक आसक्त है| अगर मन में एक यही विचार है, मेरा पोता, मेरा पोता, तब वे वहां जन्म लेंगे| (चित्त पर) सबसे गहरा प्रभाव ही अगले जन्म का कारण बनता है|

प्रश्न : क्या केवल व्यक्तिगत कर्म होता है, या कोई राष्ट्र कर्म भी होता है?
श्री श्री रविशंकर : कर्म की इतनी सारी परतें होती हैं| व्यक्तिगत कर्म, पारिवारिक कर्म, सामाजिक कर्म, राष्ट्र कर्म और समय कर्म भी| कर्म की इतनी सारी परतें होती हैं| लेकिन यह सब बदला जा सकता है|
जब आप बैठ कर ध्यान करते हैं, तो कितनी तरह के परिवर्तन होते हैं| यह मत सोचिये, कि आप केवल अपने लिए ध्यान कर रहें हैं| जब आप क्रिया करते हैं, या ध्यान करते हैं, आप न केवल अपना कर्म सकारात्मक बना रहें हैं, बल्कि आप इस ग्रह पर भी प्रभाव डाल रहें हैं, और बाक़ी सूक्ष्म स्तरों पर भी प्रभाव डाल रहें हैं| जब आप ध्यान करते हैं, तो वह मृत लोगों तक भी शान्ति और संतुष्टि पहुँचाता है|

प्रश्न : हम अपने जीवन का लक्ष्य कैसे खोजें?
श्री श्री रविशंकर : अपना लक्ष्य जानने के लिए, पहले हमारे मन को साफ़ होना पड़ेगा| और खाली और खोखला ध्यान मन को बहुत अधिक साफ़ कर देता है| जब मन साफ़ होता है, तब अंतर्ज्ञान उभरता है|
यह सोचिये, कि किस तरह मैं लोगों के काम आ सकता हूँ, और जब आप अपने आस पास के लोगों के काम आने लगते हैं, जब आपका जीवन सेवा के लिए ही होता है, तब आप पाते हैं, कि आपका जीवन बहुत सार्थक और परिपूर्ण है|
अगर आपका जीवन केवल अपने आप पर ही केंद्रित है, मेरा क्या होगा, मुझे क्या मिलेगा? मैं और कितना ज्यादा खुश हो सकता हूँ? अगर आप सिर्फ इसी बात पर ध्यान देंगे, तो आप अवसाद से ग्रस्त हो जायेंगे|
देखिये, आपकी सारी शक्तियां और प्रतिभाएं केवल दूसरों के प्रति उपयोग के लिए ही हैं| अगर प्रकृति ने आपको अच्छी वाणी दी है, तो क्या वह आपके लिए है, या दूसरों के लिए? क्या आप खुद ही गातें हैं और अपना गाना खुद ही सुनते हैं? अगर प्रकृति ने आपको एक सुन्दर आवाज़ दी है, तो वह दूसरे लोगों को आनंद देने के लिए हैं|
अगर प्रकृति ने आपको एक सुन्दर रूप दिया है, तो वह आपके लिए है, या दूसरों के लिए? यह दूसरे लोगों के लिए है, ताकि वे आपको देखें और आनंदित हों| तो आपके अंदर जो भी शक्ति है, वह आपके लिए है ही नहीं, वह दूसरों के लिए हैं|
कोई भी शक्ति या प्रतिभा जो आपके पास है, उसका दो तरह से उपयोग हो सकता है| या तो आप उस ताकत का प्रयोग दूसरों से लड़ने में लगाएं, या फिर उसका प्रयोग दूसरों की सेवा में लगाएं| सदियों से, दुनिया के लोग शक्ति पाते हैं, मगर सिर्फ लोगों से लड़ने के लिए, है न? किसी ने शक्ति पायी, सिर्फ इसलिए ताकि वह दूसरे से लड़ सकें, और आप किससे लड़ते हैं ; सिर्फ उससे जो आपके बराबर हो|
निश्चित ही कोई अपने से कम ताकत वाले से नहीं लड़ेगा| कोई उसी से लड़ेगा, जो कम से कम शक्ति में उसके बराबर हो| और किसी को भी अपनी शक्ति का प्रयोग लड़ कर, उसमे आनंद नहीं मिला है| अगर आप इस मिली हुई शक्ति का सदुपयोग करते हैं, दूसरों की सेवा के लिए करते हैं, तब वह तृप्ति और खुशी देता है|
तो आपके पास जो भी कुछ है ; शक्ति, सौंदर्य, धन, रूप, वाणी, वे सब सदुपयोग करने के लिए ही हैं, दूसरों की सेवा के लिए| तब आप पायेंगे, कि आपका जीवन कितना परिपूर्ण है|

प्रश्न : (मानसिक रूप से असंतुलित बच्चों के बारे में प्रश्न)
श्री श्री रविशंकर : बस उनके पास जाईये, और उनके साथ कुछ देर खेलिए| इतना काफी है| ऐसा मत सोचिये, कि वे दुखी हैं, या उदास हैं| वे किसी दूसरे ही आयाम में रहते हैं| वे यहाँ आपसे सेवा लेने आयें हैं, बस!

