भुवनेश्वर (उड़ीसा) में श्री श्री रविशंकर के साथ महासत्संग
२२ नवम्बर २०११
और कैसे हो आप लोग? ..
सत्संग का मतलब है दिल से दिल मिल जाना| दिल से बात करना- साथ में थोडा फार्मेलीटी( थोड़ी औपचारिकता) है, यह तो ऊपर ऊपर की है| अपने आप से मुलाकात ही सत्संग है|
इस साल आर्ट ऑफ लिविंग के ३० साल पूरे हो गये| मुझे याद है, ३१ साल पहले, आर्ट ऑफ लिविंग के शुरू होने के लगभग एक-डेढ़ साल पहले मैं यहाँ आया था - भुवनेश्वर में, तब भुवनेश्वर बहुत छोटा शहर था| एक ही सड़क थी| आप बड़े लोग सब जानते हैं, इतने सारे मकान नहीं थे| एक ही सड़क थी पुरी जाने के लिये| यहाँ और पुरी जाने की रोड पर एक मकान में हम एक महीने तक रहे| दिनभर हम मौन में रहते और शाम को दो तीन घंटे लोगों से मिलते थे| पुरी से काफी विद्वान हमारे पास आते थे, बातचीत होती थी| कई लोगों के मन में था कि हम पुरी के शंकराचार्य के पद पर जाएँ| मेरा तो मन बिलकुल नहीं था| उन दिनों में जब हम पुरी के शंकरमठ में गए तब वह बहुत जीर्ण शीर्ण अवस्था में था| आज तो महाराज जी स्वामी निरंजनानंद सरस्वती जी ने बहुत अच्छा संभाल लिया, मगर उन दिनों ३१ साल पहले मठ काफी शिथिल था| लोगों के मन में था कि मैं उसे संभालूं, कई लोगो ने कोशिश भी की, मगर हमारा मन बिलकुल यह नहीं था|
मेरे मन में था कि हम दुनिया में कुछ और करने के लिये आये हैं| कुछ और आने वाला है| तो फिर ३० सालों में आर्ट ऑफ लिविंग दुनिया के १५१ देशों में फ़ैल गया है| आप उत्तरी ध्रुव के आखिरी शहर प्रोम्जे में चले जाइये, उधर भी लोग आपको प्राणायाम सुदर्शन क्रिया करते हुए, ओम नमः शिवाय: गाते हुए मिलेंगे| दक्षिणी ध्रुव के आखिरी शहर फिलारेदिल विसो अर्जेंटीना में भी आपको मिलेंगे| मैं खुद हैरान हो गया, जब हम गए दक्षिणी ध्रुव के आखिरी शहर में| एक हाल में बैठ कर हजारों लोग गा रहे हैं, भजन कर रहें हैं, प्राणायाम - सत्संग कर रहें है| मैंने कहा – ‘वाह! यहाँ तक पहुँच गया’| एक पुरानी कहावत है ‘स्वदेशे पूज्यते राजा, विद्वान सर्वत्र पूज्यते’| एक राजा सिर्फ अपने देश में सम्मान का पात्र होता है मगर विद्वान की क़द्र, उसका सम्मान सब जगह होता है| और विद्वान कौन है? सिर्फ पोथी पढ़ कर कोई विद्वान नहीं बन जाते| विद्वान वही है जिसने विद्या को अपने जीवन में अपनाया|
और इसी उद्देश्य से अपनी यह युनिवर्सिटी की शुरूआत हुई है| इसका उद्देश्य यही है कि सिर्फ पोथी पढ़ा कर कोई विद्वान नहीं बनेगा | हम ऐसे विद्वान बनायेंगे जिनके जीवन में ज्ञान उतरा हो| जिनके जीवन में खुशी है, प्रसन्नता है, सृजनात्मकता है| एक ऐसा व्यक्तित्व हो कि वो जहाँ भी जाये, जीत कर आये| ऐसे व्यक्तित्व का विकास करना ही अपनी युनिवर्सिटी का उद्देश्य है| इसमें पाश्चात्य देशों में जो अति उत्तम चीज है और अपने देश की जो अति उत्तम चीज है इन दोनों को मिलाकर पढाने का, मेरा मन है| माने विज्ञान और ज्ञान – सिर्फ एक से काम नहीं चलेगा| सिर्फ विज्ञान में पाश्चात्य जगत अधूरा रह गया| इतने दुखी है लोग| आप देखो, इतना विज्ञानं होने के बावजूद भी आर्थिक रूप से इतने गिर रहे हैं| इतने कर्ज में पड़ गए है- इतने झगड़े – झंझट| उनकी ३०-४० प्रतिशत जनसँख्या मानसिक रोगों से पीड़ित है| तो हमारे देश में हम उनकी अच्छी चीजें लें| वहां हमारे भारत का ज्ञान नहीं है| हम अपने भारत का ज्ञान वहां दें और वहां का विज्ञान यहाँ लें तब हम पूर्ण व्यक्तित्व बना पाएंगे| इसी उद्देश्य से अपनी इस युनिवर्सिटी में ज्ञान और विज्ञान – दोनों को मजबूत करने का मेरा मन था|
सदियों से अंग, बंग और कलिंग – विद्या के लिये बड़े मशहूर रहे| भारत में विद्याभ्यास के लिये कहाँ जाते थे? अंग, बंग और कलिंग | इस कलिंग में सदियों से विद्या दान होता था पर कुछ समय से यह पिछड़ गया है| अब आगे आने का समय आ गया है, ऐसा मेरा मानना है| तो इस काम में आप सबको जुड़ना पड़ेगा| सब जुड़ेंगे...... ? कितने लोग जुड़ेंगे बताओ.....? सबको इसमें शामिल होना पड़ेगा|
