६ जुलाई २०११, बर्लिन जर्मनी
प्रश्न : वर्ल्ड कल्चर फेस्टिवल ( विश्व सांस्कृतिक उस्तव) के दौरान आप को किस बात में सबसे अधिक आनंद मिला ?
श्री श्री रविशंकर : प्रत्येक क्षण में |
प्रश्न : यदि हमको सारे प्रयासों को छोड़ ही देना है तो हम प्रयास ही क्यों करें ?
श्री श्री रविशंकर : ध्यान के दौरान सारे प्रयासों को छोड़ दीजिए परन्तु ध्यान के पूर्व आप को को प्रयास करने ही होंगे अन्यथा कुछ भी छोड़ने का प्रश्न ही नहीं होगा |
प्रश्न : मौन और एकांत में रहने के दौरान मेरा मनोभाव निराशाजनक हो जाता है और मैं स्वयं के प्रति खेद महसूस करता हूँ क्या यह सही है ?
श्री श्री रविशंकर : नहीं! अपने लिए खेद महसूस न करें |
प्रश्न : प्रत्येक समय जब मेरा आप से विलाप होता है तो मुझे दुःख होता है क्या आप एसे किसी ध्यान का सृजन करेंगे जिसमें यह कहा गया हो “ फिर से शीघ्र मिलेंगे” ?
श्री श्री रविशंकर : यह एक अच्छा विचार है | कुछ बातें अच्छी होती है जैसे अच्छे विचार |
प्रश्न : वैराग्य और परमानंद का अनुभव करने के बाद भी मन सांसारिक बातों पर क्यों चला जाता है ?
श्री श्री रविशंकर : यह मन का स्वभाव है फिर भी कोई बात नहीं | मन तीन गुणों से बना होता है जैसे सत्व(शुद्धि / स्पष्टता), रजस ( कृत्य / कार्यवाही ) और तमस (अक्रियता ) | इन तीन गुणों के अनुरूप विभिन्न समय पर मन की अवस्था भिन्न होती है , इससे परेशान न होयें| सब कुछ आता जाता रहता है |
प्रश्न : मैं असफलता को सफलता में कैसे परिवर्तित कर सकता हूँ ?
श्री श्री रविशंकर : सिर्फ आगे बढते रहें और पीछे मुड कर न देखें | असफलता सिर्फ अतीत में हो सकती है , भविष्य में नहीं | यह सिर्फ घटनाक्रम को समझने जैसा है | यदि इसे आप बड़े द्रष्टिकोण से देखेंगे तो आप इसे बेहतर समझ सकेंगे |
प्रश्न : आज हमने मेडिटेशन इन मोशन ( ध्यान में कृत्य ) को किया . वह अत्यंत पीड़ादायक था | क्या आपने कभी इसे किया है ?
श्री श्री रविशंकर : हाँ ! यह परमानंद का अनुभव करने जैसा है | पीड़ा के उपरांत ही परमानंद प्राप्त होता है |
प्रश्न :- क्या आप महिलाओं की भूमिका के बारे में कुछ कह सकते हैं ?आज कल महिलाओं को भोग करने वाली वस्तु के जैसे देखा जाता है , क्या हम इसे परिवर्तित कर सकते है ?
श्री श्री रविशंकर : उन पर दया करें जो महिलाओं को भोग की वस्तु के जैसे देखते है और उनकी प्रशंसा करें जो महिलाओं को इस द्रष्टि से देखते है जो समाज में परिवर्तन ला सकती है |
प्रश्न : हिंदू धर्म में शरीर का दाह संस्कार अग्नि के द्वारा क्यों किया जाता है ?
श्री श्री रविशंकर : सारे विश्व की काफी अधिक जनसंख्या है | इसमें अत्यंत कम जगह की आवश्यकता पड़ती है और आज कल भूमि का मूल्य अत्यधिक बढ़ गया है| शरीर प्रकृति के पास चला जाता है | सिर्फ आस्तियां रह जाती जिसे पूज्य नदियों को अर्पित कर दिया जाता है | जब शरीर का दाह संस्कार अग्नि से कर दिया जाता है तो ७०० ग्राम से लेकर १ किलो की अस्थियां और भस्म ही रह जाती हैं| और आत्मा की मुक्ति हो जाती है |
प्रश्न :- मैं एक युवा हूँ और कभी कभी मैं अपने मित्रों के साथ शराब पीने के लिए बहार जाता हूँ इसमें मुझे कोई दोष नहीं दिखता , क्या यह सही है ?