प्रश्न : अगर कोई मदद लेने से इनकार करे, तो क्या हमें उनकी सेवा करने का अधिकार है? यह जानते हुए, कि उनकी इच्छाशक्ति पूजनीय है, क्या हमें फिर भी उनकी मदद करनी चाहिये?
श्री श्री रविशंकर : मैं आपसे एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ| मान लीजिए, कि एक बच्चा एक छोटे से चबूतरे पर भाग रहा है, और वहां से गिरने का खतरा है, तो आप क्या करेंगे? क्या आप उस बच्चे को उसकी स्वतंत्रता देंगे? नहीं, आप उस बच्चे को रास्ता दिखायेंगे, और उसे वापस ले आयेंगे, है न?
इसी तरह अगर कोई ड्रग्स (नशीले पदार्थ) लेता है, और आप जानते हैं, कि यह उनके लिए हानिकारक है, तो आप क्या जाकर उनकी मदद नहीं करेंगे? इसी तरह हमें पूर्णतया कोशिश करनी चाहिये, कि हम अपनी कुशलता का उपयोग करते हुए लोगों को परेशानियों से निकालें|
मान लीजिए, परिवार में कोई मानसिक रूप से बीमार है| और वह दवाईयां लेने से इनकार करता है, तो परिवार क्या करता है? उसे ऐसा ही छोड़ देता है? वह हिंसक हो सकता है, और सबको चोट पहुंचा सकता है| तो जो परिवारवाले समझदार होते हैं, वे उसकी दवा को जूस में या दूध में मिला कर दे देते हैं, और वह उसे पीने के बाद बेहतर महसूस करता है|
तो इसलिए, पूर्ण कुछ भी नहीं है| आपको किसी परिस्थिति के मुताबिक ही अपनी बुद्धि लगानी होती है| आप किसी की मदद करने के लिए उसे विवश तो नहीं करेंगे| मान लीजिए, कोई सड़क के गलत तरफ गाड़ी चलाना चाहें, तो वे यह तो नहीं कह सकते कि यह तो मेरी इच्छाशक्ति है कि मैं गलत तरफ गाड़ी चला रहा हूँ| जब आप समाज में रहते हैं, तो आपको कुछ नियमों का पालन तो करना ही होता है| इसी तरह, अगर आप किसी की मदद भी करना चाहते हैं, तो आपको कुछ नियमों का पालन करना चाहिये| किसी पर ज़ोर मत डालिए, लेकिन साथ ही साथ किसी का इंतज़ार भी मत करिये, कि वे आपको अपने घर की आग बुझाने का निमंत्रण देंगे| अगर आपके पड़ोसी के घर में आग लग गयी है, तो आप उनके फोन का या निमंत्रण पत्र का इंतज़ार नहीं करेंगे, और फिर आग बुझाने नहीं जायेंगे| आप भागेंगे, और आग बुझाने के लिए जायेंगे| आप स्वयंसेवक है न? समझें? इसलिए, हमेशा बीच का रास्ता लें|

प्रश्न : (अश्राव्य)
श्री श्री रविशंकर : हम से जो भी बन पड़ें, उनकी मदद के लिए वैसा करना चाहिये| मैं आपके साथ हूँ| हम सबको एक टीम बनानी चाहिये, उनसे संपर्क करना चाहिये, उनके लिए नव-चेतना शिविर करने चाहिये और उन्हें शराब की लत से बाहर आने के लिए मदद करनी चाहिये| जिप्सी अल्पसंख्यों के साथ सबसे बड़ी दिक्कत यह होती है कि वे बहुत शराब पीते हैं, और पीते ही रहते हैं| वे अपनी ५०-६० प्रतिशत तनख्वाह शराब पर खर्च कर देते हैं और यहाँ तक की अपनी बीवियों को भी मारते हैं, और वहां महिलाएं इतने दुःख में हैं| हमें यह ज़रूर बदलना चाहिये| हमें उनके लिए मुफ्त कोर्स करने चाहिये|

