९
२०१२
फरबरी
|
बैंगलुरु आश्रम, भारत
|
प्रश्न : गुरुदेव,
कृपया प्रश्न पूछने की कला के बारे में बात करें, क्योंकि कभी कभी, मुझे जो उत्तर
प्राप्त होता है, उससे मैं संतुष्ट नहीं होता, या फिर मैं उत्तर से और ज्यादा भ्रमित
हो जाता हूँ|
श्री श्री
रविशंकर : ध्यान!
जब मन बेचैन
होता है, तब फिर चाहे जो भी उत्तर हो, वह अंदर नहीं जाता| जब मन शांत होता है, तब
एक इशारा ही काफी होता है, और आप उत्तर खुद ही पहचान लेते हैं, क्योंकि आप खुद ही
तो सभी उत्तरों के स्त्रोत हैं| जब आप शांत होते हैं, तब आपके अपने भीतर से ही
सारे उत्तर आ जाते हैं| इसीलिये, विश्राम के कुछ पल आवश्यक हैं|
आप एक बेचैन
व्यक्ति को कुछ भी कहें, वह कहेगा, ‘लेकिन’| आप उन्हें कोई उत्तर दीजिए, तब भी वे कहेंगे, ‘ठीक है! लेकिन...’ और फिर वे एक विषय से दूसरा
विषय बदलते जायेंगे|
ये एक ऐसे मन
का लक्षण है, जो इतने सारे विचारों और धारणाओं से भरा हुआ है, कि नए ज्ञान और नयी
बुद्धि के प्रवेश की कोई जगह ही नहीं है|
यही बात एक
गुरु और उनके शिष्य में भी हुई थी|
एक बार एक
शिष्य अपने गुरु के पास आया, और वह कुछ प्रश्न पूछ रहा था (ठीक वैसे ही जैसे आप
पूछ रहे हैं)| वह एक के बाद एक प्रश्न पूछे जा रहा था, लेकिन गुरु उनका जो भी
उत्तर देते, वह उनसे संतुष्ट नहीं हो रहा था| तब गुरु ने कहा, कि ‘ठीक है, चलो! चाय पीते हैं|’
गुरु ने पूछा,
‘तुम्हें चाय पसंद है?’
उसने कहा, ‘हाँ’|
तो गुरु ने
शिष्य के प्याले में चाय डालनी शुरू करी| प्याला भर गया, लेकिन वे फिर भी चाय
डालते गए| चाय प्याले में से निकल कर बाहर गिरने लगी, और टेबल पर गिर गयी, फिर
ज़मीन पर|
शिष्य ने
पूछा, ‘गुरु, आप ये क्यों कर रहे हैं? प्याला
भर गया है| अब तो चाय बाहर निकल कर पूरे कालीन पर गिर रही है!’
