१७ मई २०११, बैंगलुरु आश्रम
प्रश्न: प्रिय गुरूजी क्या यह बात सही है कि भगवत गीता के प्रत्येक अध्याय का प्रभाव किसी विशेष गृह पर होता है ? कृपया इसे समझाए |
श्री श्री रवि शंकर: गृह बहुत दूरी पर हैं फिर भी उनका प्रभाव आपके मन और आत्मा पर होता हैं | प्रत्येक अध्याय का प्रभाव आप पर होता है |
प्रश्न: प्रिय गुरूजी मैं अपने व्यवसाय में व्यस्त रहता हूं, लेकिन मुझ में सेवा करने की प्रबल इच्छा हैं | क्या मैं अपना अधिक समय दिये बिना यदि आर्थिक रूप से सहयोग प्रदान करता हूँ, तो क्या वह भी सेवा मानी जायेगी |
श्री श्री रवि शंकर: हां, वह भी ठीक है | कुछ लोग समय दे सकते हैं और कुछ साधन मुहैया करवाते हैं | सेवा दोनों समय और साधन से होती है | यदि आप समय नहीं दे सकते तो साधनों को मुहैया करवा दीजिए |
प्रश्न: गुरूजी आपने हमें वैराग्यपूर्ण बनने के लिए कहा और आप यह भी कहते हैं कि वैराग्य घटना है | मुझे वास्तव में वैरागी बनना है, परन्तु मुझे इस बात का भ्रम है कि कैसे मैं अपने जीवन में कोई घटना निर्मित कर सकता हूं ? कृपया मार्गदर्शन करें |
श्री श्री रवि शंकर : वैराग्य कोई घटना नहीं हैं परन्तु मैं कहूंगा कि आपको अपने स्वयं में वैराग्य को उत्पन्न करना होगा | जब आप अपनी सजगता को बढ़ाते हैं, और जब आप यह समझ लेते हैं कि सब कुछ लुप्त होने वाला है और मृत्यु निकट है, हम सभी कि मृत्यु होने वाली है और सब कुछ बदल रहा है, जब यह ज्ञान आपको समझ में आने लगता है तो वैराग्य स्वाभाविक ही हो जाता है | जब आप जीवन को समझ कर एक बड़े दृष्टिकोण से देखते हैं, तो वैराग्य स्वाभाविक रूप से आप में आ जाता है, लेकिन उसके लिए आपको कुछ प्रयास करने होंगे | आप कुछ प्रयास करे फिर वह हो जाएगा |
प्रश्न: गुरूजी मेरा और मेरी पत्नी का दो वर्ष पूर्व तलाक हो गया था, अब हम फिर से विवाह करना चाहते हैं| आप कह सकते हैं कि हमारे मामले में तलाक काम नहीं आया परन्तु हम दोनों भयभीत हैं, क्या हम फिर से वहीं गलती दोहराने जा रहे हैं ? कृपया मार्गदर्शन करें |
श्री श्री रवि शंकर: यह एक अच्छा आशय है कि आप उसे सफल बनाना चाहते हैं | जैसे समय बीतता है, चेतना, मन और समझ में बदलाव आता है | अब इस बदली हुई परिस्थिति में यदि आप उसे सफल बनाने के लिए एक और प्रयास देना चाहते हैं तो इसमें कोई गलती नहीं है, आप इसके लिए प्रयास कर सकते हैं | यदि वह प्रयास सफल नहीं होता तो अगले जीवनकाल में उसी जीवन साथी को न चुनें |
प्रश्न: मैं जीवन का आनंद कैसे लूंगा, यदि एक दिन सब कुछ समाप्त ही होने वाला है ? गुरूजी यह विचार मुझे आनंद लेने नहीं देता |
श्री श्री रवि शंकर: उससे आपको जीवन को और सराहना चाहिए | फूल एक दिन मुरझाने वाला है परन्तु क्या आप उसे देखने का लुफ्त उठाना छोड़ते हैं ? यदि आप के पास गुलाब जामुन या आइसक्रीम होती है, और जब आप उसे खाते हैं तो वह समाप्त हो जाती है, तो क्या आप उसे खाने का आनंद नहीं लेते | आज पूर्णिमा का सुन्दर चाँद दिख रहा है और एक दिन वह गायब हो जाएगा परन्तु फिर भी हम उसका आज आनंद ले रहे हैं |
प्रश्न: प्रिय गुरूजी सामान्यता हम में एक शक्ति अधिक प्रभावकारी होती हैं : ब्रह्म शक्ति, विष्णु शक्ति या शिव शक्ति; इनका उपयोग कैसे करें और इनमे संतुलन को कैसे बनायें ?
