अपने स्वयं के जीवन पर दृष्टि दीजिये!!!

२५
२०१२
अगस्त
डरबन, दक्षिण अफ्रीका
ज्ञान केवल एक सुखकर वातावरण में ही खिल सकता है, जहाँ हम अनौपचारिक हों, और एक दूसरे के साथ सहज महसूस करें| क्या आप सब एक दूसरे के साथ सहज महसूस कर रहे हैं?
क्यों न हम सब सिर्फ एक क्षण निकालकर अपने बगल में, हमारे पीछे और हमारे आगे बैठे व्यक्तियों को अभिवादन करें? एक औपचारिक वातावरण ज्ञान के लिए बिल्कुल अनुकूल नहीं है| हमें एक अंतरंग, एक हृदय से दूसरे ह्रदय के बीच के वार्तालाप के लिए आपस में अनौपचारिक होना पड़ेगा, और यही ज्ञान है| यह एक मस्तिष्क की दूसरे मस्तिष्क से बातचीत नहीं है|
एक मस्तिष्क की दूसरे मस्तिष्क से बातचीत में विवाद हो सकता है| लेकिन ह्रदय से ह्रदय का वार्तालाप केवल एक ही भाषा में होता है पूरा विश्व एक परिवार|
अब आप सब कुछ एक तरफ रख दीजिए, और केवल अपने जीवन की ओर देखिये|
क्या है जो आप अपने जीवन से चाहते हैं? क्या आपने कभी इस बारे में बैठकर सोचा है, ‘मैं अपने जीवन में क्या चाहता हूँ?’
हमें कभी-कभी ही ऐसा करने का समय मिलता है| और मैं कौन हूँ’ – ये भी हम नहीं सोचते|
किसी ने हमें कुछ बताया और हमने वह रट लिया| हमने पढ़ाई करी और शिक्षा प्राप्त करी, लेकिन मैं कौन हूँ?’, ‘मुझे क्या चाहिये?’ – ये प्रश्न सिर्फ कभी कभी ही हमारे मन में आते हैं|
अगर आप अपने ६०,७० या ८० वर्ष के जीवन को देखेंगे, क्या आप जानते हैं कि आपने वे ८० वर्ष कैसे बिताए हैं?
आपने अपने जीवन के ४० वर्ष तो सोने में बिताए हैं| करीब ८ साल आपने बाथरूम और टॉयलेट में बिताए हैं, और इतना ही समय आपने खाने-पीने में व्यतीत किया है|
१०-१५ साल ट्रैफिक में, यात्रा करने में और काम करने में बीतते हैं| हमारे जीवन के केवल २-३ साल बचते हैं, जिसे हम सुखीकहते हैं| ऐसा है कि नहीं?
और यही तो है जो हम चाहते हैं सुख!
दुनिया भर के ग्रन्थ, प्राचीन काल से आधुनिक युग तक; ये सब परम आनंद की ही तो चर्चा करते हैं| है न? क्योंकि ये ग्रन्थ जानते हैं कि आज पुरुषों और महिलाओं को केवल खुशी ही तो चाहिये|
खुशी या सुख कोई ऐसी वस्तु नहीं है जिसे आप कहीं जाकर खरीद सकते हैं| आप जहाँ हैं, यह तो वहीँ मौजूद है, यहाँ, इस पल! और इस सुख को ढूँढने का रास्ता है ध्यान|
ध्यान से हमारी सेहत अच्छी होती है, हमारे मन की स्थिति बेहतर होती है और ज्यादा सुख मिलता है|
वह जो भी है, जिसे हम यहाँ-वहां ढूँढ रहें हैं, वह तो यहीं हैं, हमारे भीतर|
मेरे यहाँ आने का अभिप्राय केवल इतना ही है, आपको ये बताना - कि आप जो भी ढूंढ रहें हैं वह आपके भीतर ही है, और वह प्रकाश, वह आत्मा आपको बहुत प्रेम करती है| इसलिए चिंता मत करिये|
मुझे अपनी सारी परेशानियां दे दीजिए| मैं उन्हें आपसे ले जाने के लिए ही आया हूँ| अपनी सारी चिंताएं यहाँ छोड़ दीजिए, खुश हो जाईये, और खुशी फैलाईये|
क्या ये हमारे जीवन का उद्देश्य नहीं होना चाहिये?
