२८
२०१२
अक्टूबर
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बैंगलुरु आश्रम, भारत
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परमात्मा को केवल गहरे आराम (ध्यान) में पाया जा सकता है|
क्या आप जानते हैं गहरा आराम करने के लिए क्या बाधाएं हैं? यह मन की लालसा और घृणा है|
यदि मन लालसा और घृणा के साथ भरा है, आराम संभव नहीं है| और अगर कोई आराम नहीं है, साधना के लक्ष्य को हासिल नहीं किया जा सकता है| यही कारण है कि हमें हमारे मन में लालसा और घृणा से मुक्त होने की जरूरत है| तो, हम यह कैसे कर सकते है? 'मुझे किसी से कुछ भी जरूरत नहीं है' यह हमें हमारे मन में रखने की जरूरत है| जब हमें किसी से कुछ भी जरूरत नहीं है, हमें किसी की ओर कुछ भी लालसा नहीं होगी| जब कोई लालसा नहीं है, वहाँ कोई घृणा नहीं होगी| किसी को खराब व्यक्ति के रूप में मत सोचो| दुनिया में कोई बुरा आदमी नहीं है| यदि कुछ लोग बुरा करते हैं, तो यह अपनी अज्ञानता या जागरूकता की कमी की वजह से है, या उनके मन में चोट लगी है उसकी वजहसे| तो, किसी के बारे में नकारात्मक राय नहीं रखनी है| प्रश्न : गुरुदेव, आपने कहा कि हमें किसी के लिए बुरा विचार नहीं करना चाहिए| अगर हमारे साथ दूसरे बुरी तरह से व्यवहार करते हैं, तो इसके लिए हमें कैसी प्रतिक्रिया रखनी चाहिए? श्री श्री रविशंकर : अगर दूसरों की आपके बारे में नकारात्मक राय है, यह उनकी समस्या है, आपकी नहीं| अपनी तरफ से किसी के भी बारे में बुरा विचार नहीं रखना है| ऐसा करने से, आपका मन साफ और सुखद हो सकता है और बुद्धि तेज हो जाएगी| अन्यथा, जिसे आप बुरा समझते हैं एक भूत की तरह आपके मन में बसेरा बना लेंगे| जब इस तरह के विचार आपके मन में आते हैं, तो आप कुछ रचनात्मक करने के लिए सक्षम नहीं होगे|
प्रश्न : अगर किसी ने वास्तव में हमारी ओर कुछ गलत किया है, तो हमें क्या करना चाहिए?
श्री श्री रविशंकर : जब कोई आप के लिए कुछ बुरा करता है, सोचो, वह क्यों यह करता है? एक कारण यह हो सकता है कि वे स्वस्थ नहीं हैं| क्या आप एक मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति या मूर्ख को एक अपराधी के रूप में देख सकते हो? नहीं! यदि एक मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति आप के लिए कुछ बुरा कहता है, क्या आप उन शब्दों को गंभीरता से लेते हो? नहीं, आप बस जानते हुए कि वह मानसिक रूप से बीमार है इस को अनदेखा कर देते हो| इसलिए, जब कोई आप के लिए कुछ बुरा कहता है, इसी तरह से सोचो| जब एक परेशान व्यक्ति कुछ बुरा कहता है, आप परेशान क्यों होते हो? प्रश्न : शांतिपूर्ण होने के लिए, हमें सीखना है कि दूसरों से उम्मीद नहीं करने की है| लेकिन दैनिक जीवन में, कार्यालय में या घर पर, अलग अलग लोगों से अलग अलग काम करने की अपेक्षा की जाती है| अगर वे ऐसा नहीं करते हैं, तो समस्याएं उत्पन्न होती हैं| हर किसी को अपना काम करना है| कृपया इस पर मार्गदर्शन करे| श्री श्री रविशंकर : अगर कोई वह काम नहीं करता है जो कि उन्हें करना चाहिए, तो हमें उन्हें बताना चाहिए| हमें हमारे अधिकार का प्रयोग करने की जरूरत है| अगर वहाँ आलसी लोग हैं, जो अपना काम नहीं करते हैं, तो हम चुप नहीं बैठ सकते| हमें उन्हें उनके कर्तव्य के बारे में बताने की जरूरत है| अगर हमें उनके प्रति लालसा या घृणा है तो हम उन लोगों में जागरूकता नहीं ला सकते हैं| यह सिर्फ हमें क्रोधित कर देगा| प्रश्न : कारण और प्रभाव का अर्थ क्या है? श्री श्री रविशंकर : कारण और प्रभाव को 'करण' और 'कार्य' कहा जाता है| गाय कारण है, दूध प्रभाव है| अगर दूध है, यह गाय की वजह से है| गाय के लिए कारण घास है| घास के लिए कारण पृथ्वी है| पृथ्वी के लिए कारण सूर्य है| जो कुछ भी हो रहा है उसके पीछे एक कारण है| परमकारण, सभी कारणों का कारण देवत्व है| यही कारण है, यह कहा है, 'तस्मैनमः परमकारण कारणाय|’ सभी कारणों के कारण शिव है|
प्रश्न : गुरुदेव, हम ‘आचमण्यम समर्पयामि’ कहते हैं| जल 'अप' के रूप में जाना जाता है, तो हम इसे ‘आचमण्यम’ क्यों कहते हैं?
