दुनिया लोगों की गलतियों से व्याप्त है! गलतियों को माफ़ करे और लोगो से प्रेम करे!!!


२२ जून २०११, बैंगलुरू आश्रम 
प्रश्न: प्रिय गुरुजी, हमने पढ़ा है कि रामकृष्ण परमहंसजी को  विवेकानंदजी के  द्वारा काली माँ के दर्शन का वरदान मिला था। क्या आज भी यह संभव है?
श्री श्री रवि शंकर: रामकृष्णजी ने विवेकानंदजी  को वरदान दिया था। उन्हें बहुत से अनुभव हुए थे। वह केवल  उर्जा ही थी जिसने पूरे वातावरण को बदल दिया। उस आध्यात्मिक उर्जा ने रिश्तों और मन को परिवर्तित कर दिया।

प्रश्न: गुरुजी, एक ही जीवन काल में क्या किसी  व्यक्ति को एक से अधिक बीज मंत्र प्राप्त हो सकता  है?
श्री श्री रवि शंकर: हाँ, इसमें कोई मुश्किल नहीं है।

प्रश्न: जब आप किशोर अवस्था में  थे तब आपका सबसे पहला लक्ष्य क्या था?
श्री श्री रवि शंकर: दिव्यता! वह अभी भी चल रहा है |

प्रश्न: मै अपने जीवन में कोई भी निर्णय लेने में भ्रमित रहता हूँ? मैं क्या करूँ?
श्री श्री रवि शंकर: भ्रम में रहना अच्छा है! आप की  किस्मत अच्छी है कि आप सदैव भ्रम में रहते है । इसका अर्थ है कि आप प्रगति कर रहे है। भ्रम तब होता है जब एक विचारधारा परिवर्तित होती है, और नई विचारधारा अभी बनी नहीं  है। लेकिन  यह एक अस्थायी अवस्था है। जब नई विचारधारा  आती हैं, तब आप  फ़िर से भ्रमित हो जाते है, जब वह विचारधारा कमज़ोर हो जाती  है। फिर भी आप  आगे ही बढ़ रहे है।

प्रश्न: मैं एक अहिंसक जीवन कैसे व्यतीत कर  सकता हूँ, जब मैं ऐसे माहौल में हूँ, जहाँ यदि मैं पिस्तौल नहीं रखूं तो मुझे मार दिया जाएगा? मैं क्या करूँ?
श्री श्री रवि शंकर: हिंसा का अर्थ आत्म रक्षा नहीं है और ना ही अहिंसा का अर्थ है अपने बचाव में कोई कमी। इसमें कोई दो मत नहीं कि आपको  अपने बचाव के लिए तैयार रहना चाहिए परन्तु  अपने मन और दिल में अहिंसा का भाव बनाए रखे । और आप  पायेंगे कि अहिंसा की मौजूदगी में, दृढ़ हिंसा और हिंसक लोगों की हिंसक प्रवित्तियाँ भी शांत हो जाती हैं।
लॉस एंजेलेस और वॉशिंगटन डीसी में मेरे साथ ऐसा हुआ है। दोनों बार एक व्यक्ति मुझ पर आक्रमण करना चाहता था। यीशुमसीह  के नाम पर उसने मुझे श्राप दिया और कहा यह सब पैशाचिक है। उसने कहा योग पैशाचिक है |जैसे ही वह ऊँचा तगड़ा  आदमी मंच पर आया , मैने कहा रुको, और वह झुक कर रोने लगा। हमारे पास तो कोई भी हथियार या अपने बचाव के लिए कुछ भी नहीं था | सब लोग अत्यंत हैरान थे क्योंकि किसी ने भी यह नहीं सोचा था कि सत्संग मे कोई व्यक्ति ऐसे आक्रमण कर सकता है |बाद में उस व्यक्ति ने भी  कोर्स किया।
एक गलत धारणा के  कारण हिंसा हो सकती है। तनाव और एक तरह की पीड़ित होने  की भावना हिंसा का कारण हो सकती है। पर जब हम अहिंसा में यकीन रखते हैं और दिल में उस शक्ति के साथ आगे बढते  हैं तो आप एक बड़ा फ़र्क महसूस करेंगे। ऐसी कई घटनायें हैं।
एक बार दिल्ली में, नोएडा में हज़ारों लोग मेरी कार को आग लगाने आए। मैने सिर्फ़ इतना कहा आपको जो भी करना है, आप कर सकते है, परन्तु मुझे आपसे  बात करने के लिए सिर्फ़ दस मिनट चाहिए, और उन दस मिनटों में उनमें अत्यंत बदलाव आ गया । उन दिनो में, ८० के दशक में वह इलाका इतना प्रगतिशील नहीं था। वह पूरा जंगल था, जिसमें एक गाँव और उग्र लोग रहते थे। हमें अहिंसा में यकीन रखना चाहिए, मैं यह नहीं कहता कि आप  अपनी सुरक्षा  के लिए हथियार न रखे या  स्वयं की रक्षा करना सीखे। जब तक आप  अहिंसा में गहन रूप से  स्थापित नहीं हो जाते तब तक अपने बचाव के लिये हथियार रख सकते है और अपने बचाव का इंतज़ाम कर सकते है। यह ठीक है।
 
