जब भीतर खालीपन का भान हो तो सत्य की खोज का प्रारंभ होता है

१० मार्च, २०१०
ऋषिकेश, भारत

प्रश्न : सभी सांसारिक सुख और परिवार के होते हुए भी अगर कोई भीतर ख़ालीपन महसूस करे तो क्या करें?

श्री श्री रवि शंकर :
अपने आप को भाग्यवान मानना चाहिए कि उसे ये भान हुआ कि जीवन में खाने, पीने और सोने से अधिक भी कुछ है। जब भीतर इस ख़ालीपन का भान हो, तब सत्य की खोज का प्रारंभ होता है।

प्रश्न : प्रार्थना-केन्द्रित और ध्यान-केन्द्रित धर्म में क्या अंतर है?

श्री श्री रवि शंकर :
हर चीज़ का अपना स्थान है। प्रार्थना माने ईश्वर से कुछ मांगना, और ध्यान माने ईशवर की सुनना। दोनों ही आवश्यक हैं।

प्रश्न : क्या ज्योतिष और ग्रहों का कुछ महत्व है? कई टी वी चैनेलों पर ऐसे कार्यक्रम आते है जहां ग्रहों और मणियों के बारे में बताते हैं। क्या इन पर विश्वास करना चाहिये?

श्री श्री रवि शंकर :
ज्योतिष का अपना महत्व है। ज्योतिष एक विज्ञान है, पर हर ज्योतिषी वैज्ञानिक नहीं है। हर किसी ज्योतिषी पर विश्वास नहीं किया जा सकता। ग्रहों का प्रभाव होता है, परंतु ये जान लो कि तुम में उन से कहीं अधिक शक्ति है। ’ॐ नमः शिवाय’ मंत्र एक कवच की तरह है, और ये सभी ग्रहों के प्रभाव को संभाल लेता है।

प्रश्न : क्या अपनी जीविका के लिये जूझता व्यक्ति आध्यात्म के मार्ग पर प्रगति कर सकता है?

श्री श्री रवि शंकर :
कुछ लोग कहते हैं कि आध्यात्म के मार्ग पर चलने के लिये तुम्हें अपना रोज़गार छोड़ना होगा। पर मैं कहता हूं कि तुम अपनी जीविका या व्यवसाय को चलाते हुए आध्यातम के मार्ग पर प्रगति कर सकते हो। ये एक दूसरे के पूरक हैं। आध्यात्म मार्ग पर चलने से तुम्हारे रोज़गार में भी कार्य सिद्ध होते हैं। इस ज्ञान को केवल सुनने से कोई लाभ नहीं होगा। इसके साथ साथ अपनी साधना करना अतिआवश्यक है।

प्रश्न : प्रेम और मोह में क्या अंतर है?

श्री श्री रवि शंकर :
मोह वही है जो तुम्हे पीड़ा देता है। प्रेम वही है जिसके बिना तुम रह नहीं सकते हो। अगर प्रेम मोह में परिवर्तित हो जाये, तो वही प्रेम जो तुम्हें आनंद दे रहा था, पीड़ा देने लगता है। मोह में कुछ बदले में पाने की भावना रहती है। अगर तुम प्रेम करो और बदले में कुछ न चाहो, तब वो प्रेम मोह में परिवर्तित नहीं होता। नारद भक्तिसूत्र के विवेचन में मैंने प्रेम के विषय में बताया है।

प्रश्न : अगर ईश्वर ही हमारा उद्गम स्थान है, हम ईश्वर का ही अंश है, ईशवर में मिल जाना हमारा गंतव्य है, तो फिर हम ईश्वर से दूर जाने की बेवकूफ़ी क्यों करते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
कभी कभी तुम घर में बैठे-बैठे बोर हो जाते हो, और कहीं घूमने चले जाते हो। पर तुम वापस घर आ जाते हो। अगर तुम वापस न आओ तो मेरे जैसा कोई व्यक्ति तुम्हें वापस घर ले चलने के लिये आ जाता है।

प्रश्न : विवाह करना, भारत में इतना आवश्यक क्यों माना जाता है?