तब गुरु
मुस्कुराये और बोले, ‘यही तो स्थिति है| तुम्हारा
प्याला भर गया है और अब इसमें कुछ भी नया लेने की जगह नहीं है, लेकिन तुम्हें और
चाहिये| पहले, अपना प्याला खाली करो, जो तुम्हारे पास है उसे पियो’|
प्राचीन
ऋषियों ने वेदों में कहा है, ‘श्रवण’, पहले सुनो, फिर ‘मनन’, यानि फिर उसके बारे में सोचो| आप कोई उत्तर सुनें और फिर
उसके बारे में सोचें| फिर उसे अपना बना लें| यह देखें कि क्या ये आपके अनुभव में
है? कोई कह रहा है, सिर्फ इसीलिये उस पर विश्वास ना करें| ये तो एक मूल बात है, को
हमें याद रखनी चाहिये|
मेरा अनुभव
अपना है, और आपका अनुभव अपना है| कुछ भी बात इसलिए मत मानिये, क्योंकि उसे मैं कह
रहा हूँ| साथ ही साथ, किसी और की बात को नकारों भी मत, आपको एक अच्छा श्रोता होना
चाहिये| सबसे पहले, ‘सुनिए’, फिर
उस पर ‘सोचिये’| फिर उसे अपना खुद का अनुभव बना लीजिए| तब वह ज्ञान बन जाता
है| ज्ञान तब बुद्धिमत्ता बन जाती है – श्रवण, मनन, निधिध्यासन|
गीता के सभी
700 शोल्क बोलने के बाद, भगवान कृष्ण कहते हैं, ‘देखो
अर्जुन, मैंने सब कुछ कह दिया है| तुम इसके बारे में सोचो| अगर तुम्हें सही लगता
है, तो ले लो|’
यही है, जो
देना चाहिये – विचार करने की स्वतंत्रता, धारणाएं
बनाने की स्वतंत्रता, विश्वास करने और श्रद्धा की स्वतंत्रता| आप किसी भी चीज़ को
किसी के सिर पर थोप नहीं सकते| श्रद्धा खुद अपने अंदर से उभरनी चाहिये|
प्रश्न : गुरुदेव,
आध्यात्म की ओर चलने में और एक सुरक्षित समाज को बनाने में आज शराब की लत सबसे बड़ी
चुनौती है| लेकिन Corporate Culture & Spirituality
Conference के
इन दो दिनों में, किसी ने भी इसके बारे में बात नहीं करी| कृपया हमारा मार्गदर्शन
करें|
श्री श्री रविशंकर
: हम तो
लोगों को ये बताते हैं कि हमारे पास एक और बहुत बड़े नशे की वस्तु है – ध्यान, गान और सेवा| ये ज्यादा नशा करता है; आपको बहुत
ऊंचाईओं तक भी ले जाता है| लोगों को बस इस ब्रांड की शराब के बारे में मालूम नहीं
है| बस इतना ही है|
लोगों की सेवा
करने में और अपने आस-पास मुस्कुराते चेहरे देखने में भी आनंद है| बहुत से लोगों को
इस तरह के नशे के बारे में पता नहीं है| ध्यान में आनंद है, गहरी शांति है और ऐसा
असीम सुख है जिसे लोग नहीं जानते| हमें लोगों को इसके बारे में बताना है, तब वे
सारी शराब की बोतलें फेंक देंगे|
प्रश्न : गुरुदेव,
कुछ चंद अंग्रेजों ने भारत जैसे विशाल आध्यात्मिक देश पर कैसे राज किया? क्या इससे
कुछ सीख सकते हैं?
श्री श्री
रविशंकर : भई,
आप इसके बारे में केवल आश्चर्य कर सकते हैं! भारत की एक विशेषता यह थी कि इसमें
कभी भी एकता नहीं रही|
एक बार में यूरोप
में था, और एक पत्रकार ने मुझसे पूछा, ‘गुरुदेव, कृपया मुझे बताईये
कि सबसे ज्यादा भारतीय पत्रकार ही क्यों भारत की बुराई करते हैं?’