श्री श्री रवि शंकर: सिर्फ आगे बढ़ते चलो | ब्रह्म शक्ति से आप कुछ सृजन करते हैं, फिर उसे छोड़ मत दो | विष्णु शक्ति यह देखती है कि जो भी आपने शुरू किया हैं वह निरंतर बरकरार रहे |
प्रश्न: गुरूजी आज बुद्ध पूर्णिमा है, कृपया कर के उसके बारे में कुछ बताये ?
श्री श्री रविशंकर: गौतम बुद्ध ने अपने पूरे जीवन काल में और पूरे समय ध्यान किया | अब हम सब भी थोड़ी देर के लिए ध्यान करेंगे |
प्रश्न: मैं राजस्थान से हूं, वहां पर कई आश्रम हैं, मैं सोच रहा था कि वहां आर्ट ऑफ लिविंग का भी एक छोटा आश्रम बनाया जाए तो बहुत अच्छा होगा| इस पर आपका क्या विचार है |
श्री श्री रविशंकर: ठीक है वहाँ एक आश्रम निर्मित करो | आप सब लोग मिलकर वहां एक आश्रम को बनाये| मैं लोगों में उद्देश्य देता हूं आप आश्रम को बनाए | कल ही हम चर्चा कर रहे थे कि इतने सारे आश्रम हैं परन्तु उतने लोग नहीं हैं | आश्रम में कोई योगी नहीं है | इसलिए मैने सोचा कि पहले मजबूत लोगों को बनाऊंगा इसलिए मैने इसे व्यक्ति विकास कहां नाकि आश्रम विकास | इसलिए यह कार्य अब आप करे, दूसरा अन्य काम मैने शुरू कर दिया है |
प्रश्न: जब अपने किसी प्रियजन की अचानक मृत्यु हो जाती है जिसे हम स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं होते हैं | उनसे कई बाते करना और कहना होती है और उनकी मृत्यु के उपरांत उन्हें महसूस करना चाहते हैं | आप कहते है की वे यहीं पर हैं, तो उन्हें कैसे महसूस किया जाए|
श्री श्री रवि शंकर: जो लोग यहाँ से चले गए है उन्हें यह समझ हो जाती है की यह विश्व सिर्फ एक क्रीड़ा है और वास्तव मे कुछ भी नहीं है यह सिर्फ एक तरंग के जैसे है, इसलिए उन्हें कुछ बताने या समझाने की कोई आवश्यकता ही नहीं हैं, क्योंकि वे वैसे ही समझ जाते हैं | जब हम शरीर मैं होते है तो हम शव्दों के द्वारा समझ जाते है परन्तु हम जब शरीर के बाहर आ जाते है तो संपर्क भावनाओं के द्वारा होता है | इसीलिए आप चिंता ना करें और खुश रहें जिनकी मृत्यु हो चुकी है वे जा चुके है और हम सब यहां पर हैं |
प्रश्न: गुरुजी आप के प्रति हमारी भावनाओं को हमारे प्रियजन नहीं समझते हैं और वे तर्क के द्वारा बातों को समझते है जिससे हमारी भावनाओं को ठेस पहुंचती है यह परिस्थिति हमारे जीवन मैं अक्सर आती रहती है, इससे कैसे निपटा जाये ?
