२९ जुलाई २०११
प्रश्न : प्रिय गुरूजी, जब आप कहते हैं कि मैं शरीर से भिन्न हूँ तो यह बात मेरे समझ में आती है परन्तु जब आप कहते हैं कि मैं मन से भी भिन्न हूँ तो मैं यह समझ नहीं पता | मैं मन से कैसे भिन्न हूँ ?
श्री श्री रवि शंकर : अभी आप आपके विचार हैं या विचार आपके हैं ? मन का अर्थ है विचार | विचार आते जाते रहते हैं | कई विचार आते हैं और कई विचार चले जाते हैं | आप उनमे से कई से सहमत होते हैं और कई से असहमत होते है और जिन विचारों से आप सहमत होते हैं कुछ समय उपरांत आप उन्ही से असहमत हों जाते हैं | आप बैठ कर अपने सभी विचारों को लिखें | कुछ समय बाद आप पाएंगे, क्या मैं वही व्यक्ति हूँ जो यह सब सोच रहा था ? आप आश्चर्य करेंगे, ठीक है ? इस तरह से आप अपने विचारों से भिन्न हैं | विचार आपमें आते जाते रहते हैं | यह आकाश मैं बादल के सामान हैं | आकाश बादल नहीं हों सकता परन्तु जब आकाश पर बहुत सरे गहरे बादल छाये हों तो आपको लगता है बादल ही आकाश है | जब आपने खुले हुए आसमान का स्वाद ले लिया हो तो आपको लगता है कि आकाश बदल से परे है और यही साधना कि सुंदरता होती है | जब आप पहली बार सुदर्शन क्रिया करते हैं तो क्या होता है ? कुछ क्षण आपको ऐसा लगता है जैसे कुछ भी नहीं है | कुछ क्षणों में बादलों के माध्यम से आपमें सजगता आ जाती है | आप सोचते हैं कि बादल ही आकाश है परन्तु उन गहरे बादलों के मध्य में खाली स्थान बन जाये तो आपको उन गहरे बादलों के बीच में नीला आकाश स्पष्ट दिखने लगता है | क्या आपने यह अनुभव किया है ? अब आप कुछ पीछे मुड़कर देखें कि पहला कोर्स, पहला ध्यान या सुदर्शन क्रिया करने के पहले कैसे थे ? और अब आप क्या हैं ? आप में से ऐसे कितने व्यक्ति हैं जो अपने १० वर्ष पूर्व के व्यक्तित्व के साथ समानता नहीं पाते हैं ? (कई लोगों ने अपने हाथ उठाये) इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि आप सिर्फ विचार नहीं हैं | १० वर्ष पूर्व वाला व्यक्ति मन या विचारों का पुन्लिंदा ही तो था | परन्तु अब आपको मन के बाहर कि झलक मिल चुकी है जो कि मन नहीं है और आकाश तत्व है जो कि आप हैं | मन का विलीन होना ही ध्यान है | कभी कभी बादल और विचार आते हैं और चले जाते हैं और आप कुशलता पूर्वक उनके मध्य में केंद्रित रहें |
प्रश्न: प्रिय गुरूजी, जब लोग ज्ञान के सूत्र और आपका नाम लेकर अपने झूठ को झिपाते हैं या अपना काम करवाते है, तो क्या किया जाये?
श्री श्री रवि शंकर: इसके लिये आप क्या कर सकते हैं | मैं या आप उन्हें सिखा तो नहीं सकते | आप उन पर सिर्फ दया कर सकते हैं | उनको उनकी करनी और कर्म का फल अवश्य मिलेगा | करुणा के साथ उन्हें समझायें ‘ आप ऐसा क्यों कर रहे हैं, ऐसा न करें | यदि आप की बात वे नहीं सुनते हैं तो आप क्या करेंगें ? आप क्रोधित नहीं हो सकते या भूख हड़ताल पर नहीं जा सकते ! आप क्या करेंगे ?उनके लिये प्रार्थना करे, उन्हें आशीर्वाद दीजिये, उन पर दया करे और उनसे दूरी बना लीजिये और यदि आप में शक्ति हो तो उनका सामना करे | उनका सामना कैसे करे? इस के बारे में आप सोचें !!!
प्रश्न : पूजा का क्या महत्त्व हैं ? मूर्ती,प्रकृति और स्वयं की पूजा करना, क्या सब एक ही हैं ?