श्री श्री रवि शंकर :
समाज में रहने के लिये उसके नियमों का पालन करना होता है। ये नियम समाज में सुव्यवस्था बनाये रखने के लिये होते हैं।

प्रश्न : शराब अगर नैसर्गिक उपज से बनाई जाती है फिर भी इसका सेवन स्वास्थ्य के लिये हानिकारक क्यों होता है?

श्री श्री रवि शंकर :
मैनें पाया है कि शराब का सेवन करने वाले व्यक्ति वस्तुतः भीतर से दुखी होते हैं। एक बार शराब का नशा उतर जाये तो दुख का फिर उदय होता है, और पहले से दोगुने आयाम से वह प्रभावित करता है। जीवन का ध्येय है जागरूक रहना, ना कि जागरूकता को खो देना। दुख से छुटकारा पाने के लिये जागरूकता की आवश्यकता है। नशा उसे केवल कुछ देर के लिये रोक सकता है। फिर दुख दोगुने आयाम में वापस आता है। नशा तुम्हारा स्वास्थ्य ख़राब करता है, तुम्हारी बुद्धि को क्षीण करता है और मन में कितनी ही दुविधाओं को जन्म देता है। ये ना सिर्फ़ तुम्हारे जीवन को खराब करता है, बल्कि तुम्हारे आस पास रहने वालों का भी। अगर तुम अपने स्वास्थ का नुकसान चाहते हो, और वो भी अपने खर्च पर, तो नशा करते रहो।
गांवों में लोग अच्छा कमाते हैं लेकिन कमाई का ६० प्रतिशत हिस्सा नशाखोरी में मिटा देते हैं, और इस तरह गरीबी और बीमारी की अवस्था बनी रहती है। आनंदित रहने के लिये तुम्हारे पास सत्संग एक उतकृष्ट साधन है। ये ना सिर्फ़ तुम्हें, बल्कि तुम्हारे आस पास के लोगों को भी आनंदित करता है। सत्संग का नशा महसूस करने के बाद तुम्हें अन्य नशीले पदार्थ फीके लगेंगे।

प्रश्न : मासांहारी भोजन न लेने के पीछे कोई तर्क है?

श्री श्री रवि शंकर :
जीव में तीन प्रकार होते हैं – शाकाहारी, मांसाहारी और मरे हुये जानवर खाने वाले। मांसाहारी जीव शिकार मार कर भोजन करते हैं। जानवर मार कर वे ताज़ा मांस खाते हैं। भूख ना होने पर वे दूसरे जानवरों को नहीं मारते। स्कैवेन्जर जीव, मरे हुए जानवर खाते हैं। कुछ ही
जीव इस श्रेणी के होते हैं।
अगर तुम कुछ बौद्धिक कार्य करना चाहते हो, तो मांसाहारी भोजन तुम्हारी लिये उपयुक्त नहीं है। आइन्स्टाइन जैसे अपूर्व बुद्धि वाले वैज्ञानिक, शाकाहारी थे। शरीर के स्वास्थ्य और बुद्दि की प्रखरता के लिये शाकाहारी भोजन सर्वोत्तम है।

प्रश्न : कहा जाता है कि अनेकानेक पुण्य अर्जित करने के बाद जीव को मनुष्य जन्म मिलता है। आजकल के मनुष्य तो पुण्यात्मा नहीं जान पड़ते, तो फिर विश्व में मनुष्यों की जनसंख्या इतनी बढ़ क्यों रही है?

श्री श्री रवि शंकर :
कई जीवों की जन्संख्या घट भी रही है, जैसे कि बिच्छू, सांप, इत्यादि। तुम सोचना इस बात पर।

प्रश्न : किसानों के लिये आपका क्या परामर्श है?