और मेरा मन है कि उड़ीसा में १००% साक्षरता लानी है| साक्षरता १००% हो जानी चाहिये, इसके लिये हम सबको काम करना है| दूसरी बात है गरीबी| इस गरीबी का एक कारण है भ्रष्टाचार और दूसरा कारण है शराब| हमें इन दोनों को मिटाना पड़ेगा| हमें यह प्रतिज्ञा लेनी पड़ेगी कि ना तो हम रिश्वत देंगे ना ही रिश्वत लेंगे| करोगे.......? हाथ उठाओ सब लोग.... न किसीको रिश्वत देंगे और न हम (किसी से) रिश्वत लेंगे, बस... | और दूसरी बात है – शराब नहीं – नशेबाजी नहीं करना| एक साधारण व्यक्ति जितना कमाता है उसका ६०% नशे में, शराब में खर्च करता है| इसलिए इसे रोकना पड़ेगा| कैसे रोकें...? मैं कहूँगा – प्राणायाम करो, ध्यान करो.... सुदर्शन क्रिया करो| देखो कैसे छूट जायेगा, अपने आप| यहाँ पर प्रतिज्ञा करो कि मैं शराब और नशीले पदार्थ कभी नहीं छुऊंगा| यहाँ जितनी महिलाये हैं, उनसे मैं कहूँगा कि रोज वो अपने बच्चों को प्रतिज्ञा दिलाएं कि ‘मैं कभी शराब नहीं छुऊंगा, सिगरेट नहीं पिऊंगा, कभी नशा नहीं करूँगा’| बच्चे ये प्रतिज्ञा करेंगे, सुबह् उठ कर रोज प्रार्थना करेंगे कि ‘हे प्रभु, हे दयानिधि, मुझे सदबुद्धि देना’ – इस एक ही मांग में सब आ जायेगा| मैं आपको एक कहानी सुनाता हूँ| एक सज्जन ने कहा कि मुझे धन चाहिये, दूसरे ने कहा मुझे सुन्दर पत्नी चाहिये, तीसरे ने कहा मुझे पदवी चाहिये और चौथे ने कहा मुझे बच्चा चाहिये| ईश्वर ने कहा- कोई एक मांग पुरी करेंगे तब एक बुद्धिमान व्यक्ति आये, वे गुजरात के थे, हो सकता है उड़ीसा के हो... वो बोले कि भगवान एक वर दो कि मेरी बूढी माँ, मेरे बच्चे को सोने के झूले में झूलते हुए देख पाये| एक बुद्धिमान व्यक्ति वह है जो यह देखता है कि जीवन का सर्वोन्मुख विकास हो| इसके लिये प्रार्थना आवश्यक है| जो माता पिता यहाँ बैठे है, आप अपने बच्चो को प्रार्थना अवश्य कराओ, अपनी भाषा में कराओ| जरूरी नहीं कि प्रार्थना संस्कृत में ही हो| प्रार्थना करो कि “हे ईश्वर हमें सदबुद्धि दो’ बुद्धि ठीक रहेगी तो सब कुछ ठीक होता रहेगा| बुद्धि गड़बड़ है तो सबकुछ होते हुए भी खो देता है आदमी| हैना ..| है कि नहीं....? कितने लोग मानते है...........? अपने बेटे के लिये आपने पैसा बना कर रखा पर उसकी बुद्धि ठीक नहीं हो तो क्या फायदा? अगर बुद्धि ठीक होगी तो वह स्वयं ही बना लेगा, यही विद्वान का लक्षण है|
बुद्धि प्रखर रहे – यही गायत्री मंत्र है| हमारे देश में वेदों की माता कहा गया- वेदमाता गायत्री| गायत्री मंत्र का अर्थ क्या है? ‘हे भगवान मेरी बुद्धि में आकर तुम बोलो, मेरे मन में आकर तुम बोलो, मेरी बुद्धि को प्रखर करो – उसका प्रचोदन करो’| सबसे ऊँचा मंत्र माना जाता है इसको| सबसे प्रमुख मंत्र | कहते है दुनिया में ऐसी प्रार्थना बिरले ही है| यह ऐसी प्रार्थना है कि हे भगवान मेरी बुद्धि को ठीक ठीक रखो| अच्छी प्रार्थना और पढाई से बुद्धि प्रखर होती है| इसीलिए इस युनिवर्सिटी की जरूरत है|
युनिवर्सिटी (शब्द) का नामकरण भारत में ही हुआ – विश्व-विद्यालय| अर्थात पूरे विश्व में जो भी विद्या है उसको हासिल करने की जगह| या- यहाँ पर पढ़ कर, व्यक्ति ऐसा निखर जाए कि सारे विश्व को ज्ञान दे सके, ऐसी संस्था को विश्व विद्यालय कहा गया| बाद में इसका अनुवाद हुआ और इसे युनिवर्सिटी कहा गया| भारत में ऐसे विश्व-विद्यालय नालंदा में, मगध में, तथा तक्षशिला, जो अब पाकिस्तान में है, में रहे| जब हम पाकिस्तान गए थे, तब हम गए थे तक्षशिला में| यह एक ऐसी युनिवर्सिटी थी जहाँ से आयुर्वेद का उदय हुआ| यह सब भारत का ही अंग था| उन दिनों अफगानिस्तान भी भारत में था| एक ज़माने में भारत का ज्ञान दुनिया के कोने कोने में रहा , फिर जैसे भगवान कृष्ण ने गीता में कहा ‘स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप ॥ ’ – काल की गति में वह सब धूमिल होता चला गया, नष्ट हो गया, लुप्त हो गया| अब फिर समय आ गया है इसको उठाने का| इस ज्ञान से सब लोग लाभान्वित हों| हर एक के आंसू मीठे आंसू बन जाये, प्रेम के आंसू बन जाये, इस संकल्प के साथ सब को सेवा करनी है| हमने यहाँ सेवा की किताब को रिलीज किया है, यहाँ काफी अच्छी सेवा हो रही है, मगर अगली बार जब मैं यहाँ आऊँ, तब यह किताब दुगुनी, तिगुनी मोटी होनी चाहिये, उतनी अधिक सेवा होनी चाहिये|
