अध्यात्मिक ज्ञान और व्यावहारिक ज्ञान साथ साथ चलतें हैं

ऋषिकेश,भारत-०८ मार्च २०१०

प्रश्न : शिव कौन है?

श्री श्री रवि शंकर :
पूछना यह चाहिए कि कौन शिव नहीं है? पूरा संसार शिव
से भरा है| शिव-जिसका शरीर पूरे ब्रह्माण्ड में है| कलाकारों के लिए शिव
का चित्र बनाना बहुत कठिन है, क्योंकि शिव कल्पना से परे है| इस कारण शिव को
नीला रंग दिया गया| नीले का अर्थ है- सर्व-व्यापक, अनंत जिसकी कोई सीमा न
हो| शिव का कोई आकार नहीं है| वेदों के ज्ञान का
कोई आकार नहीं है, लेकिन यह ज्ञान ब्रह्माण्ड के कण-कण में बसा हुआ है|
“साम्ब सदा शिव” – शिव तत्त्व में शिव और शक्ति दोनों मौजूद है ( नर और
नारी शक्ति)| पार्वती शिव से अलग नहीं हैं| पार्वती यज्ञ से उत्पन्न
हैं|शिव तत्त्व के बिना यज्ञ सम्भव नहीं है| शिव और शक्ति को एक क्षण
के लिए भी अलग नहीं किया जा सकता| यदि शिव हर जगह है, तो शक्ति इसकी
परिधि के बाहर कैसे ही सकती है| पुराणों में शिव की तमाम कहानियाँ हैं,
जिनकी रचना यह ध्यान में रख कर की गई है कि एक बच्चा भी शिव तत्त्व के बारे में कुछ जान सके|
तुम सब चेतना की तीन अवस्थाओं का अनुभव करते हो- जागृत, स्वप्न और सुप्त|
शिव चेतना की चौथी अवस्था है, जिसे “तुरीया” कहते हैं, जिसका अनुभव तुम गहन ध्यान में करते
हो| जब तुम उस अवस्था का अनुभव करते हो, तो भोलापन उदय होता है|
और बिना भोलेपन के तुम उस तत्त्व में विलीन नहीं हो सकते | इसीलिये
शिव को भोलेनाथ भी कहा जाता है|

प्रश्न : भोलापन क्या है? भोलापन कैसे चला जाता है?

श्री श्री रवि शंकर :
भोलेपन के लिए तुम्हें समझना होगा कि कोई अन्य नहीं है|

प्रश्न : शिवजी के गले में विष रोकने की कथा का क्या मतलब है?

श्री श्री रवि शंकर :
इसका गहरा अर्थ है| बोलने से ही विष फैलता है| बोलने से
मन उत्तेजित होता है| सभी झगड़े सही ज्ञान की कमी और कठोर शब्दों के कारण ही
होते हैं| शिवजी को नीलकंठ भी कहा जाता है – जिसका अर्थ है कि जब महादेव
विषपान करते हैं, यह उनके पूरे शरीर में नहीं पहुंचता| जब सही और गलत
विचारों में संघर्ष होता है, विष पैदा होता है| शिव तत्त्व में उस विष को
रोक कर रखने की शक्ति होती है| यदि तुम्हें किसी की आलोचना करनी भी पड़े, तो
इसे होठों से करो – दिल से नहीं| जब तुम इसे दिल से करते हो, यह तुम्हें
नुकसान पहुंचाता है| जब यह केवल होठों के स्तर तक रहता है, तो समाज में
किसी का भला होता है| तुम हर समय मीठे बोल नहीं बोल सकते| यह अपने-आपको
तथा दूसरों को धोखा देना होगा| तुम्हें दूसरों को शीशा दिखाना पड़ता है,
लेकिन यह दिल के स्तर से नहीं होना चाहिये| यहाँ तक कि शिव भी गुस्सा
होते हैं, पर अंदर से नहीं| अंदर वही शांति रहती है| यह बच्चों द्वारा
अपनी माँ से गुस्सा होने जैसा है| पर तुरंत ही बच्चों की मुस्कान लौट आती है| यही
भोलपन है| बड़े लोग ही झगड़ों को लंबे समय तक रोके रखते है|

प्रश्न : बच्चा गलत भाषा कैसे सीखता है?

श्री श्री रवि शंकर :
प्रत्येक बच्चा जन्म के समय भोला होता है| लेकिन वे
वातावरण से गलत भाषा सीख जाते हैं| पहले-पहल वे केवल अपने माता-पिता या
अपने आस-पास के लोगों की नक़ल करते हैं| लेकिन बाद में यह आदत बन जाती है|
जो तुम देते हो, वही तुम्हारे पास लौटकर आता है| उससे केवल तुम्हारा ही
दिमाग खराब होता है|

प्रश्न : शिव के त्रिशूल का क्या महत्व है?

श्री श्री रवि शंकर :
त्रिशूल पकड़ने का अर्थ है कि शिव जागृत, स्वप्न और
सुप्त – तीनों अवस्थाओं से परे हैं| लेकिन इन सभी को साथ में लेकर चलते हैं|

प्रश्न : क्या किसी की निकटता अनुभव करने में भौतिक दूरी बाधक है?

श्री श्री रवि शंकर :
मन के लिए कोई दूरी नहीं है| जब तुम भावनाओं से जुड़ते
हो, सभी दूरियां समाप्त हो जाती हैं| यदि कोई भाव नहीं है, तो तुम अपने
बिलकुल पास बैठे व्यक्ति से भी निकटता नहीं महसूस करते| यह बात ईश्वर,
देवता और सभी सम्बन्धों के लिए सत्य है| जब पूरे ब्रह्माण्ड से ऐसा
सम्बन्ध स्थापित हो जाता है, तो तुम शिव तत्व का अनुभव करते हो|

प्रश्न : प्रत्येक वस्तु और व्यक्ति में शिव को कैसे देखा जा सकता है?

श्री श्री रविशंकर :
“शिव हर जगह है”|यह आध्यात्मिक सत्य है और दूसरा
व्यवहारिक ज्ञान है| दोनों को साथ में लेकर चलो | जो केवल सामाजिक व्यवहार
में अटका रहता है, उसे कुछ नहीं मिलता| यह उसके लिए भी सत्य है जो केवल ध्यान
और आध्यात्मिकता की परिकल्पना में बहुत अधिक डूबा हुआ है|
यदि तुम्हारे घर में चोर घुस आता है, तो तुम उसे शिव का रूप मानकर उसे
मनमानी करने नहीं दे सकते|(हँसते हुए) तब शिव के इस रूप को पुलिस रूपी
शिव को संभालने दो|

तुम ड्रग या शराब पीने को यह कहकर उचित नहीं ठहरा सकते कि इनमें भी शिव
मौजूद है| हमारा शरीर ऐसा बना है कि यदि तुम अपनी चेतना और प्राण को बढ़ाते हो, तो तुम ईश्वरत्व का अनुभव करते हो | और यदि तुम
इन्हें घटाते हो, तो तुम सुस्ती का अनुभव करते हो|
जहाँ प्राण हैं, वहीं सच्ची सुंदरता या शिव है|


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