८
२०१३
अप्रैल
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बून, उत्तर कैरोलिना
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प्रश्न : गुरुदेव, आप जैसे महापुरुष इस दुनिया में प्रायः
कितनी बार आते हैं ? वे कैसे तय
करते हैं कि कब वापस आना है ?
श्री श्री
रविशंकर : यह एक रहस्य है!
प्रश्न : गुरुदेव, क्या
आप हमें सप्त ऋषियों के बारे
में बता सकते हैं ?
श्री श्री रविशंकर : ब्रह्माण्ड में "चंदस" नामक लय है । सभी कुछ एक तरंग की लय ही है, और कुछ
तरंग के प्राप्त कर्ताओं को ऋषि कहते हैं । ऋषि एक पद है; यह
किसी का नाम नहीं है और यहां पर एक हज़ार से
भी ज्यादा ऋषि हैं । उन्मे से सात
बहुत महत्वपूर्ण हैं,और वे सात चक्रों से सम्बंधित है । ऋषि
हर युग में रह चुके हैं, और उनके बारे में बहुत सारी कहानियाँ
हैं । ऋषि एक डीन या विश्वविद्यालय के कुलपति की तरह है । उन्होंने भी प्रशिक्षण
लिया, और फिर वे परंपरा का हिस्सा बन गये । तो
जैसे आप कहते हैं, "मैं हार्वर्ड (विश्वविद्यालय) का
भूतपूर्व छात्र हूँ, या मैं स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय का
स्नातक हूँ, उसी तरह गोत्र होते हैं ।
"गो" मतलब ज्ञान, और गोत्र का मतलब विशेष ज्ञान समूह या
ऋषि परंपरा से सम्बंधित हैं । तो जिस तरह से विविध डीएनए या ब्लड ग्रुप होते हैं, अलग
अलग गोत्र या परिवार होते हैं जो विविध ज्ञान समूहों से या ऋषि परंपरा से उत्पन्न
होते हैं ।
प्रश्न : सप्त ऋषियों के नाम
क्या हैं?
श्री श्री रविशंकर : सप्त या सात
ऋषियों के नाम हैं, कश्यप, अत्री, वाशिष्ट,
भरद्वाज, गौतम, जमदग्नि और
विश्वामित्र ।
प्रश्न : श्राद्ध
परंपरा का क्या महत्व हैं?
श्री श्री रविशंकर : श्राद्ध
मतलब कुछ अच्छे काम श्रद्धा से करना, उनकी याद में
जो दूसरी तरफ (मृत्यु) जा चुके हैं । यह परंपरा गरीब लोगों को खाना खिलाने, उनका
ध्यान रखना और उनको कुछ भेट देने के कार्य से शुरू हुआ था | हालांकि कोई भी अच्छा काम उनके लिये जो गुजर
चुके हैं उनकी याद में किया गया हो, जैसे कि दान देना या उनके नाम से दक्षिणा देना, यह सब श्राद्ध का ही रूप
हैं । उनका उद्देश्य उनका आभार प्रकट
करना हैं, बावजूद इसके कि वे इस
स्तर पर नहीं हैं । दिवंगत के लिए समारोह पुरे विश्व में
मनाये जातें हैं । सिंगापोर में, यह एक उत्सव जैसे होता हैं, और
सार्वजनिक छुट्टी होती हैं । चीन में भी यह एक बहुत बड़ा आयोजन होता हैं । सिंगापूर
में ऐसी मान्यता है, कि जो आप पूर्वजों को प्रदान करते हो, वही
चीज़ आपको आशीर्वाद के रूप में वापस मिलती हैं । तो जो आशीर्वाद पाने की इच्छा
लोगों में हो, वे वही चीज़ें कागज़ की बनाकर उन्हें
जलाते थे । उनकी यह मान्यता है कि जो चीज़ों आप आग के द्वारा अर्पित करते हैं, वही
चीज़ें आपको यहाँ पर आशीर्वाद के रूप में मिलती हैं । उदहारण जे तौर पर, यदि
किसी को कोई कार या फ्रिज चाहिए तो वे एक बड़ी सी कागज़ की गाडी या फ्रिज बनाते हैं, उसे रास्ते में रखते हैं, और उसे
जलाते हैं ।
यदि उन्हें एक मिलियन डॉलर चाहिए, तो वे
नकली एक मिलियन डॉलर के नोट (मुद्रा) जलाते हैं । यह एक आश्चर्य है कि कैसे
मानवजाति अपने आप को बेवकूफ बनता है और असली मुद्रा की उम्मीद रखते हैं । वैसे भी
यह एक पारंपरिक प्रथा है । भारत में, ऐसी ही चीज़ें
होती है । लोग भगवती या जगत माता से प्रार्थना करते हैं, और एक
नारियल चढाते हैं । वे कहते हैं, "मैं २ १ नारियल चढाऊंगा, मुझे सही
व्यक्ति के साथ शादी करा दिजिये । जैसे जगत माता आपसे २ १
नारियल की उम्मीद रखती हो !