मैंने कहा, ‘ये हमारी विशेषता है, हम एक दूसरे से लड़ते हैं|’
ये तो उस समय
के राज्यों के बीच के आपसी झगड़ों के कारण था, और उस समय के राजाओं के स्वार्थ के
कारण – कि ऐसी नौबत आ गयी थी| एक तरह से ये
अच्छा भी था, अंग्रेजों ने उपनिवेशी भारत के लिए बहुत कुछ अच्छा भी किया| आपको हर
एक चीज़ की सकारात्मक पहलू को देखना चाहिये| हाँ, औपनिवेशिक शासन के बहुत से
नकारात्मक पहलू हैं, लेकिन उसमें कुछ अच्छा भी था, वह भी आपको देखना चाहिये| नहीं
तो, हम लोग आज अंग्रेजी में बात नहीं कर रहे होते, और भारत कभी भी कंप्यूटर के
क्षेत्र में आगे नहीं बढ़ता| तब इसका हाल चीन जैसा होता| हमारी अपनी अलग अलग भाषाएँ
होतीं, 600 बोलियां, 24 भाषाएँ, और भारत सचमुच में बिखर गया होता|
आजकल अंग्रेजी
तो जैसे एक आम भाषा बन गयी है, और भारत पूरे विश्व से खुद को जोड़ सकता है| इसलिए,
कुछ फायदे भी हुए हैं, कुछ अच्छी बातें भी हैं|
हाँ, बहुत सी
बुरी बातें भी थीं| उस समय के बहुत से कानून अब पुराने हो गए हैं, लेकिन फिर भी
लागू हैं| इसलिए सभी युवाओं को, जैसे आपको, कानून निर्माता बनना चाहिये, और इन सब
कानूनों को बदल देना चाहिये|
महिलाओं ने तो
पहले से ही बागडोर संभाल ली है, और कुछ कानूनों को बदल रहीं हैं| मुझे यकीन है,
ऐसा और ज्यादा ही होगा|
प्रश्न : गुरुदेव,
मैं देख रहा हूँ कि पढ़े लिखे ग्रेजुएट को भी इंडस्ट्री में काम करने के लिए ट्रेन
करना पड़ता है| हम आपकी यूनिवर्सिटी के साथ कैसे सांझा कर सकते हैं कि कोई ऐसी
शिक्षा प्रारंभ करें जो हमारी इंडस्ट्री के सन्दर्भ में हो?
श्री श्री
रविशंकर : हाँ
बिल्कुल, हम कुशलता केंद्र खोल सकते हैं| आप डॉ. मिश्रा से बात करिये, वे श्री
श्री यूनिवर्सिटी (उड़ीसा) के उप-चांसलर हैं| बाकी बोर्ड मेम्बर भी यहाँ हैं| हम
सोच कर विद्यार्थियों के लिए कुछ नए कार्यक्रम और नयी पाठ्यचर्या निर्धारित
करेंगे|
मैं छात्रों
को पश्चिम का भी और पूर्व का भी सबसे उत्तम देना चाहता हूँ|
आज सीमाओं का
कोई अर्थ नहीं है, बल्कि सीमाएं तो खो सी गयी हैं| हम आज एक सार्वभौमिक समाज में
रहते हैं, और आने वाली पीढ़ियों को एक संगठित विश्व का सपना देखना चाहिये| हमें ‘मेरा देश’, ‘तुम्हारा देश’ ये सब भूल जाना चाहिये| हम
एक ऐसे समाज की ओर बढ़ रहे हैं, जहाँ कुछ दूरियां है ही नहीं|
देखिये, अब कल
यहाँ एक कांफेरेंस हुई थी, इसमें 90 से भी ज्यादा देशों ने ऑन-लाइन भाग लिया था|
इतने सारे देशों से लोग इस वेबकास्ट को ऑनलाइन देख रहे थे| हम ज्ञान के एक दूसरे
युग में प्रवेश कर रहे हैं| इसलिए हमें अपनी मानसिकता को इसके अनुकूल करना होगा,
इसीलिये मैं इस ग्रह के बच्चों को पूर्व और पश्चिम दोनों का सर्वोत्तम ज्ञान देना
चाहता हूँ, ताकि वे एक सार्वभौमिक नागरिक बनें, और जिस देश में वे रहते हैं, वहां
की सेवा करें|
प्रश्न : गुरुदेव,
मैं उत्कृष्टता हासिल नहीं कर पाता हूँ, और इसीलिये मैं असंतुष्ट रहता हूँ| क्या
बिना उत्कृष्टता प्राप्त किये संतुष्ट रहना संभव है? अगर हाँ, तो कृपया मार्गदर्शन
करिये|
श्री श्री
रविशंकर : यदि
निराशा उत्कृष्टता को जन्म देती होती, तो ऐसे बहुत से देश हैं, जो इतने निराश हैं,
लेकिन हमें वहां उत्कृष्टता नहीं मिलती|
लोग कहते हैं,
‘ओह, संतुष्टि आपको सुस्त और निष्क्रिय बना देती है’| अगर निराशा रचनात्मकता ला सकती होती, तो लेबनोन,
अफघानिस्तान और ये सारी जगहें दुनिया की सबसे ज्यादा रचनात्मक जगहें होतीं| लेकिन
ऐसा नहीं है, है न?