हमारा क्या उद्देश्य होना चाहिये?
हर एक किसी को झंझोड़ना और उनसे ये कहना, ‘अरे! उठो! हंसो और मुस्कुराओ!
आपको लोगों को खुश करना चाहिये|
आप जानते हैं, कि जब हमारे पास होता है’- तब भी हम दुखी रहते हैं, और जब हमारे पास नहीं होता है, तब भी हम दुखी रहते हैं|
मैं आपको एक कहानी सुनाना चाहता हूँ|
केन्या में रहने वाले एक भारतीय-अफ्रीकी प्रवासी लन्दन में थे; ये बहुत लंबे समय पहले की बात है, जब मैं वहां गया था| तो ये सज्जन मेरे पास आये और बोले, ‘गुरुदेव, मेरी इच्छा है, कि मेरे पास एक BMW गाड़ी हो| कृपया मुझे आशीर्वाद दें|’
मैंने कहा, ‘अच्छा, भगवान की इच्छा हुई, तो तुम्हें वह मिल जायेगी’|
छह महीने के बाद वे आये और मुझसे मिले| वे बहुत खुश थे, और बोले, ‘गुरुदेव, मुझे वो (गाड़ी) मिल गयी| लेकिन बिर्मिन्ग्हम की सड़के इतनी छोटी हैं, कि जब मैं उसे यहाँ-वहां पार्क करता हूँ तो उसमें खरोंच तो आ ही जाती है| इससे मुझे बहुत परेशानी हो रही है| क्या करूँ?’
आप जानते हैं, यहाँ के मुकाबले बिर्मिन्ग्हम की सड़के बहुत संकरी हैं|
कुछ महीनों के बाद, वे बोले, ‘गुरुदेव, इस गाड़ी के होने से मुझे बहुत तकलीफ हो रही है| मैं बहुत अभागा महसूस कर रहा हूँ| मैं इस गाड़ी को बेचना चाहता हूँ, लेकिन कोई खरीददार ही नहीं है|’
आपके पास नहीं था तब आप दुखी थे| अब आपके पास है, और आप दुखी है|
यानी, हम जिस तरह से जीवन को देखते हैं, उसमें ज़रूर कुछ गलत है| बस यहीं पर हमें वह ज्ञान चाहिये, जिससे हम वापिस मुड़कर देखें और ये पाएं कि सुख का सम्बन्ध इस से नहीं है, कि हमारे पास क्या है और क्या नहीं है| बल्कि वह तो हमारे मन की स्थिति पर निर्भर करता है|
क्या आप जानते हैं, यूरोप की ३० प्रतिशत जनता आज अवसादग्रस्त है!
