यह हम पर निर्भर करता हैं कि कैसे हम दूसरों की प्रतिभा में से उनका सर्वश्रेष्ठ निखार सके

बैंगलुरू, ७ मई २०११

प्रश्न: गुरूजी जब आप कहते हैं कि किसी व्यक्ति को आत्मा का अहसास हो गया हैं तो, कृपया कर के यह बताए कि उन्हें क्या अनुभव होता हैं |
श्री श्री रवि शंकर : इस बात का अनुभव कि मैं सिर्फ शरीर नहीं हूं,, परन्तु मैं इस शरीर से कहीं अधिक विशाल हूं | इस जन्म के पहले भी मैं यही पर था और मेरी मृत्यु के उपरांत भी मैं यही पर रहूंगा | यदि किसी व्यक्ति को इसका एहसास हो जाए तो वह पर्याप्त हैं | परन्तु यह सिर्फ वे कह सकते हैं, दुसरे उनके लिए कोई राय नहीं दे सकते |

प्रश्न: प्रिय गुरूजी कृपया कर के बताये कि हम मानवो के रूप में आध्यात्मिक बनना चाहते हैं या हम आध्यात्मिक होते हुए मानव रूप मे स्वांग कर रहे हैं ?
श्री श्री रवि शंकर: दोनों -आध्यात्मिक होते हुए मानव रूप मे स्वांग करना जो फिर से आध्यात्मिक कोण में आना चाहता हैं,अपने स्वयं मे वापसी |
क्या आप को राधा शब्द का अर्थ पता है ?राधा का अर्थ हैं स्रोत मे वापसी | धारा का अर्थ हैं प्रवाह,स्रोत से प्रवाह को धारा कहते हैं | और जब धारा को दुसरे छोर से पढ़ते हैं, तो वह राधा हैं| जब जल का प्रवाह होता है तो उसे धारा कहते है और जब जल की अपने स्रोत के पास वापसी हो जाती हैं तो वह राधा है |

प्रश्न: प्रिय गुरूजी मेरा पुत्र दो वर्ष का हैं, वह अन्य लोगो के समक्ष असुरक्षित महसूस करता हैं | क्या बच्चे इतनी उम्र में ऐसा महसूस करते है? इससे कैसे निपटा जाए ?
श्री श्री रवि शंकर: बालक में असुरक्षा की भावना नहीं हो सकती | दो वर्ष का बालक इतना असुरक्षित हो ही नहीं सकता, यह आपका उसके लिए रक्षा का भाव हो सकता है |कभी कभी जब बालक कुछ महसूस करता हैं और कुछ कहता हैं तो आप अपने आपको काफी सुरक्षित कर लेते हैं | खास तौर पर दादा दादी का बच्चो पर बहुत असर होता हैं | दादाजी कहेंगे कि मेरे ६ महीने के पोते ने मेरी तरफ देख कर कहा कि “ दादाजी आज आप सैर के लिए न जाए और मेरे साथ ही रहे,” यह सब उसने अपने आँखों से कहां | शिशु को बोलना भी नहीं आता परन्तु दादाजी को लगता हैं कि वह सब कुछ कह सकता हैं | यह काफी हद तक सिर्फ आपकी कल्पना ही होती हैं |
यदि आपको लगता हैं कि आपके बच्चे में थोड़ी ईर्ष्या हैं, तो वह भाई बहिन के प्रति हो सकती हैं, यदि आपको ऐसा लगता हैं तो आप उनकी पीठ को थपथपाए और उनका और अधिक ध्यान रखे |

प्रश्न: गुरूजी मैने दो वर्ष पूर्व यस + कोर्स किया था और हाल मे मैने अपने पालको को बताया कि भीतर से मैं खाली और खोखला महसूस करता हूं और कुछ भी नहीं होने का अनुभव भी बताया | वे कहते हैं कि अब मैं किसी काम का नहीं रहा, मुझे उन्हें क्या कहना चाहिए ?
श्री श्री रवि शंकर: आप उन्हें कुछ नहीं कहे | सिर्फ उन्हें यह दिखाए कि आप बहुत कुछ कर सकते हैं | उनके दिल को अपने शब्द से नहीं बल्कि अपने कृत्य से जीते |

प्रश्न: गुरूजी तड़प कैसे दिव्य गुण है? तड़प में मुझे बहुत दर्द होता है |
श्री श्री रवि शंकर: तड़प ही इश्वर है !