इसलिए,
संतुष्टि एक बात है, और रचनात्मकता दूसरी बात| जब आप शांत, निर्मल और स्थिर होते
हैं, तब आपके मन की गहराई में आप रचनात्मकता के उस स्त्रोत तक पहुँच जाते हैं|
प्रश्न : गुरुदेव,
मैं बिना ज्यादा काम किये बहुत सा पैसा कैसे कमा सकता हूँ? क्या इसका कोई मन्त्र
है?
श्री श्री
रविशंकर : बस
ऐसे ही घोटाले शुरू होते हैं! (सभी हँसते हैं)
आपने सभी
घोटालों के बारे में सुना है, है न? बहुत से हैं, एक के बाद एक, हर महीने|
नहीं, जल्दी
मिलने वाले पैसे के पीछे मत भागिए, आप उसे उतनी ही जल्दी खो भी देंगे| एक निरंतर
चलने वाली अर्धव्यवस्था अच्छी है| यदि आपके नैतिक मूल्य मज़बूत हैं, तब आप कहेंगे, ‘मैं बहुत सा पैसा कमाऊँगा लेकिन नैतिकता के साथ| और कोई भी
पैसा धोखे से नहीं कमाऊँगा|’
पिछली सदी
में, लोगों को बुरे कर्म का डर था, या फिर ये कि भगवान नाराज़ हो जायेंगे| भगवान का
डर या कर्म का डर, इससे लोग अनैतिक कार्य नहीं करते थे|
लोग कहते थे, ‘ओह ये बुरा कर्म है, मैं ये पैसा नहीं लेना चाहता|’ क्या आप जानते हैं क्यों? क्योंकि लोगों को ये पक्का यकीन
था, कि गलत तरीके से कमाया गया धन इस तरह खर्च होता है जो आपको खुशी तो नहीं देता|
वे कहते थे, ‘इससे मैं और दुखी हो जाऊँगा|’ ये
बहुत पक्का विश्वास था|
बल्कि, लोग तो
यहाँ तक कहते थे, ‘अगर आप गलत तरीके से धन कमाएंगे, तो
वह धन कोर्ट कचेहरी या अस्पतालों में खर्च होगा|
तो इस तरह की
मानसिकता थी, जो लोगों को कचोटती थी| आज ये नहीं है|
वे कहते थे,
यदि हम CSR (Corporate Social
Resposibility)
करेंगे, तो यही पैसा हमारे पास दोगुना तिगुना होकर वापिस आएगा|
CSR को हमेशा लोग एक तरह का निवेश समझते
थे, और अनैतिक पैसे को एक सज़ा| आज ये मूल्य समाज से बिल्कुल गायब से हो गए हैं|
इसलिए, हमें इसे देखना चाहिये|
प्रश्न : गुरुदेव,
आज हर क्षेत्र में, चाहे वह कॉरपोरेट हो या समाज सेवा, अच्छे और बुरे लोगों में
फ़र्क करना बहुत मुश्किल हो गया है| अब क्योंकि CSR हर
कॉरपोरेट का अभिन्न हिस्सा हो गया है, ऐसे में हम एक सही संस्था (NGO) के साथ कैसे जुड़ें?
