१८
२०१२
दिसम्बर
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बैंगलुरु आश्रम, भारत
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प्रश्न : गुरूजी , मैं अपने पिता के साथ संवाद
स्थापित करने का प्रयास करता हूँ , किन्तु वे अजीब बर्ताव करते
हैं । वे गुस्सा हो जाते हैं और उपद्रव पैदा कर देते हैं । मुझे समझ में नहीं आता कि मैं क्या करूँ और उनके साथ कैसे
वार्तालाप करूँ । मुझे पता है कि वे बहुत परेशानी और मुसीबत में हैं और इसीलिए वे मेरे साथ या किसी और के साथ बातचीत नहीं कर सकते हैं । मैं क्या करूँ ?
श्री श्री रविशंकर : उन्हें प्रेम के साथ जीतो । क्या आपको पता है कि कभी कभी आपको वही पथ पर चलना पड़ता है जिस पर उपद्रव करने वाले चलते हैं और फिर उन्हें धीरे धीरे समझाने का प्रयास करें और उन्हें बदलें ।
केवल यह करें , उनका दो दिनों तक कोई विरोध
न करें और जो वे कहें वहीं करे । उन्हें इतना प्रेम दीजिये की वे पिघल जाएँ । क्या आपको समझ में आया ? जो मैंने कहा उसे आपने समझा ? क्या आपने ऐसा मार्ग अपनाया है ?
(भक्त: गुरुदेव , मैंने उनसे बात करने की कोशिश की किन्तु वह काम नहीं कर रहा ।) केवल बात करना ही अच्छा नहीं है , क्या आपने उनसे पूछा , "आपको क्या चाहिए ? मैं आपके लिए क्या कर सकता हूँ ?" क्या आपने उनसे यह (बात) पूँछी है ? (भक्त: नहीं , मैंने नहीं कहा) देखिये एक बार भी आपने नहीं पूँछा , " आपको क्या चाहिए ? मैं आपके लिए क्या कर सकता हूँ ?" अब जाकर उनसे आप यह पूँछीयें । क्या आपको पता है कि लोग उपद्रव क्यों करते हैं ? इसीलिए क्योंकि उन्हें असुरक्षितता महसूस होती हैं ।उन्हें प्रेम महसूस नहीं होता ।
अक्सर वे सोचते हैं , "मैं अपने अपनी पत्नी और बच्चों के लिए इतना कुछ करता हूँ , मेरी पूरी जिंदगी सुबह से शाम
उनके लिए बलिदान कर दी , फिर भी उन्हें मेरी परवाह नहीं हैं" । यह भावना उनके ह्रदय को पकड़ लेती हैं ।
उनकी पूरी जिंदगी में , उन्हें जगहों पर जाकर चीज़ों को देखने के बहुत अवसर नहीं मिल पाए हैं । उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी अपने बच्चों और पत्नी के कल्याण के लिए समर्पित कर दी । तो जब उन्हें बदले में कोई प्रेम या मान नहीं मिलता , तो वे गुस्सा/नाराज़ हो जाते हैं ।
जब कोई उनकी बात नहीं सुनता और उनको सन्मान नहीं मिलता तो फिर गुस्सा बढ़ जाता
हैं । हालां कि , वे खुद ही सन्मान पाने के लिए वैसा व्यवहार नहीं करते , फिर भी यह बात समज नहीं आती है ।
क्या वास्तव में यह बात नहीं हैं ? (भक्त: हाँ गुरुदेव) उनका व्यवहार ऐसा नहीं है कि आप उन्हें सन्मान नहीं दे सकते ,पर क्या वे यह बात जानते हैं ? तो आपको यह करना पड़ेगा कि , वे जब अच्छे मूड में हो तब आपको उनके पास जाकर यह पूंछना पड़ेगा , " पिताजी , आपको क्या चाहिए ? मैं आपके लिए क्या कर सकता हूँ ? देखो , कोई भी हमेशा गुस्से की स्थिति में नहीं होता ! लोग अच्छे मूड में भी होतें हैं । जब वे अच्छे मूड में हो तब आप बात कर सकते हैं । जब वे अच्छे मूड में नहीं होते हैं , आप उनसे यह पूँछ सकते हो कि आप उनके लिए क्या कर सकते हैं । जब वह सबसे खराब मूड में हो , तो वहाँ से बस हट जाएँ । तो आपके पास तीन विकल्प हैं लोगों को प्रेम और कुशल बातचीत के द्वारा जीतने का । आज ही , एक महिला ने आकर मुझसे कहा कि उनकी सास बहुत हंगामा कर रही है । उन्हने मुझसे कहा , "यह मेरी दूसरी शादी है , लेकिन ऐसा लग रहा है कि यह शादी भी टूट जायेगी ।