पाँच-सिर वाले काले सांप का महत्व!!!

११
२०१२
अक्टूबर
बैंगलुरु आश्रम, भारत
यदि आप पौराणिक चित्रों को देखेंगे, तो पायेंगे कि महावीर एक पाँच-सिर वाले काले सांप (कोबरा) के आगे बैठे हैं| या भगवान विष्णु ध्यान में बैठे हैं, और उनके पीछे एक कोबरा है|
यहाँ तक कि ऋषियों के चित्रों में भी, आप पाएंगे कि एक काला विषैला सर्प है जो अपना फन उठाये पीछे बैठा है|
क्या आपने ऐसे चित्र देखें हैं?
यह एक बहुत ही रहस्यपूर्ण बात है|
देखिये, जब आप ध्यान में बैठे होते हैं, तब क्या होता है? आपकी चेतना जागृत हो रही होती है, प्रस्फुटित और प्रबुद्ध हो रही होती है, बिल्कुल ऐसे जैसे आपके पीछे एक हज़ार सिर वाला कोबरा हो| कोबरा सजगता का प्रतीक है|
आपमें से कितने लोगों को ध्यान करते समय अपने सिर के पिछले हिस्से में सजगता महसूस होती है? एक तरह की जागृति! तो, कोबरा उस ऊर्जा का प्रतीक है जो ऊपर की ओर उठती है और खुलती है, वह ऊर्जा जो सतर्क है और साथ ही विश्राम भी देती है|
ऐसा नहीं था, कि वाकई में उनके सिर के पीछे कोई कोबरा बैठा था| वह मात्र उनके जागृत होने और गहरे विश्राम में होने का प्रतीक था, और यही ध्यान है पूरी तरह से विश्राम| कुछ न चाहना, कुछ न करना, कुछ न होना और पूरी तरह से खुले होना| बिल्कुल एक कोबरा के सिर के समान; बिना किसी परिश्रम के पूर्णतः सजग रहना|
इसके दो प्रकार के वर्णन हैं| एक है, जिसमें वे कोबरा के बारे में बात करते हैं, और एक दूसरे वर्णन में वे एक पुष्प के बारे में बात करते हैं, जैसे एक सौ पंखुड़ियों वाला कमल होता है, जो सिर के ऊपर खिल रहा है, सहस्रार! तो कुछ उसका पुष्प की तरह वर्णन करते हैं, बहुत कोमल, और कुछ उसका वर्णन एक कोबरा की तरह करते हैं, जिसका अर्थ है सतर्क होना| ये दोनों ही उपयुक्त हैं|
अब अगर आप ऐसा महसूस नहीं करते, तो इसका अर्थ है कि आपने अपने शरीर में बहुत सा भोजन ठूंस लिया है| तब आपको कोई कोबरा नहीं मिलेगा, केवल एक भैंस मिलेगी, (हँसते हुए) क्योंकि आपने अपने अंदर इतना कुछ ठूंस लिया है, कि आप बहुत सुस्त महसूस करेंगे|
इसीलिये, दुनिया भर में लोग उपवास रखने के बारे में बात करते हैं, प्रार्थना के बारे में बात करते हैं; उपवास और ध्यान|
लेकिन, आपको बहुत ज्यादा उपवास रखने की भी ज़रूरत नहीं है| कभी कभी लोग पूरा दिन व्रत रखते हैं, और फिर रात में बहुत सारा भोजन खा लेते हैं| ये भी ठीक नहीं है| उपवास रखने के भी कुछ नियम होते हैं, जिन्हें मानना चाहिये|
प्राकृतिक चिकित्सक और डॉक्टर आपको बताएँगे, कि आपको किस तरह व्रत आरंभ करना चाहिये, और किस तरह धीरे धीरे आपको व्रत से बाहर आना चाहिये|
कभी कभी नवरात्री में हम व्रत रखते हैं, और व्रत के नाम पर हम दावत करते हैं|
लोग कहते हैं, हम कोई अनाज नहीं खायेंगे, हम केवल आलू खायेंगे| और फिर हम फ्रेंच फ्रायेज़ (आलू के तले हुए चिप्स) और पता नहीं क्या क्या खाते हैं|
हम चावल नहीं खायेंगे, लेकिन हम केवल इडली खायेंगे ’|
ये तो छल है भई| असली व्रत में किसी भी तरह का हलवा-पूरी नहीं खाया जाता| यह गलत तरह का व्रत है| आपको ऐसे व्रत नहीं रखना चाहिये|