पानी प्रदान करने का क्या महत्व है? श्री श्री रविशंकर : हाँ, पानी ‘आचमण्यम’ के रूप में भी जाना जाता है| यह अभ्यास सदियों से चल रहा है| कुछ भी करने से पहले और अंत में, ‘आचमण्यम’ प्रदान करते हैं| यह प्रक्रिया जहां हम अभिमन्त्र करते है (पानी पर मंत्र जप| आप पानी का एक बर्तन लें, और फिर अपना हाथ ऊपर रख कर मंत्रों का जप करें| मंत्र पानी में लीन हो जाना चाहिए|) और फिर यह प्रदान करें| यह सिर्फ सादा पीने का पानी नहीं है| पानी मंत्र कंपन के माध्यम से प्रभारित किया जाता है| जब भी एक अतिथि घर आता है, पानी उनके पैर (पद्य) धोने के लिए इस्तेमाल किया जाता है| फिर, पानी उनके हाथ (अर्घ्य) में दिया जाता है| इस के बाद, उन्हें पानी उनकी प्यास (आचमण्यम) बुझाने के लिए पीने को दिया जाता है| इन तीन प्रथाओं का पुराने समय में अभ्यास किया गया है| जब कोई आपके घर आता है, आप पूछते नहीं हो आप क्या पीना चाहते हैं? आप कुछ नींबू पानी, दूध, चाय या कॉफी लेना पसंद करेगे? ' क्या आप उन्हें पानी पीने के लिए नहीं देते? उसी तरह, पुराने समय में, पद्य, अर्घ्य, और आचमण्यम के अभ्यास का प्रयोग किया जाता था| पद्य घर के द्वार पर अतिथि के पैर धोने के लिए, इसलिए कि पैरों पर गंदगी घर में प्रवेश नहीं हो| अर्घ्य हाथ धोने के लिए है| आचमण्यम उन्हें पीने के लिए पानी देना है, यह दर्शाता है कि विचार - विमर्श शुरू कर सकते हैं| प्रश्न : पंचामृत अभिषेक (हिंदू पूजा में इस्तेमाल पाँच खाद्य पदार्थों का मिश्रण ) का महत्व क्या है? केवल इन सामग्रियों को क्यों चुना गया? श्री श्री रविशंकर : यह पांचों अमृत की तरह हैं: दूध, दही, शहद, गुड़ और घी| हालांकि गुड़ का इस्तेमाल किया जाना चाहिए, आजकल गुड़ के बजाय चीनी का प्रयोग किया जाता है| इनमें पांच देवता रहते हैं| सवित्रु चीनी में रहते हैं, विश्वेदेव शहद में रहते हैं, घी में सूर्य, दही में वायु और दूध में सोम| इसलिए, जब आप उन्हें अभिषेक के रूप में प्रस्तुत करते हैं, इरादा यह है कि हमारे जीवन में देवता के गुणों का खिलना प्रारंभ हो| हम हर किसी के मन में शांति के लिए प्रार्थना करते हैं| हर किसी के मन में खुशी हो| लोगों के जीवन में ताकत, साहस और दीर्घायु हो| लोगों के जीवन में संतोष और समृद्धि हो| जीवन में चमक हो| हवाओं और नदियों का प्रवाह मधुर हो| हमारे दिन और रात मीठे हो| हर मिट्टी का कण हमारे लिए मिठास लाए| आकाश देवता, और पितृ (दिवंगत पूर्वजों) से हम मिठास पाएं| हमारे भाषण और विचार मीठा हो| समाज हमारे लिए मिठास लाए| वनस्पति (जंगल के भगवान) हमारे लिए मिठास लाए| सूर्य हमारे जीवन में मिठास लाए| हमारा पूरा जीवन अन्य लोगों के जीवन में मिठास लाए| हम सामूहिक चेतना में मिठास लाएं|