श्री श्री रवि शंकर: आपको हर किसी व्यक्ति को हर कोई भावना को समझाने की आवश्यकता ही क्यों है ? ऐसी भावनाओं को लोग समझना ही नहीं चाहते | आपको अपनी भावनाये इस प्रकार से अभिव्यक्त नहीं करना चाहिए | वे असुरक्षित महसूस करते होगें कि आप उन्हें छोड कर आश्रम मे जा कर रहने लगेंगे | इसीलिए आपको अपनी भावनाओं के द्वारा उनमे भय उत्पन्न नहीं करना चाहिए | आपका प्रेम और भक्ति उतनी ही अभिव्यक्त होना चाहिए जितना वे समझ सकें | यही बात प्रसन्नता के साथ होती है, कभी कभी आप यह समझ नहीं पाते कि कितनी प्रसन्नता अभिव्यक्त करें ; यदि आप अत्याधिक अभिव्यक्ति करते है तो लोग उसे समझ नहीं पाते |
एक भक्त किसी व्यक्ति के अंतिम संस्कार और शोक सभा मे गया, वहां पर लोग भजन गा रहे थे और इस भक्त ने वहां पर भजनों पर नृत्य करना शुरू कर दिया और लोग उसके कृत्य को समझ नहीं पाए | सत्संग और भजन मे जब आप खुश होते तो आप नृत्य करते हैं परन्तु उसका यह तर्क था कि हर बात का उत्सव मानना चाहिए | यदि आप उस जगह पर नृत्य करेंगे तो निश्चित ही आप लोगों को नाराज़ करेंगे | इसीलिए आप को यह देखना चाहिए कि व्यक्ति कितना समझ सकता और उसे जो आप बताना चाहते हैं उसे कैसे व्यक्त करना है | इसीलिए आप को अपनी अभिव्यक्ति मे कौशल विकसित करना चाहिए, जिससे जितना संभव हो सके आप की अभिव्यक्ति के कारण लोगों मे भय और क्रोध उत्पन्न न हो सके | फिर एक स्तर के उपरांत आपको उस पर ध्यान नहीं देना चाहिए |
प्रश्न: मुझे लगता है की भारत की सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का कारण अत्याधिक आबादी पर आधारित है, क्या आप इससे सहमत है ?.
श्री श्री रवि शंकर: नहीं ! भारत की समस्याएं अत्याधिक आबादी पर आधारित नहीं है वे भ्रष्टाचार पर आधारित हैं ; यह सारी समस्याएं सिर्फ भ्रष्टाचार के कारण ही हैं | कुछ वर्ष पूर्व अत्याधिक आबादी को श्राप समझा जाता था परन्तु आज यह आबादी ही देश की अर्थव्यवस्ता को सुधारने का आधार बन गयी है | अत्याधिक आबादी का अर्थ है एक विशाल व्यापार के लिए नींव | आज दूसरे देशों की नजर भारत पर क्यों है ? क्योंकि भारत के पास एक विशाल व्यापार के लिए नींव है |
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प्रश्न: प्रिय गुरूजी क्या यह बात सही है कि भगवत गीता के प्रत्येक अध्याय का प्रभाव किसी विशेष गृह पर होता है ? कृपया इसे समझाए |
श्री श्री रवि शंकर: गृह बहुत दूरी पर हैं फिर भी उनका प्रभाव आपके मन और आत्मा पर होता हैं | प्रत्येक अध्याय का प्रभाव आप पर होता है |
प्रश्न: प्रिय गुरूजी मैं अपने व्यवसाय में व्यस्त रहता हूं, लेकिन मुझ में सेवा करने की प्रबल इच्छा हैं | क्या मैं अपना अधिक समय दिये बिना यदि आर्थिक रूप से सहयोग प्रदान करता हूँ, तो क्या वह भी सेवा मानी जायेगी |
श्री श्री रवि शंकर: हां, वह भी ठीक है | कुछ लोग समय दे सकते हैं और कुछ साधन मुहैया करवाते हैं | सेवा दोनों समय और साधन से होती है | यदि आप समय नहीं दे सकते तो साधनों को मुहैया करवा दीजिए |
प्रश्न: गुरूजी आपने हमें वैराग्यपूर्ण बनने के लिए कहा और आप यह भी कहते हैं कि वैराग्य घटना है | मुझे वास्तव में वैरागी बनना है, परन्तु मुझे इस बात का भ्रम है कि कैसे मैं अपने जीवन में कोई घटना निर्मित कर सकता हूं ? कृपया मार्गदर्शन करें |