श्री श्री रवि शंकर: हाँ ! मन को फूल के जैसा खिलने के लिये वातावरण का सृजन करना ही पूजा है |आपका दिल,मन और पूरी चेतना खिल जाती हैं | पूजा सिर्फ एक कृत्य हैं | इससे यह फर्क नहीं पड़ता कि आप क्या कर रहे हैं |यह सब बाहरी रूप में हैं परन्तु सबसे मुख्य हैं आपके भीतर की भावनायें | इसलिये पूजा श्रेष्ठ होती हैं परन्तु मानस पूजा सर्वश्रेष्ठ होती है | मानस पूजा का तात्पर्य हैं पूजा को मन में करना | मेरा दिल आपका सिंहासन हैं ; “रत्नैः कल्पितमासनं हिमजलैर्स्नानं च दिव्यांबरं,नानारत्नविभूषणं मृगमदामॊदाङ्कितं चन्दनम्” । इस पूरी मानस पूजा में सबकुछ आपका हैं, पूरा संसार भी आपका ही है | मेरा दिल और मन एक फूल हैं | और जब आप विश्राम करते हुये गहन विश्राम में चले जाते हैं; तो आपका मणिपुर चक्र बड़ा होकर खिल जाता हैं |मणिपुर चक्र को मध्य का मस्तिष्क भी कहते हैं और विज्ञानिकों ने पाया कि सामान्यताः मणिपुर चक्र करोंदे के जितना होता हैं और योगियों में यह मशरूम या बेर के जितना बड़ा हो जाता है |जो लोग नियमित रूप से योग और ध्यान करते हैं, उन्होंने पाया कि उनका मणिपुर चक्र बड़ा हो गया था | वह मूंगफली या करोंदे के छोटे आकार से बेर के जितना बड़ा हो जाता हैं | जब मध्य का मस्तिष्क या मणिपुर चक्र बड़ा हो जाता हैं तो स्वायत्त तंत्रिका तंत्र (आटोनोमस नर्वस सिस्टम) पर अधिक नियंत्रण आ जाता है | योग करने से ऐसा होता है | इसलिये वे इसे पद्मनाभ कहते हैं | पद्मनाभ का अर्थ क्या हैं? वह योग निद्रा में विश्राम कर रहे हैं | उनकी नाभि फूल के जैसे बन गयी हैं | पद्म का अर्थ हैं कमल या फूल | जब आपकी नाभि फूल के जैसे खिल जाती हैं तो फिर क्या होता हैं ? यदि आप योगी हैं और आप पद्मनाभ हैं तो आप अत्यंत सृजनात्मक बन जाते हैं |आपके भीतर से सृजनकर्ता बहार आ जाते हैं | यह इसका भी प्रतीक हैं कि आपके नाभि से एक कमल आया और सृष्टिकर्ता उस पर आकर बैठ गये |इसका एक गहन अर्थ भी हैं | जब आप योग निद्रा या ध्यान कर रहे होते हैं और जब आप चेतना के चौथी अवस्था के गहन में चले जाते हैं, तो आपकी नाभि कमल या फूल के जैसे बन जाती हैं | पेट में सारी नकारक भावनायें संग्रहित होती हैं | इसलिये जब आप भय में होते तब आपके पेट में कुछ होता हैं |जब आप चिंता में होते तब आपके पेट में कुछ होता हैं | आपमें से कितनों यह अनुभव किया हैं? चाहे वह भय, चिंता, नकारात्मक भावनायें, लालच या ईर्ष्या हो तब पेट में कुछ होता हैं | हानि होने का भय और दुःख होने से पेट में कुछ होता हैं | वह सिकुड़ कर छोटा हो जाता हैं वह पद्मनाभ नहीं हैं | जब नाभि खिल जाती हैं तो उदारता, प्रेम और सृजनात्मकता जैसे गुण आने लगते हैं | पद्मनाभ वह हैं जो अत्यंत सृजनात्मक हैं | इसलिये भीतर की पूजा समर्पण हैं | सबकुछ आपका हैं, मेरा मन,शरीर,विचार,भावनायें,पूरा वातावरण आपका हैं और सब कुछ एक ही हैं |आप कह रहे हैं ‘मैं नहीं हूँ,आप भी नहीं हैं, और सिर्फ एक ही चीज़ हैं और वह पूजा हैं | आरती का अर्थ हैं, मेरे जीवन का प्रकाश दिव्यता के पास जाये और मैं सम्पूर्ण ज्ञान को स्वीकार करता हूँ | मैं इस ज्ञान और विवेक को अपने भीतर समां लेता हूँ |
प्रश्न: प्रिय गुरूजी संकल्प शक्ति को कैसे बढ़ायें ? वासनाओं से कैसे मुक्ति पायें ?
