"चाहे जितना भी अँधेरा हो वो प्रकाश को प्रभावित नहीं कर सकता"


प्रश्न : यदि किसी व्यक्ति के दो आध्यात्मिक गुरु हों तो उसे किसका अनुसरण करना चाहिए?

श्री श्री रवि शंकर :
यदि आप उलझन में हो तो मुझे इस उलझन में क्यों डाल रहे हो! कोई फरक नहीं पड़ता मैं कुछ भी कहूँ, आपका मन फिर भी उलझन में ही रहेगा| यदि मैं कहूँ कि दूसरे गुरु का अनुसरण करो तो तुम कहोगे मैंने आपको अस्वीकार कर दिया| यदि मैं कहूँ मेरा अनुसरण करो तो आप सोचोगे कि मैंने दूसरे को छोड़ देने के लिए क्यों कहा? सभी में एक को देखो और सभी को एक में देखो| आपके पहले गुरु ने आपको यहाँ आने के लिए तैयार किया| आप फैसला करो। क्या आप यहाँ आकर संतुष्ट हो? आप केन्द्रित हो? क्या आप अपने आप में स्थिर हो? सभी मतों का आदर करो परन्तु एक रास्ते के लिए प्रतिबद्ध रहो। इस तरह से आप उलझन में नहीं पड़ोगे। आप इस पथ पर आ गए हो, इसके साथ जुड़े रहो| मस्त रहो, खुश रहो, देखो क्या आपकी मुस्कान बढ़ रही है| यदि नहीं तो मैं ही कह दूंगा कि कहीं और चले जाओ|(तालियाँ)

प्रश्न : वैराग्य,मोक्ष और सिद्धि क्या ये एक तरह का पलायन है या प्रबोधन का पथ है?

श्री श्री रवि शंकर :
प्रबोधन का पथ ही मुक्ति और स्वतंत्रता है| मुक्ति की इच्छा रखना पलायनवाद नहीं है| स्वतंत्रता या मुक्ति आपको अपना कर्तव्य ईमानदारी से पूरा करने देती है|

प्रश्न: मनुष्य होने के नाते मेरे क्या कर्तव्य हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
कर्तव्य वह है जिसे ना करना आपको पीड़ा देता है, जिसके लिए कुछ करने की पुकार रहती है| जब आप वो नहीं करते तो असंतुष्ट रहते हो| आपका भाव और समाज बताएगा आप का कर्तव्य क्या है?

प्रश्न : गरूजी, मेरे भाई ने एक किताब लिखनी शुरू की और दस साल पहले उनकी मृत्यु हो गई| कृपया मुझे आशीर्वाद दें कि मैं यह किताब पूरी कर सकूँ|

श्री श्री रविशंकर :
गुरूजी ने आशीर्वाद दिया और कहा कि हर व्यक्ति अपने आप में एक किताब है ,एक उपन्यास है| यदि वे अध्यात्मिक पथ पर हैं तो इसका अंत ख़ुशी पूर्ण होगा| यदि ऐसा नहीं है तो यह त्रासदी है| एक पुस्तकालय में बहुत सी किताबें होती हैं - सारी दुनिया एक पुस्तकालय है| मानव जाति इस पुस्तकालय का हिस्सा है| इन सब किताबो का केवल एक ही लेखक है और वह बाज़ार को भरता जा रहा है और कोई भी लेने वाला नहीं है| केवल कुछ लोग ही जो जगे हुए हैं वे ही जान पातें हैं कि ये केवल कहानियां हैं| केवल कुछ भक्त ही इसे जान पातें हैं और इसका आनंद उठातें हैं| और आप भी उन कुछ लोगों में से एक हो| यदि आप सोचते हो कि आप नहीं हो तो इसी वक्त बन जाओ| आपके पास जीवन भर के लिए इस पुस्तकालय की सदस्यता है|

प्रश्न : मुझे कैसे पता चलेगा कि मैं आध्यत्मिक पथ पर प्रगति कर रहा हूँ?

श्री श्री रविशंकर :
आपका संदेह करना ही इस बात को प्रमाणित करता है कि आप इस पथ पर प्रगति कर रहे हो| यदि कोई प्रगति न हुई होती तो आप में कोई संदेह नहीं होता इसे लेकर।

प्रश्न : इस बार आप ५००० बर्षों के बाद आये हो| क्या आप मुझे अपने साथ ले चलेंगे या और ५००० बर्षों तक इंतजार करना होगा?