श्री श्री रवि शंकर : वैराग्य कोई घटना नहीं हैं परन्तु मैं कहूंगा कि आपको अपने स्वयं में वैराग्य को उत्पन्न करना होगा | जब आप अपनी सजगता को बढ़ाते हैं, और जब आप यह समझ लेते हैं कि सब कुछ लुप्त होने वाला है और मृत्यु निकट है, हम सभी कि मृत्यु होने वाली है और सब कुछ बदल रहा है, जब यह ज्ञान आपको समझ में आने लगता है तो वैराग्य स्वाभाविक ही हो जाता है | जब आप जीवन को समझ कर एक बड़े दृष्टिकोण से देखते हैं, तो वैराग्य स्वाभाविक रूप से आप में आ जाता है, लेकिन उसके लिए आपको कुछ प्रयास करने होंगे | आप कुछ प्रयास करे फिर वह हो जाएगा |
प्रश्न: गुरूजी मेरा और मेरी पत्नी का दो वर्ष पूर्व तलाक हो गया था, अब हम फिर से विवाह करना चाहते हैं| आप कह सकते हैं कि हमारे मामले में तलाक काम नहीं आया परन्तु हम दोनों भयभीत हैं, क्या हम फिर से वहीं गलती दोहराने जा रहे हैं ? कृपया मार्गदर्शन करें |
श्री श्री रवि शंकर: यह एक अच्छा आशय है कि आप उसे सफल बनाना चाहते हैं | जैसे समय बीतता है, चेतना, मन और समझ में बदलाव आता है | अब इस बदली हुई परिस्थिति में यदि आप उसे सफल बनाने के लिए एक और प्रयास देना चाहते हैं तो इसमें कोई गलती नहीं है, आप इसके लिए प्रयास कर सकते हैं | यदि वह प्रयास सफल नहीं होता तो अगले जीवनकाल में उसी जीवन साथी को न चुनें |
प्रश्न: मैं जीवन का आनंद कैसे लूंगा, यदि एक दिन सब कुछ समाप्त ही होने वाला है ? गुरूजी यह विचार मुझे आनंद लेने नहीं देता |
श्री श्री रवि शंकर: उससे आपको जीवन को और सराहना चाहिए | फूल एक दिन मुरझाने वाला है परन्तु क्या आप उसे देखने का लुफ्त उठाना छोड़ते हैं ? यदि आप के पास गुलाब जामुन या आइसक्रीम होती है, और जब आप उसे खाते हैं तो वह समाप्त हो जाती है, तो क्या आप उसे खाने का आनंद नहीं लेते | आज पूर्णिमा का सुन्दर चाँद दिख रहा है और एक दिन वह गायब हो जाएगा परन्तु फिर भी हम उसका आज आनंद ले रहे हैं |
प्रश्न: प्रिय गुरूजी सामान्यता हम में एक शक्ति अधिक प्रभावकारी होती हैं : ब्रह्म शक्ति, विष्णु शक्ति या शिव शक्ति; इनका उपयोग कैसे करें और इनमे संतुलन को कैसे बनायें ?
श्री श्री रवि शंकर: सिर्फ आगे बढ़ते चलो | ब्रह्म शक्ति से आप कुछ सृजन करते हैं, फिर उसे छोड़ मत दो | विष्णु शक्ति यह देखती है कि जो भी आपने शुरू किया हैं वह निरंतर बरकरार रहे |
प्रश्न: गुरूजी आज बुद्ध पूर्णिमा है, कृपया कर के उसके बारे में कुछ बताये ?
श्री श्री रविशंकर: गौतम बुद्ध ने अपने पूरे जीवन काल में और पूरे समय ध्यान किया | अब हम सब भी थोड़ी देर के लिए ध्यान करेंगे |
प्रश्न: मैं राजस्थान से हूं, वहां पर कई आश्रम हैं, मैं सोच रहा था कि वहां आर्ट ऑफ लिविंग का भी एक छोटा आश्रम बनाया जाए तो बहुत अच्छा होगा| इस पर आपका क्या विचार है |
श्री श्री रविशंकर: ठीक है वहाँ एक आश्रम निर्मित करो | आप सब लोग मिलकर वहां एक आश्रम को बनाये| मैं लोगों में उद्देश्य देता हूं आप आश्रम को बनाए | कल ही हम चर्चा कर रहे थे कि इतने सारे आश्रम हैं परन्तु उतने लोग नहीं हैं | आश्रम में कोई योगी नहीं है | इसलिए मैने सोचा कि पहले मजबूत लोगों को बनाऊंगा इसलिए मैने इसे व्यक्ति विकास कहां नाकि आश्रम विकास | इसलिए यह कार्य अब आप करे, दूसरा अन्य काम मैने शुरू कर दिया है |
