बच्चों को बड़ा करने की कला

०३
२०१३
जनवरी
बर्लिन , जर्मनी

प्रश्न : बहुत बढ़िया हो यदि हमारे बच्चे      कभी कभी इस मुश्किल दुनिया में खुश हाल में बड़े हो सकें | हम उन्हें क्या दे सकते हैं प्रेम के अतिरिक्त , जब तक वे ध्यान करने के लिए छोटे हैं ?

श्री श्री रविशंकर : बस उनके साथ खेलिए | हमेशा एक शिक्षक बनने का और उन्हें कुछ सिखाने का प्रयत्न मत करिये | बल्कि , उनसे सीखिए और उनका आदर करिये | तथा बच्चों के साथ बहुत गंभीर मत रहिये |

मुझे याद है , बचपन में , जब मेरे पिताजी शाम को घर आते थे , वे बस ताली बजा कर हमें हँसाते  थे | मेरी माताजी बहुत सख्त थीं पर पिताजी बस ताली बजा कर सबको हँसाते थे , खाना खाने से पहले | सब को एक साथ बैठ कर खाना खाना होता था | तो इस से पहले , वे ताली बजा कर सबको घर भर में भगाते थे | सबको खाने से पहले हँसना होता था |
इसलिए , हमेशा उन्हें सिखाते मत रहिये , बस उनके साथ उत्सव मनाइए ,खेलिए , गाइए उनके साथ | यह सबसे उत्तम है | यदि आप हमेशा एक छड़ी ले कर बोलते रहेंगे , “यह मत करो , वह मत करो’ , उसका कोई फायदा नहीं|

बच्चों के साथ , मुझे लगता है आपको थोड़ा अधिक खेलना चाहिए और कभी कभी कहानियाँ भी सुनानी चाहियें | जब हम बच्चे थे हम बहुत कहानियाँ सुनते थे | प्रतिदिन एक कहानी | बच्चों को संस्कारों के साथ बड़ा करने का यह एक अच्छा तरीका है | यदि आप उनको अच्छी और रोचक कथाएँ सुनायेंगे तो वे टीवी के साथ पूरा  दिन चिपके नहीं रहेंगे |
बच्चों के लिए बहुत सी कहानियाँ हैं ; जैसे पंचतंत्र | हमारे एक भक्त पंचतंत्र के कार्टून भी बना रहे हैं | जल्द ही ये प्रकाशित होंगे |

यह अच्छा है कि माता पिता बच्चों के साथ बैठें और उन्हें नैतिक मूल्यों के सन्देश वाली कहानियाँ सुनाएँ | नैतिक मूल्यों वाली कहानियाँ अच्छी हैं | और यह उत्कृष्ट समय का एक आधा घंटा जो आप उनके साथ बिताते हैं , वह पर्याप्त है | और उनका दम मत घोट दीजिए उनके साथ पांच छह घंटे तक बैठ कर | ४५ मिनट से एक घंटे तक का उत्तम समय ( क्वालिटी टाइम ) अच्छा है और यह बहुत रोचक होना चाहिए | उनको प्रतीक्षा रहनी चाहिए आपके साथ बैठ कर कहानियाँ सुनने की |
मुझे याद है , मेरे एक चाचा थे , जो बहुत मोटे थे और उनका गोल चेहरा था| हर रविवार वे हमारे घर आते और हमें कहानी सुनाते | हम सब उनके साथ बैठ जाते थे और वे अच्छी अच्छी कहानियाँ हमें सुनाते थे , और कहानी के अंत में कुछ दुविधा या राज़ छोड़ देते थे ताकि अगली बार हम बहुत उत्सुक हों जानने के लिए कि आगे क्या हुआ |

आज भी हमारे बीच ऐसे लोग हैं | यदि नहीं , तो आपके बच्चे कुछ और बच्चों को कहानियाँ सुना सकते हैं | उनके माता पिता भी प्रसन्न हो जायेंगे |उनको बच्चों को देखने वाला कोई मिल जायेगा और आपका सेवा कार्य भी हो जायेगा |
इस मानवीय स्पर्श की आवश्यकता है |

आजकल बच्चे सुबह जबसे उठते है , बस टीवी के आगे बिना सहभागी हुए मूक दर्शक की तरह बैठे रहते हैं , है ना ?
बच्चे केवल टीवी के आगे बैठ कर चैनल बदलते रहते हैं | माँ आती है और कहती है , “चलो , नाश्ता कर लोऔर वे हिलते भी नहीं | कभी कभी तो माँ को उनका नाश्ता टीवी के आगे ही ला कर देना पड़ता है | यह अच्छी शिष्टता नहीं है | आप क्या सोचते हैं ? आप में से कौन मुझसे सहमत हैं ?

