मन का स्वभाव!!!

१४
२०१२
अक्टूबर
बैंगलुरु आश्रम, भारत

मन का स्वभाव भटकने का होता है, यह उसी तरह है जैसे पानी का स्वभाव प्रवाहित होना|
इस मन के भटकने की प्रकृति को कैसे कम किया जाय?
यह अभ्यास और वैराग्य के द्वारा होता है|
वैराग्य क्या है?
किसी दिन जब आप परेशान रहते हैं, तब आप कहते हैं, मुझे कुछ नहीं चाहिये| अब बहुत हो गया|(पीड़ा का एहसास )! यह एक तरह का वैराग्य होता है जिसका अनुभव आप तब करते हैं जब आप परेशान होते हैं| इसे स्मशान वैराग्य कहते हैं|
दुसरे प्रकार का वैराग्य होता है, जब आप इसे सजगता के साथ कहते हैं, मुझे कुछ नहीं चाहिये, मुझे बहुत कुछ मिल गया| (संतोष का अनुभव)! इस संसार में सब कुछ बदल रहा है और कुछ भी स्थायी नहीं है| मुझे कुछ मिले या ना मिले, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता|
इस दुसरे प्रकार के वैराग्य को ज्ञान वैराग्य कहते हैं|
हमारे पास ज्ञान वैराग्य होना चाहिये ना कि स्मशान वैराग्य|
मन अक्सर सुखों की ओर भागता है| यदि हम में ज्ञान और वैराग्य हो तो सुख हमारे पास आयेंगे|
ऐसा भी कहा जाता है कि जो सुख अभ्यास के द्वारा आता है, वह सबसे श्रेष्ठ होता है|
हर किसी को इन दो प्रकारों में से कम से कम एक का अनुभव करना पड़ता है| इसलिये सजगता और संतोष के साथ यह कहना बेहतर होगा, मुझे बहुत कुछ मिल गया| यह सबसे श्रेष्ठ प्रकार का वैराग्य है!!!