१३
२०१२
अगस्त
|
बैंगलुरु आश्रम, भारत
|
हाँ तो, आज आपका मौन समाप्त हुआ! (श्री श्री एडवांस कोर्स में भाग लेने वालों से कहते हैं) कल के झील किनारे सैर कर रहे एडवांस कोर्स कर रहे दो लोगों को बात करते सुना। एक ने पूछा, “हमारा मौन कब खत्म होगा?”
दूसरे ने कहा, “कल सुबह! कल सुबह खत्म होगा।“
(सब हँस पड़ते
हैं।)
तो, कुछ लोगों
ने ऐसा मौन भी रखा था!
और कुछ लोगों
ने पूरी श्रद्धा से मौन रखा।मौन में आप अपनी ऊर्जा का संरक्षण करते हैं। बोलने से,
बहुत सी ऊर्जा खर्च हो जाती है, इसलिये कुछ समय मौन रहना आवश्यक है।
वर्ष में दो
या तीन बार, या हर चार माह में एक बार, तीन से चार दिन का मौन रखना अच्छा रहता है।
ऐसा करने से बहुत लाभ मिलता है। शारीरिक व मानसिक दोनों रूप से। पूरा नाड़ी-तंत्र
तनाव-मुक्त हो जाता है; आपकी बैटरी चार्ज हो जाती है और आप आनंद से भर उठते हैं!!
मौन से हमारी
वाणी भी शुद्ध हो जाती है, और तब हम जो कहते हैं वो होने लग जाता है। इसीलिये
साधना का अपना ही महत्त्व है।
प्रश्न :
विश्वास कितना महत्त्वपूर्ण है?
श्री श्री
रवि शंकर :
विश्वास के बिना आप जी ही नहीं सकते!
मान लीजिये आप
यहाँ कार से आये हैं और आप ने पार्किंग स्थल पर कार को पार्क कर दिया। अब जब आप
यहाँ बैठे हैं तो आप को विश्वास है कि जब आप वापिस जायेंगे तो आपकी कार वहीं
मिलेगी, है न? तो क्या इस विश्वास के बिना आप रह
सकते हैं? नहीं!
सबसे पहले,
आपको स्वयं पर विश्वास होना चाहिये।तीन तरह का विश्वास महत्त्वपूर्ण है :
१. स्वयं पर
विश्वास। जब आप स्वयं पर विश्वास नहीं करते तो यह संविभ्रम (paranoia) कहलाता है। यह एक रोग है।
२. अपने आसपास
के लोगों की अच्छाई में विश्वास। आप को यह विश्वास होना चाहिये कि इस दुनिया में
अच्छे लोग हैं; नहीं तो आप इस समाज में एक इंच भी आगे न बढ़ पायेंगे।
३. अज्ञात
शक्ति में विश्वास ; ऐसी निराकार शक्ति में विश्वास जोकि सब कुछ चला रही है। यह
तीसरी तरह का विश्वास है।
तो, इन तीनों
में से पहले दो प्रकार का विश्वास आवश्यक हैं; जबकि तीसरा जीवन को कहीं अधिक
बेहतर बना देता है।
प्रश्न : अपना
पूरा प्रयास करने के बाद भी मुझे सफलता क्यों नहीं मिलती?
श्री श्री
रवि शंकर :
आप केवल प्रयास से ही सफलता नहीं पा सकते। प्रयास के साथ साथ आप में श्रद्धा
व विश्वास का होना भी आवश्यक है। यदि आप में श्रद्धा व विश्वास दोनों साथ हैं, तो
आपको सफलता मिल जायेगी।
और ऐसा भी
नहीं है कि आप में बस श्रद्धा ही है, तो आपको सफलता मिल जायेगी, नहीं! श्रद्धा व प्रयास
दोनों आवश्यक हैं; दोनों के संयोजन की आवश्यकता है।
प्रश्न :
कृपया हमें अहं के विषय में बतायें।
श्री श्री
रवि शंकर :
प्रेम में हार भी जीत है, और अहं में जीत भी हार!
प्रश्न :
गुरुदेव, भगवद् गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं कि जो भी स्वाभाविक रूप से आता
जाये, करते जायें, चाहे यह सर्वोत्तम कर्म न हो तो भी। कृपया समझायें।
श्री श्री
रवि शंकर :
हाँ, अपने स्वभाव में रहें, अस्वाभाविक न बनें। जो आपके स्वभाव में नहीं, उसे
दर्शाने का प्रयास न करें। पर इसका अर्थ यह भी नहीं कि आप मूर्ख बने रहें, समझ गये न!