अल्पाहार मिताहार थोड़ा बहुत भोजन और आसानी से पचने वाला भोजन|
इसे भी व्रत माना जाता है| थोड़े बहुत फल और पानी|
तो जब शरीर इतना भारी और सुस्त नहीं होता, तब वह खिलता है, और ध्यान और बेहतर होता है|
लेकिन साथ ही साथ, बहुत ज्यादा उपवास रखने से भी आपका पित्त बढ़ जाता है और तब भी आप ध्यान नहीं कर पाते| इसीलिये, भरपूर पानी पीजिए, ताकि आपके शरीर में पित्त बहुत ज्यादा न बढ़ें|

प्रश्न : गुरुदेव, हालाँकि भगवान विष्णु और भगवान शिव में कोई अंतर नहीं है, लेकिन फिर भी किसमें से कौन निकला? विष्णु पुराण विष्णु की महिमा का गुणगान करता है, और शिव पुराण भगवान शिव की महिमा का|
श्री श्री रविशंकर : जब आप सोचते हैं कि किसमें से कौन निकला तब आप लैखिक तरह से सोच रहें हैं| लेकिन, सत्य लैखिक नहीं है, वह तो गोलाकार है|
इसीलिये, यह भी सच है और वह भी सच है| आप जिस ओर से देखेंगे, वही से वह आएगा| यदि आप उधर से देखेंगे तो वह भी सच है| अगर आप इधर से देखेंगे, तो यह भी सच है| लेकिन दरअसल में ये दोनों ही एक समान हैं| इसी को गोलाकार सोच कहते हैं|
ये इस पर निर्भर करता है कि आपने शुरुआत कहाँ से करी और आप कहाँ जाते हैं|
शिव और विष्णु दोनों भिन्न हैं, लेकिन फिर भी दोनों एक ही हैं|

प्रश्न : अष्टावक्र गीता में आपने कहा है, आप शास्त्रों को पढ़ते जाईये, लेकिन आपको मोक्ष तभी प्राप्त होगा जब अप शास्त्रों को भूल जायेंगे| तो फिर शास्त्र पढ़ने का क्या फ़ायदा है?
श्री श्री रविशंकर : देखिये, आप एक बस में चढ़ते हैं, लेकिन फिर आपको बस से उतरना भी पड़ता है|
अब यदि आप मुझसे बहस करेंगे, कि अगर मुझे बस में से उतरना ही है, तो मैं बस में चढूं ही क्यों?
अरे आप बस में चढ़ते कहीं और हैं और उतरते कहीं और हैं|
अगर आपको बस में से उतरना ही है, तो बस में चढ़े क्यों यह तर्क तो यहाँ सही नहीं है|
इसलिए, शास्त्र आपको आपकी प्रकृति के बारे में समझाते हैं, इस सृष्टि की प्रकृति के बारे में समझाते हैं, इस मन की प्रकृति के बारे में, जो छोटी छोटी बातों में उलझ जाता है, और आपको एक विशाल दृष्टिकोण देते हैं|
इसलिए, ज्ञान साबुन के समान है| देखिये, आप अपने शरीर पर साबुन लगाते हैं, लेकिन एक समय पर आप उसे धो भी देते हैं, है न?
उसी तरह, आपके मन में यह इच्छा है, मुझे मोक्ष प्राप्त करना है, और यह इच्छा आपको बाक़ी छोटी-छोटी इच्छाओं से दूर ले जाती है| लेकिन यदि आप इसी विचार को पकड़ के बैठ जायेंगे, तब ये भी किसी न किसी समय आपकी मुसीबत का कारण बन जायेगी| आपको इसे भी धो देना है, और मुक्त हो जाना है|
मुझे मोक्ष चाहिये, मुझे मोक्ष चाहिये, मुझे मोक्ष चाहिये तब आपको मोक्ष नहीं मिलेगा| लेकिन बाकी छोटी छोटी इच्छाओं से मुक्ति पाने के लिए, इस एक इच्छा का होना ज़रूरी है| तब फिर एक समय आता है, जब आप कहते हैं, अब अगर मुझे मोक्ष मिलना है, तो ठीक है, नहीं तो जैसी आपकी मर्ज़ी’|
उस पल आप मुक्त हो गए हैं!

प्रश्न : महालय अमावस्या की क्या विशेषता है?