फिर पर्यावरण के लिये हमें काम करना है| आज दुनिया में सबसे अधिक साग सब्जी उगने वाला देश कौनसा है? पता है....? भारत....| सबसे अधिक गेहूं चावल कहा उगता है...? भारत में...| सबसे अधिक दूध कहाँ होता है...? भारत में| फिर भी सब कितना महंगा हो गया – साग सब्जी नहीं मिलती| महंगाई इतनी अधिक हो गयी, कहीं तो कुछ गड़बड़ हो गयी है| हम सबको इसमें रूचि लेनी पड़ेगी| हर एक घर में थोड़ा थोड़ा करके कुछ तो आप उगाना शुरू करो| भारत के जितने धार्मिक ग्रंथ है, सब में यह उल्लेख है कि बीज वापन के बिना कोई पूजा-पाठ हो ही नहीं सकता| आपने देखा है ना.. जब नवरात्रों में पूजा करते है, सबसे पहले क्या करते हैं? दुर्गा माता की स्थापना करते हो तो सबसे पहले क्या करते हो? बीज बोते हो| बीज बोकर कर पेड़ उगाते हैं| इसलिए यह एक पवित्र रिवाज़ है - बीज वापन| मंत्रो के साथ बीज बोना चाहिये| अच्छे विचारों के साथ बीज बोना चाहिये| अच्छे भाव के साथ बीज बोओ, उससे जो फल निकलते है उससे हमारी बुद्धि शुद्ध होती है| खेतों में भी ऐसा होना चाहिये, टेप रिकॉर्डर लेकर खेतों में भजन संगीत चलाना चाहिये| संगीत से पेड़ ज्यादा फल देतें हैं, यह सिद्ध हुआ है| वैज्ञानिक तरीके से लोगों ने इसे सिद्ध किया है कि पेड़ भी संगीत पसंद करतें हैं| इसलिए इतनी सारी चिड़ियाँ आकर बैठती हैं पेड़ उत्साहित होते हैं| उन पर और ज्यादा फल-फूल खिलने लगते हैं| हमारे देश में जब गेहूं बोते है, धान लगाते हैं और फसल काटते हैं तो सब गाते-गाते करते हैं कि नहीं? गावों में सब गाते-गाते करते थे कि नहीं? आज कल सब भूल गए हैं| अब तो सब रोते-रोते बोते हैं – रोते-रोते काटते हैं और रोते-रोते काटा हुआ फसल खा-खा कर लोग रोते रहते हैं – दिनभर | विद्वान का लक्षण यह है ‘ काव्य शास्त्र विनोदेन कालो गच्छति देवता’| काव्य हो, शास्त्र हो, संगीत हो, मजाक हो, विनोद में जिसका समय बीतता है उन्ही को विद्वान कहते है| तो हमारे देश में ऐसे विद्वान पैदा हों जो जहाँ भी जाएँ – मस्त रहें, और मस्ती फैलाएं चारो ओर... क्या...? ये कल्पना अच्छी लग रही है? सबको ... कितने लोग ऐसा संकल्प लेना चाहते हैं, हाथ उठाओ...? हमारे स्कूल कालेजों में ऐसे प्रखर व्यक्तित्व निखरने चाहिये| हर व्यक्तित्व को हमें निखारना चाहिये|
अब रही बात यह कि लोग कहते है –‘गुरूजी, हम तो जीवन से थक गए| करते करते थक गए हम और सत्संग में आतें हैं तो यहाँ पर भी आप कहते हैं, ये करो वो करो| कुछ लोगों के मन में तो यह बात आ रही है कि हम तो जीवन की थकान के मारे यहाँ आकर बैठे हैं, अब गुरूजी भी बोलते हैं – यह करो वह करो| मैं कहता हूँ – नहीं विश्राम करो| श्रम में परमात्मा नहीं मिलता – विश्राम में मिलता है| कितने लोगो को खुशी मिल रही है यहाँ ..? तो विश्राम करो – कुछ करना नहीं है| कुछ लोग जीवन में सिर्फ करने में ही लग गये, दिन-रात समाज सेवा में लग कर फिर इतना थक जाते हैं कि ना वो समाज सेवा होती है, ना कुछ और होता है| ना तृप्ति मिलती है- लोग दुखी होते रहते हैं| यह किसी काम की नहीं| ऐसे दुखी मन से की गयी सेवा में कोई दम नहीं – कोई बल नहीं| कुछ लोग कुछ भी नहीं करते हुए आलसीपन में सारा दिन बिताते है| खाते पीते सोते टीवी देखते रहते हैं दिन भर | आज कल तो इतने हजारों चैनल हैं घुमाते रहो, बदलते रहो चैनल , बस दिन पूरा हो गया| नहीं भई नहीं! प्रवृति और निवृति दोनों साथ साथ चलनी चाहिये| प्रवृति माने- काम करो और निवृति माने- विश्राम करो| विश्राम में परमात्मा मिलता है,और परमात्मा रहने जो शक्ति मिलती है उसे समाज सेवा में लगाओ| यह प्रवृति है| काम करो और विश्राम करो – विश्राम करो और फिर काम करो इसीलिए ईश्वर ने दिन और रात दोनों बनाये| रात विश्राम के लिये और दिन काम के लिये| यह दोनों साथ साथ करना पड़ेगा| ठीक है ना....