श्री श्री रविशंकर : कभी कभी आप सामाजिक तौर पर शराब का सेवन करते है| फिर जब कभी भी आप दुखी होते है तो यह सामाजिक शराब का सेवन आप पर भारी पड़ने लगता है और आप इसका और अधिक सेवन करने लगते है | इसके कारण आप शराबी भी बन सकते है |इसे हमेशा नहीं कहें और इससे दूर रहें | इस बात के लिए दृढ़ रहें कि आप इसका सेवन नहीं करेंगे फिर आप सुरक्षित रहेंगे | यहाँ पर आने के बाद आप कभी भी शराबी नहीं बन सकते| मैंने ऐसे कई लोगों को देखा है जो इसी तर्क के कारण शराबी बन गए| उन्होंने कभी कभी इसका सेवन करते हुए इसकी शुरुवात की और फिर वे शराबी बन गए | शराब आप के तंत्रिका तंत्र को अत्यंत हानि पहुंचाता है जो आपकी शुद्ध चेतना और वास्तविक सच्चाई में झलकता है | शराब से सुस्ती आती है | यह ब्रेक लगाकर वाहन की सवारी करने के जैसा है |
यदि आप को जीवन में प्रगति करना है तो आप को कुछ प्रतिबंध अवश्य लगाने होगें जैसे तम्बाखू और धूम्रपान ३०-४० वर्ष पूर्व संस्कृति का हिस्सा माने जाते थे परन्तु आज ऐसी स्तिथि नहीं है | हम कई वर्षों से इस बात को कह रहे है और इसमें कई जीवन समाप्त हो गये | और कई जीवन बचाये जा सकते थे |
धूम्रपान, ड्रग और तम्बाखू का सेवन नहीं करे - यह तीन प्रतिबंध लगाने होंगे |
प्रश्न : उसी द्वार पर बार बार दस्तक देना और उसे कब छोड देना यह कैसे मालूम होगा ?
श्री श्री रविशंकर : हाँ – आप को दोनों को करना होगा पहले दस्तक दीजिये और फिर छोड दीजिये और फिर छोडते हुए फिर से दस्तक दीजिये |
प्रश्न : सकारात्मकता और नकारात्मकता दोनों को भगवान को कैसे अर्पित करूँ ?
श्री श्री रविशंकर : आप उस विचार को सिर्फ छोड़ते चलें यदि इसमें आप को इसमें कठनाई हो रही हो तो और सिर्फ वर्तमान क्षण में रहें | अतीत बीत चुका है और भविष्य को अभी आना है |
प्रश्न : क्या ध्यान करना संभव होगा जब आप का पडोसी खर्राटे ले रहा हो? (हंसी)
श्री श्री रविशंकर : इसके कई विकल्प है | उनको हिलाये और यदि फिर भी वे इसे जारी रखते है तो उसे स्वीकार करें | यदि इससे आपको और अधिक परेशानी हो रही हो तो कहीं और बैठ कर ध्यान करें |
प्रश्न : यह मेरा पहला एडवांस कोर्स है और अब तक यह मेरी अपेक्षा से कहीं अधिक सुखदायक था | मुझे चिंता है कि मैं हर समय ध्यान करना चाहता हूँ, मुझे क्या करना चाहिए ?
श्री श्री रविशंकर : घर जाते समय आप को इसकी जानकारी प्रदान की जायेगी |
जीवन का आनंद लीजिए |जीवन को सहजता और गंभीरता से से व्यतीत करें | यदि आप जीवन को अत्यंत गंभीरता से लेगें तो वह उबाऊ बन जायेगा| यदि आप जीवन को पूरी तरह से विनोदपूर्ण लेगें तो वह तुच्छ और सामान्य बन जायेगा | जीवन मौन और उत्सव का मिलन होना चाहिए| वैरागी रहते हुए पूरी तरह से केंद्रित रहें और परिवर्तन लाने के लिए उत्साहित रहें | अस्थायी सुखों के लिए वैरागी बने और परिवर्तन के लिए उत्साहित रहें- इन दोनों बातों से आप अत्यंत गहन व्यतितत्व के व्यक्ति बन सकते है | यदि आप इस पथ पर चल रहें है तो आपको किसी भी बात की कमी नहीं होगी क्योंकि सब कुछ समय पर होता जायेगा |
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