प्रश्न : मैं विद्यार्थियों के साथ काम करता हूँ| वे परिवार क्यों नहीं बनाते? वे क्यों एक दूसरे को खोज कर कोई रिश्ता नहीं बनाते?
श्री श्री रविशंकर : आप रिश्ते की खोज में हैं? हाँ? ठीक है, हम यहाँ एक वैवाहिक सर्विस शुरू करेंगे| सारे अविवाहित लोग उसमें नाम लिखवा लें|
प्रश्न : मैं बहुत ईमानदारी से ये सारे अभ्यास कर रहा हूँ, लेकिन मुझे लगता नहीं है कि मुझमें कोई बदलाव आया है| मैं अभी भी पाता हूँ कि मैं परेशान हो जाता हूँ, और यह मुझे उदास कर देता है|
श्री श्री रविशंकर : सुनिए, आप अभी कैसे हैं? क्या आप अभी प्रसन्न हैं? अतीत के बारे में भूल जाईये| क्या आप यहाँ होने से खुश हैं? क्या आपको मज़ा आ रहा है? बस!
हम सबके अंदर दो चीज़ें होती हैं| एक जो कभी बदलती नहीं| चेतना का एक अविरल बहाव, जो कभी बदलता नहीं| और उसके आस पास के सारी चीज़ें बदलती रहती हैं| तो जब आप पीछे मुड कर अपनी जिंदगी को देखते हैं, तो आप वह पुराने व्यक्ति नहीं हैं, जो पहले थे| लेकिन आप यह भी देखते हैं, कि आप तो वही व्यक्ति हैं| ये दोनों बातें, साथ साथ हैं|
आपको कब ऐसा लगता है, कि आप बदले नहीं हैं? जब आप दुखी होते हैं? मान लीजिए, किसी ने आपका बटन दबाया, और आपको गुस्सा आ गया, आपने कहा, ओह, मैं तो एकदम नहीं बदला, मुझे तो अभी भी गुस्सा आता है|’ यही दिक्कत है, है न? यह सच नहीं है| अतीत में, आप गुस्सा हुए, लेकिन वह गुस्सा आपके मन में महीनों तक रहा| आपको अभी भी गुस्सा आता है, लेकिन अब वह केवल कुछ मिनटों के लिए रहता है, या जब तक आप शॉर्ट क्रिया नहीं करते, और फिर आप वापस ताज़ा हो जाते हैं|

हर एक बुरे व्यक्ति के अन्दर एक अच्छा व्यक्ति छुपा होता है!!!


