१६
२०१३
मार्च
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नयी दिल्ली, भारत
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इंडिया टुडे का सम्मलेन (कोंक्लेव)
सूर्य प्राचीन है, किन्तु आज, सूर्य की किरणें
ताज़ा हैं। यह किरणें पुरानी या बाँसी नहीं हैं। उसी तरह पानी की बात है।
गंगा नदी कितनी प्राचीन है, लेकिन उसका आजका पानी कितना ताज़ा हैं। उसी तरह, मैं कहूँगा कि, बुद्धिमत्ता ऐसी वस्तु है जो हमारे जीवन
में लागू होती है,
जो प्राचीन है, फिर भी ताज़ी और नयी है। जिसने जीवन को बनाये रखा है वही
ज्ञान है।
देखिए, अज्ञानी या जो कट्टर
धार्मिक है, वो तथाकथित बुद्धिजीवी
शोभाचारी नास्तिक हैं, और वे बुद्धिमान लोग है वे पुराने और नए का गठबंधन
करके अपने जीवन को बनाना जानतें हैं। जैसे एक पेड़ जिसकी जडें पुरानी होती हैं, लेकिन उसकी टहनियाँ
नयी होती हैं,
उसी तरह जीवन में अनुकूलनशील होना चाहिएं, और बस यही पुरातन ज्ञान हैं।
रिग वेद में सबसे पहला श्लोक है, "अग्निह्पूर्वेभिर रिशिभिर इद्योनूतनैरुत"।
पुरातन और नया एक साथ मौजूद होते हैं और यही ज्ञान है।
प्रौद्योगिकी और व्यापर की तरह, परंपरा को भी पुनर्जीवित करना और उसकी समीक्षा करना अवश्यक
है। यह जरुरी है। और भारत का जोश यह ही की हम इसे कर सकते हैं । पुरातन काल से, परंपरा के कुछ पहलुओं
को बरक़रार
रखा गया है, फिर भी
समय के साथ आधुनिक समय की मांग के साथ वे बहुत अनुकूलनशील हो गयें, जीवन की चुनौतियों
को पूरा करने के लिए।
वास्तव में बुद्धिमत्ता क्या है? हमें बुद्धिमान
क्यों होना चाहियें?
किसी को भी दुखी नहीं होना है।किसी
को भी परेशान/व्याकुल नहीं रहना है। जो चीज़ हमें दुःख से दूर ले जाती हैं, जो हमें दृष्टि
देती है, जो जीवन
में जोश लाता है,
और जो व्यक्तिगत आप को सार्वभौमिक आपके साथ ब्रह्माण्ड में जोड़ता हैं, वही ज्ञान है।
ज्ञान जीवन में बहुत संतोष लाता है
जो छोटी छोटी संतुष्टि नहीं ला सकती। और यह सभी को उपलब्ध है। इसका शिक्षा के
साथ कुछ लेना-देना नहीं हैं, मैं कहता हूँ। आपको गावों में अशिक्षित लोगों में भी
ज्ञानी व्यक्ति मिलेंगे। शायद ज्यादा। उन्हें पता है कि कैसे अपना
घर चलना चाहिए,
उन्हें पता है कि कैसे अपने पड़ोस में मधुर सम्बन्ध बनाये रखना चाहिए, उन्हें पता है कि
कैसे लोगों के एक साथ में लाना हैं, और जीवन में उत्सव कैसे
लाना चाहिए। ज्ञान वही है जो जीवन में उत्सव लाता है, और जो आपके चेहरे पर
मुस्कान लाता है। जो आपको निरोगी/स्वस्थ रखता है और जो आपको एक अंतर्ज्ञान
रखने की क्षमता देता है कि जीवन में आगे क्या है। यहाँ पर
जैसे हम विचार के बारे में कह रहे है, मुझे एक और बात कहनी है। मुझे
लगता है
कि विचार एक घर का केवल एक द्वारपाल ही है। भाव विचार
की तुलना में थोडा ज्यादा शक्तिशाली है। आप सोचते हैं "मैं खुश हूँ," या आप अपना
पूरा ध्यान उस विचार पर केन्द्रित करते हैं, लेकिन जब भाव आते हैं, बस, वे बस इतनी
तीव्रता से (मन में) प्रवेश जाते हैं, कि आपकी जो विचार प्रक्रिया
है जो आपने अपने पास रखी है, बस गायब हो जाती है।
तो हमें जीवन के परतों पर काम करना
जरुरी हैं। पहला है पर्यावरण, फिर है शरीर, श्वास - श्वास मन और शरीर के बींच का सेतु
है। फिर है मन,
विचार। फिर है भावनाएं जो मन से ज्यादा शुक्ष्म और शक्तिशाली होती
हैं। और फिर उसके भी परे, उर्जा का क्षेत्र, जो सकारात्मकता है, जो तेज/प्रभास/चमक
है, वो आत्मा
जो आप हो, वह गणना
में आता है।
और यह सभी ध्यान की तकनीक, इसाई परंपरा में
मननशील प्रार्थना,
या बौध जेन ध्यान, यह सब इसीलिए
है की विचार को पार करने के बाद और उस स्तर पर पहुंचना जहां से सबकुछ चलता है।
और यह ऐसा है जैसे किसी घर के मालिक का ध्यान रखना। एक बार जैसे ही घर के मालिक का
ध्यान रखते है तो द्वारपाल घर के मालिक का ही सुनेगा।
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