प्रश्न: जब अपने किसी प्रियजन की अचानक मृत्यु हो जाती है जिसे हम स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं होते हैं | उनसे कई बाते करना और कहना होती है और उनकी मृत्यु के उपरांत उन्हें महसूस करना चाहते हैं | आप कहते है की वे यहीं पर हैं, तो उन्हें कैसे महसूस किया जाए|
श्री श्री रवि शंकर: जो लोग यहाँ से चले गए है उन्हें यह समझ हो जाती है की यह विश्व सिर्फ एक क्रीड़ा है और वास्तव मे कुछ भी नहीं है यह सिर्फ एक तरंग के जैसे है, इसलिए उन्हें कुछ बताने या समझाने की कोई आवश्यकता ही नहीं हैं, क्योंकि वे वैसे ही समझ जाते हैं | जब हम शरीर मैं होते है तो हम शव्दों के द्वारा समझ जाते है परन्तु हम जब शरीर के बाहर आ जाते है तो संपर्क भावनाओं के द्वारा होता है | इसीलिए आप चिंता ना करें और खुश रहें जिनकी मृत्यु हो चुकी है वे जा चुके है और हम सब यहां पर हैं |
प्रश्न: गुरुजी आप के प्रति हमारी भावनाओं को हमारे प्रियजन नहीं समझते हैं और वे तर्क के द्वारा बातों को समझते है जिससे हमारी भावनाओं को ठेस पहुंचती है यह परिस्थिति हमारे जीवन मैं अक्सर आती रहती है, इससे कैसे निपटा जाये ?
श्री श्री रवि शंकर: आपको हर किसी व्यक्ति को हर कोई भावना को समझाने की आवश्यकता ही क्यों है ? ऐसी भावनाओं को लोग समझना ही नहीं चाहते | आपको अपनी भावनाये इस प्रकार से अभिव्यक्त नहीं करना चाहिए | वे असुरक्षित महसूस करते होगें कि आप उन्हें छोड कर आश्रम मे जा कर रहने लगेंगे | इसीलिए आपको अपनी भावनाओं के द्वारा उनमे भय उत्पन्न नहीं करना चाहिए | आपका प्रेम और भक्ति उतनी ही अभिव्यक्त होना चाहिए जितना वे समझ सकें | यही बात प्रसन्नता के साथ होती है, कभी कभी आप यह समझ नहीं पाते कि कितनी प्रसन्नता अभिव्यक्त करें ; यदि आप अत्याधिक अभिव्यक्ति करते है तो लोग उसे समझ नहीं पाते |
एक भक्त किसी व्यक्ति के अंतिम संस्कार और शोक सभा मे गया, वहां पर लोग भजन गा रहे थे और इस भक्त ने वहां पर भजनों पर नृत्य करना शुरू कर दिया और लोग उसके कृत्य को समझ नहीं पाए | सत्संग और भजन मे जब आप खुश होते तो आप नृत्य करते हैं परन्तु उसका यह तर्क था कि हर बात का उत्सव मानना चाहिए | यदि आप उस जगह पर नृत्य करेंगे तो निश्चित ही आप लोगों को नाराज़ करेंगे | इसीलिए आप को यह देखना चाहिए कि व्यक्ति कितना समझ सकता और उसे जो आप बताना चाहते हैं उसे कैसे व्यक्त करना है | इसीलिए आप को अपनी अभिव्यक्ति मे कौशल विकसित करना चाहिए, जिससे जितना संभव हो सके आप की अभिव्यक्ति के कारण लोगों मे भय और क्रोध उत्पन्न न हो सके | फिर एक स्तर के उपरांत आपको उस पर ध्यान नहीं देना चाहिए |
प्रश्न: मुझे लगता है की भारत की सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का कारण अत्याधिक आबादी पर आधारित है, क्या आप इससे सहमत है ?.
श्री श्री रवि शंकर: नहीं ! भारत की समस्याएं अत्याधिक आबादी पर आधारित नहीं है वे भ्रष्टाचार पर आधारित हैं ; यह सारी समस्याएं सिर्फ भ्रष्टाचार के कारण ही हैं | कुछ वर्ष पूर्व अत्याधिक आबादी को श्राप समझा जाता था परन्तु आज यह आबादी ही देश की अर्थव्यवस्ता को सुधारने का आधार बन गयी है | अत्याधिक आबादी का अर्थ है एक विशाल व्यापार के लिए नींव | आज दूसरे देशों की नजर भारत पर क्यों है ? क्योंकि भारत के पास एक विशाल व्यापार के लिए नींव है |
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