श्री श्री रवि शंकर: मौन के माध्यम से | आप जितने अधिक वैरागी बन जाते हैं, उतनी ही अधिक संकल्प शक्ति आपको प्राप्त होती हैं |
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प्रश्न : प्रिय गुरूजी, जब आप कहते हैं कि मैं शरीर से भिन्न हूँ तो यह बात मेरे समझ में आती है परन्तु जब आप कहते हैं कि मैं मन से भी भिन्न हूँ तो मैं यह समझ नहीं पता | मैं मन से कैसे भिन्न हूँ ?
श्री श्री रवि शंकर : अभी आप आपके विचार हैं या विचार आपके हैं ? मन का अर्थ है विचार | विचार आते जाते रहते हैं | कई विचार आते हैं और कई विचार चले जाते हैं | आप उनमे से कई से सहमत होते हैं और कई से असहमत होते है और जिन विचारों से आप सहमत होते हैं कुछ समय उपरांत आप उन्ही से असहमत हों जाते हैं | आप बैठ कर अपने सभी विचारों को लिखें | कुछ समय बाद आप पाएंगे, क्या मैं वही व्यक्ति हूँ जो यह सब सोच रहा था ? आप आश्चर्य करेंगे, ठीक है ? इस तरह से आप अपने विचारों से भिन्न हैं | विचार आपमें आते जाते रहते हैं | यह आकाश मैं बादल के सामान हैं | आकाश बादल नहीं हों सकता परन्तु जब आकाश पर बहुत सरे गहरे बादल छाये हों तो आपको लगता है बादल ही आकाश है | जब आपने खुले हुए आसमान का स्वाद ले लिया हो तो आपको लगता है कि आकाश बदल से परे है और यही साधना कि सुंदरता होती है | जब आप पहली बार सुदर्शन क्रिया करते हैं तो क्या होता है ? कुछ क्षण आपको ऐसा लगता है जैसे कुछ भी नहीं है | कुछ क्षणों में बादलों के माध्यम से आपमें सजगता आ जाती है | आप सोचते हैं कि बादल ही आकाश है परन्तु उन गहरे बादलों के मध्य में खाली स्थान बन जाये तो आपको उन गहरे बादलों के बीच में नीला आकाश स्पष्ट दिखने लगता है | क्या आपने यह अनुभव किया है ? अब आप कुछ पीछे मुड़कर देखें कि पहला कोर्स, पहला ध्यान या सुदर्शन क्रिया करने के पहले कैसे थे ? और अब आप क्या हैं ? आप में से ऐसे कितने व्यक्ति हैं जो अपने १० वर्ष पूर्व के व्यक्तित्व के साथ समानता नहीं पाते हैं ? (कई लोगों ने अपने हाथ उठाये) इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि आप सिर्फ विचार नहीं हैं | १० वर्ष पूर्व वाला व्यक्ति मन या विचारों का पुन्लिंदा ही तो था | परन्तु अब आपको मन के बाहर कि झलक मिल चुकी है जो कि मन नहीं है और आकाश तत्व है जो कि आप हैं | मन का विलीन होना ही ध्यान है | कभी कभी बादल और विचार आते हैं और चले जाते हैं और आप कुशलता पूर्वक उनके मध्य में केंद्रित रहें |
प्रश्न: प्रिय गुरूजी, जब लोग ज्ञान के सूत्र और आपका नाम लेकर अपने झूठ को झिपाते हैं या अपना काम करवाते है, तो क्या किया जाये?
श्री श्री रवि शंकर: इसके लिये आप क्या कर सकते हैं | मैं या आप उन्हें सिखा तो नहीं सकते | आप उन पर सिर्फ दया कर सकते हैं | उनको उनकी करनी और कर्म का फल अवश्य मिलेगा | करुणा के साथ उन्हें समझायें ‘ आप ऐसा क्यों कर रहे हैं, ऐसा न करें | यदि आप की बात वे नहीं सुनते हैं तो आप क्या करेंगें ? आप क्रोधित नहीं हो सकते या भूख हड़ताल पर नहीं जा सकते ! आप क्या करेंगे ?उनके लिये प्रार्थना करे, उन्हें आशीर्वाद दीजिये, उन पर दया करे और उनसे दूरी बना लीजिये और यदि आप में शक्ति हो तो उनका सामना करे | उनका सामना कैसे करे? इस के बारे में आप सोचें !!!
प्रश्न : पूजा का क्या महत्त्व हैं ? मूर्ती,प्रकृति और स्वयं की पूजा करना, क्या सब एक ही हैं ?
