आप इस विश्व के लिए एक उपहार हैं !!!

१३ मई २०११, बैंगलुरू आश्रम
कोई भी उत्सव तभी वास्तविक हो सकता हैं जब दिल मे वैराग्य का भाव हो | जब मन भीतर की ओर मुड़कर उस अनन्त और कभी नहीं बदलने वाले स्वरुप की ओर चला जला हैं, और जब आप अपने भीतर के गहन मे उस अनन्त को देखते हैं तो फिर जन्म और मृत्यु का अर्थ क्या रह जाता हैं | यह उसी तरह हैं जब लोग कहते हैं सूर्य का उदय हो रहा हैं और सूर्यास्त हो रहा हैं | जैसे सूर्य का उदय या सूर्यास्त नहीं होता, उसी तरह आपका जन्म या मृत्यु नहीं होती | आप हैं और आप यही रहेंगे, आपको चेतना के उस स्वरुप पर ध्यान देने की आवश्यकता हैं, और वही आध्यात्मिक पथ हैं |

सामान्यता आपने अपने भीतर के गहन मे यह अनुभव किया हैं कि आपको यह अहसास होता रहता हैं कि मुझमे कोई बदलाव नहीं हो रहा हैं, सब कुछ बदल रहा हैं परन्तु मेरी आयु मे बढ़ोतरी नहीं हो रही हैं |मुझे भी नहीं लगता कि मेरी आयु ५० का पड़ाव पार कर चुकी हैं और उसी तरह आप सब को भी यही लगता हैं कि आपकी उम्र मे बढ़ोतरी नहीं हो रही हैं | आप मे कुछ ऐसा हैं जो कहता हैं, “ मुझे मे कोई बदलाव नहीं आया, मेरी उम्र नहीं बढ़ रही हैं” वास्तव मे आपकी कोई आयु ही नहीं हैं फिर भी आप इस प्रकार के उत्सव मनाते हैं |

यदि उत्सव और अधिक सेवा कार्यों को निर्मित करते हैं, तो मैं रोज उत्सव मनाऊंगा !!! साल मे सिर्फ बार ही क्यों?

मेरी खुशी हैं कि सारे विश्व मे हज़ारो से भी अधिक स्वयंसेवी आज किसी न किसी तरह की सेवा कार्यों मे व्यस्त हैं | कितने सारे रक्त दान शिविर और कई अन्य सेवा कार्य हो रहे हैं | जैसे आज मैं यहां पर बोल रहा हूं और इसी समय पर कितने सारे सत्संग आयोजित हो रहे हैं और जैसे इस कार्यक्रम का वेब प्रसारण हो रहा हैं लाखो लोग इस प्रसारण को देख रहे हैं और मैं उन सब को बधाई देता हूं | आज आपने कई सेवा कार्यों को किया | इसे जारी रखे और सेवा कार्यों को करने के लिए कोई न कोई बहाने को खोजे |

जीवन मे परम सुख प्राप्त करने के लिए दो बातें आवश्यक हैं |पहला हैं वैराग्य | उस कभी न बदलने वाले स्वरुप से गाठ बांध लीजिए | सिर्फ इस बात का स्मरण करे कि आपके भीतर बदलाव नहीं आता और आपके भीतर कुछ नहीं बदलता, आप अनन्त है | जब आप उस वैराग्य का सहारा लेते हैं तो जीवन उत्सव बन जाता हैं, और फिर उसी समय आपके द्वारा सेवा कार्य तुरंत अपने आप होने लगते हैं | इसलिए जब आप सेवा कार्य करते हैं तो आपको आदान प्रदान करना चाहिए, आपके पास जो कुछ भी हैं, उसका आपको सबके साथ आदान प्रदान करना चाहिए और जब हम स्वयं के गहन मे जाते हैं तो वैराग्य प्रकट होता हैं | यह दो बातें, वैराग्य और सेवा जीवन को उत्सव बना सकते हैं |इन दो मूल्यों प्राप्त करने के लिए कोई भी अवसर को झपट लीजिए |