एक घंटे से अधिक टीवी बच्चों को नहीं देखने देना चाहिए | आपको टीवी का समय सीमित कर देना चाहिए , अन्यथा बच्चों में ध्यान कमी की बीमारी हो जाती है | दिमाग पर इतनी सारी छवियों की बौछार होती है कि कुछ और ध्यान में चढ़ता ही नहीं है | बाद में ये बच्चे बहुत ही सुस्त और मंदबुद्धि हो जाते हैं | वे किसी काम पर ध्यान नहीं दे पाते |
भगवान का शुक्र है कि जब हम बच्चे थे तो टीवी नहीं था |

आप में से कितने लोग बिना टीवी के बड़े हुए हैं ? हम सब बिना टीवी के बड़े हुए हैं | इस लिए , अधिक टीवी देखने वाले बच्चे उतने या अधिक बुद्धिमान नहीं हैं | पूरे दिन में आपको  टीवी केवल दो घंटे तक सीमित कर देना चाहिए      |
बड़ी उम्र के लोगों के लिए भी एक दो घंटे का टीवी पर्याप्त है | इस से अधिक नहीं | आप जानते हैं हमारे दिमाग की नसें इतना टीवी देख कर बहुत थक जाती हैं | कभी कभी मुझे लोग आग्रह करते हैं टीवी देखने के लिए यह कह कर कि , “गुरुदेव , यह बहुत अच्छा है” | मैं आधे से एक घंटे से अधिक नहीं देख सकता | यह दिमाग को बहुत थका देता है | मुझे अचरज होता है कैसे लोग दो तीन फिल्में एक सप्ताह में देख लेते हैं | हम सच में दिमाग को बहुत तनाव देते हैं |

सिनेमाघर से बहार आते हुए लोगों को कभी देखिये , क्या वे स्फूर्तित और उल्लसित लगते हैं ? जिस प्रकार वे फिल्म देखने अंदर जाते हैं , और जिस रूप में वे बाहर आते हैं , वे कैसे दिखते हैं ? फिल्म जितनी भी अच्छी हो , वे थके हुए लगते हैं , है ना ? यदि आपने ऐसा नहीं अनुभव किया , तो किसी सिनेमाघर के बाहर खड़े हो कर देखिये | आप को देखना चाहिए जब लोग अंदर जाते हैं और जब वे बाहर आते हैं | आपको बहुत फर्क दिखेगा |

कितने लोगों ने यह देखा है ? स्वयं में भी | किसी भी मनोरंजक कार्यक्रम को आपको उत्साहित करना चाहिए , पर फिल्में देखने से ऐसा नहीं होता | यदि आप किसी सजीव कला प्रदर्शन या कार्यक्रम में जायें , तो वह थोड़ा बेहतर होता है , आप उतना थका हुआ नहीं महसूस करते | आप संगीत कार्यक्रम के लिए जाते हैं , वह इतना नहीं थकाता | आप थोड़ा थकते हैं पर उतना नहीं |आप में से कितनो ने यह अनुभव किया है ?

और जब आप सत्संग पर आते हैं , तो बिलकुल उल्टा होता है | जब आप आते हैं तो अलग महसूस करते हैं , और जब आप जाते हैं , तो आप स्फूर्तित महसूस करते हैं |

प्रश्न : क्या आप सोचते हैं बच्चों को डरावनी कहानियाँ सुनानी चाहियें ,क्योंकि कुछ जर्मनी कहानियाँ हैं जो डरावनी हैं और मैंने लोगों से सुना है कि वे उन्हें नहीं सुनाई जानी चाहियें ?

श्री श्री रविशंकर : डरावनी कहानियाँ संयम में सुनानी चाहियें | यदि उन्हें कम उम्र में कोई डरावनी कहानियाँ नहीं सुनायेंगे तो जब वे बड़े होंगे और उन से अवगत होंगे तो यह उन्हें और भी डरा देगा | वह उनको बहुत कमज़ोर बना देगा | दूसरी ओर , यदि आप उन्हें बहुत सी डरावनी बातें बतायेंगे तो उन्हें डर का जूनून हो जायेगा | दोनों की अति से बचना चाहिए | थोड़ी बहुत डरावनी बातें हो सकती हैं पर बहुत अधिक नहीं , खास कर वीडियो गेम्स में |

मुझे लगता है वीडियो गेम्स हिंसात्मक नहीं होनी चाहियें | बच्चे उस खेल में हिंसा करते हैं और सोचते हैं कि यह बस एक खेल है और असल जीवल में लोगों को मारने लगते हैं क्योंकि उन्हें असल और खयाली जीवन में कोई फर्क नहीं दिखता | यह एक समस्या है | इसलिए मैं चाहूँगा कि बच्चों को हिंसात्मक वीडियो गेम्स खेलने को  न दिए जाएँ       |

प्रश्न : क्या सारे सम्बन्ध पूर्व जनम के कर्म पर आधारित होते हैं ?

