"परमात्मा तुम्हें नींद देंगे, स्वप्न तुम खुद बनाओ"

बैंगलोर आश्रम, २ सितंबर २००९
श्री श्री ने आज कहा -


प्रश्न : मैं अपने प्रदेश में एक सम्मानित, प्रतिष्ठित और जाना माना, उच्च पदाधिकारी हूं। जब मैं किसी अन्य जगह जाता हूं तो कभी कभी मुझे लगता है कि वहा मेरा महत्व कुछ कम है। मैं अपनी पहचान पर प्रश्न चिह्न लगा लेता हूं। इससे छुटकारा कैसे पाऊं?

श्री श्री : तुम्हें एक सूट पहनना आना चाहिये – और उसे उतारना भी! अपने घर में सब राजा होते हैं। अकिंचन रहना सीखो – मैं कुछ नहीं हूँ। जीवन की पूरी यात्रा है, ‘मैं कुछ हूं’ से ‘मैं कुछ नहीं हूं’ और फिर ‘मैं ही सब हूं।’ आमतौर पर जीवनयात्रा होती है, ‘मैं कुछ हूं’ से ‘मैं कुछ नहीं हूं’ और फिर, ‘मैं कुछ हूं’!
सत्संग में बैठो। अपने वजूद को घुल जाने दो। अपने वजूद को घुल जाने देना, समाधि है, आनंद है। तुम जान जाओगे कि तुम अमर हो।

प्रश्न : Art of Living संस्था के लिये आपकी क्या दृष्टि है?

श्री श्री :
आध्यात्म इस नये युग की भाषा है। तुम अपनी दृष्टि खुद बनाओ। मैं कहूंगा कि तुम दृष्टा बन जाओ, अपने दृश्य खुद बनाओ। परमात्मा तुम्हें नींद देंगे, स्वप्न तुम खुद बनाओ।

प्रश्न : अगर १ से १०० तक की rating करें और एक पत्थर का स्तर शून्य है और मनुष्य का १००, तो बीच के बाकी जीवों का क्या स्तर कैसे तय करेंगे?

श्री श्री : Rating की क्या आवश्यकता है? सब कुछ उस एक का है। उसका ही अंग है। उस एक ने ही ये सभी अनंत रूप लिये हैं। शून्य और १००, सभी में वही है। एक पत्थर में भी जड़ता और चैतन्य होगी। ब्रह्म में जड़ और चैतन्य दोनों का ही समन्वय है। वे ब्रह्म का अंग हैं।
भगवान श्री कृष्ण भगवद‍ गीता में कहते हैं, ‘माया भी मुझ से ही है। समस्त विश्व मुझ में ही है। फिर भी मैं किसी में नहीं हूं।’ भगवद गीता का ज्ञान भ्रमक लग सकता है। बिना सत्य के अनुभव के ज्ञान केवल कुछ सिद्धांत मात्र हैं। अपने सही स्वरूप के अनुभव के लिये तुम अपने भीतर, गहरे उतर जाओ।

प्रश्न : मैं अपनी नकरात्मक भावनाओं से ज्ञान के द्वारा कैसे छुटकारा पा सकता हूं? अगर मैं उन्हें हटाने के लिये प्रतिबद्ध हो जाऊं तो वे मेरा विरोध करेंगे। अगर मैं उनका विरोध ना करूं, तो वे यथावत रहेंगे।

श्री श्री :
नकरात्मक भावनाओं के साथ लड़ो मत, और उनसे मित्रता भी मत करो। युक्ति से, सांस से, सही दृष्टिकोण से, सभी नकरात्मकता से छुटकारा हो सकता है। अष्टावक्र गीता में कहा गया है, ‘सही तरीके से मन के ऊपर जाओ।’

प्रश्न : शिव जी के परिवार में हरेक का वाहन, जीव जगत में आपस में दुश्मन है। एक बैल है, चूहा है, मोर इत्यादि है – फिर भी वे आपस में शांति से रहते है! ऐसा कैसे?

श्री श्री :
शिव का शांत, अद्वैत तत्व, हरेक को संग लाता है, और सद्भावना लाता है।

प्रश्न : जिज्ञासा क्या है?

श्री श्री : तुम्हारा प्रश्न ही जिज्ञासा के सार तत्व का उदाहरण है। जो तुम पूछ रहे हो, वही इसका उत्तर है। ये तो ऐसा ही है जैसे कोई पूछे कि ध्वनि क्या है?



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