बैंगलुरु आश्रम, भारत
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गणेशजी निराकार दिव्यता
हैं – जो भक्त के उपकार हेतु एक अलौकिक आकार
में स्थापित हैं|
गण अर्थात समूह|
यह पूरी सृष्टि परमाणुओं और अलग अलग ऊर्जाओं का समूह है| यह पूरी सृष्टि बहुत उथल-पुथल
हो जाती, यदि कोई सर्वोच्च नियम इसके भिन्न-भिन्न संस्थाओं के समूह पर शासन नहीं कर
रहा होता|
इन सभी परमाणुओं
और ऊर्जाओं के समूह के स्वामी हैं गणेशजी| वे ही वह सर्वोच्च चेतना हैं जो सर्वव्यापी
हैं और इस सृष्टि में एक व्यवस्था स्थापित करती है|
आदि शंकर ने गणेशजी
के सार का बहुत ही सुंदरता से विवरण किया है|
हालाँकि गणेश जी की
पूजा हाथी के सिर वाले भगवान के रूप में होती है, लेकिन यह स्वरुप वास्तव में उस निराकार
परब्रह्म रूप को प्रकट करता है| वे ‘अजं निर्विकल्पं निराकरमेकम’ हैं| अर्थात, गणेश जी अजं (अजन्मे) हैं, निर्विकल्प (बिना किसी गुण
के) हैं, निराकार (बिना किसी आकार के) हैं और वे उस चेतना के प्रतीक हैं, जो सर्वव्यापी
हैं|
गणेशजी वही ऊर्जा
हैं जो इस सृष्टि का कारण है| यह वही ऊर्जा है, जिससे सब कुछ प्रत्यक्ष होता है और
जिसमें सब कुछ विलीन हो जायेगा|
हम सब उस कथा को
जानते हैं, कि कैसे गणेशजी हाथी के सिर वाले भगवान बने|
जब पार्वती शिव
के साथ उत्सव क्रीड़ा कर रहीं थीं, तब उन पर थोड़ा मैल लग गया| जब उन्हें इस बात की अनुभूति
हुई, तब उन्होंने अपने शरीर से उस मैल को झाड़ा और उससे एक बालक बना दिया| फिर उन्होंने
उस बालक को कहा कि जब तक वे स्नान कर रहीं हैं, वह वहीं पहरा दे|
जब शिवजी वापिस लौटे,
तो उस बालक ने उन्हें पहचाना नहीं, और उनका रास्ता रोका| तब भगवान शिव ने उस बालक का सिर
धड़ से अलग कर दिया और आगे चले गए|
यह देखकर पार्वती
बहुत हैरान रह गयीं| उन्होंने शिवजी को समझाया कि वह बालक तो उनका पुत्र था, और उन्होंने
भगवान शिव से विनती करी, कि वे किसी भी कीमत पर उसके प्राण बचाएँ|
तब भगवान शिव ने अपने
सहायकों को आज्ञा दी कि वे जाएँ और कहीं से भी कोई ऐसा मस्तक ले कर आये जो उत्तर दिशा
की ओर मुहँ करके सो रहा हो| तब शिवजी के सहायक एक हाथी का सिर लेकर आये, जिसे शिवजी ने
उस बालक के धड़ से जोड़ दिया और इस तरह भगवान गणेश का जन्म हुआ!
क्या यह कहानी
आपको विचित्र लगती है?
क्यों पार्वती
के शरीर पर मैल था?
क्या सब-कुछ जानने
वाले भगवान शिव ने अपने स्वयं के पुत्र को नहीं पहचाना?
क्या भगवान शिव, जो शान्ति
के प्रतीक थे, इतने गुस्से वाले थे कि उन्होंने अपने ही पुत्र का सिर धड़ से अलग कर
दिया? और भगवान गणेश के धड़ पर हाथी का सिर क्यों?
इन सबके पीछे एक
गहरा रहस्य है|
पार्वती प्रसन्न
ऊर्जा का प्रतीक हैं| उनके मैले होने का अर्थ है कि कोई भी उत्सव राजसिक हो सकता है,
उसमें आसक्ति हो सकती है और आपको आपके केन्द्र से हिला सकता है|
मैल अविद्या का
प्रतीक है, और भगवान शिव सर्वोच्च सरलता, शान्ति और ज्ञान के प्रतीक हैं|
तो जब गणेशजी ने भगवान
शिव का मार्ग रोका, इसका अर्थ हुआ कि अविद्या, जो कि मस्तिष्क का गुण है, वह ज्ञान
को नहीं पहचानता| तब ज्ञान को अज्ञान को जीतना पड़ता है| इसी बात को दर्शाने के लिए
शिव ने गणेशजी के सिर को काट दिया था|
और फिर एक हाथी
का सिर क्यों?
हाथी प्रतीक है
ज्ञान शक्ति और कर्म शक्ति – दोनों का|
एक हाथी के मुख्य
गुण होते हैं – बुद्धि और सहजता| एक हाथी का विशालकाय
सिर बुद्धि और ज्ञान का सूचक है|
हाथी कभी भी अवरोधों
से बचकर नहीं निकलते, न ही वे उनसे रुकते हैं| वे केवल उन्हें अपने मार्ग से हटा देते
हैं और आगे बढ़ते हैं – यह सहजता का प्रतीक है|
इसलिए, जब हम भगवान
गणेश की पूजा करते हैं, तो हमारे भीतर ये हाथी के गुण जागृत हो जाते हैं, और हम ये
गुण ले लेते हैं|
गणेशजी का बड़ा पेट
उदारता और पूर्ण सम्मति को दर्शाता है| गणेशजी का ऊपर उठा हुआ हाथ रक्षा का प्रतीक है
– अर्थात, ‘घबराओ मत, मैं तुम्हारे साथ हूँ’ और उनका झुका हुआ हाथ, जिसमें हथेली बाहर की ओर है, उसका अर्थ
है, अनंत दान, और साथ ही आगे झुकने का निमंत्रण देना – यह प्रतीक है कि हम सब एक दिन इसी मिट्टी में मिल जायेंगे|
गणेशजी के बहुत बड़े
दांत भी हैं, जिसका अर्थ है एकाग्रता| वे अपने हाथ में जो भी लिए हुए हैं, उन सबका
भी कुछ अर्थ है| वे अपने हाथों में अंकुश लिए हैं, जिसका अर्थ है – जागृत होना| और पाश – अर्थात नियंत्रण| जागृति के साथ,
बहुत सी ऊर्जा उत्पन्न होती है और बिना किसी नियंत्रण के उससे व्याकुलता हो सकती है|
और गणेशजी, हाथी
के सिर वाले भगवान क्यों एक चूहे जैसे छोटे से वाहन पर चलते हैं? क्या यह बहुत अजीब
नहीं है? फिर से, इसका एक गहरा रहस्य है|
एक चूहा उन रस्सियों
को काट कर अलग कर देता है जो हमें बांधती हैं| चूहा उस मन्त्र के समान है जो अज्ञान
की अनन्य परतों को अंदर तक काट सकता है, और उस परम ज्ञान को प्रत्यक्ष कर देता है जिसके भगवान
गणेश प्रतीक हैं|
हमारे प्राचीन
ऋषि इतने बुद्धिमान और तीक्ष्ण बुद्धि वाले थे, कि उन्होंने दिव्यता को शब्दों के बजाय
इन प्रतीकों के रूप में दर्शाया, क्योंकि शब्द तो समय के साथ बदल जाते हैं, लेकिन प्रतीक
कभी नहीं बदलते|
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