१६
२०१२ बुल्गारिया
मई
हम सब तकनीकी युग में रह रहे हैं| तकनीक ने ब्रह्माण्ड को एक गाँव में बदल दिया है| हम सब एक सार्वभौमिक गाँव में रहते हैं| मैं इसे एक सार्वभौमिक परिवार के जैसे देखना चाहता हूँ| इस संसार को एक सार्वभौमिक परिवार के जैसे देखना चाहता हूँ| हम सब बहुत भाग्यशाली हैं कि इस संसार में अनेक संस्कृति, परम्पराएं, भाषाएँ एवं धर्म हैं| आप जानते हो कि बुद्धिमान व्यक्ति क्या करते हैं? वो हमेशा विविधता और विभिन्नता को एक उत्सव के जैसे मनाते हैं और नासमझ लड़ाई, झगड़ा करते हैं| हम इस संसार में क्या करना चाहते हैं, लोगो को शिक्षित करना चाहते हैं| क्या वजह है कि लोग इतने अनभिज्ञ और अज्ञानी हैं क्योंकि उन्हें अपनी दृष्टि को विस्तृत करने का कभी कोई अवसर ही नहीं मिला| आर्ट ऑफ़ लिविंग का मकसद जीवन को ऐसी ही विशाल दृष्टि देना है, हर आंसू को मुस्कान में बदलना, क्रोध को करुणा में बदलना और नफरत को असीमित प्यार में बदलना| आइये हम सब एक ऐसा विश्व बनाने के लिए हाथ मिलाएं जो हिंसा, बीमारी, दुःख और गरीबी से दूर हो!
सबसे पहले हमें बड़ा सपना देखना होगा| जब मैं स्कूल में था, एक छोटा बच्चा, मैं अब भी एक छोड़ा बच्चा ही हूँ, मैं अपने दोस्तों से कहा करता था कि मेरा परिवार समस्त पृथ्वी है| वो सब मेरी माँ के पास जाते थे और पूछते थे कि क्या हमारा परिवार लंदन, जर्मनी, फ़्रांस, अमरीका में भी है? और मेरी माँ जवाब देती थी, "नहीं", वो मेरे कान खींचती थीं और कहतीं थीं, "तुम झूठ क्यों बोलते हो?" मेरी माँ कहा करती थीं, "ये कभी झूठ नहीं बोलता लेकिन ये एक बात ये हमेशा कहता रहता है कि इसका परिवार और रिश्तेदार सारे संसार में हैं और ये सारी दुनिया के लोगो को जानता है|" मैं मेरे दोस्तों को पूछता था, "तुम क्या चाहते हो? डाक टिकट, सिक्के या मुद्राएं? मैं तुम्हे भेज दूंगा, चिंता मत करो, मेरे पास सब हैं पूरे विश्व में|" मैंने ऐसा क्यों कहा, क्योंकि हम सब के अन्दर के गहन में कहीं एक ही आत्मा है जो हमें जोड़ती है| हर एक मनुष्य, ख़ुशी, उत्साह, प्यार और ज्ञान के साथ पैदा हुआ है, लेकिन जैसे जैसे हम बड़े होते जाते हैं, हम ये सब कहीं कहीं खो देते हैं| हमें ये नहीं खोना चाहिए, ये तोहफा जो मिला है इसको बना कर, संभाल के रखना चाहिए|
अच्छा, मान लो कि हमने इसको खो दिया, फिर क्या? हमें इसे फिर से पा लेना चाहिए| अब आप इसको दुबारा कैसे पाएंगे? अपनी दृष्टि को विशाल करके, और जो भी आपके आस पास हैं उनसे आत्मीयता बना के|
मैं बुल्गारिया में दूसरी बार आया हूँ, मुझे पहले के मुकाबले बहुत से बदलाव नज़र आये, मूलभूत व्यवस्थाएं बढ़ी हैं, अर्थव्यवस्था में पहले से बहुत सुधार हुआ है, ये और भी अच्छी हो सकती है, साथ ही साथ मैं कहूँगा कि आप लोगों की हजारों साल पुरानी संस्कृति है, परंपरा है उसको मत खोइये; युवा पीढ़ी को अपनी संस्कृति अपनी परंपरा बना के रखनी है और अपनी दृष्टि विशाल करनी है| यही वजह है कि हम कह रहे हैं कि आज हम एक साथ एक बड़ी बैगपायपर उत्सव का प्रदर्शन करेंगे| इसका मकसद पुराने रीति-रिवाज़ को बढावा देना है| मैं यहाँ ये भी बताना चाहूँगा कि बुल्गारिया के कुछ गायक और नर्तक भारत भी आये थे और उन्होंने वहां अपने इस कौशल का प्रदर्शन किया था| तो हमें लोगों को एक साथ लाना है, ये ज्ञान है, बुद्धिमत्ता है| एक हिंसा मुक्त समाज, बीमारी रहित शरीर, व्याकुलता मुक्त दिमाग, अवरोधन मुक्त बुद्धि, दुःख से मुक्त आत्मा, कटु अनुभवों से मुक्त स्मृति और तनाव मुक्त ज़िन्दगी ये हर एक व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है| इसी दिशा में आर्ट ऑफ़ लिविंग के अध्यापक और कार्यकर्ता काम कर रहे हैं| मैं बहुत खुश हूँ और उन्हें बधाई देता हूँ, सैकड़ों की तादाद में कार्यकर्ता दिन रात बिना थके काम कर रहे हैं जिस से लोगो के चेहरे पर मुस्कराहट सके|
तो मैं आपको खुश रहने के तथ्य या रहस्य बताता हूँ|