प्रश्न: मैने अपनी पिछली नौकरी छोड़ दी है क्योंकि वहाँ बहुत ईर्ष्या और चुगलखोरी होती  थी। इतने नाकारात्मक लोगों के साथ  कैसे काम किया जाए?
श्री श्री रवि शंकर: युक्ति के साथ। नाकारात्मक लोग आपके  बहुत सारे  कौशल को निखार देते  हैं। आपको  उन्हें धन्यवाद देना  चाहिए। वे आपको  सिखाते हैं कि आपको  उनसे कैसा व्यवहार करना चाहिए और हर परिस्थिति का कैसे सामना करते हुए आगे कैसे बढ़ना हैं । वे आपके सभी  बटन दबा देते हैं और आपको  उनसे मुक्त कर देते हैं।

प्रश्न: गुरुजी, बहुत बार मुझे बुरे सपने आते हैं, उनसे कैसे छुटकारा पाया जाए?
श्री श्री रवि शंकर: ध्यान करे ! सोने से पहले भी थोड़ा ध्यान करे और कुछ अच्छे मंत्र उच्चारण को सुनना भी मदद करेगा।

प्रश्न: बहुत समय से मेरा बुरा समय चल रहा है और मुझे लगता है मुझे सब छोड़ देना चाहिए। पिताजी कहते हैं कि हमारे परिवार पर किसी ने काला जादू किया है । क्या ऐसा होता है, और यदि  हाँ तो इससे कैसे बचा जाए?
श्री श्री रवि शंकर: साधना, सेवा और सत्संग को करे  और फिर कोई काला जादू आपको छू भी नहीं सकता। मंत्रोचारण करे और वैदिक मंत्रोचारण, रुद्रम, ॐ नम: शिवाय को सुने , यह सब मदद करेगा।

प्रश्न: जब मैं यू एस  में होता हूँ, तब  मैं भारत आना चाहता हूँ, और जब मैं भारत में होता हूँ तो यू एस  जाना चाहता हूँ। मैं क्या करूँ?
श्री श्री रवि शंकर: जो आप  कर रहे है वही करते रहे। आप इस जगह या उस जगह को याद करते रहे ! परन्तु  अपनी साधना, सेवा और सत्संग को न छोड़े| उसे  हर जगह पर करते रहे |

प्रश्न: गुरुजी, महाभारत में भगवान श्री कृष्ण ने पांडव और कौरवों दोनो की सहायता की । उन्होने कौरवों के पास अपनी पूरी सेना भेजी , फिर पांडवो के लिए एक भी अस्त्र नहीं उठाया। ऐसा क्यों?
श्री श्री रवि शंकर: भगवान श्री कृष्ण के अपने तौर तरीके थे, और वे  सब रहस्यमय है जिसे आप  समझ ही नहीं सकते। बेहतर होगा कि आप उसे  छोड़ दे । जो भी भगवान श्री कृष्ण को समझने की कोशिश करता है, वह सब व्यर्थ है। भिन्न लोग, भिन्न समूह भगवान श्री कृष्ण को अलग अलग रूप में देखते  हैं। इसीलिए उन्हे पूर्ण अवतार कहा जाता  हैं, वे हर तरफ़ से सम्पूर्ण हैं। वे बहुत ही अनूठे है ।

प्रश्न: मुझे यह तो समझ में आ गया कि ध्यान से मनोभाव  में बदलाव  आता है. पर क्या ध्यान से योग्यता  में भी बदलाव आता है?
श्री श्री रवि शंकर: हाँ, बेशक!

प्रश्न: क्या आप हमें भाव समाधि के बारे में कुछ बताएंगे! क्या हम भी इसे  अनुभव कर सकते हैं?
श्री श्री रवि शंकर: हाँ | भाव समाधि में  केवल अपने आप को संगीत और भाव में डूबने दीजिये और समष्टि के साथ जुड़ाव महसूस करते हुये भाव से भर जाये, और अपनी भावना के साथ एक हो जाये । जब मन भीतर से शांत और पूर्ण  होता है, तब आप उस क्षण में नाचना चाहते है । विचार और चिंताएं समाप्त हो  जाती हैं।

प्रश्न: मुझे अपने पालकों  और अपने प्रेम में से किसी एक को क्यों  चुनना पड़ता है ? 
श्री श्री रवि शंकर: मुश्किल सवाल है! अपने मन से पूछिये, "मैं ऐसे किसी का चुनाव  क्यों करूं, जिसे मेरे पालक पसंद नहीं करते या  मेरे पालक  उसे क्यों पसंद नहीं करते हैं जिसका चुनाव मैंने किया है । यह एक तंग रस्सी पर चलने जैसा है ?

