२, जुलाई, २०११ बर्लिन, जर्मनी
एक दिव्यता,एक मानवता, और हमारे बीच के मतभेद/ भिन्नता/सभ्यता को भूल कर जीवन का उत्सव मनाना ही हमारा परम पवित्र उद्देश्य है !!!
द आर्ट ऑफ लिविंग के ३० वर्ष पूर्ण होने के उस्तव पर परम पूज्य श्री श्री रविशंकरजी के वर्ल्ड कल्चर फेस्टिवल, बर्लिन, पर दिनाक २ जुलाई २०११, (विश्व संस्कृति उस्तव ,बर्लिन), के उद्भोषण के कुछ अंश |
मुझे इस शहर में आने में खुशी है, जहां पर लोगों की बीच की दीवार अब नहीं है, अब समय आ गया है, जब संस्कृति और सभ्यता की दीवार भी टूट जानी चाहिये | हम सब को याद रखना चाहिए कि हम सब एक ही परिवार हैं, और हमें अब प्रेम, सेवा और करुणा का मनोभाव भी सभी में लाना हैं |
जब हमने शुरुवात की, तब जैसे इंद्रधनुष में रंग होते हैं वैसी हमारी कल्पना थी कि, परन्तु अब वर्षा आ गयी है | आपस में बुरे वक्त में साथ देने का तात्पर्य हुआ कि हमने साथ मिलकर किसी लक्ष्य को प्राप्त कर किया हैं | कैसी भी परस्थिति होने पर और हम में कोई भी मतभेद/ भिन्नता/सभ्यता होने पर भी हम सब मिलकर विश्व की एक मानव परिवार के रूप में सेवा करेंगे |
अब समय आ गया है कि हम आपसी मतभेद/ भिन्नता/सभ्यता को भूलकर अपने जीवन का उत्सव इस गृह में मनाये | मुझे पूर्ण विश्वाश है कि सभी स्वयंसेवियों की मदद से हम तनाव मुक्त और हिंसा मुक्त समाज का निर्माण कर सकेंगे |एक दिव्यता,एक मानवता,भीतर की दिव्यता के साथ जुड़ना, गरीबी को दूर करना, और हमारे बीच मतभेद/ भिन्नता/सभ्यता को भूलकर जीवन का उत्सव मनाना हमारा परम पवित्र उद्देश्य है |
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