श्री श्री रविशंकर : हाँ | क्या आप जानते हैं , कभी कभी एक आत्मा जो इस दुनिया में आना चाहती है , एक पुरुष और स्त्री को चुनती है और उनमें एक आकर्षण उत्पन्न करती है | तो यह दोनों लोग पास आते हैं और जिस क्षण उनकी पहली संतान होती है , अचानक उनके बीच का सारा प्रेम गायब हो जाता है |

कितने लोगों ने ऐसा होते देखा है ? पहली संतान के बाद क्योंकि उस आत्मा का काम पूरा हो जाता है , उसके उपरान्त उसे कोई चिंता नहीं रहती कि वे माता पिता क्या करते हैं | इसलिए , अचानक पहला बच्चा होते ही , वह जोड़ा एक दूसरे में रुचि खो देता है |

हमेशा नहीं , ऐसा मत सोचो कि हर किसी के लिए यह लागू होता है | कुछ स्थितियों में ऐसा होता है | कभी कभी ऐसा तीसरी या पाँचवी संतान के बाद भी होता है | अचानक वे एक दूसरे को सहन नहीं कर पाते , क्योंकि उनके स्वाभाव मेल नहीं खाते और उन्हें अस्वाभाविक ढंग से पास लाया गया था उस आत्मा के द्वारा जो इस दुनिया में आना चाहती थी |

इस लिए , यह हो अवश्य रहा है , पर हमेशा नहीं ; लगभग ३० प्रतिशत बार आप कह सकते हैं ऐसा होता है | और वे हमेशा तलाक तक पहुँच जाते हैं क्योंकि वे दोनों व्यक्ति बिलकुल मेल नहीं खाते | अचानक एक को एहसास होता है , “ओह , हम सोचते थे हम एक दूसरे के पूरक हैं और क्या हो गया ?मैं बिलकुल अलग हूँ और हम कभी मेल नहीं खा सकते |”
यह सब स्थितियाँ  आती रहती हैं |

जीवन ऐसा ही है | दोस्त दुश्मन बन जाते हैं और दुश्मन दोस्त | आपने एक व्यक्ति के लिए कुछ भला नहीं किया                और वह आपके लिए भला करने लगता है | इस लिए , दोस्त या दुश्मन , कोई फर्क नहीं पड़ता | आपका जीवन कर्म के किसी और ही नियम से चलता है | इसलिए , अपने सारे दोस्त और दुश्मनों को एक टोकरी में डाल दीजिए क्योंकि एक दस साल की दोस्ती दुश्मनी में बदल सकती है और आपके लिए किसी समय पर एक दुश्मन बहुत अच्छा दोस्त साबित हो सकता है    यह सब आपके और आपके कर्म पर निर्भर करता है |

प्रश्न : अपने किसी करीबी व्यक्ति की मृत्यु को अच्छे से कैसे स्वीकारें ?

श्री श्री रविशंकर : समय की अपनी धारा होती है | कुछ भी स्वीकार करने की या कुछ और प्रयत्न मत करिये | यदि चुभन है , तो वह है , वह स्वयं चली जायेगी | समय बहुत बड़ा घाव भरने वाला है | जैसे समय चलता है ,वह आपको दर्द से दूर और दूर लेता जाता है | इस लिए कुछ भी करने का प्रयत्न मत करिये , समय स्वयम संभाल लेगा | या , जागिये और देखिये कि सबको एक दिन जाना ही है | उन्होंने जल्दी उड़ान भर ली , आप बाद की उड़ान लेंगे | बस इतना ही | इस लिए , जो प्रियजन जा चुके हैं , उनसे कहिये , “कुछ वर्ष बाद मैं आपको मिलूँगा” | अभी के लिए अलविदा कह दीजिए | आप उनसे किसी और जगह किसी और वक्त में मिलेंगे |

प्रश्न : मेरा कोई परिवार नहीं है | मैं कैसे कम अकेला महसूस करूँ  ?

श्री श्री रविशंकर : मैंने आपको इतना बड़ा परिवार दिया है , एक सच्चा परिवार , और वह जो आपकी सच में चिंता करता है | कभी भी मत सोचिये कि आपका कोई परिवार नहीं है | मैं आपका परिवार हूँ | इसी लिए मैं क्रिसमस और नव वर्ष पर हर बार यहाँ आता हूँ | वरना मुझे क्यों आना चाहिए ?

प्रश्न : आपको प्रसन्न करने का सर्वोत्तम उपाय क्या है ?

श्री श्री रविशंकर : आपका खुश होना और दूसरों को खुश करना | आपको प्रयत्न नहीं करना है मुझे खुश करने का , मैं वैसे ही प्रसन्न हूँ | पर मैं अधिक प्रसन्न हो जाऊँगा यदि आप दूसरों की सहायता कर पाएँ  | केवल उन्हें उपहार दे कर नहीं या कोई जश्न मना कर नहीं , बल्कि उन्हें ज्ञान देकर और सशक्त बना कर |

यदि आप लोगों को इस ज्ञान में ला पाएँ ,  यह सब से उत्तम होगा | जब लोग अष्टवक्र गीता को सुनते हैं , वे कहते हैं उनका जीवन बदल गया है | कितने लोगों ने यह अनुभव किया है ? (बहुत से लोग हाथ उठाते हैं)
जब आप अष्टवक्र गीता सुनते हैं , जीवन के प्रति आपका पूरा दृष्टिकोण बदल जाता है |