अब मैं आप सब से एक बहुत
गंभीर प्रश्न पूछने वाला हूँ, क्या आप सच में किसी व्यक्ति का
अभिनन्दन करते हैं या वो मात्र एक औपचारिकता होती है?
देखिये, आजकल, रोजाना, हम लोगों का अभिनन्दन करते हैं, आनंद बांटते हैं,
ये सब एक बहुत औपचारिक
स्तर पर रह कर करते हैं, करते हैं न?
जब कोई पानी का गिलास लाता
है, तब हम उसको कहते हैं, "आपका बहुत बहुत धन्यवाद", इसमें बहुत बहुत का कोई अर्थ नहीं
होता| जब आप सहारा रेगिस्तान में हों, और सच में बहुत प्यासे हो और कोई आपको एक गिलास पानी दे दे और
कहें "आपका बहुत बहुत धन्यवाद", वहां ये वास्तविक है|
ऐसे ही जीवन में जब हम
हमेशा केवल ऊपर ऊपर से सबसे व्यवहार करते हैं,
और जब उस गहराई की कमी
होती है तब जीवन बहुत नीरस और बेकार सा लगने लगता है| हमें वास्तविकता,
सच्चाई, और एक वास्तविक दिल से दिल के रिश्ते के स्तर पर बढ़ना चाहिए, इस ही को मैं आध्यात्मिकता कहता हूँ| आध्यात्मिकता तब होती है जब आप अपने अस्तित्व से वास्तव रूप
में जुड़ जाते हैं| बचपन में हम सब ऐसा करते हैं| याद करिए, जब आप बच्चे थे तब सारा ब्रहमांड
सारी धरती,
सब कुछ इतना सजीव था, चाँद बातें करता था,
पेड़ पौधे बात करते थे, जानवर बात करते थे,
तब आप में और सारे ब्रहमांड
में एक वास्तविक बातचीत होती थी, याद है? क्या आपने बच्चों को कार्टून में देखा है, यहाँ तक कि पेड़ भी उनसे बात करते हैं, उनकी एक अलग ही दुनिया होती है|
अब सवाल यह है कि क्या
हम वो ही मासूमियत बनाये रखते हुए, ज्ञान की ऊंचाइयों को छू सकते हैं? मैं कहता हूँ,
छू सकते हैं| बुद्धिमत्ता और मासूमियत दोनों इस संसार की सबसे कीमती वस्तु
हैं| ऐसे लोग हैं जो समझदार हैं लेकिन कुटिल हैं, और मासूम लेकिन मूर्ख होना भी आसन है| लेकिन ज़रूरत उस ज्ञान की है जो मासूमियत को बरक़रार रखते हुए
बुद्धिमान बनाये|
तो अब जब आप आराम से हैं
और बिलकुल अनौपचारिक महसूस कर रहे हैं तब आज रात आप क्या चाहते हैं कि मैं किस विषय
पर आपसे बात करूँ?