श्री श्री
रविशंकर : ये
देखिये कि वह संस्था पारदर्शी है और उसका कोई धार्मिक झुकाव नहीं है; ये बहुत
ज़रूरी है|
कभी कभी लोग CSR के कार्य करते हैं लेकिन उनकी प्रेरणा कहीं और से आ रही होती
है| वे लोगों को एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तित करना चाहते हैं, या फिर एक
विचारधारा से दूसरी विचारधारा, वोट बैंक के एक सेट से दूसरे सेट में| हमें इनसे
बचना चाहिये, क्योंकि ये वास्तव में समाज सेवा नहीं है, ये तो समाज सेवा के नाम पर
धोखा है, और ऐसा नहीं होना चाहिये| आपकी मंशाएं शुद्ध होनी चाहिये, आपके दिल साफ़
और निर्मल होने चाहिये|
ऐसी बहुत सी NGOs हैं, जिनकी मंशा सिर्फ इतनी है कि वे सिर्फ लोगों के चेहरे
पर खुशी और मुस्कुराहट लाना चाहती हैं| उन्हें देखिये, कि उनकी मंशाएं कितनी सही
हैं, क्या उनकी बैलेंसशीट सही है, क्या वे अपने पैसे को पारदर्शी रूप से खर्च करती
हैं, क्या उनके प्रशासनिक खर्चे कम हैं?
उनके
प्रशासनिक खर्चे बहुत अधिक नहीं होने चाहिये| कभी कभी प्रशासनिक खर्चे इतने ज्यादा
होते हैं कि लाभार्थियों तक कुछ पहुँचता ही नहीं है, ऐसा नहीं होना चाहिये|
बहुत सी
संस्थाएं, वे कहती हैं कि उनका 40% से 50% तक केवल प्रशासनिक खर्चों में चला जाता
है| ऐसा ठीक नहीं है| इसे कम से कम रखना चाहिये, 5% से 10%, ज्यादा हुआ तो 15%| तो
ये भी देखिये, और फिर देखिये कि कौन लोग उस संस्था के साथ काम कर रहे हैं, उनकी
मदद लीजिए|
प्रश्न : गुरुदेव,
मेरे पिता कहते हैं कि मैं खुद तनाव नहीं लेता, लेकिन दूसरों को तनाव देता हूँ|
यदि मैं तनाव देता हूँ, तो मेरा प्रश्न है कि वे उसे लेते क्यों हैं? क्यों दूसरे
लोगों को अपना तनाव नहीं संभालना चाहिये?
श्री श्री
रविशंकर : इस
बात को देखने का यह एक दूसरा तरीका है|
कभी कभी लोग
कहते हैं, ‘मैं यहाँ आपकी सहनशीलता परखने आया
हूँ| मुझे भगवान ने इस पृथ्वी पर सिर्फ इसीलिये भेजा है, याकि मैं सबके सब्र का
इम्तेहान लूं|’
एक पुरानी
कहावत है, ‘कोई भी किसी दूसरे को दुःख या सुख
नहीं दे सकता| दुःख और सुख हमारे ही मन द्वारा रचित है|’
हम कहीं भी
आराम महसूस कर सकते हैं, और कहीं भी कष्ट में रह सकते हैं, ये पूरी तरह से हमारी
मर्जी है|
प्रश्न : गुरुदेव,
एक पुरानी कहावत है कि जब आप किसी सच्चे गुरु के पास आते हैं, तब आपके अंदर की
कुशलता उभरने लगती है| क्या ये सही है? क्योंकि मैं तो यहाँ आश्रम में एक हाथी को
भी माउथ-ऑर्गन बजाते हुए देखता हूँ|
श्री श्री
रविशंकर : हाँ,
लगता है यहाँ ऐसे ही हो रहा है|
बहुत से लोग
जो संगीत से कोसों दूर थे, उन्होंने गाना शुरू कर दिया है| बहुत से लोग कविता
लिखते हैं| मुझे चारों तरफ बहुत रचनात्मकता दिखती है| ऐसा लगता है कि वे इस पुरानी
कहावत को सच कर रहे हैं!