एक बार एक एक बुद्धिमान व्यक्ति ने एक लाइन खींची और अपने छात्रों से कहा कि बिना मिटाए और बिना छुए इस लाइन को छोटा करके दिखाओ, आपने इसको छुए बिना इसको छोटा करना है, एक समझदार छात्र ने उसके नीचे उस से भी बहुत लम्बी लाइन खींच दी, तो पहले वाली लाइन अपने आप छोटी हो गयी| यहाँ इसका सबक ये है कि जब आपको अपनी परेशानियां बहुत बड़ी लगने लगें तो अपनी आँखें उठा कर देखिये| ऐसा इसलिए है क्योंकि आपने अपना ध्यान सिर्फ खुद पर ही रखा हुआ है| जब आप दूसरों की ओर देखेंगे जिनकी हालत आपसे भी कहीं ज्यादा खराब है तब आपको लगेगा कि आपका बोझ उतना बुरा नहीं जितना आप सोचते हैं| जब आपको लगे कि आपकी समस्या बहुत बड़ी है तब उन्हें देखिये जिनकी समस्या आपसे भी बड़ी है| तभी आपको एक आत्मबल मिलेगा कि मेरी समस्या बहुत छोटी है और मैं उसे संभाल सकता हूँ| तो खुश रहने का पहला नियम ये कि जहाँ बड़ी और ज्यादा समस्या हैं वहां देखिये, तब आपकी समस्या स्वयं ही छोटी लगने लगेगी, ओर जैसी ही आपकी समस्या छोटी लगने लगेगी, आपमें उस से निपटने और उसे सुलझाने का साहस और ऊर्जा जाएगी, साधारण शब्दों में कहें तो उनकी सेवा करें जिन्हें ज्यादा ज़रूरत है|
दूसरा, अपने जीवन की ओर देखें, अब तक आपको कितनी सारी समस्या रही, वो आई और चली गयी; जान लीजिये कि ये भी चली जाएगी और आपके पास ऊर्जा और ताक़त है इस से निपटने की भी| आपको अपने बीते हुए कल के बारे में समझनेसे ये आत्म-विश्वास जायेगा|
तीसरा, सबसे महत्वपूर्ण, कुछ श्वास कि प्रक्रिया और विश्राम करें|
चौथा, आपको पता है कि आप गुस्से में कहते हैं, "मैं छोड़ता हूँ"| बिना किसी गुस्से और झल्लाहट के कहें| "मैं ये समस्या को आप पर छोड़ता हूँ, इसको मैं हल नहीं कर सकता, अब भगवान् को मेरी मदद करने दो", और आप जानते हैं कि ऐसे में हमेशा आपको मदद मिलती है, अपने अन्दर ये विश्वास जगाइये कि आपकी मदद होगी, ब्रह्माण्ड की कोई ताक़त आपकी मदद करेगी|
पाँचवा, जानते हैं, पाँचवा रहस्य क्या है? मैं आप पर छोड़ता हूँ, आप पाँचवे के बारे में सोचिये, मैं २५-३० रहस्य तक जा सकता हूँ, लेकिन मैं चाहता हूँ की ये आप सोचें| हम हमेशा अपनी समस्या के हल के लिए किसी दूसरे की ओर देखते हैं| हम भूल जाते हैं कि अगर हम अपने दिमाग को अन्दर की ओर मोड़ दें तो हमें कुछ तरीका, कुछ रास्ता मिल सकता है, यही पाँचवा रहस्य है; स्वाभाविकता| स्वाभाविक रहिये, स्वाभाविकता आपके अन्दर आती है जब आप कुछ मिनट निकाल कर अपने अन्दर बैठते हैं| जब सब कुछ सही है, सब आपके हिसाब से चल रहा है तब मुस्कुराते रहने में कोई बड़ी बात नहीं लेकिन जब आप अपने अन्दर शौर्य जगा लेते हैं और कहते हैं "चाहे कुछ भी हो जाये, मैं मुस्कुराता रहूँगा", आप देखिये कि तुरंत आपके अन्दर एक ऊर्जा का संचार होने लगता है और समस्याएं ऐसे हो जाती हैं जैसे कुछ है ही नहीं, वे सिर्फ आती हैं और गायब हो जाती हैं|
मैं यहाँ ये भी कहना चाहूँगा कि हमारे कार्यकर्ताओं ने यहाँ बुल्गारिया की जेलों में भी इतना अच्छा कार्य किया है; कोर्स करने के बाद, सैंकड़ों लोगो की पूरी ज़िन्दगी बदल गयी, ये बहुत अच्छी बात है|
ये ही ज्ञान है, ज्ञान या बुद्धिमत्ता उन लोगो में से भी अच्छाई को उभारना है जो एक अपराधी हैं, सबसे बड़े अपराधी के अन्दर भी कुछ कुछ अच्छाई होती है; कुछ अच्छे गुण होते हैं| हमें उन्हें ही बाहर लाना है, उसके लिए ज्ञान की ज़रूरत है| किसी को दोषी ठहराने में कोई बड़ी बात नहीं, किसी ज्ञान की आवश्यकता नहीं, लेकिन उनके अन्दर से करुणा को उभारने में कुछ कार्य करना पड़ता है; मैं बधाई देना चाहूँगा उन सब कार्यकर्ताओ और अध्यापको को जिन्होंने बिना किसी स्वार्थ के जेलों में जाकर सबके अन्दर के मानवीय गुणों को उभारने का कार्य किया|
नासमझ व्यक्ति हर व्यक्ति को दुष्ट समझता है बुरा समझता है यहाँ तक कि अच्छे व्यक्तियों को भी| लोग कहते हैं कि सब बुरे हैं, सारा संसार ही बुरा है| ये कितने दुर्भाग्य की बात है| ये अच्छी संगती नहीं है| पिछले सप्ताह जब मैं कनाडा में था तो एक पति -पत्नी मुझसे मिलने आये, वो बहुत रो रहे थे, उनके किशोरावस्था पुत्र ने आत्महत्या कर ली और आत्महत्या के पत्र में लिखा कि सारी दुनिया बुरी है, जीने लायक नहीं है, अच्छे लोगों के लिए इस धरती पर कोई जगह नहीं है; सब बुरे और खराब लोगो ने यहाँ राज करना शुरू कर दिया है| इस युवक ने कितना दुःख झेला होगा, क्योंकि हर एक व्यक्ति आपसे कहता रहता है कि कैसे दूसरे व्यक्ति बुरे हैं, ये अच्छी संगति नहीं है| यहाँ तक कि हर बुरे व्यक्ति के अन्दर एक अच्छा इन्सान छुपा होता है जिसे ऊपर उभारना है, जब अच्छाई ऊपर आती है तब नकारात्मकता स्वतः ही गायब हो जाती है|