कोई भी उत्सव वैराग्य के बिना सतही होता हैं | सतही होने के कारण उसमे कोई गहराई नहीं होती हैं |उसी तरह वैराग्य के बिना की हुई सेवा उत्तम गुणवक्ता की नहीं होती क्योंकि वह आपको थका देती हैं | आपमें और अधिक वैराग्य होना चाहिए और फिर सेवा को करते हुए जीवन उत्सव बन जाता हैं |

मेरा यहां पर होना आपको सिर्फ यह याद दिलाना हैं कि आप अनन्त हैं , आप सब कोई अनन्त हैं और जीवन मे चुनौतियां और समस्या आती जाती हैं, कभी सुखद और कभी अप्रिय | यह सारी घटना होती हैं और उसका समाधान भी आता हैं,परन्तु आप चिंता मत करे, मैं आपके साथ हूं, हम सब साथ मिलकर इस कठिन घडी से निकलकर जीवन को उत्सव बना लेंगे | हमने जीवन को वैसे भी उत्सव बना लिया हैं और और अपने जीवन को आगे भी निरंतर उत्सव बनाएंगे और हमारे आस पास के लाखो करोड़ो लोगों के जीवन को भी उत्सव बना देंगे |

वास्तव मे आपको यह ध्यान रखना चाहिए कि आप इस विश्व के लिए एक उपहार हैं| आप इस गृह के लिए बोझ नहीं परन्तु उपहार हैं और जब आपमें यह आत्म सम्मान जागेगा तो आप अपने आस पास के लोगों के लिए बहुत श्रेष्ठ और उत्तम चीजे कर सकेंगे | जब आप संतुष्ट और सम्पूर्ण होते हैं तो फिर आप यही सोचते हैं कि आप दूसरों के लिए क्या कर सकते हैं और इस बात का एहसास होने के लिए आपको यह महसूस होना चाहिए कि आप इस विश्व के लिए एक उपहार हैं !!!

मैं आपकी तुलना माचिस की तिली का से करना चाहूंगा,ऐसा मान ले कि आप माचिस की तिली हैं | माचिस की तिली का उद्देश्य दिये मे प्रकाश देना होता हैं | माचिस की तिली को जलाते हैं तो वह कई मोमबत्तियों या दियों को जला देती हैं | उसी तरह माचिस के डिब्बे की कई तिली कई जीवन मे प्रकाश ला सकती हैं | आप एक विशाल माचिस के डिब्बे के जैसे हैं | आप यहां पर लोगों के जीवन मे प्रकाश, ज्ञान और खुशियां लाने के लिए हैं|

किसी बात की चिंता न करे, आप की सभी छोटी छोटी जरूरतो और इच्छाओं का ध्यान रखा जायेगा और सब कुछ हो जाएगा | आपको यह सोचना होगा कि आप दुनिया के लिए क्या कर रहे हैं और इसमें कैसे अपना योगदान दे रहे हैं | और कैसे आप विश्व मे आध्यात्म को बढ़ा रहे हैं | यही सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण और आवश्यक हैं |

प्रश्न: गुरूजी आप कहते हैं कि हमारा संबंध पृथ्वी जितना पुराना हैं | क्या हमने आपका जन्मदिन पिछले किसी अन्य जन्म मे भी मनाया हैं ? मुझे तो याद नहीं परन्तु आपको होगा, कृपया कर के बताए |
श्री श्री रवि शंकर:
हां हमने मनाया हैं|अब आप मुझे यह बताए कि जब आप मुझसे पहली बार मिले तो क्या आपको ऐसा लगा कि हम पहली बार मिल रहे हैं? नहीं ना, मुझे भी ऐसा नहीं लगा कि मैं किसी अजनबी से मिल रहा हूं | सभी लोगों से और मैं जिन लोगों से भी मिलता हूं , तो मुझे हर बार लगा कि मैं उन से पहले मिल चूका हूं और मैं उन्हें जानता हूं| अब तक मैं किसी भी एक अजनबी से नहीं मिला |