मान लीजिये कि
आप कोई अंतिम संस्कार में गये हैं और आपका मन नाचने का कर रहा है। आप सोचते हैं
कि, “गुरुदेव ने स्वाभाविक रहने को कहा है”, और आप ताली बजा बजा कर नाचने लगते हैं। नहीं, यह सब नहीं
चलेगा। आपको गरिमा भी बनाये रखनी होगी। आप सोचते हैं, गुरुदेव ने कहा है, “सारा विश्व एक परिवार है। सबको गले लगाते चलो।" और आप सड़क पर चलती एक महिला को देखते हैं और यह सोच कर उसे
गले लगा लेते हैं, “कोई बात नहीं, सब कुछ मेरा ही तो है!” पर यदि आप ऐसा करते हैं तो मार खाते हैं। इसलिये, ऐसा मत
करिये।
हाँ, ब्रह्म
भाव को जगाना अच्छा है – सब कुछ एक ही है; सब मेरा
ही अंश है। परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि आप किसी की जेब से कुछ चुरा लें और कहें
कि यह सब मेरा ही तो है।
प्रश्न : गुरुदेव,
मुझे लगता है कि लोग मुझे स्वीकार नहीं करते क्योंकि मैं बोरिंग हूँ। मैं क्या
करूँ?
श्री श्री रवि शंकर : इस बात की चिंता न करें कि
लोग आपके बारे में क्या
सोचते हैं। एक लक्ष्य सामने रखें और आगे बढ़ते चलें।
यदि
आपको अकेला चलना पड़े तो अकेले चलिये और आप जीवन में जो
भी हासिल करना चाहते
हैं, उसे हासिल करिये। फिर सब साथ चल देंगें।
मैं भी सोचता
था कि मैं बोरिंग हूँ क्योंकि मैं कभी भी क्रिकेट के बारे में बात नहीं कर पाता
था, और उन दिनों हर एक क्रिकेट के विषय में ही बात करता था और मैं बस उन्हें देखता
रहता था। किशोरावस्था में मुझे इसमें कभी भी दिलचस्पी नहीं रही। मुझे इसमें कुछ भी
मज़ा नहीं आता था, जबकि लोग इसके दीवाने थे। पूरे पाँच दिन वे रेडियो से कान लगाये
रहते थे और कॉमेन्ट्री सुनते रहते थे।
उस समय पर
मुझे लगता था कि क्या बात करूँ। हर कोई केवल क्रिकेट के बारे में ही बात करना
चाहता था, और कुछ नहीं। आप अपना रास्ता बनाइये
और उस पर चलते रहिये। न तो स्वयं को परखें और न ही दूसरों को।
प्रश्न :
गुरुदेव, हम कैसे जानें कि क्या चुनना सही है जबकि सामने चुनने के लिये बहुत कुछ हो
तो? और जब वो सब ही अच्छा हो तो मैं सही का चुनाव कैसे
करूँ?
श्री श्री
रवि शंकर :
सही चुनाव अपने आप ही सामने आ जायेगा। जब ऐसी स्थिति सामने आये तो धैर्य रखिये,
थोड़ा इंतज़ार करिये और यह हो जायेगा।
प्रश्न :
गुरुदेव, मेरे भाई और मेरी परवरिश एक ही तरह से हुई है, फिर भी हम दोनों बहुत
भिन्न हैं। ऐसा क्यों है?
श्री श्री
रवि शंकर :
यह एक बहुत गहरा विज्ञान है। आप को इस विषय में थोड़ा सोचने की आवश्यकता है।
सूक्ष्म जगत (microcosm) और ब्रह्मांड(macrocosm) एक ही हैं। वास्तव में यह एक ही हैं। पर सूक्ष्म जगत से ब्रह्मांड
तक एक श्रृंखलाबद्ध संयोजन है। इस पृथ्वी पर हर एक दाना इस ब्रह्मांड से किसी न
किसी रूप से जुड़ा है।
प्राचीन लोगों को इसका ज्ञान था। इसीलिये
उन्होंने कहा था कि नौ ग्रह हैं, और यह नौ ग्रह नौ भिन्न अनाजों से, नौ भिन्न पशुओं से, नौ भिन्न आकारों से, नौ भिन्न रंगों से और नौ भिन्न तत्वों से जुड़े हैं।
यह कितना
अद्भुत है कि उन्होंने एक से दूसरे के बीच इस संयोजन का पता किस प्रकार लगाया! यह
बहुत ही अद्भुत है!