निर्दोष व्यक्ति कुछ पाने के लिए
कुछ करते हैं । उसे मन्नत कहते हैं, उसका मतलब यह
है कि आपको कुछ अहसान पाने के लिए कुछ करना पड़ेगा ।
प्रश्न : कितने समय तक श्राद्ध
की रस्म मनाई जाती है?
श्री श्री रविशंकर : प्राचीन काल
में, श्राद्ध की रस्म जब तक आत्मा दोबारा जनम लेती है, तब तक
मानते थे । तो वे पंद्रह साल तक मानते थे और फिर उनको पता चलता था कि आत्मा ने
दोबारा जनम लिया है, और वे रस्म बंध कर देते थे ।
प्रश्न : इन समाराहों का क्या
महत्व हैं?
श्री श्री रविशंकर : ब्राह्मण के घर में श्राद्ध एक विस्तृत समारोह होता है । स्त्रियाँ
सुबह जल्दी उठकर खाना बनाती है और केवल कुछ ही भोजन खाए जाते हैं । बाद में पंडित आते
है और वे रस्म निभाते हैं जहां पर सारे देवता (स्वर्गदूत या देवताओं) को आमंत्रित किया जाता है, दिवंगत माता पिता को बुलाने के लिये । माता पिता के तीन पीढ़ियों को याद किया जाता
हैं और कुछ चावल के पकवान कौवों को खिलते है । वे इंतज़ार करके यह देखते थे कि
कौन सी दिशा से कौवे आते हैं, कैसे वे भोजन को ग्रहण करते हैं, कहाँ पर जाते हैं,
और यदि क्या वे संतुष्ट
हैं? यह एक टैरो कार्ड पढने जैसी बात हैं, जिसमे संकट के आधार पर यह अर्थ निकल जाता है की क्या हुआ था
या क्या हो रहा है । यह थोडा सा जटिल है,
कभी कभी ज्यादा जटिल होता
है । मुख्य बात यह है कि व्यापक खाना या भोजन बनाकर लोगों को खिलाना । मुझे लगता है
कि यह सब कुछ मानव निर्मित है । हो सकता है की इसमें कुछ वैज्ञानिक बात हो । हमे इसमें
देखना चाहिए | एक रस्म
होता है जिसे तिल तर्पणं कहते है,
तिल के बीज को पानी के
साथ अर्पण करना । मुझे यह लगता है कि इस रस्म का उद्देश्य यह है कि जो लोग उस पार जा
चुके है उन्हें यह बताना कि यदि आप के मन में कुछ इच्छाएं है तो उन्हे छोड़ दीजिये , क्योंकि इच्छा एक तिल के दाने की तरह छोटा और तुच्छ है । हम
आपके बच्चे यहां पर आपकी इच्छाओं को पूरा करेंगे आप उसे छोड़कर आगे बढिए । भारत में, तिल का मतलब छोटा, तर्पण का मतलब पूरा करना और तृप्ति का मतलब संतुष्टि । तो तर्पणं
का मतलब "संतुष्ट रहो" । दिवंगत को हम तीन बार कहते हैं, "संतुष्ट रहिये" । संदेश यह है कि, "आप इस दुनिया को छोड़ चुके है । वहाँ जाने पर उत्कंठित
न रहिये । यदि कुछ असंतुष है, तो उसे जाने दिजिये । आगे बढिए
। यह दुनिया बहुत बड़ी है, यहां पर बहुत कुछ है, आप प्रकाश की ओर चलिए और इस बंधन को यहीं पर छोड़ दिजिये । यदि
आपकी कोई इच्छाएं अधूरी रह गयी हो,
तो हम उसे पूरा करेंगे, आपके बच्चे होने के नाते से । आप संतुष्ट रहिए । हम आपके बच्चे यहांपर आपकी इच्छाओं को पूरा करेंगे आप उसे छोड़कर
आगे बढिए ।यह मंत्र कितने सुन्दर है । कितने अच्छे है ।
प्रश्न : अंतिम संस्कार के रस्म का क्या महत्व हैं?