(श्रोता :
प्यार, जन्म, क्षमा, रिश्ते, निर्णय, ईश्वर, भ्रष्टाचार एवं शांति,दया, क्रोध, डर, पूँजीवाद, आशा, धैर्य )
आप चाहते हैं कि मैं धैर्य
पर बात करूँ? वो मैं अगले साल करूंगा| बताइए क्या इस बात से वाकई फर्क
पड़ता है कि हम आज किस विषय पर बात करते हैं? आप जानते हैं कि हम अपने शब्दों
से कहीं ज्यादा अपनी उपस्तिथि से बात करते हैं, है कि नहीं? क्या सच में इस बात से फर्क पड़ता है कि हम क्या बात करते हैं? शब्द केवल तरंगे मात्र हैं| अगर आप एक भौतिक शास्त्री के पास जायेंगे तो वो कहेगा कि संसार और कुछ नहीं सिर्फ
एक तरंग का खेल है, हम सब और कुछ नहीं सिर्फ तरंगें
हैं| अगर आप अपने केंद्र से जुड़े हुए हैं तब ये तरंगे सकारात्मक
हैं और अगर आप अपने केंद्र से जुड़े हुए नहीं है और कहीं अटक गए हैं तब ये तरंगे नकारत्मक
हो जाती हैं| शांति,
प्यार, करुणा ये सब हमारी वास्तविक तरंगें हैं और जब हमारी वास्तविक
तरंगें बिगड़ी हुई नहीं होती हैं तब हमारे पास से सकारात्मक विकिरण, सकारात्मक तरंगे निकलती हैं| लेकिन जब आप क्रोध में होते हो,
उदास होते हो, परेशान होते हो तब क्या करें? आपको उन्हें सकारात्मकता में बदलना
होता है; लेकिन किसी ने हमें ये नहीं सिखाया कि ऐसे कैसे करें? न स्कूल में न घर पर,
है न? आपकी दादी आपको कहती होगी कि एक कोने में जाओ और दस तक गिनती
गिनो, लेकिन आजकल १० तक या १०० तक गिनती असर नहीं करती| अगर आप अपने मन को देखें तो वो या तो बीते समय को लेकर नाराज़
रहता है या आने वाले समय को लेकर व्याकुल, लेकिन दोनों का ही कोई फायदा नहीं
है| बीते हुए समय के बारे में सोच कर क्या फायदा है, वो तो
जा चुका है| और आने वाले समय को लेकर व्याकुल होने का भी क्या फायदा है? ये भी बेकार है|
अब जो आपको वर्तमान में
आने को मदद करता है वो है ध्यान| देखिये अगर लोगों को मालूम हो
कि कैसे ध्यान करना है कुछ मिनट के लिए भी,
चाहे १० मिनट रोज़ ही, वो अपने तनाव और परेशानी से छुटकारा पा सकते हैं और प्रसन्न रह सकते हैं| मेरा स्वप्न है हिंसा रहित समाज, रोग मुक्त शरीर,
व्याकुलता मुक्त मन, अवरोधन मुक्त बुद्धि,
अवसाद मुक्त याददाश्त, और दुःख मुक्त आत्मा|
ये मेरा स्वप्न है, आप में से कौन कौन मेरे इस स्वप्न में शरीक होना चाहता है? (श्रोताओं में सबने अपने हाथ उठाये)
हमें अपने बच्चों को और
आने वाली पीढ़ियों को एक बेहतर समाज देना है|
हमें उन्हें एक ऐसा समाज
देना है जहाँ और प्यार हो, करुणा हो, और एक ऐसा समाज जहाँ बन्दूक का चलन न हो| हमारे बच्चों को ड्रग्स या हिंसा के चलन की ज़रूरत नहीं| उन्हें एक अधिक प्रेम करने वाला, दयालु एवं करुणामय,
एक स्वस्थ समाज चाहिए, क्या आपको ये नहीं लगता? तब हमें इसी उद्देश्य की ओर काम
करना है|
प्रश्न : हमारा इस धरती पर आने का क्या उद्देश्य है?
श्री श्री रविशंकर : हमारा इस धरती पर आने का उद्देश्य
क्या नहीं है, पहले उसकी एक लिस्ट बनानी चाहिए, वो देखनी चाहिए|
इस धरती पर आने का आपका
मक़सद खुद को दुखी रखना और दूसरों को दुखी करना नहीं है, ठीक? अब अगर ऐसे आप वो बातें निकालते जाओगे जो आपका उद्देश्य
नहीं हैं तो आखिरी में जो बच जायेगा वो ही आपका उद्देश्य है|
प्रश्न : अगर बाकी लोग नकारात्मक महसूस कर रहे हो तब उनके प्रभाव से कैसे
बचा जा सकता है?