श्री श्री रवि शंकर: हाँ ! मन को फूल के जैसा खिलने के लिये वातावरण का सृजन करना ही पूजा है |आपका दिल,मन और पूरी चेतना खिल जाती हैं | पूजा सिर्फ एक कृत्य हैं | इससे यह फर्क नहीं पड़ता कि आप क्या कर रहे हैं |यह सब बाहरी रूप में हैं परन्तु सबसे मुख्य हैं आपके भीतर की भावनायें | इसलिये पूजा श्रेष्ठ होती हैं परन्तु मानस पूजा सर्वश्रेष्ठ होती है | मानस पूजा का तात्पर्य हैं पूजा को मन में करना | मेरा दिल आपका सिंहासन हैं ; “रत्नैः कल्पितमासनं हिमजलैर्स्नानं च दिव्यांबरं,नानारत्नविभूषणं मृगमदामॊदाङ्कितं चन्दनम्” । इस पूरी मानस पूजा में सबकुछ आपका हैं, पूरा संसार भी आपका ही है | मेरा दिल और मन एक फूल हैं | और जब आप विश्राम करते हुये गहन विश्राम में चले जाते हैं; तो आपका मणिपुर चक्र बड़ा होकर खिल जाता हैं |मणिपुर चक्र को मध्य का मस्तिष्क भी कहते हैं और विज्ञानिकों ने पाया कि सामान्यताः मणिपुर चक्र करोंदे के जितना होता हैं और योगियों में यह मशरूम या बेर के जितना बड़ा हो जाता है |जो लोग नियमित रूप से योग और ध्यान करते हैं, उन्होंने पाया कि उनका मणिपुर चक्र बड़ा हो गया था | वह मूंगफली या करोंदे के छोटे आकार से बेर के जितना बड़ा हो जाता हैं | जब मध्य का मस्तिष्क या मणिपुर चक्र बड़ा हो जाता हैं तो स्वायत्त तंत्रिका तंत्र (आटोनोमस नर्वस सिस्टम) पर अधिक नियंत्रण आ जाता है | योग करने से ऐसा होता है | इसलिये वे इसे पद्मनाभ कहते हैं | पद्मनाभ का अर्थ क्या हैं? वह योग निद्रा में विश्राम कर रहे हैं | उनकी नाभि फूल के जैसे बन गयी हैं | पद्म का अर्थ हैं कमल या फूल | जब आपकी नाभि फूल के जैसे खिल जाती हैं तो फिर क्या होता हैं ? यदि आप योगी हैं और आप पद्मनाभ हैं तो आप अत्यंत सृजनात्मक बन जाते हैं |आपके भीतर से सृजनकर्ता बहार आ जाते हैं | यह इसका भी प्रतीक हैं कि आपके नाभि से एक कमल आया और सृष्टिकर्ता उस पर आकर बैठ गये |इसका एक गहन अर्थ भी हैं | जब आप योग निद्रा या ध्यान कर रहे होते हैं और जब आप चेतना के चौथी अवस्था के गहन में चले जाते हैं, तो आपकी नाभि कमल या फूल के जैसे बन जाती हैं | पेट में सारी नकारक भावनायें संग्रहित होती हैं | इसलिये जब आप भय में होते तब आपके पेट में कुछ होता हैं |जब आप चिंता में होते तब आपके पेट में कुछ होता हैं | आपमें से कितनों यह अनुभव किया हैं? चाहे वह भय, चिंता, नकारात्मक भावनायें, लालच या ईर्ष्या हो तब पेट में कुछ होता हैं | हानि होने का भय और दुःख होने से पेट में कुछ होता हैं | वह सिकुड़ कर छोटा हो जाता हैं वह पद्मनाभ नहीं हैं | जब नाभि खिल जाती हैं तो उदारता, प्रेम और सृजनात्मकता जैसे गुण आने लगते हैं | पद्मनाभ वह हैं जो अत्यंत सृजनात्मक हैं | इसलिये भीतर की पूजा समर्पण हैं | सबकुछ आपका हैं, मेरा मन,शरीर,विचार,भावनायें,पूरा वातावरण आपका हैं और सब कुछ एक ही हैं |आप कह रहे हैं ‘मैं नहीं हूँ,आप भी नहीं हैं, और सिर्फ एक ही चीज़ हैं और वह पूजा हैं | आरती का अर्थ हैं, मेरे जीवन का प्रकाश दिव्यता के पास जाये और मैं सम्पूर्ण ज्ञान को स्वीकार करता हूँ | मैं इस ज्ञान और विवेक को अपने भीतर समां लेता हूँ |
प्रश्न: प्रिय गुरूजी संकल्प शक्ति को कैसे बढ़ायें ? वासनाओं से कैसे मुक्ति पायें ?
श्री श्री रवि शंकर: मौन के माध्यम से | आप जितने अधिक वैरागी बन जाते हैं, उतनी ही अधिक संकल्प शक्ति आपको प्राप्त होती हैं |
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