देखिये, जब भी
आपका मन शांत और शुद्ध हो जाता है, जब आप ध्यान करते हैं, जब आप अंदर से खुश होते
हैं, तब रचनात्मकता तो उसके साथ आती ही है| ये सहज ही है, और अगर ऐसा नहीं होता
है, तब आपको आश्चर्य करना चाहिये|
प्रश्न : गुरुदेव,
आजकल सभी लोग नफरत के भाषण दे रहे हैं और लोगों के मन में अशांति फैला रहे हैं, और
फिर वे उसके लिए गिरफ्तार हो रहे हैं| कोई भी नेता आज प्रेम का भाषण नहीं दे रहा|
क्या करें?
श्री श्री
रविशंकर : अब
सबसे पहले तो आप ये शब्द ‘सभी लोग’ हटा दीजिए| सभी लोग ऐसा नहीं कर रहे हैं| ऐसे कुछ लोग हैं,
एक या दो, यहाँ वहां| वे ऐसे काम करते हैं, क्योंकि सिर्फ तभी मीडिया उन्हें
चुनेगी| मीडिया नफरत के भाषण ही चुनती है| उन्हें मीडिया का ध्यान अपनी ओर खींचना
है, इसलिए वे ऐसा करते हैं| और यदि वे गिरफ्तार हो जाते हैं, तो वे एक विशेष
संप्रदाय में हीरो बन जाते हैं| आप क्या कर सकते हैं? वे नकारात्मक प्रचार करते
हैं, क्योंकि उन्हें सकारात्मक प्रसिद्धि नहीं मिलती| इसलिए आसान तरीका है, कि जाओ
और किसी के भी बारे में उल्टा-सीधा बोलो, या कहीं कोई नफरत भरा भाषण दे दो| मज़े की
बात है, कि बहुत से लोग उनके लिए ताली भी बजाते हैं, क्योंकि उनके लिए ये मनोरंजन
है|
मीठी मीठी
बातें, कुछ प्रेम भरी बातों में लोगों को दिलचस्पी नहीं होती| ‘चलो आओ, उस आदमी को एक घूँसा मारें’, और सब लोग मान जाते हैं|
इसी को भेड़चाल
कहते हैं| एक गुट हमेशा दुनिया में कुछ विध्वंसक करना चाहता है| कभी किसी गुट ने
शायद ही कभी कुछ निर्माण किया होगा, एक गुट हमेशा विनाश ही करता है| कभी कभी विनाश
ज़रूरी भी हो सकता है| एक उदाहरण था आज़ादी की लड़ाई, जब वे इस उपनिवेशी परंपरा को
खत्म करना चाहते थे| तब एक भीड़ जुट गयी, लेकिन अहिंसा के साथ| और ऐसा क्यों हुआ?
क्योंकि उनका नेता एक आध्यात्मिक व्यक्ति था – महात्मा गाँधी| वे सत्संग
करते थे, ठीक वैसे ही जैसे हम लोग कर रहे हैं| हर दिन भजन होते थे, ध्यान होता था,
और देश-विदेश के मुद्दों के बारे में विचार-विमर्श होता था|
तो इस तरह
प्रशासन को हिलाने का आन्दोलन चला, लेकिन बिना खून खराबे के, बिना किसी हिंसा के|
यह इतिहास में सबसे अलग था, जहाँ भीड़ इकठ्ठा तो हुई, लेकिन किसी भी चीज़ का विनाश
नहीं किया, किसी को दुःख या कष्ट नहीं पहुँचाया|
ठीक इसी तरह
की भीड़ अब दुनिया भर में इकठ्ठा हो रही है| अरब देश में देखिये, क्या हो रहा है?