श्री श्री रविशंकर : आप अपने केंद्र में अपना ध्यान
रखें और गलतियों के लिए थोड़ी सी जगह छोडें,
जब हम गलतियों या कमियों
के लिए कोई जगह ही नहीं छोड़ते और तब हम उनसे प्रभावित होने लगते हैं| अगर कोई नकारात्मक भाव में है तब उसे ऐसे होने का हक है, उसको छोड़ दीजिये,
उसको थोडा समय दीजिये| मैं आपसे कहता हूँ कि मैं यहाँ आपकी सब चिंताएं लेने
आया हूँ, तो मुझे अपनी सब परेशानी, चिंता और तकलीफ दे दीजिये| मैं आपके चेहरे पर एक सदाबहार मुस्कराहट देखना चाहता हूँ|
प्रश्न : क्या हम अपनी भावनाओं पर नियंत्रण कर सकते हैं?
श्री श्री रविशंकर : हम अपनी भावनाओं से आगे बढ़ सकते
हैं जब हम ये जान लेते हैं कि कुछ और है जो भावनओं से ज्यादा आधारभूत है और वो है जीवन
शक्ति, जो कभी नहीं बदलती|
प्रश्न : प्यार और वासना में क्या फर्क है?
श्री श्री रविशंकर : प्यार में दूसरा महत्वपूर्ण होता
है और वासना में आप महत्वपूर्ण होते हैं|
प्रश्न : प्रिय गुरुदेव,
मैं किस तरह से उन लोगों
की मदद कर सकता हूँ जिनके मन में बहुत प्रतिरोध हैं?
श्री श्री रविशंकर : संसार में बहुत तरह के लोग होते
हैं, हमें उन्हें वैसे ही स्वीकार करना चाहिए| ऐसे भी लोग हैं जिनमें बहुत प्रतिरोध है, कोई बात नहीं,
उन्हें उनकी खुद की रफ़्तार
से चलने दो| देखिये इस धरती पर खरगोश भी हैं, हिरन भी हैं और घोंघे भी हैं| आप एक घोंघे से खरगोश के जैसे भागने की उम्मीद नहीं कर सकते, हैं न ! अगर कोई घोंघे की रफ़्तार से चल
रहा है जबकि बाकी सब हिरन के जैसे दौड़ रहे हैं तो उसे चलने दो| ये विश्व ऐसा ही है, मुस्कुराओ और आगे बढ़ो|
प्रश्न : गुरुदेव, मुझे लोगों को माफ़ करने में बहुत
तकलीफ होती है|
श्री श्री रविशंकर : उन्हें मत माफ़ करो, तब देखो कि क्या ये आसान है? अगर आप किसी को क्षमा नहीं करते
हो तब आप लगातार सारे समय उनके ही विषय में सोचते रहते हो| क्या किसी के लिए गुस्से को संभाल कर रखना आसान है? हे ईश्वर, इसमें इतनी शक्ति नष्ट होती है| क्या आप जानते हैं कि आप दूसरों को क्षमा क्यों करते हैं? ये आपके खुद के लिए होता है| जब आप एक अपराधी को एक पीड़ित के जैसे देखते हैं तब आप उन्हें आसानी से क्षमा कर
पाते हैं| हर अपराधी अनभिज्ञता से, संकीर्ण मानसिकता से पीड़ित होता है| वो जीवन की विशालता और खूबसूरती को नहीं जानते
और इसीलिए वो दूसरों की परवाह न करके सिर्फ अपने ही बारे
में सोच कर ऐसी मूर्खतापूर्ण गलतियाँ कर बैठते हैं| ऐसा इसलिए है क्योंकि उनका मन,
उनकी मानसिकता संकीर्ण
है, इसलिए हमें उन्हें माफ़ कर देना चाहिए| फिर आप देखिये शायद उन्हें कभी आपके जैसे कुछ बड़ा सोचने और
करने का अवसर कभी नहीं मिला, इसलिए आपको उनके प्रति करुणा रखते
हुए उन्हें क्षमा कर देनी चाहिए|