शिव !


बैंगलुरु आश्रम, भारत

श्री श्री रविशंकर जी ने शिव और शिवरात्रि के सार के बारे में बताया | शिव तत्त्व के बारे में हम थोड़ी जानकारी ले लें | थोड़ा जानने की ही जरुरत है | बुद्धि को तृप्त और सुन्दर भावनाओं को जागृत होना चाहिए | इस पवित्र और पूर्ण ज्ञान को पाने की तृप्ति के लिए विज्ञान की और अध्यात्मिक ज्ञान इन दोनों की ही जरुरत है | भगवान की खोज के लिए आपको लंबी तीर्थ यात्रा पर जाने की कोई जरुरत नहीं है | अगर आप जहाँ हो वहाँ रहकर आपको भगवान नहीं मिलते तो यह कहीं भी जाकर मिलना संभव नहीं है | जहाँ मन की सीमा खत्म होती है, वहाँ पर शिव हैं |आप जहाँ हैं वहीँ स्थापित रहें | जिस क्षण आप स्थिर, केंद्रित होंगे, आप देखेंगे की भगवान हर जगह पर है | यही ध्यान है | भगवान शिव का एक नाम विरूपाक्ष है इसका अर्थ है की जिसका कोई रूप नहीं है परन्तु फिर भी वह सब को देखता है | हम जानते हैं कि हमारे चारों तरफ हवा है, और हम यह महसूस भी करते हैं | परन्तु तब क्या जब हवा भी आपको महसूस करने लगे ? हमारे सब ओर आकाश है, हम यह जानते हैं | परन्तु तब क्या जब आकाश भी हमें महसूस करना शुरू कर दे ?यह होता है | बस हमें इसकी जानकारी नहीं है | वैज्ञानिक ये जानते हैं और वे इसे Theory of Relativity कहते हैं | जो दिखता है और जो देखता है दोनों ही प्रभावित होते हैं जब उन्हें देखा जाये | भगवान आपके चारों तरफ है और आपको देख रहा है | उसका कोई रूप नहीं है| वह अस्तित्व का एक महत्त्वपूर्ण भाग और ध्येय है जिसका कोई स्वरुप नहीं है | यह स्वरुपहीन भगवान ही शिव हैं | जागृत होकर शिव तत्त्व का अनुभव करना ही शिवरात्रि है |

जब कोई उत्सव होता है तो प्राय: जागरूकता खो जाती है | जागरूकता और पूर्ण आराम के साथ उत्सव ही शिवरात्रि है | जब आप पर कोई विपत्ति आती है, तब आप सतर्क और जागरूक हो जाते हैं | जब सब अच्छा होता है तब हम सुकून से रहते हैं ; शिवरात्रि में हम जागरूकता के साथ आराम करते हैं | यह कहा जाता है के जब सब सो रहे होते हैं तो साधक जागते रहता है | योगी (साधक) के लिए हर दिन शिवरात्रि है| आदि शंकराचार्य के द्वारा रचित एक छंद शिव जी का सुन्दर वर्णन करता है |

(
श्री श्री ने छंद की कुछ पंक्तियाँ दोहराई)

अद्यांताहिनाम - जिसका कोई शुरू या अंत नहीं है | सर्वदा वह भोलेनाथ है (सब का भोले राजा) जो हर समय हर जगह है | हम सोचते हैं की शिव जी अपनी गर्दन में सांप लिए हुए कहीं और बैठे हैं | जिसने जन्म लिया है, उन सब में शिव हैं, जो इस क्षण हर चीज में शामिल हैं,और जिनमें जाकर संपूर्ण सृष्टि खत्म होती है | इस सृष्टि का हर स्वरुप उनका रूप है |

वे सारी सृष्टि में व्याप्त हैं | उनका ना कभी जन्म हुआ था, ना ही कोई अंत है | वे अविनाशी हैं |

वे चेतना की चौथी अवस्था हैं, तुरीय अवस्था, ध्यान की अवस्था, जो सचेत से परे है, गहरी निद्रा और सपनों की अवस्था | वे सिर्फ एक चेतना हैं जो हर जगह व्याप्त है | इसलिए शिव जी की पूजा के लिएअपने आपको शिव में लीन करना होगा | शिव होकर ही आप शिव पूजा कर सकते हैं | चिदानन्द रूप वे वो चेतना हैं जो परम आनंद है |

तपो योग गम्य जिसको हम तप और योग से जान सकते हैं | वेदों के द्वारा हम शिव तत्त्व को समझ सकते हैं | शिवोहम की अवस्था (मैं शिव हूँ), से ही शिव केवलोहम (सिर्फ शिव ही है) की अवस्था प्राप्त की जा सकती है | शिवरात्रि का दिन आनंद और तृप्ति का अनुभव करने के लिए है | योग के बिना, शिव जी का अनुभव नहीं हो सकता | योग का मतलब सिर्फ आसनों से नहीं है, परन्तु शिव तत्त्व जिसका अनुभव हमें ध्यान और प्राणायाम से ही होता है : तब वह ‘WOW’ अंदर से ही उपजता है |