मेरी पहली शादी भी मेरी सास की वजह से टूट गयी । अब मुझे इतना भय लगता लगता है कि यह (शादी) भी टूट जायेगी" , और यह कहते हुए वह रोने लगी । मैंने उनसे कहा , वह केवल आपकी सास ही तो है , तो उनका विश्वास कीजिये और बस उनके साथ सहमत सहमत हो जाए । यदि वह दिन को रात और रात को दिन कहे , तो आप कहे , " हाँ माँ , जरुर ।" जब वह सबसे खराब मूड में हो , तो वहाँ से बस हट जाएँ । उनके साथ वादविवाद करना मुर्खता हैं । यदि किसी का मुर्ख लोगों का सामना हो जाए तो क्या कर सकते हैं ? ऐसे मामलों में हमारे पास केवल अल्प विकल्प होता है अपितु खेलते खेलते उनके रास्ते पर चलना होता है । ऐसे ही एक व्यक्ति ने मुझे एक सम्मलेन में आमंत्रित किया था । उन्होंने मुझे एक समारोह में आमंत्रित किया क्योंकि उन्हें मेरे साथ वाद विवाद सभी लोगों के सामने करना था ।
उन्होंने कहा , " यह (श्री श्री द्वारा लिखित) सब गलत हैं ।" उनको मुझे
उकसाना था , ताकि मैं गुस्सा हो जाऊ और उनके साथ भीषण वाद विवाद करूँ ।
उनको दो समुहों के बींच झगड़ा शुरू करना था
ताकि पुलिस आ जाए और हस्तक्षेप करे ,और एक झगडा पैदा हो जाए । उन्होंने केवल कुछ प्रसिद्धि पाने के लिए किया था । उन्होंने कहा , "जो आपने इस किताब में लिखा
है वह गलत है ।" मैंने केवल उनसे कहा ," हाँ , आप एकदम सही कह रहे हो!" एकबार मैं सहमत हो गया , उनके पास कुछ और नहीं था
विवाद करने या लड़ने के लिए । मैं उनका उद्देश्य समझ गया । उनका उद्देश्य मुझे नीचा दिखाना और मेरा अपमान करना था । यह सम्मलेन यहाँ बैंगलुरु में ही हुआ था और वह हिन्दू धर्म और इस्लाम के बारे में था । वह सम्मलेन हिन्दू धर्म और इस्लाम में इश्वर की अवधारणा के बारे में था , और मैंने दोनों धर्मों के बींच क्या समानताएँ हैं उसपर किताब लिखी थी । उन्होंने केवल उस किताब को लिया और विवाद करना शुरू कर दिया और मुख्य बात को नज़र अंदाज़ कर दिया । वे सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य/ बिंदु को ही भूल गए । उनको केवल कुछ विवाद करना था ताकि दोनों सम्प्रदाय झगडा करने लगे ।
बहुत सारे लोग वहाँ आये हुये थे ।
उन्होने उस किताब को लिया और कहा , "यह गलत है ।" मैंने कहाँ , "हाँ , ऐसा हो सकता है ।लेकिन उसे छोड़ दीजिये और सम्मलेन के मुख्य विषय पर ध्यान केन्द्रित करें । क्या आपको पता है कि उस किताब में क्या भूल थी? मैंने हिन्दू धर्म और सूफी संतों के बींच में समानता के विषय में लिखा था , इसीलिए उन्होंने कहा कि सूफी मुस्लिम नहीं हैं ।
मैंने किताब में लिखा था कि सूफी गाने गाते हैं और हिन्दू भी भजन गाते हैं । हिन्दू और सूफी दोनों ही माला जपते हैं । सूफी काबा(मक्का का पावन स्थल) के चारों ओर गोल घूमते हैं , और हिन्दू भी मंदिर के मुख्य मूर्ती की
प्रदक्षिणा करते हैं । बस उसमे क्या गलत था ?
