प्रेम किसी अधिकार को सुनिश्चित नहीं करता


बैंगलुरू आश्रम, १८ नवम्बर २०११

प्रश्न: प्रिय गुरूजी प्रेम के खातिर क्या हमें सब कुछ त्याग देना चाहिये यहां तक अपनी पहचान और आदर्श इत्यादि |
श्री श्री रविशंकर: इसमें विवेक आवश्यक है |
प्रेम कोई भावनात्मक बात नहीं है |
कई बार लोग सोचते हैं क्योंकि मैं इतना अधिक समर्पित हूँ, मुझे यह विशेषाधिकार मिलना चाहिये, मुझे सबसे आगे बैठने को मिलना चाहिये | मुझे मेरे अनुसार चीज़े करने का विशेषाधिकार मिलना चाहिये | यह अच्छी बात नहीं है |
इस तरह प्रेम किसी अधिकार को सुनिश्चित नहीं करता !!!!
श्री श्री रविशंकर: सभी गुरूओं का सम्मान करे और सिर्फ एक पथ पर चले | क्योंकि आपने उनकी सेवा की हैं, इसलिये उन्होंने आपको यह ज्ञान दिया |

प्रश्न: गुरूजी यदि किसी के साथ कई रूपों में सम्मोहन और छल किया जा रहा हो तो उससे कैसे निकला जाये?
श्री श्री रविशंकर: सम्मोहन का प्रतिकारक ध्यान है | जो लोग ध्यान और प्राणायाम करते हैं, वे आसानी से सम्मोहित नहीं हो सकते | उन्हें  सम्मोहित करना अत्यंत कठिन होता हैं |

प्रश्न: गुरूजी, ॐ नमः शिवाय का अर्थ क्या है ?
श्री श्री रविशंकर: ॐ नमः शिवाय वह है जो पांचों तत्वों में रहता है |

प्रश्न: गुरूजी, कई बार कुछ लोग अंदर से कुछ प्रतीत होते हैं और बाहर से कुछ और प्रतीत होते हैं | सही क्या है, इसे कैसे समझें ?
श्री श्री रविशंकर : एक बात होती है, जिसे अंतर भावना कहते है | यदि कोई कहता है कि आप का स्वागत है परन्तु भीतर से आपको लगता है कि वह सिर्फ कहने के लिये कह रहा है कि आपका स्वागत है लेकिन सच में वह मेरा स्वागत नहीं कर रहा है | यह आपकी अंतर भावना ही है जो दूसरों की अंतर भावना की पहचान करती हैं | इसलिये आप उनके बाहरी रूप से मूर्ख नहीं बन सकते |

प्रश्न: प्रिय गुरूजी, मैंने पहली बार एडवांस कोर्स किया | एडवांस कोर्स के दौरान मैं अपनी तुलना दूसरों के साथ करता था | क्या अपनी तुलना दूसरों के साथ करना आवश्यक है ?
श्री श्री रविशंकर: आपको तुलना करने की आवश्यकता नहीं है |
मैं आपसे एक बात कहना चाहूंगा | आपको गहन अनुभव करने के लिये एडवांस कोर्स को बार बार दोहराना चाहिये | एक बार कोर्स करके यह न सोचे कि सब कुछ हो गया |
जब आप दूसरी बार कोर्स करते है तो आप और अधिक गहनता में जाते है और तीसरी बार आपकी समझ और अधिक बेहतर हो जाती है |

प्रश्न:  गुरूजी, मैं अक्सर अपने पुत्र से क्रोधित हो जाती हूँ और उसकी पिटाई कर देती हूँ | उसे सिर्फ समझाने से बात नहीं बनती | अब मैने यह अनुभव किया है कि वह पिटाई के उपरांत थोडा और चौकन्ना रहता है | क्या यह गलत है?
श्री श्री रविशंकर: आपको अपने बच्चों की बार बार पिटाई नहीं करनी चाहिये | साल में एक बार या कुछ सालों में एक बार यह ठीक है | परन्तु यह नियमित बात नहीं बनना चाहिये, अन्यथा उन्हें इसकी आदत हो जायेगी और और उनका रवैया कठोर बन जायेगा | आप उन्हें डांट सकते है लेकिन बार बार नहीं |

प्रश्न: गुरूजी, लोग कहते है कि महिलाओं के लिये ‘ॐ’का उच्चारण ठीक नहीं होता हैं | क्या यह सही है?
श्री श्री रविशंकर: नहीं ! पुरुष लोग भयभीत हैं कि यदि महिलायें ‘ॐ’ का उच्चारण करेंगी तो अधिक शक्तिशाली बन जायेंगी |
सिर्फ ‘ॐ’के उच्चारण करने का सुझाव नहीं दिया जाता है, आपको ‘ॐ’ के साथ कुछ जैसे ‘ॐ नमः शिवाय’ या ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ का उच्चारण करना चाहिये |
एक संप्रदाय कहता है कि यदि आप सिर्फ ‘ॐ’ का उच्चारण करेंगे तो आप में और अधिक वैराग्य आयेगा | इसलिये यह अच्छा होगा कि आप सहज समाधी मंत्र को ग्रहण करे |

प्रश्न: गुरूजी हमारे क्षेत्र के लोगों में इस ज्ञान को बाँटना एक चुनौती के जैसा है| क्या यह हमारा मन है जो बाधा बन रहा  है या अभी उनको यह ज्ञान मिलने का समय नहीं आया है ? 
श्री श्री रविशंकर: इसे कठिन या चुनौती न समझे | सिर्फ प्रयास करते रहे और फिर वह हो जायेगा |

प्रश्न: प्रकृति हमें सबकुछ दे रही है फिर भी वह इस संसार से इतनी क्रोधित क्यों है | फिर प्राकृतिक आपदा, भूकंप और बाढ़ क्यों? 
श्री श्री रविशंकर: प्राकृतिक आपदा इसलिये घटती है क्योंकि वह भी इसका हिस्सा होता है | फिर आप  प्रकृति का उपयोग अच्छे से नहीं करते है| आप इसके लिये अत्याधिक लालची बन गये हैं |
आप प्रतिदिन पृथ्वी पर बारूद लगाकर विस्फोट करते है | फिर एक दिन पृथ्वी को काँपना ही है, पृथ्वी भी जीवित जीव है |

प्रश्न:गुरूजी क्या यह सही है कि प्रत्येक पीड़ा के पीछे कुछ अच्छा छुपा हुआ होता है | यह कहां तक सही है?
श्री श्री रविशंकर: बैठ कर किसी बात का विश्लेषण न करे | जो भी अतीत में बीत गया वह मृत और जा चुका है, इसलिये भविष्य कि ओर बढ़े | पूरे अतीत को एक स्वप्न के जैसे देखे | अब तक जो कुछ भी हुआ हैं, वह एक सपने के जैसे ही तो हैं | भविष्य की ओर देखे कि अगले ३०-४० वर्षों में आप क्या करना चाहेंगे | उस के लिये पूरी ऊर्जा ओर उत्साह के साथ केंद्रित रहे |

प्रश्न: प्रिय गुरूजी जब भी मैं आपको देखता हूँ, तो मेरे आँसू बहने लगते हैं | ऐसा क्यों होता है?
श्री श्री रविशंकर: यह प्रेम के आँसू हैं | जब आप मुझे देखते है, तो आप प्रेम के कारण रोने लगते है |
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