| जो इस तरह से थक गये हैं, उनके लिये मैं कहूँगा कि आप ध्यान करो| तुम आ जाओ ३-४ दिन के लिये, एडवांस्ड कोर्स में बैठो, मौन में चले जाओ| थके मारे तुम कुछ भी नहीं कर पाओगे| इसलिए जब थक जाते हो, अन्दर जाओ| अंतर्मुखी – सदा सुखी| जो अन्दर झांकता है, थोड़ी देर विश्राम करता है, वह हमेशा सुखी रहता है| इतनी एनर्जी मिलती है, इतनी शक्ति प्राप्त होती है, बल प्राप्त होता है, योग्यता प्राप्त होती है| अयोग्य व्यक्ति को ध्यान करना बहुत आवश्यक है ताकि वह योग्य बन जाये और योग्य व्यक्ति को भी ध्यान करना जरूरी है ताकि योग्यता बनी रहे, जो हमारे में क्षमता है वह छूट ना जाये| इसलिए योग्य व्यक्ति को भी रोज ध्यान करना चाहिये| थोड़ी थोड़ी देर बैठ कर ध्यान करो, मौन हो जाओ तब अंदरूनी शक्ति बढती है| तबियत ठीक रहती है, स्वास्थ्य ठीक रहता है, मन प्रसन्न होगा, बुद्धि तीक्ष्ण रहेगी| जीवन में खुशी पैदा होगी| और जो हम इच्छा करते हैं वो काम सहजता से पूरा होने लगता है| इसलिए हर एक को थोड़ी थोड़ी देर बैठकर योग और ध्यान का अभ्यास करना जरूरी है| ठीक है ना....|
आपको कुछ कहना है?.. किसी को कुछ पूछना है?.. थोड़ी देर हम ध्यान करते है... आप सब लोग ध्यान करोगे.....? हाँ...| अच्छा मै एक बात और कहना चाहता हूँ| आपकी कोई भी समस्या है- वह मुझे दे देना| आप बोलो – गुरूजी यह आप ले लो| अपनी समस्या मुझे दे दो और आप देश की चिंता करो| कितने इंजीनियर्स हैं यहाँ पर? हाथ उठाओ.., मुझे आप सब की जरूरत है| आप सब हमसे मिलिए, हमारे केंद्र से संपर्क करिये, ठीक है! हम ऐसे प्रोजेक्ट बना रहे है- आदर्श गांव के| कितने डाक्टर्स हैं? हाथ उठाइये... आपकी भी जरूरत है| कितने लॉयर्स हैं? आपकी भी जरूरत है| मैं चाहूँगा आप लोग २-३ केस, फ्री में करो ताकि जेलों में जो निरपराधी पड़े हैं, उनके पास वकील करने के लिये पैसे नहीं है, आप उन निर्दोष लोगो को उनके घर पहुंचाओ| आप लॉयर्स लोग यह कर सकते हैं, बाकी तो नहीं कर सकते, इससे बढ़िया सेवा और कुछ नहीं होगी| दोषी को नहीं छुड़ाना, जो निर्दोष हैं, ऐसे लोगो की मदद करो| डाक्टर लोगों से मैं कहूँगा कि आप के लिये मेडिकल कैंप हमारे व्यक्ति विकास केंद्र द्वारा आयोजित हो जायेगा| आप साल में तीन कैम्प करो, बहुत उपकार होएगा| हजारों लोग जो मेडिकल चेक-अप का खर्च वहन नहीं कर पाते, उनकी बहुत बड़ी सेवा हो जायेगी| करोगे......? हाथ उठाकर बताइये, डाक्टर लोग... कितने लोग करोगे...? हमारे सत्संग में बोलने के बाद करना ही पड़ेगा| ठीक है|
अच्छा, एक और नया विचार यह आया कि अपनी यूनिवर्सिटी में सरपंचों के लिये एक कोर्स करायेंगे| हर एक गांव में अच्छे सरपंच के लिये| उनको सर्टीफिकेट भी मिलेंगे| सभी गावों में जो युवा लड़के लड़कियां है वो एनरोल करे और एक दो साल के लिये आ जाये तो डाक्टर मिश्रा उनको ट्रेंन करेंगे| इनको ट्रेनिंग चाहिये| कई बार ऐसे लोग सरपंच बन कर आ जाते हैं, जिनको कोई ट्रेनिंग नहीं होती, कोई विजन नहीं होता, इनको पता ही नहीं होता कि कैसे चलाना है| इसी तरह जिला स्तर पर फिर आगे जाकर विधायक तक, ईमानदार और अच्छे प्रशासन (ओनेस्ट एंड गुड गवर्नेंस) के लिये, अपना एक सर्टीफिकेट कोर्स बना दें| क्या विचार है...? कितने लोगो को यह आईडिया बहुत अच्छा लगा..? हाथ उठाओ...| देखो, सबको अच्छा लगा, बहुत ही अच्छा आईडिया है| आज सुबह ही एक सज्जन बता रहे थे कि गुरूजी, यह सब बहुत अच्छा होएगा| जिले के लिये, फिर विधायक के लिये, जिला परिषद के जो सदस्य बनेंगे, बनने से पहले वो यह कोर्स कर लेंगे तो वे लोग जान लेंगे, पढ़ लेंगे कि जिले को कैसे मजबूत करना है| एक आईडिया हो, विजन हो तो प्रोग्रेस बहुत जल्दी हो जायेगी| बहुत अच्छा | तो मैं यही कह रहा हूँ कि अपनी सारी तकलीफ , समस्याएं यहाँ छोड़ो और मन में इस विश्वास के साथ जाओ कि जो अति उत्तम है वही आपके साथ होगा|
तो अभी हम लोग थोड़ी देर ध्यान करते हैं फिर और बाते करेंगे.