प्रश्न : क्या हमें २१ दिसंबर २०१२ और आने वाले सालों के बारे में कुछ जानने की आवश्यकता है?
श्री श्री रविशंकर : नहीं, कुछ नहीं| सब कुछ ठीक ही होगा, आप आराम से रहिये| मैं कहता हूँ कि ये दुनिया ख़त्म नहीं होने वाली, ये सिर्फ अमरीकी चलचित्रों में होता है| हिन्दू पंचांग के हिसाब से ये वर्ष का नाम नन्द है, जिसका अर्थ है आनंद का साल| लोग और ज्यादा आध्यात्मिक होंगे और दूसरों को और ज्यादा से ज्यादा खुशियाँ देना चाहेंगे| मैं उम्मीद करता हूँ कि ऐसा और ज्यादा हो; दो तरह की ख़ुशी होती है, एक सुख लेने में है और दूसरा सुख तब मिलता है जब आप किसी को कुछ देते हो|

प्रश्न : तब हम क्या करें जब हमें अपना कार्य करना अच्छा नहीं लगता?
श्री श्री रविशंकर : आपको आजीविका कमाने के लिए कार्य करना चाहये और ख़ुशी पाने के लिए कुछ सेवा का कार्य करें| खुद को किसी समाज सेवा के कार्य में लगायें| आप देखेंगे कि इस से आपको एक संतुष्टि, एक ख़ुशी मिलती है| मुझे पता था की ये प्रश्न आने वाला है इसी लिए मैंने कहा देने में ख़ुशी है, लेने के बजाय देने में ख़ुशी ढूँढो|

प्रश्न : हम और बेहतर कैसे बनें और अच्छाई को और कैसे उभारें?
श्री श्री रविशंकर : इसी लिए तो आर्ट ऑफ़ लिविंग के कार्यक्रम हैं, जिस से हर एक के अन्दर से अच्छाई को बाहर निकाल कर लायें, और आप देखेंगे कि ये सच में उभर रही है|

प्रश्न : आज के तेज़ समय में बच्चो से अच्छे सम्बन्ध कैसे बनाएं?
श्री श्री रविशंकर : उसके लिए हमने एक कोर्स बनाया है KYC - Know your child (अपने बच्चे को जानें) और KYT - Know Your Teen (अपने युवा बच्चे को जानें)| ये दिन का घंटे रोज़ का कोर्स है, इस से आपको बहुत से सुन्दर विचार मिलेंगे, ये सब जगह बहुत मशहूर है क्योंकि ये बहुत प्रभावी है| हमारा रिश्ता हमारे बच्चो से बदलता है और वह जिस तरह से आपसे प्रतिक्रिया करते हैं, वो भी बदलता है|

प्रश्न : अपने अन्दर के डर से कैसे उभरें?
श्री श्री रविशंकर : प्राणायाम एवं सुदर्शन क्रिया से|