प्रश्न: गुरूजी मुझे लगता हैं कि मैं स्वार्थी और चालाक लोगो से घिरा हुआ हूं , जो मुझसे सिर्फ कार्य करवा लेना चाहते हैं | इस दुनिया में मैं कैसे अपनी सरलता और सादगी को कैसे बरक़रार रख सकता हूं ?
श्री श्री रवि शंकर: सबसे पहले हर किसी व्यक्ति को चालाक और भ्रष्ट मत समझों | अन्यथा आप उन्हें उसी दृष्टि से देखेंगे ? उस तरह लोगो अंकित न करे, यहां तक यदि वैसे ही हो तो भी | आपका संकल्प और आपके विचार उन्हें और बुरा बना सकते है | लेकिन यदि आपका संकल्प अच्छा हैं तो जो लोग बुरे प्रतीत होते हैं, तो उनमे से भी कुछ अच्छा ही निखर के आयेगा | आज हमारे एक प्रशिक्षक ने श्रीनगर से फोन करके बताया कि उन्होंने ५० युवाओं का युवा नेतृत्व प्रशिक्षण शिविर का समापन किया | वे बता रहे थे कि युवाओं में बहुत अधिक बदलाव आया |समापन समारोह में जिले के कलेक्टर आये और उन्होंने कहां, “ कि यह तो चमत्कार है, यहां के युवाओं को क्या हो गया हैं ? इनमे इतना बदलाव कैसे आया”| युवा कह रहे थे कि आपने पहेले इस प्रकार का आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान नहीं किया और आप हमें कहते हैं कि हम यह और वह करते हैं, परन्तु हमें भीतर की शान्ति के बारे मे किसी ने शिक्षा नहीं दी |
इसलिए यह हम पर निर्भर करता हैं कि कैसे हम दूसरों की प्रतिभा में से उनका सर्वश्रेष्ठ निखार सके, अक्सर हम दूसरों की निंदा करते हैं और कहते हैं, “ तुम बिलकुल निकंमे हो”, परन्तु उस में कुछ अच्छे गुण भी होते हैं,इसलिए आपको उसमे आशा को जगाना होगा |अपने आस पास के लोगो में, दिव्य गुणों को निखारे और इसे अपना लक्ष्य बना लीजिए| मैं आपको अनुभवहीन बनने के लिए नहीं कह रहा हूं, इसलिए ध्यान रखकर, अच्छे गुणों को निखारे |

प्रश्न: ऐसा कहा जाता हैं कि जीवन चेतना की क्रीड़ा और प्रदर्शन हैं | चेतना को क्रीड़ा करने की क्या आवश्यकता हैं?
श्री श्री रवि शंकर: प्रकृति क्रीडा हैं | जब आप खुश होते हैं तो आप क्या करते हैं, आप खेलते हैं | जब आप खेलते हैं तो आप की कोई आवश्यकता नहीं होती हैं|इस लिए आप खेलते हैं | जब आपकी अनेक जरूरते होती हैं, तो आप सिर्फ कार्य करते रहते हैं | जब आप के पास खाली समय होता हैं तभी आप खेल सकते हैं| जब आपकी सभी जरूरते पूरी होती हैं तो खेल आपके जीवन का हिस्सा बन जाता हैं | चेतना सम्पूर्णता हैं और क्रीड़ा करना उसका स्वभाव हैं | क्रीड़ा करना दिव्यता का स्वभाव होता हैं |

प्रश्न: गुरूजी पर्यावरण आज सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा हैं, हम उसका ध्यान रखने के लिए क्या कर सकते हैं?
श्री श्री रवि शंकर: पर्यावरण का ध्यान रखना आर्ट ऑफ लिविंग का बड़ा लक्ष्य हैं |वृक्षारोपण करे, कम से कम प्लास्टिक का उपयोग करे, यदि संभव हो सके तो प्लास्टिक का उपयोग ही न करे और विकल्प में कपड़े का थैलों का उपयोग करे | यह सब बहुत ही उचित बातें हैं जिनकी जानकारी होना आवश्यक हैं | आपने इसके बारे में बेसिक कोर्से में सुना था और आप इसे अब वैसे भी कर ही रहे हैं |
पर्यावरण को स्वच्छ रखे, यदि आप लोगों को सड़को पर गन्दगी करते हुए देखे तो आप उन्हें समझाए | यदि आप के पास खाली समय हो और आप को कहीं गन्दगी देखे तो आप वहां खड़े होकर कुछ और लोगो को बुलाये उर उनसे कहे “चलो इस जगह को साफ कर देते हैं”, इस तरह से कुछ करते रहे |

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