© The Art of Living Foundation
२२ नवम्बर २०११
और कैसे हो आप लोग? ..
सत्संग का मतलब है दिल से दिल मिल जाना| दिल से बात करना- साथ में थोडा फार्मेलीटी( थोड़ी औपचारिकता) है, यह तो ऊपर ऊपर की है| अपने आप से मुलाकात ही सत्संग है|
इस साल आर्ट ऑफ लिविंग के ३० साल पूरे हो गये| मुझे याद है, ३१ साल पहले, आर्ट ऑफ लिविंग के शुरू होने के लगभग एक-डेढ़ साल पहले मैं यहाँ आया था - भुवनेश्वर में, तब भुवनेश्वर बहुत छोटा शहर था| एक ही सड़क थी| आप बड़े लोग सब जानते हैं, इतने सारे मकान नहीं थे| एक ही सड़क थी पुरी जाने के लिये| यहाँ और पुरी जाने की रोड पर एक मकान में हम एक महीने तक रहे| दिनभर हम मौन में रहते और शाम को दो तीन घंटे लोगों से मिलते थे| पुरी से काफी विद्वान हमारे पास आते थे, बातचीत होती थी| कई लोगों के मन में था कि हम पुरी के शंकराचार्य के पद पर जाएँ| मेरा तो मन बिलकुल नहीं था| उन दिनों में जब हम पुरी के शंकरमठ में गए तब वह बहुत जीर्ण शीर्ण अवस्था में था| आज तो महाराज जी स्वामी निरंजनानंद सरस्वती जी ने बहुत अच्छा संभाल लिया, मगर उन दिनों ३१ साल पहले मठ काफी शिथिल था| लोगों के मन में था कि मैं उसे संभालूं, कई लोगो ने कोशिश भी की, मगर हमारा मन बिलकुल यह नहीं था|
मेरे मन में था कि हम दुनिया में कुछ और करने के लिये आये हैं| कुछ और आने वाला है| तो फिर ३० सालों में आर्ट ऑफ लिविंग दुनिया के १५१ देशों में फ़ैल गया है| आप उत्तरी ध्रुव के आखिरी शहर प्रोम्जे में चले जाइये, उधर भी लोग आपको प्राणायाम सुदर्शन क्रिया करते हुए, ओम नमः शिवाय: गाते हुए मिलेंगे| दक्षिणी ध्रुव के आखिरी शहर फिलारेदिल विसो अर्जेंटीना में भी आपको मिलेंगे| मैं खुद हैरान हो गया, जब हम गए दक्षिणी ध्रुव के आखिरी शहर में| एक हाल में बैठ कर हजारों लोग गा रहे हैं, भजन कर रहें हैं, प्राणायाम - सत्संग कर रहें है| मैंने कहा – ‘वाह! यहाँ तक पहुँच गया’| एक पुरानी कहावत है ‘स्वदेशे पूज्यते राजा, विद्वान सर्वत्र पूज्यते’| एक राजा सिर्फ अपने देश में सम्मान का पात्र होता है मगर विद्वान की क़द्र, उसका सम्मान सब जगह होता है| और विद्वान कौन है? सिर्फ पोथी पढ़ कर कोई विद्वान नहीं बन जाते| विद्वान वही है जिसने विद्या को अपने जीवन में अपनाया|
और इसी उद्देश्य से अपनी यह युनिवर्सिटी की शुरूआत हुई है| इसका उद्देश्य यही है कि सिर्फ पोथी पढ़ा कर कोई विद्वान नहीं बनेगा | हम ऐसे विद्वान बनायेंगे जिनके जीवन में ज्ञान उतरा हो| जिनके जीवन में खुशी है, प्रसन्नता है, सृजनात्मकता है| एक ऐसा व्यक्तित्व हो कि वो जहाँ भी जाये, जीत कर आये| ऐसे व्यक्तित्व का विकास करना ही अपनी युनिवर्सिटी का उद्देश्य है| इसमें पाश्चात्य देशों में जो अति उत्तम चीज है और अपने देश की जो अति उत्तम चीज है इन दोनों को मिलाकर पढाने का, मेरा मन है| माने विज्ञान और ज्ञान – सिर्फ एक से काम नहीं चलेगा| सिर्फ विज्ञान में पाश्चात्य जगत अधूरा रह गया| इतने दुखी है लोग| आप देखो, इतना विज्ञानं होने के बावजूद भी आर्थिक रूप से इतने गिर रहे हैं| इतने कर्ज में पड़ गए है- इतने झगड़े – झंझट| उनकी ३०-४० प्रतिशत जनसँख्या मानसिक रोगों से पीड़ित है| तो हमारे देश में हम उनकी अच्छी चीजें लें| वहां हमारे भारत का ज्ञान नहीं है| हम अपने भारत का ज्ञान वहां दें और वहां का विज्ञान यहाँ लें तब हम पूर्ण व्यक्तित्व बना पाएंगे| इसी उद्देश्य से अपनी इस युनिवर्सिटी में ज्ञान और विज्ञान – दोनों को मजबूत करने का मेरा मन था|
सदियों से अंग, बंग और कलिंग – विद्या के लिये बड़े मशहूर रहे| भारत में विद्याभ्यास के लिये कहाँ जाते थे? अंग, बंग और कलिंग | इस कलिंग में सदियों से विद्या दान होता था पर कुछ समय से यह पिछड़ गया है| अब आगे आने का समय आ गया है, ऐसा मेरा मानना है| तो इस काम में आप सबको जुड़ना पड़ेगा| सब जुड़ेंगे...... ? कितने लोग जुड़ेंगे बताओ.....? सबको इसमें शामिल होना पड़ेगा|