श्री श्री रवि शंकर :
जिन फ़सलों की पैदावार भारत में प्रचुर मात्रा में होती थी, अब उनका आयात करना पड़ रहा है। इसलिये कीमतें भी कई गुना बढ़ गई हैं। पहले समय में खेतों में तीन फ़सलें हुआ करती थी। अगर एक फ़सल को नुकसान हो जाये तब भी किसान की जीविका के लिये दो फ़सलें तो बच जाती थी। इस तरह एक से ज़्यादा फ़सलें उगाने की वजह से किसान कर्ज़दारी से बच जाता था।
परंतु वर्ण-संकर फ़सलों(Hybrid crops) में केवल पहले एक या दो वर्षों तक ही अच्छी उपज हो पाती है। फ़िर धरती से पौष्टिक तत्व नष्ट हो जाते हैं।
मेरा सभी के लिये परामर्श है कि प्राचीन कृषि के तरीकों को अपनायें।
एक से अधिक फसलों को एक साथ उगाने से अच्छा मुनाफ़ा होता है।(Multiple croping)
महाराष्ट्र में हमनें बीजों का बैंक शुरु किया है। इस वर्ष ५० किसानों को १ किलो बीज दिये गये हैं। १ किलो बीज से उन्हें ४०-४५ किलो उपज मिलेगी और अगले वर्ष वे किसान २ किलो बीज बैंक को वापस करेंगे। इस तरह अगले वर्ष १०० किसानों को मुफ़्त बीज मिल पायेंगे।
अच्छा हो अगर ऐसे बैंक पंजाब और हरयाणा में भी शुरु किये जायें। किसान खुश होंगे और सबको अच्छी फ़सल भी मिलेगी। अन्यथा जो उपज हम रासायनिक कृषि से पाते हैं वो हमारे शरीर में जगह जगह दर्द और रोग देते हैं। इसलिये एक से अधिक फसलों को एक साथ उगाना
और जैविक कृषि(Organic farming) इस समस्या का सर्वश्रेष्ठ उपाय है।

प्रश्न : कृपया बी टी फ़सलों के बारे में हमें जानकारी दीजिये। ऐसा क्यों कहा जाता है कि बी टी फ़सलों का उपभोग नहीं करना चाहिये?

श्री श्री रवि शंकर :
बी टी – बायो टेक (Bio - tech)। हां, हमें इसका उपयोग नहीं करना चाहिये। बी टी रुई की वजह से हज़ारों किसानों ने आत्महत्या की थी। साथ ही, इससे निकले जीवाणुओं ने कई और वनस्पतियों को भी नुकसान पंहुचाया। १०-१५ साल पहले नीम की पत्तियां झुलसती नहीं थी। बी टी रुई की वजह से अब ऐसा हो रहा है।

कुछ लोगों ने तैयारी की थी भारत में बी टी बैंगन की खेती की शुरुवात की। लेकिन इसके विरोध में सामूहिक आवाज़ की वजह से अभी के लिये ये योजना टल गई है। फ़्रांस और अमरीका ने भी इन बीजों पर प्रतिबन्ध लगाया है। शोध से ये जानकारी हुई है कि इन बीजों से गुर्दे, लिवर, हृदय पर दुष्प्रभाव पड़ता है। साथ ही कैंसर भी बढ़ता है। परंतु भ्रष्टाचार के चलते भारत में बी टी चावल इत्यादि की शुरुवात की जाने वाली थी। इसलिये ये आवश्यक है कि अच्छे लोग, संत और सामाजिक कार्यकर्ता मिलकर आवाज़ उठाएं और सामान्य लोगों को इसकी जानकारी हो।

प्रश्न : क्या विभिन्न आध्यात्मिक संस्थाओं के बीच टकराव नहीं होता?

श्री श्री रवि शंकर :
प्रणाली एवं पद्दति में भेद होने पर भी, ध्येय एक ही है – मानव का उत्थान। सभी पद्दतियां अच्छी हैं। समय समय पर धार्मिक सभायें भी होती हैं। जहां तक मेरी जानकारी है, उनके बीच टकराव नहीं है।

प्रश्न : अविद्या क्या है, और ज्ञान में स्थित होने का क्या अर्थ है?

श्री श्री रवि शंकर :
अगर एकांत में भी कई विचार तुम पर हमला कर रहे हैं, तो तुम अविद्या में हो। अगर भीड़ में भी तुम शांत हो, तो तुम ज्ञान में स्थित हो।


art of living TV

© The Art of Living Foundation For Global Spirituality