यह आंकड़ा पिछले दशक की सेन्सस से प्राप्त हुआ है, अब तो ये कहीं ज्यादा हो गया है| और भूटान जैसा छोटा सा देश सुखी होने के लिए जाना जाता है| यहाँ तक कि बांगलादेश में भी कहीं ज्यादा सुखी लोग हैं|
मैं नहीं जानता कि दक्षिण अमेरिका इस सूची में कहाँ आता है, लेकिन मुझे ये आशा है कि आप सब जो आज यहाँ हैं, इस बात का संकल्प लेंगे कि आप खुश रहेंगे और खुशी फैलायेंगे|
क्या यह एक अच्छा आईडिया है? (सभी लोग हामी भरते हैं, और कहते हैं हाँ”)
एक हिंसा-विहीन समाज, रोग-मुक्त शरीर, तनाव-मुक्त मन, संकोच-मुक्त बुद्धि, आघात-मुक्त स्मृति और दुःख-मुक्त आत्मा| यह प्रत्येक इन्सान का जन्म सिद्ध अधिकार है|
(गुरुदेव कुछ पल के लिए बाहर झाँक कर देखते हैं और बाहर से आने वाले संगीत के शोर को सुनते हैं)
विकर्षण होते ही इसलिए हैं, यह देखने के लिए कि आप ज्ञान को पकड़ने के लिए कितने उत्सुक हैं|
संस्कृत में एक कहावत है, ‘श्रेयंसी बहु विघ्नानी’, जिसका अर्थ है, अगर कोई वस्तु अत्यधिक बहुमूल्य है तो उसे प्राप्त करने के मार्ग में बहुत से विघ्न या विकर्षण आते हैं ( उद्धवगीता का छंद - जिसे भगवान कृष्ण ने अपने भक्त उद्धव से कहा था)
अगर किसी चीज़ को प्राप्त करने में बहुत से विघ्न आ रहें हैं, तो इसका मतलब वह बहुत मूल्यवान होगी|
यदि आप कुछ गलत करना चाहते हैं, तो उसमें कोई विघ्न नहीं आएगा| लेकिन अगर आप कुछ अच्छा करना चाहते हैं, या किसी मूल्यवान वस्तु को प्राप्त करना चाहते हैं, तो उसमें विघ्न आयेंगे|
यह विश्व पाँच मूलभूतों से बना है| यही बात आज वैज्ञानिकों ने भी कही है, और यही बात प्राचीन दिनों में ऋषियों ने कही थी|
ये पाँच भूत हैं पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश| इसीलिये इसे संस्कृत में प्रपंच कहते हैं| पञ्च अर्थात पाँच, प्रपंच माने पाँच भूतों का एक विशेष संयोग, जिससे यह सृष्टि बनी है|
यही हमारे शरीर के लिए भी सत्य है| हमारे शरीर में ६० प्रतिशत जल है| शरीर में मौजूद गर्मी अग्नि तत्व को दर्शाती है| यह भौतिक शरीर स्वयं में ही पृथ्वी तत्व का प्रतीक है, और खाली जगह आकाश तत्व को दर्शाती है| तो इस तरह ये पाँच भूत हमारे पूरे शरीर को बनाते हैं, और इस पूरी सृष्टि को भी|
तो अब हम एक छोटा सा ध्यान करेंगे, और ध्यान के बाद हम एक छोटा सा यज्ञ करेंगे|
यज्ञ का अर्थ है, ब्रहमांड के सिद्धांतों को सम्मिलित करना|
इस ब्रह्माण्ड में सैकड़ों किरणें आ रहीं हैं| सूक्ष्म और स्थूल आपस में जुड़े हुए हैं| यहाँ हर एक छोटी सी तितली के पंख फड़फड़ाने से बादलों पर प्रभाव पड़ता है| क्या आपने इस बारे में सुना है?
आमज़न (Amazon) जंगल में सिर्फ एक तितली उस पूरे जंगल को प्रभावित कर सकती है, और चीन के बादलों को भी| अगर एक बन्दर कुछ करता है, तो उसका प्रभाव बहुत सारे अन्य बंदरों पर भी पड़ता है| क्या आपने अफ्रीका की इस बात के बारे में सुना है?