उनको अच्छे मुद्दे को नज़र अंदाज़ करना था , लेकिन मैंने उनसे कहा कि ऐसा नहीं है । मैंने केवल इतना ही कहा कि किताब गलत हो सकती है और उसकी छपाई में गलतियाँ हो सकती हैं । वह एक केवल तीस पन्नो की छोटी सी किताब थी । मैंने कहा , "मैंने उसे जल्दी जल्दी में छपवाया हैं इसीलिए उसमे एक या दो गलतियाँ हो सकती हैं । आप उसे छोड़ दीजिये ।" उन्ही दिनों में ,जैनों का एक बड़ा महोत्सव बैंगलुरु में चल रहा था , जहां पर दिगम्बर और श्वेताम्बर जैन मूर्ति पूजन कर रहे थे । फिर भी उस व्यक्ति ने मूर्ति पूजा की निंदा करना जारी रखा । मैंने उनसे कहा , "देखिये , यह गलत है । जिस किसी भी तरह भी कोई भगवान की पूजा करने के लिए चुनता है , आपको बस उससे उनका अभ्यास करने देना चाहिए । यदि वे ऐसा करते हैं और इसमें उन्हें आनंद मिलता है , तो आप दुखी और गुस्सा क्यों होते हैं ?उनको वैसा करने दीजिये ।आपको जीवन में सब को स्वीकार कर के आगे बढ़ना चाहिए । मोहम्मद पैगंबर ने भी ऐसा ही कहा है ।" मैंने यह बात उनके सामने रखी । तो आप देखिये , कुछ लोग ऐसे ही होते हैं । उन्हें झगडे में ही आनंद मिलता है और दुसरे किसी और वस्तु में रस नहीं मिलता और इसीलिए वे बस झगड़े पैदा कर देते हैं । इसीलिए मैंने कहा , जो भी आप से लोग कहें उनके साथ बस सहमत हो जायें । प्रेम के साथ उन्हें जितिये । जब आपकी सास कुछ कहती है , एक कान से सुनकर दुसरे कान से निकाल दीजिये । आप अपनी माता की डांट सुनते रहते हो , नहीं ? कोई ऐसी कन्या है जिसने अपनी माता से डांट नहीं खायी हो ? हमारे बचपन से ही हम हमारी माता से डांट खाते रहते हैं । आप अपनी माता की डांट से आदि हो जाते हैं और वह आपको कोई असर नहीं करता । लेकिन यदि हमारी सास हमसे कुछ कहती हैं , तो हमे बुरा लगता है । अपनी सास को अपनी माता समझियें । कितना भी आपकी सास आपको डांटे , आपको यह मानना चाहिए कि आपकी माता आपको डांट रही है , और बस हंसकर काम करते रहियें । अन्यथा यदि आपकी सास आपको डांटती है तो आप अपने पति के सामनेरोते हो , फिर आपक़े पति परेशान हो जाते हैं , और फिर जब वह किसी कापक्ष लेते हैं तो घर में क्लेश और अशांति पैदा हो जाती है । जब ऐसा दुःखघर पर आता है तो हिमालय भाग जाने का मन करता है । जब मैंने लोगों को स्वामीजी और सन्यासी बनने के लिए अपने नाम देने केलिए कहा तो बहुत सारे विवाहित व्यक्तिओं ने अपने नाम दे दिए (हंसी) । अपना भक्त संजय चिंतित हो गया । उन्होंने उनसे पूंछा , " आप विवाहित है, तो फिर आप यहाँ पर क्यों है ? आपको वापस जाकर अपने परिवार काख्याल रखना चाहिए ।" वे लोग वहाँ इसीलिए आये हुये थे क्योंकि वे अपनी पत्नी और माता के बींचफँसा हुआ महसूस कर रहे थे । तो , ऐसी परिस्थितियाँ पैदा न करें । मैंकहता हूँ जो भी आपकी सास कहे , आपको उन्हें प्रेम से जीतना चाहिए । यदि सास कुछ कहती हैं , उन्हें कहने दीजिये । जब कोई बुढ़ा होता है तोउनकी शिकायत करने की आदत और बढ़ जाती है । और संभवतः वहकिन चीज़ के बारे में शिकायत करेंगे ? वह यह शिकायत करेंगे की खाने मेंनमक आज थोडा सा ज्यादा है , या कम है , या सब्जी ज्यादा या कम पकीहुयी है । वह यह कह सकती है किआप घर की साफ़ सफाई ठीक से नहीं कररही है । और यदि आप बहुत साफ़ सफाई करेंगी तो वे यह कह सकती है कि, आप पूरा घर साफ़ कर देगी (भारत में चोरी करने के लिए एक रूपक) ।