श्री श्री रविशंकर : अंतिम संस्कार का भी एक उद्देश्य है,वे बहुत अच्छे हैं । मंत्र को कान में उच्चारण करते है क्योंकि
आत्मा कुछ देर शरीर में रहती है, जो जाती नहीं है । उन्हें कहा जाता है, देखिये यह शरीर अपने मूल तत्वों में वापस जा रहा है । आप वह
नहीं है, आप प्रकाश हैं, आगे बढिए । पुत्र या पुत्री इसे कहते हैं । आज यह रस्म
पुरुष प्रधान हो गयी है । भारत में एक ऐसी मान्यता है कि मुक्ति पाने के लिए आपके पास
पुत्र का होना जरुरी है, क्योंकि मृत्यु के पश्चात पुत्र ही आपको यह सारे मंत्र कहेगा, आपको ज्ञान देगा और मुक्ति देगा । पुत्र के बिना मुक्ति नहीं
है! लेकिन यह सत्य नहीं है । पुराने ज़माने
में, पुत्रियों को भी यह अधिकार हुआ करता था । आर्ट ऑफ़ लिविंग
कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ लड़ रहा है । हम यूनिसेफ और यूनाइटेड नेशन फैमली फण्ड के साथ मिलकर लैंगिक समानता पर काम कर रहे हैं । हिन्दू शास्त्रों में लैंगिक
समानता के बारे में कहा गया है,किन्तु मध्य युग में यह बदल गया
। यदि आप बाली में गए,एक प्राचीन हिन्दू संस्कृति, आपको स्त्री पुजारी मिलेंगे । (बाली की हिन्दू संस्कृति भारत से पुरानी है)भारत में यह प्रथा गायब हो गयी । महिलायों को पुजारी बनने नहीं दिया जाता । क्या यह अच्छी बात
नहीं है जो उस पार जा चुके हैं, "संतुष्ट रहिये" । वहाँ पर खुश रहिये । मुझे यह लगता है कि यह एक उत्तम संदेश
है, आप उसे मनन भी करे तो! मानसिक कार्य उनके लिए है जो थोड़ी सी ज्यादा बुद्धि रखते हैं | कम बुद्धि वाले लोगों को कुछ कार्य करना
अनिवार्य होता है । आपको जो बुद्धिमान है उसके लिए फूल लाना जरुरी नहीं है । किन्तु
मुर्ख व्यक्ति के लिए कुछ कार्य करना अनिवार्य होता
है । जिनके पास उच्च स्थर की बौद्धिक परिपक्वता नहीं होती है, वे कुछ कार्य किये बिना रह सकते
हैं । इसीलिए कार्य में भी उनहोंने कितना सार्थक बनाया है । तिल के कुछ बीज लीजिये
थोडा सा पानी डालिए और दिवंगत को याद किजिये
। बस उतना ही । यह श्राद्ध है, और कुछ नहीं । बाद में,
पुजारियों और पंडितों ने
सोचा वैसे भी लोग अर्पण कर ही रहे हैं,क्यों न उसके साथ एक या दो रुपये
भी चढ़ाएं जाएँ?तो जब वे सिक्के अर्पण करते हैं, पंडीत उसे रख लेते हैं । सिक्कों का कही पर भी जिक्र नहीं हैं, केवल तिल के दानों का ही जिक्र हैं । आप इस भाव से करे की "संतुष्ट रहिये,
सभी लालसाओं को छोड़ दिजिये
। यदि आपके भीतर अभी कुछ इच्छाएं है,
मुझ पर छोड़ दिजिये ।“
प्रश्न : ज्ञानी और महापुरुषों के लिय भारत ही पसंदीदा गंतव्य स्थान क्यों हैं?