प्रश्न : कृपया हमें कभी न खत्म होने वाली और अटूट भक्ति पाने के लिए मार्ग बता दें|
श्री श्री रविशंकर : मान लीजिए कि आपके पास स्थिर भक्ति है| ऋषि नारद भक्ति सूत्र में कहते हैं कि भक्ति एक वस्तु नहीं है जिसको प्राप्त किया जा सकता है| यदि आप सभी संदेहों को छोड़ दें, भक्ति, पहले से ही वहाँ है|
प्रश्न : यदि हम कानून का अध्ययन करते हैं, एक वकील बनने की गारंटी है| यदि हम इंजीनियरिंग का अध्ययन करते हैं, एक इंजीनियर बनने की गारंटी है, अगर हम प्रयास करें| हालांकि, वहाँ मुक्ति की कोई गारंटी नहीं है, अगर हम अपनी साधना करें और इस रास्ते पर चलें|
श्री श्री रविशंकर : यह निश्चित रूप की गारंटी है| अर्जुन गीता में यही सवाल पूछता है| तो, भगवान कृष्ण का जवाब है, ‘न हि कल्याण-क्र्त कस्चिद दुर्गतिम तत गच्छति', (६ अध्याय, ४० पद्य)| एक आध्यात्मिक पथ पर आप जब चलते हैं , आप केवल उच्च और उच्च होते जायेंगे|
प्रश्न : कई महान संत, हालांकि उन्हें आत्मज्ञान उपलब्ध हो गया, उन्होंने यह किसी को सीधे नहीं दिया| उन्होंने सिर्फ इसे प्राप्त करने के कदम के बारे में प्रचार किया|
भगवान क्यों नहीं हर किसी को सीधे आत्मज्ञान देते हैं? क्या संस्कार (छाप) इस के लिए आवश्यक हैं? श्री श्री रविशंकर : संस्कार आवश्यक है| यदि आप यहाँ है, इसका मतलब है कि कहीं आप की रुचि और जिज्ञासा थी| इस के बिना, आप यहाँ कैसे आ सकते हैं? तो, थोड़ा सा संस्कार आवश्यक है| हालांकि, केवल संस्कार पर्याप्त नहीं है| जीवन में, संस्कार, अवसर, और कृपा सभी की जरूरत है| इन के साथ, स्वयं प्रयास भी आवश्यक है| यदि आप सत्संग करने के लिए आना चाहते हैं, लेकिन अपने बिस्तर में रहते हैं, क्या इससे मदद मिलेगी?
तो, स्वयं के प्रयास, संस्कार, अवसर, और कृपा सभी की जरूरत है|
प्रश्न : जो लोग नियमित रूप से साधना करते हैं, क्या वहाँ मिर्गी की संभावना है?
श्री श्री रविशंकर : यह इस पर निर्भर करता है कि व्यक्ति क्या पेय है लेता, क्या खाता है और पूरे दिन क्या करता है| यह तभी संभव है जब खाने, पीने और रहने की आदते उचित नहीं हैं| अगर तंत्रिका तंत्र में बहुत तनाव है, तो इस तरह की संभावना है| यदि कोई एक स्वस्थ जी रहा है, यह नहीं होगा| |