यदि आप बहुत खर्च करेंगे तो वे आपको अतिव्ययी कहेंगे और यदि आपथोडा सा खर्च करेंगे तो वह आपको कंजूस कहेंगे । आलोचना करने के लिए कोई विशेष कौशल की जरुरत नहीं है । एक व्यक्तिदिन के पुरे चौबीस घंटे आलोचना कर सकता है । उन्होंने केवल यहीकौशल प्राप्त किया है ,कि आलोचना कैसे करें । अक्सर ऐसा एक सास और बहू केबींच में होता है । आपकी सास कह सकती है , "मेरी बहू मेरा सन्मान नहींकरती । वह ऐसी है और वैसी है ।वह अपने आप के लिए बहुत ऊँचा मंतव्यरखती है और वह इसे अपना घर नहीं समजती । वह ऐसी बहुत सारी बातेंअपनी बहू के लिए कह सकती है । इसीलिए आपको अपने संवाद मी सुधारलाना चाहिए । फिर चीजें बदलेगी । प्रश्न : गुरुदेव मैं जब आनंद में होता हूँ तब मुझे तीव्र संवेदना महसूस होती है ।क्या आप कृपया शारीर की उर्जा के विभिन्न स्थरों के बारे में कुछ कहेंगे ? श्री श्री रविशंकर : यह पूरा ब्रह्माण्ड कुछ और नहीं परन्तु केवल कंपन ही है । यह पूरा लहरों , संवेदनायों और उर्जा ही है । जब आपका स्पंदन किसी और के स्पंदन के साथ मेल नहीं खाता है तो आप उसे नकारात्मक (स्पंदन/उर्जा) कहते हैं । और जब आपका स्पंदन दूसरों के स्पंदन के साथ मेल खाता है तो आप उसे सामंजस्य कहते हैं और उसे आनंद कहते हैं ।जब आपकी उर्जा सार्वभौमिक हो जाती है , तब बाहरी परिस्थितियाँ जो भी हो , आप उससे अनजान ही रहते हो । जब हम दक्षिण अमरीका में मछु पिचु में गए , पेरू में , और लोगों ने मुझसे पूँछा , " आपको यहाँ के स्पंदन कैसे लगते हैं ?" मैंने कहा , "मुझे कुछ नहीं लग रहा हैं , यह इसीलिए क्योंकि जहाँ भी हम जाते हैं वहाँ पर हम अपने स्पंदन पैदा कर देते हैं । तो इसीलिए मैं नहीं कहता ,"ओ यह सकारात्मक है और वह नहीं है ।"यक़ीनन जब लोग गुस्से में हो , परेशान या दुखी हो , तो निश्चित ही यह नकारात्मक स्पंदन आपके आस पास पैदा कर देता है , बेशक ।लेकिन याद रखिये कि वे आपके सकारात्मक स्पंदन से ज्यादा शक्तिशाली नहीं हैं । आपको शायद ऐसा प्रतीत होता हो कि वे(नकारात्मक स्पंदन) अधिक शक्तिशाली हैं , किन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है । प्रश्न : प्रिय गुरुदेव , एक साधक के रूप में , हमारे मन को केन्द्रित रखने केलिए , क्या हमें लोगों की समस्याओं से दूर रहने का प्रयत्न करना चाहिए ,या क्या हमें उनकी समस्याओं को हल करना चाहिए ? कहाँ सीमा रेखाखींचनी है कैसे पता चलेगा ? श्री श्री रविशंकर : आपको इसे आसानी से करना पड़ेगा । जब आप लोगोंकी समस्याओं को सुलझाने का प्रयत्न करते हो तो फँस नहीं जाना । कुछ अनासक्तता की भावना से कीजिये फिर वह काम करेगा | प्रश्न : गुरुदेव आप एक अद्भुत प्रबंधक है । आर्ट ऑफ़ लिविंग संस्था इतनेकम समय में इतनी बढी है , किसी की कल्पना से भी परे । मैं भी एकप्रबंधक हूँ , कृपया मुझे भी कुछ प्रबंधन के सुझाव दीजिये ? श्री श्री रविशंकर : हाँ , यह सभी कार्यक्रम , अपैक्स (व्यक्तिगत उत्कृष्टताहासिल करना) और टलेक्स (परिवर्तनकारी नेतृत्व और उत्कृष्टता)कार्यक्रम है जो आपको इसकी जानकारी केप्सूल और पैकेज में आपकोदेते हैं । एक बात ध्यान में रखिये , ब्रह्माण्ड का प्रबंधक इतना साक्षात नहीं है । जोइस ब्रह्माण्ड का संचालन कर रहा है वह यह प्रकट होने नहीं देता कि वह यह सब कर रहा है और यह सब उसके नियंत्रण में हैं । उसी तरहपीछे से संचालन कीजिये । पीछे से संचालन और नेतृत्व करना सबसेअच्छा है । जब आपको कोई परियोजना का संचालन और नेतृत्व करना हो तब आप को अपने संचालन और नेतृत्व पर बहुत जोर नहींदेना चाहिए । आपको उसे पीछे से करना चाहिए ।
संस्कृत में एक कहावतहैं , "परोक्ष प्रियाही वाई देवः
जिसका मतलब है कि ईश्वर को चीज़ें परोक्ष रूपसे
करना अच्छा लगता है न की साक्षात रूप में । एक व्यक्ति को लगता है ,मैं यह कर रहा हूँ लेकिन वह ईश्वर ही आपसे करवाता है । तो वे मनुष्य कोआनंद की भावना देते हैं कि वह कार्य कर रहा है , लेकिन वास्तव में वहईश्वरीय
उर्जा ही है जो उसे सुक्ष्म रूप में करती है , और वह इतनी स्पष्ट नहींहै ।
प्रश्न : गुरुदेव मैं फैशन उद्योग से हूँ , क्या आप कृपया कर के फैशन औरसद्भाव के विषय में कुछ कहेंगे ? कैसे हम सद्भाव का संदेश फैशन के द्वारा देसकते हैं ? श्री श्री रविशंकर : फैशन का मतलब हैं वर्तमान क्षण में होना । पुरानाफैशन एक ऑक्सीमोरॉन है (एक दुसरे के विरोधाभासी शब्द जो एक दुसरे केसाथ जुड़े हो) क्या आप समझ रहे हैं कि मैं क्या कह रहा हूँ । तो फैशन कुछनया करने की चाह है । पूरा ब्रह्माण्ड हर समय अपने आप को फैशन के नए साँचे में ढलता है ।आप को पता है कि बादल के अपने फैशन है । हर दिनवह एक दूसरा रूप लेता है । सूर्यास्त का एक अपना रस होता है , ठीक है ना ? यदि आप प्रकृति देखें तो हर समय वह नवीनतम है , और मनका स्वभाव हर पल कुछ नया चाहना ही तो फैशन है । तो वह आपकोवर्तमान क्षण में लेकर आता है । प्रश्न : जय गुरुदेव ! जब कोई काम विश्वास और भरोसे के साथ पूर्ण होता हैतो हमें बहुत अच्छा लगता है , किन्तु कभी कभी कुछ बुरा होता है या हमें कोई बुरा अनुभव होता है तब उस समय हम कैसे ऐसी स्थितियों को विश्वासऔर भरोसे के साथ संभाले ? श्री श्री रविशंकर : देखियें , ऐसे ही जीवन में होता हैं । कुछ अच्छी चीज़ें हैंऔर कुछ बुरी चीज़ें होती हैं , और कुछ दुर्भाग्यपूर्ण भी होती हैं । हमे रुकनानहीं चाहिए , बस आगे बढ़ते रहना चाहिए । यदि आप बैठकर विश्लेषणकरते