हमने अपने
कॉलेज व स्कूल में पढ़ा था कि सबसे पहले गैलीलियो ने यह खोजा कि पृथ्वी गोल है, और
यह सूर्य के चारों ओर घूम रही है। पश्चिम में वे हमेशा सोचते थे कि यह सूर्य है जो
पृथ्वी के चारों ओर घूम रहा है। पर यदि आप भारत के किसी भी मंदिर में जायें तो
उनको प्रारम्भ से ही पता था कि सूर्य ही सौर-मंडल का केन्द्र है।
भारत में
हजारों सालों से यह चला आ रहा है। वे सूर्य को बीच में रखते थे और बाकि सब ग्रहों
को उसके चारों ओर।
और उन्होंने
हर ग्रह को एक मंत्र और एक यंत्र के साथ भी जोड़ा। और प्राणशक्ति भी किसी विशेष रत्न
या किसी विशेष अन्न से जुड़ी है। जैसे कि मंगल चने की दाल से, बुध मूँग की दाल
से, शनि तिल के दानों से, सूर्य व चंद्र चावल व गेंहू के साथ जुड़े हैं। राहू व
केतु भी भिन्न अनाजों से जुड़े हैं।
इस प्रश्नकार
हर ग्रह एक विशेष अन्न, एक विशेष आकार व रंग, और हमारे शरीर के एक विशेष अंग से
जुड़ा है।
शरीर का हर
भाग किसी एक ग्रह से जुड़ा है। इस तरह आपके शरीर में सभी ग्रहों की प्रणालियां
मौजूद हैं। यह एक अद्भुत विज्ञान है।
“सामुद्रिक लक्षण” नामक एक विज्ञान था, जिसमें
कि वे आपका चेहरा देख कर आपकी जन्म कुंडली बना देते थे। कभी कभी वे केवल आपके दाँत
देख कर यह बता देते थे कि आप किस वर्ष में जन्मे थे। पर किसी कारणवश यह विज्ञान
लुप्त हो गया। बहुत से ज्ञान का दुरुपयोग हुआ और बहुत सा ज्ञान नष्ट हो गया।
आज, विभिन्न
मंदिरों से पंडित आये हैं और वे विश्व व लोगों की भलाई के लिये यज्ञ कर रहे हैं। आने
वाले कुछ दिन बहुत कठिन होंगे, इसलिये विश्व में नकारात्मक तरंगों को कम करने के
लिये व सकारात्मक प्रभाव को बढ़ाने के लिये वे आज व कल इस यज्ञ को करेंगे। इस प्रकार
ये प्राचीन चीज़ें हैं। पर कोई भी उन्हें ठीक प्रकार से नहीं समझता और न ही कोई
उन्हें ठीक प्रकार से करने वाला ही है। यहीं छोटों को बढ़ावा देने की आवश्यकता
है।
इसलिये, मैंने
सोचा कि हम इन पंडितों को लायें व उन्हें छोटों को सिखाने के लिये कहें।
प्रश्न :
व्यसनों से मुक्ति कैसे पा सकते हैं?
श्री श्री
रवि शंकर :
साधना के द्वारा। व्यसन से छुटकारा दिलाने जो चीज़ काम कर सकती है, वह है – साधना। यहाँ आकर बैठिये व साधना कीजिये।
एडवांस कोर्स
करिये। एक या दो नहीं, बल्कि करते रहिये जब तक कि व्यसनों से मुक्ति न मिल जाये।
पूछते रहिये, “मैं कौन हूँ? मैं कौन हूँ?” यह सर्वोत्तम है। यहीं से आपको उत्तर मिलेगा।
प्रश्न :
गुरुजी, मेरी एक ही बेटी है। वह शादी के बाद कैनेडा चली गई है और मैं उसे पिछले
डेढ़ साल से मिल नहीं पाई। क्या मैं उसे मिल पाऊँगी?
श्री श्री
रवि शंकर :
हाँ, जाओ और उससे मिलो!
आपकी बेटी को
भी लगना चाहिये कि, “मैं अपनी माँ से मिलना चाहती हूँ।"
होता क्या है
कि कई बार हम अपने बच्चों को कुछ इस प्रकार से बड़ा करते हैं कि उनमें कुछ भी
भावना या संवेदना नहीं होती। हम उन्हें सही मूल्य या नैतिकता सिखा नहीं पाते, और
तब, जब वे विदेश जाते हैं तो सब भूल जाते हैं और स्वार्थी बन जाते हैं।
आप जाने
दीजिये और शांत रहिये! सब ठीक हो जायेगा।
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