लोग एक दूसरे को मार रहे हैं, और कितना कष्ट है|
मैं तो एक
बहुत ही अलग पहलू का स्वप्न देख रहा हूँ| मैं चाहता हूँ कि लोग नए नए रचनात्मक
विचारों और प्लान के साथ आगे आयें| एक ऐसे ही आन्दोलन का बीज 3 फरवरी को दिल्ली
में बोया गया था, जहाँ की भीड़ ‘भ्रष्टाचार के विरुद्ध’ आन्दोलन से तीन गुणा ज्यादा थी|
इतनी भीड़ जमा
थी कि वह एक रिकॉर्ड था, और उन सबने कुछ निर्माणकारी करने का वचन लिया|
सरकार थोड़ा
घबरा गयी थी, और उन्होंने बहुत से पुलिस वालों को वहां तैनात कर दिया था| हर एक
किसी की चेकिंग हो रही थी, जब वे अंदर आ रहे थे, इसीलिये लोगों को अंदर आने और
बाहर जाने में इतना समय लग रहा था| लेकिन सब लोग इतना हैरान रह गए, ये देख कर कि
यहाँ न तो कोई दोषारोपण हो रहा है, न कोई नफरत भरा भाषण दे रहा है, सब लोग साथ
मिलकर कुछ अच्छा करने का सोच रहे हैं|
हमारे युवाओं
में ये ऊर्जा है, हमें सिर्फ ज़रूरत है उसे एक दिशा देने की|
क्या आप सोच
सकते हैं, कि केवल दो महीनों में, बिना किसी साधन के, दिल्ली में 1000 प्रोजेक्ट
पूरे किये गए थे? 17 झोपड़ पट्टियों में, जिन्हें आर्ट ऑफ लिविंग ने अपनाया था,
वहां 1000 छोटे छोटे प्रोजेक्ट पूरे हुए| तो अब स्वयं सेवकों ने 100 झोपड़ पट्टियों
में काम करना शुरू कर दिया है|
भारत घोटालों
और झोपड़ियों के बीच डांवाडोल हो रही है, और हमें लोगों के अंदर इसी तरह का उत्साह
चाहिये, कि वे कुछ रचनात्मक करें|
यहाँ एक नदी
है, जिसका नाम है कुमाद्वती, जो सूख गयी है| तो हमारे कुछ स्वयंसेवकों ने इस नदी
को उसके स्त्रोत से, और जिन 12 तहसीलों से वह गुज़रती है , वहां से वापिस
पुनर्जीवित करने का बीड़ा उठाया है| ये एक बहुत ही बढ़िया पहल है, जिससे बहुत से
गावों की पानी की समस्या हल हो सकती है|
पानी का स्तर
इतना नीचे चला गया है, पहले ये 20-30 फीट होता था, अब तो ये 600 फीट चला गया है,
इतना नीचे! तो ये स्वयंसेवक उसे पुनर्जीवित करेंगे| ये लोग बारिश के पानी का संचयन
कर रहे हैं, और बाकी जो भी कुछ उसे पुनर्जीवित करने के लिए ज़रूरी है|
ऐसे प्रोजेक्ट
को पूरा करने के लिए किसी को करोंड़ों रुपये खर्च करने पड़ेंगे| लेकिन लोग अपना खुद
का पेट्रोल इस्तेमाल कर रहे हैं, अपनी खुद की गाड़ियों से जा रहे हैं, और काम कर
रहे हैं| ये होता है सेवा करने का आनंद और नशा| और तो और, यहाँ हमारे दो स्वयंसेवक
आये हुए हैं, जिन्होंने एक ऐसा प्रोजेक्ट साइन किया है जिसमें वे गरीब लोगों के
लिए 1000 शौचालय बनायेंगे|
प्रश्न : गुरुदेव,
क्या काम-वासना बुरी है? क्या हमें काम-वासना के आगे झुक जाएँ, क्योंकि हम जिस चीज़
को रोकते हैं वही ज्यादा बढ़ चढ़ कर सामने आती है|
श्री श्री
रविशंकर : संयम
से! किसी भी चीज़ की अति नहीं करनी चाहिये|
काम-वासना
इसलिए है, क्योंकि आपके पास ज्यादा कुछ करने के लिए नहीं है| यदि आप व्यस्त रहते
हैं, तब यह आपके मन के ऊपर इतना हावी नहीं होती| आपको अपनी ऊर्जा और अधिक रचनात्मक
कार्यों में लगानी चाहिये, तब आप पाएंगे कि आप ज्यादा संयम में रहेंगे|
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