हिंदू धर्म में कुंभ मेला सबसे पवित्र तीर्थयात्रा है | ‘कुंभ’ शब्द संस्कृत भाषा से उत्पन्न हुआ है जिसका
अर्थ है ‘घड़ा या कलश’ और ‘मेला’ का अर्थ है ‘त्यौहार’, इसलिये इसे कुंभ मेला कहते हैं | यह वह मेला है जो आपके मन और आत्मा
को ऊर्जा प्रदान करता है | श्री श्री
रविशंकर
गंगा ज्ञान का प्रतीक है और यमुना प्रेम का प्रतीक है | प्रयाग ( जहाँ पर गंगा , यमुना और सरस्वती का संगम होता है
) प्रेम और ज्ञान का संगम है | जब ज्ञान
और प्रेम का संगम या मिलन होता है तो वह उत्सव बन जाता है | कुंभ का अर्थ है जब संत , विद्वान और कथा वाचक साथ में आते
हैं | वे विश्व लाभ के
लिये संकल्प से साथ वार्ता और ध्यान में सम्मलित होते हैं | लोगों को अलग अलग स्थानों पर जाने
की जरूरत नहीं | वे सब एक
स्थान पर आ सकते हैं | मेले की
परिकल्पना की शुरुआत भारत में हुई |
आज कल इसे एक्सपो कहते हैं |
आज कल गाड़ी , किताब , कपड़ों के एक्सपो होते हैं जहाँ पर
उनके सभी उत्पादों का प्रदर्शन एक ही स्थान पर किया जाता है | उसी परिकल्पना के अनुसार सारे संत
१२ साल के उपरांत एक ही स्थान पर एकत्रित होते थे | उन दिनों में परिवहन व्यवस्था इतनी अच्छी
नहीं थी और यात्रा में बहुत समय लगता था | कुंभ मेला लोगों को आपस में बातचीत करने का
और आपस में ज्ञान का आदान प्रदान करने का अवसर देता था | यही इसे ग्रहों के परिपेक्ष में देखे तो
कुंभ मेला तब घटित होता है जब गुरु कुंभ राशि में प्रवेश करता है | गंगा में स्नान करने से चित्त या
चेतना आनंदमय हो जाती है | आपकी चेतना
शुद्ध हो जाती है | सारे पाप
धुल जाते हैं | यह बहुत
ही सुंदर है | सारे पाप
इतने सतही स्तर के होते हैं कि सिर्फ गंगा में डुबकी लगाने से धुल जाते हैं | सदाबहार चेतना कभी भी अशुद्ध नहीं
हो सकती |
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