श्री श्री रविशंकर : ऐसा नहीं है की केवल भारत में ही महापुरुष हुये हैं, नहीं!
कैलिफ़ोर्निया यह शब्द "कपिल ऋषि" से आया है । वे भगवान श्रीकृष्ण के अवतार थे । वे कैलिफ़ोर्निया
में जन्मे थे और वे लम्बे समय तक रहे । वह जगह को कपिलारान्य कहा जाता था । शास्त्रों
में यह कहा गया है की कपिलारान्य भारत से बारह घंटे की दूरी पर है । नोवा स्कोटिआ (कनाडा में) भी एक संस्कृत नाम है । नवस कोश
का मतलब है कि वह भारत से नौ घंटे की दुरी पर है । एक कोष का मतलब एक
घंटे की दूरी होता है । नवस कोश का मतलब नौ
घंटे का फर्क होता है, और वह वास्तव में नौ घंटा है ।
प्रश्न : गुरुदेव उल्लेख किया की इन नामों का मूल संस्कृत (भाषा) है । और क्या नाम है जो संस्कृत
से उभरे हैं?
श्री श्री रविशंकर क्या आपको पता है ही सभी महीनो के नाम संस्कृत में हैं? कुछ सदियों पहले तक,
नया साल मार्च में ही शुरू
हुआ करता था, जब सूर्य मेष में पहले चरण में घूमता था । हालांकि लंदन
के किंग जोर्ज ने जनवरी १ को नया साल मनाने का निर्णय किया । नए साल की घोषणा करने के बावजूद, लोग उसका पालन नहीं करते थे । वे मार्च अंत - अप्रैल १ को ही नए साल की तरह मनाते रहे । तो लोगों को अप्रैल
१ के दिन नया साल मनाने से रोकने के लिए,
उसने अप्रैल १ को अप्रैल
फूल्स डे कहना शुरू किया । अब महीनों के अर्थ हम देखते हैं । फागुन का मतलब आखिरी,
अतः फेब्रुअरी आखिरी महिना
है । मार्च का मतलब नयी शुरुवात करना,और आगे बढ़ना (नए साल का पहला महिना) । अगस्त का मतलब शस्थ, छटा महिना । अम्बर का मतलब आकाश; सप्त का मतलब सात,
सप्त अम्बर, का मतलब सातवा आकाश । अक्टूबर का मतलब अष्ट, आठवा आकाश । नवम्बर,
(नव ) अम्बर मतलब नववा आकाश । दस अम्बर का मतलब दसवा आकाश या दसवा
महिना । जनवरी ग्यारहवां महिना है,और फरवरी बारावा महिना है । शुरू
शुरू में कलेंडर ऐसा हुआ करता था । भारतीय,
ईरानी, अफगानी और मिस्त्र कैलेंडर इसी प्रणाली के अनुरूप है । चीनी
नया साल भी फरवरी के अंत में ही शुरू होता है,
मार्च महीने की शुरुवात
मे । सभी तारीख, दिन और महीने सूरज और चन्द्र कैलेंडर के अनुसार आयोजित है ।
सोलर कैलेंडर, अंग्रेजी कैलेंडर की तरह, एक ज्यादा दिन होता है । और लूनर कैलेंडर में एक महिना ज्यादा
होता है, जो हर चार साल में एक बार आता है । इस साल में एक महिना
ज्यादा है, और इसीलिए सोलर और लूनर महीने इतना नज़दीक आ गए है । इस
साल, जब चन्द्र मेष राशि के पहले चरण में आता है, अप्रैल १०, लूनर नया साल है । और सूरज मेष
के पहले चरण में आता है, अप्रैल १३ , इसे सोलर नया साल कहते हैं । क्या आपको पता है कि आपकी सांस सूर्य और चन्द्र के
साथ समन्वय करती है? यह एक सुन्दर विज्ञान है । जैसी सांस लूनर महीने के पहले दिन चलती है
वह सोलर महीने के पहले दिन चलने वाली सांस से भिन्न है । आप देखेंगे की आपकी सांस दाई नासिका या बांयी नासिका से मेल
करती है, यह आपको पता चलेगा । तो सुक्ष्म जीवाणु और बड़े जीवाणु
एक दुसरे के साथ अद्भुत तरीके से जुड़े हुये है ।
प्रश्न : गुरूजी केवल एक ही आकाश
है । तो सातवां आसमान आठवां आसमान क्या होता है?
