दिसंबर १६, २०१०. श्री श्री यूनिवर्सिटी
युवाओं को ये महान देश विरासत में मिला है| मैं चाहता हूँ कि युवा फ़ौरन समाज की ज़िम्मेदारी ले लें| हमें एक भ्रष्टाचार-मुक्त समाज चाहिए, है कि नहीं! दूसरा हमें नशा-मुक्त समाज चाहिए, वर्ना हम कभी प्रगति नहीं कर सकते| युवा एक मात्र आशा है| बहुत ज़रूरी है कि तुम इस ओर तुरंत कदम बढ़ाओ!
तुम्हारा काम हो रहा है, ना! अभ्यास, कार्य और ज्ञान पर ध्यान केन्द्रित करो, बाकी सब मुझ पर छोड़ दो| विश्व के इस कोने से इतने उत्साहित युवा समूह को देख कर मैं बहुत खुश हूँ| आज आर्ट ऑफ़ लिविंग सारे विश्व में फ़ैल चुका है| दक्षिणी ध्रुव पर जाओ, अर्जेंटीना के छोर पर, और तुम्हे आर्ट ऑफ़ लिविंग मिलेगा, उत्तरी ध्रुव की तरफ जाओ, वहाँ भी आर्ट ऑफ़ लिविंग है| तुम्हारा एक परिवार है जो सारे भू-मंडल तक फैला हुआ है और तुम में से हरेक इस परिवार का महत्वपूर्ण सदस्य है| हमारा इतना बड़ा परिवार है, और हमारी ज़िम्मेदारी भी है, एक खुशहाल और उत्सवमय समाज के लिए कार्य करना, एक समाज जो हिंसा से मुक्त हो, एक समाज जो आध्यात्मिक रूप से उन्नत हो| मैं चाहता हूँ, तुम में से हरेक १०० गुना बढ़ जाओ। स्कूलों, कोलेजों तक फ़ैल जाओ, और जीवन को उत्सव बनाओ| निश्चिन्त रहो, तुम्हारी ज़रूरतों की देख भाल हो जाएगी| तुम समाज को जो चाहिए वो समाज के लिए करो, और बाकी मुझ पर छोड़ दो| तुम पाओगे कि तुम्हारी मांगें स्वाभाविक रूप से पूरी होती जाएँगी| जो तुम चाहोगे, वही होगा|
प्रश्न: जब आप चलते हैं, आप राजाओं के राजाधिराज हैं
जब आप ध्यान करते हैं, आप शिव हैं,
जब आप मुस्कुराते हैं, सारा ब्रह्माण्ड आप के साथ मुस्कुराता है,
गुरुजी, आप किसके अवतार हैं?
श्री श्री रवि शंकर: तू तो बड़ा कवि बन गया है!
प्रश्न: मुझे भविष्य में क्या करना चाहिए?
श्री श्री रवि शंकर: भूतकाल में जो तुम्हे नहीं करना चाहिए था वो भविष्य में भी मत करना। कुछ ऐसा करो जो तुम्हारे और दूसरों के चेहरे पर मुस्कान लाए|
प्रश्न: मेरा क्या अस्तित्व है?
श्री श्री रवि शंकर: ये एक प्रश्न तुम्हें अपने आप से बार - बार पूछते रहना है| जब तक तुम्हें जवाब न मिले, इस प्रश्न को छोड़ना मत| पीछे से हम तुम्हें इसका उत्तर पाने के लिए धक्का लगाते रहेंगे| बड़ा किमती प्रश्न है!
प्रश्न: जब मैं कुछ अच्छा करता हूँ, तब भी मेरे माता-पिता कभी कभी मुझे करने नहीं देते| ऐसी परिस्थिति में आगे कैसे बढूँ?
श्री श्री रवि शंकर: यहीं पर तुम्हारा कौशल काम आएगा। इसे तुम अपने भीतर के कौशल को बाहर लाने का अवसर मान लो| जैसे आटा कपड़े पर लग जाए, तो कैसे निकालोगे? युक्ति के साथ समझाना, अपनी कुशलता से धैर्य से उनके साथ निपटो| बात ऐसी कुशलता से करो कि वो मान जाएं।
प्रश्न: आध्यात्मिकता क्या है?
श्री श्री रवि शंकर: सबके साथ अपनेपन का भाव हो जाए, सबको अपनाने की और सत्य को जानने की कला है आध्यात्मिकता।
जैसे ये फूल एक पदार्थ है| लेकिन वैज्ञानिक दृष्टि से फूल अणु से बना है, इससे आगे अणु परमाणुओं से बने हैं, परमाणु उप परमाणु कणों से, और इससे आगे केवल तरंग ही है। क्वान्टम फिजिक्स में कहते हैं ये सब केवल तरंग है| इस तरह सारे संसार के स्त्रोत और मूल को जानना आध्यात्मिकता है| अंतर ज्ञान से फूल के डी.एन. ए को जानना आध्यात्मिकता है|
प्रश्न: क्या परीक्षा में पास होना और अच्छे नंबर लाना ही शिक्षा है? क्या ये इससे अधिक कुछ और नहीं है?