इसे अफ्रीका में ‘BIG FIVE’ के नाम से जाना जाता है; पाँच बड़े जानवरों का देश (जिनका पैदल शिकार संभव नहीं है सिंह, अफ़्रीकन हाथी, केप भैंस, चीता और गेंडा)|
हर जानवर अपने साथ एक विशेष तरंग लेकर आता है; एक लौकिक विद्युत तरंग जिसे वह अपने साथ पृथ्वी पर लेकर आता है| वे इस तरंग को ब्रह्माण्ड से पृथ्वी तक लाने में माध्यम बनते हैं|
हर एक पशु एक व्यक्तिगत और खास तरंग लेकर आता है| और इसीलिये हर एक पशु महत्वपूर्ण है|
वेदिक समय के प्राचीन ऋषि इस बात को जानते थे| कोई भी पक्षी, यहाँ तक कि किसी विशेष तरह की बीज के साथ भी कोई न कोई तरंग जुडी हुई है| इसलिए, सब कुछ एक दूसरे से जुड़ा हुआ है| जैसे हमारे शरीर में, हालाँकि हम केवल एक ही कोशिका से बने हैं, इस कोशिका में ३३ अलग अलग तरह के गुणसूत्र (chromosomes) हैं| और कोशिका के DNA के ये अलग अलग गुणसूत्र ही शरीर के अलग अलग भाग बनाने में सहायक होते हैं| इस ब्रह्माण्ड में इतनी अलग अलग तरह की तरंगें हैं, जो उसके भिन्न-भिन्न भागों से आती हैं| इसलिए, सूक्ष्म और स्थूल एक बहुत ही विशेष प्रकार से आपस में जुड़े हुए हैं| यही बात प्राचीन लोगों ने भी कही| तो जब हम आकाश से वायु में जाते हैं, फिर अग्नि, जल और फिर पृथ्वी तत्व में जाते हैं; तो इसी तरह सृष्टि बनी है|
इसीलिये, उन्होंने यज्ञ की रूपरेखा बनायी| (जहाँ हम इसी प्रक्रिया को विपरीत दिशा में करते हैं, हम जड़ी बूटियाँ अर्पण करते हैं, जो पृथ्वी तत्व का प्रतीक हैं, घी जल तत्व का, इन सबको वायु तत्व के मौजूदगी में अग्नि तत्व को अर्पण करते हैं और यहाँ से तरंगें आकाश तत्व में भेजी जाती हैं)
यज्ञों को शान्ति लाने के लिए बनाया गया था|
यज्ञ का लक्ष्य क्या होता है? पहला स्वस्ति अच्छी सेहत; फिर समृद्धि, मन की शान्ति, सुख, एकजुटता की भावना, और वातावरण में से नकारात्मकता को हटाना| जब भी आप नकारात्मक होते हैं, तब आप क्रोध, ईर्ष्या, लालच, कुंठा और द्वेष की तरंगों का संचार करते हैं| यज्ञ इन सभी तरंगों का हनन कर देते हैं| इसलिए, अबकि बार मैंने सोचा है कि इसे दक्षिण अफ्रीका में भी ले जाया जाए|
मैंने हाल ही में अफ्रीका में हुई दुखद घटना के बारे में सुना, जहाँ बहुत से नाबालिग मारे गए|
इसलिए, पूरी जनता में खुशी, शान्ति और समृद्धि लाने के लिए हम एक छोटा सा यज्ञ करेंगे, जिसमें हम वेदिक मन्त्रों का उच्चारण करेंगे और कुछ विशेष जड़ी-बूटियाँ अर्पण करेंगे, जैसे कि हज़ारों साल पहले प्राचीन समय में होता था| तो आप वह भी देख सकेंगे|
यह एक छोटी सी पूजा के समान है, जिसमें हम परमात्मा से प्रार्थना करते हैं कि वे हमें शान्ति, समृद्धि, सुख, संतोष, एकजुटता, अपनापन और एक दूसरे के लिए स्नेह प्रदान करें|
सबसे ज्यादा ज़रूरी है, कि हमें वह आत्म-संतोष प्राप्त हो| आप जानते हैं, यदि हमें आत्म-संतोष हो, तो हमारे अंदर दूसरे लोगों को आशीर्वाद देने की अद्भुत क्षमता आ जाती है|
न केवल हम खुद की इच्छाएं पूरी कर पाएंगे, बल्कि दूसरों की इच्छाएं भी पूरी कर पाएंगे| एक मानव की आत्मा में ऐसी क्षमता आ सकती है, यदि वह संतोष की स्थिति में आ जाये तो|
तो चलिए, अब हम एक छोटा सा यज्ञ करते हैं, जिसमें हम १०,००० साल पुराने प्राचीन मन्त्रों का जाप करेंगे| मन्त्र-उच्चारण के दौरान आप केवल अपनी आँखें बंद कर के बैठ जाएँ, सुनें, और मन्त्रों में स्नान करें|
(गुरुदेव सबको ध्यान कराते हैं)

प्रश्न : जय गुरुदेव! जीवन काल में यह एक अवसर प्रदान करने के लिये धन्यवाद| कृपया कर के बताएं कि मुझे यह कैसे पता चलेगा कि मैं सही पथ पर हूँ और जीवन के उद्देश्य को पूरा कर रहा हूँ?