श्री श्री रविशंकर : दरअसल ये अमावस्या दिवंगत आत्माओं को समर्पित होती है|
जब आप इस शरीर को छोड़ देते हैं, तब कुछ देव या देवदूत आपको मार्ग दिखाते हुए दूसरी दुनिया में ले जाते हैं| पुरुरवा, विष्वेदेव ये उनके नाम हैं| वे आते हैं और रास्ता दिखाते हुए आपको एक स्तर से दूसरे स्तर ले जाते हैं| महालय अमावस्या वह दिन है जब आप सारी दिवंगत आत्माओं को याद करते हैं, और उन्हें धन्यवाद देते हैं और उनके लिए शान्ति की प्रार्थना करते हैं|
एक पुराने ज़माने की प्रथा के अनुसार, परिवार के सभी लोग कुछ तिल के और थोड़े चावल के दाने लेते हैं और अपने पूर्वजों को याद करते हुए कहते हैं, आपको संतुष्टि मिले, आपको संतुष्टि मिले, आपको संतुष्टि मिले|
वे ऐसा तीन बार कहते हैं, और फिर वे कुछ पानी के साथ उन तिल के दानों को नीचे बिखेर देते हैं|
इस प्रथा का यह अर्थ था, कि पूर्वजों को ये बताना, यदि आपके मन में अभी भी कुछ इच्छाएं बाक़ी रह गयी हैं, तो यह जानिये कि वे तिल के दानों के समान हैं| वे आवश्यक नहीं हैं, उन्हें छोड़ दीजिए| हम आपके लिए उन्हें संभाल लेंगे| आप मुक्त हो जाईये, खुश और संतुष्ट हो जाईये! आपके सामने पूरा ब्रह्माण्ड है| ब्रह्माण्ड अपार है, इसलिए आगे बढ़िए और जाईये, जो कुछ भी आपको पीछे खींच रहा है, उसे छोड़ दीजिए|
उसी को तर्पण कहते हैं| तर्पण का अर्थ है, कि जो जा चुके हैं उन्हें तृप्ति और पूर्णता लाना| ये इसलिए किया जाता है, ताकि उन्हें कह सकें कि वे तृप्त हो जाएँ और आगे बढ़ें|
जल प्रेम का प्रतीक है| किसी को जल अर्पण करने का अर्थ है, कि आप उन्हें प्रेम दे रहे हैं|
संस्कृत में, अप का अर्थ होता है पानी, और उसका अर्थ प्रेम भी होता है| और संस्कृत में जो कोई बहुत प्रिय होता है उसे आप्त भी कहते हैं|
इसलिए, अपने पूर्वजों की याद में, आप उन्हें प्रेम और जीवन रुपी पानी अर्पित करते हैं, और इसलिये इसे महालय अमावस्या कहते हैं|
इस दिन अपने सभी पूर्वजों के बारे में सोचिये|
वैदिक धर्म में, अपनी माता की तरफ की तीन पीढ़ियाँ, और पिता की तरफ की तीन पीढ़ियों को याद करते हैं| और बाकी सभी मित्र, बंधु या कोई भी और जो दूसरी ओर चला गया है| उन्हें याद करिये और उन्हें कहिये कि वे तृप्त हो जाएँ|
आमतौर पर उनकी याद में, लोग कुछ दान भी करते हैं, कुछ लोगों या जानवरों में खाना बांटते हैं| ऐसा दुनिया भर की लगभग सभी संस्कृतियों में होता है| मैं तो यह देखकर अचंभित रह गया कि ऐसा मेक्सिको में भी होता है|
मेक्सिको में २ नवम्बर, हर साल लोग इसे मनाते हैं|
इसी तरह चीन में भी होता है| चीनी परंपरा में, एक ऐसा दिन होता है जब वे अपने पूर्वजों को याद करते हैं, और जो कुछ भी पूर्वजों को पसंद होता था, वे उसे बनाते हैं और उन्हें समर्पित करते हैं| ऐसा सिंगापुर में भी होता है| हालाँकि, सिंगापुर बहुत साफ़ शहर है, लेकिन साल में एक दिन वह कुछ घंटों के लिए बहुत गन्दा हो जाता है, क्योंकि वे लोग सड़कों पर इसे मनाते हैं|
क्या आप जानते हैं, कि वे क्या करते हैं? वे कार्डबोर्ड की बड़ी बड़ी गाड़ियां और घर बनाते हैं, और फिर सड़कों पर उन्हें जला देते हैं, ताकि वे उनके पूर्वजों तक चले जाएँ|
वे बहुत से नकली नोट भी खरीदते हैं, और उन्हें भी जलाते हैं ताकी जो लोग दूसरी ओर जा चुके हैं, उन तक वे पहुँच जाएँ, और बदले में उन्हें आशीर्वाद मिले|
तकरीबन पूरे विश्व में, पुरातन सभ्यताओं से लेकर, सभी कोई इसको मनाते हैं|
ईसाई धर्म में भी, एक दिन होता है, ‘All Saints’ Day’ जब पूर्वजों को याद करते हैं| इस दिन, लोग कब्रिस्तान जाते हैं और दिवंगत आत्माओं के लिए प्रार्थना करते हैं|
ऐसा इसलिए भी करते हैं, ताकि हम खुद को याद दिला सकें, कि जीवन नश्वर है, और इतने साल ये सब लोग यहाँ जिए, और अब ये चले गए हैं| हम इस दुनिया में आये हैं, और एक दिन हम भी यहाँ से चले जायेंगे|
इसलिए, आप उनके लिए शान्ति चाहते हैं और उन्हें धन्यवाद देते हैं| यही उसके पीछे का मुख्य कारण है|
भारत में, ये सभी धार्मिक संस्कार संस्कृत में हैं, और इसीलिये लोग इन्हें समझ नहीं पाते| पंडित कुछ कहते हैं, और फिर वे आपको भी कुछ कुछ करने के लिए कहते हैं, और आप सिर्फ श्रद्धा रखते हुए, वैसे वैसे करते हैं|
वो भी बुरा नहीं है, लेकिन अच्छा होता है, यदि आप थोड़ा समझ कर करें|

प्रश्न : हमारे पूर्वजों और माता-पिता के कर्म हमें कैसे प्रभावित करते हैं? क्या उनके बुरे कर्मों की कारण हमें सज़ा मिलती है?