श्री श्री रवि शंकर: तुम्हें क्या लगता है?
(मुझे लगता है ये माता पिता का रवैया है जिस कि वजह से हम ऐसा सोचते हैं)
हाँ, पर इसके साथ तुम पढाई भी करो| वैसे भी तुम्हें बहाव के साथ चलना ही है| परीक्षा ही सब कुछ नहीं है, तुम कभी फेल भी हो जाते हो तो कोई बात नहीं| इसका मतलब ये नहीं कि तुम बेवकूफ़ी वाला कदम उठाओ| ये ठीक नहीं है| इसी के साथ तुम्हे परीक्षा पर भी ध्यान देना चाहिए| पर ज्ञान के लिए शिक्षा करो, केवल अंको के लिए नहीं।
प्रश्न: मैं आप के जैसा कब बन सकता हूँ?
श्री श्री रवि शंकर: तुम पहले से ही हो|
प्रश्न: समाज में भ्रष्टाचार को देख कर दुख होता है। मुझे समझ नही आता मैं क्या करुँ?
श्री श्री रवि शंकर: जब आप जैसे और लोग एक साथ आगे बढ़ेंगे, तो यह ज़रुर होगा। पर अगर भ्रष्टाचार ऐसे ही बढ़ता जाए, फ़िर तो भूल जाओ। २०६० तक भी ऐसा नहीं होगा। उसका कोई अंत नहीं है। इसलिए अभी ही समय है। ब्युरोकरेसी में भ्रष्टाचार है, मीडिया में भ्रष्टाचार है, मनोरंजन दुनिया में भ्रष्टाचार है, और केवल आध्यात्म की लहर ही इसे दूर कर सकती है।
जब हम साथ में काम करेंगे तो अवश्य ही हम हासिल करेंगे।
हमारे कुछ युवकों को आयुर्वेदिक फ़ैक्टरी के लिए सर्टिफ़िकेट चाहिए थे। उन्होने रिशवत देने से मना कर दिया। उन्होने कहा कि वो आध्यात्म के पथ पर हैं और वे ऐसा नहीं करेंगे, चाहे तो २० - ३० - ५० बार बुलाइए। अगर लोग समाज में सही रास्ते पर चलेंगे तो अधिकारी खुदबखुद सही हो जाएंगे। पर अगर लोग भी गलत करें और अधिकारी भी तो यह साधारण सा ही लगता है। जब तुम अपना मन मज़बूत बना लेते हो तो समाज भी बदलता है।
प्रश्न: पढ़ाई करते समय एकाग्रता कैसे बनाएं?
श्री श्री रवि शंकर: कुछ तो करो यार! कभी कभी कुछ तकलीफ़ लेनी भी अच्छी होती है। चल नहीं पाते पर अगर मेराथोन में जाते हो तो पूरी ताकत लगाते हो कि नहीं? पानी में कूद जाओ, तो जब तक किनारा ना मिले तैरते रहते हो ना? थक भी जाओ तो बीच में छोड़ तो नही देते! मन में यह रखो, किसी तरह से पूरा कर ही लूँगा।
(पर मुझे तैरना नहीं आता)
तैरना नहीं आता, पानी मे कूदोगे तो आ ही जाएगा। मुझे भी ऐसे ही आया था!
प्रश्न: मै अच्छा व्यक्ति बनने की कोशिश करता हूँ पर कभी कभी लोगों का व्यवहार समझ में नहीं आता। क्या करुँ?
श्री श्री रवि शंकर: सबको अपनाना, अच्छा बनना मतलब यह नहीं कि हर तरफ़ भावनाओं को बहा दो। जितना हो सके उतना ही करना। जो तुम नहीं कर सकते कोई तुमसे वो करने की अपेक्षा भी नहीं करेगा।
प्रश्न: क्या आपने कभी भगवान देखा है?
श्री श्री रवि शंकर: पहले यह बताओ कि भगवान तम्हारे हिसाब से है क्या? भगवान ऊपर कहीं बैठा नहीं है। ईश्वर वो है जो सब जगह व्यापक है। जब मन पूर्णत: विश्राम में होता है तो ईश्वर से मिल ही जाता है। पूरा खेल मन को उस आनंदित चेतना में स्थापित करने का है। जब लहर सतह पर होती है तो लहर होती है, पर जब समुन्द्र में विलीन हो जाती है तो वो समुन्द्र ही बन जाती है।
ईश्वर हम सब के भीतर है, और हर जगह है।
इससे आगे अगली पोस्ट में!...
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