श्री श्री रविशंकर : कुछ ऐसा होता है जिसे अंतर मन की आत्मा कहते हैं| आप के भीतर की गहराई से कोई आपको बताता है कि "यह ठीक हैऔर फिर जब आप उसका चुनाव करते हैं तो वास्तव में आपको उस के लिये काफी अच्छा लगता है|
मैं तो कहूँगा कि मन में तभी शंका आती है जब आपने कोई ठीक बात का चयन किया होता है| शंका सिर्फ सकारक बातों के लिये होती हैं| क्या आपने इसे महसूस किया है? हम व्यक्ति की सिर्फ इमानदारी पर शंका करते हैं, लेकिन उसकी बेईमानी पर शंका नहीं करते|
हम अपने प्रियजनों से कहते हैं क्या आप सच में मुझ से प्रेम करते हैं?’ जब आप से कोई कहता है, ‘मैं तुम से प्यार करता हूँतो आप कहते हैं, ‘सच में?’
उसी तरह हम अपनी क्षमता पर शंका करते हैं पर हम अपनी अक्षमता पर शंका नहीं करते|
यदि आप से कोई पूछता है कि क्या तुम खुश हो तो आप कहते हैं, मैं ठीक से नहीं कह सकता| लेकिन जब आप निराश होते हैं तब आपने ऐसा उत्तर नहीं दिया होगा| आप अपनी निराशा पर पूरा यकीन होता है| आपको नकारक बातों में पूरा यकीन होता है, लेकिन आप सकारक बातों पर अक्सर प्रश्न करते हैं| इसलिये शंका यह दर्शाती है कि कुछ तो अच्छा भी है|

प्रश्न : हमें इस जीवन काल में मोक्ष को कैसे प्राप्त कर सकते हैं और हम आस पास के नकारक लोगों से कैसे छुटकारा पा सकते हैं?
श्री श्री रविशंकर : मैंने आपसे कहा है कि आप अपनी सारी समस्याएँ यहाँ पर छोड़ दें, लेकिन आप अपने परिवार के उन लोगों को छोड़ ही नहीं रहे जो आपको परेशान कर रहे हैं| एक बार ऐसा हुआ कि मैंने आश्रम में भी यही बात कही कि आप अपनी समस्याओं को यहीं छोड़ दें| तो एक महिला ने मुझ से पूछा कि मेरी सास मेरी सबसे बड़ी समस्या है और मैं उन्हें यहाँ पर कैसे छोड़ सकती हूँ? मैंने उससे कहाँ कि यदि मैं आपकी सास से यह सवाल करूँगा तो वह भी आपके बारे यही बात कहेंगी?
जीवन में चुनौतियाँ होती हैं| चुनौतियाँ आती हैं और अलग अलग मानसिकता के लोग मिलते हैं इसलिये आपको अपना दृष्टिकोण बड़ा करना होगा और जीवन को एक बड़े दृष्टिकोण से देखना होगा, फिर आप लोग इन छोटी छोटी बातों को छोड़ देंगे जो फिलहाल आपको महत्वपूर्ण लग रही हैं| आपको अपने दृष्टिकोण को बड़ा करना होगा|
यदि आपको लगता है कि कुछ लोग नकारक हैं तो उनसे कुछ दूरी रखें सबसे पहले| फिर यह जान लें कि वे हर समय वैसे ही नहीं रहेंगे| समय के साथ वे भी बदल जायेंगे| और तीसरा विकल्प यह सोचना होगा, ‘उन्हें रहने दो’| वे मेरे भीतर के कौशल में निखार लायेंगे| वे वार्तालाप के कौशल में निखार लायेंगे, ऐसे कौशल जो आपको अपने पैर जमाने में काम आयेंगे| फिर सब से अंतिम बात होगी कि सब कुछ भगवान पर छोड़ दें| भगवान को सब कुछ ठीक करने के लिये छोड़ दीजिये|