श्री श्री रविशंकर : देखिये, यदि आपके पूर्वज आपके लिए एक घर छोड़ कर गए हैं, तो क्या वह आपके लिए आज एक वरदान नहीं है?
जो बात इतनी स्पष्ट है उसके बारे में आप प्रश्न क्यों पूछ रहें हैं?!
उन्होंने बहुत सा पैसा कमाया, मेहनत करी और एक घर बनाया और आपके सुपुर्द करके चले गए| आप उनके कर्म का सुख भोग रहें हैं, है कि नहीं!? और यदि वे बैंक से एक बहुत बड़ा कर्जा लिए हुए ही ऊपर चले गए हैं, और यदि आपको उसे चुकाना पड़ता है, तब वह भी आपका कर्म बन जाता है| तो निश्चय ही वह आपको प्रभावित करता है|
सिर्फ माता-पिता ही नहीं, आपकी संगति भी आपको प्रभावित करती है|
यदि आप हमेशा बहुत दुखी और अवसादग्रस्त लोगों के साथ बैठे रहते हैं, तब आप भी दुखी और परेशान महसूस करने लगते हैं| यदि आप प्रसन्नचित और आध्यात्मिक लोगों की संगति में बैठते हैं तो आपका कर्म भी बेहतर हो चलता है|
इस दुनिया में आप अच्छे और बुरे कर्म से नहीं बच सकते| आपको इसके साथ ही चलना है, क्योंकि कभी कभी आपको ऐसे लोग के साथ निभाना पड़ता है जो बीमार हैं| आप ऐसा नहीं कह सकते, कि मैं बीमार लोगों के आस-पास नहीं होना चाहता| अगर हर कोई यही कहेगा, तो सारे अस्पतालों और मरीजों का क्या होगा?
इसलिए, दुनिया में हमें हर एक किसी के साथ होना पड़ता है, और इसीलिये, ज्ञान में रहना और सेवा आपकी रक्षा करेगी| इन्हें कवच कहते हैं|
ॐ नमः शिवाय का जाप करना आपके लिए चारों ओर एक कवच के समान है| यह सभी अनचाहे कर्मों से आपकी रक्षा करता है और किसी भी तरह के बुरे प्रभावों से आपको बचाता है|
लेकिन आपको चौबीस घंटे ॐ नमः शिवाय का जाप नहीं करना है| अगर आप ऐसा करेंगे, तो आपका दिमाग बहत सुस्त हो जाएगा| हर दिन, सिर्फ कुछ मिनट, जैसे आप अपने दांत मांजते हैं|
आप हर एक घंटे में अपने दांत तो नहीं मांजते, क्यों है न? अगर कोई हर एक घंटे में अपने दांत मांजता है, तो कुछ समय के बाद उसका एक भी दांत नहीं बचेगा| वे सब गिर जायेंगे| और यदि आप बिल्कुल भी ब्रश नहीं करेंगे, तो वह भी ठीक नहीं है| उसी तरह, जिस तरह आप दांतों की सफाई रखते हैं, आपको मन की सफाई भी रखनी चाहिये| हर दिन, कुछ मिनट जाप करना, कुछ मिनट ध्यान करना, इन सबसे फ़ायदा मिलेगा|
हम केवल कुछ ही मिनट तक नहाते हैं, है न?
वैसे, हम सबको पानी बचाना चाहिये| पूरे विश्व भर में अचानक पानी की बेहद कमी आ गयी है| बंगलौर में भी ऐसा हो रहा है| सारे तालाब सूख गए हैं, और इस साल ज्यादा बारिश भी नहीं आयी| तो हम सब पानी बचायेंगे| सिर्फ उतना ही पानी का उपयोग करिये, जितनी आपको आवश्यकता है|