श्री श्री रवि रविशंकर: आकाशगंगा
में ३६० अंश है । वे बारह भागों में विभाजित हैं, और
उनमे से हर एक राशि चक्र है । इसे राशि कहते हैं । जब पृथ्वी घुमती है, तब
पृथ्वी सूर्य को इन अंशों में से किसी एक अंश में होना मानती है, और यह
एक आकाश कहलाता है । देखिये, सितारें स्थिर है, किन्तु
पृथ्वी घूम रही है । जब पृथ्वी सूर्य के आसपास घुमती है, तब
पृथ्वी घूम रही है ऐसा दृष्ट होता है, और
इसीलिए पृथ्वी सूर्य को किसी दुसरे स्थिति में देखता है । उसे मेष राशि कहते है ।
जब पृथ्वी फिर घुमती है, वह अपने आप को मकर राशि में पाती है ।
जब पृथ्वी और घुमती है,वह अपने आप को कन्या राशि में पाती है ।
तो यह है सातवां आसमान आठवां आसमान इत्यादि ।
प्रश्न : हफ्ते के दिन किस बात
पर आधारित है?
श्री श्री रविशंकर : हफ्ते के
दिन सूर्यमंडल के प्रमुख ग्रहों के नाम के अनुसार आधारित है । प्रत्येक दिन एक
ग्रह के अनुरूप है । सूर्य के लिए रविवार, चन्द्र के लिए
सोमवार, मंगल के लिए मंगलवार, बुध के
लिए बुधवार, बृहस्पति के लिए गुरुवार, शुक्र
के लिए शुक्रवार और शनि के लिए शनिवार ।
प्रश्न : ग्रहों का हमारी सेहत
पर कैसे असर होता है?
श्री श्री रविशंकर : श्री श्री
रविशंकर:शुक्ष्म जीवाणु और बड़े जीवाणु का बड़ा संबंध है । प्रत्येक गृह एक विशेष
अनाज, रंग, आकार पक्षी और
जानवर के साथ जुड़े हुये हैं । यह सभी जुड़े हुये हैं, यह शरीर
के विशेष अंग से भी जुड़े हुए हैं । आपकी उंगलियाँ भी!
क्या आपको पता है प्रत्येक ऊँगली
विशेष गृह से जुडी हुई है? शुक्ष्म जगत और अशुक्ष्म जगत को एकत्रित
करने वाला यह अद्भुत विज्ञान है । उदहारण के तौर पर, मंगल
गृह लीवर और पित्त से जुड़ा हुआ है, और पित्त चने
की दाल से जुडी हुई है । यदि आप ज्यादा चना दाल खायेंगे, तो आप
देखेंगे की आपका पित्त बढ़ गया है । तो पित्त, चना दाल, मंगल
यह सभी जुड़े हुए हैं । भेड़ भी मंगल गृह से जुड़ा हुआ है; वह
गर्मी देता है, उन प्रदान करता है; ऐसे भेड़
जुडा हुआ है । उसी तरह शनि गृह कौवे से जुड़ा हुआ है । वह काले तिल के साथ भी जुडा हुआ है, और
आपके दांतों के साथ भी ।
ज्योतिष चिकित्सा नामक कुछ होता
है, जहां पर आप एक लेखाचित्र में देख सकते हो, किस
प्रकार की बीमारियाँ आपको हो सकती है या खतरा हो सकता है । ज्योतिषशास्त्र के
द्वारा आप यह सब लेखाचित्र से देख सकते है । दुर्भाग्यवश इनमे से काफी सारा ज्ञान
खो हो चूका है । काफी हद तक शास्त्र आधे लुप्त हो गये हैं , क्योंकि
वह सारे ताड़ के पत्तों पर लिखा गया था, कुछ पत्तो में
छेद थे । कुछ ज्ञान ठीक तरीके से रखा नहीं गया था । बावजूद इसके कुछ ज्ञान आज भी