हमने महात्मा गांधी के सबसे प्रिय भजन में इसे सुना है, ‘इश्वर अल्लाह तेरो नाम, सबको सन्मति दे भगवान| सबका मन और बुद्धि शुद्ध हो और वह सही दिशा की ओर अग्रसर रहे| यही बात गायत्री मंत्र में भी है, धियो॒ योनः॑ प्रचो॒दया॑त्| काश भगवान मेरी बुद्धि को प्रेरणा दे| मेरी बुद्धि छोटी छोटी और बेकार विचारों और कल्पनाओं में न फँसे| यह बुद्धि भगवान की इच्छा को दर्शाये| गायत्री मंत्र सबसे सुंदर मंत्र है जो इस समाज को मिला है जो भी यही कहता है कि मेरे विचारों और बुद्धि में दिव्यता झलके| मेरी बुद्धि दिव्यता से जुड़ी रहे|

प्रश्न : एक व्यक्ति जो मेरे काफी करीब है वह निरंतर मुझ से झूठ बोलता है और धोखा देता रहता है| यह उसके लिये उसके दूसरे स्वभाव के जैसे है| वह झूठ भी बिलकुल सीधे चेहरे के साथ बोलता है| लोग ऐसा क्यों करते हैं और इससे उनको क्या मिलता है? कृपया मदद करें, मैं अपना मन शांत रखना चाहता हूँ|
श्री श्री रविशंकर : आपको यह याद रखना चाहिये कि भगवान विनोद प्रिय है| यदि हर कोई आपके जैसा होता तो आप फोर्ड कंपनी के जैसे होते| यह संसार फोर्ड कंपनी नहीं है जो एक ही प्रकार की कार बनाती है| यहाँ तक वे भी हर साल नया मॉडल बनाते हैं| भगवान विनोद प्रिय है और वह सब प्रकार के लोग आपके आस पास रखता है|
अपने स्वयं के भीतर देखें आपमें भी कितने नकारक और सकारक गुण हैं? आपमें कैसे सुधार हो सकता है इसे आपको सोचना चाहिये और इसके लिये आप क्या कर सकते हैं| अन्य लोग आपके लिये कैसे सुधरेंगे, यह उन पर ही छोड़ देना चाहिये| यदि आप उन्हें शिक्षा देना चाहते हैं तो उसे करुणा के साथ करें| या उन्हें आर्ट ऑफ लिविंग टीचर के पास ले जाएँ| टीचर उनमें बदलाव लाने में मदद कर सकते हैं| यदि आप में करुणा है तो उनके लिये प्रार्थना करें कि उनका जीवन बेहतर बन सके और वह अधिक से अधिक ईमानदार बन सकें| लेकिन जैसे मैंने पहले कहा इस संसार में सब तरह के लोगों की जरूरत है| वे इस संसार को रंगीन बनाते हैं| समझ गये? वे आपके भीतर के बटनों को दबाते हैं और आप में कुछ भावनाएं उत्पन्न करते हैं और फिर आप देखें कि आप उस पर कैसी प्रतिक्रिया देते हैं|

प्रश्न : जय गुरुदेव! मैं चाहता हूँ कि आप युवा और आध्यात्म पर चर्चा करें|
श्री श्री रविशंकर : हम सब तत्व और आत्मा से बने हैं| हमारा शरीर कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, अमीनो एसिड, विटामिन आदि से बना है और हमारी आत्मा उदारता, प्रेम, करुणा, ऊर्जा, फैलाव, अखंडता, ईमानदारी, सच्चाई, बुद्धि, संवेदनशीलता इन सभी गुणों से बनी हुई है|
वे सभी कृत्य जो इन भीतर के गुणों (सुंदरता, प्रेम आदि) का पोषण करता है, वह आध्यात्म है| ध्यान, गान, मंत्रोच्चारण और सेवा इत्यादि आध्यात्म का हिस्सा है| और यह आध्यात्म ही है जो आपको युवा बना के रखता है| और आपमें ऊर्जा प्रदान करता है| मैं अभी भारत से १५ घंटे की विमान यात्रा कर के आ रहा हूँ| मैं अभी यहाँ आया हूँ, फिर मैने आधे घंटे में अपने कपड़े बदले क्योंकि मुझे यहाँ आना था| क्या मैं जेट लैग्ड या थका हुआ लग रहा हूँ ? (श्रोताओं ने कहा नहीं)