प्रश्न: गुरूजी मुझे आपके लिए तीव्र तड़प हैं परन्तु यह भाव आता और जाता रहता हैं, और मन दूसरी बातों मे भटक जाता हैं | मैं कैसे आपके लिए इस तीव्र तड़प को बरक़रार रखूं ?
श्री श्री रवि शंकर
: कोई बात नहीं, कुछ मस्ती भी करो | जब आप कहेंगे कि मुझे कोई तड़प नहीं हैं तो वह भी एक तड़प हैं | आप तड़प के लिए तड़प रहे हैं |, यह वैसे ही हैं जैसे जब आप क्रोधित हैं, तो फिर आप इस बात के लिए क्रोधित हो जाते हैं क्योंकि आप क्रोधित हैं | आप तड़प के लिए तड़प रहे हैं, यह समझ ले कि वह भी एक तड़प हैं |

प्रश्न: संकल्प और इच्छा मे क्या अंतर हैं, और यदि इनमे कोई अंतर हैं तो सारी इच्छाओं को संकल्प मे परिवर्तित करनी की क्या तकनीक हैं ?
श्री श्री रवि शंकर:
मैने इसके बारे मे पहले ही व्याख्या की हैं, संकल्प और इच्छाओं को कैसे परिवर्तित करना | यह सब कुछ वैराग्य से सम्बंधित हैं, वैराग्य हर क्षेत्र काम आता हैं |

प्रश्न: आज मैं सोच रहा हूं कि सब कुछ प्रकाश से व्याप्त हैं,और जब मैं अपने आप को देखता हूं तो मुझमे, उसमे और सभी मे आपका ही प्रकाश व्याप्त हैं, वे आप ही हैं जो हर जगह पर मौजूद हैं| मैं जहां पर भी देखता हूं तो वे आप ही हैं जो चमक रहे हैं| आप कहां से आये हैं, और आप कौन हैं, कम से कम आज तो यह बता ही दीजिए ?
श्री श्री रवि शंकर:
यदि आपको यह जानना हैं कि मैं कौन हूं तो आपको मुझ से एक सौदा करना होगा | सौदा यह हैं कि पहले आपको यह जानना होगा कि आप स्वयं कौन हैं | जब आपको यह पता चल जाएगा कि आप कौन हैं, तो आपको यह पता चल जायेगा कि मैं कौन हूं, और मैं सिर्फ इतना ही चाहता हूं कि आप यह जान ले कि आप कौन हैं तो आप यह जान लेंगे कि मैं कौन हूं |

प्रश्न: इस दुनिया मे जहां सब कुछ इतने तेज़ी से बदल रहा हैं, आप तो बिलकुल वैसे ही हैं, बिना किसी परिवर्तन के, इतने सुन्दर और प्रिय | यह सब कैसे हैं गुरूजी?
श्री श्री रवि शंकर
: कुछ प्रश्नों पर आश्चर्य करना चाहिए, इसलिए यह प्रश्न नहीं हैं परन्तु यह वह हैं जिस पर आपको आश्चर्य करना चाहिए | प्रश्न बनाये जाते हैं या तोड़े मरोड़े जाते हैं लेकिन आश्चर्य बिलकुल सीधा होता हैं | इसलिए यह वह हैं जिस पर आपको आश्चर्य करना चाहिए |
आश्रम के लोगों ने प्रतिदिन भगवत गीता के कुछ श्लोकों मंत्रोचारण करना शुरू किया हैं| इसलिए मैं आपसे कहना चाहुंगा कि आप जहां भी हैं, भगवद गीता के कुछ श्लोको का पाठ प्रतिदिन करना शुरू करे | प्रतिदिन ३ से ४ श्लोको का पाठ करे और यदि आपको संस्कृत समझ नहीं आती तो भी कोई बात नहीं,सरल अनुवाद को पढ़ लेना भी पर्याप्त हैं |