प्रश्न: क्या एक भक्त का दिव्यता के लिए प्रेम कम हो सकता है, और यदि  हाँ, तो इसे  बदलने के लिए क्या किया जा सकता है?
श्री श्री रवि शंकर: समय के साथ सब ठीक हो जाएगा।

प्रश्न: भाव, मन, शरीर और क्रोध का क्या महत्व है? 
श्री श्री रवि शंकर: शरीर को स्वस्थ्य  और भाव को शुद्ध रखे! यह ऐसा पूछने के जैसा  है कि मैं अपना कुर्ता और पजामा कहाँ पहनता हूँ ! आप  कुर्ते को  ऊपर और पजामे को  निचे पहनते है! उसका उलटा नहीं। हर किसी  चीज़ का अपना स्थान  है। अहंकार का अपना स्थान  है, भाव का अपना स्थान है, हमारा शरीर स्वस्थ्य और पुष्ट होना  आवश्यक है। आपको  प्रकृति के नियमों का पालन करना चाहिए।

प्रश्न: मुझे कैसे पता चलेगा कि जो मार्ग मैने चुना है वह सही है, जबकि मैं कितने अलग अलग मार्ग चुन सकता हूँ? 
श्री श्री रवि शंकर: जब संदेह उठता है, तो यह जान लिजिये वह  सही ही है। आमतौर पर हम उसी पर संदेह करते हैं जो सही है। जो भी अच्छा है हम उस पर ही संशय करते हैं। अगर कोई पूछता है क्या आप  खुश हो, तो आप  कहते है "हाँ, यकीन के साथ नहीं कह सकता", परन्तु  आप  अपनी उदासी पर पूर्ण विश्वास रखते है । है कि नहीं? इसी तरह अगर कोई कहता है कि वह  आपसे बहुत  प्रेम करता है तो आप संशय करते है, परन्तु आप को  नफ़रत पर कभी संशय नहीं होता।
कई  बार हमारा संशय किसी सकारात्मक चीज़ पर ही होता है। अगर आप  किसी पथ पर है जिसे आप पसंद करते है , फिर संशय उठता ही  है।

प्रश्न: यदि किसी ने धोखा दिया है तो उसे कैसे भूलें? बहुत पहले मुझे एक आदमी ने धोखा दिया था और वह मेरे मन में अभी तक परेशान करता है। योग, प्राणायाम और ध्यान से वह विचार आना बहुत कम हो गया है परन्तु  पहले वह  विचार अक्सर आता था  । इन विचारों को जड़ से खत्म करने के लिए क्या कर सकती हूँ?
श्री श्री रवि शंकर: वह पहले से तो कम है न? पहले से कितना कम हो गया है? अब वह कभी कभी ही  परेशान करता है न? तो क्या हुआ, कोई बात नहीं। जितना आप उसे  रोकने की चेष्टा करेंगे , वह उतना अधिक आएगा। इसे ऐसा मान लीजिए कि यह जीवन का एक अनुभव ही है।

प्रश्न: ऐसा कहते हैं कि अभ्यास से ही कोई पूर्ण होता है। जबकि कोई भी पूर्ण नहीं होता, तो फिर अभ्यास क्यों करें?
श्री श्री रवि शंकर: अभ्यास क्यों करें? वैसे भी सभी अपूर्ण है? आप  भोजन करते है लेकिन फ़िर भी पेट फ़िर खाली हो जाता है। आप  फ़िर से भोजन करते है  और फ़िर पेट  खाली हो जाता है! यदि  ऐसा ही है तो भोजन ही क्यों करें? अगर पेट खाली हो ही जाता है तो खाने की आवश्यकता ही क्या है?

प्रश्न: गुरूजी यदि कोई बहुत बड़ा झूठा है और वह बार बार एक और अवसर  मांगता रहता है तो क्या करें?
श्री श्री रवि शंकर: मुझसे किसी ने प्रश्न किया  कि क्या मैं उससे नाराज़ हूँ, तो मैने कहा नहीं। परन्तु  इसका यह  अर्थ  नहीं कि आप  झूठ पर झूठ बोल सकते है । मुझे पता है कुछ लोग गलत करते हैं और लोगों के विश्वास से छल करते है, फिर कहते हैं मैने अभी गुरुजी से फ़ोन पर बात की, और उन्होने ऐसा कहा। मै क्रोध नहीं करता पर मुझे करुणा आती है क्योंकि वे  अपने ही मन को प्रदूषित कर  रहे हैं। वे  अपने लिए मुश्किल पैदा कर रहे हैं। फिर मैं उन लोगों पर क्रोध करके अपने  मन क्यों खराब करूं | मुझे उन पर  क्रोध नहीं परन्तु दया आती है जो इधर उधर जाकर मुश्किल पैदा कर रहे हैं।

पिताजी ने लिखा था, " दुनिया लोगों की गलतियों से व्याप्त है! गलतियों को माफ़ करे और लोगो से प्रेम करे !!! यह कितना सुंदर लेख  है।

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