रहेंगे तो और वक़्त बर्बाद होता है । यह सोचते रहना , "ऐसा क्यों हुआ? ऐसा क्यों नहीं हुआ ? मुझे विश्वास है , फिर भी बात नहीं बनी ," यह सबसमय की बर्बादी हैं । यह समजिये कि विश्वास और उत्साह के साथ हमेंआगे बढ़ते रहना चाहिए , क्योंकि विश्वास रखते हुए हमें कितनी शांति ,सुखऔर शक्ति मिलती हैं । एक हादसे से यदि हम अपना विश्वास खो देते हैं तोफिर हमें ही सहन करना पड़ता है और किसी को नहीं । विश्वास एक बड़ीदौलत है , तो उसे बनाये रखिये , बटोरियें और आगे बढ़ते रहिए । यदि सौहज़ार बार भी हमें ऐसा लगता है कि हम विश्वास खो रहे है , फिर भी हमेंआगे बढ़ते रहना चाहिए । हज़ारों घटनाएँ आएंगी और आपके भीतर संशय पैदा कर देंगी फिर भी अगरअगर आप विश्वास और हिम्मत के साथ आगे बढ़ते रहेंगे तो फिर यह कहसकते हैं कि आप के पास सच्चा विश्वास है । जिस व्यक्ति के पास मजबूतविश्वास हो उसे जीवन में कभी भी कोई विफलता नहीं मिलेगी और पतन नहीं होगा । प्रश्न : गुरुदेव मैं , 70 साल का हूँ और मैं जहाँ पर भी जाता हूँ आपके अनुग्रहके बारे में बात करता हूँ । मैं यहाँ पर पूरे विश्वास और कृतज्ञता के साथआया हूँ । मेरे बेटों ने मुझे यहाँ पर भेजा है और मुझे आपके ज्ञान को लोगोंमें फैलाने के लिए कहा है , हर घर में , और हर गांव में । पिछले छह सालोंसे मैं इस ज्ञान को फैलाने के लिए घर घर जाता हूँ । जब मैंने प्रीतमपुरा मेंकोर्स का आयोजन किया था तो मैंने एक भी घर एक भी ब्लाक नहीं छोड़ा थाऔर परिणाम स्वरुप ११३ लोगों ने श्री श्री योग कोर्स किया था । श्री श्री रविशंकर : जरा इस माँ के उत्साह को देखियेयें । आपको यह नहींकहना चाहिए "ओ मैं यह नहीं कर सकता , मैं कितना बुढा और वृद्ध हो गयाहूँ । बुढ़ापे में भी आप लोगों के साथ बातचीत करके उनके मन की शुद्धि करसकते हैं । उम्र के साथ वृद्ध शरीर के साथ आप कोई कमरा साफ़ नहीं करसकते हैंक्योंकि आपके पास ताकत नहीं हैं , लेकिन शब्दों के द्वारा कम सेकम आप लोगों के मन की शुद्धि तो कर सकते हैं । तो हम सभी बहुत कुछकर सकते हैं । सोचना बंद कीजिये , वे लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगे ? बसबेशर्म होकर सेवा कीजिये ।
जो लोग सोचना चाहते हैं वह सोचते ही रहते हैं उनका काम केवल सोचना ही है । यदि आप कुछ अच्छा भी
करेंगे फिर भीलोग निंदा करेंगे । वे लोग आपके बारे में नकारात्मक बातें भी सोचेंगे ,क्योंकि कुछ लोग बस ऐसा ही
कर सकते हैं । लेकिन यदि आपके शब्दों
केद्वारा यदि किसी के मन का आप शुद्धिकरण कर सकते हैं , तो वह अच्छा है ।हमें अपना
वक़्त बर्बाद नहीं करना चाहिए । चाहे हमें कहीं भी जाना पड़े,हमें हमेशा इस ज्ञान में रहना
चाहिए । तब फिर हमारा उत्साह जीवन में से कम नहीं होता । अन्यथा आप रोते रहेंगे कि आपको यह नहीं मिला या वहनहीं मिला या आपको कोई बिमारी है या कुछ और ।
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