और मेरा मन है कि उड़ीसा में १००% साक्षरता लानी है| साक्षरता १००% हो जानी चाहिये, इसके लिये हम सबको काम करना है| दूसरी बात है गरीबी| इस गरीबी का एक कारण है भ्रष्टाचार और दूसरा कारण है शराब| हमें इन दोनों को मिटाना पड़ेगा| हमें यह प्रतिज्ञा लेनी पड़ेगी कि ना तो हम रिश्वत देंगे ना ही रिश्वत लेंगे| करोगे.......? हाथ उठाओ सब लोग.... न किसीको रिश्वत देंगे और न हम (किसी से) रिश्वत लेंगे, बस... | और दूसरी बात है – शराब नहीं – नशेबाजी नहीं करना| एक साधारण व्यक्ति जितना कमाता है उसका ६०% नशे में, शराब में खर्च करता है| इसलिए इसे रोकना पड़ेगा| कैसे रोकें...? मैं कहूँगा – प्राणायाम करो, ध्यान करो.... सुदर्शन क्रिया करो| देखो कैसे छूट जायेगा, अपने आप| यहाँ पर प्रतिज्ञा करो कि मैं शराब और नशीले पदार्थ कभी नहीं छुऊंगा| यहाँ जितनी महिलाये हैं, उनसे मैं कहूँगा कि रोज वो अपने बच्चों को प्रतिज्ञा दिलाएं कि ‘मैं कभी शराब नहीं छुऊंगा, सिगरेट नहीं पिऊंगा, कभी नशा नहीं करूँगा’| बच्चे ये प्रतिज्ञा करेंगे, सुबह् उठ कर रोज प्रार्थना करेंगे कि ‘हे प्रभु, हे दयानिधि, मुझे सदबुद्धि देना’ – इस एक ही मांग में सब आ जायेगा| मैं आपको एक कहानी सुनाता हूँ| एक सज्जन ने कहा कि मुझे धन चाहिये, दूसरे ने कहा मुझे सुन्दर पत्नी चाहिये, तीसरे ने कहा मुझे पदवी चाहिये और चौथे ने कहा मुझे बच्चा चाहिये| ईश्वर ने कहा- कोई एक मांग पुरी करेंगे तब एक बुद्धिमान व्यक्ति आये, वे गुजरात के थे, हो सकता है उड़ीसा के हो... वो बोले कि भगवान एक वर दो कि मेरी बूढी माँ, मेरे बच्चे को सोने के झूले में झूलते हुए देख पाये| एक बुद्धिमान व्यक्ति वह है जो यह देखता है कि जीवन का सर्वोन्मुख विकास हो| इसके लिये प्रार्थना आवश्यक है| जो माता पिता यहाँ बैठे है, आप अपने बच्चो को प्रार्थना अवश्य कराओ, अपनी भाषा में कराओ| जरूरी नहीं कि प्रार्थना संस्कृत में ही हो| प्रार्थना करो कि “हे ईश्वर हमें सदबुद्धि दो’ बुद्धि ठीक रहेगी तो सब कुछ ठीक होता रहेगा| बुद्धि गड़बड़ है तो सबकुछ होते हुए भी खो देता है आदमी| हैना ..| है कि नहीं....? कितने लोग मानते है...........? अपने बेटे के लिये आपने पैसा बना कर रखा पर उसकी बुद्धि ठीक नहीं हो तो क्या फायदा? अगर बुद्धि ठीक होगी तो वह स्वयं ही बना लेगा, यही विद्वान का लक्षण है|
बुद्धि प्रखर रहे – यही गायत्री मंत्र है| हमारे देश में वेदों की माता कहा गया- वेदमाता गायत्री| गायत्री मंत्र का अर्थ क्या है? ‘हे भगवान मेरी बुद्धि में आकर तुम बोलो, मेरे मन में आकर तुम बोलो, मेरी बुद्धि को प्रखर करो – उसका प्रचोदन करो’| सबसे ऊँचा मंत्र माना जाता है इसको| सबसे प्रमुख मंत्र | कहते है दुनिया में ऐसी प्रार्थना बिरले ही है| यह ऐसी प्रार्थना है कि हे भगवान मेरी बुद्धि को ठीक ठीक रखो| अच्छी प्रार्थना और पढाई से बुद्धि प्रखर होती है| इसीलिए इस युनिवर्सिटी की जरूरत है|
युनिवर्सिटी (शब्द) का नामकरण भारत में ही हुआ – विश्व-विद्यालय| अर्थात पूरे विश्व में जो भी विद्या है उसको हासिल करने की जगह| या- यहाँ पर पढ़ कर, व्यक्ति ऐसा निखर जाए कि सारे विश्व को ज्ञान दे सके, ऐसी संस्था को विश्व विद्यालय कहा गया| बाद में इसका अनुवाद हुआ और इसे युनिवर्सिटी कहा गया| भारत में ऐसे विश्व-विद्यालय नालंदा में, मगध में, तथा तक्षशिला, जो अब पाकिस्तान में है, में रहे| जब हम पाकिस्तान गए थे, तब हम गए थे तक्षशिला में| यह एक ऐसी युनिवर्सिटी थी जहाँ से आयुर्वेद का उदय हुआ| यह सब भारत का ही अंग था| उन दिनों अफगानिस्तान भी भारत में था| एक ज़माने में भारत का ज्ञान दुनिया के कोने कोने में रहा , फिर जैसे भगवान कृष्ण ने गीता में कहा ‘स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप ॥ ’ – काल की गति में वह सब धूमिल होता चला गया, नष्ट हो गया, लुप्त हो गया| अब फिर समय आ गया है इसको उठाने का| इस ज्ञान से सब लोग लाभान्वित हों| हर एक के आंसू मीठे आंसू बन जाये, प्रेम के आंसू बन जाये, इस संकल्प के साथ सब को सेवा करनी है| हमने यहाँ सेवा की किताब को रिलीज किया है, यहाँ काफी अच्छी सेवा हो रही है, मगर अगली बार जब मैं यहाँ आऊँ, तब यह किताब दुगुनी, तिगुनी मोटी होनी चाहिये, उतनी अधिक सेवा होनी चाहिये|