श्री श्री रवि शंकर :
यह प्रश्न से अधिक एक आश्चर्य है। तो आपकी वापिस आने की योजना है?(हंसी) ठीक है, हम देखेंगे, हम अपना समय निर्धारित कर लेंगे! क्या एक जीवन काल पर्याप्त नहीं है? एक ही समय वापिस आना पर्याप्त नहीं है, आपको गुरु के प्रति जागरूक भी होना होगा|

प्रश्न : ऐसा कहना ठीक है यदि आपके जीवन में गुरु है तो आपको हर जीवन काल में वही गुरु मिलेंगे?

श्री श्री रविशंकर :
क्या आप इस जीवन काल में गुरु का काम अधूरा छोड़ देना चाहते हो?क्या आप इसी जीवन काल में अटक के रह जाना चाहते हो और बाकी का ज्ञान अगले जीवन के लिए छोड़ देना चाहते हो? तब आपको इस जीवन में भी गुरु की आवश्यकता नहीं है|

प्रश्न : सत्य की परीक्षा बार बार क्यों होती है?

श्री श्री रवि शंकर :
क्योंकि झूठ किसी परीक्षा का सामना नहीं कर सकता| जो पढ़ा ही ना हो वह परीक्षा के लिए क्या जाएगा? जिसने आइ ए एस की तैयारी की होगी वही तो परीक्षा देने जायेगा| जब आपको विश्वास होता है की आप सफल हो जाओगे, तभी आप परीक्षा देने के लिए तैयार होंगे| जो परीक्षा से सफल होकर निकलता है वही सत्य है|

प्रश्न : हम अहं को 'मैं' के साथ जोड़ते हैं| क्या यह भी अहं नहीं है जब कृष्ण, जीसस और अन्य गुरु लोगों को अपने प्रति समर्पित होने के लिए कहतें हैं?

श्री श्री रविशंकर :
अहं दूसरों को अपने बारे में ऊँचा सोचने और पूजा करने के लिए कहती है| यदि कोई किसी से कुछ कहता है तो देखो शब्द कहाँ से आ रहे हैं| यह देखो कि शब्दों का स्रोत क्या है| उनके शब्द उस छोटे मन से नहीं आ रहे हैं परन्तु किसी अन्य आकाश से आ रहे हैं| जीसस ने कहा - मैं ही केवल एक रास्ता हूँ| ये शब्द किसी और जगह से आ रहे हैं, भीतर की आवाज़ है, ईश्वरीय आवाज़ है| वैसे ही जैसे एक माँ बच्चे से कहती है,"वैसे ही करो जैसे मैं कहती हूँ!" - यह अहं नहीं है परन्तु अपनापन है| उसी तरह से एक अध्यापक अपने शिष्यों से कहता है,"वही करो जो मैं कहता हूँ!" - यह अहं नहीं है| अहं का मतलब है अस्वभाविक होना| अहं कब होता है? जब आप अपनी गलती छुपाने की कोशिश करते हो| यदि आप एक खुली किताब की तरह हों तो आप लोगों से खुले मन और दिल से मिल सकते हो| यदि ऐसी स्तिथि हो कि साथ काम करते वक्त, आपको महसूस हो कि आप में अहं आ गया है तो आप उस से पीछा छुड़ाने कि कोशिश मत करो| ऐसा कहना कि मैं अपना अहं ख़त्म कर रहा हूँ और ज्यादा अहं लाता है| इसको बना के रखने की भी कोशिश मत करो| सहज रहना ही इसका एक उपाय है|
(श्री श्री एक कहानी सुनातें हैं)

