बैंगलोर आश्रम, ५ सितंबर २००९
श्री श्री रवि शंकर ने आज कहा –
प्रश्न : अगर कोई राजनेता सत्ता में है और भ्रष्ट है, उसकी वजह से बहुत लोग दुख उठा रहे हैं, तो क्या ये ठीक होगा कि उसके मरने के लिये प्रार्थना की जाये?
श्री श्री रवि शंकर : प्रार्थना करो कि उसे सद्बुद्धि मिले। अगर ऐसा नही होता तो प्रार्थना करो कि वो सत्ता में ना रहे। कई मंदिरों के प्रवेश द्वार पर तुम देखोगे कि राक्षसों की मूर्तियां बनाई गई हैं। राक्षसों को भी भगवान के दरबार के बाहर या उनके चरणों में शरण मिली है। पर अगर उन्हें मंदिर के गर्भ-गृह में सिंहासन पर बिठा दिया जाये तो गड़बड़ हो जायेगी।
प्रश्न : जब मैं आपको नहीं देखता हूं या किसी दिन सुदर्शन क्रिया नहीं कर पाता हूं, या सत्संग नहीं कर पाता हूं, तो मैं बहुत व्याकुल हो जाता हूं। क्या मैं आप से या Art of Living में आसक्त हो रहा हूं?
श्री श्री रवि शंकर : ये आसक्ति ठीक है।
प्रश्न : ऐसा कहा गया है कि कर्म करने की प्रेरणा चेतना से आती है। साथ ही, ये भी कहा गया है कि कर्म करने की प्रेरणा आती है पूर्व संसकारों से। (हमारे मन पर पड़े पिछले कर्मों की छाप से।) इन दोनों में से कौन सी बात सही है?
श्री श्री रवि शंकर : दोनों ही बातें अलग-अलग स्तर से सही हैं। कर्म से संस्कार बनता है, और संस्कार से परम चेतना का अनुभव होता है। तो इस बारे में सोचो कि क्या करना चाहिये और क्या नहीं करना चाहिये।
प्रश्न : बदला लेना बुरी बात क्यों कही गई है, जबकि प्रकृति भी मनुष्यों के कर्मों का फल देती है?
श्री श्री रवि शंकर : बदले की भावना, मनुष्यों के लिये उपयुक्त नहीं है। ये un-evolved जानवरो की प्रकृति है।
बदले की भावना से तुम बहुत परेशान होते हो। जब तक तुम बदला नहीं ले लेते, तुम नर्क जैसी स्थिति में रहते हो। बदला लेने का विचार ही तुम्हें नर्क में डाल देता है। तुम भी यातना सहते हो और दूसरों को भी यातना देते हो। किसी को कोई लाभ नहीं होता। दूसरों को शिक्षित करना आवश्यक है।
अगर किसी ने तुम्हारा बुरा किया है, तो उन्हें समझाओ और सुधारो। इसके बिना तुम स्थिति को नहीं सुधार सकते हो। सजग रहो। अगर कोई तुम्हें धोखा देता है तो इससे तुम्हारा अज्ञान उजागर होता है। हम बुद्धिमान हो सकते हैं और दूसरों को ज्ञान दे सकते हैं। जब बदला लेने का विचार आये, तो विचार करो कि इससे तुम्हें कितना नुक्सान होगा, और हासिल क्या होगा?
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