किसी ने मुझ से पूछा, ‘गुरुदेव यदि हम केप टाऊन के लिये विमान लेते हैं तो हम बहुत जेट लैग्ड महसूस करते हैं| आपको नहीं लगता| मैंने कहा, जब मन ताज़ा और स्रोत से जुडा हुआ रहता है फिर वहाँ सिर्फ ताज़गी रहती है| युवा युक्त होना ही वह संबंध है जो स्रोत से जोड़ता है और युवा युक्त होना ही वह क्षमता है जो सब से जोड़ती है| और सिर्फ आध्यात्म ही यह युवाओं में ला सकता है|

प्रश्न : यदि आपका कोई अजीज गुजर जाता है, तो यह आम कहावत है कि वह हमेशा आपके साथ है”| क्या वास्तव में ऐसा होता है? क्या वह जो गुजर गया है सच में हमारे साथ होता है और हमेशा हमारा मार्गदर्शन करता है|
श्री श्री रविशंकर : आप लोग उनको कुछ समय के लिए छोड़ क्यों नहीं देते? उन्हें इस दुनिया में बहुत कुछ मिला है और अब वे जा चुके हैं| उन्हें कुछ समय के लिए आराम करने दो और फिर उन्हें वो करने दो जो वे चाहते हैं| उन्हें कुछ मजा करने दो| क्यों वे हमेशा आपका मार्गदर्शन करते रहें?
मार्गदर्शन करने के लिए है क्या? यह सब एक ट्रेन की तरह है| जब ट्रेन रुकेगी तब आपको उतरना पड़ेगा| सब तय है| सब लोगों को एक दिन मरना है| जब आप मरेंगे तब आपको वह दूसरा पहलु भी देखने मिलेगा| तो चिंता मत कीजिये|
अगर आप खुश और शांतिपूर्ण है, तो यह शांति सीमायें पार कर उस दुनिया में भी पंहुच जाती है| अगर आप प्यार और श्रद्धा से परिपूर्ण हैं तो इसका एक हिस्सा, एक किरण उन तक भी पहुँचती है और वे भी खुशी का अनुभव करते हैं| जब आप कोई अच्छा कार्य या सेवा करते हैं, तो सेवा से योग्यता आती है और योग्यता उनकी मदद करती है जो गुजर गए हैं|

प्रश्न : आप महान हैं! हम विलम्ब को कैसे समाप्त कर सकते हैं?
श्री श्री रविशंकर : मैं इसका उत्तर अगले वर्ष दूंगा| (हंसी)
कल्पना कीजिये, आपने दर्जी को दीवाली के लिए कपडे सिलाने दिए हैं, या अपनी शादी के लिए| आप शादी के एक हफ्ते पहले आप दर्जी के पास जाते है, इस उम्मीद से कि कपड़े तैयार हैं, और दर्जी विलम्ब करके कहता है, “मैं आपको कपड़े ६ माह बाद दूंगा”, आपको कैसा लगेगा? आपके दिमाग की क्या दशा होगी?
अब अगर आपको एक डॉक्टर की जरुरत है क्योंकि आपके दांत में दर्द है, और आपका डॉक्टर कहता है, “आप ३ माह बाद आइये, मैं देखूंगा कि कुछ किया जा सकता है या नहीं ? तब आप क्या करेंगे?
आप डॉक्टर या दर्जी से विलम्ब नहीं चाहेंगे, और किसी भी आवश्यक सेवा में विलम्ब नहीं चाहेंगे| आप चाहेंगे कि ये सेवाएं आपको निर्धारित समय में मिलें|
आपको अपने प्रश्नों के उत्तर भी तुरंत ही चाहिए! सही है! पर आप खुद विलम्ब करते हैं| चलो, जागो, अब तो जागो|