श्री श्री रवि शंकर :
एक बार जब हम मिलते हैं तो हम कभी अलग नहीं होते| कोई ३० वर्ष पहले मैं धनबाद से दिल्ली जा रहा था - २४ घंटे की यात्रा थी| हमारे रेल के डिब्बे में एक लड़का था| हमने आपस में बातचीत की| तब २० बर्ष बाद वह मुझे वृन्दावन गार्डन में मिला| वह मुसलमान था और तब तक उसकी शादी हो गई थी और बच्चे भी थे| वह मेरे पास आया और बोला,"मैं आपसे रेल में ३० वर्ष पहले मिला था| तब से मेरा जीवन पूर्णतया बादल गया| मैं हर दिन आपको याद करता था और आपसे दोबारा मिलने का इन्तजार कर रहा था| कृपया मेरे बच्चों और बीवी को आशीर्वाद दें|" मन में हर रोज़ एक सम्बन्ध रहता है| पता है यहाँ कुछ लोग इरान,इराक, मंगोलिया से हैं जिनसे मैं कभी मिला भी नहीं हूँ ,वे कहतें हैं की गुरूजी उनके बहुत करीब हैं| यदि मन में दूरी है तो चाहे आप एक ही घर में हों तो भी अंतर रहता है| नहीं तो १००० मील की दूरी का भी कोई फर्क नहीं पड़ता|

प्रश्न : कभी कभी मेरे मन में प्रश्न आतें हैं और जब मैं ध्यान में बैठता हूँ तो उनके जवाब भी मिल जातें हैं| तथापि कभी कभी कोई जबाब नहीं मिलता| क्या ऐसा इस लिए होता क्योंकि तब सम्बन्ध टूट जाता है?

श्री श्री रवि शंकर :
आपका मतलब की आप को रेंज नहीं मिलती?(हंसी) ऐसा केवल कभी कभी होता है ना, तो ठीक है| शायद यह एक मुश्किल प्रश्न है, मेरे पास इसका जबाब नहीं है| शायद इसीलिए सम्बन्ध टूट जाता होगा|(हंसी)

प्रश्न : क्या इस देश में जनसंख्या और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना महत्वपूर्ण है? यह हम कैसे कर सकतें हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
मुद्रास्फीति को रोकने के लिए किसी प्रकार का क्षय नहीं होना चाहिए| और अधिक लोगों को कृषि में रूचि लेनी चाहिए|भोजन को बर्बाद नहीं करना चाहिए| घर में केवल उतना ही अनाज रखो जितने की जरुरत है| कुछ और दिनों तक सब्जी को बचा के रखने की आदत छोड़ दो| पहले लोगों को ताज़ा भोजन खाने की आदत थी| परन्तु अभी फ्रिज होने की वजह से लोग इसमें भोजन एकत्रित करने लग गए| पता है इस फ्रिज की वजह से मुद्रास्फीति हुई है! इस फ्रिज की आदत छोड़ दो और ताज़े को अपनाओ|

जनसंख्या के लिए इसका सकरात्मक पक्ष है| हमारी जनसंख्या की वजह से हमारी संस्कृति ,विरासत बची हुई है| भारत में जनसंख्या का बहुत ज्यादा होना एक आशीर्वाद ही है| अन्य स्थानों जैसे आस्ट्रेलिया,इंग्लैंड जहाँ की जनसंख्या कम है उनकी संस्कृति मिटती जा रही है| वहां की स्थानीय जनसंख्या ना के बराबर है| यहाँ तक की २०० सालों का ब्रिटिश सम्राज्य भी हमारी संस्कृति को नहीं मिटा सका| इसका मुख्य कारण जनसंख्या ही था|

प्रश्न : आप हमेशा कहते हो कि हमें अपने दुःख आपको समर्पित कर देने चाहिए परन्तु मुझे आप को अपनी सारी चिंताएं और समस्याएं समर्पित करने में अपराध बोध आता है|

श्री श्री रवि शंकर :
पता है जो भी अवयव धरती माँ को सौंपे जातें हैं वे हमें खाद और फूलों के रूप में वापिस मिल जातें हैं| तो यदि धरती माँ आपका कचरा ले लेती है तो क्या मैं कुछ कम हूँ? हमारे पास दुखों को ख़ुशी और आनंद में बदलने की शक्ति है| कोई फरक नहीं पड़ता कि वहाँ कितना अँधेरा है, यह प्रकाश को प्रभावित नहीं कर सकता| जब आप आश्रम आते हो क्या पहले ही आपको अच्छा महसूस नहीं होता?
भक्त: हम जानतें हैं आप ही प्रकाश हो गुरूजी!


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