फिर पर्यावरण के लिये हमें काम करना है| आज दुनिया में सबसे अधिक साग सब्जी उगने वाला देश कौनसा है? पता है....? भारत....| सबसे अधिक गेहूं चावल कहा उगता है...? भारत में...| सबसे अधिक दूध कहाँ होता है...? भारत में| फिर भी सब कितना महंगा हो गया – साग सब्जी नहीं मिलती| महंगाई इतनी अधिक हो गयी, कहीं तो कुछ गड़बड़ हो गयी है| हम सबको इसमें रूचि लेनी पड़ेगी| हर एक घर में थोड़ा थोड़ा करके कुछ तो आप उगाना शुरू करो| भारत के जितने धार्मिक ग्रंथ है, सब में यह उल्लेख है कि बीज वापन के बिना कोई पूजा-पाठ हो ही नहीं सकता| आपने देखा है ना.. जब नवरात्रों में पूजा करते है, सबसे पहले क्या करते हैं? दुर्गा माता की स्थापना करते हो तो सबसे पहले क्या करते हो? बीज बोते हो| बीज बोकर कर पेड़ उगाते हैं| इसलिए यह एक पवित्र रिवाज़ है - बीज वापन| मंत्रो के साथ बीज बोना चाहिये| अच्छे विचारों के साथ बीज बोना चाहिये| अच्छे भाव के साथ बीज बोओ, उससे जो फल निकलते है उससे हमारी बुद्धि शुद्ध होती है| खेतों में भी ऐसा होना चाहिये, टेप रिकॉर्डर लेकर खेतों में भजन संगीत चलाना चाहिये| संगीत से पेड़ ज्यादा फल देतें हैं, यह सिद्ध हुआ है| वैज्ञानिक तरीके से लोगों ने इसे सिद्ध किया है कि पेड़ भी संगीत पसंद करतें हैं| इसलिए इतनी सारी चिड़ियाँ आकर बैठती हैं पेड़ उत्साहित होते हैं| उन पर और ज्यादा फल-फूल खिलने लगते हैं| हमारे देश में जब गेहूं बोते है, धान लगाते हैं और फसल काटते हैं तो सब गाते-गाते करते हैं कि नहीं? गावों में सब गाते-गाते करते थे कि नहीं? आज कल सब भूल गए हैं| अब तो सब रोते-रोते बोते हैं – रोते-रोते काटते हैं और रोते-रोते काटा हुआ फसल खा-खा कर लोग रोते रहते हैं – दिनभर | विद्वान का लक्षण यह है ‘ काव्य शास्त्र विनोदेन कालो गच्छति देवता’| काव्य हो, शास्त्र हो, संगीत हो, मजाक हो, विनोद में जिसका समय बीतता है उन्ही को विद्वान कहते है| तो हमारे देश में ऐसे विद्वान पैदा हों जो जहाँ भी जाएँ – मस्त रहें, और मस्ती फैलाएं चारो ओर... क्या...? ये कल्पना अच्छी लग रही है? सबको ... कितने लोग ऐसा संकल्प लेना चाहते हैं, हाथ उठाओ...? हमारे स्कूल कालेजों में ऐसे प्रखर व्यक्तित्व निखरने चाहिये| हर व्यक्तित्व को हमें निखारना चाहिये|
अब रही बात यह कि लोग कहते है –‘गुरूजी, हम तो जीवन से थक गए| करते करते थक गए हम और सत्संग में आतें हैं तो यहाँ पर भी आप कहते हैं, ये करो वो करो| कुछ लोगों के मन में तो यह बात आ रही है कि हम तो जीवन की थकान के मारे यहाँ आकर बैठे हैं, अब गुरूजी भी बोलते हैं – यह करो वह करो| मैं कहता हूँ – नहीं विश्राम करो| श्रम में परमात्मा नहीं मिलता – विश्राम में मिलता है| कितने लोगो को खुशी मिल रही है यहाँ ..? तो विश्राम करो – कुछ करना नहीं है| कुछ लोग जीवन में सिर्फ करने में ही लग गये, दिन-रात समाज सेवा में लग कर फिर इतना थक जाते हैं कि ना वो समाज सेवा होती है, ना कुछ और होता है| ना तृप्ति मिलती है- लोग दुखी होते रहते हैं| यह किसी काम की नहीं| ऐसे दुखी मन से की गयी सेवा में कोई दम नहीं – कोई बल नहीं| कुछ लोग कुछ भी नहीं करते हुए आलसीपन में सारा दिन बिताते है| खाते पीते सोते टीवी देखते रहते हैं दिन भर | आज कल तो इतने हजारों चैनल हैं घुमाते रहो, बदलते रहो चैनल , बस दिन पूरा हो गया| नहीं भई नहीं! प्रवृति और निवृति दोनों साथ साथ चलनी चाहिये| प्रवृति माने- काम करो और निवृति माने- विश्राम करो| विश्राम में परमात्मा मिलता है,और परमात्मा रहने जो शक्ति मिलती है उसे समाज सेवा में लगाओ| यह प्रवृति है| काम करो और विश्राम करो – विश्राम करो और फिर काम करो इसीलिए ईश्वर ने दिन और रात दोनों बनाये| रात विश्राम के लिये और दिन काम के लिये| यह दोनों साथ साथ करना पड़ेगा| ठीक है ना....