उपलब्ध है । ज्योतिष विद्या एक अद्भुत विज्ञान है लेकिन ज्योतिषियों ने इसे ठीक से
पढ़ा नहीं है । ज्योतिषियों के बारे में मेरी अपनी राय है । लेकिन, मुझे
जोतिश शास्त्र के बारे में पता है, कैसे यह संबंध इतना
वैज्ञानिक है । यह बहुत व्यवस्थित है, सभी संबंध बहुत
वैज्ञानिक द्दृष्टी से स्थापीत है ।
देखिए, सूर्य
आपकी आखों से जुड़ा हुआ है । उसी तरह बृहस्पति आपके नाक से जुडा हुआ है, शनि
गृह आपके दांतों से जुडा हुआ है और गाल शुक्र से जुडा हुआ है । कपाल बुध से जुडा हुआ
है । तो यह एक बहुत सुन्दर विज्ञान है और आप चीज़ों को सुक्ष्म तरीके जान सकते हो ।
आप किसी का चेहरा देखकर उसके बारे में लेखाचित्र बना सकते हो । हालांकि, यह
विज्ञान खो गया है, लगभग खो ही गया है ।
उदहारण के तौर पर किसी ने तीन
चार दशक पहले किसी ने भी वास्तुशास्त्र के विषय में कुछ भी सुना नहीं थ । भारत में
भी लोगों ने इसके बारे में सुना नहीं था, लेकिन, यह अब
उभर आया है । महर्षि महेश योगी पहले थे जिन्होंने इस ज्ञान को वापस ले आए ।
वास्तुशास्त्र को बढ़ावा देने का सुझाव उनका था । तब से, यह
दुनिया में चल पड़ा है । उनके पहले, केवल मंदिर वास्तुकार
और बिल्डर इसमें कुशल थे । वास्तुशास्त्र में भी, ज्यादा
किताबें उपलब्ध नहीं हैं । इसके आलावा, एक ही
वास्तुशास्त्र हर जगह पर उपयोग नहीं किया जा सकता, जो
भारत के लिए लागू होता है वह रूस या अमेरिका से भिन्न होगा ।
प्रश्न : क्या चॉकलेट से नाड़ियाँ बंद करती है?
श्री श्री रविशंकर : मुझे चॉकलेट के बारे में पता नहीं है ।
आप किसी पोषण विशेषज्ञ से पूँछ सकते हैं
। कोई भी चीज़ अधिक मात्रा में लेना अच्छा नहीं । वैसे
भी,मैं यह कहूँगा
की, मेरे लिए
कोई भी चॉकलेट
या मिठाई न लाईये । आप मुस्कुराईये, बस उतना ही काफी है । मैं
देख रहा हूँ की काफी सारे लोग मिठाई, चॉकलेट ला रहे हैं, यह सब
मत लाईये । इन पर पैसे खर्च क्यों करना? आप उसका उपयोग
कर सकते है । भारत में, मैं
कहता हूँ,
"यदि आप मिठाई लाते हैं, मुझे यह लगेगा की आप मुझ से
यह कह रहे है कि मैं पर्याप्त मीठा नहीं हूँ, मुझे मीठा बनने की जरुरत
है । यदि आप मेरे लिए फूल लाते है तो मुझे यह लगेगा की आप मुझसे यह कह रहे हैं की
मैं पूरी तरह से खिला हुआ नहीं हूँ, और मुझे कुछ और खिलने
की जरुरत है । यदि आप
लोगों को मुझे यह संदेश देना
चाहते है तो मेरे लिए फूल हार और मिठाई लेकर आइए । अन्यथा आप केवल अपनी मुस्कान
लेकर आइये । फूलों और मिठाइयों पर पैसे खर्च
करने के बजाय आप उसे कुछ अच्छे सेवा परियोजनाओं पर इसका इस्तेमाल कर सकते हैं । |