शम्भू शब्द भी उसी स्रोत से आया है भगवान, सृष्टि और आत्म कितना सुन्दर है ! यह एक चमत्कार ही है कि कैसे एक ही चेतना हर प्राणी में कैसे विद्यमान है ! इससे बड़ा चमत्कार कुछ है ही नहीं | कैसे यह एक अनेक बन गया ? यह प्रथा (शिवरात्रि) जिसमें अनेक से एक की और बढ़ना कितना अद्वितीय है | योग और ध्यान इस के लिए आवश्यक हैं | ध्यान के बिना मन शांत नहीं होगा | शिवरात्रि के दौरान ध्यान, भजन उत्सव का अंग हैं | सब लोग पूरे उत्साह से इसमें भागलेते हैं | सबको गाना चाहिए | शिव सब कार्यों के कर्ता हैं | जिनकी वजह से सब कुछ है उगते हुए पेड़, उगता हुआ सूरज, बहती हुई हवाएँ ... घटनाओं के कारक शिव हैं जिनके कारण सब घटित हो रहा है और जिनके बिना कुछ भी घटित नहीं होगा |

पंचमुख, पंचतत्व शिव जी के पांच मुख हैं पानी, हवा, धरती, अग्नि और आकाश l पाँचों तत्त्व की जानकारी तत्त्व ज्ञान है | शिव जी को अष्टमूर्ति के रूप में भी पूजा जाता है मन, स्मृति, अहंकार भी सम्मिलित हैं | ये शिव के दोनों रूप और रूपहीन पहलु हैं | अपने को शिव तत्त्व में समाहित करके शुभ की कामना करना ही शिव आराधना है | क्या कामना करनी चाहिए | उदार दिल से कामना कीजिये विश्व की भलाई के लिए, और दुनिया में कोई भी दुखी ना रहे | ‘सर्वे जनः सुखिनो भवन्तु’ | और इस अवसर पर एक संकल्प लीजिए | इस तरह से जिस तरह से कोई चीज बार बार आपके पास आती है जैसे की आपकी सांस, आपके ह्रदय की धडकन | और इस तरह के संकल्प को भगवान को समर्पित करते हैं, तो वह जरूर पूरा हो जाता है |

हम प्रकृति की भी पूजा करते हैं | भगवान पृथ्वी की हर वास्तु में व्याप्त है | पेड़, पहाड़, नदियों, पृथ्वी और इस पर रहने वाले लोगों के सम्मान और आव्हान के बिना कोई भी पूजा पूरी नहीं होती | सब का सम्मान दक्षिणा है | का अर्थ है देना और जो देने से अपवित्रता दूर होती है, दक्षिणा का यही अर्थ है | चढावा जिससे सारे पाप मिट जाते हैं| कोई भी पूजा दक्षिणा के बिना संपन्न नहीं हो सकती | जब हम कुशलतासे और मन की विकृति से मुक्त होकर समाज में कार्य करते हैं,तमाम ऋणात्मक प्रवृत्ति जैसे क्रोध, चिंता, दुःख का नाश होता है | मैं यह कहूँगा की दक्षिणा के रूप में अपने तनाव, चिंता और दुःख दे दो |और यह कैसे होगा ? साधना, (अध्यात्मिक साधना), सेवा, और सत्संग के जरिये |

प्रश्न : गुरूजी, शिव जी के बारे में कुछ कहिये | मैं शिव भक्त हूँ और वे ही मुझे आर्ट ऑफ लिविंग और आप के करीब लाये हैं |

श्री श्री रविशंकर : शिव वह मूल तत्त्व है जिसमें हर चीज ने जन्म लिया, और जिसमें हर चीज समा जायेगी | शिव से कोई बचाव नहीं है| शिव तत्त्व का मतलब है शिव के सिद्धांत | शिव कोई व्यक्ति नहीं है| शिव आकाश हैं, चेतना हैं | यह दर्शाने के लिए शिव जी को नीले रंग का दिखाया जाता है | नीले का मतलब है आकाश के समान | आपको मालूम है, शिव का वर्णन इतना सुन्दर है (संस्कृत का दोहा बोलते हुए)| यह मुक्ति के समान है, हर चीज से मुक्ति | वे भगवान हैं , सबसे बलवान, हर तरफ व्याप्त, हर तरफ फैले हुए | कोई भी ऐसी जगह नहीं जहाँ वे ना हों | यहाँ पर ही सारा ज्ञान, सारी चेतना सारा आकाश है |उनका कोई गुण नहीं है | वे ना जन्मे हैं, शिव ना जन्मे हैं, और ना ही उनका कोई गुण | वे समाधी की अवस्था है जहाँ कुछ भी नहीं है, चेतना का आंतरिक आकाश | यही शिव है |

जहाँ पर जागरूकता और कोई क्रियाकलाप नहीं है | जागरूकता को दर्शाने उनके गले में एक सांप है | उनके हाथ में एक त्रिशूल है वे तीनों अवस्था जैसे जागने, सपना देखने और सोने के ऊपर हैं | शिव जी के हाथ का त्रिशूल उनके तीनों अवस्थाओं के पार होना दर्शाता है, चौथी अवस्था में, जो पूर्ण सद्भावपूर्ण है | वह एक अवस्था जिसमें संसार की हर चीज का वास है वह काला आकाश, काली शक्ति वैज्ञानिकों ने भी यह कहना शुरू कर दिया है के वह काला आकाश, काली शक्ति जिसमे हर चीज का वास है | सूर्य, चन्द्रमा, तारे सभी का अस्तित्व इसी चेतना की इसी ठोस अवस्था में है |