| जो इस तरह से थक गये हैं, उनके लिये मैं कहूँगा कि आप ध्यान करो| तुम आ जाओ ३-४ दिन के लिये, एडवांस्ड कोर्स में बैठो, मौन में चले जाओ| थके मारे तुम कुछ भी नहीं कर पाओगे| इसलिए जब थक जाते हो, अन्दर जाओ| अंतर्मुखी – सदा सुखी| जो अन्दर झांकता है, थोड़ी देर विश्राम करता है, वह हमेशा सुखी रहता है| इतनी एनर्जी मिलती है, इतनी शक्ति प्राप्त होती है, बल प्राप्त होता है, योग्यता प्राप्त होती है| अयोग्य व्यक्ति को ध्यान करना बहुत आवश्यक है ताकि वह योग्य बन जाये और योग्य व्यक्ति को भी ध्यान करना जरूरी है ताकि योग्यता बनी रहे, जो हमारे में क्षमता है वह छूट ना जाये| इसलिए योग्य व्यक्ति को भी रोज ध्यान करना चाहिये| थोड़ी थोड़ी देर बैठ कर ध्यान करो, मौन हो जाओ तब अंदरूनी शक्ति बढती है| तबियत ठीक रहती है, स्वास्थ्य ठीक रहता है, मन प्रसन्न होगा, बुद्धि तीक्ष्ण रहेगी| जीवन में खुशी पैदा होगी| और जो हम इच्छा करते हैं वो काम सहजता से पूरा होने लगता है| इसलिए हर एक को थोड़ी थोड़ी देर बैठकर योग और ध्यान का अभ्यास करना जरूरी है| ठीक है ना....|
आपको कुछ कहना है?.. किसी को कुछ पूछना है?.. थोड़ी देर हम ध्यान करते है... आप सब लोग ध्यान करोगे.....? हाँ...| अच्छा मै एक बात और कहना चाहता हूँ| आपकी कोई भी समस्या है- वह मुझे दे देना| आप बोलो – गुरूजी यह आप ले लो| अपनी समस्या मुझे दे दो और आप देश की चिंता करो| कितने इंजीनियर्स हैं यहाँ पर? हाथ उठाओ.., मुझे आप सब की जरूरत है| आप सब हमसे मिलिए, हमारे केंद्र से संपर्क करिये, ठीक है! हम ऐसे प्रोजेक्ट बना रहे है- आदर्श गांव के| कितने डाक्टर्स हैं? हाथ उठाइये... आपकी भी जरूरत है| कितने लॉयर्स हैं? आपकी भी जरूरत है| मैं चाहूँगा आप लोग २-३ केस, फ्री में करो ताकि जेलों में जो निरपराधी पड़े हैं, उनके पास वकील करने के लिये पैसे नहीं है, आप उन निर्दोष लोगो को उनके घर पहुंचाओ| आप लॉयर्स लोग यह कर सकते हैं, बाकी तो नहीं कर सकते, इससे बढ़िया सेवा और कुछ नहीं होगी| दोषी को नहीं छुड़ाना, जो निर्दोष हैं, ऐसे लोगो की मदद करो| डाक्टर लोगों से मैं कहूँगा कि आप के लिये मेडिकल कैंप हमारे व्यक्ति विकास केंद्र द्वारा आयोजित हो जायेगा| आप साल में तीन कैम्प करो, बहुत उपकार होएगा| हजारों लोग जो मेडिकल चेक-अप का खर्च वहन नहीं कर पाते, उनकी बहुत बड़ी सेवा हो जायेगी| करोगे......? हाथ उठाकर बताइये, डाक्टर लोग... कितने लोग करोगे...? हमारे सत्संग में बोलने के बाद करना ही पड़ेगा| ठीक है|
अच्छा, एक और नया विचार यह आया कि अपनी यूनिवर्सिटी में सरपंचों के लिये एक कोर्स करायेंगे| हर एक गांव में अच्छे सरपंच के लिये| उनको सर्टीफिकेट भी मिलेंगे| सभी गावों में जो युवा लड़के लड़कियां है वो एनरोल करे और एक दो साल के लिये आ जाये तो डाक्टर मिश्रा उनको ट्रेंन करेंगे| इनको ट्रेनिंग चाहिये| कई बार ऐसे लोग सरपंच बन कर आ जाते हैं, जिनको कोई ट्रेनिंग नहीं होती, कोई विजन नहीं होता, इनको पता ही नहीं होता कि कैसे चलाना है| इसी तरह जिला स्तर पर फिर आगे जाकर विधायक तक, ईमानदार और अच्छे प्रशासन (ओनेस्ट एंड गुड गवर्नेंस) के लिये, अपना एक सर्टीफिकेट कोर्स बना दें| क्या विचार है...? कितने लोगो को यह आईडिया बहुत अच्छा लगा..? हाथ उठाओ...| देखो, सबको अच्छा लगा, बहुत ही अच्छा आईडिया है| आज सुबह ही एक सज्जन बता रहे थे कि गुरूजी, यह सब बहुत अच्छा होएगा| जिले के लिये, फिर विधायक के लिये, जिला परिषद के जो सदस्य बनेंगे, बनने से पहले वो यह कोर्स कर लेंगे तो वे लोग जान लेंगे, पढ़ लेंगे कि जिले को कैसे मजबूत करना है| एक आईडिया हो, विजन हो तो प्रोग्रेस बहुत जल्दी हो जायेगी| बहुत अच्छा | तो मैं यही कह रहा हूँ कि अपनी सारी तकलीफ , समस्याएं यहाँ छोड़ो और मन में इस विश्वास के साथ जाओ कि जो अति उत्तम है वही आपके साथ होगा|
तो अभी हम लोग थोड़ी देर ध्यान करते हैं फिर और बाते करेंगे.
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